नाखून जेतना छोट चमेली के कली सुन्दर, तनी पियर, चाहे उच्जर होखेला. चमेली के खेत, इहंवा से उहंवा तक, खिलल फूल से जगमगात रहेला. एकर तीखा आउर मादक सुगंध नथुना में भर जाला. चमेली के फूल एगो अनुपम उपहार बा. ई धूल भरल धरती, मजबूत गाछ आउर बादल से भरल आकास से होके, हमनी के हथेली पर सज जाएला.

चमेली के खेत में मिहनत करे वाला मजूर लोग एकर मदमस्त कर देवे वाला गमक से बेखबर बा. ओह लोग लगे एकर खुशबू लेवे के समय नइखे. ऊ लोग हाली हाली मल्ली (चमेली) लेके पूकडई (फूल के हाट) खातिर निकल पड़ल बा. हाट पहुंचे के पहिले कली खिले के ना चाहीं. आज विनायक चतुर्थी के चउथा दिन बा, भगवान गणेश जी के जन्मदिन बा. आज के दिन फूल के नीमन दाम मिले के उम्मीद रहेला.

अंगूठा आउर तर्जनी (अंगूठा लगे वाला अंगुरी) के मदद से मरद आउर मेहरारू लोग कली तोड़े में लागल बा. मुट्ठी जइसहीं भरेला, ओकरा साड़ी के अंचरा चाहे धोती में बनावल छोट थैली में खाली कर देवल जाला.  फेरु सभे के एगो बोरा में खाली कइल जाला. काम एकदम सधल हाथ से होखेला: डाढ़ के पहिले हिलावल (सर, सर) जाला, फेरु कली तुड़ल (तड़, तड़) जाला. एकरा बाद दोसर गाछ के बारी आवेला. सभे गाछ तीन बरिस के लइका जेतना लमहर होखेला. घूम घूम के खूब कली तुड़ल जाला. गप-सर्रका चलत बा. केहू रेडियो पर तमिल में नीमन नीमन गीत सुनत बा. एहि बीच धीरे धीरे सूरज भगवान पूरब ओरी आकास में उठल जात बाड़ें.

जल्दिए सभे फूल मदुरई में मट्टुतवानी के हाट पहुंची आउर उहंवा से तमिलनाडु के दोसर शहरन के यात्रा पर निकल जाई. कबो कबो ई यात्रा समंदर पार करके दोसर मुलुक भी पहुंचेला.

पारी 2021, 2022 आ 2023 में तिरुमंगलम आउर उसिलमपट्टी तालुका के यात्रा पर निकलल.  चमेली के खेत पहुंचे खातिर मदुरई शहर से एक घंटा से भी कम लागेला. इहंवा रउआ प्रतिष्ठित मीनाक्षी अम्मन मंदिर आउर खूब चहल पहल वाला फूल के बाजार भेंटाई. हाट में कहीं मल्ली के ढेर लगा के, त कहीं मुट्ठी भर कली बिकात रहेला.

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गणपति मेलौप्पिलिगुंडु में आपन खेत में ठाड़ बाड़ें. चमेली के गाछ फूल से भर गइल बा. रोज एक किलो से कम फूल ना निकले

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खुशबू से दम दम करत मुट्ठी भर चमेली के कली

तिरुमंगलम तालुका के मेलौप्पिलिगुंडु बस्ती में रहे वाला 51 बरिस के पी गणपति हमरा चमेली के फूल आउर एकर खेती के बारे में विस्तार से बतावत बाड़ें. मदुरई, भारत भर में चमेली के फूल खातिर जानल जाला. “ई इलाका मल्ली के खुशबू खातिर मशहूर बा. काहे, रउआ बस आपन घर में आधा किलो चमेली रख के देखीं, पता चल जाई. हफ्ता भर पूरा घर दम दम महकत रही!”

एकदम उज्जर शर्ट, जेकरा जेबी में कुछ नोट रखल बा, आउर बुल्लू लुंगी. गणपति धीरे से मुस्कइलन आउर मुदरै वाला तमिल में बोले लगलन, “एकर पौधा जबले एक बरिस के ना होके, ई एकदम बच्चा जेका होखेला. एकर बहुत ध्यान रखे के पड़ेला.” गणपति आपन अढाई एकड़ के जमीन पर बरसन से चमेली के खेती कर रहल बाड़ें.

पौधा लगइला के छव महीना बाद एकरा में फूल आवे के सुरु हो जाला. बाकिर सभे पौधा में एक जइसन फूल ना आवे. जइसे एक किलो चमेली के भाव बाजार में ऊपर नीचे होखत रहेला. कबो त गणपति के एक एकड़ जमीन पर मुस्किल से एक किलो फूल निकलेला. आउर दूसरे हफ्ता, हो सकत बा 50 किलो फूल निकल आवे. “बियाह आउर तीज-त्योहार के मौसम में एकर भाव आसमान छुवेला. एक किलो चमेली के दाम एक हजार, दू हजार, फिर तीन हजार रुपइया तक चल जाला. बाकिर अइसन सीजन में भी दाम कम हो सकेला.” एकर खेती के कवनो गारंटी नइखे. गारंटी बस एके चीज के हवे, खरचा.

आउर एह में कवनो शक नइखे कि मिहनत के भी कवनो गारंटी ना होखेला. केतना दिन भोर में ऊ आउर उनकर वीतुकरम्मा- गणपति आपन घरवाली पिचईयम्मा के इहे कह के पुकारेलन- मिलके आठ किलो फूल तोड़ेला. ऊ बतइलें, “फूल लोढ़त लोढ़त पीठ दुखा जाला. हालत खस्ता हो जाएला.” बाकिर उनकरा, खटनाई से जादे तकलीफ खाद, कीटनाशक, मजूरी आउर इंधन के भाव बढ़ला से होखेला. ऊ कहेलें, “अइसे में, हमनी के बढ़िया कमाई कइसे होखी?” ऊ सितंबर 2021 के बात कर रहल बाड़ें.

चमेली रोज फुलाए वाला फूल बा. तमिल संस्कृति के प्रतीक- मल्ली यानी चमेली, गली गली बिकाए वाला साधारण फूल हवे. जइसे ई शहर चाउर के एक तरह के पकवान, इडली खातिर मशहूर हवे. ओहि तरहा हर मंदिर, शादी बियाह आ हाट में चमेली के खुशबू बिखरल बा. जहंवा जाईं भीड़ से एक्के तरह के सुंगध आई. बस होखे, चाहे बेडरूम सभ जगह चमेली अपना खुशबू से राज करेली. बाकिर चमेली के उगावल आसान नइखे.

