आवव, गोठ-बात सुरु करन...

भारत के रंग-रंग के महागाथा कहिनी जऊन ला पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (पारी) ह 2014 ले लिखत हवय, भारत के भाखा मन ले सुरु होथे- गाँव-देहात के इलाका मं 83 करोड़ 30 लाख लोगन मन 700 ले जियादा भाखा कहिथें, 86 अलग-अलग लिपि बऊरथें. ये भाखा मन, जेन मं बगेर कोनो लिपि वाले भाखा घलो शामिल हवंय, भारत के सांस्कृतिक विविधता के केंद्र मं हवंय. ओकर बगेर, लोगन मन के एक जगा संग्रह के कल्पना घलो नई करे जाय सकय, वोला साकार करे त दूरिहा के बात आय. भारत के भाखा मन मं अनुवाद पारी के हरेक कहिनी के रद्दा मं महत्तम भूमका निभाथे.

“ये संग्रह पत्रकारिता के क्षेत्र मं अगुवा रहे रहय, ये ह अनुवाद ला समाजिक नियाव के नजरिया ले देखथे,” स्मिता खटोर कहिथें. “ये ह तय करथे के गियान के जनम अऊ बगरे अंगरेजी पढ़ेइय्या, अंगरेजी भाखा बोलेइय्या मन के विशेषाधिकार झन बने, काबर के भारत के अधिकतर गाँव-देहात के लोगन मन अभू घलो अंगरेजी भाखा ले कोंसो कोस दूरिहा हवंय.”

भाखा संपादक अऊ अनुवादक मन के हमर टीम अक्सर शब्द मन के सांस्कृतिक संदर्भ, वाक्यांश के उपयुक्तता अऊ बनेच कुछु बात कहिथे, बहस करथे, चर्चा करथे. अभी कुछु दिन पहिली...

स्मिता: पुरुषोत्तम ठाकुर के वो कहिनी सुरता हवय, जऊन मं वो ह तऊन नजारा के बरनना करे हवंय जब तेलंगाना के ईंटा भट्ठा मं बूता करेइय्या कुरूमपुरी पंचइत ले आय लोगन मन मं वोला देख के उछाह भर जाथे?  एक झिन डोकरा सियान ओकर ले कहिथे, ‘बनेच बखत बीते मंय कऊनो अइसने लोगन ले मिले हवं जेन ह ओड़िया कहिथे. मंय तोला देख के मन मं भारी उछाह भर गे!”

अऊ महाराष्ट्र के ज्योति शिनोली के एक ठन कहिनी प्रवासी मजूर मन के एक झिन लइका रघु के बारे मं हवय, जेकर आगू सबले बड़े चुनऊती एक ठन नवा स्कूल मं पढ़े के रहिस जिहां ओकर गुरूजी अऊ संगवारी मन तऊन भाखा मं गोठियायेंव जेन ला वो ह नई समझत रहिस. लइका के दाई गायत्री ये कहिनी मं कहिथे, “सिरिफ तीन हफ्ता तक ले चेन्नई के स्कूल मं जाय के बाद, वो ह एक दिन रोवत घर लहूंटिस. वो ह कहिस के वो ह अब स्कूल नई जावय काबर के वोला उहाँ कुछु घलो समझ मं नई आइस अऊ वो ला लगिस के हरेक कऊनो ओकर ले बगियावत बात करत हवंय.”

भारत के गांव-देहात के लोगन मन सेती भाखा के पहिचान महत्तम आय, खास करके जब वो मन कमाय-खाय सेती दूरिहा जगा मन मं जाय बर मजबूर होथें.

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शंकर: फेर स्मिता, कभू-कभू शब्द घलो वो मन के संगे संग चले जाथें. जब मंय हाथ-परागन करेइय्या मन के ऊपर लिखे सेंथलीर के कहिनी ऊपर काम करत रहेंव, त मोला गम होइस के ये इलाका के माईलोगन मन हाथ ले फूल के परागन करे के बूता ला बताय बर अंगरेजी के शब्द –‘क्रॉस’ धन ‘क्रॉसिंग’ कहिथें. अंगरेजी के ये शब्द अब वो मन के बोलचाल के भाखा के हिस्सा बन गे हवय. अइसने शब्द तुमन ला गाँव-देहात मं बनेच सुने ला मिलही.

