जम्मू-कश्मीर के ऊंच पहाड़ मन मं तुमन ला अकेल्ला बकरवाल कमतेच देखे ला मिलही.

ये घूमंतु समाज अपन मवेसी मन ला चराय सेती चरी-चरागान ला खोजे जम्मो हिमालय मं बड़े मंडली बनाके जाथें.  “तीन ले चार भाई अपन परिवार ला धरके एके संग मं जाथें.” मोहम्मद लतीफ़ कहिथें, जऊन ह हरेक बछर ऊंच जगा धन बहक ला जाथें. वो ह कहिथें, “गोहड़ी ला संभाले असान आय काबर छेरी अऊ मेढ़ा ला एके संग रखे जाथे.”  करीबन 5,000 मेढ़ा, छेरी, घोड़ा अऊ कुछेक राजसी बकरवाल कुकुर मन के जिकर करथें जऊन ह ओकर संग हरेक बछर जाथें.

बकरवाल मन के जम्मू के चातर इलाका मन ले लेके पीर पंजाल अऊ हिमालय के ऊंच चरागान तक के रद्दा मं करीबन 3,000 मीटर के चढ़ाई सामिल हवय. वो मन धूपकल्ला के सुरु होय के पहिली मार्च महिना के आखिर मं चले जाथें अऊ जड़कल्ला के सुरु होय के पहिली सितंबर के तीर लहूंटे ला सुरु करथें.

हरेक बेर जाय मं करीबन 6-8 हफ्ता लाग जाथे; माइलोगन मन, लइका मन अऊ कुछेक मरद मन सबले पहिली के मंडली मं रहिथें. मोहम्मद लतीफ कहिथें, “वो मन महत्तम चरागान मन मं हमर ले पहिली पहुंचथें अऊ गोहड़ी के आय सेती डेरा ला तियार राखथें.” ओकर मंडली लद्दाख मं जोजिला दर्रा के तीर बसे मीनामार्ग तक राजौरी के तीर के चरागान मन मं जाथे.

A flock of sheep grazing next to the Indus river. The Bakarwals move in large groups with their animals across the Himalayas in search of grazing grounds
PHOTO • Ritayan Mukherjee

सिंधु नदी के तीर चरत मेढ़ा गोहड़ी. बकरवाल अपन मवेसी के संग बड़े मंडली बनाके चरी-चरागान खोजे हिमालय के ओ पार मं चले जाथें

Mohammed Zabir on his way  back to Kathua near Jammu; his group is descending from the highland pastures in Kishtwar district of Kashmir
PHOTO • Ritayan Mukherjee

मोहम्मद ज़बीर जम्मू के तीर कठुआ लहुंटत बखत; ओकर मंडली कश्मीर के किश्तवाड़ जिला मं पहाड़ के चरागान ले उतरत हवय

30 बछर के उमर ला पूरा करत शौकत अली कांडल जम्मू के कठुआ जिला के एक कोरी (20) बकरवाल परिवार के एक दीगर मंडली के हिस्सा आंय. ये ह सितंबर 2022 आय, अऊ ओकर मंडली किश्तवाड़ जिला के दोड्डाईबहक (ऊँच जगा के चरागान) ले लहुंटत हवय – कतको पीढ़ी ले ओकर घाम के बखत के घर. वो ह वारवान घाटी के बरफ के दर्रा ले होके आय हवंय. शौकत कहिथें, “हमन अवेइय्या महिना कठुआ हबरबो. रद्दा मं चार धन पांच ठन ठिया अऊ आथें.”