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गणपति के खेत में एक ओरी चमेली के नया पौधा आउर चमेली के कली (दहिना)

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पिचईयम्मा दोसर खेत मजूर लोग के संगे मिलके चमेली के खेत से खर पतवार साफ करत बाड़ी

हमनी अगस्त 2022 में दोसर बेर ओह लोग से मिले यात्रा पर निकलनी. ओह घरिया गणपति के एक एकड़ जमीन पर चमेली के नया पौधा लागल रहे. कुल मिलाके इहे कोई, 9000 पौधा होखी. पौधा अबले सात महीना के हो गइल रहे. सभे पौधा रोपे खातिर रामनाथपुरम में रामेश्वरम के लगे, तंगचिमदम के नर्सरी से मंगावल गइल रहे. गणपति अंगूरी से आपन केहूनी के छू के पौधा के लंबाई देखावे लगलें. ऊ बतइलन कि एतना बड़ा पौधा 4 रुपइया के हिसाब से मिलल. नर्सरी में से ऊ अपना से चुन-चुन के पौधा लइले रहस, खूब अच्छा मजबूत पौधा. माटी जदी नीमन, उपजाऊ, लाल आ दोमट बा, त- “रउआ ओकरा चार फीट पर भी रोप सकिला. पौधा खूब बढ़िया से बढ़ी,” गणपति बतइलन. ऊ आपन हाथ से गोल घेरा करके समझइलन कि चमेली के पौधा बढ़ के केतना घना हो सकेला. “बाकिर इहंवा जे माटी बा, ऊ चैंम्बर ईंट खातिर जादे नीमन बा”. मतलब चिक्कन माटी.

गणपति के एक एकड़ जमीन पर मल्ली के खेती में 50,000 रुपइया खरचा होखेला. “एकरा नीमन से उगाईं, त पइसा जादे लागेला.” गरमी में उनकर खेत चमेली के फूल से जगमग करेला. ऊ एकरा तमिल में कहेलन: “पलीचिन्नु पूकुम.” जब ऊ बतावे लगलन कि एक दिन उनकरा खेत से 10 किलो फूल निकलल, त उनकर चेहरा दमक उठल. फूल के बात कइल जाव, त कवनो गाछ से 100 ग्राम फूल, त कवनो 200 ग्राम निकलेला. अइसन बतावत उनकर आंख में चमक रहे, आवाज में जोश रहे, आउर हंसी में उम्मीद रहे कि अइसन फेरु होई. जल्दिए.

गणपति के काम तड़के, भोर के पहिल किरण फूटते सुरु हो जाला. पहिले काम एकरा से एक-दू घंटा पहिले सुरु हो जात रहे, बाकिर उनकर कहनाम बा, अब “मजूर लोग देरी से आवेला.” खेत पर एक घंटा काम के मजूरी 50 रुपइया बांधल बा. एक “डिब्बा” (एगो नपना) कली, खातिर 35 से 50 रुपइया. उनकरा हिसाब से एगो “डिब्बा” में एक-एक किलो चमेली आ जाएला.

पारी पछिला बेर जे गइल रहे, ओकरा बाद से अबही 12 महीना में चमेली के भाव बढ़ गइल बा. चमेली के न्यूनतम भाव का होई, ई ‘इत्र’ कारखाना तय करेला. जब चमेली के भरमार होखेला, त इहंवा एकरा थोक भाव से खरीदल जाला. एह कारखाना में चमेली से इत्र तइयार होखेला. कारखाना में 120 आउर 220 के बीच कवनो भाव में फूल खरीद के आवेला. गणपति के हिसाब से जदी दू सौ रुपइया के भाव भी मिलत बा, त ऊ नुकसान में नइखन.

चमेली के उत्पादन जब कम रहेला आउर मांग जादे, त एक किलो के दाम कई गुना जादे हो जाला. त्योहार में 1,000 रुपइया किलो के हिसाब से बिकाला. बाकिर तब पौधा कैलेंडर के हिसाब से ना होखेला. ना ही एकरा उगावे खातिर ‘मुहूर्त नाल’ आ ‘करी नाल’ - शुभ चाहे अशुभ दिन देखल जाला.

चमेली त बस कुदरत के हिसाब से चलेली. जे घरिया तेज घाम रहेला आउर बरसात नीमन होखेला, तब धरती से फूल फूटेला. “सभे ओरी, जेने मुड़ चमेली के बहार रहेला. फूल के खिले से कोई ना रोक सके, रउआ रोक सकिला?” गणपति तनी मुस्कुरातत पूछलें.

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गणपति हमनी के खाए खातिर ताजा अमरुद तोड़ के लावत बाड़ें

बरसात में खिले वाला फूल, ऊ एकरा इहे कहेलन, चमेली मदुरई के सभ बाजार भर जाएला. “चमेली बोरा में कसा के टन के टन हाट में पहुंचेला. पांच टन, छव टन, सात टन. काहे, एक दिन त हमनी दस टन ले के गइल रहीं!” ऊ बतइलन कि एकरा में से जादे चमेली इत्र कारखाना खातिर खरीद लेहल जाएला.

चमेली के माला आउर जूड़ा में लगावे वाला एकर गजरा 300 रुपइया किलो से जादे के भाव से बिकाला. हंसी से दमकत चेहरा तनी मेहरा गइल. ऊ धीरे से हंसत कहले, “जब चमेली के गाछ में भरपूर फूल आ जाएला, हमनी मुस्किल से 1 किलो फूल तोड़ पाइले. कम फूल आवे से दाम भी बढ़ जाला. जब मांग बहुत जादे रहेला, आउर ओह घरिया हमरा लगे 10 किलो भी चमेली होखे, त एकरा से हमरा एक दिन के 15,000 रुपइया के कमाई हो जाएला. ई बहुत जादे कमाई बा का?” ऊ मुस्कइलें आउर कहलें, “अइसन होखित, त हम इहंवा आराम से कुरसी खींच के बइठतीं, दुपहरिया के खूब नीमन खाना के इंतजाम रहित आउर बस बइठल बइठल इंटरव्यू देतीं!”

असलियत त ई बा कि ऊ अइसन ना कर सकेलन. उनकर घरवाली भी अइसन ना कर सकस. काहे कि चमेली के खेती में बहुत खटे के होखेला. एह खूबशबूदार फसल के उगावे खातिर जादे बखत जमीन के सेवा में लाग जाला. गणपति आपन दोसर डेढ़ एकड़ के जमीन पर अमरूद के पेड़ लगइले बाड़ें. “आज बिहाने, हम 50 किलो अमरूद बाजार में बेचे खातिर ले गइल रहीं. लोग 20 रुपइया किलो के भाव से खरीदलक. आवे जावे के खरचा के बाद हमरा लगे 800 रुपइया बचल. अमरूद के मौसम ना रहेला, तब ग्राहक लोग सीधे खेत से अमरूद लेवे आवेला. आके ऊ लोग अपने से तोड़ी. आउर 25 रुपइया किलो के हिसाब से दाम लगाई. ऊ दिन त अब ना रहल…”

गणपति चमेली खातिर एक एकड़ जमीन के पहिले कोड़े के तइयार करेलन. फेरु नर्सरी से पौधा लेके आवेलन. एह सभ में उनकर एक लाख रुपइया खरचा हो जाला. बाकिर एतना पइसा खरचा कइला के बाद उनकरा कमो ना त 10 बरिस ले फूल मिलत रहेला. मल्ली के मौसम आठ महीना, जादे करके मार्च आ नवंबर के बीच, रहेला. उनकरा हिसाब से चमेली के खेती में नीमन दिन, बहुत नीमन दिन होखेला बाकिर अइसन दिन भी आवेला जब पौधा में एगो कली ना आवे. औसतन, उनकरा हिसाब से फूल के मौसम में एक एकड़ से महीना के 30,000 रुपइया के कमाई हो जाएला.

