चमेली के आवते हल्ला मच जाला. रोज भोरे-भोरे मंडी पहुंचेला- धप्प से! मदुरई शहर के मट्टुतवानी मंडी में मोती जइसन चमकत कली- बोरा के बोरा कसा के आ रहल बा. गाड़ी से उतारे वाला चिल्लात बा, “वाझी, वाझी (बाजू, बाजू),” आउर झट से फूल के नीचे बिछावल प्लास्टिक पर उझल देहल जात बा- धम्म! ब्यापारी कोमल कोमल फूल के हल्का हाथ से बटोर के लोहा के तराजू पर धरत बा- खड़ खड़! अइसहीं एक एक किलो करके चमेली, ग्राहक के बेचे खातिर प्लास्टिक के झोला में डलात जात बाड़ी. मंडी में खूब गहमा-गहमी मचल बा. केहू भाव पूछत बा, त केहू गला फाड़-फाड़ के दाम बतावत बा. एने तिरपाल के चद्दर पर लसरायल-गील गोड़ के दाग बा. गोड़ तरे कचराइल बासी फूल पड़ल बा. बिचवइया लेन-देन पर पूरा नजर रखले बा. डायरी में हिसाब नोट होखत बा. तबहिए केहू चिल्लात बा, “हमरा पांच किलो चाहीं…”
मेहरारू लोग पूरा मंडी में घूम के नीमन-नीमन फूल खरीद रहल बा. फूल के परखे खातिर पहिले अंजुरी में भर के ऊ लोग एकरा निहारत बा. फेरु अंगुरी से निकल के कली नीचे फूल के ढेर पर गिर रहल बा. चमेली नीमन होई, त ई बरखा के बुन्नी ( बूंद ) जइसन झर-झर गिरे लागी. एगो फूल बेचे वाली मेहरारू गुलाब आउर गेंदा के जोड़ा लगाके, दांत से क्लिप खोल के ओहि में फंसा देत बाड़ी. फेरु ओकरा आपन केस में टांक लेत बाड़ी- फटाक! फूल केस में खूब फब रहल बा. अब माथ पर बेला, चेमली, गुलाब, गेंदा जइसन चटख रंग के फूल से भरल टोकरी उठा के ऊ मंडी के हो-हल्ला से निकल जात बाड़ी.
फूलवाली सड़क किनारे, एगो छतरी के छाह तरे टोकरी रख के बइठ गइली. तनी सुस्ता के ऊ फूल के डोरी में गूंथ के माला, लड़ी आउर गजरा बनावे लागत बाड़ी. एकरा बाद में गिनती के हिसाब से बेचल जाई. चमेली के कली हरियर तागा में गुंथल बाड़ी. ऊ एगो आज्ञाकारी बालक जेका तागा के दुनो ओरी बाहिर मुंह करके चुपचाप बइठल बाड़ी. एकर पंखुड़ी से निकल के भीना भीना खुश्बू नथुना में भरल जात बा. पूजा के थारी में सजावल, कार में टांगल, भगवान के फोटो पर लटकल माला में गूंथल फूल जब खिल उठेला, त एकर मादक गंध आपन होखे के प्रमाण देवेला आउर आपन नाम जोर से पुकारेला- मदुरई मल्ली.
पारी तीन बरिस में मट्टुतवानी मंडी तीन बेर पहुंचल. पहिल बेर गइल, त सितंबर 2021 में विनायक चतुर्थी से चार दिन पहिले, भगवान गणेश जी के जन्मदिन रहे. एह यात्रा में हमनी के फूल के ब्यापार के बारे में बुनियादी जानकारी मिलल. मट्टुतवानी बस स्टैंड के पाछू हमनी के फूल के एगो कारोबारी से भेंट भइल. कोविड चलते बाजार कबो-कबो लागत रहे. अइसन सोशल डिस्टेंसिंग खातिर कइल गइल रहे. एकरा बादो उहंवा तनी धक्का-मुक्की लउकत रहे.
हमनी के ‘कक्षा’ सुरु करे से पहिले मदुरई फूल बाजार संगठन के अध्यक्ष आपन नाम बतइलन: “हम पूकडई रामचंद्रन हईं. आउर ई,” ऊ फूल बाजार ओरी इसारा करत कहले, “हमार महाविद्यालय ह.”
रामचंद्रन. 63 बरिस, पांच दशकन से चमेली के कारोबार करत बाड़ें. एकरा ऊ सुरु कइलन, त किसोर भी ना भइल रहस. ऊ तनी मुस्कात बतइलन, “हमार परिवार में तीन पीढ़ी से इहे धंधा चल रहल बा.” एहि से ऊ अपना के पूकडई (फूल के बड़ ब्यापारी), रामचंद्रन बुलावेलन. ऊ कहलें. “हम आपन काम से बहुते प्यार करिले आउर एकर आदर करिले. हमनी एह काम के पूजिले. जिनगी में जे कुछ भी कमइनी, एकरे से कमइनी. ई जे हम कपड़ा पहिनले बानी, ऊहो. हमार त इहे मनोकामना बा, सभे किसान आउर ब्यापारी लोग फले-फुलाए.”
बाकिर ई सब एतना आसान नइखे. चमेली के ब्यापार में दाम आउर आपूर्ति में कमी-बेसी होखत रहेला. बाकिर ई कमी-बेसी बहुत जादे आउर बेढंगा तरीका से होखेला. ई केकरो कंगाल आउर केकरो मालामाल बना देवेला. ईहे ना: सिंचाई के समस्या, लागत के खरचा आ बेमौसम बरसात जइसन दिक्कत के अलावा किसान लोग के मजूर के भी कमी झेले के पड़ेला.
