ये ह नाख़ून ले बड़े नई ये, अऊ हरेक कली पिंयर, उज्जर अऊ सुग्घर हवय. येती-वोती, खेत ह सब्बो कोती खिले फूल ले जगमगावत हवय, ओकर मादक महक ह नथुना मं भर जाथे. मोंगरा के फूल एक ठन भेंट आय. धुर्रा ले भराय धरती, मोट रुख, अऊ बादल ले भरे अकास.

फेर इहाँ के बूता करेइय्या मन करा ये बखत ले दिल लगाय के बखत नई ये. वो मन ला मल्ली (मोंगरा) ला फूले के पहिली पोकड़ाई (फूल बजार) तक ले जाय ला हवय. भगवान गनेस के जन्मदिन, विनायक चतुर्थी ला चार दिन बांचे हवंय, जेकर मतलब आय के बढ़िया दाम के आस करे सकत हवंय.

सिरिफ अपन अंगूठा अऊ तर्जनी ले, येंर्रा अऊ माईलोगन मन कली मन ला लऊहा ले टोर देथें. वो मन अपन लुगरा धन धोती ला थैली जइसने मोड़ लेथें अऊ मुठ्ठा भरे ला ये मं डार देथें अऊ बाद मं येला बोरी मन मं भर देथें. बूता मं एक ठन लय हवय : डारा-पाना ले हलावत (सरसर करत), कली ला टोरत (चट, चट, चट), आगू जावत, तीन बछर के लइका जतक ऊंच, जियादा टोरत, अऊ बतियावत. एकर छोड़, रेडियो मं मनपंसद तमिल गीत सुनत, येती सुरुज ह उदती अकास मं धीरे-धीरे चढ़त हवय...

जल्दीच, फूल  मदुरई शहर के मट्टुथवानी बजार मं पहुंच जाही अऊ ऊहाँ ले तमिलनाडु के दीगर शहर मन  मं जाहीं. अऊ कभू-कभू समुंदर पार दीगर देश मं.

पारी ह 2021, 2022 अऊ 2023 मं मदुरई जिला के थिरुमंगलम अऊ उसिलामपट्टी तालुका गे रहिस. मोंगरा के खेत मदुरई शहर ले घंटा भर ले कमती सड़क रद्दा मं हवंय- अपन नामी मीनाक्षी अम्मन मंदिर अऊ भीड़ भड़क्का ले भरे फूल के बजार के संग –जिहां मल्ली (मोंगरा) मुठ्ठा अऊ ढेरी मं बेंचे जाथे.

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गणपति मदुरई के थिरुमंगलम तालुका के मेलौप्पिलीगुंडु गांव के अपन खेत के मंझा ठाढ़े हवंय. मोंगरा के पऊधा  ये बखत भारी खिलत हवंय अऊ अब दिन भर मं सिरिफ किलो भर टोरे जा सकथे

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मुठ्ठा भर महकत मोंगरा के कली

थिरुमंगलम तालुका के मेलौप्पिलीगुंडु गाँव के, 51 बछर के पी. गणपति,  मोला ये फूल के बारे मं बतावत ये  ला मदुरई इलाका के नांव देथे. “ये इलाका अपन महक वाले मल्ली सेती नामी आय. काबर, बस तोला अपन घर के भीतरी मं आधा किलो मोंगरा रखे के जरूरत हवय, हफ्ता भर ले ये ह महमहावत रहिथे!”

झक उज्जर कमीज मं –अपन खीसा मं कुछु नोट धरे – अऊ नीला लुंगी  पहिरे, गणपति ह मुचमुचावत  लहुआ-लहुआ मदुरई तमिल मं बोलथे. “ जब तक ले ये ह बछर भर के नई हो जावय, तक तक ये पऊधा ह लइका जइसने होथे,” वो ह समझावत कहिथे “अऊ तोला येकर चेत धरे देखरेख करे ला परही”. ओकर करा अढाई एकड़ खेत हवय, जऊन मं एक मं वो ह मोंगरा लगाथे.

पऊधा करीबन छे महिना मं फूले सुरु करे देथे, फेर ये ह समान रूप ले नई बढ़य. एक किलो मोंगरा के दाम जइसने, ये ह ऊंच-नीच होवत रहिथे. कभू-कभू गणपति ला एक एकड़ मं मुस्किल ले एक किलो मिलथे. कुछु हफ्ता बीते ये ह 50 किलो हो सकत हवय. बिहाव अऊ तिहार के सीजन मं, दाम बहुत बढ़िया मिलथे: एक हजार, दू हजार, तीन हजार... सब्बो एक किलो मोंगरा के. फेर जब हरेक के खेत मं मोंगरा भारी फूलत रहिथे –भलेच ये ह बड़े सीजन होय – दाम कम हो जाथे. खेती के कऊनो गारंटी नईं ये. सिरिफ एके जिनिस होही वो आय खरचा.

अऊ, बेशक, मिहनत. बिहनिया वो अऊ ओकर वीतुकरम्मा- जइसने के गणपति ह अपन घरवाली पिचैयम्मा ला कहिथे –आठ किलो फूल टोर चुके हवंय. वो ह कहिथे,  “हमर पीठ ह पिराही, भारी जोर ले.” जऊन जिनिस ह वो मन ला सबले जियादा हलाकान करथे, वो आय बढ़त लागत –खातू अऊ दवई, लेबर के खरचा अऊ तेल. “हमन एक बने नफा कइसने पाय सकथन?” ये ह सितंबर 2021 के बखत रहिस.

ये रोज के फूल –हरेक गली-मुहल्ला के कोनहा मं, तमिल संस्कृति के चिन्हारी; मल्ली, एक शहर के नांव, एक किसिम के इडली, चऊर के एक किसिम; मोंगरा, जेन ह हरेक मन्दिर, बिहाव अऊ बजार मं महकत रहिथे, हरेक भीड़, बस अऊ सुते के खोली मं जाने पहिचाने महक –येला बनाय रखे असान नई ये ...

