बेस कैंप में नए सिरे से आशा और उत्सुकता दिखाई दे रही थी, जहां हरे रंग की वर्दियों में पुरुष और महिलाएं अपने सेलफ़ोन पर संदेशों, नक्शों और तस्वीरों की लगातार निगरानी कर रहे थे।
उस दिन सुबह-सवेरे, एक खोजी टीम ने पास के जंगल के एक हिस्से में पैरों के ताज़ा निशान देखे थे।
वन विभाग के एक सूत्र ने बताया कि एक अन्य टीम, कपास के खेतों और जल निकायों से घिरे झाड़ीदार जंगल के 50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लगाए गए 90 कैमरों में से एक से, बाघ की कुछ धुंधली तस्वीरों के साथ लौटी है। “धारियां मादा जैसी दिख रही हैं,” हरी वर्दी पहने एक युवा वनपाल ने कहा, उसकी आवाज़ तनाव भरी है। “तस्वीर साफ़ नहीं है,” उसका सीनियर कहता है, “हमें उसके बारे में और स्पष्टता चाहिए।”
क्या यह उसकी हो सकती है? क्या वह आसपास ही हो सकती है?
वन रक्षकों, खोजकर्ताओं और तेज़ निशानेबाज़ों की टीमें एक और कठिन दिन के लिए अलग-अलग दिशाओं में फैलने वाली थीं, एक बाघिन की खोज में, जो अपने दो शावकों के साथ लगभग दो साल से पकड़ में नहीं आ रही थी।
बाघों ने कम से कम 13 ग्रामीणों पर हमला करके उन्हें मार दिया था – वह इन सभी मामलों में संदिग्ध थी।
वन्यजीव निरीक्षक के आदेशानुसार कि बाघिन को ‘पकड़ो या मार दो’, दो महीने से बड़ा ऑपरेशन चल रहा था। लेकिन दोनों में से कोई भी विकल्प आसान नहीं था। 28 अगस्त 2018 से, उसने अपना कोई सुराग नहीं दिया था। कैमरे की एक छोटी सी बीप, या पैरों के निशान, उसे ढूंढने या पकड़ने की कोशिश में लगी टीमों के बीच उम्मीद जगा देते।

दो महीना तक , विदर्भ के यवतमाल जिले के लोणी और सराटी गांवों के बीच एक ‘बेस कैंप’ स्थापित किया गया था , जिसमें बाघ का पता लगाने वाले 200 लोगों को बाघिन को ‘पकड़ने या मारने’ की जिम्मेदारी दी गई थी
* * * * *
यह अक्टूबर के मध्य में रविवार की एक सुबह है, जब सर्दियों की ठंड शुरू होनी बाकी है। हम जंगल के एक दूर के हिस्से में हैं, जहां अधिकारियों ने एक अस्थायी टेंट लगाया है, जिसे वे पश्चिमी विदर्भ के यवतमाल जिले में लोणी और सराटी गांवों के बीच इस ऑपरेशन का बेस कैंप कह रहे हैं। यह क्षेत्र, कपास के किसानों की लगातार आत्महत्याओं के कारण बदनाम है।
यह रालेगांव तहसील है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग 43 के उत्तर में, वडकी और उमरी गांवों के बीच स्थित है। यहां मुख्य रूप से गोंड आदिवासियों के घर हैं, जिनमें से ज्यादातर छोटे और गरीब किसान हैं जो कपास और मसूर की खेती करते हैं।
बाघ का पता लगाने वाली टीम में 200 वन्य कर्मचारी हैं – गार्ड, महाराष्ट्र वन विभाग के वन्यजीव विभाग के रेंज फ़ॉरेस्ट अधिकारी, राज्य का वन विकास निगम, जिला फ़ॉरेस्ट ऑफ़िसर, मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) और वन्यजीव विभाग का सबसे शीर्ष अधिकारी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ, वन्यजीव) शामिल हैं। ये सभी मिलकर काम करते हैं, चौबीसों घंटे मैदान में तैनात रहते हैं, जंगली बिल्ली और उसके दो शावकों को ढूंढ रहे हैं।
