जड़कल्ला के मझंनिया जब खेत के सब्बो बूता सिरा जाथे अऊ घर के जवान लइका मन अपन अपन नऊकरी करे चले जाथें तऊन बखत हरियाणा के सोनीपत जिला के हरसाना कलां गांव के मरद मन गुड़ी (गाँव के चौराहा) मं बइठे तास धन छईंय्या मं सुस्तावत मिलथें.

माइलोगन मं ऊहां कभू नई दिखंय.

इहां के बासिंदा विजय मंडल ह सवाल करे जइसने कहिथे, “माईलोगन मन इहाँ काबर आहीं? वो मन ला अपन बूता ले कभू फुरसत नई मिलय. वो मन का करहीं ये बड़े मइनखे के संग बइठके ?”

दिल्ली ले मुस्किल ले 12 कोस दूरिहा देश के राजधानी इलाका मं अवेइय्या 5,000 के अबादी वाले ये गाँव मं कुछू बरस पहिली ये गाँव के माईलोगन मन भारी परदा करत रहिन.

मंडल कहिथें, “माईलोगन मन त गुड़ी डहर झांकय घलो नई रहिन.” गाँव के मंझा बने ये गुड़ी मं बइठका होवत रहिथे, इहां लड़ई-झगरा निपटारा सेती पंचइत बइठथे. हरसाना कलां के पूर्व सरपंच सतीश कुमार कहिथें, “पहिली के माईलोगन मन संस्कारी रहिन.”

मंडल थोकन मुचमुचावत कहिथें, “वो मन के भीतरी कुछु लाज-सरम घलो रहिस. फेर कऊनो ला कुछु बूता ले गुड़ी डहर जाय ला परत रहय त घूंघट कर लेवत रहिन.”

36 बछर के सायरा बर ये सब्बो कऊनो तरीका ले नवा नई ये. वो ह बीते 16 बछर ले अइसने हालत मं रहत आवत हवंय अऊ ये तरीका के फरमान ला मानत हवंय. वो ह ये सब्बो ला तबले करत हवय जब वो ह बीस बछर के उमर मं बिहाव होय के बाद ले दिल्ली के तीर अपन गाँव ‘माजरा डबास’ ले इहाँ आय रहिस. मरद मन ला छोर वो मन ला सिरिफ वो मन के पहिली नांव ले बलाय जाथे.

सायरा कहिथें, “गर मोर बिहाव ले पहिली अपन घरवाला ले भेंट होय रतिस त मंय कभू ये बिहाव बर राजी नई होय रथें. ये गाँव मं कतई नई आतेंव.” सायरा जऊन बखत ये सब्बो ला बतावत रहिस ओकर माहिर हाथ सिलाई मसीन मं चलत रहय, जिहां वो ह बैंगनी रंग के कपड़ा ऊपर काम करत रहय. (ये कहिनी मं ओकर नांव अऊ परिवार के सब्बो मन के नांव बदल देय गे हवय.)

Saira stitches clothes from home for neighborhood customers. 'If a woman tries to speak out, the men will not let her', she says

सायरा अपन घर मं आसपास के ग्राहक मन के कपड़ा सिलथे.वो ह बताथे, ‘गर कऊनो माईलोगन ह बेझिझक गोठियाथे त मरद मन वोला अइसने करे नई देवंय’

सायरा बताथें, “ये गाँव मं गर कऊनो माईलोगन ह बेझिझक गोठियाथे त मरद मन वोला अइसने करे नई देवंय. वो मन कहहिं, तोला अपन तरफ ले बोले के काय जरूरत हे जब तोर घरवाला ये कर सकथे? मोर घरवाला घलो येईच मानथे के माईलोगन मन ला घर के भीतरेच मं रहे ला चाही. गर मंय कपड़ा सिलई के जरूरी समान बिसोय ला घलो बहिर जाय के सोचथों त वो ह कहहि के बने होही के तंय घरेच मं रह.”

ओकर 44 बछर के घरवाला समीर खान तीर के दिल्ली मं नरेला के एक ठन करखाना मं बूता करथे जिहां वो ह प्लास्टिक के सांचा बनाथे. वो ह अक्सर सायरा ले कहिथे के वो ये नई समझे के मरद मन माईलोगन ला कइसने देखथें. सायरा बताथें, “वो ह कहिथें के फेर तंय घर मं रहिबे त बने रहिबे, बहिर त भेड़िया बइठे हवंय.”

