एगो मरद आपन सात बरिस के लइकी संगे हर साल जेका पंढरपुर के तीर्थयात्रा पर पैदले निकलल बाड़न. आषाढ़ी वाड़ी त्योहार के मौका बा. एह में राज्य भर से हजारन के तादाद में वारकरी लोग भगवान विट्ठल के मंदिर के दरसन करे आवेला. रस्ता में भक्त लोग लातूर के एगो गांव, महिसगांव में डेरा डालके सुस्ताए लागल. सांझ भइल त वातावरण कीर्तन के आवाज से गूंजे लागल. छोट लइकी खंजरी (डफली) के खन-खन सुन के बाऊजी से उहंवा जाए के जिद करे लगली.

बाकिर उनकर बाऊजी साफ मना कर देलन. समझइलन, “इहंवा लोग हमनी जइसन म्हार आउर मांग से छुआवे के ना चाहे.” बाकिर ऊ त तनिको सुने के तइयारे ना रहस. आखिर में एह शर्त पर सुलह भइल कि ऊ लोग उहंवा जाई, बाकिर दूरे से कीर्तन सुनी. झंकार के आवाज के पाछु-पाछु ऊ लोग पंडाल पहुंचल. भाव विभोर दूनो लोग महाराज के कीर्तन करत आउर खंजरी बजावत देखे लागल. लइकी से अब तनिको रहल नइखे जात. ऊ मंच पर जाए खातिर बेकल हो उठत बाड़ी. आउर आखिर में बाऊजी के हाथ छोड़ाके उहंवा दउड़ जात बाड़ी.

“हमरो एगो भरूड (समाज के जगावे खातिर रचल ब्यंग्य आ हास्य से भरपूर एगो पुरान गीत के नयका रूप) गावे के बा,” ऊ मंच पर बिराजमान संत से कहली. उहंवा बइठल लोग सन्न रह जात बा. बाकिर महाराज उनकरा गावे के इजाजत दे देत बाड़न. अगिला कुछ मिनिट में लोग उनकर मीठ गीत में डूब जात बा. डिमड़ी (धातु के बाजा) पर ताल देवत ऊ गीत गावे लागत बाड़ी. ई उहे महाराज के रचल आउर संगीत में पिरोवल गीत रहे .

माझा रहाट गं साजनी
गावू चौघी जनी
माझ्या रहाटाचा कणा
मला चौघी जनी सुना

कुइंया पर लागल बा घिरनी, सुन सहेली
चल हमनी चारो संगे-संगे गाईं
घिरनी आउर एकर रसड़ी
आउर हमार चार ठो कनिया

ओह छोट लइकी के गीत से संत एतना खुस हो गइलन कि उनकर हाथ में खंजरी देत कहलन, “तोहरा खातिर हमार आशीर्वाद हरमेसा रही. दुनिया के तू अंजोर करबू.”

मीरा उमप के गावल पारंपरिक भरूड, समाज के जगावे आउर कइएक दोसर मौका पर गावल जाए वाला ब्यंग्य आउर हास्य से भरपूर गीत, के वीडियो देखीं

ऊ साल 1975 रहे आउर संत कलाकार तुकड़ोजी महाराज रहस. गांव-देहात के जिनगी के समस्या, खतरा के बात करे आउर आगू बढ़े के रस्ता बतावे वाला महाराज के लिखल ग्राम गीत बहुते पसंद कइल जात रहे. ऊ बुच्ची अब 50 बरिस के हो गइली. बाकिर ऊ आजो मंच पर उतरेली त आपन गायन से समां बांध देवेली. नौवारी साड़ी लपेटले, लिलार पर एगो बड़का टिकुली सटले, बावां हाथ में डिमड़ी (एगो छोट ताल वाद्य यंत्र) उठइले, जब मीरा उमप भीम गीत गावे के सुरु करेली, माहौल बदल जाला. आस-पास मौजूद हर चीज में प्राण फूंका जाला. बाजा पर लागल चमरा के झिल्ली पर जब उनकर दहिना हाथ के थाप पड़ेला, कलाई में पहिनल कांच के चूड़ी भी बाज उठेला. पूरा माहौल सुरमय हो जाला.