उनकर बात सुनके लागेला कि ऊ पहिले से जादे संपन्न हो गइल बारे. दोसर बहुते किसान लोग जेका ऊ परिवार- आपन आउर आपन घरवाली के खेती में लागल मिहनत के, खेती के खरचा में ना जोड़ेलन. जदी ऊ आपन आउर घरवाली के मजूरी भी खरचा में जोड़ देस तब केतना खरचा आई? उनकरा हिसाब से “हमार रोज के दिहाड़ी 500 आउर घरवाली के 300 रखीं,” त एह हिसाब से महीना में सगरे खरचा निकाल के जे पहिले 30,000 रुपइया के कमाई रहे, ऊ घट के 6,000 पर आ जाई.

इहो खातिर, “राउर भाग्य साथ देव के चाहीं,” ऊ कहलन. जइसन कि हमनी जल्दिए उनकर मोटर शेड में जानम, कि ई सभ भाग- आउर कुछ दवाई (रसायन) के बात बा.

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गणपति के खेत में लागल मोटर शेड. भूइंया पर काम में लइला के बाद दवाई (रसायन) के बहुते बोतल आउर डिब्बा पड़ल बा

मोटर शेड एगो छोट कमरा जेका बा. उहंवा गणपति के कुत्ता दुपहरिया में सुतल रहेला. अंदर एगो कोना में मुर्गी के झुंड भी बा. असल में सबसे पहिले हमनी के अंडा दिखाई देलक. गणपति मुंह दबा के हंसे लगलें आउर एकरा उठा के हथेली पर सावधानी से रखलें. भूइंया कीटनाशक के बहुते छोट डिब्बा आ बोतल से अटल पड़ल बा. अइसन लागत बा कि ई कीटनाशक दवाई के शोरूम होखे. चमेली के पेड़ में खूब नीमन फूल आवे आउर सेहतमंद फूल आवे, एह खातिर ई सभ जरूरी हवे, गणपति बहुत धीरज से समझावत बाड़ें. “पालिचु,” चमेली के उज्जर, मजबूत, भारी आउर नीमन डंठल वाला कली.

गणपति एगो डिब्बा हाथ में उठा के हमरा से पूछे लगलें, “एकरा अंग्रेजी में का कहल जाला?” हम सभे नाम एक एक करके पढ़े लगनी. ऊ बड़बड़इलन, “हई लाल कीड़ा के मारेला, ऊ वाला एगो दोसरा तरह के कीड़ा खातिर बा. उहंवा जे बा, ऊ सभ तरह के कीट के नाश कर देवेला. चमेली के पेड़ पर बहुते तरह के कीट हमला करेला.”

गणपति के बेटा उनकर सलाहकार हवे. हमनी चमेली जइसन उज्जर जरत घाम में घूमत रहीं. घूमत घूमत ऊ समझइलें, “ऊ कीटनाशक बेचे वाला एगो दोकान, मरुंधु कडई , में काम करेलें.” हमनी खेत में घूमत रहीं त सामने एगो पिल्ला भींजल माटी में गुलाटी मारत रहे. ओकर उज्जर केस धीरे धीरे लाल होखत जात रहे. शेड लगे एगो भुअर कुकुर भटकत रहे. हम उनकरा से पूछनी, “ओकरा का कह के पुकारिले.” ऊ बतइलें, “हम करुप्पु पुकारिले, त इ लोग दउड़त आवेला,” ऊ मुस्कुरात कहलन. तमिल में करुप्पु के मतलब करिया होखेला. बाकिर हम देखना कि कुकुर त अइसन नइखे.

“रउआ कुछुओ पुकारीं, ऊ लोग दउड़ल आई,” कहके गणपति हंसे लगनल. फेरु एगो दोसर बड़ शेड में घुस गइले. उहंवा एगो बाल्टी में भर के नरियर आउर खूब पाकल अमरूद रखल रहे. “हमार गाय एकरा खाई. ऊ ओह तरफ के खेत में घास चरत बिया,” उहंवा बहुते देसी मुरगा सभ कुकरू कु करत रहस आउर दउड़त रहस.

एकरा बाद ऊ हमनी के खाद देखावे एक ओही ले गइलन. उहंवा एगो उज्जर डोलची में 800 रुपइया के ‘सॉयल कंडीशनर’ (माटी खातिर कंडीशनर) जमा करके रखल रहे. एकरा संगे सल्फर के दाना आउर कुछ जैविक खाद भी रहे. ऊ बतइलें, “हम कार्तिगई मासम (15 नवंबर से 15 दिसंबर) के बीच नीमन पैदावार चाहत बानी. ओह घरिया भाव भी बहुत नीमन मिलेला, काहे कि ऊ बियाह के मौसम रहेला.” आपन शेड के बाहिर एगो ग्रेनाइट के खंभा पर झुकल ऊ मुस्कइलन आउर हमरा नीमन खेती करे के एगो राज बतवलन: “पौधा के इज्जत करम, त उहो बदला में राउर इज्जत रखी.”

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गणपति के दुनो कुकुर- दूनो के नाम करुप्पु (करिया) बा- आपन अंगना में खेलत बाड़ें. दहिना: एगो मुरगी दाना चुग रहल बिया

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बावां: खाद के एगो डिब्बा. दहिना: गणपति देखावत बाड़ें कि चमेली के पेड़ पर कहंवा कीट हमला करेला

गणपति कहानी सुनावे के कला खूब जानेलन. उनकरा खातिर खेत एगो थियेटर बा जहंवा रोज कवनो ना कवनो नाटक होखत रहेला. “काल्ह रात के इहे कोई 9.45 बाजत रहे. ओह तरफ से चार गो सुअर खेत में घुस आइल. करिप्पु इहंवा रहलें. ऊ सुअर के देखलें. सुअर सभ त पाकल अमरूद के महक से ओहि तरफ खींचल जात रहे. ऊ तीन गो के रगेद देलें. एगो ओह ओरी भाग गइल.” आउर ऊ मेन रोड के पार एगो मंदिर आउर ओकरा पार एगो खेत ओरी हाथ से इशारा कइलें. “का कइल जा सकेला? बहुत पहिले लोमड़ी शिकार करे आवत रहे- अब ई लोग उत्पाद मचइले बा.”

