उत्तरी तमिलनाडु में तिरूवल्लूर जिला के तटीय इलाका में बसल गांव सभ के सीमा के रखवाली करे वाला एगो देवता बाड़न, कन्निसामी. मछुआरा समुदाय के रक्षा करे वाला ई देवता, समुदाये के कवनो आदमी जइसन लउकेलन- चटख रंग के बुश्शर्ट, वेटि (उज्जर धोती) संगे टोपी पहिनले. मछुआरा लोग समुंदर में जाए से पहिले उनकरा से आशीर्वाद लेवेला, सुरक्षित लउटे खातिर उनकरा आगू हाथ जोड़ेला.

मछुआरा लोग कन्निसामी के अलग-अलग अवतार के पूजेला. एह पूजा के उत्तरी चेन्नई से पलवेरकाडू (पुलिकट के नाम से मशहूर) तकले बहुते नाम बा.

एन्नुर कुप्पम के मछुआरा लोग कन्निसामी के मूरति कीने खातिर मोटा-मोटी सात किमी दूर अतिपट्टू आवेला. हर बरिस ई उत्सव जून में होखेला आउर एक हफ्ता ले मनावल जाला. हमरा साल 2019 में एह गांव के मछुआरा लोग के एगो टोली संगे यात्रा करे के मौका भेंटाइल. हमनी उत्तरी चेन्नेई के एगो थर्मल पावर प्लांट लगे कोसस्तलैयार नदी पहुंचनी आउर फेरु अतिपट्टू गांव ओरी पैदले चल पड़नी.

गांव में हमनी एगो दूतल्ला घर पहुंचनी. उहंवा भूइंया (जमीन) पर एक कतार में कन्निसामी के तरह-तरह के मूरति धइल रहे. मूरित सभ उज्जर कपड़ा में लपेटल रहे. चालीस बरिस के आस-पास के एगो मरद, धारी वाला उज्जर बुश्शर्ट आउर माथ पर तिरुनीर (पवित्र राख) लगइले, मूरति सभ के सामने कपूर जरावत रहस. ऊ मूरति के मछुआरा के कांधा पर धरे से पहिले, ओकर पूजा (पूजाई) करत बाड़न.

Dilli anna makes idols of Kannisamy, the deity worshipped by fishing communities along the coastline of north Tamil Nadu.
PHOTO • M. Palani Kumar

दिल्लि अन्ना, उत्तरी तमिलनाडु के समुद्री तट पर मछरी पकड़े वाला समुदाय के इष्ट कन्निसामी के मूरति बनावेलन

दिल्लि अन्ना से हमार ई पहिल मुलाकात रहे. माहौल अइसन रहे कि हम उनकरा से कवनो तरह के बात ना कर पइनी. आपन कांधा पर मूरित धइले लउट रहल मछुआरा लोग संगे हमहूं लउट अइनी. कोसस्तलैयार नदी किनारे चार किमी पैदल चलला आउर तीन किमी नाव के सवारी कइला के बाद हमनी एन्नुर कुप्पम पहुंचनी.

गांव पहुंचला पर मछुआरा लोग एगो मंदिर लगे मूरति के सरिया (संभाल) के लगा देलक. पूजा खातिर जवन चीज के जरूरत रहे, मूरति के सोझे धर देहल गइल रहे. अन्हार होखे लागल त दिल्लि अन्ना कुप्पम अइले. गांव के लोग धीरे-धीरे मूरति के चारों ओरी जुटे लागल. दिल्ला अन्ना मूरति पर से उज्जर कपड़ा हटइलन आउर माई (काजल) से कन्निसामी के आंख के पुलती काढ़लन (बनइलन). मूरति के आंख खुले के ई प्रतीक होखेला. एकरा बाद, मुरगा के बलि देवल गइल. मानल जाला कि अइसन बलि देला से दुष्ट आत्मा दूर रहेला.

एकरा बाद कन्निसामी के मूरति सभ गांव के सीमा पर लावल जाला.