खातो तुपात पोळी भीमा तुझ्यामुळे
डोईवरची
गेली मोळी भीमा तुझ्यामुळे
काल
माझी माय बाजारी जाऊन
जरीची
घेती चोळी भीमा तुझ्यामुळे
साखर
दुधात टाकून काजू दुधात खातो
भिकेची
गेली झोळी भीमा तुझ्यामुळे

भीम, रउए चलते हमरा मिलेला घी में चुपड़ल रोटी
भीम, रउए चलते अब हम ना ढोईं लकड़ी के गट्ठर

माई कल गइल रहे हाट
भीम, रउए महिमा रहे ऊ कीन के लइली जरी वाला बिलाउज

दूध में चीनी रउए चलते बा, संगे काजुओ रउए चलते मिलेला
भीम राउर महिरा अपरंपार, हमार भीख मांगल छूटल

*****

मीराबाई के आपन जनम तिथि नइखे पता, बाकिर जनम के साल ऊ 1965 बतावेली. उनकर जनम महाराष्ट्र के अंतरवाली गांव के एगो गरीब मातंग परिवार में भइल. राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में पहिचानल जाए वाला मांतग लोग के ‘अछूत’ माने के इतिहास रहल बा. जाति ब्यवस्था में ओह लोग के स्थान सबले नीचे बा.

बाऊजी वामनराव आउर माई रेसमाबाई बीड जिला के एगो गांव से दोसर में भजन आउर अभंग गावत आउर भिक्षा मांग के गुजारा करत रहे. आपन समाज में ओह लोग के ‘गुरु घराना’ से जुड़े के चलते सम्मान प्राप्त रहे. ई घराना दलित समुदाय में गीत-संगीत कला के जोगा के रखे वाला जानकार आउर सिखावे वाला लोग के एगो बहुते सम्मानित घऱाना मानल जाला. एहि से मीराबाई भलही स्कूल के मुंह ना देखले होखस, बाकिर उनकरा लगे माई-बाऊजी के अभंग, भजन आउर कीर्तन के समृद्ध भंडार रहे.

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शाहिर मीरा उमप डिमड़ी आउर खंजरी बजावे वाला महाराष्ट्र के अकेला मेहरारू बाड़ी. जवन बाजा के पारंपरिक रूप से मरदे लोग बजावेला, उनका वइसन बाजा बजावे में महारत हासिल बा

दूनो मरद-मेहरारू लोग आपन आठ लरिकन- पांच लइकी आउर तीन गो लइका के पाले में बहुते कष्ट आउर संघर्ष देखलक. भाई-बहिन में सबले बड़ मीराबाई सात बरिस के रहली, त माई-बाऊजी संगे ओह लोग के गीत यात्रा पर जाए लगली. सुरु-सुरु में वामनराव एकतारी बजावत रहस आउर उनकर छोट भाई भाऊराव, डिमड़ी. “बाऊजी आउर चाचा, दूनो लोग संगे भिक्षा मांगे जात रहे.” ऊ हमनी के आपन गायन के कहानी बतावत रहस. “एक बेरा ऊ लोग के बीच बिबाद भइल आउर ई एतना बढ़ल कि ऊ लोग अलगे होखे के तय कर लेलक.”

ओह दिन के बाद, चाचा बुलढ़ाणा चल गइलन आउर बाऊजी उनकरा अपना संगे ले जाए लगलन. बाऊजी के पाछू घूम-घूम के ऊ आपन कोमल आवाज में गावे के सुरु कर देली. एह घरिया ऊ बहुते भक्ति गीत सीखली. ऊ कहेली, “बाऊजी के हरमेसा से बिस्वास रहे कि एक दिन हम बहुत बड़ा गव्वैया बनम.”