सुअर तंग करेला, त कीट से भी परेसानी बा. चमेली के खेत में घूमत गणपति बतइलें कि जब नया फूल आवेला त कीट कइसे फट से शातिर तरीके से चुपचाप हमला कर देवेला. एकरा बाद ऊ हवा में गोल घेरा आउर चौकोर लाइन खींच के बतइलें कि पौधा कइसे कइसे रोपाइल ह. फेरु कुछ मोती जइसन फूल तोड़ के सूंघलन आउर कहे लगलन, “मदुरई मल्ली के खुशबू के आगे सभ फेल ह.”

हम मानिले. केतना मादक गंध बा. चमेली के गाछ के बीच घूमत लागे लागल कि ई केतना मान के बात हवे. लाल रंग के माटी के ऊपर हमनी के गोड़ पड़त रहे. कंकड़ पत्थर पर गोड़ पड़े त चरमर चरमर होखे लागे. गणपति एगो ज्ञानी जेका खेती के बारे में बतावत रहन. आपन घरवाली पिचईयम्मा के जिकिर भी सम्मान से करत रहलन. “हमनी कोई बड़ जमींदार नइखीं, एगो चिन्ना समसारी (छोट किसान) हईं. हमनी कुरसी पर बइठ के हुकुम ना चला सकीं. हमार घरवाली मजूर लोग संगे लग के काम करेली. समझीं कि हमनी एहि तरहा से जिंदा बानी.”

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एह धरती पर चमेली कम्मो ना त, 2000 बरिस से आपन खुशबू बिखेर रहल बा. एकर इतिहास निराला बा. जइसे एगो धागा में एकरा खूबसूरती से पिरोअल जाला, तमिल इतिहास में एकर खुशबू गूंथल बा. एह में रूप बा, सुगंध बा. चमेली के आउर किसिम के भी उल्लेख मिलेला. हवाई के संगम तमिल विद्वान आउर अनुवादक, वैदेही हर्बर्ट के कहनाम बा, “इतिहास के पन्ना में मल्ली के 100 से जादे जगह पर जिकिर बा.” ओह घरिया के संगम साहित्य में चमेली के इहे पुकारल जात रहे. वैदेही संगम युग के 18 गो किताब के अनुवाद कइले बाड़ी. ई सभ किताब 300 ईसा पूर्व से 250 एडी के बीच लिखल गइल बा. एह सभ के अनुवाद अंग्रेजी में कइल गइल बा. वैदेही के ई सभे किताब मुफ्त में ऑनलाइन पढ़ल जा सकेला.

उनकरा हिसाब से मल्लीगई के मूल शब्द मुल्लई बा, जेकरा अब मल्ली कहल जाला. संगम कविता में, मुल्लई पांच तरह के भूमि प्रदेश में से एगो के नाम बा, अकम तिन्निस- जंगल आउर एकरा से सटल जमीन. दोसर चार के नाम फूल चाहे पेड़ के नाम पर बा:  कुरिंजी (पहाड़), मरुतल (खेत), नेतल (समंदर के किनारा) आउर पलई (शुष्क जंगल)

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मदुरई के उसिलमपट्टी तालुका में नाडुमुडलईकुलम बस्ती में पांडी के खेत में चमेली के कली आउर फूल

वैदेही आपन ब्लॉग में लिखत बाड़ी, संगम लेखक लोग “काव्यात्मक असर लावे खातिर अक्कम… थिनाइस के प्रयोग कइले बा.” ऊ समझावत बाड़ी कि उपमा आउर रूपक, “खास परिदृश्य के तत्व पर आधारित बा. वनस्पति, जीव आउर बहुत कुछ आउर चीज कविता के पात्र के भौतिक लक्षण आउर भावना के जाहिर करे खातिर उपयोग कइल जाला.” मुल्लई परिदृश्य में जे स्थापित छंद बा ओकर विषय बा, “धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा”. मतलब नायिका आपन नायक के लौटे के इंतजार करत बाड़ी.

2,000 बरिस पाछू जाइल जाव, त ई ऐनकुरुनुरु कविता में, एगो मरद बा जे आपन मेहरारू के रूप के गुणगान करत बा:

जइसे मोर तोहरा जेका नाचेला,
जइसे चम्पा तोहरा जेका खुशबू लुटावेली
तोहार माथा के सुगंध जेका
जइसे हिरणी डर के तोहरा जइसन देखेली
बरसात में बदरा जइसन तेज
हमर प्यारी, हम तोहरे सोचत घर ओरी भागिला.

संगम युग के कविता के जानल मानल अनुवादक, ओल्ड तमिल पोएट्री डॉट कॉम चलावे वाला चेन्तिल नाथन के एगो आउर कविता मिलल. ई कविता… चेन्तिल के हिसाब से बहुते लंबा बा. बाकिर इहंवा देहल गइल एकर ई चार लाइन बहुते सुंदर, आउर प्रासंगिक बा.

…परी, खूब मशहूर,
जे आपन घंटीवाला रथ दान कर देलन
खिल रहल चमेली के,
जेकर लता बिना सहारा लड़खड़ात रहे
अइसे त ई कबो उनकर प्रशंसा के गीत ना गा सकेला…

पुरनानुरु 200, लाइन 9-12

आज तमिलनाडु में मल्ली के जे किसिम के बड़हन रुप से खेती कइल जाला ओकर वैज्ञानिक नाम जैस्मीनम सांबैक हवे. एह राज्य देश में चमेली उगावे में सबले आगे बा. भारत में चमेली के कुल 240,000 टन के उत्पादन में से तमिलनाडु अकेले 180,000 टन उगावेला.

मदुरई मल्ली- एकर नाम पर एगो जीआई ( भौगोलिक संकेत ) संगे- में बहुते तरह के गुण बा. एह में: गहीर गंध, मोट पंखुड़ी, सबले जादे लंबा डंठल, गठल कली, जादे दिन तक रंग आउर गंध ताजा रहे (लमहर जिनगी) जइसन खूबी भरल बा.

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चमेली के फूल पर बइठ के रस पियत एगो तितली

चमेली के दोसर किसिम के भी नाम दिलचस्प बा. मदुरई मल्ली के अलावा एकरा गुंडू मल्ली, नम्म ऊरु मल्ली, अम्बु मल्ली, रामबनम, मधबनम, इरुवत्ची, इरुवत्चिप्पू, कस्तूरी मल्ली, ऊसी मल्ली आ संगल मोगरा.

अइसे त, मदुरई मल्ली के खेती खाली मदुरई तक ही बंधल नइखे. ई विरुदुनगर, तेनी, डिंडीगुल आ शिवगंगई जइसन जगह पर भी मिलेला. तमिलनाडु में खेती योग्य जमीन के 2.8 प्रतिशत टुकड़ा में सभे तरह के चमेली के फूल के खेती होखेला. एह मेंं अकेले चमेली के किस्म सभ के खेती 40 प्रतिशत जमीन पर होखेला. राज्य में चमेली के हर छठमा खेत- मतलब राज्य के कुल 13,719 हेक्टेयर में से 1,666 हेक्टेयर- मदुरई में बा.