तेकरे सेती सायरा ये भेड़िया मन ले दुरिहा अपन घरेच मं रहिथे. हरियाणा के 64.5 फीसदी देहात के माईलोगन मन के जइसने ( राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4, 2015-16),जेन मं ला अकेल्ला बजार, अस्पताल धन गाँव के बहिर कहूं जाय के इजाजत नई ये. वो ह रोजके मझंनिया झरोखा के तीर रखाय सिलाई मसीन मं कपड़ा सिलथे. इहाँ भरपूर उजेला हवय जेकर जरूरत वोला परथे काबर के दिन मं ये बखत अक्सर बिजली नई रहय. मझंनिया ये काम करे ले वोला महिना के 5,000 रुपिया कमई हो जाथे, जेकर ले वोला थोकन तस्सली मिलथे अऊ येकर ले अपन दू झिन बेटा 16 बछर के सुहेल खान अऊ 14 बछर के सनी अली सेती कुछु जिनिस बिसोय मं सहूलियत हो जाथे फेर वो ह सायदेच कभू अपन सेती बिसोय होही.

सनी के जन्म के कुछेक महिना बीते सायरा ह नसबंदी करवाय के कोसिस करे रहिस. ओकर घरवाला समीर ला वो बखत ओकर इरादा के पता नई रहिस.

सोनीपत ज़िला मं 15 ले 49 बछर के उमर वाले बिहाय माईलोगन मन मं गर्भनिरोधक अपनाय के दर (सीपीआर) 78 फीसदी हवय (एनएफ़एचएस-4) – जऊन ह हरियाणा के 64 प्रतिशत के कुल दर ले जियादा हवय.

अपन बेटा के जनम के बाद सुरु के कुछेक महिना मं सायरा हा दू पईंत नसबंदी करवाय के कोसिस करे रहिस. पहिली बेर मायका मं अपन घर के तीर के सरकारी अस्पताल मं, जिहां के डाक्टर ह कहे रहिस के वो बिहाये जइसने नई दिखय. दूसर बेर उहिच अस्पताल मं अपन बेटा ला ये साबित करे सेती लेगे रहिस के वो ह बिहाये हवय. सायरा बताथें, “डाक्टर ह मोला कहे रहिस के मंय अइसने फइसला लेय ला बहुते नानचिक हवंव.”

फेर वो ह तीसर बेर अइसे करे मं सफल होगे जब वो ह दिल्ली के रोहिणी मं अपन दाई–ददा के संग रहत ऊहां के एक ठन निजी अस्पताल मं नसबंदी करवाइस.

Only men occupy the chaupal at the village centre in Harsana Kalan, often playing cards. 'Why should women come here?' one of them asks
Only men occupy the chaupal at the village centre in Harsana Kalan, often playing cards. 'Why should women come here?' one of them asks

हरसाना कलां गांव के मंझा मं बने गुड़ी मं सिरिफ मरद मन के कब्ज़ा रहिथे, जऊन मन अक्सर इहां ताश खेलत रहिथें. वो मन ले एक झिन सवाल करे जइसने कहिथे माईलोगन मन इहां काबर आहीं ?

सायरा बताथें, “ये बखत मंय अपन घरवाला ले झूठ बोलेंय, मंय अपन बेटा ला संग ले गेंय अऊ डाक्टर ले कहेंय के मोर घरवाला दरूहा आय.” ये बात ला सुरता करत वो ह हांसे ला धरथे, फेर वोला बने करके सुरता हवय के नसबंदी कराय सेती वो ह काबर अतक अकबकाय रहिस. वो ह कहिथें, “घर के माहौल खराब रहिस, भारी दबा के राखे अऊ सब्बो बखत मिहनत. मोला ये बात पक्का ढंग ले पता रहिस - मोला अऊ लइका नई चाही.”

