बांध वाला जलाशय के रस्ते नाव से दू घंटा के सफर ही इमरजेंसी में अस्पताल पहुंचे के सबसे अच्छा साधन रहे. एकरा अलावे उहंवा जाए बदे काचा-पाकल रोड से ऊंच पहाड़ी के लांघ के जायल जा सकेला.

प्रबा गोलोरी के नौ महीना के गर्भ बा. उनकरा कबो जचगी (बच्चा के जनम) हो सकत बा.

हम दुपहरिया के दू बजे के करीब कोटागुडा बस्ती पहुंचनी. उहंवा प्रबा के झोंपड़ी के चारो ओरी पड़ोसी लोग जमा हो गइल रहे. केहू के उम्मीद ना रहे कि प्रबा के बच्चा बच पाई.

प्रबा के पहिलका बच्चा 3 महीना के रहे, तबे खराब हो गइल रहे. ओहि घरिया प्रबा 35 बरिस के रहस. बाकिर अभी उनकरा छह बरिसके लइकी बारी. दुनो बच्चा के जनम दाई के मदद से भइल रहे, बगैर कवनो खास परेशानी के. बाकिर एह बेरी दाइयो के माथा घूमल बा, उनकरो लागत बा कि अबकी बेसी मुसीबत होखे वाला बा.

हम ओहि दिन दुपहरिया में बगले के गांव में एगो कहानी पर काम करत रहनी, जब फोन बाजल. तुरंत एगो दोस्त के मोटरसाइकिल लेके (हमार हमेशा के साथी स्कूटी एह पहाड़ी वाला सड़क पर ना चल सकत रहे) हम कोटागुडा भागनी. ई बस्ती ओडिशा के मलकानगिरी जिला में बा. इहंवा मुश्किल से 60 लोग रहत होई.

चित्रकोंडा ब्लॉक के एह बस्ती में पहुंचल त भारी मुश्किल बड़ले बा, बाकि मध्य भारत के आदिवासी पट्टी के बाकी हिस्सा जइसन, इहंवा नक्सली (माओवादी) आउर राज्य के सुरक्षा बल के बीच बेर-बेर आमना-सामना भी होखत रहला. इहंवा जगह जगह सड़क आ दोसर बुनियादी सुविधा के हाल बेहाल बा.

To help Praba Golori (left) with a very difficult childbirth, the nearest viable option was the sub-divisional hospital 40 kilometres away in Chitrakonda – but boats across the reservoir stop plying after dusk
PHOTO • Jayanti Buruda
To help Praba Golori (left) with a very difficult childbirth, the nearest viable option was the sub-divisional hospital 40 kilometres away in Chitrakonda – but boats across the reservoir stop plying after dusk
PHOTO • Jayanti Buruda

प्रबा गोलोरी (बांवा) के जचगी के दिक्कत दूर करे के सबसे सुभीता तरीका इहे रहे कि उनकरा के चित्रकोंडा में 40 किलोमीटर दूर उप-जिला अस्पताल लेके जायल जाव– बाकिर गोधूलि बेला के बाद बांध के पार करे खातिर नाव चलल बंद हो जाला

कोटागुडा में रहे वाला गिनल-चुनल परिवार, सभे परोजा आदिवासी बा. ई लोग खुदे खाए खातिर खास करके हल्दी, अदरक, दाल आ धान उगावेला. एकरा अलावे, कुछ अउरी फसल भी उगावल जाला. ई सब के इहंवा घूमे आवे वाला खरीददारन के बेचल जाला.

पांच किलोमीटर दूर जोदंबो पंचायत इहंवा के सबसे नजदीक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र यानी पीएचसी बा. बाकिर इहंवा डॉक्टर के कोई अता-पता ना रहेला. जब अगस्त 2020 में प्रबा के बच्चा होखे वाला रहे, ओहि घरिया लॉकडाउन के चलते पीएचसी बंद हो गइल रहे. कुडुमुलुगुमा गांव के सरकारी अस्पताल इहंवा से करीब 100 किलोमीटर दूर रहे. आ अबकी बेर प्रबा के ऑपरेशन के जरूरत रहे, जेकर सुविधा एह सरकारी अस्पताल में ना रहे.