बाद में, पइसा खातिर मवेसी सभ के देखभाल करे घरिया ऊ डिमड़ी भी बजावे के सीखे लगली. “छोट रहीं त बरतने हमार बाजा रहे. पानी भरे घरिया हाथ कलसी पर थिरके लागे. अब ई शौक ना, आदत बन गइल रहे. जिनगी में हम जे कुछ भी सीखनी, अइसहीं काम करत-करत सीखनी. स्कूल जा के सीखे के त मौके ना भेंटाइल,” मीराबाई कहली.

उनकर पड़ोस में भजन गावे खातिर लोग रोज जुटत रहे. जल्दिए मीराबाई भी ओह में शामिल हो गइली. उहंवा ऊ भजन गावे-सुनावे लगली.

राम नाही सीतेच्या तोलाचा
राम बाई हलक्या दिलाचा

राम आउर सीता के कवनो मेल नइखे
राम के त दिले नइखे

मीराबाई कहेली, “हम स्कूल कबो ना गइनी, बाकि हमरा 40 ठो अलग-अलग तरह के रामायण कंठस्थ इयाद बा.  बाल श्रवण कुमार के कथा, महाभारत के पांडव के कहानी आउर कबीर के सैंकड़न दोहा सभ हमार दिमाग में अंकित बा.” उनकर मानना बा कि रामायण बस पत्थर पर लिखल कवनो कहानी मात्र नइखे, बलुक एकरा संस्कृति, बिस्व दृष्टिकोण आउर समझ के आधार पर रचल गइल बा. एह तरह के महाकाव्य में कइएक समुदाय के ऐतिहासिक संघर्ष आउर पीड़ा समाएल बा. किरदार उहे रहेला बाकिर कहानी के रंग आउर चेहरा बदलत रहेला.

मीराबाई के गीत समाज में ओह लोग के स्थिति आउर स्थान के हिसाब से होखेला. उनकर गायन अगड़ा जाति के हिंदू लोग के प्रस्तुत करे के तरीका से अलग बा. उनकर रामायण के केंद्र में एगो दलित मेहरारू बाड़ी. राम सीता के बनवास अकेले काहे भेज देलन? ऊ शम्बूक के काहे मार देलन? बलि के काहे वध कइलन? दर्सक लोग के सामने आपन कहानी आउर गीत प्रस्तुत करे घरिया ऊ अइसन कइएक सवाल दागेली आउर सभे के सोचे पर मजबूर कर देवेली. ऊ बतइली, “हम कहानी सुनावे घरिया हास्य के भी इस्तेमाल करेनी.”

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बावां: मीरा उमप संत कवि तुकड़ोजी महाराज के उपहार देवल खंजरी संगे. ओह घरिया ऊ सात बरिस के रहस. दहिना: दिमड़ी के चित्रण, लड़की के अंगूठी आउर चमड़ा के झिल्ली से तइयार भइल छोट ताल वाद्य यंत्र जेकरा मीराबाई बजावत रहल. दिमड़ी के उलट, खंजरी के बाहरी रिंग पर अतिरिक्त धातु के प्लेट, चाहे घुंघरू लागल रहेला. लोक कलाकार लोग देवता के कहानी बांचे घरिया एकरा बजावेला. पूजा में एकरा जरूरी मानल जाला

संगीत के गहिर जानकारी, तकनीक आ प्रस्तुति के बारीक समझ रखे वाली मीराबाई के संगीत के आपन दरजा बा, आपन रुतबा बा. तुकड़ोजी महाराज के नक्सा-कदम पर चलत, उनकर शैली के अनुसरण करत, मीराबाई भी कइएक ऊंचाई छूले बाड़ी. तुकड़ोजी बहुते रुतबा वाला संत कवि आउर गायक रहस. बिदर्भ आउर मराठवाड़ा में बड़ा तादाद में लोग उनकर अनुनायी रहे. मीराबाई भी अइसने कइएक ऊंचाई हासिल कइले बाड़ी.