सायरा ला वो दिन बने करके सुरता हवय जब वो ह अपन नसबंदी कराय रहिस. वो ह कहिथें, “तऊन दिन पानी बरसत रहय, मंय वार्ड के कांच के दीवार के बहिर ठाढ़े अपन दाई के कोरा मं अपन नान कन बेटा ला रोवत देख सकत रहंय. जऊन दीगर महतारी मन के आपरेसन होय रहिस, वो मन अभू तक ले सुतत रहिन [एनेस्थीसिया सेती] मोर ऊपर येकर असर जल्दे खतम होगे. मोला अपन लइका ला पियाय के संसो लगे रहय. मंय भारी घबरा गेय रहेंय.”

जब समीर ला ये बात के पता चलिस, त वो ह कतको महिना तक ले ओकर ले नई गोठियाइस. वो ह नाराज रहिस के वो ह ओकर ले बिना पूछे ये फइसला करिस. वो ह चाहत रहिस के सायरा कॉपर-टी जइसने गर्भनिरोधक (आईयूडी) लगवा लेय, जऊन ला निकारे घलो जा सकत हवय. फेर सायरा अऊ लइका जन्म देय बर बिल्कुले घलो तियार नई रहिन.

वो अपन बीते दिन मन ला सुरता करथें, जब वो ह सिरिफ 24 बछर के उमर मं भारी उलझन ले जकरे रहिस अऊ मुस्किल ले 10 वीं पास करे रहिस. अऊ ये नान कं जिनगी मं गर्भनिरोधक के बारे मं ओतके कुछु नई जानत रहिस. वो ह कहिथें, “हमर करा खेत अऊ भैंसी हवंय. मोला अकेल्ला वो सब्बो के धियान रखे ला परत रहिस अऊ घर के काम ला घलो निपटाय ला परय. गर आईयूडी लगवाय रहे ले मोला कुछु हो गेय रतिस त?”

सायरा के दाई अनपढ़ रहिन. ओकर ददा पढ़े-लिखे रहिस फेर वो ह घलो सायरा के पढ़ई-लिखई ऊपर ओतके जोर नहीं दीस. सुई ले अपन नजर हटावत ऊपर देखत वो ह कहिथे, “माईलोगन मन मवेसी मन ले थोकन घलो बढ़के नई होवंय. हमर भैंसी जइसने हमर दिमाग घलो अब ठप पर गे हवय.”

वो ह कहत जाथे, “हरियाणा के मरद के आगू ककरो नहीं चलय,वो जऊन घलो कहय वोला हर हाल मं करे ला परही. गर कहे के ये चीज रांधना हे त उहिच रांधे जाही – खाना, कपड़ा, बहिर जाय, सब्बो कुछु ओकरे कहे के मुताबिक करे ला परथे.” पता नई कइसने सायरा ह गोठियावत कतक बेर अपन घरवाला ला छोर के अपन ददा के बेरे मं बताय ला सुरु कर दीस.

Wheat fields surround the railway station of Harsana Kalan, a village of around 5,000 people in Haryana
Wheat fields surround the railway station of Harsana Kalan, a village of around 5,000 people in Haryana

हरियाणा के करीबन 5,000 के अबादी वाले गांव हरसाना कलां मं रेलवे स्टेशन के चारों डहर गहूं के खेत हवंय

33 बछर के सना खान (जेकर नांव, अऊ ओकर परिवार के सब्बो मन के नांव ये कहिनी मं बदल दे गे हवय) जऊन ह ओकर दूर के रिस्तेदार आय अऊ ओकर बगल मं रहिथे, ले ये आस करे सकत हवव के ओकर अनुभव कुछु दूसर होही. बीएड के डिग्री लेय के बाद वो ह टीचर बने ला चाहत रहिस अऊ प्राथमिक शाला मं पढ़ाय ला चाहत रहिस, फेर जब कभू घर के बहिर जाय के काम करे के बात करय त ओकर 36 बछर के घरवाला रुस्तम अली, जऊन ह एक ठन एकाउंटिंग फ़र्म मं कार्यालय सहायक आय, ताना मारे ला सुरु कर देथे: “तंय जरूर बहिर जाके काम कर, घर मं मेंइच बईठ जाथों. तंयेच कमाय ला बहिर जा अऊ अकेल्ला ये घर ला चला.”

