“हमार तइयार कइल झोपड़ी 70 बरिस तक टिकेला.”

कोल्हापुर के जाम्भरी गांव में रहे वाला विष्णु भोसले के हुनर निराला बा- ऊ झोपड़ी बनावे में मास्टर बाड़ें.

विष्णु लकड़ी आउर फूस से झोपड़ी तइयार करेलें. झोपड़ी बनावे के कला में माहिर, 68 बरिस के विष्णु के ई कला आपन पुरखन से धरोहर में मिलल. एकरा ऊ आपन स्वर्गवासी पिता गुंडु से सीखलें. ऊ अबले 10 ठो झोपड़ी बना चुकल बाड़ें आउर मोटा-मोटी एतने बनावे में मदद कइले बाड़ें. ऊ बतइलें, “हमनी ई काम गरमी में करेनी. ओह घरिया खेत में जादे काम ना रहे. झोपड़ी बनावे के बात पर गांव के लोग बहुते जोश में रहेला.”

विष्णु 1960 के दशक इयाद करत बाड़ें. ओह घरिया जाम्भरी में सौ से ऊपर झोपड़ी रहे. एकरा बनावे में दोस्त लोग एक-दूसरा के मदद करे आउर एकरा बनावे के सामान मोहल्ले में आसानी से मिल जात रहे. ऊ बतइले, “झोपड़ी बनावे में एगो रुपइया खरचा ना होत रहे. कोई के खरचा करे के सामर्थ्य भी ना रहे. लोग तीन महीना तकले एकरा बने के इंतिजार करे. बाकिर बनावे के तबे सुरुआत होखे, जब सभे सामान सही तरीके से जुट जाए.”

दशक खत्म होखत-होखत, 4,963 आबादी (साल 2011 के जनगणना) वाला एह गांव में लकड़ी आउर फूस से बने वाला झोपड़ी नजर आवल बंद हो गइल. एकरा जगहा ईंटा, सीमेंट आउर टिन के घर ले लेलक. झोंपड़ी के पहिल नुकसान तब भइल जब गांव के कुम्हार खपरी कौल (छत के खपरा), चाहे कुम्भरी कौल बनावे लागल. बाद में मशीन से बनल बेंगलुरु के कौल कोउलू आइल. ई सभ जादे बरियार आउर टिकाऊ निकलल.

खपरा (टाइल्स) पर ध्यान देवे के जादे जरूरत ना पड़ेला. इहे ना, घास-फूस से झोपड़ी के छप्पर छावे में जेतना मिहनत लागेला, ओकरा से जल्दी आउर आसानी से खपरा के छत बन जाला. आखिर में, पक्का घर बनावे खातिर सीमेंट आउर ईंटा के आवे से झोपड़ी के करम फूट गइल. झोपड़ी बनल ना के बराबर हो गइल. जाम्भरी में लोग झोपड़ी में रहल छोड़ देलक. आज गांव में देखल जाव, त मुट्ठी भर लोग लगे ही झोपड़ी बा.

विष्णु कहलें, “अब गांव में झोपड़ी शायदे देखे के मिलेला. आवे वाला कुछ बरिस में इहंवा पारंपरिक झोपड़ी लउकल बंद हो जाई. काहेकि अब एकरा केहू संभारे के नइखे चाहत.”

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Vishnu Bhosale is tying the rafters and wooden stems using agave fibres. He has built over 10 jhopdis and assisted in roughly the same number
PHOTO • Sanket Jain
Vishnu Bhosale is tying the rafters and wooden stems using agave fibres. He has built over 10 jhopdis and assisted in roughly the same number
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विष्णु भोसले अगेव के रेशा से लकड़ी आउर शहतीर बांधत बाड़ें. ऊ अबले 10 ठो झोपड़ी बना चुकल बाड़ें आउर एतने के बनावे में मदद कइले बाड़ें

विष्णु भोसले जबो झोपड़ी बनावे उठेलें, उनकर दोस्त आउर पड़ोसी नारायण उनकरा मदद खातिर आ पहुंच जालें. दुनो यार-दोस्त लोग किसान हवे. देस में जगह जगह होखे वाला किसान प्रतिरोध में संगे-संगे घूम चुकल बा. (पढ़ीं: Jambhali farmer: Broken arm, unbroken spirit )

जाम्भरी में, विष्णु लगे एक एकड़ आउर नारायण लगे करीब 3.25 एकड़ जमीन होई. ऊ लोग ऊख संगे ज्वार, गेहूं, सोयाबीन, बीन्स आउर पालक, मेथी आ धनिया जइसन पत्तादार तरकारी उगावेला.