बकरवाल बछर के अधिकतर बखत येती-वोती किंदरत रहिथें काबर वो मन के मेढ़ा मन ला कोठा मं नई रखे जाय सकय; वो मन ला खुल्ला मं चरे ला रहिथे. गोहड़ी के सुस्ताय अऊ खाय के भारी महत्ता हवय काबर मवेसी वो मन के आमदनी के पहिली जरिया आंय – छेरी अऊ मेढ़ा के गोस ला सब्बो कश्मीरी मन के तिहार मं भारी महत्ता देय जाथे. शौकत के एक झिन जुन्ना रिश्तेदार बताथें, “हमर मेढ़ा अऊ छेरी मन हमर सेती महत्तम हवंय. (इहाँ के) कश्मीरी मं करा (आमदनी सेती) अखरोट अऊ सेब के रुख हवंय.” वो मन के आय-जाय मं घोड़ा अऊ खच्चर घलो महत्तम होथे: न सिरिफ कभू-कभार अवेइय्या सैलानी फेर परिवार के लोगन मन, मेढ़ा के लइका, ऊन पानी अऊ रोज के जरूरत के चीज घलो वो मन दोहारथें.

येकर पहिली दिन मं हमन शौकत के घरवाली शमाबानो के संग ओकर डेरा तक जाय सेती पहाड़ के ठाढ़ ढलान ला चढ़े रहेन. ओकर मुड़ी ऊपर बड़े अकन हौंला रहिस जेन मं नंदिया के पानी भरे रहिस. पानी लाय के बूता अक्सर माई चरवाहा मन ला करे ला परथे, जऊन ला चलत फिरत घलो हरेक दिन अइसने करे ला परथे.

घूमंतु समाज बकरवाल मन ला राज मं अनुसूचित जनजाति के रूप मं सूचीबद्ध करे गे हवय. 2013  के एक ठन रपट मं वो मन के अबादी 1,13,198 बताय गे हवय. जब वो मन जम्मू अऊ कश्मीर राज मं आथें-जाथें त वो मन ला बगीचा मन मं रोजी-मजूरी करे ला घलो मिल जाथे. एके जगा मं वो मन के हरेक बछर जाय ह कश्मीरी लोगन मन के संग मितानी के संबंध बन गे हवय. अक्सर तीर-तखार के गाँव के माइलोगन मन जऊन मन अपन मवेसी चराय ला आथें, अपन डेरा मं अवेइय्या मन के संग गोठियाय ला बइठ जाथें.

Shaukat Ali Kandal and Gulam Nabi Kandal with others in their group discussing the day's work
PHOTO • Ritayan Mukherjee

शौकत अली कांडल अऊ गुलाम नबी कांडल अपन मंडली के दीगर लोगन मन के संग दिन के काम ला लेके गोठियावत

At Bakarwal camps, a sharing of tea, land and life: women from the nearby villages who come to graze their cattle also join in
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बकरवाल डेरा मं चाहा, जमीन अऊ जिनगी के बंटवारा: अपन मवेसी चराय आय लोगन मन मं माइलोगन मन घलो रहिथें

“हमर करा नान कन गोहड़ी हवय, फेर हमन अभू घलो हरेक बछर चले आथन काबर हमर घर के मरद मन ला कुछु उपरहा बूता मिल जाथे (जब हमन जावत रहिथन). जवान टूरा मन लकरी काटे धन इहाँ के कश्मीरी मं के सेती अखरोट अऊ सेब टोरे ला जाथें, जोहरा कहिथे.” 70 बछर के उमर मं वो ह बकरवाल माइलोगन मन के पहिरे के पारंपरिक हाथ ले बने कढ़ाई करे टोपी पहिरे हवय. वो अपन परिवार के बाकी लोगन मन के संग जम्मू मं अपन घर ला लहूंटे के रद्दा मं पहाड़ी गांदरबल जिला के एक ठन गाँव कंगन मं एक नहर तीर मं रहत हवंय. वो ह हंसत कहिथे, “गर कुछु घलो नई ये तब ले घलो हमन आ जाबो, का तुमन जानथो काबर? घाम मं चातर इलाका मं मोर सेती भारी घाम होथे!”

*****

“तऊन बाड़ा मन ला देखव.”