ये उछाह अऊ चुनउती ले भरे दूनो आय. कतको बखत अइसने घलो होथे जब मंय अपन राज, कर्नाटक ले अंगरेजी मं लिखे गे कुछेक कहिनी पढ़थों त उहाँ के लोगन मन के बोली अइसने लागथे जइसने वो मन उहां के नो हे. वो मन कऊनो किताब के मनगढ़ंत चरित जइसने आंय. जेन मं जिनगी अऊ रंग नई ये. येकरे सेती, जब मंय अनुवाद करे ला धरथों. त अक्सर मंय ये तय कर लेथों के मंय लोगन मन के बात सुनों, जइसने वो मन गोठियाथें, ये ला तय करत के कहिनी असल मं ओकर मन के हवय अऊ लिखाय ह ‘कला’ के नमूना झन बन जाय.

प्रतिष्ठा: अनुवाद के काम हमेशा असान धन सोझ नई होवय. मंय अक्सर अपन महतारी भाखा मं लिखेइय्या पत्रकार मन के लिखे ला लेके जूझत रइथों. एक ठन कहिनी जेन ला मूल रूप ले गुजराती धन हिंदी मं लिखे गे होय, असल मं बने पढ़े जाथे. फेर जब पूरा ईमानदारी ले ओकर अंगरेजी मं अनुवाद करथों, त ओकर बुनावट, वाक्य संरचना, उच्चारन बनेच बनावटी लग सकथे. अऊ ओकर बाद मोला अचरज होथे के अइसने हालत मं मोर ईमानदारी कहाँ होय ला चाही? काय मंय कोनहा मं परे समाज के लोगन के बात ला सामिल करत कहिनी के मूल भाव डहर वफादार रइथों, धन काय मंय मूल पाठ, वो मं लिखाय शब्द, अऊ संरचना ला लेके ईमानदार रइथों? काय मंय भारतीय भाखा मं संपादन करथों, धन अंगरेजी मं संपादन करथों? आखिर मं. ये ह एक ठन लंबा काम बनके रही जाथे, जऊन मं बिचार के लेन-देन अऊ कभू-कभू आगू-पाछू बहेस घलो होथे.

अनुवाद करे जा सकथे काबर किसिम-किसम के भाखा ले जुड़े अऊ बताय के तरीका हमर करा हवय. फेर फोटू, अवाज, उच्चारन, एक ठन भाखा अऊ ओकर सांस्कृतिक दुनिया के गियान के खजाना, ओकर खास चरित के संग घनिष्ठ संबंध- कुछु अइसने बात हवय जेन ला मंय पारी के संग काम करे के बादेच गुने सके हवं. कतको बेर हमन एकेच कहिनी ला दू भाखा मं दू संस्करण मं रखे हवन – अलग-अलग कहिनी के रूप मं नई, फेर अतक घलो अलग नई के मोला एक संस्करण ला अनुवाद कहे मं झिझक होथे.

जोशुआ: प्रतिष्ठा दी, काय अनुवाद हमेशा एक ठन पुनर्सृजन – ट्रांसक्रिएशन नई होवय? जब मंय बांग्ला में ग्रिंडमिल गीत उपर काम करथों, त असल मं मंय ट्रांसक्रिएशन करत रइथों. अपन महतारी भाखा मं मूल ढांचा ला दूबारा बनाय बर मोला छंद अऊ भाखा ला घेरी-बेरी सीखे अऊ बिसोरे ला मजबूर करथे. मंय सोचत रहेंव के कवि बनना कठिन आय फेर कविता के अनुवाद करे अऊ कठिन आय!

अभिव्यक्ति, बिचार, कल्पना, उच्चारण, छंद, लय अऊ रूपक मन के जम्मो दायरा ला राखत कऊनो मराठी के मौखिक साहित्य के पुनरुद्धार कइसने कर सकथे? गाँव-देहात के गवेइय्या-गीतकार मन ले प्रेरित होके, मंय अपन कविता ला एक झिन माइलोगन जइसने सोचत, जात बेवस्था, पितृसत्ता अऊ छोटे-बड़े के लड़ई के जांता मं पिसावत अन्न जइसने निकरे सेती प्रेरित करथों. हरेक बेर, मंय बंगाल के गाँव देहात के माईलोगन मन के गीत-संगीत के मौखिक परंपरा, जइसने टूसु, भादु, कुलो-झाड़ागान, धन ब्रतोकथा के अपन परछाई मं नतीजा ला खोजथों.