एन्नोर के तटीय आउर मैंग्रोव इलाका हमरा कइएक खास लोग से भेंट करवा चुकल बा. ओह में से दिल्लि अन्ना सबले महत्वपूर्ण बाड़न. उहां के आपन सगरे जिनगी कन्निसामी मूरति बनावे में समर्पित कर देले बानी. जब हम मई (2023) में अतिपट्टू के उनकर घर गइनी त उहंवा अलमारी में कवनो तरह के घरेलू, चाहे सजावटी सामान ना धइल रहे. सभे ओरी माटी, भूसा आउर मूरति धइल रहे. सउंसे घर माटी के सोंध-सोंध महक से मह-मह करत रहे.

कन्निसामी मूरति बनावे खातिर जे माटी लेहल जाला, ओह में सबले पहिले आपन गांव के सीमा के एक मुट्ठी माटी जरूर मिलावल जाला. दिल्लि अन्ना, 44 बरिस, के कहनाम बा, “अइसन करे से देवता-पित्तर लोग आशीर्वाद देवेला, बुरा शक्ति से लड़े के ताकत देवेला. हमार परिवार, केतना पीढ़ी से कन्निसामी के मूरति बना रहल बा. बाऊजी रहस, त हमरा एह में तनिको रुचि ना रहे. साल 2011 में बाबूजी चल बसले. एकरा बाद, आस-पास के सभे कोई कहे लागल बाऊजी के बाद तोहरे एकरा संभारे के बा… एहि से हम ई करे लगनी. हमरा अलावे केहू हई काम नइखे कर सकत.”

The fragrance of clay, a raw material used for making the idols, fills Dilli anna's home in Athipattu village of Thiruvallur district.
PHOTO • M. Palani Kumar

मूरति जवन माटी से तइयार कइल जाला, ओकर गमक से तिरूवल्लूर जिला के अतिपट्टू गांव के दिल्लि अन्ना के घर दम-दम महकत बा

Dilli anna uses clay (left) and husk (right) to make the Kannisamy idols. Both raw materials are available locally, but now difficult to procure with the changes around.
PHOTO • M. Palani Kumar
Dilli anna uses clay (left) and husk (right) to make the Kannisamy idols. Both raw materials are available locally, but now difficult to procure with the changes around.
PHOTO • M. Palani Kumar

दिल्लि अन्ना माटी (बावां) आउर भूसा (दहिना) मिलाके कन्निसामी के मूरति बनावेलन. दूनो चीज गांवे में भेंटा जाला, बाकिर बखत बदले के चलते अब ई सभ मिलल मुस्किल भइल जात बा

दिल्लि अन्ना दस दिन में, आठ घंटा रोज काम करके मोटा-मोटी दस गो मूरति तइयार कर सकेले. एक बरिस में ऊ 90 गो मूरति बना लेवेलन. “एगो मूरति बनावे में हमरा 10 दिन लाग जाला. सबले पहिले, हमनी के माटी काट के लावे के होखेला. एकरा बाद एह में से कंकड़-पत्थर चुन के साफ कइल जाला. फेरु माटी में बालू आउर भूसा मिलावल जाला,” दिल्लि अन्ना सरिया के समझावे लगलन. भूसा से मूरति के ढ़ाचा के मजबूती मिलेला एहि से मूरित पर भूसा के तह देवल जाला.

“मूरति बनावे के सुरु कइला से लेके मूरति तइयार होखे तक, हम अकेले ही काम करिले. साथे मदद खातिर केहू के रखेला, हमरा लगे पइसा नइखे,” ऊ कहले. “पूरा काम छांह में बइठ के करे के होखेला. घाम में कइल गइल त माटी चिपकी ना, आउर सूखला पर चटक जाई. मूरित जब तइयार हो जाला, एकरा आग में तपावल जाला. पूरा काम में कमो ना त 18 दिन लागेला.”