दस बरिस पहिले नारायण के मन के झोपड़ी बनावे ख्याल आइल. ओह घरिया ऊ औरंगाबाद के यात्रा पर रहस. उहंवा एक दिन खेतिहर मजूर आउर उनकर काम के दसा पर गपशप होखत रहे. ऊ उहंई झोपड़ी देखलें. ओकरे देखे के उनका ख्याल आइल, “अग्दी प्रेक्षणी (गजब सुन्दर) त्याचा गुरुत्वाकर्षण केंद्र अगदी बरोबर होता (एकर गुरुत्वकेंद्र बहुते नीमन तरीका से संतुलन में रहे),” ऊ बतइलें.

नारायण इयात करत बाड़ें कि ऊ झोपड़ी धान के पुआल से बनल रहे, एकर एक-एक हिस्सा खूब ठोक-बजा के बनावल रहे. ऊ जब एकरा बारे में पूछलें त पता चलल कि एकरा कवनो खेतिहर मजूर बनवले रहे. बाकिर ऊ ओह मजूर से मिल ना पइलें. ऊ झोपड़ी 76 बरिस के नारायण के मन लुभा लेलक. दशकन से ऊ रोज के जिनगी के दिलचस्प पहलू पर ध्यान दे रहल बाड़ें. उनकरा लगे मराठी में, हजारन पन्ना के हाथ से लिखल 40 गो अलग अलग डायरी बा. पॉकेट साइज से लेके A4 साइज तक.

उहंवा से अइला के दस बरिस के बाद ऊ आपन 3.25 एकड़ के जमीन पर ठीक वइसने झोपड़ी बनावे के ठनले. एह रस्ता में बहुते तरह के चुनौती आइल. सबसे भारी परेसानी ई रहे, झोपड़ी बनाई के.

एकरा बाद उनकर भेंट विष्णु भोसले, झोपड़ी बनावे वाला एगो अनुभवी कलाकार, से भइल. जल्दिए जोड़ी बन गइल. ई जोड़ी लकड़ी आउर फूस से हाथ से वास्तुशिल्प के एगो अनूठा नमूना, झोपड़ी तइयार कइलक.

“ई झोपड़ी जबले रही, नयका पीढ़ी के हजारन पुरान बरिस के कला के इयाद दिलावत रही,” नारायण कहलें. झोपड़ी बनावे में उनकर संगी, विष्णु के कहनाम रहे, “लोग हमार काम के बारे में कइसे जानी?”

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Vishnu Bhosale (standing on the left) and Narayan Gaikwad are neighbours and close friends who came together to build a jhopdi
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विष्णु भोसले (बावां में ठाड़) आउर नारायण गायकवाड़ पड़ोसी आउर पक्का यार बाड़ें, ऊ लोग संगे मिलके झोपड़ी तइयर कइलक

Narayan Gaikwad is examining an agave plant, an important raw material for building a jhopdi. 'This stem is strong and makes the jhopdi last much longer,' explains Vishnu and cautions, 'Cutting the fadyacha vasa [agave stem] is extremely difficult'
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नारायण गायकवाड़ अगेव, झोपड़ी बनावे खातिर एगो जरूरी कच्चा माल, के गाछ के मुआयना करत बाड़ें. विष्णु समझावत बाड़ें, ‘एकर तना बहुते बरियार बा. एकरा से खूब बरियार झोपड़ी बनी,’ चेतावत भी बाड़ें, ‘फडयचा वसा (अगेव गाछ) के काटल बहुत मोस्किल बा’

Narayan Gaikwad (on the left) and Vishnu Bhosale digging holes in the ground into which poles ( medka ) will be mounted
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नारायण गायकवाड़ (बावां) आउर विष्णु भोसले जमीन खोदत बाड़ें. एहि में खंभा (मेडका) गाड़ल जाई

झोपड़ी बनावे खातिर सबसे पहिले ई सोचे के पड़ेला कि ई कथी खातिर बनावल जात बा, “उपयोग के आधार पर एकर आकार आउर ढांचा अलग-अलग होखेला,” विष्णु बतइलें. जइसे कि, भूसा रखे खातिर तिकोना, छोट परिवार खातिर छोट कमरा चाहीं, त 12 गुणा 10 फीट के आयताकार झोपड़ी बनी.

