ये कहिनी बदलत मऊसम ऊपर लिखाय पारी के तऊन कड़ी के हिस्सा आज जऊन ह पर्यावरन रिपोर्टिंग के श्रेणी मं साल 2019 के रामनाथ गोयनका अवार्ड जीते हवय.

“का तोर गांव मं पानी बरसत हवय?” ये ह कराभई आल रहिस, जऊन ह उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिला से फोन मं गोठियावत रहिस. ये गोठ-बात ये बछर जुलाई के आखिरी हफ्ता मं होवत रहिस. वो ह आधा आस के संग अपन बात ला रखथे, “इहाँ नई बरसत हवय. गर बरसात होथे, त हमन घर आ जाबो.”

वो अतका चिंता मं मगन रहिस के वोला ये बात ले कऊनो फरक परे कस नई लगत रहय के वो ह 300 कोस दूरिहा, पुणे सहर के एक झिन अइसने मइनखे ले गोठियावत रहिस जऊन ह किसान नई ये. कारभई के जम्मो धियान बरसात सेती मानसून ऊपर ठहरे हवय, जेकर ले वो ह अपन परिवार के रोजी-रोटी सेती हरेक बछर जूझत रहिथे.

अपन बेटा, बहू, दू झिन पोता, एक झिन भाई अऊ ओकर परिवार के संग अपन सलाना बहिर जाय सेती, 75 बछर के ये चरवाहा ला अपन गांव छोड़े 12 महिना बीत गे रहिस. चौदह झिन के ये गोहाड़ी अपन 300 ले जियादा मेढ़ा, तीन ऊँट अऊ रात मं ओकर गोहड़ी के रखवार कुकुर ‘विछियो’ के संग रवाना होय रहिस. अऊ ये 12 महिना मं वो मन अपन मवेसी मन के संग कच्छ, सुरेंद्रनगर, पाटन, अऊ बनासकांठा जिला मं 267 कोस ले जियादा रद्दा चल चुके रहिस.

गुजरात के तीन ठन इलाका ले गुजरत 267 कोस के रद्दा, जऊन ला काराभाई आल के परिवार ह हरेक बछर आथे-जाथे, स्रोत: गूगल मैप्स

काराभाई के घरवाली, डोसीबाई, अऊ इस्कूल जवेइय्या ओकर सबले छोटे पोता-पोती मन कच्छ, गुजरात के रापर तालुका के जटवाड़ा गांव मं अपन घर मं रहत हवंय. ये कबीला ह रबारी समाज (वो जिला मं ओबीसी वर्ग मं सूचीबद्ध) ले हवंय. ये लोगन मन अपन मेढ़ा–छेरी बर चारागान ला खोजत हरेक बछर 8 ले 10 महिना अपन गाँव ला छोड़ देथें. ये घुमंतू मवेसी पोसेइय्या मन हरेक बछर देवारी (अक्टूबर-नवंबर) के तुरते बाद घर ले निकर जाथें अऊ जइसने मानसून सुरु होय ला रथे, अपन घर लहूंट के आ जाथें.

येकर मतलब ये आय के बरसात के मऊसम ला छोड़ के, बछर भर चलत रहिथें. लहूंटे के बाद घलो, परिवार के कुछु लोगन मन अपन घर के बहिरेच मं रहिथें अऊ मेढ़ा मं ला जटवाड़ा के बहिर इलाका मं चराय सेती ले जाथें. ये मवेसी मन ला गांव के भीतरी मं नई रखे सकंय, वो मन ला खुल्ला जगा अऊ चरे सेती चारागान के जरूरत परथे.

जब हमन मार्च महिना के सुरु मं कराभाई ला खोजत सुरेंद्रनगर जिला के गवाना गांव मं एक ठन सुक्खा खेत मं भेंट करेन, त ओकर बोल रहिस, “मोला लगिस के गांव के पटेल मन हमन ला इहाँ ले भगाय सेती तुमन ला भेजे हवंय.” ये जगा अहमदाबाद सहर ले 50 कोस दूरिहा हवय.

ओकर संदेहा के एक अधार रहिस, बखत जब मुस्किल वाले हो जाथे, जइसने के लंबा बखत तक ले सुक्खा बखत, त जमीन के मालिक मन ये चरवाहा अऊ ओकर मवेसी मन ला अपन इलाका ले भगा देथें – वो मन अपन मवेसी सेती कांदी अऊ फसल के बांचे ठूंठ ला बचा के रखे ला चाहथें.

