'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' के तहत, इस बार हम ऐसे गीत लेकर आए हैं जिनमें दशहरे के त्योहार की झलक मिलती है. इस हफ़्ते हम पेश कर रहे हैं 'नंदगांव' गांव की शाहूबाई कांबले के साल 1999 में गाए तीन दोहे (ओवी), जिनमें इस त्योहार के रिवाज़ों के बारे में बताया गया है

शाहूबाई कांबले की धुनें सीधा आपके दिल में घर कर जाती थीं, और उनकी आवाज़ बेहद सुंदर थी. 'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' तहत, पारी पर प्रकाशित करने के लिए जब हम दोहे (ओवी) छांट रहे थे, तो इन ऑडियो क्लिप को सुनते हुए हमें ऐसा ही महसूस हुआ.

जब हम 11 सितंबर, 2017 को 'नंदगांव' गांव गए थे, तब हम शाहूबाई से मिलना चाहते थे. लेकिन, हमारे साथ यात्रा करने वाले साथी जितेंद्र मैड, जो 'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' की मूल टीम में भी रह चुके हैं, उन्होंने कुछ दिन पहले हमें बताया था कि शाहूबाई की एक साल पहले मृत्यु हो गई थी. यह जानकार हम बेहद निराश हुए थे. जब हमने  पुणे जिले के मुलशी तालुका में स्थित उनके गांव 'नंदगांव' का दौरा किया, तो हम उनके घर से उनकी सिर्फ़ एक तस्वीर ही प्राप्त कर सके.  घर में उनके पति, दो बेटे, बहुएं और बच्चे रहते हैं.

PHOTO • Samyukta Shastri

परिवार की तस्वीर. बाएं से दाएं: छोटी बहू पुर्णिमा कांबले और उनके पति संजय, शाहूबाई की चचेरी बहन कुसुम सोनवणे, बड़ी बहू सुरेखा और उनकी बेटी प्रतीक्षा, पोती रजनी, शाहूबाई के पति नामदेव और पोते सक्षम और प्रतीक

कुसुमताई सोनवणे, जिनके गाए दोहे (ओवी) को 15 मार्च 2017 को पारी पर प्रकाशित किया गया था, वह भी नंदगांव में रहती हैं. वह कहती हैं, "शाहू और मैं बचपन के दोस्त थे, हम कोलवण गांव में एक साथ स्कूल गए थे, हालांकि हमने पहली क्लास तक ही पढ़ाई की थी." दोनों रिश्ते से भी जुड़ी हुई थीं - शाहूबाई के पति, कुसुमताई के चचेरे भाई थे. दोस्तों और बहनों के तौर पर, दोनों ने एक-दूसरे के साथ काफ़ी समय बिताया था. लकड़ी के मूसल के साथ ओखल में अनाज कूटने के दौरान, दोनों अलग-अलग धुनों का अभ्यास करती थीं और नए धुन बनाने की कोशिश करती थीं. इसके बाद, चक्की पर गेंहू पीसकर आटा बनाते समय इन धुनों पर दोहे पिरोकर गाने की कोशिश होती थी. कुसुमताई कहती हैं, "हम दोनों ही एक किलो चावल या चना पीसने के लिए लाती थीं और साथ में लोकगीत गाती थीं."

शाहूबाई ने 'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स' के डेटाबेस में मौजूद 401 गाने गाए, जिनमें से लगभग 170 गीतों को अक्टूबर, 1999 में रिकॉर्ड किया गया था. ये गीत ग्रामीण महाराष्ट्र के 110,000 से ज़्यादा दोहों (ओवी) के डेटाबेस का हिस्सा हैं. इस प्रोजेक्ट की मेज़बानी अब पारी कर रहा है, और पारी की एक टीम गायकों से मिलने, तस्वीरें लेने और वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए गांवों में जाती रहती है.

इस कड़ी में दशहरे से जुड़े तीन दोहे (ओवी) शामिल हैं. यह त्योहार नवरात्रि के नौ दिनों के अंत का प्रतीक है - और दसवें दिन, बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता ह. माना जाता है कि देवी दुर्गा ने इसी दिन राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी. महाभारत में कहा जाता है कि पांडवों ने इसी दिन अपना वनवास पूरा किया था. रामायण के अनुसार, इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था.