दिल्लि अन्ना अतिपट्टू के आस-पास के गांव, खास करके एन्नुर कुप्पम, मुगतिवार कुप्पम, तालनकुप्पम, काट्टुकुप्पम, मेट्टूकुप्पम, पलतोट्टिकुप्पम, चिन्नकुप्पम, पेरियकुलम में मूरति भेजेले.

त्योहार घरिया सभे गांव के लोग आपन-आपन सीमा पर कन्निसामी के मूरति स्थापित करेला. केहू के कन्निसामी के मरद रूप वाला मूरति चाहीं, केहू मेहरारू रूप वाला मूरति मांगेला. देवी रूप के पापाति अम्मन, बोम्मति अम्मन, पिचई अम्मन जइसन तरह-तरह के नाम से बुलावल जाला. गांव के लोग इहो चाहेला कि ऊ लोग के ग्राम देवता घोड़ा या हाथी पर सवार होखस आउर बगल में कुकुर के मूरति होखे,. अइसन मानल जाला कि रात में देवता प्रकट होखेलन आउर खेल खेलेलन. अगिला दिन भोर में जमीन पर देवता लोग के गोड़ के निसान देखल जा सकेला.

दिल्लि अन्ना कहले, “कहूं कहूं के मछुआरा लोग हर बरिस कन्निसामी के नया मूरति स्थापित करेला. त उहंई दोसरा जगह दू, चाहे चार साल बाद मूरति बदलल जाला.”

Dilli anna preparing the clay to make idols. 'Generation after generation, it is my family who has been making Kannisamy idols'.
PHOTO • M. Palani Kumar

दिल्लि अन्ना मूरति बनावे खातिर माटी तइयार कर रहल बाड़न. ‘केतना पीढ़ी से हमनी के परिवार कन्निसामी मूरति बना रहल बा’

The clay is shaped into the idol's legs using a pestle (left) which has been in the family for many generations. The clay legs are kept to dry in the shade (right)
PHOTO • M. Palani Kumar
The clay is shaped into the idol's legs using a pestle (left) which has been in the family for many generations. The clay legs are kept to dry in the shade (right)
PHOTO • M. Palani Kumar

एगो मूसल (बावां) से माटी के आकार देके मूरति के गोड़ बनावल जात बा. ई मूसल परिवार में बहुते पीढ़ी से चलल आवत बा. माटी के गोड़ बना के छांह (दहिना) में सूखे खातिर धइल बा

अइसे त एह गांव के मछुआरा लोग में मूरति के मांग ना त कम भइल, ना बंद. बाकिर दिल्लि अन्ना के चिंता लाग गइल बा. ऊ सोचत बाड़न जवन काम के ऊ पछिला तीन दशक से कर रहल बाड़न, ओकरा आगू के लेके जाई. उनकरा खातिर अब ई काम में पड़ता (गुंजाइश) नइखे पड़त, “आजकाल त मूरति में लागे वाला माल के दाम आसमान छूवे लागल बा… जदि हम ओह आधार पर मूरति के भाव लगाईं, त ग्राहक लोग पूछे लागेला कि एतना भाव काहे बढ़इले बाड़. बाकिर हमनिए जानत बानी के एकरा बनावे में हमनी के केतना मुस्किल आवत बा.”

उत्तरी चेन्नई के तटीय इलाका में विद्युत संयंत्र के गिनती बढ़ल जात बा. एकर परिणाम बा कि धरती के भीतरी के पानी (भूजल) खारा भइल जात बा. एकरा से माटी पर असर पड़त बा. खेती-बारी के काम कम हो गइल बा. दिल्लि अन्ना के मूरति तइयार करे वाला माल खातिर भटके के पड़ेला. ऊ शिकायत करत बाड़न, “आजकाल, हमरा माटी कहूं ना भेंटाला.”

उनकर कहनाम बा कि माटी खरीदल बहुते महंग पड़त बा आउर, “हम एहि से आपन घर के लगे के जमीन कोड़ (खोद) के माटी निकालिला आउर फेरु ओह गड्ढा के बालू से भर दिहिला,” अन्ना समझइले. काहे कि बालू, माटी से सस्ता पड़ेला.