इसके अलावा समूह में हैदराबाद के तेज़ निशानेबाज़ों का एक विशेष दल है, जिसका नेतृत्व नवाब शफ़ात अली ख़ान कर रहे हैं, जो एक अभिजात परिवार के 60 वर्षीय प्रशिक्षित शिकारी हैं। नवाब की उपस्थिति ने अधिकारियों और स्थानीय संरक्षणकर्ताओं को विभाजित कर दिया है, जो उनकी भूमिका से बहुत ज़्यादा ख़ुश नहीं हैं। लेकिन वह “दुष्ट” जंगली जानवर को शांत करने [नशे वाला इंजेक्शन देकर पकड़ने] या मारने के लिए, भारत भर के वन्यजीव अधिकारियों के लिए एक महत्तवपूर्ण व्यक्ति हैं।
“उन्होंने ऐसा कई बार किया है,” उनकी टीम के सदस्य सैय्यद मोइनुद्दीन ख़ान कहते हैं। कुछ समय पहले, उन्होंने एक बाघिन को शांत करके पकड़ा था, जिसने भारत के 50 नामित बाघ अभ्यारण्यों में से एक, ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान के निकट दो लोगों को मार डाला था।
उन्होंने बिहार और झारखंड में छह महीने में 15 लोगों को मौत के घाट उतारने वाले एक “दुष्ट” हाथी को पकड़ लिया, और एक तेंदुए को गोली मारी जिसने पश्चिमी महाराष्ट्र में सात लोगों की हत्या कर दी थी।
लेकिन यह केस अलग है, चश्मा लगाए हुए मृदुभाषी निशानेबाज़, डार्ट्स फ़ायर करने वाली हरे रंग की राइफल को घुमाते हुए कहते हैं।
“बाघिन अपने शावकों के साथ है,” शफ़ात अली बेस कैंप में कहते हैं, जहां वह रविवार की सुबह अपने बेटे और वर्दी पहने सहायकों की एक टीम के साथ पहुंचे हैं, “हमें पहले उसे शांत करना होगा और फिर उसके दोनों शावकों को भी पकड़ना होगा।”
“कहना आसान है करना मुश्किल”, उनके बेटे असगर कहते हैं, जो इस ऑपरेशन में अपने पिता की मदद कर रहे हैं। बाघिन को स्पष्ट देख पाना बहुत मुश्किल है जिससे यह काम लंबा खिंच रहा है।
वह तेज़ी से अपना स्थान बदल रही है और कहीं भी आठ घंटे से ज़्यादा नहीं रुकती, यहां से लगभग 250 किलोमीटर दूर, नागपुर के पेंच टाइगर रिज़र्व से इस ऑपरेशन के लिए एक महीना पहले बुलाया गया, स्पेशल टाइगर फोर्स का एक व्यक्ति बताता है।
ऐसा लग रहा है कि टीम के कुछ लोग निराश हो गए हैं। धैर्य ही [सफलता की] कुंजी है, लेकिन वे खोते जा रहे हैं।


बाएं: लोणी और सराटी के बीच की सड़क जहां टी- 1 को ग्रामीणों ने कई बार देखा था। दाएं: लोणी में एक होर्डिंग, जिसमें टी- 1 के ख़ौफ़ में जी रहे ग्रामीणों के लिए लिखा हुआ कि ‘क्या करना है और क्या नहीं करना’
टी-1 – जिसे स्थानीय लोग अवनी कहते हैं – के बारे में समझा जाता है कि उसने रालेगांव में दो वर्षों में 13 से 15 ग्रामीणों को मारा है। वह यहां, तहसील की हरी झाड़ियों और घने जंगलों में कहीं छिपी हुई है।
उसने दो साल में, 50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गांवों में भय और चिंता फैलाई है। ग्रामीण डरे हुए हैं, और फसल की कटाई का मौसम होने के बावजूद कपास के अपने खेतों में जाने से हिचकिचाते हैं। “मैंने एक साल से अपने खेत नहीं देखे हैं,” कलाबाई शेंड्रे कहती हैं, जिनके पति लोणी गांव में टी-1 के पीड़ितों में से एक थे।