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गणपति के खेत मं  मोंगरा के नवा पऊधा अऊ चमेली के कली (जउनि )

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मोंगरा के खेत मं निंदाई-गुड़ाई सेती बनिहार मन के संग बूता करत पिचैयम्मा

अगस्त 2022 मं हमन दूसर बेर गे रहेन, गणपति के एक एकड़ खेत मं मोंगरा के नवा पऊधा लगे हवय: 9.000 सात महिना के होय पऊध. रामनाथपुरम जिला के रामेश्वरम के तीर, थंगाचिमदम के नर्सरी मं हरेक ला (वो ह ऊँगली मं धरथे अऊ अपन कुहनी ला छुवत, ऊंच ला बताय सेती)  चार रूपिया मं बिसोय हवय. वो ह वोला खास करके निमारथे, एक मोठ पऊधा बनाय बर. गर माटी बढ़िया हवय –धनहा, दोमट, लाल- “त तुमन वोला चार फीट तक ले बढ़ाय सकथो. ये पऊधा अतक बढ़ जाही,”  गणपति अपन हाथ ले एक ठन घेरा डारत मोला कहिथे, जतक चाकर होही ओतक चाकर होही. “फेर इहाँ, जऊन माटी हवय वो ह ईंटा बनाय बर बढ़िया हवय.” यानि मटासी भूईंय्या.

गणपति मल्ली के खेती सेती एक एकड़ जमीन ला तियार करे मं 50, 000 रूपिया खरचा करथें. “तुमन जानथो, येला बने करके करे बर पइसा खरचा करे ला परथे.” घाम बखत ओकर खेत फूल ले जगमगा उठथे. वो ह येला तमिल मं कहिथे : “पालिचिनुपुकुम.” जब वो ह अपन दिन भर के बूता ला बताय लागथे त हंस परथे, तऊन दिन वो ह 10 किलो फूल टोरे रहिस-कुछु पऊधा ले 100 ग्राम अऊ कुछु 200 ग्राम निकरथे – ओकर आंखी उतइल रहिस, ओकर अवाज मं उछाह रहिस अऊ ओकर हँसी फिर ले होय के आस रहिस. जल्दीच.

गणपति के बूता बिहान होय के पहिलीच सुरु हो जाथे. वो ह कहिथे, ये ह एक दू घंटा पहिली सुरु होवत रहिस, “फेर अब बनिहार मन देरी मं आथें.” वो ह कली टोरे मं मदद करथे. घंटा भर मिहनत पाछू 50 रूपिया देथे. धन 35 अऊ 50 रूपिया एक “डब्बा” नाप बर, वो ह सोचथे के किलो भर फूल होही.

पारी के बीते बखत जाय के बाद ले 12 महिना मं फूल के दाम बढ़े हवंय. न्यूनतम कीमत ‘सेंट’ कारखाना मन के डहर ले तय करे जाथे. ये कारखाना मन जेन ह मोंगरा के भरमार होय ले बनेच अकन बिसोथें, एक किलो के 120 ले 220 रूपिया तक ले दाम देथें. गणपति कहिथें के करीबन 2 सौ रुपिया किलो पाछू ले वो ला नुकसान नई होवय.

जब भारी लेवाली -अऊ कम उपज होथे –त एक किलो मोंगरा के कली ओकर ले कतको गुना जियादा आमदनी देथे. तिहार के बखत मं येकर दाम 1,000 रूपिया किलो ले जियादा हो जाथे. फेर वो बखत पऊधा मुहरत नई देखय. न त वो ह 'मुहुर्तनाल' और 'करिनाल'- शुभ अऊ अशुभ दिन ला देखय.

वो बस अपन सुभाव ला मानथे. जब भारी घाम होथे, अऊ येकर बाद बढ़िया पानी गिरथे, त धरती ह फूल ले खिल जाथे.  “हरेक जगा तुमन देखव मोंगरा हवय. तुमन पऊधा ला फूले ले रोके नई सकव, है न?” गणपति ह हंसत मोला पूछथे.

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गणपति ह हमर खाय बर गदराय जाम ला टोरथे

बरसात के फूल, जइसने के वो मन वोला कहिथें. मदुरई के लकठा के बजार मन मं येकर पुर आ जाथे. “मोंगरा टन मं आथे. पांच टन, छे टन, सात टन ,एक दिन मं दस टन घलो !” येकर ले अधिकतर सेंट कारखाना मं चले जाथें, वो ह बताथे.

माला अऊ गजरा सेती, फूल 300 रुपिया किलो ले जियादा दाम मं बिसोय अऊ बेंचे जाथे. “ फेर जब फूल भारी फूले लगथे, त हमन मुस्किल ले एक किलो टोरे सकथन, अऊ बजार मं पहुंचे नई सके सेती दाम ह बाढ़ जाथे. गर मोला भारी लेवाली बखत सिरिफ 10 किलो मिलथे, त मंय एक दिन मं 15,000 रूपिया कमा लेतेंव. काय ये ह बड़े आमदनी नो हे? वो ह मुरझाय आंखी ले. ठहाका लगा के हांसथे, वो ह कहत जाथे, “फिर मंय काबर, कुछु कुर्सी मं नई बइठहूँ, मंझनिया के बढ़िया खाय के बेवस्था करहूँ, अऊ मंय बस इहाँ बइठे रइहूँ अऊ तुमन ला इंटरव्यू दिहूँ!”

असल बात त ये आय के वो ह अइसने करे नई सकय. ओकर घरवाली घलो नई करे सकय. करे बर वो मन करा भारी बूता हवय ये महमहावत फसल ला उपजाय बर, खेत के निंदई-गुड़ई करत हवय. गणपति अपन बचे 1.5 एकड़ मं जाम के रुख लगाय हवंय. “ आज बिहनिया, मंय 50 किलो जाम बजार ले गेंव. वो मन येला 20 रूपिया किलो मं बिसोईन. तेल के खरचा काटके मोला करीबन 800 रूपिया मिलिस. जब ये इलाका मं जाम के अतक उपज नई रहिस, तब लेवाल आवंय अऊ मोर खेत ले टोर के मोला 25 रूपिया किलो के दाम देवत रहिन. वो दिन अब नंदा गे...”

गणपति पऊध मं करीबन एक लाख रूपिया लगाय हवय अऊ अपन एक एकड़ मं मोंगरा के खेत ला तियार करे हवंय. पऊध मं लगे ये लागत ह कम से कम 10 बछर तक ले फूलत रइही. हरेक बछर, मल्ली के सीजन आठ महिना तक ले चलथे, खासकरके मार्च अऊ नवंबर महिना के मंझा मं. अऊ वो ह कहिथे, ये ह बने अऊ बढ़िया दिन आंय, फेर जब कऊनो कली नई रहय तब ले घलो बगरत रहिथें. औसतन, वो ह अनुमान लगाथे, सीजन मं एक एकड़ मं 30, 000 रूपिया महिना.