नारयण किताब के कीड़ा बाड़ें. पढ़े खातिर एगो छोट झोपड़ी बनावे के उनकर सपना बा. एह में आपन किताब, पत्रिका आउर अखबार सजा के रखे के सोचले बाड़ें.

झोपड़ी के इस्तेमाल के बारे में उनकरा दिमाग में साफ रहे. इहे सोच के ऊ कुछ बेंत से एकर छोट मॉडल बनइलें. ऊ नारायण संगे मिलके एकर एक-एक कोना सजइलें. एकरा प्लान करे में 45 मिनिट लागल. नारायण के खेत के कुछ चक्कर लगइला के बाद एगो जगह तय कइल गइल. उहंवा हवा के जोर सबले कम रहे.

“झोपड़ी खाली गरमी, चाहे जाड़ा खातिर ना बनावल जाला. ई पच्चीसो बरिस तक चलेला. एहि से हमनी एकरा बनावे से पहिले बहुते तरह से सोच-विचार कइनी,” नारायण के कहनाम रहे.

जहंवा झोपड़ी बनावे के तय भइल, उहंवा भूंइया में दू फुट गहरा गड्ढा खोदल गइल. सभे गड्ढा के बीच 1.5 फीट के दूरी रखल गइल. 12 x 9 फीट के झोपड़ी बनावे खातिर अइसन 15 गो गड्ढा के जरूरत रहे. एतना खोदाई करे मोटा-मोटी एक घंटा लाग गइल. सभे गड्ढा के प्लास्टिक के बोरी से ढंक देहल गइल. विष्णु कहलें, “अइसन एहि से कइल गइल कि कहीं गड्ढा में पानी ना भर जाव, ना त लकड़ी मजबूती से गड़ाई ना.” लकड़ी में कवनो गड़बड़ भइल त झोपड़ी के सड़े के खतरा रहेला.

दू गो सबसे दूर आउर बीच के एगो गड्ढा में विष्णु आउर अशोक भोसले मेडका, यानी खंभा के सावधानी से टिकइलें. खंभा 12 फीट के रहे. ई चंदन (संतालम अलबम), बबूल (वचेल्लिया नीलोटिका), चाहे कडु लिम्ब (अजाडिराचा इंडिका) के लकड़ी से तइयार कइल जाला. देखे में अंग्रेजी के वाई अक्षर जइसन लागेला.

‘वाई’ के ऊपरी सिरा पर लकड़ी के बरियार डंडा बिछा देवल जाला. नारायण बतवलें, “बीच में ठाड़ दू गो मेडका के आद कहल जाला. ई कमो ना त 12 फीट ऊंच आउर बाकी खंभा 10 फीट ऊंच रहेला.”

Left: Narayan digging two-feet holes to mount the base of the jhopdi.
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Right: Ashok Bhosale (to the left) and Vishnu Bhosale mounting a medka
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बावां: झोपड़ी के नीव तइयार करे खातिर नारायण भूइंया में दू-फीट गड्ढ़ा खोदत बाड़ें. दहिना: अशोक भोसले (बावां ओरी) आउर विष्णु भोसले मेडका तइयार करत बाड़ें

Narayan and Vishnu (in a blue shirt) building a jhopdi at Narayan's farm in Kolhapur’s Jambhali village.
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Narayan and Vishnu (in a blue shirt) building a jhopdi at Narayan's farm in Kolhapur’s Jambhali village.
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नारायण आउर विष्णु (बुल्लु शर्ट में) कोल्हापुर के जाम्भरी गांव में नारायण के खेतत पर झोपड़ी तइयार करत बाड़ें

बाद में, लकड़ी से बनावल इहे खांचा पर छप्पर रखाई; लकड़ी के दू गो लम्हर मेडका के एह तरह से जमीन में खड़ा कइल जाई कि जबो पानी बरसे, एकरा पर रखल छप्पर से पानी ढलक के जमीन पर गिरे, न कि घर के भीतर जाए.