तुकड़ोजी महाराज आपन कीर्तन में खंजरी बजावत रहस. उनकर अऩुनायी सत्यपाल चिंचोलिकर सप्त-खंजरी बजावेलन. एह में सात ठो खंजरी अलगे-अलगे आवाज आउर धुन निकालेला. सांगली के देवानंद माली आउर सतारा म्हालारी गजभरे लोग भी इहे बजावेला. बाकिर मीराबाई उमप खंजरी बजावे वाला अकेला मेहरारू बाड़ी, उहो बहुते निपुणता संगे.

ई गीत लिखे वाला लातूर के साहिर रत्नाकर कुलकर्णी डफ (साहिर लोग के इस्तेमाल होखे वाला ड्रम जइसन बाजा) बजावेलन. ऊ एक दिन मीराबाई के खंजरी बजावे के हुनर देखलन. उनकर मीठ गला पर भी उनकर ध्यान गइल. एहि से ऊ शाहिरी (सामाजिक ज्ञान के गीत) प्रस्तुत करे खातिर उनकर सहयोग करे आउर प्रेरित करे के निस्चय कइलन. जब मीराबाई 20 बरिस के रहस, त शाहिरी सुरु कइली. ऊ बीड में कइएक सरकारी कार्यक्रम में एकरा बजावे जास.

“हमरा सभ धरमग्रंथ कंठस्थ बा. कथा, सप्ता, रामायण, महाभारत, सत्यवान-सावित्रि आउर महादेव के कहानी आउर पुराण. ई सभ हमार जबान पर रहत रहे,” ऊ कहली. “हम सभे कथा सुनावत रहीं, गावत रहीं. राज्य के कोना-कोना में जाके प्रस्तुति दीहीं. बाकिर एकरा में हमरा कबो संतुष्टि ना मिलल. ना ही ई सुने वाला के कवनो रस्ता देखावत रहे.”

बहुजन समाज के रस्ता देखावे, ओह लोग संगे होखे वाला भेदभाव आ उत्पीड़न के बात करे वाला त सिरिफ बुद्ध, फुले, शाहू, आंबेडकर, तुकड़ोजी महाराज आउर गड़गे बाबा जइसन लोग रहे. आउर इहे बात मीराबाई के मन के छू गइल. उनकरा इयाद आवत बा, “बिजयकुमार गवई हमरा पहिल भीम गीत सिखइलन. आउर वामनदादा करदक के पहिल गीत हमहीं गइले रहीं.”

पाणी वाढ गं माय, पाणी वाढ गं
लयी नाही मागत भर माझं इवलंसं गाडगं
पाणी वाढ गं माय, पाणी वाढ गं

पानी दे द, सखि, पानी दे द
हम जादे नइखी मांगत, बस हमार छोट गगरी भर जाव
एतने पानी दे द, सखि, एतने पानी दे द

“ओहि दिन से पोथा-पुराण (किताबी ज्ञान) गावल बंद कर देनी. हम भीम गीत गावे लगनी.” साल 1991, बाबासाहेब आंबेडकर के जन्मशती साल में  ऊ बाबा साहेब के संदेस देवे वाला भीम गीत गावे के सुरु कर देली. बाद में ऊ अपना के इहे खातिर समर्पित कर देली. शाहिर मीराबाई कहेली, “लोग के ई बहुते नीमन लागल. एकरा प्रति ऊ लोग बहुते उत्साह देखइलक.”

मीरा उमप के स्वर में भीम गीत सुनीं

शाहिर शब्द के जनम फारसी शब्द ‘शायर’ चाहे ‘शेर’ से भइल बा. महाराष्ट्र के गांव-देहात में शाहिर लोग पावोड़ा नाम के शासक के महिमामंडन खातिर गीत लिखत आउर गावत रहे. आत्माराम साल्वे आउर उऩकर खंजरी, दादू साल्वे आउर उनकर हरमोनियम आ कडूबाई खरात आउर उनकर एकतारी. ई सभे शाहिर लोग आपन गीत से दलित चेतना जगावे के काम कइलक. मीराबाई आपन डिमड़ी गायन से महाराष्ट्र में कइएक मेहरारू शाहिर के जोड़ली. डिमड़ी पहिले लड़ाई में बजावे वाला बाजा मानल जात रहे, जे खास तौर से मरदे लोग बजावत रहे. मीराबाई आपन डिमड़ी से एगो आउर पंरपरा तुड़ली.