येकर ले वो ह जइसने हवय ओकर ले जियादा लागथे. अधिकतर किसान मन के जइसने वो घलो बिन मजूरी वाले घर के मिहनत – अपन घरवाली अऊ अपन- ला खेती के लागत मं सामिल नई करय. गर वो ह ओकर हिसाब करही त मजूरी के लागत कतक होही? वो ह येला “500 रूपिया रोजी मं रखथे अऊ अपन घरवाली सेती 300 रूपिया के.”

येकर बर घलो, “तोला किस्मत वाले होय के जरूरत हवय,” वो ह बताथे. जइसने के हमन जल्दीच ओकर मोटर घर के भीतरी मं देखथन, ये ह किस्मत आय –कुछेक रसायन के संग.

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गणपति के फार्म मं मोटर घर. भूईंय्या (जउनि ) बऊरे बोतल अऊ दवई (कीटनाशक) के डब्बा ले भरे परे हवय

मोटर घर एक ठन नान कन खोली आय जिहां मंझनिया मं गणपति के कुकुर मन सुतथें. कोंटा मं कुकरी गोहड़ी घलो हवंय – अऊ असल मं हमन जऊन पहिली जिनिस ला देखथन वो ह एक ठन अंडा आय – गणपति वो ला उठा लेथे अऊ चेत करके हथेली मं धर लेथे. भूईंय्या ह कतको छोटे डब्बा अऊ दवई (कीटनाशक) के बोतल ले भरे परे हवय. ये ह करीबन बऊरे रसायन के शोरूम जइसने दिखथे. ये सब्बो जरूरी आंय गणपति ह धीरज धरे समझाथे, अपन पऊधा ला फूले सेती. "पालिचु," उज्जर मोंगरा के कली, बरकस, भारी अऊ मोठ तना वाली.

“ये ह अंगरेजी मं काय लिखाय हवय?” गणपति मोला कुछु डब्बा ला अपन हाथ मं ले के पूछथे. मंय एक एक करके नांव ला पढ़ेंव. “ये ह लाल जूं ला मारथे,ये ह कीरा बर आय. अऊ ये ह ये सब्बो कीरा ला मार देथे. अतके सारा कीरा मोंगरा के पऊधा ऊपर हमला करथें,” वो ह बड़बड़ावत हवय.

गणपति के बेटा ओकर सलाहकार आय. “वो ह एक ठन “मारुंधुकदाई”, कीटनाशक बेचेइय्या दूकान मं काम करथे,” वो ह बताथे, जब हमन ओकर मोंगरा के फूल जइसने उज्जर सुरुज के चिलचिलावत घाम मं बहिर निकरथन. एक ठन कुकुर पिल्ला ओद्दा भूईंय्या मं लोटत हवय, अऊ ओकर उज्जर रोंवा ललिहा जाथे. परछी मं एक ठन भुरुवा कुकुर घूमत हवय. “वो ला काय कहिके बलाथस,” मंय ओकर ले पूछथों. “मंय 'करुप्पु’ कहिके बलाथों, वो मन दउड़त आथें,” वो ह हंस परथे. तमिल मं करिया रंग ला करुप्पु कहे जाथे. मंय देखथों, ये मन कुकुर नो हें.

“बढ़िया, वो मन वइसने घलो आथें,” गणपति हंसत दूसर बड़े अकन परछी मं चले जाथे. एक ठन बाल्टी मं नरियर, बनेच पाके जाम हवंय.  “येला मोर गाय ह खाही. वो दूसर खेत मं चरत हवय.” संग मं कुछु देशी कुकुरी ठुनकत हवंय, करकरावत, दउड़त हवंय.

येकर बाद, वो ह मोला खातू ला दिखाथे – एक ठन बड़े, उज्जर बाल्टी मं, 800 रूपिया मं दूकान ले बिसोय ‘माटी के कंडीशनर’ (माटी ला सरस बनाय)- संग मं सल्फर के दाना अऊ जैविक खातू. “मोला कार्तिगैमासम (15 नवंबर ले 15 दिसंबर) मं बढ़िया उपज चाही. तब दाम बने मिलही, ये ह बिहाव के सीजन आय.” वो ह बहिर मं पथरा के खंभा ऊपर झुकत, वो ह हंसथे अऊ मोला बढ़िया खेती के राज ला बताथे: “तोला पऊधा के मन रखे ला परही. गर तंय करथस, त वो ह तोर मान रखही.”

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गणपति अपन दूनों कुकुर के संग – दूनो ला करुप्पु (करिया) कहे जाथे- अपन अंगना मं. जउनि: एक ठन कुकरी अपन दाना ला ठुनकत हवय

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डेरी : खातू के डब्बा. जउनि : गणपति दिखावत हवंय के कीरा मोंगरा के पऊधा मं कहां हमला करथें

गणपति महान कथाकार आंय. ओकर खेत ह थिएटर जइसने आय जिहां हरेक दिन कऊनो न कऊनो नाटक होवत रहिथे. “कालि रतिहा करीबन 9.45 बजे वो डहर ले चार ठन सुरा आइन. करुप्पु इहाँ रहिस, वो ह सुरा मन ला देखिस, वो मन पाके जाम के महक ले इहाँ आय रहिन, वो ह तीन ठन के पाछू भागिस, एक ठन वो डहर भाग गे,” वो ह अपन हाथ ला माई सड़क, मंदिर के पार, अऊ खुल्ला खेत डहर दिखाथे. “तंय काय कर सकथस? बनेच बखत पहिली कोलिहा रहिन, अब एको ठन नई ये.”

गर सुरा समस्या आय, त कीरा घलो आंय. मोंगरा के खेत मं किंदरत, गणपति बताथें के कीरा कतक जल्दी अऊ शातिर तरीका ले नवा फूल ऊपर हमला करथें. येकर बाद, वो ह हाथ हलावत चकोर अऊ गोल ला बतावत पऊध रोपे ला फोर के बताथे. अऊ मोर सहराय सेती कुछेक मोती कस फूल ला टोरथे. अऊ महक. “मदुरई मल्ली मं सबले बढ़िया महक हवय,” वो ह जोर देवत कहिथे.

मंय येकर ले राजी हवं. ये ह मोहनी महक आय अऊ ये ह मान जइसने लागथे: अपन खुदवाय चूंवा के चरों डहर किंदरत, मुरमी भूईंय्या मं, हमर गोड़ ह बजरी ला रगड़त रहय, गणपति के खेती बारे मं गियान ला सुनत अऊ अपन घरवाली पिचैयम्मा के मान-आदर करत . “हमन बड़े किसान नो हन, हमन चिन्नासमसारी (छोटे किसान) अन, अऊ हमन बइठे-बइठे लोगन ला आडर झाड़े नई सकन. मोर घरवाली हमर बनिहार मन के संग बूता करथे, हमर जिनगी अइसने गुजरत हवय, तुमन जानत हवव.”