झोपड़ी के छत (छप्पर) छावे खातिर अइसन आठ गो मेडका के ऊपरी ओरी करके खड़ा कइल जाला. मेडका लगावे में दू घंटा के करीब लाग जाला. इहे मेडका से, नीचे निकले वाला रसरी, जेकरा विलु कहल जाला, जे गांव के बांस जइसन चीज से बनल रहेला, से झोपड़ी के दुनो सिरा के आपस में जोड़े में मदद मिलेला.

विष्णु कहलें, “अब त चंदन आउर बबूल के गाछ मिलल दूभर होत जा बा. इ सभे जरूरी देसी पेड़ के जगहा अब लोग ऊंख उगावे लागल बा. चाहे एकरा जगह इमारत खड़ा कइल जात बा.”

लकड़ी के खांचा तइयार भइला पर, अब शहतीर के ढालल जाई. शहतीर छत के भीतरी हिस्सा तइयार करेला. एह झोपड़ी खातिर, विष्णु 44 शहतीर लगावे के सोचले बाड़ें. छत के टेक देवे खातिर दुनो सिरा पर 22-22 गो शहतीर लगावल जाई. शहतीर अगेव के तना से बनेला. एकरा क्मराठी में फदयाचा बुलावल जाला. एगो अगेव तना 25 से 30 फीट ऊंचा उग सकेला. एकरा आपन ताकत खातिर पहचानल जाला.

विष्णु समझइलें, “ई तना बहुते बरियार होखेला, एकरा पर झोपड़ी बहुते जादे दिन तक टिकेला.” शहतीर जेतना लागी, झोपड़ी ओतने बरियार बनी. बाकिर ऊ चेतावत बाड़ें, “फदयाचा वसा के काटल भारी मुस्किल काम बा.”

अगेव के रेशा से लकड़ी के आड़ा खंभा के बांधे के काम कइल जाला. ई बहुते जादे टिकाऊ होखेला. अगेव के पत्ता से रेशा निकालल सबसे मुस्किल काम बा. नारायण के एह काम में महारत हासिल बा. दरांती से रेशा निकाले में 20 मिनट से भी कम लागेला. ऊ हंसत कहे लगलें, “लोग के इहो नइखे पता, अगेव के पत्ता में रेशा होखेला.”

एह रेशा से पर्यावरण के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल रसड़ी भी तइयार होखेला. (पढ़ी: गायब होखत भारत के महान रसड़ी )

Ashok Bhosale passing the dried sugarcane tops to Vishnu Bhosale. An important food for cattle, sugarcane tops are waterproof and critical for thatching
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अशोक भोसले ऊंख के सूखल ऊपरी हिस्सा विष्णु के बढ़ावत बाड़ें. गाय-भैंस जइसन पालतू जनावर खातिर ई बहुते नीमन खाना बा. खप्पर छावे में एकर खास इस्तेमाल होखेला, ई छत के पानी से बचावेला

Building a jhopdi has become difficult as the necessary raw materials are no longer easily available. Narayan spent over a week looking for the best raw materials and was often at risk from thorns and sharp ends
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झोपड़ी बनावल अब दुश्वार हो गइल बा. एकरा बनावे खातिर जरूरी चीज ना मिले. नारायण नीमन कच्चा माल हफ्ता भर पहिले से खोजल सुरु कर देलें. उनकरा एकर नुकीला सिर आउर एकर कांटा से चोट लागे के डर भी रहेला

लकड़ी के खांचा एक बेर तइयार होके जगह पर रखा गइला के बाद नरियर के पत्ता आउर ऊंख के डाढ़ से देवाल सभ तइयार कइल जाला.एह में हंसुआ भी आसानी से खोंसल जा सकेला.

जब झोपड़ी ठाड़ होखे लागल, त सभे कोई एकरा देखे आवे लागल बा. छत छवावे खतिर ऊंख के गाछ के सबले ऊपरी हिस्सा- काचा ऊंख आउर ओकर पत्ता से छप्पर छवावल जाला. नारायण कहलें, “पहले हमनी अइसन किसान लगे से ई सभ ले आवत रहीं, जे गाय-गोरू ना पालत रहे.” अब ई गाय-गोरू खातिर एगो नीमन खाना हो गइल बा, एह से ऊ लोग अब एकरा मुफ्त में ना देवे.