अइसे त ई सभ गिनती कागज पर लुभावन लागेला. बाकिर असलियत में दाम के उतार-चढ़ाव से किसान बहुत परेसान बा. नीलकोट्टई बाजार में ‘इत्र’ खातिर चमेली के भाव 120 रुपइया किलो के बुनियादी दाम से सुरू होके मट्टुतवानी फूल बाजार में (सितंबर 2022 और दिसंबर 2021 में) 3,000 से 4,000 रुपइया के बीच कुछ भी हो सकेला. दुनो भाव गैरवाजिब आउर अस्थायी हवे.

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फूल के खेती एगो लॉटरी जइसन बा. सभ समय के बात बा. “त्योहार के दिन में जदी राउर पौधा फूल देत बा, त फायदा होई. ना त, राउर लरिका लोग चमेली उगावे के काम करे से पहिले दू बेरा सोची, सोची कि ना? ऊ लोग एह काम में आपन माई-बाबूजी के दुखी देखत बा, ह कि ना?” गणपति जवाब खातिर इंतजार नइखन करत. ऊ इहो कहत बाड़ें, “छोट किसान बड़ से मुकाबला नइखे कर सकत. जदी केहू के विशाल जमीन पर लागल गाछ से 50 किलो फूल तोड़े के बा, त एकरा खातिर मजूर के आउर 10 रुपइया देवे के होई. मजूर लोग के गाड़ी से लावे आउर टिफिन देवे के होई. हमनी एतना कर सकतानी?”

दोसर छोट किसान जेका, उहो बड़ कारोबारी “ अडईकलम ”, से पनाह मांगेलन. गणपति बतइलन, “जे घरिया सबसे जादे फूल फुलाला, हम बिहान, दुपहरिया, सांझ- केतना बेरा फूल के बोरा लेके जाइले. हमरा व्यापारी लोग के जरूरत होखेला जे फूल बेचे में हमार मदद करे.” चमेली बेचला पर हर रुपइया पर व्यापारी 10 पइसा के दलाली खाएला.”

पांच बरिस पहिले गणपति मदुरई के एगो बड़ फूल व्यापारी पूकडई रामचंद्रन से कुछ लाख रुपइया करजा लेले रहले. पूकडई मदुरई फूल बाजार संघ के अध्यक्ष रह चुकल बाड़ें. ऊ व्यापारी के फूल बेच के आपन पइसा सधावत बाड़ें. अइसन ब्यापार में, कमीशन एके बार में 10 से उछल के 12.5 प्रतिशत हो जाला.

छोट किसान भी दोसरा सभे चीज सहित कीटनाशक खातिर अल्पकालीन (कम बखत के) उधार लेवेलन. काहे कि चमेली के गाछ आउर कीड़ा के बीच लड़ाई स्थायी रूप से चलेला. विडंबना बा कि, जब फसल मजबूत भी होखेला, जइसे कि रागी, तबो हाथी जइसन एगो बड़ जानवर राउर खेत रौंद सकेला. किसान आपन रागी के खेत बचावे खातिर संघर्ष करत रहेलन. ऊ लोग हमेसा सफल ना होखे, एहि से बहुते लोग दोसर तरह के फूल उगावे में लाग जाला. मदुरई में फूल उगाए वाला इलाका में, किसान के बहुत तरह के छोट छोट जंतु सभ से लड़े के पड़ेला. जंतु में- कली में लागे वाला कीड़ा, फूल पर लागे वाला मच्छर, पत्ता पर लागल घुन आउर मकड़ा- एह सभ से फूल खराब हो जाला, एकर रंग उड़ जाला, गाछ कमजोर हो जाला, आउर आखिर में किसान तबाह हो जाला.

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मदुरई के तिरुमल गांव में आपन चमेली के खेत, जेकर सभे गाछ में बहुते कीट लागल बा, में काम करत चिन्नामा

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फूल लोढ़ला (तोड़ला) के बाद नयका आउर पुरान खेत. दहिना: तिरुमल गांव में चमेली के खेत के बगल में एगो जगह कबड्डी खेलत बच्चा लोग

गणपति के घर से तनिए दूर पर तिरुमल गांव के पूरा खेत लउकत बा. खेत एकदम बरबाद हो चुकल बा, आउर सपना भी. इहंवा मल्ली तोट्टम (चमेली के खेत) 50 बरिस के आर. चिन्नामा आउर उनकर घरवाला रमार के हवे. उनकर दू बरिस के पुरान गाछ अबही उज्जर चमेली से लद गइल बा. बाकिर ई सभे, जइसन ऊ कहतारी, “ठीक ठाक क्वालिटी के फूल हवे. एकर जादे पइसा ना मिली.” एह सभ में कीड़ा लागल बा. ऊ ई कहत जीभ काट के आपन सिर हिलावत कहे लगलन, “कीड़ा लगला पर फूल ना त खिलेला, ना ही बढ़ेला.”

चमेली के खेती में अथक मिहनत बा. फूल लोढ़े (तोड़े) खातिर बूढ़िया से लेके जवान, कॉलेज के लइकी लोग- सभे लागल रहेला. चिन्नामा बहुत प्यार से फूल लोढ़त जात बाड़ी आउर हमनी से बतियावत जात बाड़ी. कंडांगी स्टाइल में लुगा लपेटले ऊ चमेली के डाढ़ के प्यार से पहिले हिलावेली, फेरु कली तुड़ के ओकरा तनी झाड़ के आपन अंचरा में डाल लेवेली. उनकर घरवाला रमार आपन खेत में बहुते कीटनाशक डाललें, बाकिर कवनो खास फायदा ना भइल. “ऊ केतना तरह के ‘कड़ा दवाई’ भी इस्तेमाल कइलें, जे साधारण ना रहे. एकरा खातिर हमनी के एक लीटर के 450 रुपइया लागल. बाकिर कुछो फायदा ना भइल! एक बखत अइसन आइल कि दोकानदारो कह देलक, आउर पइसा बरबाद मत करीं.” रमार आके चिन्नामा के बस एतने कहलें, “पौधा सभ के उखाड़ द. हमनी के 1.5 लाख के चपत लाग गइल बा.”

