मीना के बियाह जल्दिए हो जाई. काहे, पूछला पर ऊ बतावे लगली, “दू-चार महीना पहिले हम घर में सभे खातिर एगो दिक्कत बन गइनी.” ओकरा कुछ हफ्ता बाद उनकर चचेरी बहिन भी सभे खातिर ‘परेसानी’ बन गइली. अब उनकरो बियाह ठीक कइल जात बा. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (जे पहिले इलाहाबाद नाम से जानल जात रहे) के एगो बस्ती में जइसहीं केहू लइकी के माहवारी आवे लागेला, ऊ ‘परेसानी’ चाहे ‘समस्या’ के कारण बन जाएली. फेरु ओह लोग खातिर घरवाला लरिका देखल सुरु क देवेला.

मीना, 14 बरिस, आ सोनू, 13 बरिस संगे-संगे एगो खटिया पर बइठल बाड़ी. हमनी जब बतियावे लागत बानी, त दूनो बहिन कबो एक-दूसरा के देखे लागत बा, त कबो माटी के भूइंया ताके लागत बा. एगो अनजान से माहवारी के बारे में बात करे में ओह लोग के संकोच साफ लउकत बा. कमरा में उनकरा लोग के पाछू एगो बकरी भी खूंटा से बंधल बा. उत्तर प्रदेश के कोरांव ब्लॉक के बैठकवा बस्ती में जंगली जानवर सभे के डर से ओकरा बांध के रखल जाला.

काच उमिर के एह लइकी लोग के माहवारी के बारे में अबही-अबही पता चलल हवे. एकरा ऊ लोग शर्मिंदगी वाला बात समझेला. माहवारी से जुड़ल डर ऊ लोग आपन घर से सिखले बा. प्रयागराज के एह बस्ती के लोग आपन लइकी के ‘सयान’ होखला पर ओकर सुरक्षा आउर बियाह से पहिले बच्चा ठहरे के बात से डरल रहेला. एहि से ऊ लोग आपन लइकियन के बियाह बहुत छोट उमिर (कबो कबो त 12 बरिस में ही) में तय कर देवेला.

मीना के माई रानी, 27 बरिस, के बियाह भी बहुते छोट उमिर में भ गइल रहे. ऊ 15 बरिस में माई भी बन गइल रहस. सवाल करे के अंदाज में ऊ कहतारी, “हमनी आपन लइकी के सुरक्षित कइसे रखीं. ऊ लोग एतना बड़ा हो गइल बा, कि बच्चा जन सकेला.” सोनू के माई चंपा, इहे कोई 27 बरिस, के कहनाम बा कि उनकरो आपन बेटी जेतना उमिर, 13 बरिस, में बियाह हो गइल रहे. हमनी के चारो ओरी 6 गो मेहरारू लोग जुटल होखी. सभे के इहे कहनाम बा, एह बस्ती में 13-14 बरिस में लइकी के बियाह एगो नियम हो गइल बा. रानी कहली, “एह गांव के लोग कवनो दोसर जुग में जियत बा. कवनो रस्ता नइखे बुझाइत. हमनी मजबूर हो गइल बानी.”

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार आउर छत्तीसगढ़ के कइएक जिला में बाल-बियाह के रस्म आम हवे. साल 2015 में इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर रिसर्च ऑन वूमेन आउर यूनिसेफ़ मिल के ज़िला स्तर पर एगो अध्ययन कइले रहे. एह में पावल गइल, "एह सभे राज्यन में मोटा-मोटी दू तिहाई जिला में पचास प्रतिशत से ज़ादे मेहरारू के बियाह 18 बरिस से पहिले कर देहल गइल रहे."

बाल बियाह निषेध अधिनियम, 2006 अइसन बियाह पर रोक लगावे के मुनादी कइले बा जेह में लइकी 18 आउर लइका 21 से कम उमिर के होखे. अइसन बियाह खातिर हामी भरे आउर एकरा प्रचारित कइल जुरम बा. एकरा खातिर दू बरिस के कठोर श्रम सहित जेल आउर एक लाख रुपइया जुरमाना के नियम हवे.