अतिपट्टू में मूरति बनावे वाला उहे एकमात्र कलाकार बाड़न. एहि से गांव में सार्वजनिक जगह से माटी खोदे के बात पंचायत से अकेले कइल कठिन लागेला. “जदि 10 से 20 लोग मूरति बनावत रहित, त हम पोखर चाहे तालाब लगे माटी खोदे के बात कर सकत रहीं. पंचायत हमनी के मुफ्त में माटी उपलब्ध करवा दीहित. बाकिर, मूरित बनावे वाला हम अकेला बचल बानी. एगो आदमी खातिर माटी मांगल मुस्किल काम बा. एहि से मजबूरी में हम आपन घर के लगे के जमीन कोड़ के माटी निकाल लीहिला.”

मूरति बनावे खातिर दिल्लि अन्ना के जे भूसा चाहीं, अब उहो दुर्लभ भइल जात बा. काहेकि अब हाथ से धान के कटाई कम हो गइल बा. “मसीन से धान कटाई होखला पर भूसा जादे ना निकले. आउर भूसा बा, त काम बा. भूसा नइखे, त कामो नइखे,” ऊ कहले. “हम कहूं-कहूं खोजत रहिला. कबो हाथ से धान कटाई करे वाला किसान लगे हमरा भूसा मिल जाला. अब त हम गुलदस्ता चाहे स्टोव… बनावल बंद कर देले बानी. एह सभ सामान के मांग बहुते बा, बाकिर का कइल जाव. एकरा बनावे खातिर माले ना भेंटाए.”

The base of the idol must be firm and strong and Dilli anna uses a mix of hay, sand and clay to achieve the strength. He gets the clay from around his house, 'first, we have to break the clay, then remove the stones and clean it, then mix sand and husk with clay'.
PHOTO • M. Palani Kumar

मूरति के पेंदा (आधार) ठोस आउर मजबूत होखे के चाहीं. एकरा खातिर दिल्लि अन्ना घास, बालू आउर माटी मिला के मूरति बनावेलन. माटी ऊ आपन घर लगे जमीन कोड़ के लावेलन, ‘पहिले त हमनी के माटी कोड़े के होखेला. फेरु एह में से कंकड़-पत्थर चुन के हटावल जाला. एकरा बाद माटी में रेत आउर भूसा मिलावल जाला’

The idol maker applying another layer of the clay, hay and husk mixture to the base of the idols. ' This entire work has to be done in the shade as in in direct sunlight, the clay won’t stick, and will break away. When the idols are ready, I have to bake then in fire to get it ready'
PHOTO • M. Palani Kumar
The idol maker applying another layer of the clay, hay and husk mixture to the base of the idols. ' This entire work has to be done in the shade as in in direct sunlight, the clay won’t stick, and will break away. When the idols are ready, I have to bake then in fire to get it ready'
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मूरति कलाकार मूरति के पेंदी में माटी, भूसा आउर घास के एगो आउर परत चढ़ावत बा. ‘सगरे काम छांह में कइल जाला, काहेकि सीधा घाम लागे से माटी आपस में चिपके ना, सूखला पर चटक जाला. मूरति तइयार भइला पर, ओकरा के आग में तपावल जाला’

ऊ आपन आमदनी के बारे में बतइलन, “हमरा एगो गांव से एगो मूरति खातिर 20,000 रुपइया मिलेला. बाकिर पूरा लागत निकाल लेवल जाव त हाथ में बस 4,000 रुपइया बचेला. जदि चार ठो गांव खातिर मूरति बनावत बानी त एह हिसाब से हमार कमाई हो जाई, 16,000 रुपइया.”