अब त एके गो उपाय बाचल रहे- चित्रकोंडा में 40 किलोमीटर दूर उप-जिला अस्पताल. बाकिर मुश्किल ई रहे कि चित्रकोंडा/बलीमेला जलाशय के पार नाव गोधूलि बेला के बाद चलल बंद हो जाला. ऊंच पहाड़ी के या त मोटरसाइकिल से पार कएल जा सकत रहे, या पैदल. दुनो तरीका नौ महीना के गरभ वाली प्रबा खातिर सही ना रहे.

हम मलकानगिरी जिला मुख्यालय में आपन जान-पहचान वाला लोग से मदद लेवे के कोशिश कइनी. सभे के इहे कहनाम रहे कि एतना खराब सड़क बा कि एम्बुलेंस भेजल मुश्किल बा. जिला अस्पताल में वाटर एम्बुलेंस सेवा बा, बाकिर उहो लॉकडाउन चलते ना चलत रहे.

मुश्किल बखत रहे. बाकिर हमहुं हार ना माने के ठानले रहीं. थोड़का देरी में हम उहंवा के आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) के निजी पिकअप वैन संगे आवे खातिर मना लेनी. करीब 1,200 रुपया पर बात भइल. फेर ऊ अगिला दिने भोरे ही आ सकत रहली.

The state's motor launch service is infrequent, with unscheduled suspension of services. A privately-run boat too stops plying by evening. So in an emergency, transportation remains a huge problem
PHOTO • Jayanti Buruda

सरकारी मोटर सेवा अनिश्चित बखत खातिर बंद होए से गड़बड़ा गइल बा. प्राइवेट नाव भी सांझ के बाद चलल बंद हो जाला. इमरजेंसी में आवल-जाएल एगो भारी समस्या ह

हमनी अस्पताल खातिर चल देनी. प्रबा के चढ़ाई वाला रस्ता से ओहि पार ले जाए के रहे. ऊ रस्ता अभी बनते रहे. ओहि पर थोड़का दूर गइला पर, वैन खराब हो गइल. अब त हमनी के फेरा में पड़ गइनी. ओहि घरिया सामने सीमा सुरक्षा बल के एगो ट्रैक्टर देखाई देल. ट्रैक्टर जलावन के लकड़ी लेके जात रहे. उनकरा से निहोरा कइल गइल. ऊ लोग हमनी के पहाड़ी के चोटी प ले गइल, जहंवा बीएसएफ के कैंप रहे. हंतलगुडा के ओहि शिविर के जवान लोग प्रबा के चित्रकोंडा के अस्पताल भेजे के व्यवस्था कइले.

अस्पताल पहुंचला पर स्टाफ बतवले कि प्रबा के ऑपरेशन इहंवा ना हो सकेला. एकरा खातिर इहंवा से भी 60 किलोमीटर दूर मलकानगिरी जिला मुख्यालय जाए के होई. ऊ लोग आगे जाए खातिर गाड़ी के इंतजाम करे में मदद कइलक.

हमनी देर दुपहरिया तक जिला अस्पताल पहुंच गइनी. इहंवा तक पहुंचे में पूरा एक दिन लाग गएल.

ओहिजा प्रबा के एडमिट कएल गएल. अगिला तीन दिन तक ऊ दरद से छटपटात रहली. डाक्टर आ मेडिकल स्टाफ सामान्य तरीका से जचगी करावे के कोशिश कइलन बाकिर सफलता ना मिलल. अंत में हमनी के बतावल गइल कि उनकर ऑपरेशन करे के होई.

