हरियाणा के रोहतक जिला अस्पताल में 18 बरिस के सुमित (नाम बदलल बा) पहिल बेर पहुंचलन. उनकरा छाती बनवावे के ऑपरेसन के बारे में पता लगावे के रहे. उहंवा बतावल गइल उनकरा एह खातिर आग से जरल मरीज के रूप में भरती होखे के पड़ी.

भारत के ट्रांसजेंडर समुदाय जब पावेला कि ओकर जनम गलत देह में हो गइल बा, त ऊ लोग मनचाहा देह पावे खातिर सर्जरी के मदद लेवेला. अफसोस कि एह सर्जरी खातिर ओह लोग के तरह-तरह के झूठ बोले आउर गैरजरूरी प्रशासनिक नियम-कायदा से जूझे के पड़ेला. एकरा बादो ऊ झूठ काम ना आवे.

सुमित के आपन ‘टॉप सर्जरी’ (छाती से जुड़ल ऑपरेसन), जइसन कि बोलचाल के भाषा में कहल जाला, से पहिले कागजी कार्रवाई, अनगिनत मनोवैज्ञानिक सेशन, डॉक्टर से बेर-बेर भेंट करे में आठ बरिस लागे वाला रहे. सर्जरी रोहतक से 100 किमी दूर हिसार के एगो प्राइवेट अस्पताल में रहे. एह सभ के बीच माथा पर एक लाख से जादे के करजा आउर परिवार से तनाव भी झेले के पड़ल.

डेढ़ बरिस बाद आज जब 26 बरिस के सुमित चलेलन, त कंधा झुका लेवेलन. सर्जरी होखे के पहिले के आदत अबले नइखे गइल. पहिले आपन छाती के चलते उनकरा शर्मिंदगी उठावे के पड़त रहे.

एह बात के अंदाजा ना कइल जा सके कि भारत में सुमित जइसन केतना लोग होई, जे जनम के समय के लिंग से आपन अलग पहिचान बतावेला. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सहयोग से भइल एगो अध्ययन के मानल जाव, त साल 2017 में भारत में कुल 4.88 लाख ट्रांसजेंडर रहे.

साल 2014 के राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामला में सुप्रीम कोर्ट एगो ऐतिहासिक फैसला देवत ट्रांसजेंडर लोग के ‘तेसर लिंग’ के रूप में मान्यता देलक. आउर ओह लोग के आपन लैंगिक पहचान के बारे में फैसला लेवे के अधिकार देवल गइल. एह फैसला में सरकार के ओह लोग खातिर उचित स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करे के निर्देश देवल गइल. पांच बरिस बाद ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार के संरक्षण) विधेयक, 2019 आइल त एह में कहल गइल कि सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्ति के स्वास्थ्य सेवा देवे खातिर जरूरी कदम उठाई. एह में ट्रांसजेंडर समुदाय खातिर लिंग-पुष्टि सर्जरी, हारमोन थेरेपी आउर मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करे में सरकार के भूमिका पर फेरु से जोर देवल गइल.

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सुमित हरियाणा के रोहतक में लइकी के रूप में जन्म लेलन. सुमित के इयाद बा कि तीन बरिस के छोट उमिर में भी, उनकरा फ्रॉक पहिनल नीमन ना लागत रहे

एह तरह के कानूनी बदलाव आवे से पहिले, कइएक ट्रांस लोग के सर्जरी से लिंग बदले (लिंग पुनर्निधारण सर्जरी मतलब जीएएस, चाहे लिंग पुष्टिकरण सर्जरी) पर पाबंदी रहे. एह में चेहरा के सर्जरी, ‘टॉप’ सर्जरी (छाती से जुड़ल) आउर ‘बॉटम’ सर्जरी (जननांग में बदलाव से जुड़ल) शामिल रहे.

सुमित के आठ बरिस ले आउर 2019 के बादो, एह सर्जरी के मौका ना भेंटाइल.

हरियाणा के रोहतक जिला के एगो दलित परिवार में लइकी के रूप में जनमल सुमित आपन तीन ठो भाई-बहिन खातिर माई-बाऊजी जेका रहस. आपन परिवार में सरकारी नौकरी पहिले बेर करे वाला सुमित के बाऊजी जादे करके काम के चलते घर से बाहिर रहत रहस. सुमित के माई-बाऊजी के संबंध ठीक ना रहे. ऊ बहुते छोट रहस, त उनकर दादा-दादी, जे लोग खेतिहर मजूर रहे, चल बसल रहे. घर के स्थिति अइसन रहे कि सगरे जिम्मेदारी सुमित के कान्हा पर आ गइल. ई सभ लोग के नजर में घर के बड़ लइकी के रूप में उनकर जिम्मेदारी से मेल खात रहे. बाकिर ई परिस्थिति सुमित के आपन पहचान से मेल ना खात रहे. ऊ कहलन, “हम सगरे जिम्मेदारी लइका के रूप में निभइनी.”