ज्वार आउर गेहूं के सूखल पुआल से छत के एक एक हिस्सा तोपल जाला. एकरा से झोपड़ी बहुते सुंदर लागेला. नारायण कहलें, “एक झोपड़ी में कमो ना त आठ बिंदा (मोटा-मोटी 200 से 250 किलो ऊंख के ऊपरी हिस्सा) लाग जाला.”

छप्पर छावल बहुते खटे वाला काम होखेला. एह काम में मोटा-मोटी तीन गो दिन खत्म हो जाला.  एकरा बनावे खातिर तीन लोग के छव से सात घंटा लागे के पड़ेला. विष्णु बतइले, “सभे डाढ़ (डंठल) के बहुत ध्यान से संभाल के रखे के होखेला, ना त बरसात में एकरा से पानी चुए लागी.” झोपड़ी के छप्पर हर तीन से चार बरिस में बदले पड़ेला. एकरा छप्पर शेकरणे कहल जाला.

विष्णु के घरवाली, लगभग साठ बरिस के अंजना कहली, “जाम्भरी में झोपड़ी बनावे के काम मरदे लोग करेला. मेहरारू लोग खाली बनावे खातिर सामान जुटावे आउर माटी के एक बराबर करे में मदद करेला.”

जब झोपड़ी बन के तइयार हो जाला, एकरा भीतर के माटी के कोड़ के ओह में पानी भरल जाला. एह पानी के तीन दिन तक सूखे के छोड़ देहल जाला. नारायण बतइलें, “एकरा से माटी में जे चिपचिपापन रहेला, ऊ हट जाला.” एक बार काम पूरा होखला के बाद एकरा ऊपर पांढ़री माटी (उज्जर माटी) बिछावल जाला. ई माटी नारायण आपन किसान दोस्त से लेके आइल बाड़ें. ‘उज्जर’ माटी लोहा आउर मैगनीज ना होखे से मद्धम रंग के होखेला.

Before building the jhopdi , Vishnu Bhosale made a miniature model in great detail. Finding the right place on the land to build is critical
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Before building the jhopdi , Vishnu Bhosale made a miniature model in great detail. Finding the right place on the land to build is critical
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झोपड़ी बनावे से पहिले, विष्णु भोसले खूब रच-रच के से एकर एगो छोट मॉडल बनइलें. झोपड़ी बनावे खातिर जमीन पर नीमन जगह खोजल बहुते जरूरी रहेला

Ashok Bhosale cuts off the excess wood to maintain a uniform shape.
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अशोक भोसले फालतू लकड़ी छांट के एकरा एगो नीमन आकार देत बाड़ें. दहिना: अंग्रेजी के वाई अक्षर के आकार के मेडका, एकरा पर लकड़ी के डाढ़ सभ आड़ा रखाई

उज्जर माटी के ताकत बढ़ावे खातिर एह में घोड़ा, गाय आउर दोसर मवेशी के गोबर फेंटल जाला. एकरा जमीन पर बिछा के, मरद लोग धुम्मुस नाम के लकड़ी के औजार से दबावेला. ई औजार 10 किलो के होखेला. एकरा अनुभवी बढ़ई लोग इस्तेमाल करेला.

माटी के ठोक-ठोक के तइयार कइला के बाद, मेहरारू लोग एकरा बडवणा से एक बराबर करेला. बबूल से बनल बडवणा देखे में क्रिकेट के बैट जइसन लउकेला. नारायण के लगे जे बडवणा रहे, बहुते दिन पहिले भूला गइल रहे. गनीमत बा कि उनकर 88 बरिस के भाई सखाराम एकरा हिफाजत से रखले रहस.

कुसुम नारायण के घरवाली हई. ऊ झोपड़ी तइयार करे में बहुते जरूरी भूमिका निभावेली. 68 बरिस के कुसुम कहतारी, “हमनी के खेती-किसानी से जब कबो समय मिलेला, खेत के बराबर करे के काम करिले.” ऊ बतइली कि ई एतना भारी काम होखेला, परिवार के सभे लोग आउर दोस्त के बारी-बारी से मदद करे के पड़ेला.

