पिछला बेर रात में गाढ़ नींद कब आइल रहे, शीला वाघमारे के याद नइखे.

“रात भर करवट लेत रहिले… बरिसन से नींद गुलरी के फूल भइल बा.” भूइंया पर गोधड़ी बिछल बा. ओह पर 33 बरिस के शीला पालथी मार के बइठल बारी. उनकर लाल-लाल जरत अंखिया में दरद के सागर उमड़ आइल बा. रतजगा वाला ऊ लमहर लमहर रात के बारे में बतावत हिचकी फूटत बा, सउंसे देह कांपे लागत बा. ऊ खुद के संभारे के कोशिश करतारी, “रात भर हमर लोर गिरत रहेला. अइसन लागेला केहू हमार गरदन चींपत बा.”

शीला महाराष्ट्र के बीड जिला में राजुरी घोड़का गांव के बहरी इलाका में रहेली. उनकर घर बीड शहर से करीब दस किलोमीटर दूर परेला. ईंटा से बनल दु कमरा के घर में ऊ आपन घरवाला आ तीन गो लइका- कार्तिक, बाबू आ रुतुजा संगे सुतेली. रात में जब नींद ना आवे, त ऊ बेचैन हो-होके करवट बदलेली. उनकर दबल रोवाई से सबके नींद टूट जाला. ऊ बतावत बारी, “हमार रोआई से सबके नींद खराब हो जाला. फेरु हम आपन आंख भींच लिहिला आ सुते के कोशिश करिला.”

बाकिर नींद ना आवे. आ लोर ना रुके.

शीला कहली, “हम हमेशा उदास आ बेचैन रहिला.” फेरु थोड़िका देर ठहरेली. रुकला के बाद ऊ चिढ़ल लागत बारी. “ई सब हमार पिशवी (बच्चादानी) निकलवइला के बाद शुरू भइल. हमार जिनगी हमेशा बदे बदल गइल.” साल 2008 में जब ऊ खाली 20 बरिस के रहस, उनकर बच्चादानी निकाले के परल रहे. ओकरा बाद से उनकरा अवसाद, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और पूरा देह पीड़ात रहेला. ई सब उनका साथे बहुते दिन ले रहेला.

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राजुरी घोड़का गांव के आपन घर में शीला वाघमारे. 'हर घरी मनवा टूटल आ बेचैन रहेला'

शीला बतावत बारी, “कबो-कबो हम बेफालतू लइकन सभ प गुस्सा जाइला. ऊ लोग प्यार से भी कुछ मांगे आवेला, हम चिल्लाए लागिला.'' शीला के चेहरा पर बेबसी साफ देखाई देता. ऊ कहली, “हम कोशिश करब. हम सचमुच कोशिश करब कि आपन गुस्सा पर काबू रखीं. हमरा समझ में नइखे आवत हम अइसन कइसे करतानी.”

मानिक से बियाह बखत शीला खाली 12 बरिस के रहली, आ 18 बरिस पूरा होखे के पहिले ऊ तीन गो लइका के महतारी बन गइल रहस.

शीला आ मानिक ऊस-तोड़ (गन्ना) मजदूर ह. गन्ना के मौसम में एह लोग आ अइसन करीब 8 लाख प्रवासी दिहाड़ी मजदूर मराठवाड़ा से छव महीना खातिर पूर्वी महाराष्ट्र आ कर्नाटक पलायन कर जाला. अक्टूबर से मार्च के बीच उहंवे गन्ना के खेत में रहेला, आ काम करेला. शीला आ मानिक के आपन खेत नइखे. बाकि साल दुनो मरद-मेहरारू आपन गांव, चाहे लगे के गांव में खेतिहर मजदूरी के काम करेला. ऊ लोग नव बौद्ध समाज के हवे.