उनकरा इयाद बा तीन बरिस जेतना छोट उमिर में भी फ्रॉक पहिने में खराब लागत रहे. अइसन में हरियाणा के खेल-कूद के परंपरा से उनकरा तनी राहत मिलल. एह में लइकी लोग खेल-कूद वाला कपड़ा पहिन सकत रहे, जे लइका चाहे लइकी के हिसाब से ना रहत रहे. सुमित बतावत बाड़न. “बड़ा होखे के क्रम में हमरा जे मन करे हम उहे पहिनत रहीं. आपन छाती (टॉप) के सर्जरी के पहिलहूं, हम लइका जइसन जियत रहीं.” बाकिर एकरा बादो उनकरा आपन जिनगी में कुछ कमी बुझाए.

सुमित जब 13 बरिस के भइलन, त उनकरा आपन देह से लइका होखे खातिर मन कसमसाए लागल. ऊ बतइले, “ओह घरिया हम एकदम दुबर-पातर रहीं, छाती ठीक से उगल ना रहे. बाकिर ओतनो से हमरा खराब लागत रहे.” एह सभ के बीच सुमित के आपन डिस्फोरिया (जैविक लिंग आउर लैंगिक पहचान के बीच मेल ना होखे के चलते बेचैनी) समझ में ना आवत रहे.

एगो दोस्त उनकरा खातिर राहत लेके आइल.

सुमित ओह घरिया आपन परिवार संगे किराया के मकान में रहत रहस. उनकर दोस्ती आपन मकान मालिक के लइकी से हो गइल. लइकी इहंवा इंटरनेट कनेक्शन रहे. ऊ उनकरा आपन छाती के सर्जरी से जुड़ल जानकारी जुटावे में मदद कइली. धीरे-धीरे सुमित के आपन स्कूल में अइसन कइएक ट्रांस लइका लोग से भेंट भइल जे डिस्फोरिया के अलग-अलग रूप से जूझत रहे. ऊ अगिला कुछ बरिस आपन दोस्त लोग से आउर ऑनलाइन जानकारी जुटावे में लागल रहलन. धीरे-धीरे उनकरा अस्पताल जाके एह बारे में पता करे, बात करे के हिम्मत आवत रहे.

साल 2014 के मौका रहे. अठारह बरिस के सुमित आपन घर लगे स्थित लइकी लोग के स्कूल से बस अबही बारहवां पास कइले रहस. ओह दिनवा बाऊजी काम खातिर गइल रहस. माई घरे ना रहस. केहू रोके, चाहे सवाल करे, चाहे साथे जाए वाला ना रहे. एह मौका के फायदा उठावत ऊ अकेले रोहतक जिला अस्पताल चल गइलन. उहंवा बहुत संकोच से छाती हटवावे के ऑपरेसन के बारे में पूछताछ करे लगलन.

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ट्रांस पुरुष लोग लगे मौका बहुते सीमित होखेला. ओह लोग के मामला में जीएएस खातिर स्त्री रोग जानकार, मूत्र रोग जानकार आउर पुनर्निमाण करे वाला पिलास्टिक सर्जन जइसन उच्च कोटि के पेशवर लोग के जरूरत होखेला

उहंवा जेतना कुछ भी पता चलल, ओह से कइएक बात साफ भइल.

अस्पताल में पता चलल कि उनकर सर्जरी बर्न पेशेंट (दुर्घटना में जरल रोगी) के रूप में कइल जाई. सड़क चाहे कवनो दोसर हादसा में जर गइला पर सरकारी अस्पताल में बर्न डिपार्टमेंट (जरल रोगी के इलाज वाला विभाग) में पिलास्टिक सर्जरी जइसन तरीका से एह तरह के इलाज सामान्य बात होखेला. बाकिर सुमित के मामला त कुछुओ आउर रहे. उनकरा से झूठ बोल के कागज पर जरल रोगी के रूप में अस्पताल में भरती होखे के कहल गइल. एकरा बावजूद उनकर भरती के कागज पर सर्जरी के कवनो जिकिर ना रहे, जे ऊ बास्तव में चाहत रहस. बतावल गइल कि उनकरा एको पइसा ना देवे के पड़ी, जबकि सरकारी अस्पताल में जरल मरीज के सर्जरी, चाहे छाती के फेरु से बनावे से जुड़ल सर्जरी खातिर अइसन कवनो छूट देवे के नियम नइखे.