टी-1 किसी पर भी हमला कर सकती है – हालांकि उसने 28 अगस्त को बेस कैंप के उत्तर में स्थित पिंपलशेंडा गांव में अपने अंतिम शिकार के बाद से किसी इंसान पर हमला नहीं किया है। वह आक्रामक और अप्रत्याशित है, जिन लोगों ने उसे देखा है उनका कहना है।
वन अधिकारी हताश हैं; अगर एक और इंसान पर हमला हुआ, तो स्थानीय लोगों का गुस्सा उबल पड़ेगा। दूसरी ओर, बाघ प्रेमी और संरक्षणकर्ता टी-1 को मारने के आदेश के ख़िलाफ़ अदालत में केस कर रहे हैं।
मुख्य वन संरक्षक प्रमुख (वन्यजीव), ए.के. मिश्रा, जो इस ऑपरेशन के लिए अपने डिप्टी के साथ पास के पांढरकवड में डेरा डाले हुए हैं, चार महीने में रिटायर होने वाले हैं। “सर यहीं रिटायर हो सकते हैं,” उनके एक युवा अधिकारी बताते हैं।* * * * *
वन्यजीव कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह समस्या टी-1 से शुरू नहीं हुई थी और न ही यह उसकी समाप्ति पर खत्म होगी। यह वास्तव में बिगड़ने वाली है – और भारत के पास इसका कोई इलाज नहीं है।
“सिर जोड़कर बैठने और हमारी सुरक्षा रणनीति को फिर से तैयार करने का यही सही समय है,” नागपुर स्थित वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के केंद्रीय निदेशक, डॉ. नितिन देसाई कहते हैं। “हमें बाघ की उस आबादी से निपटना होगा जिसने जंगल के किसी निकटवर्ती इलाक़े को नहीं देखा है या नहीं देखेगी। हम प्राथमिक रूप से अपने आसपास मंडराने वाली जंगली बिल्लियों को देख रहे हैं।”
देसाई की बातें सच लगती हैं: टी-1 के इलाके से लगभग 150 किलोमीटर दूर, अमरावती जिले की धामणगांव रेलवे तहसील में एक किशोर नर बाघ, जो शायद अपनी मां से बिछड़ गया है, ने 19 अक्टूबर को मंगरूल दस्तगीर गांव के एक व्यक्ति की हत्या उसके खेत पर कर दी थी, और तीन दिन बाद अमरावती शहर के पास एक महिला को मार दिया था।
वन अधिकारियों का मानना है कि वहां तक पहुंचने के लिए बाघ ने चंद्रपुर जिले से 200 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की, और ज़्यादातर गैर-वन क्षेत्रों को पार किया। एक नई समस्या उत्पन्न हो रही है, उन्होंने सोचा। फिर उस बाघ पर नज़र रखने वाले अधिकारियों ने बताया कि वह चंद्रपुर से लगभग 350 किलोमीटर की यात्रा करके मध्य प्रदेश के अंदर घुस गया है।
टी-1 इस क्षेत्र में शायद टिपेश्वर वन्यजीव अभयारण्य से आई थी, जो लगभग 50 किलोमीटर पश्चिम की ओर, यवतमाल जिले में है – वह अपनी मां के दो शावकों में से एक है, जिला वन्यजीव रक्षक और बाघ प्रेमी रमज़ान वीरानी कहते हैं। एक नर बाघ, टी-2, जो उसके दो शावकों का पिता है, उसके इलाक़े को साझा करता है।


शफ़ात अली (बाएं , हरे रंग की डार्ट बंदूक़ के साथ) और उनकी टीम, टी- 1 की तलाश में लोणी के बेस कैंप से अपनी गश्ती जीप में रवाना हो रही है , यह खोज अंततः दो महीने तक रोज़ाना की तलाश और बाघिन की दो साल तक लुका-छिपी के बाद, 2 नवंबर को समाप्त हुई
“वह 2014 के आसपास इस क्षेत्र में आई और यहीं बस गई,” पांढरकवड के एक कॉलेज में लेक्चरर, वीरानी कहते हैं। “हम तभी से उसकी हरकत पर नज़र रख रहे हैं; दशकों में यह पहली बार है जब इस क्षेत्र को एक बाघ मिला है।”