चिन्नामा बतइली कि एहि से उनकर घरवाला खेत में नइखन लउकत. ऊ कहली, “वयितेरिचल”, ई एगो तमिल शब्द बा. जब केहू के पेट जरे लागेला त इहे कहल जाला. एकर मतलब जलन आउर कड़वाहट से लगावल जाला. “जे घरिया एक किलो चमेली खातिर दोसरा के 600 रुपइया मिलेला, हमनी के खाली 100 मिलल.” बाकिर ऊ आपन गुस्सा चाहे चिढ़ पौधा पर ना उतरली. ऊ बहुत धीरे से डाढ़ मोड़ली आउर फिर ओकरा एतना झुकावस कि कली तक पहुंच सकस. “जदी हमनी के फसल नीमन होखित, त चमेली के एगो बड़ गाछ से कली तुड़े में केतना मिनट लाग जाइत. बाकिह अबही…” आउर ऊ जल्दी से दोसर पेड़ ओरी बढ़ गइली.

गणपति गमछा आपन कंधा पर रखलन आउर चिन्नामा के पौधा सभ पर हाथ फेरत कहलें, “नीमन फसल बहुत चीज पर निर्भर करेला. रउआ देखे के पड़ी कि माटी कइसन बा, ठीक से बढ़त होखत बा कि ना, आउर उगावे वाला किसान के केतना जानकारी बा. रउआ एकरा आपन लइका नियर पोसत बानी. त ऊ छोट बच्चा आपन मुंह से त ना कही हमरा ई चाहीं, हमरा ऊ चाहीं. कह सकेला का? ई त रउआ समझे के पड़ी आउर ओकरा हिसाब से जरूरत पूरा करे के पड़ी. बच्चा के उलट, पौधा रो ना सकेला. बाकिर जदी रउआ अनुभवगर बानी, त पता चल जाई… ई बेमार बा, कि एकरा कीड़ा लागल बा, कि ई मरत बा.”

एह में से बहुत कीड़ा के ‘इलाज’ कीटनाशक दवाई के मिश्रण बा. हमनी चमेली उगावे के जैविक तरीका के बारे में जाने के चहनी. उनकर जवाब में छोट किसान के दुविधा महसूस भइल. ऊ बतइले, “रउआ कर सकत बानी, बाकिर एकरा में जादे जोखिम बा. हम जैविक खेती के प्रशिक्षण शिविर में भाग लेले बानी.” ऊ तनी ऊंच आवाज में पूछत बाड़न, “बाकिर एकरा खातिर जादे पइसा के दीही?”

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हरियर हरियर चमेली के गाछ के बीच में एगो सूखल पौधा. दहिना: एगो टब में रखल कली. एह में पडी (नपना) राखल बा. मजूर लोग जे फूल तोड़ेला ओकरा एहि से नाप के, हिसाब से मजूरी मिलेला

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चमेली लोढ़े वाला एगो टोली, खेत के मालिक आउर मजूर, बतियावत बाड़ें, गाना सुनत बाड़ें आउर कली फुलाए से पहिले एकरा बाजार पहुंचावे खातिर जल्दी जल्दी हाथ चलावत बाड़ें

“रसायनिक खाद से नीमन उपज होखी. आउर ई आसान हवे. बाकिर जैविक खेती में त बहुत झमेला बा- रउआ सभे चीज के एगो बाल्टी में मिलाईं आउर फिर एकरा ध्यान से पौधा पर छिड़कीं. फेरु जब बाजार लेके जाईं त दाम ओतने मिली! केतना दुख के बात बा. जबकि देखीं जैविक खेती में चमेली बड़हन फुलाला आउर बहुत चमकदार होखेला. जब तक एकरा खातिर जादे दाम ना मिली, कहीं त दुगुना, तबले एकरा खातिर समय आउर मिहनत जियान कइल बेकार बा.”

ऊ आपन घर के जरूरत खातिर जैविक सब्जी उगावेलें. “हम आपन आउर आपन बेटी, जे बगले के गांव में बियाहल बाड़ी, खातिर ऑर्गैनिक खेती करत बानी. हमहूं रसायन के इस्तेमाल ना करे के चाहीं. लोग बतावेला कि एकर साइड इफेक्ट बहुत हवे. भारी-भारी कीटनाशक देवे से, निश्चित रूप से राउर तबियत पर असर पड़ेला. बाकिर उपाय का बा?”

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गणपति के घरवाली, पिचईयम्मा खातिर कवनो दोसर रस्ता नइखे. ऊ पूरा दिन खटेली. रोज. हंसी उनकरा खातिर जिए के नुस्खा हवे. एगो बड़हन आउर स्थायी हंसी. अगस्त 2022 में महीना के आखिर दिन रहे. पारी उनकर घरे दोसर बेर पहुंचल. ऊ आपन अंगना में नीम के पेड़ के ठंडा छांव के नीचे एगो खटिया पर बइठल रहस. ऊ हमनी के आपन दिन भर के काम के बारे में बतइली.

“आडा पाका, माडा पाका, मल्लीगपु तोट्टम पाका, पूवा परिका, समईका, पुलईगला अन्नुपिविडा… (गाय-बकरी आउर चमेली के खेत के देखभाल, खाना पकावल, लरिका सभे के स्कूल भेजल).” ऊ बिना सांस रोकले गिनावे लगली.

एतना कड़ा मिहनत सभ, लरिकन खातिर होखत बा, 45 बरिस के पिचईयम्मा कहली, “हमार बेटा आ बेटी दूनो लोग पढ़ल-लिखल बा, डिग्री लेले बा.” ऊ खुद कबो स्कूल नइखी गइल. बचपन से ही ऊ आपन माई-बाबूजी संगे खेत में काम कइली. पिचईयम्मा कान आउर नाक में खूब नीमन गहना पहिरले बाड़ी. गर्दन में थली (मंगलसूत्र) वाला हल्दी के धागा बा.

जवना दिन हमनी के भेंट भइल, ऊ चमेली के खेत में निराई-गुड़ाई करत रहस. ई एगो भारी आउर सजा जइसन काम बा. पूरा दिन जरत घाम में झुक के धीरे धीरे काम करे के होखेला. बाकिर अबही उनकर ध्यान सिरिफ हमनिए, उनकर मेहमान पर रहे. ऊ आग्रह कइली, “कुछ खाईं ना”. गणपति आपन बगइचा से खूब गूदावाला आउर गमकत अमरूद तुड़ के लइलन आउर हमनी के खाए के देलन. नरम नरम नारियल के पानी पियइलन. हमनी जब खाए आउर चुस्की लेवे लगनी, त ऊ बतावे लगलन कि उनकर जवान आउर पढ़ल-लिखल लइका लोग गांव से शहर जाके रहे लागल बा. इहंवा एक एकड़ जमीन के दाम 10 लाख से कम ना होई. जदी ई मेन रोड से नजदीक रहित, त दाम आउर चार गुना रहित. “लोग घर बनावे खातिर एकरा ‘प्लॉट’ के रूप में कीन लिहित.”