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मीना आउर सोनू के माहवारी के समझ भइल जादे दिन नइखे भइल, एकरा ऊ लोग शर्मिंदा होखे वाला बात समझेला

निर्मला देवी, 47 बरिस, एहि गांव में एगो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हई. ऊ बतावे लगली, “बाल बियाह गैरकानूनी त बा. बाकिर एह में पकड़ल जाए के कवनो सवाले नइखे. काहे कि लइकी के उमिर कम बा, ई साबित करे खातिर बर्थ सर्टिफिकेट होखबे ना करेला.” निर्मला के बात सही बा. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफ़एचएस-4, 2015-16) के हिसाब से, उत्तर प्रदेश के गांव-देहातन में इहे कोई 42 प्रतिशत बच्चा के जन्म के पंजीकरण ही नइखे कइल गइल. प्रयागराज ज़िला के मामला में ई गिनती आउर भी जादे (57% ) बा.

एकरा अलावे, निर्मला दीदी के कहनाम बा, “मेहरारू लोग अस्पताल पहुंच ना पावेला. पहिले हम खाली एगो फोन करत रहीं आउर कोरांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचची) से एंबुलेंस आ जात रहे. अस्पताल इहंवा से 30 किमी दूर बा. बाकिर अब का भइल बा, कि हमनी के एगो मोबाइल ऐप (108) से काम करे के होखेला. एह ऐप खातिर 4G इंटरनेट चाहीं. इहंवा कबो नेटवर्क रहबे ना करेला. रउआ डिलीवरी खातिर सीएसी से बाते ना कर सकिले.” दोसरा तरह से कहल जाव, त ऐप आवे से स्थिति आउर खराब हो गइल बा.

एगो अइसन देस जहंवा सोनू आउर मीना जइसन हर बरिस 15 लाख लइकी लोग के बाल बियाह होखेला, उहंवा खाली कानून से परिवार के एह रिवाज पर रोक ना लगावल जा सकेला. एनएफएचएस-4 के हिसाब से, उत्तर प्रदेश में हर पांच में से एगो मेहरारू बाल वधू हवे.

सुनीता देवी पटेल, 30 बरिस, बैठकवा आउर एकर आस-पास के बस्तियन में काम करेली. सभे लोग उनकरा आशा दीदी पुकारेला. ऊ बतावत बाड़ी कि जब ऊ एह बस्ती में परिवार से बतियावे के कोसिस करेली, त लोग उनकरा के ‘भगा देवेला.’ ऊ कहतारी, “हम ओह लोग से लइकियन के बड़ा होखे तक रुके के बात करेनी. हम कहेनी कि छोट उमिर में बच्चा जनल खतरनाक हवे. ऊ लोग हमर एको बात ना सुनेला आउर हमरा उहंवा से जाए के कहेला. एक महीना बाद हम जब उंहवा दोबारा जाइला, त लइकी के बियाह हो चुकल रहेला!”

लइकी के परिवार के चिंतित होखे के आपन कारण हवे. मीना के माई रानी कहतारी, “घर में कवनो शौचालय नइखे. ऊ लोग के खेत में दिसा फिरे जाए के पड़ेला. खेत घर से 50 से 100 किमी दूर बा. हमनी के इहे चिंता रहेला कि कहीं ओह लोग साथे कुछो ऊंच-नीच ना हो जाए.” रानी पछिला बरिस दलित लइकी संगे भइल बलात्कार आउर हत्या के घटना इयाद करत बाड़ी, “हमरा हाथरस के डर हरमेसा लागल रहेला.”

जिला मुख्यालय कोरांव से बैठकवा ओरी 30 किमी लमहर सुनसान सड़क बा. सड़क खुलल जंगल आउरी खेतन से होके गुजरेला. बीच में कोई पांच किमी के रस्ता बा, जे में जंगल आउर पहाड़ पड़ेला. ई हिस्सा बहुते सुनसान आउर खतरनाक मानल जाला. स्थानीय लोग बतावत बा कि ऊ लोग केतना बेर झाड़ी में गोली के घाव से क्षत-विक्षत लाश पड़ल देखले बा. लोग के मानना बा उंहवा एगो पुलिस चउकी के जरूरत बा, आउर इहो कि उहंवा के सड़क भी ठीक होखे के चाहीं. बरसात में बैठकवा सहित लगे के 30 गांव पूरा तरीका से पानी में डूब जाएला. केतना बेरा त हफ्तन तक उंहवा पानी लागल रहेला.