शीला के ऑपरेशन से बच्चादानी हटे के बाद के झमेला आ तकलीफ महाराष्ट्र के एह इलाका में कवनो बड़ बात नइखे. पता चलल कि बीड में गन्ना के खेत में दिहाड़ी मजूरी करेवाला मेहरारू लोग बहुत जादे संख्या में आपन बच्चादानी हटवावत बा. राज्य सरकार एकर कारण पता लगावे खातिर साल 2019 में 7 लोग के एगो कमिटी बनवलक. पता चलल ऊ लोग देह आ मन के रोग से जूझत बा.

ओह घरी महाराष्ट्र विधान परिषद के उपसभापति डॉ. नीलम गोर्हे कमिटी के अध्यक्ष रहस.  कमिटी 2019 के जून-जुलाई आपन सर्वे कइलक. सर्वे में एहि बखत जिला के गन्ना के खेत में कम से कम एक बेर दिहाड़ी मजूरी करेवाला 82,309 मेहरारू लोग के शामिल कइल गइल. पावल गइल कि जिन 13,861 मेहरारू लोग के बच्चादानी हटल रहे, ओहि में से 45 प्रतिशत से जादे, यानी 6,314 मेहरारू के मन, आ देह के तकलीफ रहे. एकरा में खास करके तनाव, अनिद्रा, अवसाद, बिगड़ल व्यवहार, पीठ आ जोड़ में दरद जइसन परेशानी शामिल रहे.

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शीला आ उनकर लइका कार्तिका आ रुतुजा (दहिना). गन्ना कटाई के मौसम में पूरा परिवार प्रवासी मजदूर के रूप में इहंवा से पलायन कर जाला

बच्चादानी हटावे के ऑपरेशन बहुत उलझल ऑपरेशन होखला. देर-सवेर एकर उल्टा असर मेहरारू लोग के देह आ मन पर पड़बे करेला. मुंबई के एगो स्त्री रोग विशेषज्ञ आ वी.एन. देसाई म्युनिसिपल जनरल अस्पताल के डॉ. कोमल चौहान कहली, “डॉक्टरी भाषा में एकरा के हमनी ऑपरेशन के कारण होखे वाला रजोनिवृति (मेनोपॉज यानी मासिक धर्म का हमेशा के लिए रुक जाना) कहेनी.”

ऑपरेशन के बाद के बरिस में शीला जोड़ के दरद, सिरदर्द, पीठ दर्द आ हमेशा थकान जइसन परेशानी से जूझत आव तारी. ऊ कहत बारी, “हर दु-तीन दिन बाद हमरा के भारी दर्द होखे लागेला.”

दरद दूर करे वाला मरहम आ खाए वाला गोली से तनिका देर ला राहत मिलेला. ऊ डिक्लोफेनैक जेल के एगो ट्यूब देखावत कहत बारी, “हम आपन घुटना आउर कमर दरद खातिर महीना में एकर दुगो ट्यूब खरीदेनी.'' एह में हर महीना 166 रुपइया खरचा हो जाला. उनकरा डॉक्टर के लिखल गोली भी खाए के होला. महीना में दु बेर उनकरा ग्लूकोज के बोतल भी चढावल जाला, जवन कमजोरी आ थकान में राहत देवेला.

आपन घर से एक किलोमीटर दूर एगो प्राइवेट क्लिनीक में डॉक्टर से मिले आ दवाई लेवे में हर महीना 1000 से 2000 रुपइया खर्चा आवेला. बीड के सिविल अस्पताल उनकरा गांव से 10 किलोमीटर दूर बा. एतना दूर गइला के बजाए पैदल क्लिनिक जाए के पसंद करेली. ऊ कहेली, “के एतना दूर जाई, गाड़ी घोड़ा (परिवहन) में एतना जादे पइसा खरचा करी?”

मन पर छाइल उदासी काबू करे में उनकरा दवाई से कवनो मदद ना मिलेला. “एतना कष्ट में जियत रहे के कोई मतलब समझ में नइखे आवत?

मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ. अविनाश डी सौसा के कहनाम बा, बच्चेदानी निकल जाए के बाद हारमोन में जे ऊंच-नीच होखेला ओकरा से बीमारी त होखबे करेला, आ ऊ मरीज में भयानक अवसाद आ तनाव भी पैदा करेला. ऊ आगे कहत बारी, “बच्चादानी के ऑपरेशन, चाहे निष्क्रिय कोख से जुड़ल बेमारी के असर हरेक रोगी में अलग अलग तरह से  होखेला. ”कुछ मेहरारूवन में एकर बहुत खराब असर होखेला, आउर कुछ मेहरारू में मामूली परेशानी देखाई देवेला.”

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खाए वाला गोली आउरी डाइक्लोफेनाक जेल जइसन दर्द भगावे वाला मरहम से शीला के थोड़िका देर ला आराम मिलेला. 'हम एक महीना में दू गो मलहम लगावेनी'

ऑपरेशन के बाद एतना परेशानी झेलला के बाद भी शीला प्रवासी मजदूर के काम करेली. गन्ना कटाई के हर मौसम में ऊ मानिक के साथ पश्चिमी महाराष्ट्र जाली. बाकी बखत ऊ आपन परिवार संगे बीड से करीब 450 किलोमीटर दूर कोल्हापुर में गन्ना के पिराई करे वाला एगो कारखाना में काम करेली.

शीला आपन ऑपरेशन के पहिले के दिन याद कर रहल बारी, “हमनी एक दिन में 16 से 18 घंटा काम करीं, आ रोज करीब दु टन गन्ना काट लेत रहीं.” कटल गन्ना के एक टन के बदले हमनी के एक ‘कोयटा’ के पीछे 280 रुपइया मिलत रहे. ‘कोयटा’ मतलब अइसन मुड़ल दरांती, जेकरा से सात फीट तक ऊंच गन्ना काटल जाला. बाकिर बोलचाल के भाषा में एह शब्द के मतलब अइसन मरद-मेहरारू के जोड़ा होला, जे साथे मिलके गन्ना के कटाई करेला. दु लोग के एह एक इकाई के मजदूरन के ठेकेदार एकमुश्त पइसा बतौर एडवांस भुगतान करेलें.

शीला कहेली, “6 महीना में हमनी 50,000 से 70,000 रुपइया कमा लेत रहनी.'' बाकिर जब से बच्चादानी के ऑपरेशन भइल, हमनी के एक दिन में एक टन गन्ना के कटाई आ ढुलाई भी आफत हो गइल बा. “हम अब भारी बोझ उठा ना सकिला, आउर अब कटाई खातिर पहले जइसन ताकत आ फुरती नइखे रह गइल.”

बाकिर साल 2019 में घर के मरम्मती खातिर शाली आ मानिक के 50,000 रुपइया एडवांस लेवे के परल. ई पइसा सलाना 30 प्रतिशत के ब्याज पर मिलल ह. अब एह कर्जा के चुकावे खातिर ऊ लोग के काम करत रहल जरूरी ह. शीला कहेली, “ई फेरा खत्मे नइखे होखत.”

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मेहरारू लोग खातिर माहवारी बखत गन्ना के खेत में हाड़ तोड़ मिहनत भारी चुनौती वाला होखेला. उहंवा खेत में ना त कोई शौचालय, ना ही नहाए खातिर कोई जगह होखेला. एकरा अलावा जे रहे के बंदोबस्त कइल गइल होला, उहो बहुत खराब आ कामचलाऊ रहेला. ‘कोयटा’ जिनका संगे आमतौर पर उनकर बच्चा रहेला, गन्ना कारखाना आ खेत के पास बनल तंबू में रहेले. शीला इयाद करत बारी, “पाली (माहवारी) बखत काम कइल पहाड़ लागेला.”