अन्ना खाली गरमी में, फरवरी से जुलाई के बीच मूरति बनावे के काम कर सकेलन. आडि (जुलाई) में जब उत्सव सुरु होखेला त लोग मूरति खरीदे पहुंचेला. “जवन मूरित सभ के बनावे में हमरा छव से सात महीना के मिहनत आउर बखत लागेला, ऊ एके महीना में बिका जाला. अब अगिला पांच महीना पइसा ना आवे. मूरति बेचले पर पइसा मिलेला.” दिल्लि अन्ना जो देके बतइले कि ऊ एकरा अलावे दोसर कवनो काम-धंधा ना करस.

ऊ भोरे सात बजे से सुरु हो जालन. आउर आठ घंटा ले काम करेलन. उनकरा छांह में सूख रहल मूरति के बीच-बीच में देखत रहे के पड़ेला, ना त ऊ चटक जाई. अन्ना हमरा के एगो छोट घटना सुनवलन जेकरा से एह कला के प्रति उनकर समर्पण के पता चलेला: “कबो एक रोज हमरा रात में सांस लेवे में परेसानी होखे लागल. बहुते दरद सुरु हो गइल. अन्हारे मुंह हम एक बजे साइकिल उठइनी आउर डॉक्टर लगे पहुंचनी,” अन्ना इयाद करत बाड़े. “डॉक्टर हमरा ग्लूकोज (नस से चढ़ावे वाला दवाई) चढ़इलक. हमार भाई उहे भोर हमरा दोसरा अस्पताल लेके अइलन. हमार स्कैनिंग होखे के रहे. बाकिर उहंवा के स्टाफ बतइलक कि ई काम रात के 11 बजे होई.” दिल्लि अन्ना जांच करवइले बिना लउटे के फैसला कइलन, काहेकि उनकरा मूरति के देखभाल करे रहे.

कबो अइसनो बखत रहे कि दिल्लि अन्ना के परिवार लगे काट्टुपल्ली गाव के एगो छोट टोला, चेपाक्कम में चार एकड़ जमीन रहे. ऊ बतइलन, “हमार घर एगो गणेश मंदिर लगे चेपाक्कम सीमेंट फैक्ट्री लगे रहे. जमीन लगे घर एहि से बनावल गइल रहे कि हमनी आराम से खेती कर सकीं.” बाकिर जब जमीन के निच्चे के पानी खारा हो गइल, खेती ठप्प पड़ गइल. घर बेच के अतिपट्टु आवे के पड़ल.

A mixture of clay, sand and husk. I t has become difficult to get clay and husk as the increase in thermal power plants along the north Chennai coastline had turned ground water saline. This has reduced agricultural activities here and so there is less husk available.
PHOTO • M. Palani Kumar

माटी, बालू आउर भूसा के मिश्रण. उत्तरी चेन्नई के तटीय इलाका में थर्मल पावर प्लांट के गिनती बढ़े आउर जमीन के निच्चे के पानी खारा होखे के चलते माटी आउर भूसा के कमी होखत चल गइल. एकरा बाद खेती-बारी कम हो गइला से भूसा के भी अकाल पड़ गइल

Dilli anna applies an extra layer of the mixture to join the legs of the idol. His work travels to Ennur Kuppam, Mugathivara Kuppam, Thazhankuppam, Kattukuppam, Mettukuppam, Palthottikuppam, Chinnakuppam, Periyakulam villages.
PHOTO • M. Palani Kumar

दिल्लि अन्ना मूरति के चारो गोड़ जोड़े खातिर माटी-भूसा के एगो आउर परत चढ़ावत बाड़न. उनकर बनावल मूरति के मांग एन्नुर कुप्पम, मुगतिवार कुप्पम, काट्टुकुप्पम, पल्तोट्टिकुप्पम, चिन्नकुप्पम, पेरियकुलम जइसन दूर-दूर के गांव में बा

“हमनी चार भाई-बहिन बानी. बाकिर एह परंपरा के जिंदा रखे वाला हम अकेला बानी. हमार बियाह नइखे भइल. एतना कम पइसा में परिवार आउर लरिका-फरिका के देखभाल कइसे हो सकत बा?” ऊ पूछे लगले. उनकरा डर बा जदि ऊ दोसर धंधा में लाग गइलन, त मछुआरा लोग खातिर अइसन मूरति बनावे वाला केहू ना बची. “हमरा मूरति बनावे के लुर आपन पुरखन से बिरासत में मिलल बा. एकरा हम छोड़ नइखी सकत. जदि मछुआरा लोग के मूरति ना मिली, त ऊ लोग संकट में आ जाई.”