एह सभ चलते सुमित के लागल उनकर सोचल जल्दिए पूरा होई. एहि उम्मीद में अगिला डेढ़ बरिस अस्पताल के चक्कर लगावत बीतल. उनकर मन के शांति भंग हो चुकल रहे. ई एगो अलग तरह के कीमत रहे, जे उनकरा चुकावे के पड़ल.

“डॉक्टर लोग हमरा पर संदेह करत रहे. ऊ लोग के लागे हमरा भरम बा. कहे ‘तोहरा अइसन सर्जरी करावे के का जरूरत बा?’ आउर कि ‘तू एहि तरहा कवनो लइकी संगे रह सकत बाड़ू.’ उहंवा के कोई छव-सात गो डॉक्टर लोग हमरा से दिन-रात सवाल करे. हमार मन अइसन सवाल से डेराएल रहत रहे.”

“हमरा इयाद बा, कोई 500-700 सवाल वाला फारम हमरा दू-तीन बेरा भरे के पड़ल रहे.” एह में मरीज के सेहत आउर परिवार से जुड़ल इतिहास, मानसिक हालत, नसा, जदि कवनो होखे त, से जुड़ल बात पूछल गइल रहे. बाकिर किसोर उमिर के सुमित के मामला पर ऊ लोग टालमटोल करत रहे. सुमित के कहे के मतलब रहे, “ओह लोग के समझ में ना आवत रहे कि हम एह देह में खुस नइखीं. आउर एहि से हम टॉप सर्जरी करावे के चाहत बानी.”

समझ आउर सहानुभूति के कमी के अलावे, भारत में ट्रांस समुदाय जब जीएएस सर्जरी करावे खातिर आवेला, त ओह लोग के एह खातिर जरूरी चिकित्सा कौशल में भारी कमी झेले के पड़ेला. अइसन कमी पहिलहूं रहल, आउर अबहियो बहुते हद ले बा.

मरद से मेहरारू बने खातिर होखे वाला जीएएस में दू ठो जरूरी सर्जरी (छाती बढ़ावे यानी ब्रेस्ट इम्प्लांट आउर योनि बनावे के काम यानी वजाइनोप्लास्टी) होखेला. उहंई एकर उलटा, मेहरारू से मरद बने खातिर होखे वाला सर्जरी बहुते जटिल बा. एह में सात तरह के सर्जरी करे के पड़ेला. सबले पहिल सर्जरी में देह के ऊपरी हिस्सा, चाहे ‘टॉप’ सर्जरी बा. एह में छाती हटावे, चाहे छाती के फेरु से आकार देवे के काम होखेला.

“हम जब मेडिकल के पढ़ाई (साल 2012 के आस-पास) करत रहीं, हमनी के सिलेबस में देह से जुड़ल एह तरह के कवनो बात के जिकिर तक ना रहत रहे. हां, पिलास्टिक सर्जरी के सिलेबस में लिंग पुनर्निधारण प्रक्रिया के बारे में कुछ बतावल त गइल रहे, बाकिर उहो कवनो हादसा, चाहे लगला के स्थिति में. अब त बहुते कुछ बदल गइल बा,” नई दिल्ली के डॉ. भीम सिंह नंदा इयाद करत बाड़न. उहां के सर गंगा राम अस्पताल में पिलास्टिक सर्जरी बिभाग के उपाध्यक्ष बानी.

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साल 2019 ट्रांसजेंडर ब्यक्ति अधिनियम के जरिए ट्रांसजेंडर लोग के जरूरत के ध्यान रखे वाला मेडिकल पाठ्यक्रम आउर रिसर्च के पर जोर देवल गइल. बाकिर पांच बरिस बादो, एह समुदाय खातिर जीएएस के सुलभ करावे आउर किफायती बनावे खातिर सरकार ओरी से अबले कवनो खास प्रयास नइखे कइल गइल

ट्रांसजेंडर ब्यक्ति अधिनियम, 2019 आपन तरह के ऐतिहासिक अधिनियम बा. एह में ट्रांसजेंडर समुदाय के जरूरत के ध्यान रखे वाला मेडिकल पाठ्यक्रम आउर रिसर्च के परखे के जरूरत पर जोर देवल गइल बा. बाकिर पांच बरिस बादो, ट्रांसजेंडर लोग खातिर जीएएस तक पहुंच बनावे आउर एकरा किफायती करे खातिर सरकार ओरी से अबले कवनो बड़ कदम नइखे उठावल गइल. सरकारी अस्पताल भी जीएएस काफी हद तक दूरी बनइले बा.