माटी एक बेर बराबर भइला पर, मेहरारू लोग एकरा गोबर से लीपे में व्यस्त हो जाली. गोबर माटी में दरार ना पड़े देवे. ई मच्छर के भी घर से दूर रखेला.

अब घर होखे आउर ओह में फाटक ना होखे, त कइसे चली. देसी ज्वार, ऊंख आउर नरियर के सूखल पत्ता के डाढ़ सभे के मिलाके आपस में बांध के फाटक तइयार कइल जाला.  जाम्भरी में कवनो देसी किसिम के चीज ना उगावल जाला. झोपड़ी बनावे वाला खातिर ई एगो चुनौती बा.

नारायण कहलें, “पुरनका तरीका से खेती छोड़ के अब गांव में सभे कोई हाइब्रिड खेती करे लागल बा. एकर चारा ओतना पौष्टिक ना होखे, आउर ना ही ओतना जादे चले जेतना देसी चलेला.”

Narayan carries a 14-feet tall agave stem on his shoulder (left) from his field which is around 400 metres away. Agave stems are so strong that often sickles bend and Narayan shows how one of his strongest sickles was bent (right) while cutting the agave stem
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Narayan carries a 14-feet tall agave stem on his shoulder (left) from his field which is around 400 metres away. Agave stems are so strong that often sickles bend and Narayan shows how one of his strongest sickles was bent (right) while cutting the agave stem
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नारायण 400 मीटर दूर आपन खेत से कंधा (बावां) पर लादके 14 फीट लमहर अगेव गाछ के डाढ़ लेके आवत बाड़ें. अगेव के डाढ़ एतना बरियार होखेला कि एकरा काटे में अक्सरहा दरांती टेढ़ हो जाला. नारायण देखावत बाड़ें कि कइसे डाढ़ काटे में उनकर सबले बरियार दरांती (दहिना) टेढ हो गइल

खेती के तरीका बदले से, झोपड़ी बनल कम हो गइल बा. पहिले गरमी में झोपड़ी बनावे के काम होखत रहे. ओह घरिया खेत में जादे काम ना रहत रहे. बाकिर विष्णु आउर नारायण के कहनाम बा कि अब त खेत खाली रहलो पर दम लेवे के फुरसत ना होखे. विष्णु बतइलें, “पहिले, हमनी साल में एक बेर अनाज उगावत रहीं. अब त साल में दू-तीन बेर खेती कइलो पर पेट नइखे भरत.”

झोपड़ी बनावे में नारायण, विष्णु, अशोक आउर कुसुम के मिलके पांच महीना आउर 300 से जादे घंटा लाग गइल. एह बीच खेती के काम भी चलत रहल. “एकरा बनावे के काम एकदम थका देवेला काम बा, सबले जादे मुस्किल त एकरा खातिर जरूरी सामान जुटावे में बा,” नारायण बतावत बाड़ें. उनकरा जाम्भरी के अलग अलग हिस्सा से कच्चा माल जुटावे में एक हफ्ता से बेसी लाग गइल.

झोपड़ी बनावे घरिया केतना बेरा कांटा चुभ जाला, खपच्ची से देह-हाथ में कटा चाहे छिला जाला. नारायण आपन अंगुरी के घाव देखावत कहलें, “ई दरद सहे के आदत नइखे, त रउआ कइसन किसान बानी?”

आखिरकार झोपड़ी बन के तइयार बा. एकरा बनावे में जे भी लागल रहे, ऊ लोग थक के पस्त हो गइल. बाकिर एकरा ठाड़ देख के सभे कोई गदगद हो रहल बा. हो सकेला ई जाम्भरी के आखिर झोपड़ी होखे. विष्णु के हिसाब से अब कोई झोपड़ी बनावे के कला नइके सीखे के चाहत. बाकिर नारायण सांत्वना देत बाड़ें, “कोन यउदे किनवा नहीं यउदे, अपलयाला कहिणी फरक पड़ता नाही (केहू आवे, ना आवे… का फरक पड़त बा).” उनकरा झोपड़ी में चैन के नींद आवेला. ऊ एकरा लाइब्रेरी बनावे के चाहत बाड़ें.

नारायण गायकवाड़ कहत बाड़ें, “जबो कवनो दोस्त, मेहमान घरे आवेला, हम गरव से उनका ई झोपड़ी देखावेनी. पारंपरिक कला के जिंदा रखे के हमार कोसिस के सभे केहू तारीफ करेला.”

