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पिछले एक दशक में, चीन में निर्यात की शुरुआत के साथ बाज़ार में उछाल आने के कारण, उत्तरी ओडिशा के पूर्वी घाटों के लौह और मैंगनीज अयस्क से समृद्ध जंगलों को खनन के दुष्चक्र में ढकेल दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अगुवाई में बने आयोग की विस्तृत रपट बताती है कि ज़्यादातर खदाने क़ानूनों और नियमों का उल्लंघन करती हैं, इलाक़े के इको-सिस्टम को गंभीर नुक़्सान पहुंचा रही हैं, और सरकारी ख़ज़ाने की क़ीमत पर खनन करने वालों के लिए अप्रत्याशित लाभ का सौदा साबित हुई हैं.

देर से ही सही, राज्य सरकार ने ख़ुद ही जस्टिस एमबी शाह आयोग के सामने यह स्वीकार किया था कि बीते एक दशक के दौरान 59,203 करोड़ रुपए का अयस्क अवैध रूप से खनन किया गया था. स्थिति को बेहतर समझने के लिए यह जान लेना चाहिए कि यह राशि राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की लगभग एक चौथाई है.

वास्तविकता की धरातल पर देखें, तो मालूम चलता है कि यहां लूट को अपारदर्शी शासन द्वारा उतना ही बढ़ावा दिया जा रहा है जितना कि हाशिए पर पड़े इन आदिवासी समुदायों के अधिकारों का हनन पारंपरिक रूप से स्टेट करता आया है. इन आदिवासी समुदायों की भागीदारी स्थानीय आबादी में सबसे ज़्यादा है, लेकिन खनन से जुड़े प्रोजेक्ट के बारे में निर्णय लेने और पर्यावरण पर उनके असर का आकलन करने में इन आदिवासियों से बात तक नहीं की जाती है.

शाह आयोग की रिपोर्ट 10 फरवरी, 2014 को संसद में पेश की गई थी, लेकिन उस पर कोई चर्चा नहीं हुई. रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई के नाम पर, केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय (MoEF) के साथ-साथ, केंद्र सरकार ने कहा कि वह ऐसे मामलों की पुष्टि करने की कोशिश कर रही है जिनमें ज़रूरी मंजूरी लिए बिना वन क्षेत्रों में अवैध खनन किया जा रहा है.

राज्य सरकार ने आयोग को बताया कि उसने उन खदान पट्टाधारकों को 146 वसूली नोटिस जारी किए हैं जिन्होंने अवैध रूप से लौह अयस्क और मैंगनीज़ का खनन किया है. राज्य के खान सुरक्षा निदेशालय के एक अधिकारी ने हाल में बताया था कि इन पैसों की वसूली होनी अभी बाक़ी है. उनके मुताबिक़, कुछ पट्टाधारकों ने स्थानीय अदालतों में इस आदेश पर रोक लगाने के लिए अपील की थी, जिससे निर्धारित राशि की वसूली विचाराधीन थी, जबकि अन्य मामलों में कार्रवाई की प्रक्रिया अभी चल ही रही है.

इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार ने अवैध खनन के कई गंभीर मामलों की केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जांच की, शाह आयोग की सिफ़ारिश का पुरज़ोर विरोध किया है. यह एक ऐसी मांग है जिसे ग़ैर-लाभकारी कॉमन कॉज़ के वकील प्रशांत भूषण, जनहित याचिका में दोहराते रहे हैं, और फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई चल रही है.

वन्यजीव कार्यकर्ता और पारदर्शिता की वकालत करने वाले ऐक्टिविस्ट बिश्वजीत मोहंती साल 2008 से ओडिशा में अवैध खनन का मुद्दा उठाते रहे हैं. उनके अनुसार, स्थानीय अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई न करने की बात इस तथ्य से ही प्रमाणित हो जाती है कि "हज़ारों करोड़ की सार्वजनिक संपत्ति लूटे जाने के बावजूद, एक भी सरकारी कर्मचारी या निजी अधिकारी को जेल नहीं भेजा गया है, एक भी खनन लाइसेंस रद्द नहीं किया गया है, और आज तक एक रुपया भी वसूला नहीं गया है.”

सुंदरगढ़ ज़िले के बोनई इलाक़े की ये तस्वीरें खनन वाले क्षेत्रों और उन जगहों के बीच का फ़र्क़ साफ़ कर देती हैं जहां खनन किया जाना अभी बाक़ी है.

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उत्तर ओडिशा के समृद्ध घने जंगलों और पर्वत शृंखलाओं में, भारत के हेमाटाइट लौह अयस्क भंडार का एक तिहाई हिस्सा बसता है. इस वजह से यह इलाक़ा पिछले एक दशक में लौह अयस्क के खनन के मामले में, पूरे देश में अव्वल है, और साथ-ही-साथ राज्य के सबसे बड़े घोटाले की जगह भी बन गया है.