सना ह तब ले अइसने बात करे ला बंद कर दीस. अपन रंधनी खोली के बहिर ठाढ़े कहत रहय, “येकर ले का फायदा? फिर ले बकबक सुरु हो जाही. ये ह अइसने देश आय जिहां मरद मन के नंबर पहिली आथे. येकरे सेती माइलोगन करा समझौता करे ला छोर कोई चारा नई ये, काबर वो ह अइसने नई करहीं त ये तरीका के ताना झगरा चलत रही.”

सायरा ह जइसने मझंनिया कपड़ा सिलथे, तइसने सना घलो प्राथमिक इस्कूल के लइका मन ला अपन घर मं ट्यूशन पढ़ाथे. वो ह येकर ले हर महिना 5,000 रुपिया तक ले कमा लेथे, जऊन ह ओकर घरवाला के आधा आय. वो ह येकर जियादा हिस्सा अपन लइका मन के ऊपर खरच कर देथे. फेर हरियाणा के 54 फीसदी माईलोगन मन जइसने ओकर तीर अपन कऊनो बैंक खाता नई हवय.

सना हमेसा ले दू लइका जन्माय ला चाहत रहिस अऊ वो ह बढ़िया करके आईयूडी जइसने गर्भनिरोधक तरीका अपना के वो ह दू लइका के मंझा मं जनम के अंतर राख सकत हवय. ओकर अऊ रुस्तम अली के तीन झिन लइका हवंय – दू झिन नोनी अऊ एक झिन बाबू.

2010 मं अपन पहिली बेटी आसिया के जनम के बाद सना ह सोनीपत के एक ठन निजी अस्पताल मं आईयूडी लगवाय गे रहिस. बनेच बछर तक ले वो ह ये सोचत रहय के ये ह मल्टी-लोड आईयूडी होही, वो ह अइसने कुछु चाहत रहय फेर कॉपर-टी जइसने नई, कुछु संका सेती वोला ये मं आपत्ति रहिस जइसने के गाँव के कतको दिगर माईलोगन के संग घलो रहिस.

हरसाना कलां गांव के उप-चिकित्सा केंद्र के सहायक नर्स (एएनएम) निशा फोगाट बताथें, “कॉपर-टी जियादा दिन तक ले काम करथे अऊ करीबन 10 बछर तक ले गरभ होय नई देय. फेर मल्टी-लोड आईयूडी तीन ले पांच बछर तक ले काम करथे. गाँव के बनेच अकन माईलोगन मन मल्टी-लोड अपनाथें येकरे सेती ये ह वो मन के पहिली पसंद बने हवंय. कॉपर-टी के बारे मं माईलोगन मन के संका मन ला सुनके अइसने लागथे के वो मन एक दूसर ले जऊन ला सुने रथें, तइसने संका ओकरे सेती होय हवय. गर गर्भनिरोधक ले कऊनो माईलोगन ला कऊनो दिक्कत होथे त दीगर माईलोगन मन घलो वो ला अपनाय ले हिचकथें.”

2006 ले हरसाना कलां मं आशा वर्कर के काम करत सुनीता देवी कहिथें, “ माइलोगन मन ला ये समझे के जरूरत हवय के कॉपर-टी लगवाय के बाद वो मन ला भारी वजन नई उठाना चाही अऊ हफ्ता भर तक ले सुस्ताय ला चाही काबर ये उपकरन ला बने करके फिट होय मं समे लागथे. फेर वो मन अइसने नई करेंय धन नई करे सकंय. येकर ले अकबकासी लग सकथे अऊ अक्सर सिकायत करहीं, ‘मोर करेजा तक ले चढ़गे हवय’.”