एकेच बखत मं उदास अऊ लुभावना ले भरे.

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मेधा: मंय तुमन ला बतावत हवं के जियादा चुनऊती काय आय? हँसी- ठीठोली के अनुवाद. साईनाथ के कहिनी Elephant man and the belly of the beast पढेंव त हँसी रुकत नई रहय अऊ अपन मुड़ी ला खजवाय ला घलो. हरेक पांत, हरेक आखर, पारबती, मयारू हथिनी  ऊपर बइठे तीन झिन लोगन के मनभावन चित्र बनाथे, अऊ ओकर मयारू पोसेइय्या परभु के संग गोठियावत हवय. ये समझे के ओकर कोसिस के ये जन्तु के पेट खाय ले कइसने भरथे बेकार चले जाथे.

मोला ये विवरण ले समझौता करे बिन अऊ हाथी के सवारी के लय अऊ गति ला बना के राखत येकर मजा के मराठी मं अनुवाद करे ला रहिस.

चुनऊती कहिनी के नांव ले सुरु होईस, जइसने के अक्सर पारी के अधिकतर कहिनी मन मं होथे. आकिर मं, रक्सा ला सरलग खवाय के बात ह मोला ‘बकासुर’ के चरित्र तक ले आइस, जेन ला हरेक दिन जम्मो गाँव वाले मं ला खवाय ला परत रहिस. येकरे सेती मराठी मं मंय येकर शीर्षक रखेंव : हत्ती दादा आणि बकासुराचं पोट .

मोला लागथे के बेली ऑफ द बीस्ट धन पेंडोरा बॉक्स, धन थिएटर ऑफ ऑप्टिक्स जइसने वाक्यांश के अनुवाद करे बखत अपन भाखा के जाने पहिचाने शब्द, अवधारणा मन ला, चरित्र मन ला खोजे महत्तम आय.

प्रतिष्ठा: मंय अपन आप ला कऊनो दिगर संस्कृति के कविता के अनुवाद करे बखत अइसने सुभीता ला लेवत देखथों. फेर मंय समझथों के पारी कहिनी मं कऊनो अइसने काबर करही. मोर मानना आय के अनुवाद के अरथ के एक ठन बड़े हिस्सा तऊन पढ़ेइय्या ह निकार लेथे जेकर बर वो ह तऊन हिस्सा के अनुवाद करत हवय.

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‘पारी के अनुवाद ह कभू महज भाखा के काम नई रहय, धन सिरिफ अंगरेजी ले अनुवाद नई रहय. वो ह तऊन प्रसंग तक ले हबर जाथे जऊन  ह हमर जाने चिन्हे दुनिया ले आगू हवय’ – पी. साईनाथ

कमलजीत: मंय तुमन ला बता दंव के पंजाबी मं काय होथे. कतको बेर अनुवाद करे बखत मोला अपन भाखा के नियम ला टोर के अपन मन मुताबिक बनाय ला परथे! अइसने करे सेती अक्सर मोला मिन-मेख सुने ला परथे.

जइसने के, अंगरेजी के सब्बो कहिनी मन समाजिक मान-बेवहार के परवा करे बगेर सब्बो मइनखे सेती एकेच सर्वनाम बऊरे जाथे. पंजाबी मं, भारत के अधिकतर दीगर भाखा जइसने, सर्वनाम ह मइनखे के पद, उमर, बरग, समाजिक हालत, लिंग अऊ जात के अधार ले बदलत रइथे. येकरे सेती, पारी के कहिनी मन के अंगरेजी ले पंजाबी मं अनुवाद करे बखत, गर मंय अपन भाखा के समाजिक-भाखा मापदंड के पालन करथों, त ये ह हमर वैचारिक मान्यता के संग टकराव होही.