आसपास के गांवों में रहने वाले लोग इससे सहमत हैं। “मैंने इस क्षेत्र में कभी बाघ की उपस्थिति के बारे में नहीं सुना है,” सराटी गांव के 63 वर्षीय मोहन ठेपाले कहते हैं। अब बाघिन और उसके दो शावकों की कहानी चारों ओर फैली हुई है।
यह क्षेत्र, विदर्भ के कई अन्य भूभागों की तरह ही, खेतों और बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं – नई या चौड़ी सड़कों, बेंबला सिंचाई परियोजना की एक नहर – के बीच छोटे-छोटे वनों का मिश्रण है, जिसने जंगल के क्षेत्र को काफी हद तक मिटा दिया है।
टी-1 ने सबसे पहले जून 2016 में, बोराटी गांव की 60 वर्षीय महिला सोनाबाई घोंसले को मारा। (देखें बाघिन टी-1 के हमलों और आतंक के निशान ) तब बाघिन के पास शावक नहीं थे। उसने 2017 के अंत में उन्हें जन्म दिया। टकराव अगस्त 2018 में बढ़ने लगा, जब टी-1 ने कथित रूप से तीन पुरुषों की हत्या कर दी। उसका नवीनतम शिकार, 28 अगस्त को पिंपलशेंडा गांव में 55 वर्षीय एक गडरिया और किसान, नागोराव जुंघरे थे।
तब तक प्रधान संरक्षक ने बाघिन को मारने का आदेश जारी कर दिया था। इस फैसले को पहले उच्च न्यायालय में और बाद में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने बाघिन को जीवित न पकड़ सकने की हालत में उसे ‘निष्क्रिय’ करने की अनुमति देने के उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
तब कुछ संरक्षणकर्ताओं ने राष्ट्रपति से बाघिन के जीवनदान की मांग की।
इस बीच, वन अधिकारियों ने निशानेबाज़ शफ़ात अली ख़ान को आमंत्रित किया, लेकिन संरक्षणकर्ताओं के विरोध और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के हस्तक्षेप के बाद उन्हें वापस भेजना पड़ा।
सितंबर में, मध्य प्रदेश से विशेषज्ञों की एक टीम बुलाई गई। यह टीम चार हाथियों के साथ आई और चंद्रपुर के ताडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व से पांचवां हाथी बुलाया गया।
ऑपरेशन को एक बड़ा झटका तब लगा, जब चंद्रपुर से आए हाथी ने एक दिन मध्य रात्रि को अपनी ज़ंजीर से खुद को छुड़ा लिया, और मध्य रालेगांव में स्थित बेस कैंप से भटक कर 30 किलोमीटर दूर, चाहंद और पोहना गांवों में दो व्यक्तियों को मार डाला।
महाराष्ट्र के वनमंत्री सुधीर मुनगंटीवार सामने आए; उन्होंने शफ़ात अली ख़ान को वापस बुलाया और वन्यजीव विभाग के प्रमुख ए.के. मिश्रा सहित, वरिष्ठ वन अधिकारियों से पांढरकवड में तब तक तैनात रहने के लिए कहा, जब तक कि बाघिन को जीवित पकड़ नहीं लिया जाता या मार नहीं दिया जाता। इसकी वजह से नागपुर में संरक्षणकर्ताओं का विरोध और तीव्र हो गया।


बाएं: बेस कैंप से पैदल गश्त शुरू करने से पहले वन रक्षकों और ग्रामीणों की टीम। दाएं: टी-1 की खोज में एक और थका देने वाले दिन से पहले, स्पेशल टास्क फोर्स की वन में गश्त लगाने वाली टुकड़ी का एक सदस्य, लोणी गांव के पास बेस कैंप में थोड़ी देर के लिए आराम करता हुआ ; उसके पीछे जाल और अन्य सामग्रियां हैं जिनका उपयोग बाघिन को पकड़ने में किया जाना था