Sana Khan washing dishes in her home; she wanted to be a teacher after her degree in Education. 'Women have no option but to make adjustments', she says
Sana Khan washing dishes in her home; she wanted to be a teacher after her degree in Education. 'Women have no option but to make adjustments', she says

सना ख़ान अपन घर मं बरतन माँजत, बीएड के डिग्री हासिल करे के बाद वो ह  टीचर बने ला चाहत रहिन. वो ह कहिथें, ‘माईलोगन करा समझौता ला छोर दीगर कऊनो रद्दा नई ये’

सना ला कॉपर-टी लगवाय गे रहिस अऊ ये बात के पता वोला तऊन बखत लगिस जब वो ह आईयूडी ला निकरवाय ला गे रहिस. वो ह बताथें, “मोला झूठ कहे गे रहिस, मोर घरवाला अऊ निजी अस्पताल के डाक्टर, दूनो डहर ले. वो [रुस्तम अली] ह अतक बछर तक ले जानत रहिस के मोला कॉपर-टी लगे हवय, न कि मल्टी-लोड आईयूडी फेर वोहा मोला सच बात नई बताईस, जब मोला पता चलिस त ओकर ले मोर झगरा घलो होइस.”

हमन जब ओकर ले पूछथन के जब वोला कुछु दिक्कत नई होइस त ये बात के का मतलब हवय, त वो ह जुवाब देवत कहिथे, “वो मन मोर ले झूठ कहिन. ये दाम मं वो मन मोर भीतर कुछु घलो डाले सकत रहिन अऊ ओकर बारे मं झूठ बोले सकथें. वो हा (रुस्तम अली) मोला बताइस के डॉक्टर ह वोला भरम मं रखे ला कहे रहिस काबर माईलोगन मन कॉपर-टी के अकार ले डेराथें.”

आईयूडी निकारे जाय के बाद सना ह 2014 मं अपन दूसर बेटी अक्षि ला जनम दीस. तब वोला ये बात के आस रहिस के एकर बाद परिवार अऊ नई बढ़य. फेर परिवार वाला मं के दुवाब तक तक ले बने रहिस जब तक ले 2017 मं ओकर एक ठन बेटा के जनम नई हो गीस. वो ह कहिथे, “वो बेटा ला अपन जइदाद समझथें, बेटी मन के सेती वो मन अइसने बिल्कुले नई सोचेंव.”

देश के हरियाणा मं बाल लिंगानुपात (0-6 बछर के आयुवर्ग मं) सबले कमती हवय. जिहां हजार टूरा मन के ऊपर टुरी मन के संख्या 834 हवय (जनगणना 2011). सोनीपत जिला के मामला मं ये आंकड़ा अऊ घलो कमती हवय, जिहां हजार पाछू टुरी मन के संख्या 798 हवय. टूरा मन ला मान देय सेती इहाँ टुरी मन के अनादर घलो होवत रहिथे. ये सबूत के घलो अब्बड़ अकन दस्तावेज़ीकरन करे गे हवय के परिवार नियोजन के फइसला मज़बूत पितृसत्तात्मक बेवस्था मं मरद धन दूर के परिवार के लोगन मन के डहर ले प्रभावित होथे. एनएफ़एचएस-4 के आंकड़ा मन ले पता चलथे के हरियाणा मं सिरिफ 70 फीसदी माईलोगन मन अपन सेहत ले जुरे फइसला मं अपन राय दे सकथें, फेर दूसर डहर 93 फीसदी मरद मन खुद के सेहत ले जुरे फइसला खुदेच लेथें.

कांता शर्मा (जेकर नांव, अऊ ओकर परिवार के सब्बो मन के नांव ये कहिनी मं बदल दे गेय हवय) सायरा अऊ सना के जइसने उहिच इलाका मं रहिथें. ओकर परिवार के पांच झिन मं - ओकर 44 बछर के घरवाला सुरेश शर्मा अऊ चार लइका. दू झिन बेटी, आशु अऊ गुंजन के जनम बिहाव के पहिली के दू बछर मं होय रहिस. येकर बाद ये जोड़ा ह तय करे रहिस के अपन दूसर बेटी के जनम के बाद कांता ह नसबंदी करा लिही, फेर ओकर ससुराल वाला मन वो मन के ये फइसला ले सहमत नई रहिन.

39 बछर के कांता तऊन ट्रॉफी डहर देखत, जऊन ला ओकर बेटी मन कतको बछर ले बढ़िया पढ़ई सेती जीते रहिन, कहिथें, "दादी ला पोता चाही, वो पोता के चाह मं हमर चार लइका होगे. गर डोकरा सियान मन के अइसने इच्छा हवय त वइसनेच करे जाही. मोर घरवाला परिवार मं सबले बड़े हवंय. हमन परिवार के फइसला के अनादर नई करे सकत रहेन.”