उनकर गायन आउर वादन सुनल अपना आप में अलगे अनुभव आउर आनंद बा. मीराबाई कीर्तन, भजन आउर पावोड़ा जइसन किसिम-किसिम के गायन खातिर जरूरी अलग-अलग सुर निकालेली. एकरा खातिर ऊ खंजरी के एक ओरी मढ़ल चमड़ा के अलग-अलग हिस्सा पर अंगुरी से थाप देवेली. धीरे-धीरे उनकर आवाज निम्न से मद्धम सुर पकड़ेला आउर फिर ऊंच चलत जाला. उनकर गायन शुद्ध आउर बुलंद आत्मा के आवाज लागेला, जेकरा में माटी के खुसबू समाइल रहेला. उनकरे समर्पण बा कि डिमड़ी आ खंजरी आजो जिंदा बा आउर फल-फूल रहल बा.

मीराबाई भरूड गावे वाला कुछ गिनती के शाहिर मेहरारू लोग में से बाड़ी. भरुड महाराष्ट्र के बहुते संत कवि लोग के गावल लोक गीत बा. ई दू तरहा के होखेला- भजनी भरूड जे धर्म आउर आध्यात्मिकता के बारे में होखेला आउर सोंगी भरूड जे में मरद लोग मेहरारू लोग के भेस में मंच पर गावेला. जादे करके मरद लोग ही भरुड के संगे-संगे ऐतिहासिक आ सामाजिक विषय पर पावोड़ा गावेला. बाकिर मीराबाई एह बिभाजन के भी चुनौती देली आउर सभे तरह के कला रूप के ओतने दम-खम आउर जोस से गावे आउर प्रस्तुत करे लगली. असल में उनकर प्रस्तुति, कइएक दोसर मरद लोग के प्रस्तुति से भी जादे सराहल गइल.

मीराबाई खातिर डिमड़ी, गीत, रंगमंच पर गायन आउर दर्सक के संदेस मन बहलावे के साधन से कहीं जादे बा.

*****

एह देस में कला अपना के गढ़े वाला के जात से बहुते गहिराई से जुड़ल बा आउर एकरे आधार पर एह कला के आंकलो जाला. आदमी संगीत आउर दोसर कला सहित आपन जात के तौर-तरीका सिखेला. का गैर दलित, गैर बहुजन लोग एह तरह के बाजा से अइसन सुर निकाल सकेला, चाहे एकरा समझ सकेला? बात त ई बा कि, जदि कोई बाहरी आदमी डिमड़ी, चाहे संबल, चाहे जुम्बरुक पर आपन हाथ आजमावे के भी चाही, त एकरा खातिर कवनो सांकेतिक व्याकरण नइखे.

मुंबई बिस्वबिद्यालय में संगीत बिभाग के छात्र लोग खंजीड़ी आउर डिमड़ी बजावे के सीख रहल बा. जानल-मानल कलाकार कृष्णा मुसले आउर बिजय चव्हाण जइसन विद्वान एह ताल वाद्ययंत्र खातिर नोटेशन तइयार कइले बाड़न. बाकिर एह में चुनौतियो बा. बिस्वबिद्यालय के लोक-कला अकादमी के निदेसक गणेश चंदनशिवे के अइसन दावा बा.