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बैठकवा बस्ती: आस-पास जुटल सभे मेहरारू लोग के कहनाम बा इहंवा 13 से 14 बरिस के लइकी के बियाह भइल अब कवनो अपवाद नइखे रह गइल, बलुक नियम बन गइल बा

बस्ती के चारो ओरी विंध्याचल के छोट आउर भूरा रंग के सूखल पहाड़ी बा. एकरा लगे कांटावाला झाड़ी लागल बा आउर एकरा मध्य प्रदेस से लागल सीमा के रूप में रेखांकित कइल गइल बा. अधकच्चा सड़क से कोल समुदाय के झुग्गी लागल हवे. लगे के खेत ओबीसी परिवार (जेकर खाली कुछ हिस्सा दलितन के बा) के हवे, जे सड़क के दूनो ओरी फइलल बा.

एह गांव में रहे वाला कोल समुदाय से जुड़ल कोई 500 दलित परिवार आउर ओबीसी समुदाय से आवे वाला मोटा-मोटी 20 परिवार बा. एह लोग के सामने सबसे बड़ समस्या डर हवे. रानी के भी फिकिर बा. ऊ कहत बाड़ी, “कुछे महीना पहिले, हमनी के लइकी गांव से जात रहे. कुछ (अगड़ा जात के) लइका लोग ओकरा बरजोरी आपन मोटरसाइकिल पर बइठा लेलक. ऊ चलत मोटरसाइकिल से कूदके कवनो तरह भगली, आउर घरे अइली.”

कोल समुदाय के एगो 14 बरिस के लइकी 12 जून, 2021 के गायब हो गइली. उनकर अबले कवनो पता ना चलल ह. परिवार के आरोप हवे कि ऊ लोग एफआईआर कइलक, बाकिर थाना वाला लोग ओकर कॉपी देखावे के नइखे चाहत. ऊ लोग आपन ओरी लोग के धियान नइखे खींचे के चाहत. पुलिस कवनो तरह के नाराजगी मोल लेवे के मूड में नइखे. एकरा बारे में दोसर लोग के कहनाम बा कि पुलिस एह घटना भइला के दू हफ्ता बाद खोज-बीन करे खातिर आइल रहे.

निर्मला देवी धीरे से कहत बाड़ी, “हमनी त छोट हैसियत (अनुसूचित जाति) के लोग हईं. रउए बताईं पुलिस हमनी के परवाह करेला? का लोग के हमनी के परवाह बा? हमनी डर (बलात्कार आउर अपहरण) के साया में जियत बानी.”

निर्मला, कोल समुदाय से, गांव के कुछ गिनल चुनल स्नातक के डिग्री हासिल कइल लोग में से हई. ऊ बियाह के बाद स्नातक कइले रहस. उनकर घरवाला, मुरालीला किसान हवें. उनकरा चार गो लइका हवे. सभे पढ़ल-लिखल हवन. सभे के ऊ आपन कमाई से मिरजापुर के डूमंडगंज इलाका के एगो प्राइवेट स्कूल में पढ़वले बाड़ी. मुंह दबा के ऊ हंसत कहत बाड़ी, “तीसर लइका भइला के बादे हम घर से निकल पइनी. हम आपन लरिकन सभे के पढ़ावे के चाहत रहनी. यही हमार मकसद रहे.” निर्मला अब आपन पतोह श्रीदेवी के ‘सहायक नर्स दाई (एएनएम)’ पढ़े आउर ट्रेनिंग करे में मदद करतारी. श्रीदेवी जवन घरिया 18 बरिस के रहस, उनकर बियाह निर्मला के लरिका से भइल रहे.