येकरे सेती, हमन सुरु ले तय कर लेन के अनुवाद करे मं हमन सब्बो मइनखे संग सम मान बेवहार करबो, चाहे वो ह गुरु होय, नेता होय, वैज्ञानिक होय, सफाईकर्मी होय, मरद होय धन किन्नर होय.

येकरे सेती जब हमन तरनतारन मं जमींदार मन के घर मं गाय के गोबर संकलेइय्या एक झिन दलित माईलोगन मंजीत कौर के कहिनी पंजाबी मं छापे रहेन, त मोला पढ़ेइय्या मन के संदेसा मिले लगिस, जऊन मन मोला पूछत रहिन, “तंय अपन भाखा मं मंजीत कौर ला अतक मान काबर देवत हस? मंजीत कौर इक मज़हबी सिख़ हन. ओह ज़िमिदारन दे घरन दा गोहा चुकदि हन? कतको पढ़ेइय्या मन सोचिन के मंय मशीनी अनुवाद करत हवं काबर के मंय नियम के पालन नई करेंव अऊ ‘है’ के जगा मं ‘हां’ बऊरेंव.

देवेश: अरे हव, हिंदी मं घलो अइसने शब्द के कमी हवय जऊन ह कोनहा मं परे समाज के बारे मं मान देके बात करत होंय. अइसने शब्द खोजे मुस्किल आय जेन ह वो मन के असलियत मन ला खिल्ली न उड़ावत होंय. फेर अनुवाद के काम ह हमन ला ये समस्या  ले निपटे अऊ दीगर भाखा ले सीख के नवा आखर गढ़े बर मजबूर करथे.

मोला प्रकृति, विज्ञान, लिंग धन कामुकता, धन इहाँ तक ले विकलांगता ले जुरे सही शब्द खोजे मं दिक्कत आइस. हिंदी के शब्दकोष मं घलो उचित शब्द नई ये. कभू-कभू भाखा के गुनगान के जरिया ले, बुनियादी सवाल ला गायब कर दे जाथे - जइसने के माईलोगन मं ला देवी के रूप मं बरनना करे जाथे धन विकलांग (अपंगहा) लोगन ला ‘दिव्यांग’ कहे जाथे; फेर जब असलियत ला देखन त ये लोगन मन के हालत पहिली ले घलो जियादा बदतर नजर आथे.

जब हमन कविता अय्यर के ' मैं नलबंदी कराने के लिए घर से अकेली ही निकल गई थी’ जइसने कहिनी के अनुवाद करथन त हमन ला गम होथे के साहित्य के बड़े खजाना होय के बाद घलो, हिंदी साहित्य मं गैर-साहित्यिक विधा मन मं सायदेच लोगन मन के पीरा के जस के तस चित्रन होथे. ज्ञान, विज्ञान, दवई अऊ इलाज अऊ समाज के मुद्दा ला बतेइय्या शब्दावली भरपूर रूप ले विकसित नई होय हे.

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स्वर्ण कांता: इहीच कहिनी भोजपुरी के संग घलो हवय. धन येकर ले घलो बदतर, काबर के ये ह अइसने भाखा आय जेकर बोलेइय्या मन लिखेइय्या मन ले जियादा हवय. शिक्षा के आधिकारिक माध्यम नई होय सेती, भोजपुरी मं दवई, इंजीनियरिंग, इंटरनेट, सोशल मीडिया अऊ कतको नवा बेवसाय ले जुरे शब्द के कमी हवय.

देवेश जइसने के तुमन सुझाव देथो के नवा शब्द गढ़ सकथे. फेर ये ह भोरहा मं डारथे. ‘ट्रांसजेंडर’ जइसने शब्द बर, पारंपरिक रूप ले हमन  हिजड़ा’, ‘छक्का’, ‘लौंडा’ जइसने शब्द लिखथन-कहिथन, जेन ह अंगरेजी के शब्द ले जियादा भारी मार वाले आय. अइसने, चाहे हमन कतको घलो कोसिस कर लेवन, महिला दिवस, दिमागी सेहत, एक्ट के नांव (स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम) ,धन मूर्ति के नांव, खेल प्रतियोगिता के नांव (पुरुष अंतर्राष्ट्रीय विश्व कप) जइसने कतको नांव के अनुवाद करे बिल्कुले संभव नो हे.