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बावां: गणेश चंदनशिवे, मुंबई बिस्वबिद्यालय में लोककला अकादमी के निदेशक. ऊ मानेलन कि ना त डिमड़ी आउर ना संबल के आपन संगीत के शास्त्र बा. ऊ कहले, ‘एकरा खातिर कवनो नोटेशन नइखे लिखल गइल, चाहे एह तरह के कवनो ‘विज्ञान’ नइखे तइयार कइल गइल जेकरा से एकरा शास्त्रीय संगीत वाद्ययंत्र के दरजा मिलो’ दहिना: मीराबाई बिना कवनो विज्ञान, नोटेशन, चाहे व्याकरण जनले डिमड़ी आउर खंजीरी बजावे में महारत हासिल कइले बाड़ी

ऊ कहले, “रउआ डिमड़ी, संबल चाहे खंजीरी ओह तरीका से ना सिखा सकीं, जे तरीका से दोसर शास्त्रीय वाद्ययंत्र सिखावल जाला. एह तरीका से सिरिफ तबला सिखावल जा सकेला काहेकि हमनी ओकरा खातिर नोटेशन लिख सकिला. लोग एकरा से मिलल-जुलल नोटेशन के मदद से डिमड़ी, चाहे संबलो के बजावे के कोसिस कइलक. बाकिर दुनो में से कवनो बाजा के आपन संगीतशास्त्र नइखे. एकरा खातिर कवनो नोटेशन नइखे लिखल गइल, चाहे एह तरह के कवनो ‘विज्ञान’ नइखे तइयार कइल गइल जेकरा से एकरा शास्त्रीय संगीत वाद्ययंत्र के दरजा मिलो.”

मीराबाई बिना कवनो विज्ञान, नोटेशन, चाहे व्याकरण जनले डिमड़ी आउर खंजीरी बजावे में महारत हासिल कइले बाड़ी. एकरा बजावे के सीखे घरिया उनकरा कबो पता ना रहत रहे कि कहंवा धा बा, आउर कहंवा ता बा. बाकिर उनकर सुर आउर लय कवनो शास्त्रीय संगीतकार से मेल खाएला. ई बाजा उनकर बा. डिमड़ी बजावे के मीराबाई के प्रतिभा के मुकाबला लोक-कला अकादमी में केहू ना कर सके.

जइसे-जइसे बहुजन लोग मध्य वर्ग में शामिल हो रहल बा, ओह लोग के पारंपरिक कला आउर अभिव्यक्ति में कमी आ रहल बा. पढ़ाई-लिखाई आउर रोजगार खातिर दोसरा राज्य में पलायन चलते ऊ लोग अब आपन पुरखा के पेशा आउर एकरा से जुड़ल कला के प्रदर्शन कइल बंद कर देले बा. कला के एह तरह के रूप के दस्तावेजीकरण करे के सख्त जरूरत बा ताकि एकर उत्पत्ति आउर इस्तेमाल के ऐतिहासिक आउर भौगोलिक संदर्भ समझल जा सके. आगू आवे वाला एह तरह के सवाल के हमनी के सामना करे के पड़ी. जइसे कि, का ओह लोग के अभिव्यक्ति में जातिगत संघर्ष, चाहे दोसरा तरह के संघर्ष देखाई देवेला? जदि हां, त एकर अभिव्यक्ति कवना तरह के रूप में होखेला? अकादमिक नजरिया से  देखल जाव, त कहल जा सकेला कि बिस्वबिद्यालय, चाहे शैक्षणिक संस्थान लगे एह तरह के कवनो नजरिया के कमी बा.

हर जाति के आपन खास लोक कला होखेला आउर एहि से एह में बिबिधता जादे होखेला. एह तरह के कला के खजाना आउर परंपरा के जोगा के रखे आउर एकरा पर शोध करे खातिर एगो समर्पित अनुसंधान केंद्र के बहुते जरूरत बा. आउर ई कवनो गैर-ब्राह्मणवादी आंदोलन के एजेंडा में नइखे. बाकिर मीराबाई एह तस्वीर के बदल देवे के चाहत बाड़ी. ऊ बतइली, “हम एगो अइसन संस्थान सुरु करे के चाहत बानी, जहंवा नयका उमिर के लइका-लइकी लोग आवे आउर खंजीरी, एकतारी आउर ढोलकी बजावे के सीखे.”