ऊ 15 अगस्त के दिन रहे. सब मुसीबत के बाद आखिर में दुपहरिया में प्रबा के लइका भइल. बच्चा एकदम स्वस्थ रहे, ओकर वजन तीन किलो रहे. सब कोई राहत के सांस लेवते रहे कि डॉक्टर बतवले, लइका के हालत गंभीर बा. भइल ई रहे कि ओकर मल के रास्ता ना बनल रहे. एह से तुरंत ऑपरेशन के जरूरत रहे. बलुक मलकानगिरी जिला मुख्यालय के अस्पताल में एकर कवनो सुविधा ना रहे.

बात भइल कि बच्चा के कोरापुट के शहीद लक्ष्मण नायक मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल ले जाए के होई. अस्पताल इहंवा से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर त रहे बाकिर नया और जादे सुविधा वाला रहे.

Kusama Naria (left), nearly nine months pregnant, walks the plank to the boat (right, in red saree) for Chitrakonda to get corrections made in her Aadhaar card
PHOTO • Jayanti Buruda
Kusama Naria (left), nearly nine months pregnant, walks the plank to the boat (right, in red saree) for Chitrakonda to get corrections made in her Aadhaar card
PHOTO • Jayanti Buruda

कुसुमा नारिया (बांवा) के करीब नौ महीना के गर्भ बा, ऊ आपन आधार कार्ड ठीक करवावे खातिर नाव (दाहिना, लाल साड़ी में) से चित्रकोंडा जाए के तैयारी में बारी

बचवा के बाप पोडू गोलरी त अभी तक सदमा में रहस, आ महतारी अचेत. हम आशा कार्यकर्ता (जे पहिले वैन लेके कोटागुडा बस्ती आइल रहे) आ बच्चा के कोरापुट ले गइनी. ऊ बखत 15 अगस्त के सांझ के छह बजत रहे.

अस्पताल के एम्बुलेंस जवना में हमनी के आइल रहनी जा, ऊ तीन किलोमीटर गइला पर खराब हो गइल. दोसरा जवना के हम फोन करे में कामयाब भइनी, ऊ आउर 30 किलोमीटर चलल, फेरो खराब हो गइल. हमनी मूसलाधार बरखा के बीच, घनघोर जंगल में एगो आउरी एम्बुलेंस के इंतजार करत रहनी. आखिर में, लॉकडाउन के बीच आधा रात के बाद कोरापुट पहुंचनी.

उहंवा डॉक्टर लइका के सात दिन आईसीयू में रखलक. एही बीच हम प्रबा (पोडू के संगे) के बस में कोरापुट ले अइनी जेसे ऊ एक हफ्ता बाद आपन बच्चा के मुंह देख सकस. एकरा बाद डाक्टर लोग बतवलक कि ओहि लोग के पास बच्चा के ऑपरेशन करे खातिर जरूरी सुविधा नइखे.

बच्चा के दोसर अस्पताल ले जाए के पड़ी. ऊ अस्पताल इहंवा से इहे कुछ 700 किलोमीटर दूर रहे– बेरहमपुर (ब्रह्मापुर के नाम से भी जानल जाला) के एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल. हम एगो आउरी एम्बुलेंस, आ एगो आउर लमहर सफर खातिर तइयार रहनी.

एम्बुलेंस सरकारी रहे, बाकिर इलाका संवेदनशील होखे से हमनी के करीब 500 रुपया देवे के पड़ल. (ई खरचा हम आ हमार दोस्त उठइनी. अस्पताल आए-जाए में हमनी का कुल मिला के करीब 3,000-4000 रुपिया लागल). हमनी के, हमरा इयाद बा, बेरहमपुर के अस्पताल पहुंचे में 12 घंटा से ज्यादा बखत लागल.