काराभाई ह हमन ला बताय रहिस, “ये बखत के दुषकाल (दुकाल) भारी खराब हवय. एकरे सेती हमन बीते बछर अखाड़ (जून-जुलाई) के महिना मं रापर ले निकल गे रहेन, काबर उहाँ बरसात नई होय रहिस.”  भर्री परे ओकर घर के जिला मं परे दुकाल ह वो ला बखत ले पहिली अपन सलाना बहिर जाय ला मजबूर कर दे रहिस.

वो ह हमन ला बताइस, जब तक ले मानसून सुरु झन हो जाय, हमन अपन मेढ़ा मन के संग किंदरत रहिथन. गर बरसात नई होवय, त हमन घर नई जावन! “मालधारी के इही जिनगी आय.” ‘मालधारी’ गुजराती के दू आखर, माल (मवेसी) अऊ धारी (पोसेइय्या) ले मिलके बने हवय.

नीता पांड्या कहिथें, “गुजरात के सुक्खा अऊ अध-सुक्खा इलाका मं 2018-19 के अकाल अतक भयंकर रहिस के जऊन चरवाहा मन करीबन 25 बछर ले अपन गांव मं रहत रहिन, तऊन घलो चारागान, चारा अऊ रोजी-रोटी सेती फिर ले पलायन करे लगिन.” वो ह अहमदाबाद के एक गैर-लाभकारी मालधारी ग्रामीण अभियान समूह (मालधारी रूरल एक्शन ग्रुप, एमएआरएजी) के संस्थापक आंय, जऊन ह 1994 ले चरवाहा मन के संग काम करत हवंय.

PHOTO • Namita Waikar
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आल परिवार के 300 मेढ़ा भांठा जमीन मं बगरे हवंय, जऊन ह कभू जीरा के खेत होवत रहिस, अऊ कारभाई (जउनि) अपन गांव जटवाड़ा मं एक ठन मितान ले फोन मं गोठियावत हवय के घर मं सब्बो बने बने हवंय धन नई

ये मालधारी परिवार के रहे के जगा, कच्छ मं 2018 मं बरसात सिरिफ 131 मिमी होय रहिस, फेर कच्छ के ‘समान्य’ सलाना अऊसत 356 मिमी हवय. फेर ये ह कऊनो मनमऊजी साल नई रहिस. ये जिला मं मानसून ह एक दसक ले जियादा बखत ले बेबखत रहे हवय. भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़ा बतातें के 2014 मं जिला मं बरसात घटके 291 मिमी हबर गे रहिस, 2016 मं 294 मिमी बरसात होइस, फेर 2017 मं बढ़ के 493 मिमी हो गे. चार दसक पहिली – 1974-78 – अइसने तरीका के पांच बछर के बखत ह एक भयंकर बछर (1974 मं 88 मिमी) अऊ चार एक के बाद एक बछर ला दिखाठे, जेन मं बरसात ‘समान्य’ अऊसत ले उपरहा रहिस.

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रीवर्स एंड पीपुल के हिमांशु ठक्कर बछरों बछर के गलत प्राथमिकता के चलते गुजरात मं अवेइय्या पानी के संकट नांव के 2018 के रिपोर्ट मं लिखथें के बीते तीन दसक मं, राज के एक के बाद एक सरकार मन नर्मदा बांध के काम ला कच्छ, सौराष्ट्र, अऊ उत्तर गुजरात के सूखाग्रस्त सूखा वाले इलाका मन मं जिनगी रेखा जइसने आगू बढ़ाय हवय. फेर जमीनी स्तर मं ये इलाका मन ला सबले कम प्राथमिकता देय जाथे. वो मन ला सहरी इलाका, कारखाना, अऊ मध्य गुजरात के किसान मन के जरूरत पूरा होय के बादेच सिरिफ बांचे पानी मिलथे.

स्रोत: भारतीय मौसम विभाग के खास तरीका ले बनाय बरसता के सूचना प्रणाली अऊ डाउन-टू-अर्थ एनवी स्टैट्स इंडिया-2018

ठक्कर ह हमन ला फोन मं बताइस, “नर्मदा के पानी ला ये इलाका के किसान अऊ पशुपालक मन बर बऊरे जाय ला चाही. चूंवा ला भरे अऊ छोटे बांध सेती पहिली अपनाय गे कार्यक्रम मन ला फिर ले सुरु करे जाय ला चाही.”