अफसोस कि उनकरा एह खातिर महाराष्ट्र सरकार से कवनो तरह के सहजोग ना मिलल. का ऊ सरकार से एह खातिर अपील कइली? “का हम लिखे-पढ़े के जानिला?” ऊ तड़ से जवाब देली. “हम जबो कवनो सरकारी कार्यक्रम में जाइला, ओह लोग से अपील करिला, एह सपना के पूरा करे में मदद करे के गुहार लगाइला. बाकिर रउआ लागेला कि सरकार गरीबन के कला के गुदानेला?”

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डफ एगो ताल बाद्य यंत्र बा जेकरा शाहिर लोग पोवाड़ा (महिमा गान) में बजावेला, आउर एक तार से बने वाला बाजा टुनटुन के गोंडालिस (समुदाय) लोग ‘भवानी आई’(तुलजाभवानी) के आशीर्वाद लेवे खातिर इस्तेमाल करेला. दहिना: गरदन जइसन झुकल एगो छड़ी से बनल लोक वाद्य किंगरी. एगो आउर तरह के किंगरी जे में सुर साधे आउर बजावे खातिर लकड़ी के मोर आउर तीन ठो गूंजे वाला हिस्सा रहेला

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बावां: संबल देवी लोग के पूजा खातिर होखे वाला अनुष्ठान, गोंधल में बजावल जाला. एकरा में एक ओरी जुड़ल दू ठो ड्रम होखेला, जेकरा ऊपरी मुंह पर चमड़ा के सिर लागल होखेला. एह बाजा के दू ठो लकड़ी के डंडी से बजावल जाला. एह में से एगो के गोलाकार नोक होखेला. ई बाजा गोंधाली लोग बजावेला. दहिना: हलगी लकड़ी के एगो गोल फ्रेम वाला ड्रम जइसन होखेला जेकरा मांग समुदाय के मरद लोग त्योहार, बियाह आउर मंदिर आ दरगाह में बजावेला

*****

अइसे त सरकार ओरी से मीराबाई के नेवता मिलल रहे. मीराबाई के शाहिरी आउर गायन जब लोग पर आपन असर डाले लागल, त महाराष्ट्र सरकार उनकरा राज्य के कइएक तरह के जागरूकता कार्यक्रम आ अभियान में योगदान देवे खातिर बोलइलक. जल्दिए, पूरा राज्य में सेहत, नसा मुक्ति, देहज-प्रतिबंध आउर शराब पाबंदी जइसन मुद्दा पर ऊ घूम-घूम के लोक संगीत से भरल छोट-छोट नाटक प्रस्तुत करे लगली.

बाई दारुड्या भेटलाय नवरा
माझं नशीब फुटलंय गं
चोळी अंगात नाही माझ्या
लुगडं फाटलंय गं

हमार घरवाला बेवड़ा बा
हमार त भागे फूट गइल
एको चोली पहिने के ना मिलल
हमार त लुगो फाटल गइल

नसा मुक्ति पर जागरूकता कार्यक्रम खातिर उनकरा महाराष्ट्र सरकार ओरी से व्यसनमुक्ति सेवा सम्मान मिलल. उनकरा ऑल इंडिया रेडियो आउर दूरदर्सन कार्यक्रम में भी प्रदर्शन खातिर नेवतल गइल.

*****

बाकिर एह तरह के तमाम नीमन काम करे के बादो मीराबाई के जिनगी कठिन रहल. “हम बेघर हो गइनी. साथ देवे वाला कोई ना रहे.” आपन हाल के दुर्दसा के बारे में ऊ बतावे लगली. “लॉकडाउन (2020) में शॉर्ट सर्किट चलते हमार घर में आग लाग गइल. हम एतना निरास हो गइनी कि घर बेचे के अलावे कवनो रस्ता ना बचल. हमनी सड़क पर आ गइनी. बहुते आंबेडकरवादी लोग नयका घर बनावे में मदद कइलक,” ऊ कहली. ऊ आपन टीन के देवार आउर छत वाला नयका घर के जिकिर करत रहस, जे में हमनी अबही बइठल रहीं.