ट्रांस मरद लोग खातिर मौका बहुते कम बा. एह मामला में जीएएस खातिर स्त्री रोग जानकार, मूत्र रोग जानकार आउर पिलास्टिक सर्जन जइसन उच्च कोटि के पेशेवर लोग के जरूरत होखेला. ट्रांस मरद आउर ट्रांस कार्यकर्ता कार्तिक बिट्टू कोन्डिया के कहनाम बा, “एह मामला में ढंग से इलाज करे वाला प्रशिक्षित आ पेशेवर लोग गिनल-चुनल बा. सरकारी अस्पताल में त स्थिति आउर खराब बा.” कार्तिक तेलंगाना हिजड़ा इंटरसेक्स ट्रांसजेंडर समिति से जुड़ल बाड़न.

एहि तरहा ट्रांस समुदाय खातिर मानसिक रोग से जुड़ल सरकारी सेवा के हालत भी नाजुक बा. रोज-रोज तालमेल बइठावे के अलावे, कवनो तरह के लिंग-पुष्टिकरण प्रक्रिया से पहिले काउंसिलिंग. परामर्श लेवल कानूनी रूप से जरूरी होखेला. ट्रांस लोग के जेंडर आइडेंटिटी डिसॉर्डर (लैंगिर पहचान संकट) के प्रमाणपत्र बनावे आउर मनोवैज्ञानिक, चाहे मनोचिकित्सक से एह बात के पुष्टि करावल जरूरी होखेला कि ऊ लोग एकरा खातिर योग्य बा.

साल 2014 में आउल सुप्रीम कोर्ट के फैसला के दस बरिस गुजरला के बाद समुदाय के अब समझ आ गइल बा कि चाहे रोज-रोज तालमेल बइठावे, चाहे लिंग बदले के यात्रा सुरु करे के बात होखे, मानसिक स्वास्थ्य सेवा समावेशी आउर सहानुभूतिपूर्ण होखल जरूरी बा, जो अबही दिवास्वप्न बा.

“जिला अस्पताल में टॉप सर्जरी खातिर हमार काउंसलिंग कोई दू बरिस ले चलल,” सुमित कहलन. आखिर में ऊ साल 2016 में कबो, जाए के बंद कर देलन. “एक सीमा के बाद आदमी आजिज आ जाला.”

एह सभ से आजिज अइला के बादो आपन लिंग के पुष्टि के उनकर चाहत ना बदलल. सुमित फेरु से आपन ताकत बटोरलन आउर एह बारे में नया सिरा से पता करे में लाग गइलन. उनकरा समझे के रहे कि जीएएस में का सभ होखेला आउर भारत में एकर लाभ कहंवा से उठावल जा सकेला.

सुमित चूंकि परिवार संगे रहत रहस, एह से उनकरा ई सभ काम छिपा के करे के पड़त रहे. पइसा खातिर ऊ मेंहदी लगावे आउर कपड़ा सिए के काम करे लगलन. टॉप सर्जरी करावे खातिर अब ऊ मन पक्का कर लेले रहस. जे कमाई होखे, ओह में से ऊ कुछ पइसा सर्जरी खातिर बचावे लगलन.

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तीन-तीन काम कइला के बादो सुमित के सोचल पूरा ना भइल. नियमित काम ना मिले से अबहियो उनकरा 90,000 के करजा सधावे के बा

साल 2022 में सुमित एक ठो कोसिस आउर कइलन. आपन दोस्त, जे ट्रांस मरद रहस, संगे हजारन किमी के दूरी तय करके रोहतक से हरियाणा के हिसार पहुंचलन. उहंवा कवनो प्राइवेट मनोवैज्ञानिक डॉक्टर से ऊ काउंसिलिंग  के दू सेशन लेलन. एह में 2,300 रुपइया खरचा भइल. डॉक्टर उनकरा बतइलन कि अगिला दू हफ्ता के भीतर ऊ टॉप सर्जरी करा सकेलन.