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पिचइयाम्मा आपन दिन भर के रूटीन बतावत बाड़ी, दहिना: ऊ आउर उनकर भाड़ा पर गांव से बुलावल मजूर लोग चमेली के खेत से खर पतवार निकाले में लागल बा

जेकर आपन जमीन भी बा, उहंवा भी तबले मुनाफा के उम्मीद नइखे, जबले घर के लोग आपन मिहनत ना लगावे. गणपति स्वीकार करत बाड़न कि घर के मेहरारू लोग सबसे जादे मिहनत करेला. हमनी पूछनी कि इहे मिहनत जदी रउआ दोसरा के खेत में करत रहतीं, त केतना मजूरी मिली. ऊ बतइली, ”300 रुपइया.” आउर एगो बात, ऊ खेत पर मिहनत के अलावा, घर में भी ना खत्म होखे वाला घरेलू श्रम करेली. घर के काम के अलावा उनकरा आपन पालल गाय-गोरू के भी देखे के होखेला.

“एकर मतलब त ई भइल कि रउआ आपन परिवार के कमो ना, त 15,000 रुपइया बचावत बानी?” हमनी पूछनी. ऊ आउर गणपति आराम से ई बात मान लेलन. हम, मजाक में कहनी, पिचईयम्मा के भी पइसा मिले के चाहीं. सभे लोग हंसे लागल, पिचईयाम्मा सबले देर तक.

फेरु तनी धीरे से मुस्कात आउर पैना नजर से हमरा देखत, हमार बेटी के बारे में पूछली. ऊ जाने के चाहत रहस कि ओकर बियाह में हमरा केतना सोना देवे के होखी. “हमनी इहंवा बियाह में 50 तोला सोना देवे के रिवाज हवे. एकरा बाद, जब पोता-पोती चाहे नाती नतिनी होखेला तब सोना के चेन आउर चांदी के पायल देवे के नेग हवे. फेरु जब कान छेदाला तब एगो बकरी के बलि होखेला. आउर अइसहीं चलत रहेला. ई सभे खरचा हमनी के आपन कमाई से आवेला. बताईं, हम पगार कइसे लीहिं?”

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ओह दिन सांझ के चमेली के एगो जवान किसान से हम जननी कि पगार खेती खातिर नीमन आउर जरूरी अतिरिक्त आमदनी हवे. छव बरिस पहिले, हम उसिलमपट्टी में नाडुमुडलईकुलम बस्ती के धान के खेती करे वाला किसान जेयाबल आउर पोदुमनी से अइसने तर्क सुनले रहनी. अगस्त 2022 में एह यात्रा में, जेयाबल आपन लरकइयां के दोस्त आउर चमेली के खेती करे वाला एम. पांडी से हमनी के भेंट करवइली. एम. पांडी तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (टीएएसएमएसी) में फुलटाइम नौकरी करेलन. एह कंपनी के राज्य में देसी, बिदेसी शराब (आईएमएफएल यानी देस में बनल बिदेसी शराब) बेचे के खास अधिकार हवे.

पांडी, 40 बरिस, हरमेसा से किसान ना रहस. गांव से खेत तक जाए के बीच 10 मिनट के रस्ता में ऊ हमनी के आपन कहानी सुनइलन. हमनी के चारो ओरी मीलों दूर तक हरियाली से ढकल पहाड़, तालाब आउर चमकत उज्जर चमेली के कली खिलल रहे.

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पांडी सुंदर नाडुमुडलईकुलम बस्ती में आपन चमेली के खेत में. इहंवा बहुते किसान लोग धान के खेती करेला

“हम 18 बरिस पहिले, पढ़ाई खत्म कइला के तुरंत बाद, टीएएसएमएसी से जुड़ल रहनी. हम अबहियो उहंवा काम करेनी आउर सबेरे सबेरे आपन चमेली के खेत के भी देखभाल करेनी.” साल 2016 में, ओह घरिया के नया नया मुख्यमंत्री आउर एआईएडीएमके के मुखिया जे. जयललिता टीएएसएमएसी के काम के घंटा घटा के 10 से 12 कर देले रहली. पांडी जब भी उनकर जिक्र करेलें, उनका के ‘ मंबुमिगु पुरात्ची तलईवी अम्मा अवर्गल’ (पूज्य क्रांतिकारी नेता, अम्मा) पुकारेलें. ई उपाधि औपचारिक आउर आदर दुनो खातिर होखेला. उनकर आदेश के बाद पांडी भोर काम से मुक्त हो गइलन. इहे से अब ऊ दुपहरिया 12 बजे (सुबह 10 बजे के बदले) काम पर पहुंचेलन. उहे घरिया से ऊ भोरे के ई दु घंटा आपन खेती पर ध्यान देवे लगलें.

पांडी आपन दुनो पेशा के बारे में साफ साफ आउर पूरा भरोस से बतइलन. आपन चमेली के खेत में कीटनाशक के छिड़काव करत कहले, “देखीं, हम सरकारी नौकर हईं आउर आपन खेत पर 10 गो जन (मजदूर) भी काम खातिर रखले बानी.” उनकर आवाज में एगो गर्व रहे. बाकिर हकीकत कुछ आउर बा. “रउआ अब खेती तबे कर सकेनी जब जमीन होखे. कीटनाशक खातिर सैंकड़न, इहंवा तक कि हजारन रुपइया खरचा हो जाला. हमरा त पगार मिलेला, एह से संभाल सकिला. ना त खेती बहुत मुस्किल बा, बहुत मुस्किल.”

चमेली के खेती अबहियो बहुत मुस्किल काम बा, ऊ कहले. एकरा अलावा रउआ पौधा के हिसाब से आपन जिनगी के प्लान बनावे के पड़ेला. “रउआ कहूं ना जा सकी, रउआ भोरे-भोरे फूल तुड़ के बाजार दउड़े के होखेला. एकरा अलावे हो सकत बा कि आज एके किलो फूल निकले. अगिला हफ्ता ऊ 50 किलो हो सकेला. रउआ कबो कवनो तरह के काम खातिर तइयार रहे के पड़ेला! ”

पांडी के चमेली के एक एकड़ के खेत बा. एह पर ऊ एक एक करके चमेली के पौधा रोपलन. उनकरा हिसाब से एगो किसान के चमेली के खेत में घंटों काम करे के पड़ेला. “हमरा काम खत्म करके घर आवत-आवत आधा रात हो जाला. भोरे 5 बजे उठ जाइले आउर खेत पर आ जाइले. हमार मेहरारू दू गो बच्चा सभ के स्कूल भेज के आवेली. हमनी सुतल रहीं आउर आलस करीं त काम कइसे होई? आउर 10 गो आउर लोग के काम कइसे देहम?”