बाकिर गांव के दोसर माई-बाप लोग जादे डरल हवे. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हिसाब से, उत्तर प्रदेश में साल 2019 में औरतन के ख़िलाफ़ भइल अपराध के 59,853 मामला दरज कइल गइल. एकर साफ मतलब बा कि मेहरारू लोग के खिलाफ रोज औसतन 164 अपराध होखत बा. एह में बच्चा, वयस्क मेहरारू से बलात्कार, अपहरण आउर मानव तस्करी के मामला शामिल बा.

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निर्मला देवी (दहिना), एगो आंगनबाड़ी (बावां) कार्यकर्ता हई. ऊ बतावत बाड़ी कि बहुत कम लोग लगे बर्थ सर्टिफिकेट बा. एहि से ऊ लोग बाल बियाह करत पकड़ल ना जा पाएला

सोनू आउर मीना के चचेरा भाई मिथिलेश कहतारे, “जब लइकी लोग पर (पुरुष) नजर ऱखल जाला, त ओह लोग के बचावल मुस्किल हो जाएला. इहंवा के दलित लोग के सिरिफ एक्के गो इच्छा हवे: आपन नाम आउर आपन इज्जत बचल रहे. एहि से ऊ लोग आपन लइकियन के बियाह जल्दी कर देवेला..”

मिथिलेश ईंट के खदान आउर बालू खनन मजूर हवें. उनकरा आपन 9 बरिस के बच्चा आउर 8 बरिस के लइका के गांव में छोड़के जाए के पड़ेला. ओह लोग के सुरक्षा खातिर ऊ बहुत चिंता में रहेलें.

महीना में ऊ 5000 रुपइया कमा लेवेले. उनकर घरवाली भी खाना बनावे, लकड़ी बेचे, फसल काटे घरिया खेतिहर मजूरी करके कमाई करेली. बस्ती में खेती कइल उनकरा खातिर संभव नइखे. मिथिलेश कहत बाड़ें, “हम कवनो फसल नइखी उगा सकत. काहे कि जंगली जानवर सभे कुछ खा जाला. इहंवा तक कि जंगली सुअर हमनी के अहाता में आ जाला. काहे कि हमनी जंगल के लगे रहिले.”

2011 के जनगणना के हिसाब से, देवघाट (अइसन गांव जेकरा में बैठकवा बस्ती आवेला) के मोटा-मोटी 61 प्रतिशत आबादी खेतिहर मजूरी, घरेलू उद्योग आउर दोसर काम में लागल हवे. मिथिलेश बतावत बाड़ें, "सभे घर से एगो से जादे आदमी नउकरी खातिर बहिरा दोसर शहर जाएला." ऊ इहो बतावत बाड़ें कि लोग नउकरी के तलाश में इलाहाबाद, सूरत आउर मुंबई जाके, उहंवा ईंट भट्ठा में, चाहे दोसर इलाका में दिहाड़ी मज़दूरी करेला. ऊ लोग एक दिन में 200 रुपइया कमा लेवेला.

डॉक्टर योगेश चंद्र श्रीवास्तव के कहनाम बा, “कोरांव, प्रयागराज के सभे 21 ब्लॉक में से सबसे जादे उपेक्षित हवे.” योगेश, प्रयागराज में सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी आउर विज्ञान विश्वविद्यालय में एगो वैज्ञानिक हवें. ऊ एह क्षेत्र में पछिला 25 बरिस से काम करत हवन. ऊ बतावत हवन, “जिला के कुल आंकड़ा इहंवा के सही तस्वीर ना देखावेला. रउआ कवनो तरह से देख लीहीं, फसल उगावे से स्कूल-ड्रॉप आउट होखे के सवाल होखे, चाहे सस्ता मजूरी खातिर पलायन से लेके गरीबी, बाल-बियाह या शिशु मृत्यु दर के सवाल होखे, खासकर के कोरांव बहुते पिछड़ल बा.”

एक बार बियाह हो गइला पर सोनू आ मीना आपन ससुराल विदा हो जइहन. ओह लोग के ससुराल इहंवा से 10 किमी दूर गांव में बा. सोनू कहतारी, “हम अबले उनकरा (दूल्हा) से नइखी मिलल. बाकिर एक बेर आपन चाचा के मोबाइल पर उनकर फोटो देखले रहनी. ऊ हमरा से कुछ बड़ा, कोई 15 बरिस के बाड़न आउर सूरत के एगो ढ़ाबा पर हेल्पर के काम करेलें.”