Kanta's work-worn hand from toiling in the fields and tending to the family's buffaloes. When her third child was also a girl, she started taking contraceptive pills
Kanta's work-worn hand from toiling in the fields and tending to the family's buffaloes. When her third child was also a girl, she started taking contraceptive pills

खेत मं भारी मिहनत अऊ परिवार के भैंसी मन के देखभाल करत कांता के फटे हाथ. जब ओकर तीसर लइका घलो नोनी होइस त वो ह गर्भनिरोधक गोली खाय ला सुरु कर दीस

गाँव मं जब कऊनो नवा बहुरिया आथे त सुनीता देवी जइसने आसा कार्यकर्ता येकर रिकॉर्ड रखथे फेर अक्सर वो मन ले गोठियाय बर साल के आखिर मं जाथे. सुनीता बताथें, इहाँ के जियादा करके जवान बहुरिया बिहाव के पहिली बछर मं गरभ ले हो जाथें. लइका के जनम के बाद हमन ओकर घर जाथन ओकर सास के आगू मं परिवार नियोजन के तरीका मन ला लेके गोठ-बात करथन. बाद मं जब ओकर परिवार कऊनो फइसला करथें त वो मन हमन ला खबर कर देथें.

सुनीता कहिथें, “नई त ओकर सास हमन ले नाराज हो जाही अऊ हमन ले कहहि, हमर बहुरिया ला का पट्टी पढ़ा के चले गे हवव!”

जब तीसर लइका घलो नोनी होइस त कांता ह गर्भनिरोधक गोली खाय ला सुरु कर दीस जऊन ला ओकर घरवाला लेके आवत रहिस. येकर बारे मं ओकर सास-ससुर ला पता नई रहिस. गोली खाय ला छोरे महीनों बाद कांता फिर ले गरभ ले होगे त ये बखत बाबू होइस. फेर दुख के बात ये रहिस के बेचारी दादी अपन पोता ला देखे नई सकिस. कांता के सास ह 2006 मं अपन परान छोर दे रहिस. ओकर बछर भर बाद कांता ह अपन बेटा राहुल ला जनम देय रहिस.

तब ले कांता अपन परिवार के सबले सियान महतारी आय. वो ह घलो आईयूडी लगवाय के फइसला करे हवय. ओकर नोनी मन पढ़त हवंय. सबले बड़े बेटी नर्सिंग मं बीएससी करत हवय. कांता अभी ओकर बिहाव करे ला सोचत नई ये.

कांता कहिथें, “वो मन ला पढ़ई-लिखई करके अपन जिनगी बनाना चाही. हमर बेटी मन जऊन करे ला चाहत हवंय गर हमन वो मं हमन मदद नई करबो त हमन ये आस कइसे कर सकथन के ओकर घरवाला अऊ सास-ससुर पढ़ई मं ओकर मदद करहीं? हमर जमाना अलगे रहिस. वो अब नंदा गे.”

अपन होवेइय्या बहुरिया बर तोर का राय हवय, ये सवाल के जुवाब मं कांता कहिथें, “बिल्कुल ऊही. ये वोला तय करे ला होही के वो ह का करे ला चाहत हवय, कइसने गर्भनिरोधक अपनाय ला चाहत हवय. हमर बखत अलगे रहिस, वो अब नंदा गे.”

पारी अऊ काउंटरमीडिया ट्रस्ट के तरफ ले भारत के गाँव देहात के किशोरी अऊ जवान माइलोगन मन ला धियान रखके करे ये रिपोर्टिंग ह राष्ट्रव्यापी प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' डहर ले समर्थित पहल के हिस्सा आय जेकर ले आम मइनखे के बात अऊ ओकर अनुभव ले ये महत्तम फेर कोंटा मं राख देय गेय समाज का हालत के पता लग सकय.

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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Anubha Bhonsle is a 2015 PARI fellow, an independent journalist, an ICFJ Knight Fellow, and the author of 'Mother, Where’s My Country?', a book about the troubled history of Manipur and the impact of the Armed Forces Special Powers Act.

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Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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