जदी पूरा खेत के फूल खिल गइल बा- पांडी आपन हाथ से फूल के खिलनाई देखावत बाड़ें… “त रउआ 20 से 20 मजूर के जरूरत पड़ सकेला.” सभे केहू भोर के छव बजे से दस बजे तक काम करेला. एकरा खातिर ओह लोग के 150 रुपइया मजूरी मिलेला. जदी बस एक किलो फूल भइल- फूल कम खिलला के बाद- त पांडी, उनकर घरवाली आउर दूनो लरिका लोग एकरा तोड़ लेवेला. “दोसर इलाका में फूल कम आ सकेला, बाकिर ई इलाका उपजाऊ हवे. इहंवा धान के बहुते खेत बा. मजूर लोग के बहुते मांग रहेला. रउआ ओह लोग के नीमन पइसा देवे के होई. उनकरा चाय-पानी आउर वदाई देवे के होई…”

गरमी के महीना (अप्रैल आ मई) में फूल के खूब भरमार होखेला. “खेत में इहे कोई 40 से 50 किलो चमेली हो जाला. कबो कबो दाम बहुत कम मिलेला, एक किलो के इहे कोई 70 रुपइया. अब त, भगवान के दया से, ‘इत्र’ कंपनी के चलते भाव बढ़ गइल. ऊ लोग एक किलो के 220 रुपइया देवेला.” बाजार में जब टन में फूल आवेला तब किसान के सबसे नीमन दाम मिल पावेला. आउर ऊ भाव, जइसन कि पांडी के कहनाम बा, जहंवा राउर कवनो नुकसान नइखे.

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पांडी आपन चमेली के पौधा पर कीटनाशक छिड़कत बाड़ें

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गणपति आपन चमेली के पौधा के कतार के बीच घूमत बाड़ें. दहिना: पिचईयम्मा पन घर के बाहिर ठाड़ बाड़ी

ऊ आपन फूल बेचे खातिर डिंडीगुल के बगल में नीलक्कोटई बाजार जाएलन. बाजार उनकरा घर से 30 किमी दूर हवे. “मट्टुथवानी में ई किलो के भाव से बिकेला. नीलकोट्टई में ई बोरा के हिसाब से बिकाला. एकरा अलावा, व्यापारी उहंई लगे बइठल रहेला. ऊ सभे कुछ पर नजर रखेला. ऊ राउर औचक खरचा, तीज-त्योहार आउर कबो कबो कीटनाशक खरीदे खातिर पेशगी दीही.”

पांडी के कहनाम बा कि पौधा सभ पर कीटनाशक छिड़कल बहुते जरूरी बा. ऊ छिड़काव करे खातिर शेड में जाके शॉर्ट्स आउर टी-शर्ट पहिन के अइलन. काहे कि छिड़कला के बाद बहुते कीट उड़ के रउआ देह पर आवेला. गणपति के विपरीत, जिनका लगे घरे में कीटनाशक के ज्ञानी बाड़ें, पांडी के दोकान जाके खास-खास रसायन खरीद के लावे के पड़ेला. ऊ जमीन पर पड़ल खुलल डिब्बा आउर बोतल ओरी इशारा करत बाड़ें. शेड के भीतर से टैंक आउर स्प्रेयर लेके बाहिर अइलन. उनकरा संगे रोगर (एगो कीटनाशक) आ पानी मिला के आस्था (एगो खाद) भी बा. एक एकड़ के खेत के उपचार करे खातिर एह सभ सामान में एक बेरा में 500 रुपइया के खरचा हो जाला. आउर उनकरा ई चार से पांच रोज पर एक बेर छींटे के होखेला. “चाहे एकर बाजार गरम होखे, चाहे ठंडा, रउआ दुनो बखत ई सभ करे के पड़ेला.”

आपन नाक पर रुमाल लगवले आपन पौधा पर कीटनाशक छिड़के आउर खाद वाला पानी डाले में उनकरा कोई 25 मिनट लागल. उनकरा घना घना झाड़ी में से होके जाए के पड़त बा. पीठ पर स्प्रे वाला मशीन बा. शक्तिशाली स्प्रेयर से एक एक पत्ता, पौधा, कली, फूल पर दवाई छिड़कात बा. चमेली के गाछ उनकर कमर तक आ गइल बा. एहि से जब दवाई छिड़काला त ओकर छींटा चेहरा तक पहुंच जाला. मशीन खूब आवाज करत बा. हवा में एकर छींटल दवाई से धुंध जइसन बन जात बा. पांडी घूम घूम के छिड़काव करत बाड़न. ऊ तबे रुकेलें जब दवाई खत्म हो जाला. आउर फेरु शेड में जाके दवाई भर के लउट जालें.

काम खत्म करके नहा-धोवा के उज्जर शर्ट आउर बुल्लू लुंगी पहिनले ऊ सामने ठाड़ हो गइलें. हम उनकरा से पूछनी कि कीटनाशक दवाई के स्प्रे के संपर्क में आवे के बारे में पूछनी. ऊ तनी शांत होके जवाब देलन, “चमेली के खेती करत बानी, त जे जरूरी बा ऊ करहीं के पड़ी. रउआ एकरा (स्प्रे) से बचे के चाहत बानी, त घरे बइठीं.” ऊ बोले घरिया दुनो हाथ जोड़ के बइठल रहस, जइसे कि प्रार्थना में होखस.

गणपति भी इहे बात कहलन. हमनी अब लउटत रहीं. ऊ हमार झोला में अमरूद भर देलें. हमनी के यात्रा नीमन रहो, इहे कामना कइलें. फेरु आवे के कहलें. “आईं, अगिला बेरा ई घर बन के तइयार रही,” ऊ अपना पाछू बिना प्लस्तर वाला एगो ईंटा के मकान देखा के कहलन. “हमनी नया घर में बइठल जाई आउर भोज खाइल जाई.”

पांडी आउर गणपति जइसन चमेली के खेती करे वाला हजारन किसानन के उम्मीद आउर सपना एगो छोट उज्जर फूल पर टिकल रहेला. एगो गमकत उज्जर फूल, जेकर अतीत डेरावेला. चमेली के फूल के अस्थिर बाकिर भारी भरकम बाजार बा. पांच मिनट में हजार रुपइया झोली में आ जाएला. मदुरई के एक किलो मल्ली राउर हाथ के रेखा बदले के ताकत रखेला.

बाकिर ऊ कहानी कवनो दोसर दिन.

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ओरी से, आपन रिसर्च फंडिग प्रोग्राम 2020 के हिस्सा के रूप में एह शोध खातिर वित्त जुटाइल गइल बा.

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Aparna Karthikeyan

Aparna Karthikeyan is an independent journalist, author and Senior Fellow, PARI. Her non-fiction book 'Nine Rupees an Hour' documents the disappearing livelihoods of Tamil Nadu. She has written five books for children. Aparna lives in Chennai with her family and dogs.

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Photographs : M. Palani Kumar

M. Palani Kumar is Staff Photographer at People's Archive of Rural India. He is interested in documenting the lives of working-class women and marginalised people. Palani has received the Amplify grant in 2021, and Samyak Drishti and Photo South Asia Grant in 2020. He received the first Dayanita Singh-PARI Documentary Photography Award in 2022. Palani was also the cinematographer of ‘Kakoos' (Toilet), a Tamil-language documentary exposing the practice of manual scavenging in Tamil Nadu.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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