एक दिन के छुट्टी भी भारी परेला. मुकादम (मजदूर ठेकेदार) ओह दिन के पइसा काट लेवेला.

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बावां ओरी: टीन के बक्सा जेमें शीला गन्ना के खेत पर दिहाड़ी मजदूरी करे जाए बखत परिवार के सामान रखेली. दहिना: दरांती चाहे क्योटा, जेकरा से गन्ना के कठोर डंठल काटल जाला, एह ऊ दंपत्ति के भी सूचक ह जे एक साथ गन्ना के कटाई करेला

शीला बतावेली कि मेहरारू लोग जब खेत पर जाला त आपन सूती पेटीकोट के कपड़ा से बनावल पैड पहिन के जाला. ई पैड के बिना बदलले, 16-16 घंटा लगातार काम करे के होखेला. उनकर कहनाम बा, “दिन भर मजूरी कइला के बाद हमरा एकरा बदले के मउका मिलेला. तब तक पैड एकदम भींज जाला, एतना कि ओह में से खून के बूंद टपके लागेला.”

शीला के अक्सरहा गीला पैड लेवे के परत रहे. साफ-सफाई के पूरा सुविधा ना होखे, पहिनल पैड धोए खातिर पानी पूरा ना पड़े आ सुखावेला जगह ना होखला के कारण पैड टाइम से सूखत ना रहे. “ओह में से गंध आवे. फिर भी, पैड के धूप में सुखावल मुश्किल रहत रहे. आस-पास सब ओरी आदमी लोग रहत रहे.” सेनेटरी पैड के बारे में उनका पता ना रहे. ऊ बतावत बारी, “एकरा बारे में त हमरा तब पता चलल, जब हमार लइकी के पीरियड होखे लागल.”

ऊ 15 बरिस के रुतुजा खातिर सेनेटरी पैड खरीदेली. “हम एकर तबियत से कवनो खिलवाड़ नइखी कइल चाहत.”

साल 2020 में महिला किसानन के अधिकार के बात करे वाला, पुणे के मकाम नाम के महिला संगठन एगो सर्वे जारी कइलक. एह में गन्ना कटाई करे वाला 1,042 महिला किसानन से कइल गइल बातचीत भी शामिल रहे. ई बातचीत महाराष्ट्र के आठ जिला में कइल गइल. रिपोर्ट के अनुसार गन्ना के कटाई करे वाली 83 प्रतिशत मेहरारू लोग माहवारी बखत पैड लेत रहे. एह कपड़ा के पैड धोवे खातिर बस 59 प्रतिशत पानी के सुविधा रहे. एकरा अलावा रिपोर्ट से इहो पता चलल कि लगभग 24 प्रतिशत मेहरारू के भींजल पैड दोबारा लेवे के पड़ेला.

गंदा पैड इस्तेमाल कइला से जादे खून आवेला आ पीरियड बखत भारी दरद जइसन बेर-बेर के परेशानी लागल रहेला. शीला बतवली, “पहिले हमरा पेड़ू (पेट के निचलका हिस्सा) में बेर-बेर दरद होखत रहे, आ गाढ़ ऊज्जर पानी भी आवे.”

डॉ. चौहान के कहनाम बा कि माहवारी बखत साफ आ सूखल कपड़ा इस्तेमाल ना कइला से इंफेक्शन हो जाला. एकर इलाज साधारण दवाई से कएल जा सकेला. “बच्चादानी निकालल कोनो उपाय नइखे. बाकिर कैंसर, यूटेराइन प्रोलैप्स आ फाइब्रोइड के मामला में इहे अंतिम उपाय ह.”