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बावां: मिथिलेस कहेलन, ‘जब लइकी लोग पर (मरद) नजर रखल जाई, त ओह लोग के बचाके रखल मुस्किल हो जाला.’ डॉक्टर योगेश चंद्र श्रीवास्तव कहलें, ‘कवनो तरह से देख लीहीं, कोरांव खास करके बहुते पीछे बा'

एह जनवरी बैठकवा सरकारी मिडिल स्कूल में, लइकी लोग के सेनेटरी नैपकिन आउर साथे एगो साबुन, एगो तौलिया बांटल गइल. एकरा अलावे एगो संस्था इहंवा के लइकी लोग के माहवरी बखत साफ-सफाई के तरीका सिखावे वाला एगो वीडियो भी देखइलक. एकरा अलावा, केंद्र सरकार के किशोरी सुरक्षा योजना में छठमा आउर 12वां कक्षा के किशोर लइकियन के मुफ़्त में सेनेटरी नैपकिन देवे के योजना हवे. प्रदेश में एह कार्यक्रम के शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, साल 2015 में कइले रहस.

बाकिर अब सोनू आउर मीना स्कूल ना जाएली. सोनू बतावत बाड़ी, “हमनी स्कूल ना जाएनी एहि से ई सब पता नइखे.” दूनो लइकी लोग के अच्छा लागित, अगर उनकरा कपड़ा के जगह मुफ्त में सेनेटरी नैपकिन मिल जाइत. ऊ अबही माहवारी घरिया कपड़ा लेवेली.

भले ओह लोग के बियाह होखे वाला बा, बाकिर दूनो लइकी के सेक्स, गरभ, इहंवा तक कि माहवारी से जुड़ल साफ-सफाई के बारे में कुछुओ पता नइखे. सोनू फुसफुसात कहली, “माई कहली हम भौजाई (चचेरा भाई के घरवाली) से एह बारे में पूछीं. भौजाई कहली अब से हम (परिवार के) कवनो मरद के बगल में ना लेटीं, ना त भारी मुसीबत हो जाई.” तीन लइकी लोग के एह परिवार में सबले बड़ बेटी सोनू के पढ़ाई दूसरा तक भइल. ऊ खाली 7 बरिस के रहस, जब छोट बहिन लोग के संभारे खातिर स्कूल छोड़े के पड़ल.

फेरु ऊ आपन माई चंपा संगे खेतन में काम करे लगली. बाद में  घर के पाछू जलावे खातिर लकड़ी बीने लगली. एह लकड़ी में से कुछ के ऊ लोग घर में भी रखेला, आउर कुछ के बेच देवेला. दू दिन के मिहनत से इहंवा के मेहरारू लोग 200 रुपइया के लकड़ी जमा कर लेवेला. मीना के महतारी रानी कहतारी, “एह पइसा से हमनी के कुछ दिन खातिर तेल आउर नमक के खरचा चल जाला.” सोनू आपन परिवार के 8 से 10 बकरी के संभारे में मदद करेली. एह काम के अलावे ऊ आपन माई के खाना बनावे आउर घर के दोसर काम में मदद करेली.

सोनू आउर मीना के माई-बाबूजी खेतिहर मजदूर हवें. मेहरारू के दिन भर के दिहाड़ी मजूरी 150 रुपइया, त मरद के 200 रुपइया बा. उहो तब, जब उनकरा काम मिल जाए. मतलब एक महीना में ओह लोग के जादे से जादे 10 से 12 दिन के ही काम मिलेला. सोनू के बाबूजी रामस्वरूप आस-पास के इलाका, शहर, इहंवा तक कि प्रयागराज में काम खोजे जात रहस. बाकिर 2020 में उनकरा टीबी हो गइल आउर एकरा बाद ऊ ना बचलें.

