कोहिनूर बेगम इयाद करत बाड़ी, “हमार अब्बू (बाबूजी) दिहाड़ी मजदूरी करत रहस. बाकिर उनकरा मछरी पकड़े के शौक रहे. ऊ खाए खातिर कइसहूं कइसहूं एक किलो चाउर के पइसा उपरा लेत रहस… आउर फेरु निकल जात रहस! हमार अम्मी (माई) के सभे कुछ सम्हारे के पड़ल.” बेलडांगा के उत्तरपारा इलाका के आपन घर के छत पर बइठल कोहिनूर हमनी से बतियावत बाड़ी.

“सोचीं, उहे एक किलो चाउर में, ऊ आपन चार गो लरिका, दादी, बाबूजी, चाची आउर आपन पेट पालत रहस.” कोहिनूर तनी देर ठहरली, आ फेरु बतावे लगली, “आउर ओह पर मुसीबत ई रहे, अब्बू ओतने चाउर में से आपन मछरी के चारा खातिर भी मांग लेत रहस. हमनी त उनकर बुद्धि के बलिहारी रहनी.”

कोहिनूर आपा (बहिन), बंगाल के मुर्शिदाबाद में जानकी नगर प्राथमिक विद्यालय प्राइमरी स्कूल में मिड-डे मील बनावेली. आपन खाली बखत में, ऊ बीड़ी बांधे के काम करेली. एहि लगले एह काम में लागल मेहरारू लोग के अधिकार खातिर मुहिम भी चलावेली. मुर्शिदाबाद में, सबसे गरीब तबका के मेहरारू लोग बीड़ी बनावे के काम करेला. कम मजदूरी आउर देह खटावे वाला एह काम करे से, छोट उमिर में ओह लोग के तबियत पस्त होखे लागेला. पढीं: बीड़ी बांधे में धुंआ होखत महिला मजदूरन के जिनगी

दिसंबर, 2021 के बात होई. कोहिनूर आपा बीड़ी मजदूरिन खातिर चल रहल एगो अभियान में लागल रहस. ओहि घरिया उनकरा एह रिपोर्टर से भेंट भइल. बाद में, कोहिनूर आपा तनी फुरसत में भइली, त विस्तार से बात होखे लागल. ऊ आपन बचपन के याद करे लगली. बात-बात में ऊ आपन लिखल एगो गीत भी सुनइली. गीत जे बीड़ी मजदूरी करे वाली मेहरारू लोग के बदहाल जिनगी आउर नाइंसाफी के बात करेला.

कोहिनूर आपा सभे कुछ याद करे लगली. ऊ बतइली, जब ऊ छोट रहस, उनकर परिवार के माली हालत ठीक ना रहे. एकरा चलते घर के माहौल बहुत खराब रहत रहे. एगो छोट बच्ची ई सभ देख के परेसान रहे. ऊ कहली, “हम ओह घरिया नौ बरिस के होखम. एक दिन घर के रोज के खटखट के बीच हमर नींद खुलल. हम देखनी, अम्मी सुबक सुबक के रोअत रहस. ऊ कोयला, गोइठा आउर लकड़ी से माटी के चूल्हा जलावे में लागल रहस. बाकिर आज पकावे खातिर घर में कुछो ना रहे.”

बावां: बेगम आपन माई संगे, माई के संघर्ष उनकर समाज में आपन जगह बनावे खातिर लड़े के सिखावेला. दहिना: दिसंबर 2022, मुर्शिदाबाद, बरहामपुर में कोहिनूर एगो रैली के अगुआई करत बाड़ी. फोटो साभार: नशिमा खातून

घर के अइसन हालत देखके नौ बरिस के लइकी के दिमाग कुछ सोचे लागल. फेरु “हम भाग के बड़का कोयला डिपो के मालिक के घरवाली से मिले गइनी. उनकरा से बिनती कइनी. कहनी, ‘काकी मां, हमरा के कोयला चाहीं, देहम?’” ऊ उत्साह से याद करत बाड़ी. “तनी चिरौरी कइला के बाद, ऊ मान गइली. हम उनकरा डिपो से रिक्सा पर कोयला लावे के सुरु कर देहनी. भाड़ा में हमरा 20 गो पइसा खरचा हो जात रहे.”