छेरी के दूध ले बने ताते तात मलाईदार गुलाबी चाहा पीयत गुलाम नबी कांडल कहिथें, “जुन्ना बखत बीत गे. वो ह वो बखत के बिन गुजारे नजारा के जिकर करत रहय जेकर वो वोला आदत पर गे रहिस. अब वो ह चरागान अऊ डेरा के जगा ला लेके संसो करत अऊ कऊनो भरोसा मं नई ये.

“हमन सुने हवन के सेना ह अवेइय्या बछर ये जगा ला कब्जा करे ला जावत हवय.” वो ह आगू के पहाड़ ऊपर बाड़ा के एक नवा पांत डहर आरो करत कहिथे. हमर तीर मं बइठे दीगर बकरवाल ये समाज के  सियान मन के बात ला सुनत रहिन, वो मन के चेहरा ह चिंता ले भरे हवंय.

Gulam Nabi Kandal is a respected member of the Bakarwal community. He says, 'We feel strangled because of government policies and politics. Outsiders won't understand our pain'
PHOTO • Ritayan Mukherjee

गुलाम नबी कांडल बकरवाल समाज के जाने माने सदस्य आंय. वो ह कहिथें, ‘सरकार के नीति अऊ राजनीति सेती हमन अपन आप ला ठगाय जइसने मसूस करथन. बहिर के लोगन मन हमर पीरा ला नई समझे सकंय’

Fana Bibi is a member of Shaukat Ali Kandal's group of 20 Bakarwal families from Kathua district of Jammu
PHOTO • Ritayan Mukherjee

फना बीबी शौकत अली कांडल जम्मू के कठुआ जिला के 20 बकरवाल परिवार मन के मंडली ले हवंय

वो ह बताथें, वो सब्बो कुछु नई ये. कतको चरागान मन ला सैलानी मन के सेती बदले जावत हवय; सोनमर्ग अऊ पहलगाम जइसने सबके चहेता जगा ये बछर सैलानी मन ले भर गे हवंय. ये बनेच अकन जगा ओकर मवेसी मन के सेती घाम के बखत महत्तम चरागान हवंय.

समाज के एक झिन सियान जेन ह अपन नांव नई बताया ला चाहत रहिस, वो ह हमन ला बताथे, “देखव वो (सरकार) सुरंग अऊ सड़क सेती कतक पइसा खरच करत हवय. हर जगा बढ़िया सड़क बनत जावत हवंय, जऊन ह सैलानी अऊ राहगीर मन बर बने आय, फेर हमर सेती नई.”

वो ह ये बात ला बतावत रहिन के बकरवाल ये इलाका मन मं घोड़ा मन ला भाड़ा मं दे के कमावत रहिन जिहां गाड़ी मोटर जाय लइक सड़क नई ये. वो ह कहिथे, ये सैलानी के सीजन के बखत हमर आमदनी के माई जरिया मं ले एक आय. फेर वो मन ला दलाल अऊ इहाँ के लोगन मन के संग न सिरिफ घोड़ा ला भाड़ा मं देय, फेर सैलानी धन ट्रेकिंग गाइड के रूप मं अऊ इहाँ के होटल मं काम खोजे ला चाही. 2013 के ये रपट के मुताबिक बकरवाल मन के अऊसत साक्षरता 32 फीसदी हवय, दीगर नऊकरी अधिकतर के पहुंच ले बहिर हवंय.

समाज ह ऊन के घलो कारोबार करथे जऊन ला कश्मीरी शॉल अऊ कालीन मं बदल दे गे हवय. कतको बछर ले, गुणवत्ता ला सुधारे के कोसीस मं कश्मीर घाटी अऊ गुरेजी जइसने देसी नस्ल के मैरिनो जइसने ऑस्ट्रेलिया अऊ न्यूजीलैंड के नस्ल मन के संग संकर करे गे हवय. इहाँ घलो बकरवाल मन के ऊपर खतरा मंडरावत हवय. “कुछेक बछर पहिली ऊन के दाम करीबन 100 रूपिया किलो रहिस. अब हमन ला 30 रूपिया घलो नई मिलत हवय.” हमन ला कतको लोगन मन बताईन.