मालधारी अपन मवेसी मन ला खवाय सेती सार्वजनिक चारागान अऊ गाँव के चरागान ऊपर आसरित हवंय. वो मन ले अधिकतर करा जमीन नई ये अऊ जेकर करा हवय, वो अकास के भरोसा के फसल ला कमाथें; जइसने बाजरा, जेकर ले वो मन ला खाय अऊ वो मन के मवेसी बर चारा मिलथे.

काराभाई ह जीरा के एक ठन खाली खेत डहर आरो करत, मार्च मं कहे रहिस, “हमन दू दिन पहिली इहाँ आय रहें अऊ आज लहूंट के जावत हवन. इहाँ (हमर बर) जियादा कुछु नई ये.” ये सूखा अऊ बनेच तिपत घलो रहिस. 1960 मं, जब काराभाई किसोर उमर के रहिस, त सुरेंद्रनगर जिला मं साल के करीबन 225 दिन मं घाम 32 डिग्री सेल्सियस ला पार कर डरे रहिस. आज अइसने दिन के आंकड़ा 274 धन ओकर ले जियादा होही, यानि 59 बछर मं कम से कम 49 तिपत दिन के इजाफा - न्यूयॉर्क टाइम्स के ये बछर जुलाई मं ऑनलाइन छपे, मऊसम अऊ ग्लोबल वार्मिंग ऊपर एक ठन इंटरैक्टिव उपकरन ले करे गे गिनती ले इहीच पता चलथे.

सुरेंद्रनगर, जिहां हमन ये मवेसीपालक मन ले भेंट करे रहेन, उहाँ के 63 फीसदी ले जियादा खेती के बूता करथें. जम्मो गुजरात मं ये आंकड़ा 49.61 फीसदी हवय. इहां उपजे माई फसल हवंय: कपसा, जीरा, गहूँ, बाजरा, दलहन, मूंगफली, अऊ अरंडी. लुये के बाद फसल के ठूंठ मेढ़ा मन के सेती बढ़िया चारा होथे.

साल 2012 मं करे गे पशुधन के गिनती के मुताबिक, गुजरात के 33 जिला मन मं कुल 17 लाख मेढ़ा के अबादी मेर ले अकेल्ला कच्छ मं 570,000 धन ओकर ले जियादा मेढ़ा हवंय. ये समाज के संग काम करेइय्या गैर-लाभकारी संस्था एमएआरएजी के मुताबिक़, जिला के वागड़ उप- छेत्र मं, जिहां ले कारभाई आथें, ओकरे जइसने करीबन 200 रबारी परिवार हवंय जऊन मन हरेक बछर कुल 30,000 मेढ़ा मन के संग 267 कोर दूरिहा रद्दा ला जाथें. वो मन अपन घर ले 66 कोस दूरिहा के दायरा मं चलत रहिथें.

परंपरागत रूप ले, मवेशी के ये गोहड़ी फसल लुये खेत ला अपन गोबर अऊ मूत के खातू देवत रहिस. बदला मं, किसान मन ये मवेसीपालक मन ला बाजरा, सक्कर, अऊ चाहा देवत रहिन, फेर मऊसम जइसनेच, एक दूसर के नफा वाले सदियों बछर जुन्ना ये नाता ह अब भारी बदलत जावत हवय.

काराभाई, पाटन जिला के गोविंद भारवाड़ ले पूछथें, 'तुम्हर गांव मं फसल लुवा गे हवय का? का हमन तऊन खेत मं रहे सकत हवन?'

काराभाई ह गोविंद भारवाड़ के पूछिस (जेन ह हमर संग मं रहिस), “तुम्हर गांव मं फसल लुवा गे हवय का? का हमन तऊन खेत मं रहे सकत हवन?”

गोविंद कहिथें, “वो मन दू दिन बाद फसल लुहीं.” वो ह एमएआरएजी टीम के सदस्य अऊ पाटन जिला के सामी तालुका के धनोरा गाँव के किसान-मवेसीपालक आंय. “ ये पईंत, मालधारी लोगन मन खेत  ले जाय त सकथें फेर रुके नई सकंय. ये हमर पंचइत के फइसला आय, काबर इहाँ पानी अऊ चारा के भारी कमी हवय.”