People of Tentapali returning from Chitrakonda after a two-hour water journey; this jeep then takes them a further six kilometres to their hamlet. It's a recent shared service; in the past, they would have to walk this distance
PHOTO • Jayanti Buruda

दू घंटा नाव से सफर के बाद चित्रकोंडा से लवटत टेंटापल्ली के लोग; जीप ओहि लोग के आउरी छह किलोमीटर दूर बस्ती ले जाई. ई हाल में शुरू भइल शेयरिंग सर्विस हवे; पहिले त एतना दूर पैदल जाए के पड़त रहे

एह बीच हमनी के वैन, ट्रैक्टर, बस आउर एम्बुलेंस से चार अलग-अलग अस्पताल गइल रहनी– चित्रकोंडा, मलकानगिरी मुख्यालय, कोरापुट आउर बेरहमपुर. एह खातिर हमनी करीब 1000 किलोमीटर के दूरी तय क लेले रहनी.

हमनी के बतावल गइल कि ऑपरेशन बहुत नाजुक रहल. लइका के फेफड़ा भी खराब हो गइल रहे, जेकर कुछ हिस्सा काट के हटावे के पड़ल. पेट में एगो जगह छेट करे के पड़ल, जेसे मल निकालल जा सके. नियमित रूप से मल निकले, एह खातिर जगह बनावे ला दोसर ऑपरेशन के जरूरत रहे. बाकिर ऊ तबे कइल जा सकता जब बच्चा आठ किलो के हो जाए.

जब हम अंतिम बेर परिवार से बात कइनी, तब बच्चा आठ महीना के हो गइल रहे. पर तबो ओकर वजन आठ किलो ना भइल रहे. दोसरका ऑपरेशन बाकी रहे.

भारी दिक्कत से जन्मल बच्चा जब एक महीना के हो गइल, तब ओकर नामकरण में हमरा के बुलाइल गइल रहे. हम ओकर नाम मृत्युंजय रखनी– मौत पर विजय हासिल करेवाला. भारत के स्वतंत्रता दिवस के दिन, 15 अगस्त 2020, के आधा रात के ऊ नियति के संग जूझत रहे. फेरो अपना महतारी जइसन विजयी होके लौटल.

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प्रबा खातिर ई समय बहुत कष्ट वाला रहे. मलकानगिरी जिला के कई गो दूरदराज के आदिवासी बस्ती में सरकारी स्वास्थ्य सुविधा और बुनियादी ढांचा के हाल खस्ता बा. इहंवा अइसन हालत में मेहरारू लोग के बहुत जोखिम उठावे के परेला.

मलकानगिरी के 1,055 गांवन के कुल आबादी के 57 फीसदी हिस्सा आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) लोग ह. एह में परोजा आ कोया के हिस्सेदारी सबसे जादे बा. एक तरफ एह समुदाय आ क्षेत्र के संस्कृति, परंपरा आ प्राकृतिक संसाधन के उत्सव मनावल जाला, उहंइ दोसर ओरी इहंवा के लोग के स्वास्थ्य देखभाल के जरूरत के बहुत हद तक अनदेखा कइल जाला. इहंवा के भौगोलिक स्थिति (पहाड़ी, जंगली इलाका आ पानी) के संगे-संगे बरसों-बरस के लड़ाई आ राज्य के उपेक्षा के नतीजा ई भइल बा कि एह गांवन आ बस्ती के लोग के जीवन रक्षक सेवा आ सुविधा तक पहुंच कम से कम बा.

People of Tentapali returning from Chitrakonda after a two-hour water journey; this jeep then takes them a further six kilometres to their hamlet. It's a recent shared service; in the past, they would have to walk this distance
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‘मरद लोग के शायदे एहसास होला कि हमनी मेहरारू के भी दिल बा, हमनियो के दरद होला.' ऊ लोग के इहे बूझाला कि हमनी खाली बच्चा पैदा करे खातिर बानी'

मलकानगिरी जिला के कम से कम 150 गांवन में सड़क नइखे (पंचायती राज आ पेयजल मंत्री प्रताप जेना 18 फरवरी 2020 के विधानसभा में बतवले कि ओडिशा में कुल 1,242 गांव में सड़क नइखे).