हिसार के प्राइवेट अस्पताल में ऊ चार दिन ले भरती रहलन. सर्जरी मिला के इहंवा उनका कुल एक लाख के खरचा आइल. सुमित कहलन, “उहंवा के डॉक्टर आउर स्टाफ सभ बहुते अच्छा रहे. सरकारी अस्पताल के हमार अनुभव से ई एकदम अलग रहे.”

बाकिर ई अहसास जादे देर ना टिकल.

रोहतक जइसन छोट शहर में एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के दोसर लोग जेका, सुमित के टॉप सर्जरी के बात जादे दिन ले छिपल ना रहल. उनकरा राज अब दिन के अंजोर में सामने आ गइल रहे. उनकर परिवार ई बात सह ना सकल. सर्जरी के थोड़के दिन भइल रहे, सुमित रोहतक लउटन त पइलन कि उनकर सभ सामान घर से बाहिर फेंकल बा. “परिवार हमरा के घर से निकाल देले रहे. घर से, धन से, मन से हमरा के त्याग देवल गइल रहे. ओह लोग के हमार कवनो परवाह ना रहे.” अइसे सुमित टॉप सर्जरी के बादो, कानूनी तौर पर अबहियो लइकिए रहस. संपत्ति में दावा के शक उठे लागल. “केहू समझलइक कि हमरा काम करे के चाहीं, आउर मरद जेका सभ जिम्मेदारी उठावे के चाहीं.”

जीएएस के बाद, कुछ महीना ले अच्छा से आराम करे के कहल जाला. कवनो तरह के दिक्कत होखला के स्थिति में मरीज के अस्पताल लगे रहे के सलाह देवल जाला. एह सभ चलते ट्रांस आदमी पर पइसा आउर दोसर कइएक तरह के दबाव बढ़ जाला. खासतौर से गरीब आउर वंचित तबका से आवे वाला एह तरह के लोग पर ऑपरेसन के बाद के देख-रेख बोझ बन जाला. सुमित के हिसार एक बेरा आवे-जाए में तीन घंटा लाग जात रहे आउर 700 रुपइया के खरचा आवत रहे. हिसार खातिर अइसन आन-जान ऊ कमो ना त दस बेरा कइले होइहन.

टॉप सर्जरी के बाद मरीज के छाती पर बाइंडर (लपेटे वाला) कसे के होखेला. डॉ. भीम सिंह नंदा समझइलन, “भारत जइसन गरम जलवायु वाला देस में, जहंवा औसत तबका लगे एसी ना होखे, लोग ठंडा में ऑपरेशन करावल पसंद करेला.” डॉक्टर इहो बतइलन कि पसीना निकले से टांका में इंफेक्शन होखे के खतरा बढ़ जाला.

सुमित के सर्जरी भइल आउर उनकरा उत्तर भारत में मई के चिलचिलात गरमी में घर से निकाल देवल गइल. “एक हफ्ता बहुते कष्ट में बीतल. लागे केहू हमारा हड्डी खुरच रहल बा. बाइंडर चलते चलो-फिरो में दिक्कत होखत रहे,” ऊ इयाद कइलन. “हम आपन ट्रांस पहिचान छुपइले बिना किराया पर घर लेवे के चाहत रहीं. बाकिर छव जगह लोग मना कर देलक. सर्जरी के बाद हमरा एको महीना आराम ना मिलल.” टॉप सर्जरी के नौ दिन बाद आउर घर से निकलला के चार दिन बाद उनकरा एगो दू कमरा वाला अलग मकान मिल गइल. इहंवा उनकरा आपन पहिचान भी छिपावे के ना पड़ल.

आज सुमित रोहतक में मेंहदी लगावे, दरजी, चाय के दोकान पर हेल्पर आउर गिग आधारित शारीरिक मिहनत करे वाला मजूर के काम करेलन. बहुते मुस्किल से उनकरा महीना के 5 से 7 हजार रुपइया के कमाई होखेला.  एह में से जादे त किराया, खाना, कुकिंग गैस, बिजली आउर करजा सधावे में उड़ जाला. छाती के सर्जरी में जे 1 लाख रुपइया लागल रहे, ओह में से 30 हजार उनकर साल 2016 से 2022 के बीच के बचत के पइसा रहे. बाकी के 70 हजार संगी-साथी आउर पांच प्रतिशत के ब्याज पर साहूकार से पइंचा लेवल रहे.