नवाब के दोबारा हरकत में आते ही स्थानीय बाघ संरक्षणकर्ता और कुछ वन अधिकारी, विरोध में वहां से चले गए। उन्होंने शफ़ात अली की कार्यशैली पर भी आपत्ति जताई – जिनका मानना है कि बाघिन को जीवित नहीं पकड़ा जा सकता और उसे मार देना ही सबसे अच्छा विकल्प है।
नवाब ने हरियाणा के सर्वश्रेष्ठ गॉल्फर और डॉग ब्रीडर ज्योति रंधावा को इतालवी केन कोरसो नस्ल के अपने दो कुत्तों के साथ वहां बुलाया – संभवतः आसपास सूंघने के लिए।
पैराग्लाइडर्स, ड्रोन-ऑपरेशंस और ट्रैकर्स की एक टीम को काम पर लगाया गया – लेकिन सब कुछ व्यर्थ रहा। ड्रोन ने बहुत शोर मचाया। यहां की भौगोलिक स्थिति और ज़मीन पर घने जंगल को देखते हुए पैराग्लाइडर्स किसी काम नहीं आ सकते थे।
अन्य विचारों को भी ख़ारिज कर दिया गया, जैसे कि जाल, चारा, पैदल गश्त।
टी-1 पकड़ से बाहर, और ग्रामीणवासियों का भय जस का तस बना रहा। पूरे सितंबर और अक्टूबर के पूर्वार्ध में कुछ भी नहीं हुआ।
* * * * *
फिर, एक सुराग मिला। वह आसपास ही है।
17 अक्टूबर को, एक खोजी दल उत्साहित होकर वापस लौटता है: टी-1 बेस कैंप के क़रीब ही है। वे कहते हैं कि उन्होंने उसे सराटी गांव में देखा है, जहां टी-1 ने अगस्त 2017 में, बेस कैंप से तीन किलोमीटर दूर एक युवा किसान को मार दिया था।
सभी टीमें हरकत में आ गईं और उस जगह की ओर भागीं। वह वहां है। चारों ओर से घिर चुकी बाघिन, क्रोध में आकर एक टीम पर हमला कर देती है। तेज़ निशानेबाज़, शांत करने वाले डार्ट्स का उपयोग करने का विचार छोड़ बेस कैंप लौट जाते हैं। बाघिन जब हमला करने के लिए आपकी ओर तेज़ी से आ रही हो, तो आप उस पर फ़ायर नहीं कर सकते।
लेकिन यह अच्छी ख़बर है। टी-1 ने लगभग 45 दिनों के बाद अपना ठिकाना छोड़ दिया है। अब उसकी हरकत पर नज़र रखना आसान हो जाएगा। लेकिन उसे पकड़ पाना अभी भी मुश्किल और संभावित रूप से ख़तरनाक है।* * * * *
“यह एक मुश्किल ऑपरेशन है,” शफ़ात अली कहते हैं। “शावक अब छोटे नहीं रहे। लगभग एक साल के हो चुके, वे एक साथ छह-सात पुरुषों से निपटने के लिए काफ़ी हैं।” इसलिए खोजकर्ता एक बाघिन से नहीं, बल्कि तीन बाघों से निपट रहे हैं।
महाराष्ट्र के वन अधिकारी प्रेस से बात करने को तैयार नहीं हैं, इसलिए ऑपरेशन की छोटी से बड़ी सभी बातें बताने की ज़िम्मेदारी हैदराबाद से आए शफ़ात अली और उनकी टीम पर छोड़ दी गई है।
“यह अनुचित हस्तक्षेप है,” चश्मा लगाए एक युवा रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, एक मराठी न्यूज़ चैनल के टीवी क्रू के बारे में गुस्से से कहता है। उसे शफ़ात अली द्वारा प्रेस से बात करने का विचार पसंद नहीं है।
वन अधिकारी सार्वजनिक दबाव और राजनीतिक आदेश को संभाल रहे हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से दोष उन्हीं पर मंढा जाना है, पांढरकवड में एक स्थानीय वन्यजीव संरक्षणकर्ता कहते हैं, जिन्होंने शफ़ात अली द्वारा मोर्चा संभालने के बाद इस ऑपरेशन से खुद को अलग कर लिया है। “उन्होंने स्थिति को अपने हाथों से बाहर निकल जाने दिया।”
बेस कैंप में लकड़ी के खंभे से लटक रहे एक बड़े नक्शे पर लाल रंग से रेखांकित क्षेत्र, पिछले दो वर्षों में टी-1 की गतिविधियों की ओर इशारा कर रहा है।