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यहां एक खनन कंपनी, बोनई इलाक़े के आसपास के जंगलों के बीच खदान वाले क़स्बे में सड़क का निर्माण करती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, लौह अयस्क और मैंगनीज़ का खनन 45,000 हेक्टेयर से ज़्यादा इलाक़े में किया जाता है, जिसमें से 34,000 हेक्टेयर ज़मीन वन क्षेत्र में आती है

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लौह अयस्क की ढुलाई करने वाले ट्रक क्षेत्र की सड़कों पर कब्ज़ा जमाए रहते हैं, जिससे स्थानीय लोग सड़क का इस्तेमाल नहीं कर पाते. इन ट्रकों का चलना केवल रविवार को रुकता है; यह भी तब हुआ, जब ग्रामीणों ने साप्ताहिक अवकाश के लिए आंदोलन किया था, ताकि वे चर्च और बाज़ारों में जाने के लिए सड़कों का इस्तेमाल कर सकें.

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कुर्मीटर पर्वत शृंखला में स्थित खदानों तक जाने वाली सड़क पर चलने वाले ट्रक जाम लगा देते हैं. जस्टिस एमबी शाह आयोग ने अनुमान लगाया था कि निकासी की मौजूदा दर के अनुसार, इस क्षेत्र में गुणवत्ता वाले लौह अयस्क भंडार अगले 35 वर्षों में समाप्त हो सकते हैं. हालांकि, सरकार ने इस दावे को खारिज़ कर दिया था

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स्थानीय पौरी भुइयां आदिवासी समुदाय के प्रभु सहाय टोप्पोनो, सूखी पहाड़ी धारा पार करते हुए. खदान के किनारे स्थित उनके गांव के लिए पानी का यही एकमात्र स्रोत है. प्रभु का कहना है कि स्थानीय लोगों ने पिछले 7 सालों में इस जलधारा से मछलियों को ग़ायब होते देखा है. बरसात के मौसम में खदान से निकलने वाला कचरा नीचे की ओर नदी में बह जाता है, जिससे ख़रीफ़ की फसल की खेती करना असंभव हो जाता है. वह कहते हैं, "हम प्लास्टिक के पैकेट में रखकर इस लाल प्रदूषित पानी को अधिकारियों के पास ले गए थे और इसकी शिकायत की थी. उन्होंने कहा था कि वे कार्रवाई करेंगे, लेकिन किया कुछ नहीं."

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एक दूसरे से काफ़ी दूरी पर बसे गांवों के दुर्गम इलाक़ों में स्थित होने की वजह से, आदिवासी समुदायों के पर्यावरण से जुड़ी जन-सुनवाई में भागीदारी या परियोजनाओं के लिए जंगल काटने के लिए ज़रूरी सहमति जैसे सीमित सुरक्षा अधिकारों का, खनन कंपनियां और सरकारी अधिकारी धड़ल्ले से उल्लंघन करते हैं.

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इलाक़े के आदिवासी भोजन, ईंधन, और आजीविका के लिए लाख, महुआ, और साल सहित वन उपज पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं.

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ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन की लौह अयस्क खदान में दिन के 9 घंटे के काम के बाद, जैतरू गिरी और उनका परिवार खदान के बाहरी इलाक़े में स्थित अपनी झोपड़ी में लौट आते हैं. शाह आयोग ने अवैध खनन से बेहद अप्रत्याशित मुनाफ़ा कमाने के बावजूद, मज़दूरों (जिसके लिए ज़्यादातर आदिवासी आदमियों और औरतों को ही इस्तेमाल किया जा रहा है) को उचित वेतन नहीं देने के लिए खनन कंपनियों की आलोचना की.

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लौह अयस्कों से भरपूर और 3,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित छेलियाटोका पर्वत शृंखला बादलों से घिरी हुई है. हाल में राज्य सरकार द्वारा खनन को बढ़ावा देने के बावजूद, छेलियाटोका के आसपास स्थित फुलझर जैसे गांवों के लोगों ने क्षेत्र की 2,500 हेक्टेयर ज़मीन पर, दक्षिण कोरियाई स्टील कंपनी 'पोस्को' की खदान शुरू करने की योजना का विरोध किया था. निवासियों को डर था कि इलाक़े की पहाड़ी जलधाराओं पर खदान का बुरा असर पड़ेगा, जिनसे वे अपने खेतों की सिंचाई करते हैं और पूरे साल खेती कर पाते हैं.

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मशहूर जलप्रपात (झरना) खंडाधा छेलियाटोका पर्वत शृंखला में ही 800 फ़ीट की ऊंचाई पर बहता है. यह राज्य का दूसरा सबसे ऊंचा जलप्रपात है.

पहली बार मई, 2014 में 'डाउन टू अर्थ ' में प्रकाशित हुई इस स्टोरी को यहां पढ़ा जा सकता है.

अनुवाद: देवेश

Chitrangada Choudhury

Chitrangada Choudhury is an independent journalist.

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Translator : Devesh

Devesh is a poet, journalist, filmmaker and translator. He is the Translations Editor, Hindi, at the People’s Archive of Rural India.

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