एह में कोटागुडा से करीब दू किलोमीटर दूर टेंटापल्ली गांव भी शामिल बा. इहंवा सड़क नइखे. टेंटापल्ली में 70 बरिस बिता चुकल कमला खिल्लो कहत बारी, “बाबू, हमनी चारो ओरी से पानी से घेरायल बानी, हमनी के जियीं कि मरीं, केकरा फरक पड़त बा?” ऊ आगे कहतारी, “हमनी के त पूरा जिनगी एहि पानी देखत बितल बा, ई पानी औरतन आउर जवान लइकिन के दुख के आउर बढ़ा देवेला.”

बाकी गांवन में पहुंचे खातिर, जोडाम्बो पंचायत के टेंटापल्ली, कोटागुडा आ तीन गो अउरी बस्ती के लोग मोटर बोट से आवाजाही करेला. आवे-जाए में 90 मिनट से लेके चार घंटा से अधिका समय लग जाला. आपन इलाज बदे बस्ती से 40 किलोमीटर दूर चित्रकोंडा जाए ला नाव सबसे आसान रस्ता बा. सरकारी अस्पताल इहंवा से 100 किलोमीटर दूर बा. अस्पताल पहुंचे खातिर इहंवा के लोग के पहिले नाव लेवे के होला, ओकरा बाद बस चाहे शेयर सवारी वाला जीप से आगे के सफ़र तय करे के पड़ेला.

जल संसाधन विभाग इहंवा जे मोटर सेवा शुरू कइले रहे, ऊ बेर-बेर आ बेटाइम बंद होखला के कारण भरोसा के लायक नइखे रह गइल. एकरा अलावा ई नाव दिन भर में एके बेर जाले आउर वापसी करेले. प्राइवेट पावर बोट के टिकट में 20 रुपया लगेला, ई सरकारी बोट के टिकट के दाम से 10 गुना जादे बा. इहे ना, प्राइवेट बोट सांझ के बाद ना चले, एह से इमरजेंसी में अस्पताल आइल-गइल एगो बहुत बड़का दिक्कत बन जाला.

कुसुम नारिया (20 बरिस के महतारी) कहेली, “चाहे आधार कार्ड के काम होखे, चाहे डॉक्टर से मिले के- हमनी के अंतिम आसरा एही बोट बा. एहि से मेहरारू लोग जचगी बदे अस्पताल जाए के ना चाहेली.” कुसुम के तीन गो लइका बारन.

Samari Khillo of Tentapali hamlet says: 'We depend more on daima than the medical [services]. For us, they are doctor and god’
PHOTO • Jayanti Buruda
Samari Khillo of Tentapali hamlet says: 'We depend more on daima than the medical [services]. For us, they are doctor and god’
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’टेंटापल्ली बस्ती के सामरी खिल्लो कहत बारी, 'हमनी के मेडिकल (सेवा) से जादे दाई के आसरे बानी. हमनी खातिर ऊहे डाक्टर, आ ऊहे भगवान ह’

खिल्लो के कहनाम बा, “अइसे त आशा कार्यकर्ता ए दूर-दराज के बस्ती के दौरा करेली, बाकिर इहंवा के आशा दीदी लोग के जादा अनुभव या, जानकारी ना ह. ई लोग गर्भवती महिला के आयरन आ फोलिक एसिड के गोली, आउर खाद्य सप्लिमेंट देवे खातिर महीना में सिरिफ एक या दू बेर आवेली. लइकन के टीकाकरण के सब रिकार्ड आधा-अधूरा बनल बा, आ एने-ओने बिखरल रहेला. जब कवनो मेहरारू के जचगी मुश्किल होखे के अंदेशा होला, त ऊ लोग गर्भवती महिला संगे अस्पताल पहुंच जाले.