ये उही जगा आय जिहां ले काराभाई अऊ ओकर परिवार पाटन डहर के रद्दा धरे रहिस. घर लहूंटे के पहिली, वो तीन माई इलाका : कच्छ, सौराष्ट्र अऊ उत्तर गुजरात के किंदर चुके होहीं.

बदलत मऊसम अऊ आबोहवा के हालत के मंझा मं, एक ठन जिनिस जऊन ह हमेसा थिर रहिथे, वो आय ओकर पहूनई – रद्दा मं बने वो मन के डेरा घर मं घलो. काराभाई के बहू, हीराबेन आल ह परिवार के खाय सेती बाजरा के रोटी के ढेरी लगा दे रहय अऊ सब्बो सेती ताते तात चाहा घलो बनाय रहिस. “तंय कतका पढ़े हव” जुवाब देवत वो ह कहिथे, “मंय कभू इस्कूल नई गेंय.” अतका कहत वो ह बरतन मंजे लगिस. जतक बेर वो ह ठाढ़ होवय, परिवार के सियान मन के रहे सेती वो ह अपन करिया चुनरी ले घूंघट कर लीस, अऊ बूता करे सेती भूईंय्या मं बइठते सात अपन चेहरा ले चुनरी ला हेर लेवय.

परिवार के मेढ़ा मन मारवाड़ी नस्ल के आंय, जऊन ह गुजरात अऊ राजस्थान के मूल बासिंदा आंय. बछर भर मं, वो ह 25 ले 30 मेढ़ा बेंचथें, हरेक ला करीबन 2,000 ले 3,000 रूपिया मं. मेढ़ा के गोरस ओकर आमदनी के एक अऊ जरिया आय, फेर ये गोहड़ी ले आमदनी ओकर ले कमती होथे. काराभाई कहिथें के 25-30 मेढ़ा मन रोज के करीबन 9-10 लीटर गोरस देथें. इहाँ के नान डेरी ले लीटर पाछू 30 रूपिया मिलथे. जऊन ह नई बिकाय ओकर ले घीव-मही बना लेय जाथे.

मजा लेवत काराभाई कहिथें, “घी पेट मा छे! (घीव मोर पेट मं हवय!). ये घाम मं चले ले गोड़ जर जाथे, येकरे सेती येला खाय मं मदद मिलथे.”

अऊ ऊन बेचे? ये सवाल के जुवाब मं काराभाई ह टूटे मन ले कहिथे, “दू बछर पहिली तक, लोगन मन हरेक जानवर के ऊन 2 रूपिया मं बिसोवत रहिन. अब कऊनो घलो येला बिसोय नई चाहय. ऊन हमर सेती सोन जइसने आय, फेर हमन ला येला फेंके ला परथे.” ओकर बर अऊ लाखों दीगर मवेसीपालक मन, भूमिहीन, छोटे अऊ सीमांत किसान मन के सेती, मेढ़ा (अऊ छेरी) वो मन के संपत्ति आंय अऊ रोजी-रोटी के जरिया . अब ये संपत्ति कमतियावत जावत हवय.

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13 बछर के प्रभुवाला आल आगू के रद्दा धरे सेती ऊंट ला तियार करत हवंय, फेर ओकर ददा (जउनि) मेढ़ा मन ला संकेले सुरु कर देथें. येकरे मंझा मं प्रभुवाला के दाई, हीराबेन (तरी डेरी) चाहा पिये ला थोकन सुस्ताथें, फेर काराभाई (जउनि) मरद मन ला आगू रेंगे सेती तियार करत हवंय

भारत मं 2007 अऊ 2012 के पशुधन गणना के बीच के पांच बछर मं मेढ़ा मन के आबादी मं 6 मिलियन ले जियादा कमतियाय हवय -71.6 मिलियन ले घट के 65 मिलियन हबर गे. ये ह 9 फीसदी घटती आय. गुजरात मं घलो तेजी ले घटती आय हवय, जिहां करीबन 300,000 कमतियाय के बाद अब ये अबादी ह सिरिफ 1.7 मिलियन रह गे हवय.

कच्छ मं घलो घटत देखे ला मिलिस, फेर इहाँ ये मवेसी ह बनिस्बत बढ़िया प्रदर्सन करे हवय, जऊन ह सायेद मालधारी मन के बढ़िया देखेरेख के नतीजा आय. इहां 2007 के बनिस्बत 2012 मं करीबन 4,200 मेढ़ा के घटती रहिस.