Young Rafiq belongs to a Bakarwal family and is taking his herd back to his tent
PHOTO • Ritayan Mukherjee

जवान रफीक एक बकरवाल परिवार ले हवय अऊ अपन गोहड़ी ला अपन डेरा मं ले जावत हवय

Shoukat Ali Kandal and others in his camp, making a rope from Kagani goat's hair
PHOTO • Ritayan Mukherjee

शौकत अली कांडल अऊ वो मन के डेरा के दीगर लोगन मन, कागनी छेरी के चुंदी ले रस्सी बनावत हवंय

वो ह कहिथे के दाम के भारी तेजी ले गिरे सेती सरकार के चेत नई धरे के संग सुभीता ले मिले ऊन काटे के यूनिट के कमी सेती आय. वो मन जऊन असल ऊन बेंचथें, वो ह ऐक्रेलिक ऊन जइसने सस्ता ले टक्कर ले खतरा मं हवय. काबर के कतको चरागान तक ले बेपारी धन दुकान तक पहुंच नई होय सेती, बकरवाल    घोड़ा धन खच्चर ले ऊन ला लेके जाथें अऊ फेर बजार तक ले जाय सेती गाड़ी भाड़ा मं लेथें. ये बछर, कतको बकरवाल मन अपन मेढ़ा के ऊन काटिन अऊ ऊन ला चरागान मं छोड़ दीन काबर येला दोहारे बर लगे खरचा बजार ले होय कमई ले जियादा रहिस.

उहिंचे, वो मन छेरी के चुंदी ले तंबू अऊ डोरी बनाथें. वो अऊ ओकर भाई शौकत ह डोरी ला खींच के हमन ला बताथे, “कागनी छेरी येकर सेती बढ़िया होथे, ओकर चुंदी लाम लाम होथे.” कागनी वो नस्ल आय जऊन ह भारी कीमती कश्मीरी ऊन देथे.

सरकार ह 2022 मं बकरवाल मन ला वो मन के जाय जगा तक जल्दी पहुंचाय सेती वो मन ला अऊ वो मन के मवेसी मन ला घाम के महिना मं चरागान मं ले जाय के मदद के नेवता दीस. जिहां जाय मं वो मन ला हफ्ता लाग जावत रहिस, वो ह एके दिन मं सिरा जावत रहिस. फेर कतको लोगन ला मदद नई मिल सकिस काबर ट्रक बनेच कम रहिस. दूसर बेर जब नेवता मिलिस वो मन पहिली ले जा के रहत रहिन. एक झिन मेढ़ापालन अफसर ह कबूल करथे के, “हजारों बकरवाल परिवार हवंय अऊ कुछेक ट्रक हवंय. अधिकतर लोगन मन येकर फायदा नई पाय सकत हवंय.”

*****

“मंय अभिचे 20 दिन पहिली ओकर ले भेंट होय रहेंव .”

मीना अख्तर तंबू के कोंटा मं रखाय कपड़ा लत्ता के नान कन गठरी डहर आरो करथे. जब तक ले वो ह रोय ला नई धरे तब तक ले गठरी मं रखे नवा जन्मे लइका ला मुस्किल ले पहिचाने जा सकथे. मीना ह वोला पहाड़ के तरी मं एक ठन अस्पताल मं भर्ती कराइस. वो ला उहाँ ले जाय ला परिस काबर के जचकी के दिन बीत गे रहिस अऊ वो ला जचकी के पीरा नई होय रहिस.