एहिजा के गांवन में ना त टेम-टेम पर बइठक होला, ना जागरूकता शिविर लगावल जाला. मेहरारू आ किशोरी लइकियन संगे ओहि लोग के सेहत से जुड़ल चिंता के बारे में कवनो बतकही ना होला. आशा कार्यकर्ता लोग के स्कूल भवन में जवन बैठक करे के होला, उहो बहुत कम होला. ई सब के पीछे कारण इहे ह कि कोटागुडा में स्कूल नइखे (अइसे त टेंटापल्ली में स्कूल बा, बाकिर उहंवा टीचर रोज ना आवेलन) आ आंगनबाड़ी के इमारत भी पूरा नइखे बनल.

एह इलाका के आशा कार्यकर्ता जमुना खारा के कहनाम बा कि जोडाम्बो पंचायत के अस्पताल में खाली छोट-मोट बेमारी के इलाज हो सकेला. गर्भवती महिला के सेहत से जुड़ल जटिल मामला खाती इहंवा कवनो सुविधा नइखे. एहि से ऊ आउर बाकी दीदी लोग चित्रकोंडा के सरकारी अस्पताल जायल पसंद करेले. ऊ बतावत बारी, “बाकिर ई बहुत दूर बा, आउर सड़क से इहंवा आएल संभव नइखे. नाव से सवारी रिस्क वाला बा. सरकारी मोटर सेवा हर बखत मिलेला न. इहे सब कारण से हमनी के बरसों-बरस से दाइमां (ट्रेडिशनल बर्थ अटेंडेंट, टीबीए) के आसरे बानी.”

टेंटापल्ली बस्ती के रहेवाली, परोजा आदिवासी समरी खिल्लो एकर पुष्टि करेली, “हमनी के मेडिकल (सेवा) से जादे दाइमां प आश्रित बानी. हमार तीन गो लइका एहिलोग के मदद से भइल. हमनी के गांव में तीन गो दाई लोग बा.”

इहंवा के लगभग 15 गो बस्ती के मेहरारू लोग 'बोढकी डोकरी' के आसरे बा- देसी भाषा में जचगी करावे वाली दाई लोग के इहे कहल जाला. समरी आगे कहेली, “ई लोग हमनी खाती वरदान बा, काहे कि एहि लोग के कारण हमनी के बिना अस्पताल गइले सुरक्षित रूप से महतारी बन सकतानी.” ऊ बतावत बारी, “हमनी खाती ऊ लोग डॉक्टर आउर भगवान हवे. मेहरारू के रूप में उहे लोग हमनी के पीड़ा समझेला. मरद लोग के त तनिको ना बूझाला कि हमनियो के इंसान बानी, हमर दिल बा आ ओमें दरद होला. ई लोग के बुझाला हमनी बच्चा पैदा करे खाती जन्मल बानी. का हमनी बच्चा पैदा करेके मशीन बानी?”

Gorama Nayak, Kamala Khillo, and Darama Pangi (l to r), all veteran daima (traditional birth attendants); people of around 15 hamlets here depend on them
PHOTO • Jayanti Buruda

गोरमा नायक, कमला खिल्लो आ दारामा पांगी (बांवा से दहिना), सभ जानकार आउर सियान दाई (पारंपरिक जन्म परिचारिका); इहंवा के लगभग 15 बस्ती के लोग इनकरे आसरे बा

इहंवा के दाई लोग जवन मेहरारू के बच्चा ना ठहरेला उनका दवाई आ जड़ी-बूटी देवेला. ई जड़ी-बूटी काम ना करे, त केतना बेर उनकर घरवाला दोसर बियाह कर लेवेलन.