चंपा कहतारी, “हमनी उनकरा इलाज में 20,000 रुपइया लगा देहनी. हमरा परिवार के दोसर लोग से भी करजा लेवे के पड़ल.” ऊ आपन पाछू कमरा में बंधल बकरी ओरी इशारा करत हई. ऊ बतावे लगली, “बाबूजी के हालत आउर खराब होत चलत जात रहे. हमनी के उनकरा इलाज खातिर जादे पइसा के जरूरत रहे. एह मुस्किल बखत में दू-ढाई हजार में एगो बकरी के हिसाब से आपन बकरियन के बेचे के पड़ल. हमनी खाली एकरे अपना लगे रखले बानी.”

सोनू धीरे से कहली, “बाबूजी के जाते माई बियाह के बात करे लगली.” उनकरा हाथ के मेंहदी अब छूटे लागल बा.

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मीना आउर सोनू के संयुक्त परिवार के घर. सोनू आपन मेंहदी लागल हाथ देखावत कहे लगली, 'बाबूजी के गुजरते, माई हमार बियाह के बात करे लागल'

सोनू आउर मीना के माई- चंपा आउर रानी- दूनो सहोदर बहिन हई. ई लोग के दू गो सहोदर भाई से बियाह भइल बा. उनकर 25 लोग के संयुक्त परिवार दू गो कमरा वाला घर में रहेला. ई घर साल 2017 में प्रधानमंत्री आवास योजना में बनल कुछ कमरा के घर में से बा. एकर देवाल अबही काच बा आउर फूस से बनल बा. इहंवे ऊ खाना पकावेली आउर घर के कुछ लोग उहंवा रात में सुतेला. उनकर पुरान घर एहि कमरा के ठीक पाछू बा.

दूनो चचेरी बहिन में मीना के सबसे पहिले माहवारी सुरु भइल. एहि से घर के लोग उनकरा खातिर रिस्ता खोजे लागल. बाकिर लरिका अइसन खोजाएल बा, जेकर एगो भाई बा. मीना के संगे संगे सोनू खातिर भी उहे घर में रिस्ता पक्का कर देहल गइल. ई दूनो माई खातिर राहत के बात हवे.

मीना आपन परिवार में सबले बड़ हई. एकरा अलावे, उनकर दू गो बहिन आउर एगो भाई बाड़न. जब ऊ सतमा में पढ़त रहस, उनकर पढ़ाई छूट गइल. स्कूल छूटल एक बरिस से जादे हो गइल. ऊ बतावत बाड़ी, “हमरा पेट में दरद रहत रहे. दिन भर घर में लेटल रहत रहनी. माई खेत में आउर बाबूजी मजूरी करे कोरांव चल जात रहस. कोई हमरा स्कूल जाए के ना कहत रहे, एहि से हम ना गइनी.” बाद में पता चलल कि उनकरा पथरी रहे. बाकिर एकर इलाज बहुत खर्चीला रहे. आउर एकरा खातिर 30 किमी दूर जिला मुख्यालय जाए के पड़त रहे. एहि से उनकर इलाज भी बंद कर देहल गइल आउर साथे पढ़ाई भी बंद हो गइल.

उनकरा अबहियो कबो-कबो पेट में दरद होखेला.

आपन छोट-मोट कमाई में से, कोल परिवार आपन बेटी लोग के शादी खातिर पइसा बचावे के कोसिस करेला. रानी बतावत बाड़ी, “हमनी बियाह खातिर लगभग दस हजार रुपइया जुटइले रहनी. हमनी के 100-150 लोग खातिर पूरी, सब्जी आउर मिठाई के दावत तो करहीं के पड़ेला.” ऊ लोग सोचले बा कि एक दिन दूनो भाई से ऊ दूनो बहिन के बियाह कर देहल जाई.

उनकर घरवाला सभे के बिस्वास बा कि एह से ऊ आपन जिम्मेदारी से मुक्त हो जइहन. आउर लइकी लोग भी आपन लड़कपन से बाहर आ जाई. सोनू आउर मीना के कहनाम बा, “खाना कम बनावे के पड़ी. हमनी त एगो समस्या बानी नू.”