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मोंगरा ये भूईंय्या मं कम से कम 2,000 बछर ले महकत चलत आवत हवय अऊ येकर बड़े इतिहास हवय. ये फूल ला तमिल के अतीत ले बुने गे हवय –येला रूप अऊ महक देवत – ओतकी सुग्घर ले जइसने येला एक ठन सूत ले माला बनाय सेती पिरोय जाथे. मुलाई के 100 ले जियादा के जिकर करे गे हवय- जइसने के तब मोंगरा के फूल ला कहे जावत रहिस - संगम साहित्य मं, फूल के कतको किसिम ला छोड़, हवाई के संगम तमिल विद्वान अऊ अनुवादक वैदेही हर्बर्ट कहिथें. वैदेही ह 300 ईसा पूर्व ले 250 ए डी तक के बीच के बखत मं लिखाय सब्बो 18 संगम जुग के किताब मन के अनुवाद अंगरेजी मं करे हवय अऊ ऑनलाइन नि: शुल्क हवय.

वो ह बताथें के ये ह मुल्लई आखर आय, जेन ह मल्लिगै के मूल आखर रहिस, जऊन ला अब हमन मल्ली के नांव ले जानथन. संगम कविता मं, मुलई पांच भीतरी नजारा मन ले एक के नांव आय - 'अकमथिन्नैस' – ये ह जंगल अऊ येकर तीर तखार के जमीन ला बताथे. दीगर चार –फूल धन रुख मन के नांव मं घलो हवंय - कुरिंजी (पहाड़), मरुथम (खेत), नेथल (समुंदर के किनारा) अऊ पाली (सुक्खा जंगल)।

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मदुरई जिला के उसिलामपट्टी तालुका मं नादुमुदलाईकुलम बस्ती मं पंडी के खेत मं मोंगरा के कली अऊ फूल

अपन ब्लॉग मं वैदेही ह लिखे हवय के संगम लेखक मन “कविता के असर हासिल करे अकम ---थिनाइस ला बऊरे हवय.” वो ह बताथे के रूपक अऊ उपमा, “खास नजारा मन मं चीज बस ऊपर आधारित हवंय. डारा-पाना , जीव अऊ बनेच अकन नजारा खुदेच कविता मन मं पात्र मन के हाव भाव ला बताय सेती बऊरे जाथे.” मुलई के नजारा मं बने तऊन छंद मन मं,बिसय “धीर धरे अगोरे” आय, मतलब, नायिका ह अपन मयारू के लहूंटे ला अगोरत हवय.

2,000 बछर ले पहिली घलो ये आइंकुरुनूरु कविता मं, ये ह वो मरद आय जऊन ह अपन सुवारी के सबले बढ़िया खास सुभाव ला तरसत हवय:

जइसने मोर नाचथे तोर जइसने,
जइसने मोंगरा महकत फूलथे
तोर माथा के महक जइसने,
जइसने हिरनी डेर्रावत तोर जइसने देखथे,
मंय तोला सोच के घर ले बहिर चले गेंव,
मोर मयारू, बरसात के बदरी ले घलो तेज.

संगम-युग के कविता मन के अनुवादक चेन्थिल नाथन, जऊन ह OldTamilPoetry.com चलाथें, मोला एक ठन अऊ कविता मिलथे, ये ह परी के बारे मं लोकप्रिय सुरता मं लिखे गे हवय, जेन ह संगम कविता मं लिखाय सात बड़े संरक्षक मन ले एक आय. चेन्थिल कहिथे, ये ह बड़े लंबा कविता आय, फेर ये चार पांत भारी सुंदर हवय. अऊ ये बखत ले जुरे हवय.

...परी, के भारी पैमाना मं शोहरत,
जऊन ह अपन प्रतापी रथ ला घंटी समेत दान कर दीस
खिलत मोंगरा के लता बिन सहारा के डोलत हवय
फेर ये ह कभू घलो ओकर गुन नई गाय सकही...

पुराणानुरू 200, पांत 9-12

आज तमिलनाडु मं चरों डहर खेती करेइय्या मल्ली किसिम के वैज्ञानिक नांव जैस्मीनमसांबक आय. खुल्ला फूल के खेती करे मं या राज ह सबले आगू हवय (काटे फूल के उलट). मोंगरा के उपज मं ये ह अगुवा हवय, भारत मं उगाय जावत कुल 240,000 टन मेर ले 180, 000 येकर भाग आय.

मदुरई मल्ली –येकर नांव उपर जी आई ( भौगोलिक संकेत ) के संग –कतको खास खासियत हवंय. वो मं हवय – भारी महक, मोट पंखुड़ी, सबले लंबा डंठल, कली के देर मं फूले, पंखुड़ी ह देर ले बदरंग होय अऊ लंबा बखत तक ले महकत रहे.

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मोंगरा के फूल ऊपर बइठे अऊ रस पीयत तितली

मोंगरा के दीगर किसिम के नांव घलो देखे सुने के लइक हवंय. मदुरई मल्ली ला छोड़, वो ला गुंडू मल्ली, नम्माओरुमल्ली, अम्बुमल्ली, रामबनम, मदनबनम, इरुवत्ची, इरुवत्चिप्पू, कस्तूरीमल्ली, ओसइमल्ली अऊ सिंगल मोगरा कहे जाथे.

मदुरई मल्ली, जिहां तक,सिरिफ मदुरई तक ले सिमटे नई ये, वो ह विरुधुनगर, थेनी, डिंडीगुल अऊ शिवगंगई समेत कतको जिला मं बगर गे हवय. वइसे सब्बो फूल मन ला मिलाके तमिलनाडु मं 2.8 फीसदी खेत जमीन मं खेती करे जाथे, मोंगरा के ये किसिम ह ये भूईंय्या के 40 फीसदी हिस्सा मं होथे. हरेक छठवां मोंगरा के खेत – यानि राज मं कुल 13,719 हेक्टेयर मेर ले 1,666 हेक्टेयर – मदुरई इलाका मं हवय.