Meena Akhtar recently gave birth. Her newborn stays in this tent made of patched-up tarpaulin and in need of repair
PHOTO • Ritayan Mukherjee

मीना अख्तर ह हालेच मं लइका जनम करे हवय. ओकन नवा जन्मे लइका तिरपाल ले बने ये डेरा मं रहिथे अऊ डेरा के मरम्मत के जरूरत हवय

Abu is the youngest grandchild of Mohammad Yunus. Children of Bakarwal families miss out on a education for several months in the year
PHOTO • Ritayan Mukherjee

अबू मोहम्मद यूनुस का सबले नान पोता आय. बकरवाल परिवार के लइका मन बछर मं कतको महिना तकले पढ़े नई जाय सकंय

वो ह कहिथे, “मंय दुब्बर मसूस करत रहेंव. मंय अपन ताकत सेती हलवा (सूजी दलिया) खावत रहेंव, मंय बीते दू दिन ले रोटी खाय ला सुरु कर देय हंव.” मीना के घरवाला तीर के गाँव मं लकरी काटे के बूता करथे अऊ ओकर कमई ले रोज के घर के खरचा चलथे.

चाहा बनाय सेती पाकिट के गोरस ला डारत वो ह कहिथे, हमन ला ये बखत गोरस नई मिलत हवय, छेरी मन जनेइय्या हवंय. एक बेर मेढ़ा जनिस त हमन ला फिर ले गोरस मिलही. बकरवाल सेती घीव, गोरस अऊ पनीर पोसन के जरूरी जरिया आंय, खासकरके माई लोगन अऊ लइका मन के सेती.

बहिर ऊंच पहाड़ मं अऊ सिरिफ तिरपाल ले बने डेरा मं, बनेच नान लइका मन ला अक्सर रांधे के आगी अऊ कंबल के गरमी ले भीतरी मं गरम रखे जाथे. जऊन मन बहिर जाय सकथें, वो मन डेरा के तीर चरों डहर किंदरत रहिथें अऊ एक-दूसर संग खेलत रहिथें. वो मन ला छोटे बूता दे जाथे जइसने कुकुर मन के देखभाल धन जलावन लकरी लाय अऊ पानी लाय. मीना कहिथें, “लइका मन जम्मो दिन पहाड़ी झिरना के पानी मं खेलत रहिथें.”  वो ह कहिथें वो मन ला मीनामार्ग के अपन जुड़ बखत के बहक मं छोड़े ले बने नई लगय, जऊन ह लद्दाख के सरहद ले जियादा दूरिहा नई ये: “उहाँ जिनगी बढ़िया हवय.”

शौकत के डेरा के खालदा बेगम घलो अपन नान कन लइका संग चलत रहिथें, फेर ओकर किशोर उमर के बेटी जम्मू मं एक झिन बेटी रिस्तेदार तीर रहिथे जेकर ले वो ह इस्कूल जाय सकय. वो ह ये बात करत मुचमुचावत कहिथे, “मोर बेटी उहाँ बढ़िया करके पढ़े सकत हवय.” कतको लइका मन करा अइसने सुविधा नई होवय अऊ वो मन ला अपन परिवार के संग जाय ला परथे. सरकार डहर ले मोबाइल इस्कूल चलाय के कोसिस बंद नई होय हवय काबर सिरिफ कुछेक बकरवाल वो मन के तीर जाय सकथें.

In her makeshift camp, Khalda Begum serving tea made with goat milk
PHOTO • Ritayan Mukherjee

अपन कुछु दिन के डेरा मं खालदा बेगम छेरी गोरस ले बने चाहा देवत हवय

मोबाइल इस्कूल मं सरकारी गुरूजी मन हमेसा नई आवंय. 30 बछर के खादिम हुसैन हतास होवत कहिथे, “वो मन इहाँ नई आवंय फेर वो मन ला तनखा मिलथे.”  वो ह बकरवाल समाज के एक मंडली ले हवय, जऊन ह कश्मीर ला लद्दाख ले जोरेइय्या जोजी ला दर्रा के बनेच तीर मं डेरा डाले हवंय.