जिनगी एंहिगे चले लागल. कोहिनूर 14 बरिस के भइली. अब ऊ उत्तरपारा आपन गांव आउर एकरा लगे के बाजार में टुकड़ा वाला कोयला बेचे लगली. कबो इहो बखत रहे कि ऊ आपन कमजोर कंधा पर 20 किलो कोयला ढोवत रहस. ऊ बतावे लगली, “हमरा जादे पइसा त ना मिलत रहे, पर एकरा से हमनी के पेट भरे के इंतजाम हो जात रहे.”

पहिले पहिले त उनकरा एह बात के बहुत खुशी रहे कि आपन परिवार के मदद कर पावत बाड़ी. बाकिर धीरे धीरे कोहिनूर के ई सब से मन उठे लागल. उनकरा लागे लागल कि ऊ जिनगी में हार रहल बाड़ी. ऊ कहली, “रोड पर कोयला बेचत बइठल रहीं, त सामने लइकी लोग के स्कूल जात देखीं. देखीं कि जवान लइकी सभ अपना कान्हा (कंधा) पर बैग लटकइले कॉलेज जात बाड़ी, ऑफिस जात बाड़ी. हमरा अपना ऊपर तरस आवे लागल.” ई सब बतावत-बतावत कोहिनूर के आवाज भारी होखे लागल. ऊ आंख में आवत लोर के जबरदस्ती रोकली, “हमरो त कान्हा पर बैग लेके कहीं जाए के रहे…”

ओही घरिया के उनकर बेचैनी आउर परेसानी दूर करे उनकर चचेरा भाई सामने अइलन. कोहिनूर आपा के चचेरा भाई उनका के महिला स्वयं-सहायता समूह के बारे में बतइलन. ओह लोग से भेंट करवइलन. ई समूह नगर निगम के दायरा में आवत रहे. “अलग अलग घर में कोयला बेचत बखत, हमरा बहुते मेहरारू लोग से भेंट होखे. हम ओह लोग के दुख तकलीफ जानत रहनी. हम जिद कइनी कि नगर पालिका हमरा एगो आयोजक के रूप में रख लेवे.”

कोहिनूर आपा के शुरुआती पढ़ाई नइखे भइल. एहि बात, उनकर चचेरा भाई के हिसाब से समस्या बन गइल. पढ़ल-लिखल ना होखे के कारण उनकरा ओह काम खातिर योग्य ना मानल गइल. एह काम में अकाउंट के किताब भी संभारे के रहत रहे.

ऊ बतइली, “हमरा खातिर ई कवनो समस्या ना रहे. बाकिर हमार गिनती आउर गणित दूनो खराब रहे. हम कोयला बेचत-बेचत इहो सीख लेहनी.” कोहिनूर भरोसा दिलइली कि ऊ कवनो तरह के गलती ना करिहन. बस ऊ एके गो निहोरा कइली कि उनकरा चचेरा भाई से सभे कुछ डायरी में लिखे में मदद चाहीं. “बाकी त हम सब संभाल लेहम.”

Kohinoor aapa interacting with beedi workers in her home.
PHOTO • Smita Khator
With beedi workers on the terrace of her home in Uttarpara village
PHOTO • Smita Khator

बावां: कोहिनूर आपा आपन घर में, बीड़ी बांधे वाली मजदूर मेहरारू से बतियावत बाड़ी. दहिना: उत्तरपारा गांव के आपन घर के छत पर बीड़ी मजदूर संगे

आउर ऊ इहे कइली. उहंवा के स्वयं सहायता समूह खातिर काम करे से कोहिनूर के बहुत फायदा भइल. उनकरा जादेकर के मेहरारू लोग, जे में से कई लोग बीड़ी बनावे वाला रहे, के नजदीक से जाने के मौका मिलल. ऊ धीरे-धीरे बचत करे, समूह बनावे, एकरा से उधारी लेवे आउर फिर से चुकावे जइसन काम सीख गइली.

