मैंने कहीं लिखा है कि आप शायद हमें उखाड़ फेकेंगे और पानी में डुबो देंगे. लेकिन जल्द ही आपके लिए ज़रा सा भी पानी नहीं बचेगा. आप हमारी ज़मीनें, हमारा पानी चुरा सकते हैं, लेकिन हम फिर भी आपकी आने वाली पीढ़ियों की ख़ातिर लड़ेंगे, और अपनी जान देते रहेंगे. जल, जंगल, और ज़मीन बचाने के लिए जारी हमारी लड़ाई सिर्फ़ हमारी नहीं है. आख़िर, हम में से कोई भी प्रकृति से अलग नहीं है, हर कोई उसका हिस्सा है. आदिवासी जीवन प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलने का नाम है. हम ख़ुद को इससे अलग करके नहीं देखते. देहवली भीली में मैंने जो तमाम कविताएं लिखी हैं उनमें से कई में मैंने अपने लोगों के मूल्यों को संरक्षित करने की कोशिश की है.

हमारा, यानी आदिवासी समुदायों का वैश्विक दृष्टिकोण आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आधार हो सकता है. अगर आप सामूहिक आत्महत्या के लिए तैयार नहीं हैं, तो आपके पास उस जीवन, उस विश्वदृष्टि की तरफ़ लौटने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है.

जितेंद्र वसावा की आवाज़ में, देहवली भीली में कविता का पाठ सुनें

प्रतिष्ठा पांड्या की आवाज़ में, अंग्रेज़ी में कविता का पाठ सुनें

पैर रखने की ज़मीन

भाई,
मेरे भाई, तुम नहीं समझोगे
पत्थर को पिसने
और मिट्टी को जलाने का मतलब
तुम बहुत ख़ुश हो
अपने घर को प्रकाशित कर
ब्रह्मांड की ऊर्जा पर काबू पाए
तुम नहीं समझोगे
पानी के बूंद का मरना क्या होता है?
आख़िर तुम धरती की श्रेष्ठ रचना जो हो
तुम्हारी श्रेष्ठता की सबसे बड़ी खोज है
यह "लेबोरेटरी"

तुम्हें इन जीवजंतुओं से क्या?
पेड़-पौधों से क्या?
तुम्हारे सपने आसमान में घर बनाने के हैं
तुम धरती के दुलारे नहीं रहे
भाई, बुरा तो नहीं मानोगे
तुम्हें "चंद्रमैन" कहूं तो
आख़िर तुम पंछी तो नहीं पर
उड़ने के सपने देखते हो
तुम पढ़-लिखे जो हो!

आख़िर तुम नहीं मानोगे
पर भाई, हम अनपढ़ों के लिए
हो सके तो इतना ज़रूर कर जाना
पैर रखने की ज़मीन छोड़ जाना
भाई.

मेरे भाई, तुम नहीं समझोगे
पत्थर को पीसने
और मिट्टी को जलाने का मतलब
तुम बहुत ख़ुश हो
अपने घर को प्रकाशित कर
ब्रह्मांड की ऊर्जा पर काबू पाए
तुम नहीं समझोगे
पानी के बूंद का मरना क्या होता है?
आख़िर तुम धरती की श्रेष्ठ रचना जो हो

अनुवाद: देवेश

Poem and Text : Jitendra Vasava

जितेंद्र वसावा गुजरातच्या नर्मदा जिल्ह्यातल्या महुपाडा गावी राहतात आणि देहवाली भिलीमध्ये कविता करतात. २०१४ साली त्यांनी आदिवासी साहित्य अकादमी स्थापन केली. आदिवासींचा आवाज मुखर व्हावा यासाठी त्यांनी लाखरा नावाचे कवितेचे मासिक सुरू केले असून त्याचे ते संपादक आहेत. आदिवासींच्या मौखिक साहित्यावर त्यांची चार पुस्तके प्रकाशित झाली आहेत. त्यांचा पीएचडीचा अभ्यास नर्मदा जिल्ह्यातल्या भिल आदिवासींच्या मौखिक कथांमधले सांस्कृतिक पैलू आणि मिथ्यांवरती होता. लवकरच त्यांचा पहिला काव्यसंग्रह प्रकाशित होणार आहे. पारीवर प्रसिद्ध झालेल्या सर्व कविता या संग्रहातील आहेत.

यांचे इतर लिखाण Jitendra Vasava
Illustration : Labani Jangi

मूळची पश्चिम बंगालच्या नादिया जिल्ह्यातल्या छोट्या खेड्यातली लाबोनी जांगी कोलकात्याच्या सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल सायन्सेसमध्ये बंगाली श्रमिकांचे स्थलांतर या विषयात पीएचडीचे शिक्षण घेत आहे. ती स्वयंभू चित्रकार असून तिला प्रवासाची आवड आहे.

यांचे इतर लिखाण Labani Jangi
Translator : Devesh

देवेश एक कवी, पत्रकार, चित्रकर्ते आणि अनुवादक आहेत. ते पारीमध्ये हिंदी मजकूर आणि अनुवादांचं संपादन करतात.

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