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मेहरारू खातिर माहवारी बखत गन्ना के खेत में हाड़-तोड़ मिहनत सबसे जादे चुनौती भरल होखेला. ऊ लोग खातिर खेत में शौचालय, चाहे नहानघर ना होखे. उहंवा रहे के बंदोबस्त भी भारी खराब आ कामचलाऊ बा

शीला आपन नाम मराठी में लिखे के अलावा, पढ़े-लिखे ना जानेली. उनकरा एह बारे में तनिको अंदाजा नइखे कि अइसन इंफेक्शन ठीक हो सकेला. दोसर खेतिहर मजदूर जइसन उहो बीड शहर के एगो प्राइवेट अस्पताल गइली. उनकरा उम्मेद रहे कि दवाई लेवे से दरद में आराम मिली आ ऊ आपन काम बेखटके कर सकेली. एह से ऊ ठेकेदार के जुर्माना देवे से भी बच जइहन.

अस्पताल गइली त डॉक्टर चेतवलन कि उनकरा कैंसर होखे के खतरा बा. ऊ बतावत बारी, “ना ब्लड टेस्ट, ना कोई सोनोग्राफी भइल. ऊ सीधा कहलन कि हमर बच्चादानी में छेद बा. इहो कि हम एकरा ना निकलवइनी त पांच-छव महीना में कैंसर से मर जायम.'' शीला इयाद करत बारी. ऊ डेरा गइली आ ऑपरेशन खातिर चुपचाप तइयार हो गइली. शीला कहेली, “ऑपरेशन भइला के कुछेक घंटा के बाद डॉक्टर हमार निकालल बच्चादानी घरवाला के देखावत कहले कि ई छेद देख लीं.”

शीला के सात दिन अस्पताल में रहे के पड़ल. एह सब में 40,000 रुपइया के खरचा आइल. मानिक के एकरा खातिर दोस्त आ नातेदार से उधारी लेवे आ आपन जमापूंजी लुटावे के पड़ल.

बीड के एगो सोशल एक्टिविस्ट बारन, अशोक तांगडे. उनकरा अनुसार, “बच्चादानी के जादे ऑपरेशन प्राइवेट अस्पताल में ही होखेला.” ऊ चिंता जतावत बारन, “बिना कवनो मेडिकल कारण के बच्चादानी हटावे जइसन गंभीर ऑपरेशन कइल बहुत गलत आ अमानवीय बा.”

सरकार के बनावल समिति एह बात के पुष्टि कइलक कि 90 प्रतिशत से जादे मेहरारू लोग के ऑपरेशन प्राइवेट क्लिनिक में भइल रहे.

बच्चादानी निकलवइला से बाद में का सब परेशानी आई, एकरा बारे में उनकरा कवनो तरह से चेतावल ना गइल रहे. ऊ बतवली, “माहवारी से त पीछा छूटल, बाकिर अब जिनगी नरक जइसन हो गइल बा.”

मजूरी कटे के डर, ठेकेदारन के मनमानी, लूट-खसोट आ पइसा के भूखल प्राइवेट सर्जन के बीच फंसल बारी बीड के महिला गन्ना मजदूर. उनकरा पास दुनिया के बतावे खातिर बस इहे कहानी बा.

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लता वाघमारे आपन रसोई में खाना बनावत बारी. मजूरी पर जाए से पहिले घर के काम सब पूरा कर लेवे के बा

शीला के घर से छव किलोमीटर दूर कठोडा गांव के लता वाघमारे के कहानी कवनो अलग नइखे.

लता (32 बरिस) कहेली, “हमरा जिए के मन ना करे.” जब ऊ खाली 20 बरिस के रहस, उनकरा आपन बच्चादानी निकलवा देवे के परल.

आपन घरवाला रमेश से आपन रिश्ता के बारे में बतावत बारी, “अब हमनी के बीच प्रेम नाम के कवनो चीज बचल नइखे रह गइल.” ऑपरेशन के एक साल भइला के बाद से ही हालात बदले लागल रहे. काहे कि ऊ बहुत चिड़चिड़ायल रहे लगली, आ आपन मरद से दूरी बना लेली.