फेर ये आंकड़ा कागज मं बने लागथे असल मं दाम मं ऊंच-नीच किसान के मन ला मार देथे. येकर बर एकेच ठन शब्द आय बइहा. वो मन के ‘महक’ सेती नीलकोट्टई बाजार मं 120 रूपिया किलो पाछू ले के  मट्टुथवानी फूल बाजार मं 3,000 अऊ 4,000 रूपिया तक (सितंबर 2022 अऊ दिसंबर 2021 मं) जगा के मुताबिक दाम जेन ह बिन तुक के अऊ बिन थिर दूनो लागथे.

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फूल के खेती ह लाटरी बरोबर आय ,ये ह बखत के बात आय. गर तिहार के सीजन मं फुलथे, त तंय कमा सकथस. नई त तोर लइका मन ये पेशा ला अपनाय ले पहिली दू बेर सोचहिं, बने कहत हवं ना? वो मन दाई ददा के पीरा ला देखथें, है ना? गणपति हमर जुवाब ला नई अगोरय. वो ह कहत जाथे: “छोटे किसान बड़े किसान के मुकाबला नई करे सकय. गर कउनो ला 50 किलो के जमीन के बड़े अकन हिस्सा ला टोरे सेती बनिहार के जरूरत परथे, त वो ह बनिहार ला 10 रूपिया उपराहा दे दिही अऊ वो मन ला गाड़ी मं बइठा के कलेवा कराहीं. का हमन ये करे सकथन?”

दीगर छोटे किसान मन के जइसने, वो ह बड़े बेपारी मन के संग "अदाइकलम” तीर जाथें. गणपति बताथे, “भारी फूले के बखत, मंय कतको घाओ बजार जाथों –बिहनिया, मंझनिया, संझा –फूल के बोरी ला धरके. मोला अपन उपज बेंचे सेती बेपारी मन के मदद के जरूरत परथे.” मोंगरा के बेंचे पइसा मं वो ह रूपिया पाछु 10 पइसा दलाली लेथे.

पांच बछर पहिली, गणपति ह मदुरई के एक बड़े फूल बेपारी पुकादाई रामचंद्रन ले कुछेक लाख रूपिया उधार ले रहिस, जऊन ह फ्लावर मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष घलो आंय. वो ह वोला फूल बेंच के पइसा तय करिस. अइसने लेन देन मं दलाली जियादा देय ला परथे, ये ह 10 ले 12.50 पइसा सैकड़ा तक ले चले जाथे.

छोटे किसान अपन जरूरत के संगे संग दवई (कीटनाशक) बिसोय बर, कम बखत बर करजा घलो लेथें. अऊ लड़ई चलत रहिथे – पऊधा अऊ कीरा के मंझा मं. सोचे के बात ये आय के जब फसल कड़क होथे, जइसने के रागी के मामल मं होथे, त एक ठन बड़े अकन जीव – जइसने हाथी- खेत मन मं धावा बोल सकत हवय. किसान अपन रागी ला बचाय असान तरीका खोजत जूझत हवंय. वो हमेसा कामयाब नई होवंय, अऊ बनेच अकन मन फूल के खेती डहर आगे हवंय. मदुरई के फूल उगेइय्या वाले इलाका मं, किसान नान कन जीव ले लड़थें- बड वर्म्स, ब्लॉसम मिड्ज, लीफ वेबर्स अऊ माइट्स – जऊन ह अपन पाछू बदरंग फूल, खराब पऊधा अऊ बरबाद किसान ला छोड़ जाथें.

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चिन्नमा मदुरई जिला के थिरुमल गांव मं अपन मोंगरा के खेत मं बूता करत हवंय, जेन मं कतको कीरा लगे हवय

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जवान अऊ डोकरा दूनो जोतई मं लगे हवंय. जउनि: इहाँ थिरुमल गांव मं मोंगरा के खेत के बगल मं कबड्डी खेलत

थिरुमल गांव मं, गणपति के घर ले थोकन दूरिहा मं, हमन ला एक ठन उजार परे खेत अऊ सपना घलो दिखथे. मल्लिथोत्तम (मोंगरा के खेत) 50 बछर के आर. चिन्नमा अऊ ओकर घरवाला रामर के आय. येकर दू बछर के पऊधा ह मोंगरा जइसने उज्जर हवंय. फेर सब्बो जींयत हवंय, वो ह कहिथे, “दूसर किसम के फूल जेकर ले बनेच कम दाम मिलही.” वो मं रोग लगे हवय, वो ह संसो करत, अपन जीभ ला चटकारत, अपन मुड़ी ला हलावत हवय. “फूल नई फूलय: वो बढ़े नई सकय.”

वइसने, ये मं सब्बो के हाड़तोड़ मिहनत लगे हवय. डोकरी माइलोगन मन, नान नान लइका, कालेज पढ़ेइय्या नोनी –ये सब्बो टोरथें. चिन्नमा हमन ले गोठियावत हवय, वो ह धीरे ले डंगाल ला हलाथे, कली मन ला खोजथे, वोला टोरथे, कंडांगी शैली के पहिरे अपन लुगरा मं धरथे. ओकर घरवाला रामर ह खेत मं कतको किसिम के दवई डारिस. “वो ह कतको ‘तेज असर वाले दवई’ ला बऊरे रहिस, जेन ह समान्य नई रहिस. वो ह 450 रूपिया लीटर पाछू खरचा करिस. फेर कुछु काम नई आइस! बात इहाँ तक ले पहुंच गे के दूकान के मालिक ह वोला अऊ पइसा बरबाद नई करे ला कहिस.” रामर ह तब चिन्नमा ले कहिस, “पऊधा ला उखाड़ फेंको. हमन ला 1.5 लाख के नुकसान होय हवय.“

येकरे सेती ओकर घरवाला ह खेत मं नई रहिस, चिन्नमा कहिस. वो ह कहिथे, "वायथेरिचा एल," ये तमिल शब्द के मतलब आय जरत पेट, जेन ह कड़वाहट अऊ जलन ला बताथे. “जब दूसर मन ला एक किलो मोंगरा के 600 रूपिया मिलही, त हमन ला 100 रूपिया मिलही.”  फेर ओकर रिस धन जलन पऊध ऊपर नई परे. वो ह धीरे ले डंगाल ला धरथे, वो ला तरी के कली तक ले पहुंचे बर भरपूर झुकाथे. गर हमर फसल बढ़िया होय रतिस, त हमन ला एक ठन बढ़े पऊधा ला टोरे मं कतको मिनट लग जातिस, फेर अब...” अऊ वो ह जल्दी ले आगू डहर बढ़ जाथे.