दिल्लि अन्ना खातिर मूरति बनावल खाली काम ना, जश्न बा. उऩकरा इयाद बा कि बाऊजी बखत ऊ लोग एगो मूरति 800, चाहे 900 रुपइया में बेचत रहे. जे भी मूरति कीने आवे ओकर आदर-सत्कार कइल जाए आउर खियावल भी जाए. “हमनी के घर में अइसन रौनक रहत रहे, जइसे कि बियाह के घर होखे.”

मूरति जब बिना चटकले आग में तप के तइयार हो जाला, अन्ना के बहुते खुसी होखेला. माटी के ई सभ मूरति उनकर पक्का यार बा. “हमरा महसूस होखेला कि मूरति बनावे घरिया केहू हमरा संगे बा. हमरा लागेला मूरति सभ हमरा से बतकही करत बा. मुस्किल में हमरा इनकरे सहारा होखेला. बाकिर हमरा चिंता लाग गइल बा कि हमरा बाद ई मूरति सभ के गढ़ी?”

‘This entire work has to be done in the shade as in direct sunlight, the clay won’t stick and will break away,' says Dilli anna.
PHOTO • M. Palani Kumar

दिल्ली अन्नी कहले, ‘मूरति बनावे के समूचा काम छांह में होखे के चाहीं, सोझे धूप में काम होई त माटी नीमन से चिपकी ना आउर आग में पकावे घरिया चटक जाई’

Left: Athipattu's idol maker carrying water which will be used to smoothen the edges of the idols; his cat (right)
PHOTO • M. Palani Kumar
Left: Athipattu's idol maker carrying water which will be used to smoothen the edges of the idols; his cat (right)
PHOTO • M. Palani Kumar

बावां: पानी ढोके लावत अतिपट्टु के मूरतिकार. एह पानी से मूरति के चिक्कन कइल जाइ. दहिना: दिल्लि अन्ना के बिलाई

The elephant and horses are the base for the idols; they are covered to protect them from harsh sunlight.
PHOTO • M. Palani Kumar

मूरति के नीचे हाथी आउर घोड़ा बनल रहेला; सभे के जड़त घाम से बचावे खातिर झांप (ढंक) के धइल गइल बा

Dilli anna gives shape to the Kannisamy idol's face and says, 'from the time I start making the idol till it is ready, I have to work alone. I do not have money to pay for an assistant'
PHOTO • M. Palani Kumar
Dilli anna gives shape to the Kannisamy idol's face and says, 'from the time I start making the idol till it is ready, I have to work alone. I do not have money to pay for an assistant'
PHOTO • M. Palani Kumar

दिल्लि अन्ना कन्निसामी मूरति के मुंह के आकार देत बाड़न आउर कहत बाड़न, ‘मूरति बनावल सुरु करे से लेके एकरा तइयार करे तक हम अकेले सगरे काम करेनी. हमरा लगे एतना पइसा नइखे कि केहू के मदद करे खातिर रखीं’

The idols have dried and are ready to be painted.
PHOTO • M. Palani Kumar

मूरति बन के तइयार बा, अब एकरा पर रंग-रोगन कइल जाई

Left: The Kannisamy idols painted in white.
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Right: Dilli anna displays his hard work. He is the only artisan who is making these idols for the fishing community around Athipattu
PHOTO • M. Palani Kumar