इस त्योहार के समय और कुछ अन्य हिंदू त्योहारों के दौरान, पारंपरिक रीति-रिवाज़ों का पालन करने वाली महिलाएं, घर के पुरुषों को टीका लगाती हैं. महिलाएं एक प्लेट पर फूल, कुमकुम और एक कपास वाली बाती से तेल के दिए जलाती हैं. आदमी कुर्सी पर या फर्श पर रखे पीढ़े पर बैठता ह. औरतें उनके माथे पर कुमकुम लगाती हैं और प्लेट पर रखे जलते दिए को आदमी के चारों ओर घुमाती हैं. इस रिवाज़ को मराठी में ओवालणे कहा जाता है. कुछ ऐसे त्योहार भी आते हैं जब बच्चों या महिलाओं को इस तरह से पूजा जाता है. इस लेख में शामिल तीन दोहों में इस रिवाज़ का इस्तेमाल किया गया है.

Marigold flowers
PHOTO • Namita Waikar

यहां दिखाए गए पहले ओवी में शाहूबाई गाती हैं कि दशहरे के दिन, उनकी थाली में एक लेसदार नैपकिन या दुपट्टा है और अपनी बेटी से कहती हैं कि वे उसके मामा (गायिका के भाई) को पूजेंगी. अगले दोहे में वह गाती हैं कि उनकी थाली में कुमकुम है, और अपनी बहन या पड़ोसी या दोस्त से कहती हैं कि वे अपने भाई की पूजा करेंगी, जो सूरज की तरह है - जिसका अर्थ हो सकता है कि वह सुंदर है और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व वाला है. तीसरे ओवी में शाहूबाई गाती हैं कि दशहरे के मौके पर, उनकी थाली में गेंदे के फूल हैं और वे उनके भाई के लिए खुशी की कामना करेंगे.

महाराष्ट्र के साथ-साथ, भारत के कुछ अन्य राज्यों में, त्योहारों के मौके पर हिंदुओं के घरों और दुकानों, कारखानों और कार्यालयों के प्रवेश-द्वार को गेंदे के फूल से सजाया जाता है. यह फूल भारत में मूल तौर पर नहीं पाया जाता था. कहा जाता है कि पुर्तगाली व्यापारियों और उपनिवेशवादियों ने इसे पहले ब्राज़ील से यूरोप और फिर 16वीं शताब्दी में भारत लाया. समय के साथ, भारत में त्योहारों के मौके पर इसका इस्तेमाल किया जाने लगा और यह ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक बन गया. यह महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के खुले मैदानों में उगाया जाता है. गेंदा एक वर्ष में चार बार लगाया जाता है और यह तीन महीने के भीतर खिल जाता है.

आया दशहरा, थाल में मेरी एक दुपट्टा रखा है, देखो न
ओ मेरी बिटिया! मामा को पूजो, तेल का दिया जला है, देखो न

आया दशहरा, थाल सजाया कुमकुम भरकर, लाल-लाल
ओ रे सखी! आओ भैया पूजें, सूरज सा है जो, लाल-लाल

आया दशहरा, थाल को भरा है गेंदे के फूलों से, देखो
ओ रे सखी! आओ भैया पूजें, तेल का दिया जला है, देखो

Framed photo of Shahu Kamble with garland
PHOTO • Samyukta Shastri


परफ़ॉर्मर/गायिका: शाहूबाई कांबले

गांव: नंदगांव

तालुका: मुलशी

जिला: पुणे

जाति: नवबौद्ध

उम्र: 70 (अगस्त, 2016 में गर्भाशय के कैंसर से मृत्यु)

बच्चे: 2 बेटियां और 2 बेटे

पेशा: किसानी

तारीख़: गीत और बाक़ी जानकारी 5 अक्टूबर, 1999 को रिकॉर्ड किए गए थे. तस्वीरें 11 सितंबर, 2017 को सहेजी गईं.

पोस्टर: श्रेया कात्यायिनी

अनुवाद: देवेश

PARI GSP Team

پاری ’چکی کے گانے کا پروجیکٹ‘ کی ٹیم: آشا اوگالے (ترجمہ)؛ برنارڈ بیل (ڈجیٹائزیشن، ڈیٹا بیس ڈیزائن، ڈیولپمنٹ اور مینٹیننس)؛ جتیندر میڈ (ٹرانس کرپشن، ترجمہ میں تعاون)؛ نمیتا وائکر (پروجیکٹ لیڈ اور کیوریشن)؛ رجنی کھلدکر (ڈیٹا انٹری)

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نمیتا وائکر ایک مصنفہ، مترجم اور پاری کی منیجنگ ایڈیٹر ہیں۔ ان کا ناول، دی لانگ مارچ، ۲۰۱۸ میں شائع ہو چکا ہے۔

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Translator : Devesh

دیویش ایک شاعر صحافی، فلم ساز اور ترجمہ نگار ہیں۔ وہ پیپلز آرکائیو آف رورل انڈیا کے لیے ہندی کے ٹرانسلیشنز ایڈیٹر کے طور پر کام کرتے ہیں۔

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