अइसे त, कोहिनूर के पइसा के हमेशा परेसानी रहल. बाकिर जमीन से जुड़ के काम कइल उनकरा खातिर ‘बेशी अच्छा अनुभव’ साबित भइल. काहेकि एह काम से “हमर राजनीतिक चेतना बढ़े लागल. कुछो गलत होवत देखीं त बहस करे लागीं. मजदूर संगठन संगे घनिष्ठ संबंध बनल.”

कोहिनूर के काम परिवार के ना सुहाइल. “एहि से ऊ लोग हमर बियाह कर देलक.” जब ऊ 16 बरिस के रहस, उनकर बियाह जमालुद्दीन शेख से हो गइल. अभी ऊ लोग के तीन गो लरिका भी बा.

भाग अच्छा रहे बियाह के बादो कोहिनूर आपा आपन पसंद के काम करत रहली. “हम आपन आस-पास सभे कुछ देखत रहनी. हमरा आपन जइसन मेहरारू के अधिकार खातिर लड़े वाला जमीनी संगठन भाए लागल. ओह लोग संगे हमार जुड़ाव बढ़त रहल.” जलालुद्दीन प्लास्टिक आउर कचरा बटोरेवाला काम करत रहस. एहि बीच कोहिनूर आपा स्कूल के काम में लागल रहली. ऊ मुर्शिदाबाद जिला बीड़ी मजदूर आउर पैकर्स यूनियन संगे भी जुड़ गइली. कोहिनूर आपा बीड़ी बनावे वाला मजदूर मेहरारू लोग के अधिकार, बराबरी खातिर आवाज उठावे आउर लड़े लगली.

कोहिनूर लगे रखल नारियल तेल के डिब्बा उठइली, फेरु ओकरा अपना अंजुरी में ढारत कहे लगली, “हमरा खाली एतवार के भोरे में तनिका देर खातिर छुट्टी मिलेला.” एकरा बाद तेल के आपन घना केस में लगाके खूब नीमन से कंघी करे लगली.

केस बनइला के बाद, कोहिनूर ओढ़नी से आपन माथ ढंक लेहली. फेरु सोझे लागल शीशा निहरत कहली, “आज हमरा एगो गाना गावे के मन करत बा.”

वीडियो देखीं: मेहनतकश औरत के गीत

বাংলা

একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

শ্রমিকরা দল গুছিয়ে
শ্রমিকরা দল গুছিয়ে
মিনশির কাছে বিড়ির পাতা আনতে যাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

পাতাটা আনার পরে
পাতাটা আনার পরে
কাটার পর্বে যাই রে যাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

বিড়িটা কাটার পরে
পাতাটা কাটার পরে
বাঁধার পর্বে যাই রে যাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
ওকি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

বিড়িটা বাঁধার পরে
বিড়িটা বাঁধার পরে
গাড্ডির পর্বে যাই রে যাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

গাড্ডিটা করার পরে
গাড্ডিটা করার পরে
ঝুড়ি সাজাই রে সাজাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

ঝুড়িটা সাজার পরে
ঝুড়িটা সাজার পরে
মিনশির কাছে দিতে যাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

মিনশির কাছে লিয়ে যেয়ে
মিনশির কাছে লিয়ে যেয়ে
গুনতি লাগাই রে লাগাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

বিড়িটা গোনার পরে
বিড়িটা গোনার পরে
ডাইরি সারাই রে সারাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই
একি ভাই রে ভাই
আমরা বিড়ির গান গাই