मोला बिहार के समस्तीपुर जिला के  19 बछर के शिवानी के कहिनी के अनुवाद सुरता हवय, जऊन ह एक झिन महादलित नोनी आय अऊ जात, लिंग के भेदभाव के खिलाफ़ अपन घर-बहिर के दुनिया ले जूझत हवय. मोला गम होइस के वइसे मोला अइसने  भेदभाव वाले रिवाज के बारे मं बनेच गहिर ले जानकारी रहिस, फेर असल जिनगी के अइसने कहिनी मन ला हमन ला पढ़े बर  कभू मिलत नई रहिस.

मोर मानना आय के अनुवाद कऊनो समाज के बौद्धिक अऊ समाजिक विकास मं योगदान देथे.

निर्मल: अऊ एक ठन अइसने भाखा मं अनुवाद जऊन मं मानकीकरण के अभाव हवय, वो ह घलो. छत्तीसगढ़ के चरों दिग भंडार, रक्सहूँ, उदती, बूड़ती अऊ मंझा 5 हिस्सा मं छत्तीसगढ़ी भाखा के दू दरजन ले जियादा रूप आगू मं आथें. येकरे सेती छत्तीसगढ़ी मं अनुवाद करे बखत मानक रूप हमेशा चुनऊती आय. अक्सर, मंय खास शब्द के चुनाव ला लेके उलझन मं पर जाथों त पत्रकार संगवारी, संपादक, लेखक, गुरूजी मन ले मदद अऊ किताब मन के सहारा लेथों.

पी. साईनाथ जी के स्टोरी घूस नई लिस त होगे ‘घूस’ कांड के अनुवाद करत मोला कतको अइसने छत्तीसगढ़ी शब्द मिलिस जेन ह अब आम चलन मं नई ये.  छत्तीसगढ़ के सरगुजा इलाका झारखंड के सरहद ले लगे हवय जिहां ओरांव आदिवासी के अबादी बनेच हवय. वो मन के बोली मं जंगल ले जुरे छत्तीसगढ़ी के शब्द आम चलन मं हवंय. काबर के कहिनी उही समाज के एक झिन माईलोगन ऊपर रहिस, येकरे सेती मंय वो इलाका के उरांव आदिवासी मन के रोज के जिनगी के बोलचाल के शब्द मन ला लेके वो मन ले जुड़े के कोसिस करेंव. वइसे, ये समाज के अपन खास बोली कुरुख हवय.

ये जान के मंय अचमित मं पर गें, के कइसने, ‘सुकुड़दुम’, ‘कऊव्वा’, ‘हांका’, ‘हांके’, ‘लांदा’, ‘फांदा’, ‘खेदा’, ‘अलकरहा’ जइसने शब्द जऊन ह कभू इहाँ के रोज के जिनगी मं रचे बसे रहिन, अब चलन ले बहिर होवत जावत हवंय काबर के ये समाज के हाथ मं ओकर मन के जल, जंगल अऊ जमीन नई रहिगे हवय.

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‘हमार परिस्थितिकी, जीविका अऊ लोकतंत्र के कतको हिस्सा जटिल तरीका ले हमर भाखा के भविष्य ले जुड़े हवंय. येकर विसाल विविधता येकर पहिली अतक कीमती कभू नई लगिस’ – पी. साईनाथ

पंकज: मोला गम हवय के एक झिन अनुवादक सेती तऊन लोगन मन के दुनिया मं जाय कतक महत्तम हवय जेकर वो ह अनुवाद करत हवय. अरुष के कहिनी ऊपर काम करत मोला न सिरिफ एक झिन किन्नर अऊ एक झिन मुटियारिन मं मया-पिरित के पता चलिस, फेर ओकर मन के जूझे के जटिलता के घलो पता चलिस. मंय सही शब्दावली खोजे चेत धरके सोचे ला सीखेंय, जइसने के, ‘रीअसाइनमेंट सर्जरी’ ला कोष्ठक के भीतर रखे अऊ ‘लिंग पुष्टिकरण आपरेसन’ ला उजागर करे.