लता कहत बारी, “जब भी ऊ नजदीक आवस, हम उनकरा धक्का देके दूर क देत रहनी. उनकरा से मुंह फेर लेत रहीं. हमरा बीच एह बात के लेके खूब झगड़ा होखे. हम एक-दूसरा पर चिल्लाईं.” उनकर कहनाम बा कि औरत के सुख ना देवे के चलते घरवाला के उनकरा से लगाव खत्म हो गइल. “अब ऊ हमरा से सीधा मुंह बात ना करेलन.”

लता मजूरी पर जाए से पहले सगरे घर के काम खत्म करेली. ऊ आपन गांव में, चाहे लगे के गांव में दोसरा के खेत में काम करे जाली. दिन भर के कमाई 150 रुपइया हो जाला. बाकिर ऊ ठेहुनी आउर पीठ के दरद से हलकान रहेली. माथा भी बेर-बेर पीड़ात रहेला. राहत खातिर ऊ गोली लेवेली, चाहे घरेलू इलाज आजमावेली. ऊ कहत बारी, “बताईं, अइसन में हमरा ओकरा लगे जाए के मन कइसे करी?”

सिरिफ 13 बरिस के उमिर में बियाहल लता बरिस भर के भीतर एगो लइका, आकाश के माई बन गइली. आकाश भी आपन माई-बाबू के संगे गन्ना के खेत में काम करेले. अइसे उनकर पढ़ाई 12वीं तक भइल बा.

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लता जवना महीना गन्ना काटे बाहिर ना जाएली, ऊ आपन गांव में खेत में मजूरी करेली

लता के दोसरा बेर लइकी भइल रहे. बाकिर ऊ मासूम जब पांच महीना के रहे, गन्ना के खेत में ट्रैक्टर के पहिया के नीचे आके मर गइल. बच्चा आ नया जन्मल लइका बदे कवनो बुनियादी सुविधा ना होखला के चलते गन्ना काटे वाला मरद-मेहरारू ओह लोग के खेत पर ही रखे के मजबूर हो जाला.

लता खातिर आपन लइकी के नुकसान होखे के बारे में बात कइल भारी मुश्किल हो जाला.

“हमरा हाथ-गोड़ चलावे के तनिको मन ना करे. लागेला कुछो ना करीं, चुप्पे बइठल रहीं.” कवनो काम में मन ना लगे से अक्सरहा उनका से गलती हो जाला. “कबो-कबो हम दूध, चाहे तरकारी चूल्हा पर चढ़ाइले. ऊ उफनत रहेला, जरत रहेला, बाकिर हमरा पता ना चलेला.”

बेटी के खत्म भइला के बादो लता आ रमेश के फेरो ओहि खेत में मजूरी करे जाए के अलावे कोई उपाय नइखे.

बाद में लता के तीन गो आउर लइकी भइली- अंजलि, निकिता, आ रोहिणी. ऊ आपन सब लइकिन के खेत में साथे रखेली आउर काम करेली. “काम ना करब त लइका भुखले मर जइहें. आ काम पर ले जाईं त गाड़ी के नीचे आके मर जइहें.’’ लता हार के पूछत बारी, “का फरक पड़त बा?”

महामारी के चलते स्कूल बंद हो गइल. आ घर में स्मार्टफोन ना होखला के चलते ऑनलाइन शिक्षा मिलल असंभव हो गइल. एहि चलते उनका बेटी लोग के पढ़ाई अचानक रुक गइल. अंजली के बियाह 2020 में हो गइल. निकिता आउरी रोहिणी खातिर बर खोजात बा.

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बांवा ओरी: लता आपन लइकिन निकिता आ रोहिणी के साथे. दहिना: रसोई में काम करत निकिता. कहत बारी, 'पढ़ल चाहत बानी, बाकिर अब ना कर सकीं'

“हम सतवां (7वां क्लास) तक पढ़ल बानी.” निकिता 2020 के मार्च महीना से दिहाड़ी मजूरी करे खातिर जाए लागल रहस. ऊ आपन माई-बाबूजी के साथे गन्ना काटे के काम में लाग गइली. ऊ कहत बारी, “पढ़ल चाहत बानी, बाकिर अब नइखीं कर पावत. माई-बाबूजी हमार बियाह करावे चाहत बारन.'