ডাইরিটা সারার পরে
ডাইরিটা সারার পরে
দুশো চুয়ান্ন টাকা মজুরি চাই
একি ভাই রে ভাই
দুশো চুয়ান্ন টাকা চাই
একি ভাই রে ভাই
দুশো চুয়ান্ন টাকা চাই
একি মিনশি ভাই
দুশো চুয়ান্ন টাকা চাই।

भोजपुरी

सुनीं ए भइया, सुनीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

अइली हो भइया, मजदूर बहिनी
जुटली हो भइया, मजदूर बहिनी
मुंशी (बिचौलिया) के घरवा, जुटली हो भइया
बीड़ी के पतवा, लइली हो भइया
सुनीं ए भइया, सुनीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

केंदू के पतवा लइनी जे भइया
केंदू के पतवा लइनी जे भइया
मोड़नी ए भइया, कटनी ए भइया
सुनीं ए भइया, सुनीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

कट गइल पतवा, देखीं ए भइया
कट गइल पतवा, देखीं ए भइया
कसनी ए भइया, देखीं ए भइया
सुनीं ए भइया, समझीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

देखीं ए भइया, बन गइल भइया,
हमनी के बीड़िया बन गइल भइया
बंडल (गड्डी) बनावे के आइल बेरिया
सुनीं ए भइया, समझीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

बन गइल बंडलवा, सुनीं ए भइया
बन गइल बंडलवा, देखीं ए भइया
अब कइल जाई पैकिंग ए भइया
सुनीं ए भइया, समझीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

टोकरी में बीड़िया लइनी ए भइया
टोकरी के बीड़िया बंधनी ए भइया
मुंशी के घरवा लइनी ए भइया
सुनीं ए भइया, समझीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

मुंशी के घरवा अइनी हो भइया
मुंशी के घरवा अइऩी हो भइया
चलीं मिलाईं बीड़िया हो भइया
सुनीं ए भइया, समझीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

सभे हिसबवा मिलइनी ए भइया
सभे हिसबवा मिलइनी ए भइया
डायरी में एकरा लिखनी ए भइया
सुनीं ए भइया, समझीं ए भइया
हमनी के गीतवा
बीड़ी के गीतवा
सुनीं ए भइया, मजदूर बहिनी के गीतवा

दिहाड़ी के बेरिया आइल हो भइया
कमाई के बेरिया आइल हो भइया
हमनी के मजदूरी दीहीं ए भइया
सुनीं हो भइया समझीं हो भइया
मजदूरिए खातिर गइनीं हम गीतवा
एतने रुपइया त भइल हो भइया
दू सौ चउअन रुपइया, दू सौ चउअन रुपइया
सुनीं हो भइया, मुंशी भइया
हमनी के मजदूरी दिलाईं ए भइया
सुनीं ए भइया, हथवा जोड़त हईं भइया
हमनी के चाहीं एतने रुपइया
सुनीं ए भइया
ए मुंशी भइया

गीत के क्रेडिट

बंगाली गीत: कोहिनूर बेगम

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Smita Khator

Smita Khator is the Translations Editor at People's Archive of Rural India (PARI). A Bangla translator herself, she has been working in the area of language and archives for a while. Originally from Murshidabad, she now lives in Kolkata and also writes on women's issues and labour.

Other stories by Smita Khator
Editor : Vishaka George

Vishaka George is Senior Editor at PARI. She reports on livelihoods and environmental issues. Vishaka heads PARI's Social Media functions and works in the Education team to take PARI's stories into the classroom and get students to document issues around them.

Other stories by Vishaka George
Video Editor : Shreya Katyayini

Shreya Katyayini is a filmmaker and Senior Video Editor at the People's Archive of Rural India. She also illustrates for PARI.

Other stories by Shreya Katyayini
Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

Other stories by Swarn Kanta