2017 के पशुधन गिनती के आंकड़ा छे महिना तक ले बहिर नई आय, फेर काराभाई के कहना आय के वो ह ये घटती के झुकाव ला देखत हवंय अऊ मेढ़ा के अबादी कमतियाय के कतको कारन बताथें. वो ह कहिथें, “जब मंय 30 बछर के रहेंव, त आज ले खून जियादा कांदी अऊ रुख-रई होवत रहिन, मेढ़ा मन ला चराय मं कऊनो दिक्कत नई रहिस. अब जंगल अऊ रुख काटे जावत हवंय, अऊ चरागान कम पर गे हवंय, छोटे होवत जावत हवंय, घाल घलो बहुते जियादा हवय.” संग मं, बेबखत होवत अऊ बदलत मऊसम सेती मइनखे के कारोबार ला जिम्मेवार ठहराथें.

वो कहिथें, “सुक्खा के बछर मं जइसने हमन ला दिक्कत होथे, तइसने मेढ़ा मन ला घलो हलाकान होथें. चरागान कमती होय के मतलब आय के वो मन अऊ कांदी अऊ चारा ला खोजत अऊ घलो जियादा रेंगे अऊ भटके ला परही. मेढ़ा के अबादी घलो सायेद कमतिया वत हवय, काबर कुछु आमदनी सेती लोगन मन जियादा मवेसी बेंचत होहीं.”

अपन मेढ़ा गोहड़ी सेती कांदी अऊ चरी-चरागान के कमती होय के ओकर बात सही आय. सेंटर फ़ॉर डेवलपमेंट आल्टरनेटिव्स, अहमदाबाद के प्रोफ़ेसर इंदिरा हिरवे के मुताबिक, गुजरात मं करीबन 4.5 फीसदी जमीन चरी -चरागान के हवय. फेर आधिकारिक आंकड़ा, जइसने के वो ह बताथे, ये जमीन मं भारी बेजा कब्जा ला कारन नई मानय, येकरे सेती असल चेहरा लुका जाथे. मार्च 2018 मं, सरकार ह येकर ले जुरे सवाल के जुवाब मं राज के विधानसभा मं माने रहिस के 33 जिला मन मं 4,725 हेक्टेयर गोचर (चरी-चरागान) जमीन मं कब्जा होय हवय. फेर, कुछु विधायक मन सरकार के ये जानकारी के विरोध करे रहिन के ये आंकड़ा बहुते कम करके पेश करे गे हवय.

ख़ुद सरकार ह स्वीकार करे रहिस के 2018 मं, राज के 2,754 गांव अइसने रहिस जिहां चरी-चरागान के जमीन बिल्कुले घलो नई रहिस.

गुजरात औद्योगिक विकास निगम डहर ले कारखाना मन ला देय जमीन घलो बढ़े हवय – ये मं कुछेक जमीन सरकार डहर ले अधिग्रहित करे गीस. ये ह 1990 अऊ 2001 के मंझा मं, अकेल्ला एसईज़ेड बर कारखाना मन ला 4,620 हेक्टेयर जमीन दे दीस. अइसने जमीन 2001-2011 के बखत के आखिर तक ले बढ़ के 21,308 हेक्टेयर हो गे रहिस.

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काराभाई, जटवाड़ा जवेइय्या सड़क मं अऊ (जउनि) वो गाँव मं आल परिवार के घर के बहिर अपन घरवाली डोसीबाई आल अऊ परोसी रत्नाभाई धागल के संग

सुरेंद्रनगर मं, मार्च महिना के ये दिन जइसने तिपे लगिस, काराभाई ह लोगन मन ले बिनती करिस, “मंझनिया होय ला हवय, आवव, रेंगे ला धरथन!” लोगन मन आगू रेंगे ला धरिन अऊ मेढ़ा वो मन के पाछू आय लगिन. कच्छा सातवीं तक ले इस्कूल जा चुके काराभाई के मंडली के एकेच सदस्य, ओकर 13 बछर के पोता, प्रभुवाला, खेत के कोनहा मं झाड़ी ला मारथे अऊ उहाँ किंदरत मेढ़ा मन ला संकेलत गोहड़ी मं ले आथे.