Vishnu Bhosale shaves the bamboo stems to ensure they are in the proper size and shape. Narayan extracting the fibre from Agave leaves which are used to tie the rafters and horizontal wooden stems
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Vishnu Bhosale shaves the bamboo stems to ensure they are in the proper size and shape. Narayan extracting the fibre from Agave leaves which are used to tie the rafters and horizontal wooden stems
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विष्ण भोसले बांस के डंठल छिल के आपन जरूरत के हिसाब से आकार देत बाड़ें. नारायण अगावे के पत्ता से रेशा निकाल के शहतीर आउर आड़ा रखल लकड़ी के डाढ़ के बांधे का काम करिहें

The women in the family also participated in the building of the jhopdi , between their work on the farm. Kusum Gaikwad (left) is winnowing the grains and talking to Vishnu (right) as he works
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The women in the family also participated in the building of the jhopdi , between their work on the farm. Kusum Gaikwad (left) is winnowing the grains and talking to Vishnu (right) as he works
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खेती में कार करे के बीच परिवार के मेहरारू लोग भी झोपड़ी बनावे में हिस्सा लेवेला. कुसुम गायकवाड़े (बावां) अनाज फटक रहल बाड़ी आउर काम कर रहल विष्णु (दहिना) से बतियावतो बाड़ी

Narayan Gaikwad attending a call on his mobile while digging holes for the jhopdi
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नारायण गायकवाड़ झोपड़ी खातिर गड्ढा खोदे घरिया फोन पर केहू से बतियावत बाड़ें

Narayan’s grandson, Varad Gaikwad, 9, bringing sugarcane tops from the field on the back of his cycle to help with the thatching process.
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नारायण के पोता, नौ बरिस के वरद गायकवाड़, छप्पर छावे खातिर आपन साइकिल पर ऊंख के ऊपरी हिस्सा बांध के खेत से लावत बाड़े

Narayan’s grandson, Varad hangs around to watch how a jhopdi is built
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नारायण के पोता, वरद देखे आइल बाड़ें कि झोपड़ी कइसे बनेला

The jhopdi made by Narayan Gaikwad, Kusum Gaikwad, Vishnu and Ashok Bhosale. 'This jhopdi will last at least 50 years,' says Narayan
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The jhopdi made by Narayan Gaikwad, Kusum Gaikwad, Vishnu and Ashok Bhosale. 'This jhopdi will last at least 50 years,' says Narayan
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नारायण गायकवाड़, कुसुम गायकवाड़, विष्णु आउर अशोक भोसले लोग मिलके झोपड़ी बनइले. नारायण के कहनाम बा, ‘ई झोपड़ी कमो ना, त 50 बरिस ले रही’

Narayan Gaikwad owns around 3.25 acre on which he cultivates sugarcane along with sorghum, emmer wheat, soybean, common beans and leafy vegetables like spinach, fenugreek and coriander. An avid reader, he wants to turn his jhopdi into a reading room
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नारारण गायकवाड़ आपन 3.25 एकड़ के खात पर ऊंख संगे ज्वार, गेहूं, सोयाबीन आउर पालक, मेथी, धनिया जइसन पत्ता वाला तरकारी उगावेलें. पढ़े के शौकीन, ऊ आपन झोपड़ी के एगो रीडिंग रूम बनावे के चाहत बाड़ें


संकेत जैन के गांव-देहात के कारीगर के ऊपर कइल गइल स्टोरी के कड़ी में, इहो एगो स्टोरी बा. एकरा मृणालिनी मुखर्जी फाउंडेशन से सहायता मिलल बा

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Sanket Jain

Sanket Jain is a journalist based in Kolhapur, Maharashtra. He is a 2022 PARI Senior Fellow and a 2019 PARI Fellow.

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Editor : Priti David

Priti David is the Executive Editor of PARI. She writes on forests, Adivasis and livelihoods. Priti also leads the Education section of PARI and works with schools and colleges to bring rural issues into the classroom and curriculum.

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Photo Editor : Sinchita Maji

Sinchita Maji is a Senior Video Editor at the People’s Archive of Rural India, and a freelance photographer and documentary filmmaker.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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