मोला अइसने शब्द मिलिस जेन ह किन्नर मन बर बऊरे जाथे जेन ह अपमान के भाखा नो हे : रूपंतोरकामीपुरुष धन नारी, धन गर लिंग के पुष्टि करे जाथे त हमन येला रूपंतोरिटोपुरुष धन नारी कहिथन. ये ह एक ठन सुग्घर शब्द आय. ओके बाद, हमर करा लेस्बियन धन समलैंगिक सेती एक ठन शब्द हवय - हमोकामी. फेर अब तक ले हमर करा कऊनो मानक शब्द नई ये जेन ह समलैंगिक लोगन मन के मान रखत होय, येकरे सेती हमन बस लिपि ला बदल देथन.

राजसंगीतन: पंकज, मंय एक ठन अऊ कहिनी के बारे मं सोचत हवंव जेन ह कोविड-19 महामारी बखत धंधावाली मन ले जुरे हवय. येला पढ़के मोर ऊपर बनेच असर परिस. जब दुनिया बने बनाय गुमान अऊ गरीब लोगन मन डहर बिन चेत धरे ये नवा  बीमारी ले निपटे मं लगे रहिस, त भारत के आम लोगन मन के समस्या कतको गुना बढ़गे. अइसने बखत मं जब विशेषाधिकार हासिल करेइय्या लोगन मन बर घलो जिनगी कठिन होगे रहिस, समाज के कोनहा मं परे लोगन मन के डहर चेत धरेइय्या कऊन रहिस? आकांक्षा के कमाठीपुरा कहिनी के कृति ह हमन ला तऊन लोगन मन के पीरा ला झेले ला मजबूर करिस, जेन ह येकर पहिली कभू हमर चेतबुध मं खुसरे नई रहिस.

नान-नान अकबकेइय्या खोली मं जिहां वो मन रहत रहिन, जिहां ओकर ग्राहेक मन आवत रहिन, अब देश भर मं तालाबंदी सेती नान नान लइका मन के स्कूल ले घर आय के बाद उहिचे रखे ला परे. परिवार मं ये नवा हालत ह लइका मन बर काय करे  सकही?  एक धंधावाली अऊ महतारी के रूप मं प्रिया अपन भावना अऊ अस्तित्व के लड़ई मं फंसे परे रहिस. अऊ ओकर बेटा विक्रम ओकर मन के अस्तित्व ले उपजे हतासा के मंझा मं अपन जिनगी के मतलब ला खोजे मं जूझत रहय.

ये कहिनी मं घर परिवार, मया, आस, खुसी अऊ लालन-पालन के बारे मं बिचार चऊँका देथे, फेर अचमित ‘ढंग ले उहिच समाजिक अरथ ला बना के राखथें. जब मंय ये कहिनी मन के अनुवाद करेंव तभे मोला आस के खिलाफ आस के सब्बो मइनखे मं भीतरी ले खोजे के गुन ला पहिचानेंव.

सुधामयी: मंय येकर ले अऊ जियादा सहमत नई होय सकंव. ओकर कहिनी मन के अनुवाद सुरु करे के पहिली मोला LGBTQIA+ समाज के बारे मं कुछु घलो जानकारी नई रहिस. असल बात कहंव त मोला लोगन मन अऊ बिसय ले डेर्रावत रहंय. जब मंय किन्नर समाज के लोगन मन ला सड़क मं, सिग्नल तीर, धन जब वो मन हमर घर मं आवत रहिन, त मंय वो मन डहर देखे ला घलो डेर्रावत रहंय. मंय घलो सोचत रहंय के वो मन कुछु अप्राकृतिक काम करथें.

मंय अइसने लोगन मन ला खोजत रहंय जऊन मन बिसय ला जानत होंय अऊ ये समाज के कहिनी के अनुवाद बखत शब्द ला लेके नियाव कर सकें. अऊ कहिनी मन ला पढ़े, समझे अऊ बाद मं संपादित करे के काम मं, मोला अऊ जियादा जाने समझे ला मिलिस अऊ मोला अपन ट्रांसफ़ोबिया ले निजात मिलिस. अब जहाँ घलो जब वो मन ला मंय देखथों, त वो मन ले मया-दुलार ले दू-चार गोठबात करथों.