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बावां : सुमित मेंहदी लगावे आ दरजी के काम करके टॉप सर्जरी खातिर पइसा बचत कइलन. दहिना : घर पर मेंहदी के डिजाइन के अभ्सास करत सुमित

जनवरी 2024 में सुमित के माथा पर 90,000 के करजा रहे. उनकरा हर महीना 4,000 रुपइया के ब्याजो भरे के पड़त बा. सुमित हिसाब लगइलन, “समझ में नइखे आवत एतना कम कमाई में जिनगी कइसे चली, करजा कइसे भराई. काम भी हमरा रोज ना मिले.” पछिला दस बरिस में जिनगी में आइल बदलाव के उनकरा पूरा तरह से थका देले बा. रात के नींद हराम हो गइल बा. “अब त हमार दम घुटे लागल बा. घरे अकेल्ला रहिले, त बेचैनी होखेला, डर लागेला, मन घबराला. पहिले अइसन ना होखत रहे.”

एक बरिस बाद परिवार से बोलचाल सुरु हो गइल. ऊ लोग कबो-कबो पइसा से मददो कर देवेला, जदि ऊ कहेलन त.

सुमित खातिर ट्रांसजेंडर के पहिचान कवनो गर्व के बिषय नइखे, जे भारत के अधिकांश ट्रांसजेंडर लोग के बिशेषाधिकार होखेला. एह सभ के बीच एगो दलित आदमी के त बाते छोड़ दीहीं. समाज में बात सामने अइला पर उनकरा मन में ‘असल मरद’ ना होखे के लोग के टिप्पणी के डर लागल रहेला. छाती के बिना छोट-मोट शारीरिक मिहनत के काम में त उनकरा आसानी रहेला. बाकिर भारी आवाज आउर मुंह पर बाल जइसन मरदाना गुण ना होखे से सुमित के समाज में अपना पर संदेह के चिंता सतावत रहेला. एकरा अलावे जनम में जे नाम रहे, उहो अबले कानूनी रूप से बदलल नइखे गइल.

मन आउर देह से एतना संघर्ष कइला के बाद अब ऊ हारमोन बदले के थेरेपी खातिर तइयार नइखन. उनकरा एकर साइड इफेक्ट के लेके बहुते आशंका बा. सुमित कहले, “बाकिर जब हमार आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाई. त जरूर कराएम.”

सुमित एक-एक कदम फूंक-फूंक के उठावत बाड़न.

आपन टॉप सर्जरी के छव महीना बाद सुमित सामाजिक न्याय आउर अधिकारिता मंत्रासय में एगो ट्रांस पुरुष के रूप में आपन रजिस्ट्रेसन करवा लेले बाड़न. अब उनकरा लगे राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त ट्रांसजेंडर प्रमाणपत्र आउर पहचानपत्र भी बा. अब ऊ एगो खास योजना, आजीविका आउर उद्यम खातिर सीमांत ब्यक्ति के समर्थन ( स्माइल यानी एसएमआईएलई) के लाभ उठा सकेलन. ई योजना भारत के अहम आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत ट्रांसजेंडर लोग के लिंग पुष्टि से जुड़ल सेवा उपलब्ध करावेला.

सुमित के कहनाम बा, “अपना के पूरा तरीका से बदले खातिर आउर कवन सर्जरी करावे के होई, हमरा नइखे पता. सभ कुछ धीरे-धीरे कराएम. कागज-पत्तर में आपन नामो बदलवावे के बा. अबही त ई सुरुआत बा.”

कहानी भारत में यौन आउर लैंगिक हिंसा (एसजीबीवी) के शिकार लोग के संभारे खातिर आगू आवे वाला सामाजिक, संस्थागत आउर संरचनात्मक बाधा पर केंद्रित राष्ट्रव्यापी रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के अंग बा. एह प्रोजेक्ट के ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स इंडिया’ के सहजोग प्राप्त बा.

सुरक्षा खातिर कहानी में शामिल लोग आउर परिवार के नाम बदल देवल गइल बा.

अनुवादक : स्वर्ण कांता

Ekta Sonawane

Ekta Sonawane is an independent journalist. She writes and reports at the intersection of caste, class and gender.

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Editor : Pallavi Prasad

Pallavi Prasad is a Mumbai-based independent journalist, a Young India Fellow and a graduate in English Literature from Lady Shri Ram College. She writes on gender, culture and health.

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Series Editor : Anubha Bhonsle

Anubha Bhonsle is a 2015 PARI fellow, an independent journalist, an ICFJ Knight Fellow, and the author of 'Mother, Where’s My Country?', a book about the troubled history of Manipur and the impact of the Armed Forces Special Powers Act.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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