तीन झिन माइलोगन मन खटिया, गोरस के स्टील वाला डब्बा अऊ दीगर समान मन ला जोरिन. प्रभुवाला ह दूरिहा मं एक ठन रुख मं बंधाय ऊँट ला ढीलीस अऊ वो जगा मं ले आइस जिहां ओकर दाई, हीराबेन ह अपन आय जाय वाले घर अऊ रंधनी जिनिस ला संकेल डरे रहिस, जऊन ला ऊँट मं लादे जा सकय.

पांच महिना बीते, मंझा अगस्त मं, हमन काराभाई ले दुबारा रापर तालुका मं सड़क मं भेंट होइस अऊ जटवाड़ा गांव के ओकर घर गे रहेन. ओकर घरवाली, 70 बछर के डोसीबाई आल ह सब्बो बर चाहा बनाइस अऊ बताइस, “10 बछर पहिली तक मंय घलो परिवार के संग जावत रहेंव. मेढ़ा अऊ लइका हमर संपत्ति आंय. ओकर बढ़िया तरीका ले देखरेख होय ला चाही, इहिच मंय चाहथों.”

ओकर एक झिन परोसी, भैय्याभाई मकवाना सिकायत करे लगिस के सूखा अब अक्सर परे लगे हवय. “गर पानी नई ये, त हमन घर लहूँटे नई सकन. बीते छे बछर मं, मंय सिरिफ दू बेर घर आंय.”

एक दीगर परोसी, रत्नाभाई धागल ह दूसर दिक्कत मन के बारे मं बताइस, “मंय दू बछर के सूखा के बाद घर लहूंटे अऊ देखेंव के सरकार ह हमर गोचर जमीन ला चरो डहर ले घेर दे रहिस. हमन दिन भर घूमथन फेर हमर माल ले भरपूर चारा नई मिल पावय. हमन काय करबो? वो मन ला चराय ले जावन धन बांध के रखन? मवेसीपालन एकेच काम आय, जऊन ला हमन जानथन अऊ ओकरे ले हमर जिनगी के गुजारा होथे.”

बेबखत मऊसम अऊ बदलत आबोहवा के बढ़े ले थके-हारे काराभाई कहिथें, “सुक्खा सेती भारी दुख झेले ला परत हवय. खाय के सेती कुछु घलो नई ये अऊ मवेसी मन, धन चिरई-चिरगुन सेती घलो पानी तक नई ये.”

अगस्त मं होय बरसात ह वो मन ला थोकन आस दे हवय. संयुक्त आल परिवार करा अकास भरोसा आठ एकड़ जमीन हवय, जऊन मं बाजरा बोंय हवंय.

मवेसी मन के चरे अऊ मवेसीपोसेइय्या मन के बहिर जाय के काम ला कतको कारन मं मिलके असर डारे हवंय – जइसने के राज मं पानी नई गिरे धन भरपूर पानी नई गिरे, एक के बाद एक सूखासुक्खा, कमतियात चारागान, तेजी ले लगत कल-कारखाना अऊ सहरीकरन, जंगल के कटाई अऊ चारा अऊ पानी मिले मं कमी. मालधारी मन के जिनगी के अनुभव ले पता लगथे के ये मं कतको कारन मऊसम अऊ आबोहवा मं बदलाव सेती जिम्मेवार आंय. आखिर मं, ये समाज मन के आय-जाय ऊपर भारी असर परे हवय, अऊ वो ह अपन बछरों बछर तक ले चलत आवत आय-जाय के समे ला नवा तरीका ले बनावत हवंय.

बिदा होवत बखत काराभाई कहिथें, “हमर सब्बो तकलीफ मन के बारे मं लिखहू, अऊ हमन देखबो के काय येकर ले कऊनो बदलाव आथे, गर नई, त भगवान त हईय्येच हवय.”

लेखिका ह ये कहिनी ला लिखे मं अहमदाबाद अऊ भुज के मालधारी रूरल एक्शन ग्रुप ( एमएआरएजी ) के टीम के मदद अऊ जगा तक ले जाय सेती वो मन के अभार जतावत हवय.

पारी के बदलत मऊसम ऊपर लिखाय देश भर ले रिपोर्टिंग के ये प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित तऊन पहल के हिस्सा आय , जऊन मं आम जनता अऊ ओकर जिनगी के गुजरे बात ला लेके पर्यावरन मं होवत बदलाव के रिकार्ड करे जाथे

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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Namita Waikar is a writer, translator and Managing Editor at the People's Archive of Rural India. She is the author of the novel 'The Long March', published in 2018.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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