मंय त कहिहूँ के अनुवाद अपन बने बनाय सोच ले निजात पाय के एक तरीका आय, आगू बढ़े के तरीका आय.

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प्रणति: हमन जऊन कतको सांस्कृतिक कहिनी मन के अनुवाद करेन, वो मेर ले कतको ला लेके मोला अइसनेच लागिस. एक अनुवादक के रूप मं किसिम-किसिम के सांस्कृतिक जरिया ले अवेइय्या जिनिस मन ला बारीकी ले पढ़ के अऊ चेत धरे अनुवाद करके ये सांस्कृतिक रिवाज ला जाने के भरपूर गुंजाइश हवय. कतको कहिनी के सांस्कृतिक बारीकी ला मूल भाखा मं समझे जरूरी हो जाथे.

भारत जइसने देश जिहां अंगरेज मन के राज रहिस, अंगरेजी संपर्क भाखा बन गे. कभू-कभू हमन लोगन के मूल भाखा ला नई जानन अऊ अपन काम बर अंगरेजी के भरोसा मं रहिथन. फेर अपन काम मं ईमानदार अनुवादक, मिहनत अऊ धीरज धरके किसिम-किसिम के सांस्कृतिक रिवाज, इतिहास अऊ भाखा ला सीखत, बढ़िया नतीजा दे सकथे.

राजीव: चाहे मंय कतको घलो धीरज वाला काबर नई होंव, कभू-कभू मोला अपन भाखा मं ओकर बराबरी के शब्द नई मिलय, खासकरके जब मंय एक अइसने कहिनी ला करत रइथों जेन ह खास बेवसाय ले जुरे रइथे. तऊन जटिल काम के फोर के बताय, अऊजार अऊ सब्बो के सेती सही नांव के साथ बरनना करे एक ठन चुनऊति आय. कश्मीर के बुनकर मन के बारे मं उफाक फातिमा के कहिनी मं  मोला चारखाना अऊ चश्मे-ए-बुलबुल जइसने बुनाई तरीका के नांव के अनुवाद करे मं भारी जूझे ला परिस. मलयालम मं कऊनो समान आर्थ वाले शब्द नई रहिस अऊ येकरे सेती मंय कुछेक बरनना वाले शब्दावली ला बऊरे सुरु करेंव. पट्टू शब्द घलो दिलचस्प रहिस. कश्मीर मं, ये ह बुनाय ऊनी कपड़ा रहिस, फेर मलयालम मं पट्टू रेशम के कपड़ा होथे.

क़मर: शब्दावली ह घलो उर्दू मं घलो कमजोर जगा आय, खास करके जब कऊनो ला पारी के बदलत मऊसम अऊ माइलोगन मन के जनम करे के हक के उपर लिखे कहिनी मन के अनुवाद करे ला होय. हिंदी के कहिनी थोकन अलग हवय. ये ह केंद्र सरकार के चलाया भाखा आय; येला राज सरकार मन के समर्थन मिले हवय. ओकर मं करा येकर बर काम करेइय्या संस्थान हवंय. येकरे सेती नवा शब्दावली भाखा मं जल्दी ले आ जाथे, उर्दू के हाल उलट आय, जिहां हमन अनुवाद मं कतकी जिनिस सेती अंगरेजी शब्द ले काम चलात हन.

एक बखत मं उर्दू महत्तम भाखा रहिस. इतिहास हमन ला बताथे के दिल्ली कॉलेज अऊ उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद जइसने संस्थान उर्दू किताब मन के अनुवाद सेती जगजाहिर रहिन. कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज के पहिली काम अंगरेज अफसर मन ला भारत के भाखा मं प्रशिक्षित करे, अनुवाद करे रहिस. आज वो सब्बो जगा मरे परे हवंय. हम सब्बो मन उर्दू अऊ हिंदी मं लड़ई देखे हवन जऊन ह 1947 के बाद घलो चलत रहिस अऊ उर्दू ऊपर नजर नंदा गे.

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कमलजीत: काय तुमन ला लागथे के बंटवारा के सेती भाखा के बंटवारा होईस? मोला नई लगय के भाखा बांटथे, वइसे ये ह लोगन मन आंय.