फैसल रज़ा बोकदा बताथें, “जवान पीढ़ी जियादा पढ़त हवय. वो मन घुमंतू जिनगी ला छोड़ के दीगर ला हासिल करे के कोसिस करत हवंय. वो मन ला ये (घुमंतू) जिनगी कठिन लागथे.” वो ह जम्मू मं गुज्जर बकरवाल युवा कल्याण सम्मेलन के प्रांतीय अध्यक्ष आंय अऊ बेदखली अऊ अनियाव के मुद्दा ला उठाय सेती पीर पंजाल पर्वतमाला के जरिया ले चले के योजना बनावत रहिन. वो ह कहिथें, “ ये हमन जवान लइका मन के सेती असान नई ये. जब हमन दीगर लोगन मन के संग बात करथन त हमन अभू घलो बनेच कलंक ले जूझत रहिथन. सहर मं त अऊ घलो जियादा (ऊंच-नीच) हमन ला गहिर ले असर करथे.”  बोकडा गुर्जर अऊ बकरवाल मन ला अनुसूचित जनजाति के रूप मं ओकर हक के बारे मं जागरूक करे के काम करत हवय.

श्रीनगर सहर के बाहरी इलाका मं जकूरा नांव के इलाका मं 12 बकरवाल परिवार रहिथें – वो मन के जुड़  के बखत के बाहक ला एक ठन पनबिजली बांध बनाय सेती विस्थापित करे गे रहिस, येकरे सेती वो मन इहाँ बस गे हवंय. अल्ताफ (बदले नांव) इहिंच जन्मे रहिस अऊ इस्कूल बस चलाथे. “मंय अपन सियान, बीमार दाई-ददा अऊ लइका मन के सेती इहींचे रहे के फइसला करेंव.” वो ह बताथें के वो अपन समाज के दीगर लोगन मन के जइसने काबर नई जावय.

गुलाम नबी कहिथें, “तुमन मोर पीरा ला कइसे जाने सकहू.”  जऊन ह अपन सरा जिनगी पहाड़ मं खुल्ला किंदरत बिताय हवय, वो ह अपन समाज के अगम ला अचिंता नई होय देखत अऊ बाड़ा, सैरगाह अऊ बदलत जिनगी ले होवइय्या खतरा ला भांपत कहिथे.

Bakarwal sheep cannot be stall-fed; they must graze in the open
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बकरवाल मेढ़ा मन ला कोठा मं नई रखे जाय सकय, वो मन ला खुल्ला मं चराय ला रथे

Arshad Ali Kandal is a member Shoukat Ali Kandal's camp
PHOTO • Ritayan Mukherjee

अरशद अली कांडल शौकत अली कांडल के मंडली के आंय

Bakarwals often try and camp near a water source. Mohammad Yusuf Kandal eating lunch near the Indus river
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बकरवाल अक्सर पानी के तीर डेरा डाले के कोसिस करथें, सिंधु नदी के तीर मंझनिया खावत मोहम्मद युसूफ कांडल

Fetching water for drinking and cooking falls on the Bakarwal women. They must make several trips a day up steep climbs
PHOTO • Ritayan Mukherjee

पिये अऊ रांधे सेती पानी लाय ह बकरवाल माइलोगन मन ला भारी परथे. वो मन ला ठाढ़ चढ़ई ला दिन भर मं कतको बेर चढ़े ला परथे

Zohra Bibi is wearing a traditional handmade embroidered cap. She says, 'We migrate every year as our men get some extra work'
PHOTO • Ritayan Mukherjee

जोहरा बीबी ह हाथ से कढ़ाई करे पारंपरिक टोपी पहिरे हवंय, वो ह कहिथें, 'हमन हरेक बछर आ जाथन काबर हमर घर के मरद मन ला कुछु ऊपरहा बूता करे ला मिल जाथे”

A mat hand-embroidered by Bakarwal women
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बकरवाल माईलोगन मन के हाथ ले बने सरकी

'We barely have access to veterinary doctors during migration. When an animal gets injured, we use our traditional remedies to fix it,' says Mohammed Zabir, seen here with his wife, Fana Bibi.
PHOTO • Ritayan Mukherjee