बावां: कन्निसामी के मूरति सभ उज्जर रंग में रंगल गइल बा. दहिना: दिल्ली अन्ना के गाढ़ पसीना के काम. अतिपट्टु आउर आस-पास के इलाका में मछुआरा समुदाय खातिर मूरति गढ़े वाला उहे एगो मूरतिकार बाड़न

Dilli anna makes five varieties of the Kannisamy idol
PHOTO • M. Palani Kumar

दिल्लि अन्ना के हाथ से बनल पांच तरह के मूरति

The finished idols with their maker (right)
PHOTO • M. Palani Kumar
The finished idols with their maker (right)
PHOTO • M. Palani Kumar

तइयार मूरति आउर ओकरा गढ़े वाला कलाकार

Dilli anna wrapping a white cloth around the idols prior to selling
PHOTO • M. Palani Kumar

बेचे से पहिले अन्ना सभे मूरति के उज्जर कपड़ा से झांपत बाड़न

Fishermen taking the wrapped idols from Dilli anna at his house in Athipattu.
PHOTO • M. Palani Kumar

अतिपट्टु में अन्ना के घर से उज्जर कपड़ा में लपेटल मूरति उठावत मछुआरा लोग

Fishermen carrying idols on their shoulders. From here they will go to their villages by boat. The Kosasthalaiyar river near north Chennai’s thermal power plant, in the background.
PHOTO • M. Palani Kumar

मछुआरा लोग मूरति के आपन कांधा पर उठइले ले जात बा. इहंवा से मूरति लेके ऊ लोग नाव से आपन गांव जाई. पाछू उत्तरी चेन्नई के थर्मल पावर प्लांट के लगे से बहत कोसस्तलैयार नदी देखाई पड़त बाड़ी

Crackers are burst as part of the ritual of returning with Kannisamy idols to their villages.
PHOTO • M. Palani Kumar

कन्निसामी के मूरति लेके जब गांव लउटल जाला तब पटाखा फोड़ के खुसी मनावे के परंपरा बा

Fishermen carrying the Kannisamy idols onto their boats.
PHOTO • M. Palani Kumar

मछुआरा लोग कन्निसामी के मूरति सभ के आपन नाव पर ढोके ले जात बा

Kannisamy idols in a boat returning to the village.
PHOTO • M. Palani Kumar

गांव लउट रहल नाव पर कन्निसामी के मूरति सभ धइल बा

Fishermen shouting slogans as they carry the idols from the boats to their homes
PHOTO • M. Palani Kumar

मछुआरा लोग नारा लगावत बा आउर नाव से मूरति के आपन घरे ले जात बा

Dilli anna sacrifices a cock as part of the ritual in Ennur Kuppam festival.
PHOTO • M. Palani Kumar

एन्नुर कुप्पम त्योहार में परंपरा के हिसाब से दिल्लि अन्ना मुरगा के बलि देत बाड़न

Now the idols are ready to be placed at the borders of the village.
PHOTO • M. Palani Kumar

अंतिम में मूरति सभ गांव के सीमा पर स्थापित होखे खातिर तइयार बा


अनुवाद: स्वर्ण कांता

M. Palani Kumar

M. Palani Kumar is Staff Photographer at People's Archive of Rural India. He is interested in documenting the lives of working-class women and marginalised people. Palani has received the Amplify grant in 2021, and Samyak Drishti and Photo South Asia Grant in 2020. He received the first Dayanita Singh-PARI Documentary Photography Award in 2022. Palani was also the cinematographer of ‘Kakoos' (Toilet), a Tamil-language documentary exposing the practice of manual scavenging in Tamil Nadu.

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Editor : S. Senthalir

S. Senthalir is Senior Editor at People's Archive of Rural India and a 2020 PARI Fellow. She reports on the intersection of gender, caste and labour. Senthalir is a 2023 fellow of the Chevening South Asia Journalism Programme at University of Westminster.

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Photo Editor : Binaifer Bharucha

Binaifer Bharucha is a freelance photographer based in Mumbai, and Photo Editor at the People's Archive of Rural India.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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