उपज ह कतको जिनिस ऊपर आसरित रहिथे, गणपति कहिथे, अपन खांध मं फरिया ला रखथे, अऊ चिन्नमा के पऊधा ला हाथ मं धरथे. “ये ह माटी, बढ़ती, किसान के हुनर के मुताबिक बदलत रहिथे. तुमन येला एक लइका बरोबर देखरेख करहू,” वो ह एक बेर अऊ कहिथे. “एक लइका तोर ले ये-वो मांगे नई सकय, सही आय ना? तोला अंदाजा लगाय ला चाही अऊ धीर धरे जुवाब देय ला चाही. लइका कस, पऊधा रोये नई सकय. फेर गर तोर करा येकर अनुभव हवय, त तोला पता चल जाही... गर वो ह कमजोर हवय, बीमार हवय धन मरत हवय.”

येकर कतको रसायन ला मिलाके डारे ले बने हो जाथें. मंय ओकर ले जैविक रूप ले मोंगरा लगाय के बारे मं पूछ्थों. ओकर बताय ह छोटे किसान मन ला दुविधा मं डार देथे. “तंय लगाय सकथस, फेर ये मं भारी जोखम हवय. मंय जैविक खेती के प्रसिच्छन लेय हंव,” गणपति कहिथे. “फेर येकर बर बढ़िया दाम कऊन दिही?” वो ह जल्दी ले सवाल करथे.

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डेरी : खिले मोंगरा के पऊधा मन ले घिरे एक ठन मरे पऊधा. जउनि: मोंगरा के कली ला एक ठन बाल्टी मं पाडी (नाप) के संग रखे जाथे, जऊन ला बनिहार मन के टोरे फूल ला नापे सेती बऊरे जाथे अऊ ओकर मुताबिक मजूरी देय जाथे

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मोंगरा टोरेइय्या के एक ठन मंडली, मालिक अऊ बनिहार दूनो गोठियावत हवंय. संगीत सुनत हवंय अऊ फूल खिले के पहिली बखत मं बजार ले जाय सेती लगे हवंय

“रसायनिक खातू बढ़िया उपज देथे अऊ सुभीता आय. ऑर्गेनिक पिचकाट आय अऊ मैला हो जाथे – तोला सब्बो जिनिस ला एक ठन घमेला मं भिंगोय ला परथे अऊ चेत धरे छिंचे ला परथे अऊ जब तंय वोला बजार मं ले के जाथस, त दाम मं कऊनो फेरफार नई होवय! ये ह दुख के बात आय काबर जैविक मोंगरा बड़े अऊ चमकीला होथे. जब तक ले येला बढ़िया दाम नई मिलय – मान लेव, दाम ह दुगुना नई हो जाय- ये ह मोर बखत अऊ मिहनत के लायक नई ये.”

अपन घर के सेती वो ह जैविक साग-भाजी कमाथे, “बस हमर अऊ मोर बिहाये बेटी सेती जेन ह आगू के गाँव मं रहिथे. मंय घलो रसायन ले दूरिहा जाय ला चाहत हवंव. वो ह कहिथे के येकर बनेच अकन दूसर डहर ले असर परथे. भारी दवई (कीटनाशक) के अतक जियादा डारे सेती ये तय आय के तोर सेहत ऊपर असर परही. फेर कऊनो चारा हवय काय?”

*****

गणपति के घरवाली पिचैयम्मा बर घलो कऊनो उपाय नई ये. वो ह सरा दिन खटत रहिथे. रोज के रोज. ओकर जिनगी एक ठन मुस्कान आय. वो ह बड़े करेजा के आय, भारी धीर धरे हवय. ये बखत ह अगस्त 2022 के आखिर के आय अऊ पारी के ओकर घर जाय के ये ह दूसर मऊका आय. अंगना मं खटिया ऊपर लीम के शीतल छईंय्या मं बइठे अपन रोज के बूता ला बतावत हवय.

“आदापाका, मादापाका, मल्लिगापुत्तोत्तमपाका, पूवापरिका, सामायका, पुल्लईगलान्नुपिविदा… [छेरी अऊ गाय मन के अऊ मोंगरा के खेत के देखरेख; मल्ली टोरे; रांधे, लइका मन ला स्कूल पठोय...] ये ओकर दम धरे नई देय लिस्ट आय.

45 बछर के पिचैयम्मा कहिथे, लइका मन के सेती ये हाड़तोड़ मिहनत आय. “मोर बेटा अऊ बेटी दूनो पढ़े लिखे अऊ डिग्रीधारी आंय.” वो ह कभू स्कूल नई गीस अऊ बचपना ले अपन दाई ददा के खेत मं बूता करत रहय अब इहाँ बूता करत हवय. वो अपन कान अऊ नाक मं कुछेक जेवर पहिरथे: ओकर घेंच मं थाली (मंगलसूत्र) के संग हल्दी के धागा हवय.

जऊन दिन हमन ओकर ले भेंट होय रहेन, वो ह मोंगरा के खेत मं निंदाई करत रहिस. ये ह सजा बरोबर बूता आय – जम्मो बखत कनिहा झुकाय, थोर-थोर रेंगत, भारी घाम मं बूता करत. फेर वो ह ये बखत, हमर बारे मं , ओकर पहुना के बारे मं चिंता करत हवय. वो ह कहिथे, कुछु खा लेवव. गणपति हमन ला गदराय महकत जाम अऊ हरियर नरियर के पानी लाथें, अऊ जब हमन ये कलेवा करत रहें, वो ह हमन ला बतातें के पढ़े लिखे जवान मन गाँव ले शहर चले गे हवंय. इहां जमीन 10 लाख रूपिया एकड़ ले कम मं नई बिकय. गर वो ह माई सड़क के बनेच तीर मं हवय त ये ह ये दाम ले चार गुना जियादा मं बिकथे. “ओकर बाद येला घर बनाय सेती ‘प्लाट’ बना के बेचे जाथे.”

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पिचैयम्मा मोला तऊन दिन के बारे मं बतावत हवय जब वो ह गाँव के एक झिन बनिहार के संग (जउनि) निंदई गुड़ई करथे अऊ अपन मोंगरा के खेत मं बूता करथें

जऊन लोगन करा जमीन हवय, वो मन ला नफा के कुछु गारंटी तभे होथे, जब परिवार अपन ‘फोकट’ के मिहनत करथे. गणपति हामी भरते के माईलोगन मन के हिस्सेदारी जियादा हवय. मंय पिचैयम्मा ले पूछथों के गर उही बूता वो ह कऊनो दीगर बर करतिस त ओकर मजूरी कतक होतिस. वो ह जुवाब देथे, “300 रूपिया.” अऊ ये मं ओकर घर के बूता शामिल नई ये, न त ओकर मवेशी पाले के करे बूता.