कमर: एक बखत जब उर्दू जम्मो देश के भाखा रहिस. ये ह देश के रक्सहूँ दिग मं घलो रहिस. वो मन येला दक्खनी (धन दक्कनी) उर्दू कहत रहिन. ये भाखा मं लिखेइय्या कवि रहिन अऊ जेकर मन के लिखे ह शास्त्रीय उर्दू पाठ्यक्रम के हिस्सा रहिन. फेर मुसलमान शासन खतम होय के संग ये सब्बो नंदा गे. अऊ ये बखत का भारत मं उर्दू उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल समेत जऊन ला हमन हिंदी पट्टी कहिथन, उहाँ बांच गीस.

इहाँ स्कूल मन मं लोगन मन ला उर्दू पढ़ाय जावत रहिस. येकर हिंदू मुसलमान होय ले कऊनो लेना-देना नई रहिस. मंय अइसने हिंदू लोगन मन ला जानथों जेन मन मीडिया मं काम करत हवंय, जऊन मन मोला कहिथें के वो मन उर्दू जानथें. वो मन बचपना मं स्कूल मं ये भाखा ला पढ़े हवंय. फेर अब वो मन उर्दू नई पढ़ायेंव. गर तुमन येला अब नई पढ़ाहू त कऊनो भाखा कइसने बांच के रइही?

पहिली उर्दू पढ़ेइय्या ला नऊकरी मिल जावत रहिस, फेर अब नई मिलय. कुछु बछर पहिली घलो कुछेक अख़बार अऊ उर्दू मीडिया सेती लिखेइय्या मन रहिन. फेर 2014 के बाद अख़बार घलो बंद होगे काबर के वो मन ला पइसा मिले ह खतम होगे. लोगन मन ये भाखा ला कहिथें फेर भाखा ला पढ़ेइय्या अऊ लिखेइय्या मन के आंकड़ा ह अचमित ढंग ले गिर गे हवय.

देवेश: भाखा अऊ राजनीति कतक सच्चा अऊ पीरा ले भरे कहिनी आय कमर दा. फेर आज तऊन कहिनी मन ला कऊन पढ़थे जेकर तुमन इहाँ अनुवाद करत हव? तुमन अपन काम के काय मतलब देखथो?

क़मर: हव, मंय कहे रहेंव के मंय पहिली बखत पारी के सलाना बइठका मं शामिल होय रहेंव. मोला लगिस के इहाँ के लोगन मं मोर भाखा ला बचाय रखे मं रूचि रखथें. इही कारन आय के मंय आज पारी के संग हवंव. ये सिरिफ उर्दू ला लेके नई आय, फेर ये खजाना हरेक नंदावत जावत भाखा ला नंदाय अऊ मिटाय ले बचाय सेती ठाने हवय.

ये कहिनी पारी-भाषा टीम के देवेश (हिंदी), जोशुआ बोधिनेत्र (बांग्ला), कमलजीत कौर (पंजाबी), मेधा काले (मराठी), मोहम्मद कमर तबरेज़ (उर्दू), निर्मल कुमार साहू (छत्तीसगढ़ी), पंकज दास (असमिया), प्रणति परिदा (उड़िया), प्रतिष्ठा पंड्या (गुजराती), राजसंगीतन (तमिल), राजीवचेलानट (मलयालम), स्मिता खटोर (बांग्ला) , स्वर्ण कांता (भोजपुरी), शंकर एन. केंचनुरु (कन्नड़) , अऊ सुधामयी सत्तेनपल्ली (तेलुगु) के लिखे आय. स्मिता खटोर , मेधा काले , जोशुआ बोधिनेत्र के संपादकीय सहयोग ले प्रतिष्ठा पंड्या ह संपादित करे हवंय. फोटो संपादन बिनाइफ़र भरूचा के आय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

PARIBhasha Team

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Illustrations : Labani Jangi

Labani Jangi is a 2020 PARI Fellow, and a self-taught painter based in West Bengal's Nadia district. She is working towards a PhD on labour migrations at the Centre for Studies in Social Sciences, Kolkata.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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