नीलम गोर्हा के अगुआई वाला समिति जे सिफारिश के एलान कइले रहे, ओकर तीन साल भइला के बादो एकरा लागू करे के गति सुस्त बा. शीला आ लता के बात एकर गवाही देत बा कि गन्ना काटे वाला मजूर खातिर पिए के साफ पानी, शौचालय आ अस्थायी आवास देवे के निर्देश कागज़ी खानापूर्त बा.

शीला के एह घोषणा पर तनिको बिस्वास नइखे, “कइसन शौचालय, कइसन घर.” उनका कवनो उम्मीद नइखे कि ई सब स्थिति कबो बदली. ऊ तनी खिसिया के कहत बारी, “सब कुछ पहिले जइसन बा.”

एह समिति के एगो आउरी सिफारिश रहे. ‘आशा’ सेविका आ आंगनबाड़ी सेविका के समूह बनावल जाव. एह से गन्ना काटे वाला मेहरारू लोग के तबियत से जुड़ल परेशानी दूर करे में मदद मिल सके.

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कोठोडा गांव में लता के घर के भीतर के नजारा

मजूरी कटे के डर, ठेकेदारन के मनमानी, लूट-खसोट आ पइसा के भूखल प्राइवेट सर्जन के बीच फंसल बारी बीड के महिला गन्ना मजदूर. उनकरा पास दुनिया के बतावे खातिर बस इहे कहानी बा

गांव के आशा सेविका लोग उनकरा से मिले आवेला कि ना, पूछला पर लता कहली,  “केहू ना आवेला, कब्बो. दिवाली के बाद छव महीना से हम गन्ना के खेत में बानी. घर पर ताला लटकल बा.” काठोडा के बहरी इलाका में दलित टोला बा. एह में 20 गो घर बा. ऊ बतावत बारी कि नव बौद्ध परिवार होखे के नाते ऊ एहि टोला में रहेली. ऊ लोग साथे गांव वाला अछूत जइसन व्यवहार करेला. “हमनी के केहू ना पूछे.”

बीड खातिर काम करे वाला तांगडे के कहनाम बा कि कांच उमर में बियाह, आ गांवन के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रन में स्त्री रोग जानकार के कमी बा. एह कमी से तुरते निपटे के जरूरत बा. ऊ आगे कहले, “फेरु सूखा के संकट भी बा, रोजगार के मौका नइखे. गन्ना मजदूर के मामला खाली पलायन तक सीमित नइखे.”

एहि बीच शीला, लता आ हजारों के संख्या में मेहरारू लोग एह बेर के मौसम में भी गन्ना काटे खेत पर पहुंच गइल बारी. घर से सैंकड़ों मील दूर- उहे खेत बा, उहे गंदा खोली बा, आउर उहे कपड़ा के पैड बा.

हमरा त इंहवा ढेरे बरिस बितावे के बा, शीला कहली. “नइखी जानत, कइसे जियब.”

पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.

रउआ ई लेख के छापल चाहत कइल चाहत बानी? बिनती बा [email protected] पर मेल करीं आ एकर एगो कॉपी [email protected] पर भेज दीहीं .

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Jyoti Shinoli is a Senior Reporter at the People’s Archive of Rural India; she has previously worked with news channels like ‘Mi Marathi’ and ‘Maharashtra1’.

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Illustration : Labani Jangi

Labani Jangi is a 2020 PARI Fellow, and a self-taught painter based in West Bengal's Nadia district. She is working towards a PhD on labour migrations at the Centre for Studies in Social Sciences, Kolkata.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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