“काय ये कहे सही नई होही के तंय ह कम से कम अपन घर के 15,000 रूपिया बचा लेय?” मंय पूछथों. वो ह तुरते हामी भर लेथे, जइसने के गणपति करथे. मंय मजाक मं सलाह देथों के वो ला वो रकम देय ला चाही. हर कऊनो हंसे ला धरथें, पिचैयम्मा सबले जियादा.

फेर वो ह सुग्घर हँसी अऊ तीखा नजर के संग मोला मोर बेटी के बारे मं पूछथे के ओकर बिहाव मं मोला कतक सोन देय ला परही. “इहाँ हमन 50 सॉवरेन (अंगरेज मन के सोन के सिक्का) देथन, ओकर बाद जब पोता होथे, त हमन सों के एक चेन अऊ चांदी के पायल भेंट करथन; जब कान छिदवाय जाथे, त बोकरा  भात बर बोकरा; ये ह चलत रहिथे. ये सब हमर कमाई ले आथे. मोला बताव, काय मंय रोजी मजूरी लेगे सकहूँ?”

*****

एक तनखा, मंय वो संझा एक जवान मोंगरा किसान ले सिखेंव, बढ़िया अऊ जरूरी खेती सेती सहायक आय. ये एक ठन महत्तम गिरती आय, एक थिर आमदनी, भलेच येकर मतलब काम के दुगुना बोझ होय. छे बछर पहिली, मंय मदुरई जिला के उसिलामपट्टी तालुका के नाडुमुदलाईकुलम गाँव मं धान के किसान जेयाबल अऊ पोधुमानी ले इहीच तर्क सुनेंव. अगस्त 2022 मं जाय के बखत, जेयाबल ह मोला अपन बचपन के मितान अऊ मोंगरा किसान एम. पांडी ले भेंट करवाइस, जेन ह अर्थशास्त्र मं एम ए करे हवय अऊ तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (टीएएसएमएसी) के नऊकरी करथे, जेकर तीर राज मं बनाय विदेशी शराब(आईएमएफएल) बेंचे के खास हक हवय.

40 बछर के पंडी हमेशा किसानी नई करय. वो अपन खेत डहर जावत हमन ला अपन कहिनी सुनाय ला सुरु करथे, जेन ह गाँव ले 10 मिनट के दूरिहा मं हवय. हमन मीलों तक ले हरियर डोंगरी, बांध अऊ उज्जर मोंगरा के कली के चमक ले घिरे हवन.

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सुग्घर नाडुमुदलाईकुलम गाँव मं अपन मोंगरा के खेत मं पांडी जिहां कतको किसान धान के खेती घलो करथें

“मंय अपन पढ़ई के बाद ठीक 18 बछर पहिली टीएएसएमएसी मं शामिल होवंय. मंय अभू घलो उहिंचे काम करथों अऊ बिहान होय मोंगरा के खेत मं बूता करथों.” 2016 मं, वो बखत के नवा चुने गे मुख्यमंत्री अऊ एआईएडीएमके के मुखिया जे. जयललिता ह टीएएसएमएसी के काम के घंटा 12 ले घटा के 10 घंटा कर दीस. जब घलो वो ओकर जिकर करथें, पंडी ओकर बारे मं 'मनबुमिगु पुरात्ची थलाइवी अम्मा अवर्गल' (श्रद्धेय क्रांतिकारी नेता, अम्मा) बोलथें, ये उपाधि आदर अऊ औपचारिक दूनो आय. ये फइसला ह वोला बिहनिया मं बखत दे दिस काबर अब वोला मझनिया 12 बजे (बिहनिया 10 बजे के जगा) काम मं जाय ला होथे. वो ह तब ले ये बांचे दू घंटा अपन खेती मं लगा दे हवय.

पंडी अपन दूनो काम के बारे मं सफ्फा-सफ्फा अऊ भारी दम-खम के संग बोलथें, वो अपन मोंगरा के खेत मं दवई छिंछथें. “देखव, मंय एक झिन करमचारी अंव अऊ मंय अपन खेत मं बूता करवाय सेती 10 बनिहार घलो रखथों.” ओकर अवाज मं बिनय ले भरे गरब हवय. फेर ये ह असलियत ले अमना-सामना आय. फेर अब तंय खेती तभे कर सकथस जब तोर करा जमीन होय. सैकड़ों किसिम के दवई, हजारों रूपिया मं बिकथे. मोला तनखा मिलथे, मंय परबंध कर सकथों. नई त खेती भारी कठिन आय.

मोंगरा के खेती अभू घलो कठिन आय, वो ह बताथे. संगे संग तोला पऊधा के चरों डहर अपन जिनगी के तरीका बनाय ला परही. “तंय कहूँ नई जाय सकस; तोला बिहनिया ले फूल ला टोरे अऊ बजार ले जाय के कसम लेगे ला परही. संग मं आज तोला किलो भर मिल सकत हवय. अवेइय्या हफ्ता ये ह 50 किलो हो सकथे. तोला हरेक चीज बर तियार रहे ला परही!”

पंडी ह अपन एक एकड़ मं मोंगरा के पऊधा ला थोर-थोर करके लगाय हवय. वो ह कहिथे के एक किसान ला मोंगरा के पऊधा कतको घंटा हलाकान कर देथे. “मंय अपन काम ले करीबन आधा रात लहूंट के आथों.  मंय बिहनिया 5 बजे उठ जाथों अऊ इहाँ खेत मं हवंव. हमर दूनों लइका ला स्कूल भेजे के बाद मोर घरवाली मोर संग रहिथे. गर हमन येती–वोती आलस करके सुत जावन, त काय मंय सफल होय सकहूँ? अऊ काय मंय अऊ 10 लोगन ला काम-बूता दे सकथों?”

गर एकड़ भर पूरा फूल जाथे –पंडी अपन बनिहार मन ले जल्दी फूल टोरे बर जोर लगा देथे- “त तोला 20-30 बनिहार के जरूरत परही.” ओकर मन ले हरेक ला चार घंटा बूता करे 150 रूपिया देय ला होही, बिहनिया 6 बजे ले 10 बजे तक. गर सिरिफ किलो भर हवय –फुले कम होय के बाद –पंडी अऊ ओकर घरवाली शिवगामी अऊ ओकर दूनो लइका टोरथें. दीगर इलाका मं दाम कम हो सकथे, फेर ये ह उपजाऊ इलाका आय, जिहां धान के कतको खेत हवंय. बनिहार के भारी मांग हवय. तोला वो मन ला बढ़िया करके रोजी देय ला परही, अऊ चाहा-पानी कराय ला परही...”