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दूनो चचेरी बहिन में से मीना के पहिले माहवारी आइल. एहि से घरवाला लोग एह लोग खातिर अइसन लइका खोजलक, जेकर एगो भाई बा. मीना के साथे सोनू के भी उहे घर में रिस्ता पक्का क देहल गइल हवे

यूनिसेफ के हिसाब से बाल विवाह चलते जवान लइकी लोग के जिनगी, गरभ आउर जचगी घरिया आवे वाला सेहत के दिक्कत से खतरा में पड़ जाएला. आशा दीदी सुनीता देवी माई बने वाला मेहरारू लोग के तबियत से जुड़ल प्रोटोकॉल ओरी इसारा करत बाड़ी. ऊ कहत बाड़ी छोट उमिर में बियाह होखे से, “एह लोग के खून में आयरन के जांच करे, चाहे फोलिक एसिड के गोली खिलावे के कम संभावना रहेला.” हकीकत त इहे हवे कि उत्तर प्रदेस के गांव-देहात में छोट उमिर में माई बने वाली खाली 22 प्रतिशत लइकी लोग के ही जचगी घरिया कवनो किसिम के स्वास्थ्य सुविधा मिल पावेला. पूरा देस में कवनो भी राज्य के देख आवल जाव, ई आंकड़ा सबले कम बा.

स्वास्थ्य आ परिवार कल्याण मंत्रालय के नया रिपोर्ट में अइसने बात सामने आइल हवे. एह रिपोर्ट के मानल जाव, त उत्तर प्रदेश के 15 से 49 के बीच के उमिर वाला आधा से जादे मेहरारू लोग में खून के भारी कमी बा. एहि से गरभ बखत उनका आउर उनकर लरिका के सेहत पर खतरा रहेला. एकरा अलावे, यूपी के गांव-देहात में पांच बरिस से छोट 49 प्रतिशत लरिका के लंबाई कम हवे. एकरा अलावा 62 प्रतिशत में खून के कमी हवे. इहंई से ऊ लोग के ख़राब सेहत के जाल में फंसे के सुरुआत हो जाला.

सुनीता के कहनाम बा, “लइकी लोग के खान-पान आउर पोषण के ख्याल रखल केहू जरूरी ना समझे. हम देखले बानी, बियाह पक्का भइला के बाद घर में लइकी के दूध मिलल बंद हो जाला. ओह लोग के लागेला कि अब त ई विदा होखे वाला बाड़ी. लोग सभ तरह के बचत करेला, काहे कि ई ओह लोग के मजबूरी भी बा.”

अइसे त, रानी आउर चंपा के मन कहूं आउरी लागल बा.

रानी के चिंता बा, “हमनी जे पइसा जोड़ले बानी, कहीं ऊ बियाह के पहिले केहू चोरा ना लेवे. लोग जानेला हमनी लगे नकद पइसा बा. एकरा अलावे, हमनी के पचास हजार रुपइया करजा भी लेवे के पड़ी.” अइसन करे से, उनकरा भरोसा बा कि ‘आइल मुसीबत’ सभे “टल जाई.”

रिपोर्टर, इलाहाबाद के 'सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी, आ विज्ञान विश्वविद्यालय' में एक्सटेंशन सर्विसेज़ के डायरेक्टर, प्रोफ़ेसर आरिफ़ ए ब्रॉडवे के उनकर अनमोल योगदान आउर इनपुट खातिर आभार प्रकट करतारी.

एह स्टोरी में कुछ लोग के नाम सुरक्षा के लिहाज़ से बदल देहल गइल बा.

पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट 'पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.

रउआ ई लेख के छापल चाहत कइल चाहत बानी? बिनती बा [email protected] पर मेल करीं आ एकर एगो कॉपी [email protected] पर भेज दीहीं .

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Priti David

Priti David is the Executive Editor of PARI. She writes on forests, Adivasis and livelihoods. Priti also leads the Education section of PARI and works with schools and colleges to bring rural issues into the classroom and curriculum.

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Priyanka Borar is a new media artist experimenting with technology to discover new forms of meaning and expression. She likes to design experiences for learning and play. As much as she enjoys juggling with interactive media she feels at home with the traditional pen and paper.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Sharmila Joshi is former Executive Editor, People's Archive of Rural India, and a writer and occasional teacher.

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Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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