मोहम्मद जाबिर, जऊन ह इहाँ अपन घरवाली फना बीबी के संग दिखत हवंय, कहिथें, ‘जावत बखत हमन ला मवेसी डॉक्टर भारी मुस्किल ले मिले सकथें. जब कऊनो मवेसी ला जखम लाग जाथे त हमन येला बने करे सेती अपन पारम्परिक इलाज करथन’

Rakima Bano is a Sarpanch in a village near Rajouri. A Bakarwal, she migrates with her family during the season
PHOTO • Ritayan Mukherjee

रकीमा बानो राजौरी के तीर के एक गांव के सरपंच आंय. एक झिन बकरवाल, वो ह सीजन बखत ओकर परिवार के संग आथें

Mohammad Yunus relaxing in his tent with a hookah
PHOTO • Ritayan Mukherjee

मोहम्मद यूनुस हुक्का के संग अपन डेरा मं सुस्तावत

Hussain's group camps near the Zoji La Pass, near Ladakh. He says that teachers appointed by the government at mobile schools don’t always show up
PHOTO • Ritayan Mukherjee

हुसैन के मंडली, लद्दाख के तीर, जोजिला दर्रे के तीर मं डेरा डारथे. ओकर कहना हवय के मोबाइल इस्कूल मं सरकारी गुरूजी मन सरलग नई आवंय

Faisal Raza Bokda is a youth leader from the Bakarwal community
PHOTO • Ritayan Mukherjee

फैसल रजा बोकड़ा बकरवाल समाज के जवान नेता आंय

A Bakarwal family preparing dinner in their tent
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बकरवाल परिवार अपन डेरा मं रात के खाय ला रांधत हवय

Bakarwal couple Altam Alfam Begum and Mohammad Ismail have been married for more than 37 years
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बकरवाल जोड़ा अल्तमअल्फाम बेगम अऊ मोहम्मद इस्माइल के बिहाव ला 37 बछर ले जियादा होगे हवय

रिपोर्टर मन फैसल बोकडा, शौकत कांडल अऊ इश्फाक कांडल ला वो मन के बड़े मन ले मदद अऊ पहुनई सेती अभार जतावत हवंय.

रितायन मुखर्जी  देहाती अऊ घूमंतू समाज मं के ऊपर सेंटर फॉर पेस्टरलिज्म ले एक स्वतंत्र यात्रा अनुदान ले रिपोर्ट करथें. सेंटर ह ये रिपोर्ताज की सामग्री ऊपर कऊनो संपादकीय नियंत्रण नई रखे हवय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Ritayan Mukherjee

رِتائن مکھرجی کولکاتا میں مقیم ایک فوٹوگرافر اور پاری کے سینئر فیلو ہیں۔ وہ ایک لمبے پروجیکٹ پر کام کر رہے ہیں جو ہندوستان کے گلہ بانوں اور خانہ بدوش برادریوں کی زندگی کا احاطہ کرنے پر مبنی ہے۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Ritayan Mukherjee
Ovee Thorat

اووی تھوراٹ خانہ بدوش زندگی اور سیاسی ماحولیات میں دلچسپی رکھنے والے ایک آزاد محقق ہیں۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Ovee Thorat
Editor : Priti David

پریتی ڈیوڈ، پاری کی ایگزیکٹو ایڈیٹر ہیں۔ وہ جنگلات، آدیواسیوں اور معاش جیسے موضوعات پر لکھتی ہیں۔ پریتی، پاری کے ’ایجوکیشن‘ والے حصہ کی سربراہ بھی ہیں اور دیہی علاقوں کے مسائل کو کلاس روم اور نصاب تک پہنچانے کے لیے اسکولوں اور کالجوں کے ساتھ مل کر کام کرتی ہیں۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Priti David
Photo Editor : Binaifer Bharucha

بنائیفر بھروچا، ممبئی کی ایک فری لانس فوٹوگرافر ہیں، اور پیپلز آرکائیو آف رورل انڈیا میں بطور فوٹو ایڈیٹر کام کرتی ہیں۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز بنیفر بھروچا
Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Nirmal Kumar Sahu