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लोक कलाकार आउर कइएक सम्मान से नवाजल शाहिर मीरा उमप संघर्षमय जिनगी जिएली. उहां के चिकलथाना, छत्रपति संभाजी नगर में उनकर छोट टिन के घर के फोटो

अन्नाभाऊ साठे, बाल गंधर्व आ लक्ष्मीबाई कोल्हापुर जइसन प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजल एगो कलाकार के हाल अइसन रहे. महाराष्ट्र सरकार उनकरा उनकर सांस्कृतिक योगदान खातिर राज्य पुरस्कार से भी सम्मानित कइलक. ई सभ सम्मान कबो उनकर घर के देवाल के शोभा आउर सम्मान बढ़ावत रहे.

मीराबाई के आंख में लोर भर आइल, “ई सिरिफ आंख के सुख बा, हम रउआ बतावत बानी. एह सम्मान से केहू के पेट ना भर सके. कोरोना में हमनी भुखले मरत रहीं. जब हम एकदम निरास हो गइनी त इहे सम्मान के लकड़ी के जगहा जरा के खाना पकइनी. भूख एह सम्मान से कहीं जादे ताकतवर होखेला.”

पहचान मिले, चाहे ना मीराबाई के मानवता, प्रेम आउर करुणा के संदेस फैलावे के प्रति, महान सुधारक लोग जेका, अटूट श्रद्धा बा. ऊ आपन कला आउर प्रदर्सन से सांप्रदायिक आउर बिभाजनकारी आग बुझावत बाड़ी. ऊ कहत बाड़ी, “हम आपन कला बेचे के नइखी चाहत. सम्भाली तार ते काला आहे, नहीं तार बाला आहे (जदि केहू एकर सम्मान करत बा, त ई कला बा. ना त ई अभिशाप बा.)”

हम आपन कला के आत्मा मरे ना देनी. पछिला 40 बरिस से हम देस के अलग-अलग कोना में गइनी आउर कबीर, तुकाराम, तुकड़ोजी महाराज आउर फुले-आंबेडकर के संदेस फैलावत बानी. हम ई सभ गीत गावत बानी, एकर बिरासत हमरे गायन के दम पर जिंदा बा.

“हम आपन अंतिम सांस ले भीम गीत गाएम. जे दिन ई छूट जाई, ऊ हमार जिनगी के अंतिम दिन होखी. हमरा एकरा में परम आनंद मिलेला.”

पारी के सहयोग से इंडियन फाउंडेशन फॉर आर्ट्स,आर्चीव एंड म्यूजियम प्रोग्राम चलावत बा. एह स्टोरी में शामिल कइल गइल वीडियो, एहि प्रोग्राम ओरी से लागू कइल गइल, इन्फ्लूएंशियल शाहीर्स, नैरेटिव्स फ्रॉम मराठवाडा नाम के प्रोजेक्ट के हिस्सा बा. नई दिल्ली स्थित गेटे संस्थान (मैक्स मूलर भवन) से भी एह प्रोजेक्ट के आंशिक रूप से मदद मिलल बा.

अनुवादक: स्वर्ण कांता

Keshav Waghmare

Keshav Waghmare is a writer and researcher based in Pune, Maharashtra. He is a founder member of the Dalit Adivasi Adhikar Andolan (DAAA), formed in 2012, and has been documenting the Marathwada communities for several years.

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Editor : Medha Kale

Medha Kale is based in Pune and has worked in the field of women and health. She is the Translations Editor, Marathi, at the People’s Archive of Rural India.

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Editor : Pratishtha Pandya

Pratishtha Pandya is a Senior Editor at PARI where she leads PARI's creative writing section. She is also a member of the PARIBhasha team and translates and edits stories in Gujarati. Pratishtha is a published poet working in Gujarati and English.

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Illustrations : Labani Jangi

Labani Jangi is a 2020 PARI Fellow, and a self-taught painter based in West Bengal's Nadia district. She is working towards a PhD on labour migrations at the Centre for Studies in Social Sciences, Kolkata.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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