घाम के महिना (अप्रैल अऊ मई) अइसने होथे जब भारी फूलाय रहिथे. “तोला 40-50 किलो मिल जाथे. दाम बहुते कम हो जाथे, कभू-कभू त 70 रूपिया किलो पाछू. अब भगवान के किरिपा ले सेंट कारखाना वाले मन दाम बढ़ा दे हवंय अऊ वो मन 220 रूपिया मं एक किलो मोंगरा के दर मं ले लेथें. जब बजार मं टन मं फूल होथे, त किसान ला सबसे बढ़िया दाम मिल सकथे. पंडी कहिथें, तब तोर भाग खुल जाथे.

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पंडी अपन मोंगरा के पऊधा ऊपर दवई अऊ खातू ला मिन्झार के छिंचत

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गणपति अपन मोंगरा के पउधा के पांत के मंझा मं चलत. जउनि: पिचैयम्मा अपन घर के आगू

वो अपन फूल ला धरके करीबन 10 कोस दूरिहा डिंडीगुल जिला के नीलकोट्टई बजार मं ले जाथे. "मत्तुथवानी मं – ये ह बहुत बढ़िया हवय, मंय गलत नई खत हवं –तंय येला किलो के हिसाब ले बेंच सकथस. नीलकोट्टई मं तंय येला बोरा मं बेंचथस. संग मं, बेपारी तीर मं बइठते. वो ह नजर रखथे, अऊ तोला अचानक आय खरचा, तिहार अऊ कभू-कभू फूल मं दवई डारे सेती बयाना देथे.”

छिंचे ह महत्तम आय, पंडी कहिथे, अपन परछी मं कमीज ला उतार के धारीदार टी शर्ट ला पहिरथे. मोंगरा के मयारू कतको हवंय. अऊ ये ह बनेच अकन कीरा मन ला अपन डहर खिंचथे. गणपति के उलट, जेकर करा अपन जानकार बेटा हवय, पंडी ला दूकान जाय ला परथे अऊ खास रसायन ला लेगे ला परथे. वो ह भूईंय्या मं बऊरे परे डब्बा अऊ बोतल कोती आरो करथे, अपन परछी के भीतरी ले वो ह टंकी अऊ स्प्रेयर ला बहिर लाथे, रोगर दवई (कीटनाशक) अऊ आस्था (खातू) ला पानी मं मिलाथे. एकड़ भर मं एक बेर मं डारे मं 500 रूपिया खरचा आथे, वो ह हर चार धन पांच दिन मं येला डारथे. तोला येला बढ़त सीजन धन कमतियात सीजन मं करे ला परही. कऊनो उपाय नई ये...”

करीबन आधा घंटा तक ले, नाक मं सिरिफ कपड़ा के मास्क लगाके, वो ह पऊधा ऊपर स्पेयर करत रहिथे. वो ह घन झाड़ी के मंझा मं चलत हवय, भारी मशीन ओकर पीठ मं लदाय हवय, ताकतवाले स्प्रेयर ले हरेक पाना अऊ फूल अऊ कली ऊपर महीन धुंवा मारथे. पऊधा ओकर कनिहा जतक ऊँच हवंय: धुंवा ओकर चेहरा तक हबर जाथे. मशीन के कलकल अऊ रसायन के धुंवा हवा मं तइरत हवय. पंडी चलत रहिथे अऊ स्प्रेयर करत रहिथे, सिरिफ डब्बा ला भरे बर रुकथे अऊ वो ह फिर चले जाथे.

बाद मं जब वो ह नहा के अऊ उज्जर कमीज अऊ लुंगी पहिर ले रहिस, त मंय ओकर ले रसायन के संपर्क मं आय के बारे मं पूछेंव. वो ह धीर धरे मोला जुवाब देथे : “ गर तंय मोंगरा के खेती मं जुट जाथस, त तोला बस उही करे ला परही जऊन ह येकर बर जरूरी आय. गर तंय [स्प्रे] करे नई चाहथस, त घर मं बइठे ला परही.” वो ह बोलत बखत अपन दूनो हथेली ला एक संग कर लेथे, जइसने जोहार करत होय.

हमर जाय ले गणपति घलो इही कहिथे. वो ह मोर झोला ला जाम ले भर देथे, हमन बढ़िया करके जावन येकर मनोती करथे, अऊ हमन ला एक बेर अऊ आय ला कहिथे. “अवेइय्या बेरा, ये घर ह तियार हो जाही,” वो ह अपन पाछू बिन पलस्तर वाले ईंटा के घर डहर आरो करथे. अऊ हमन इहाँ बइठबो अऊ बढ़िया खाबो.”

मोंगरा के हजारों किसान मन के जइसने पंडी अऊ गणपति ह घलो अपन आस अऊ सपना ला ये नान कन उज्जर फूल ऊपर रखे हवंय, जेकर महक मदहोस करेइय्या आय, अऊ ओकर डरावना अतीत हवय, अऊ बजार जिहां कारोबार जोरदार हवय अऊ थिर नई ये, पांच मिनट मं हजारों रूपिया (एक किलो मदुरई मल्ली) हाथ मं.

फेर ये ह एक दूसर दिन कहिनी आय.

ये शोध अध्ययन ला अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय डहर ले अपन रिसर्च फंडिंग प्रोग्राम 2020 के तहत फंडिंग करे गे हवय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Aparna Karthikeyan

Aparna Karthikeyan is an independent journalist, author and Senior Fellow, PARI. Her non-fiction book 'Nine Rupees an Hour' documents the disappearing livelihoods of Tamil Nadu. She has written five books for children. Aparna lives in Chennai with her family and dogs.

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Photographs : M. Palani Kumar

M. Palani Kumar is Staff Photographer at People's Archive of Rural India. He is interested in documenting the lives of working-class women and marginalised people. Palani has received the Amplify grant in 2021, and Samyak Drishti and Photo South Asia Grant in 2020. He received the first Dayanita Singh-PARI Documentary Photography Award in 2022. Palani was also the cinematographer of ‘Kakoos' (Toilet), a Tamil-language documentary exposing the practice of manual scavenging in Tamil Nadu.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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