कुसुम नरिया के बियाह 13 बरिस के बाली उमिर में हो गइल रहे. जब तक ऊ 20 बरिस के भइली, तीन गो बच्चा हो गइल रहे. ऊ हमरा के बतवली कि उनकरा माहवारी के बारे में भी पता ना रहे, गर्भनिरोधक त दूर के बात बा. ऊ कहेली, “ओहि घरिया हम एगो बच्चा रहनी. हमरा कुछुओ ना मालूम रहे. लेकिन जब ई (माहवारी) भइल त माई कपड़ा दिहलक. फेर हमर बियाह क देली, ई कहली कि हम एगो बड़ लइकी बन गइल बानी. तब हमरा देह के संबंध के बारे में भी कुछुओ ना पता रहे. पहिला जचगी बखत घरवाला हमरा के अस्पताल में अकेले छोड़ देले रहले. उनकरा बच्चा के मरला के कवनो परवाह ना रहे– काहे कि ऊ एगो लइकी रहे. बाकिर हमार लइकी बाद में बच गइल.”

कुसुम के दू गो अउरी लइका ह. ऊ बतावत बारी, “जब हम पहिलका जचगी के थोड़के दिन बाद एगो आउर बच्चा करे से मना क देनी त हमरा से मार-पीट कइल गइल. काहे कि सभ के जल्दी जल्दी लइका (बेटा) चाहत रहे. ओ बखत ना त हमरा, आ ना हमरा घरवाला के दवाई (गर्भनिरोधक) के बारे में कुछु पता रहे. अगर पता रहित त हमरा एतना झेले के ना पड़ित. बाकिर बच्चा पैदा करे के विरोध कइले रहतीं त हमरा के घर से भगा दिहल जाइत.”

कोटागुडा में प्रबा, कुसुम के घर से थोड़िके दूर रहेली. ऊ एक दिन हमरा से बतवली, “विश्वास नइखे होत कि हम जिंदा बानी. तब जवन सब होत रहे, पता ना ओकरा के हम कइसे झेलनी. भयानक दर्द होत रहे, भाई रोवत रहे, अइसन दर्द में हमरा के देख ना पावत रहे. फेर एह अस्पताल से ओहि अस्पताल के चक्कर, आपन बच्चा के मुंह केतना दिन बाद देखे के मिलल. हम एह सब कइसे झेल गइनी, मालूम ना. भगवान से प्रार्थना करतानी कि केहु के साथ अइसन ना होखे. बाकिर हमनी के सभे घाटी (पहाड़ी) के लइकी हईं, हमनी के जिनगी एक जइसन बा.”

प्रबा के जचगी, मृत्युंजय के जन्म- एहिजा गांवन में सभ मेहरारूवन के कहानी एक्के बा. आदिवासी भारत के एह इलाका में मेहरारू लोग बच्चा कइसे पैदा करेली, भारी अचंभा के बात बा. बाकिर मलकानगिरी में का होखत बा, केहू के का परवाह बा!

पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.

रउआ ई लेख के छापल चाहत कइल चाहत बानी ? बिनती बा [email protected] पर मेल करीं आ एकर एगो कॉपी [email protected] पर भेज दीहीं.

अनुवाद : स्वर्ण कांता

Jayanti Buruda

Jayanti Buruda of Serpalli village in Malkangiri, Odisha, is a full-time district reporter for Kalinga TV. She focuses on stories from rural areas, and on livelihoods, culture and health education.

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Labani Jangi is a 2020 PARI Fellow, and a self-taught painter based in West Bengal's Nadia district. She is working towards a PhD on labour migrations at the Centre for Studies in Social Sciences, Kolkata.

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Editor : Pratishtha Pandya

Pratishtha Pandya is a Senior Editor at PARI where she leads PARI's creative writing section. She is also a member of the PARIBhasha team and translates and edits stories in Gujarati. Pratishtha is a published poet working in Gujarati and English.

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Series Editor : Sharmila Joshi

Sharmila Joshi is former Executive Editor, People's Archive of Rural India, and a writer and occasional teacher.

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Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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