“यह उतना सरल नहीं है जितना दिख रहा है,” दिन भर की खोज के बाद आराम करता हुआ एक युवा गार्ड समझाता है, “यह एक ऊबड़-खाबड़ इलाका है, जिसमें बहुत सारे खेत, जंगली खरपतवार, झाड़ियों के ढेर और मोटे पेड़-पौधे, छोटी-छोटी नदियां और कुंड हैं – यह पेचीदा है।”
वह हर आठ घंटे में अपना स्थान बदल रही है, केवल रात में बाहर घूमती है।
21 अक्टूबर को, सराटी में एक आदमी ने देर शाम बाघिन और उसके शावकों को देखा। वह डर के मारे घर भाग गया। एक खोजी टीम मौके पर पहुंची। तब तक, बाघिन और उसके दोनों शावक अंधेरे में गायब हो चुके थे।
अक्टूबर के उत्तरार्ध में, कई टीमों ने टी-1 और उसके शावकों पर करीब से नज़र रखी। 25 से 31 अक्टूबर तक, दो ग्रामीणवासी बाल-बाल बचे – एक बोराटी में, दूसरा आतमुर्डी गांव में। (देखें ‘मैं जब उन्हें घर वापस देखती हूं, तो बाघ का धन्यावाद करती हूं’ )


बाएं: बाघिन को ढूंढने के लिए इतालवी नस्ल के दो कुत्ते भी बुलाए गए थे। दाएं: टी-1 के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए नागपुर के गोरेवाडा चिड़ियाघर भेजा गया था
इस बीच शफ़ात अली को एक बैठक में भाग लेने के लिए बिहार जाना पड़ा। उनके बेटे, असगर अली अपनी टीम के तेज़ निशानेबाज़ों के साथ जिम्मेदारी संभालते हैं। भारत भर के वन्यजीव कार्यकर्ता टी-1 को बचाने के लिए याचिकाएं और मांग जारी रखे हुए हैं। ज़मीन पर, हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। कपास की फसल कटाई के लिए तैयार है, लेकिन पूरे रालेगांव तहसील में किसान भयभीत हैं।
2 नवंबर को गांव के कई लोग, टी-1 को बोराटी के आसपास, रालेगांव जाने वाली तारकोल की चिकनी सड़क पर घूमते हुए देखते हैं। वह अपने शावकों के साथ है। गश्त लगाने वाली एक टीम, असगर और उनके सहयोगियों के साथ मौके पर पहुंचती है। 3 नवंबर, शनिवार को शफ़ात अली बेस कैंप लौटते हैं।
महाराष्ट्र वन विभाग के 3 नवंबर के एक बयान से पुष्टि होती है कि टी-1 को पिछली रात लगभग 11 बजे गोली मार दी गई थी। यह देश में अब तक के सबसे लंबे ऑपरेशनों में से एक है।
जब बाघिन को शांत करने का प्रयास विफल हो गया और उसने गश्ती दल पर आक्रामक तरीके से हमला कर दिया, तो असगर, जो एक खुली जीप में सवार थे, ने कथित तौर पर आत्मरक्षा में अपनी राइफल के ट्रिगर को दबाया और एक ही शॉट में बाघिन को मार गिराया, ऐसा आधिकारिक बयान में कहा गया है।
टी-1 के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए नागपुर के गोरेवाडा चिड़ियाघर भेजा गया था।
पीसीसीएफ (वन्यजीव), ए.के. मिश्रा ने संवाददाताओं को बताया कि वे टी-1 के दो शावकों को जीवित पकड़ने के लिए नए सिरे से योजना बना रहे हैं।
रालेगांव के लोगों को राहत मिली है, लेकिन वन्यजीव कार्यकर्ता टी-1 को मारने के तरीके, और नियमों का उल्लंघन करने के सवाल को लेकर उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं।
एक बाघिन मर चुकी है। लेकिन बाघ के साथ इंसानों का टकराव जीवित है और चल रहा है।
हिंदी अनुवाद: मोहम्मद क़मर तबरेज़