कोविड-19 लॉकडाउन चमेली के बाजार खातिर भी बहुते नुकसान वाला साबित भइल. गैर जरूरी उत्पाद के लेबल लगला के चलते, एकर धंधा पर बहुत खराब असर पड़ल. एकरा उगावे वाला किसान आउर एजेंट के भी तगड़ा झटका लागल. मजबूरी में चमेली उगावे वाला किसान के तरकारी आउर छीमी बेचे के धंधा करे के पड़ल.
बाकिर रामचंद्रन के पूरा उम्मीद बा कि इहंवा काम के कमी नइखे. ऊ खुद एक साथ बहुते काम एक जइसन कुशलता से करेलें. उनकर नजर किसान, किसान के उपज, खरीददार आउर चमेली के माला के बाजार पर रहेला. ऊ कबो-कबो कवनो सुस्त मजूर पर चिल्ला भी देवेलें, “देई (ओए)”. खुदरा आउर थोक दुनो बाजार में मोगरा (जैस्मिन सैम्बक, मल्ली के वैज्ञानिक नाम) के धंधा आउर एकर उत्पादन कइसे बढ़ावल जाव, एकर कोसिस करेले. उनकरा इहंवा सगरे काम एकदम नियम से होखेला. चाहे मदुरई में एगो सरकारी इत्र कारखाना स्थापित करे के उनकर मांग होखे, चाहे बिना कवनो नियंत्रण के अबाध निर्यात के काम होखे.
ऊ पूरा जोश से बतावत बाड़ें, “जदी हमनी एह काम में सफल हो गइनी, त मदुरई मल्ली मंगधा मल्लिया इरुकुम (मदुरई मल्ली के तेज कबो फीका ना पड़ी).” तेज के मतलब खाली फूल के चमक ना, एकरा से जिनगी में आवे वाला सौभाग्य आ खुशहाली से भी बा. रामचंद्रन एह बात के दुहरावत रहेलें. अइसन लागेला ऊ आपन मनपसंद फूल के सुनहरा भविष्य देखत होखस.
*****
दुपहरिया होखे के पहिले तक चमेली के बाजार गरम रहेला. खूब बोली लागत रहेला. उहंवा बतियाए खातिर खूब चिल्ला-चिल्ला के बोले के पड़ेला. तेज होखत आवाज हमनी के फूल के सुगंध जइसन घेर लेवेला..
तनिके देर बाद रामचंद्रन सभे खातिर चाय ले लइलें. उमस आ पसीना से भरल एह भोर में हमनी मीठ चाय के गरम-गरम चुस्की लेत बानी. ऊ एकर चुस्की के बीच बतावत बाड़े कि कुछ किसान के धंधा हजार के बा, त कुछ के 50,000 के बा. “ऊ लोग अइसन लोग बा जे बहुते एकड़ जमीन पर खेती करेला. कुछे दिन पहिले फूल 1,000 रुपइये किलो बिकात रहे. ओह घरिया एगो किसान मंडी में 50 किलो चमेली लेके आइल रहे. एक दिन में 50,000 रुपइया- लॉटरी निकलला जइसन बा!”
चमेली के बाजार के का हाल बा, रोज केतना के लेन-देन होखेला? रामचंद्रन के अनुमान बा कि चमेली के एह बाजार में 50 लाख से एक करोड़ के बीच खरीद-बिक्री होखेला. “ई प्राइवेट मार्केट बा. इहंवा कोई 100 गो दोकान होई. सभे दोकानदार के रोज के 50,000 से 1 लाख रुपइया के बिक्री होखेला. एकरे से रउआ जोड़ लीहीं.”
रामचंद्रन बतावत बाड़न कि एगो लेन-देन पर ब्यापारी लोग के 10 प्रतिशत के मुनाफा मिलेला. ऊ इशारा कइलें, “दशकन से एतने कमीशन मिलेला. एकरा अलावा, एह धंधा में जोखिम भी भरपूर बा.” जब कवनो किसान पइसा ना चुका पावे, त नुकसान ब्यापारिए के उठावे के पड़ेला. उनकर कहनाम बा कि कोविड महामारी में लॉकडाउन घरिया बहुते ब्यापारी लोग घाटा में डूब गइल रहे.
पारी दोसर बेर अगस्त 2022 में विनायक चतुर्थी से पहिले पहुंचल. फूल के मंडी सजल रहे. हमनी निकल गइनी जानकारी जुटावेला. एह बेरा मंडी में दोकान के दुनो ओरी दु गो चौड़ा रस्ता बन गइल रहे. इहंवा आवे वाला नियमित खरीददार लोग मंडी के हाल जानेला. ओह लोग खातिर लेन-देन फटाफट होखेला. ऊ लोग फूल के बोरा लेके आवेला, आउर निकल जाएला. तनिका दूर आगे गइला पर दु गो दोकान के बीच के खाली जगहा पर बासी फूल के ढेर पड़ल बा. आवे जाए में लोग के गोड़ के नीचे कचराइल पुरान फूल के बासी गंध आउर ताजा फूल के खूश्बू मिलके अजीब गंध देत रहे. बाद में पता चलल कि अइसन विचित्र गंध के पाछू कवनो रसायन बा. चमेली के फूल में कुदरती रूप से इंडोल होखेला, जे मल मूत्र, तंबाकू के धुंआ आउर तारकोल में भी मौजूद होखेला.
फूल में इंडोल जब कम मात्रा में होखेला त फूल से सुगंध आवेला, जब जादे मात्रा में होखेला, तब दुर्गंध आवेला.
*****
रामचंद्र फूल के दाम घटे-बढ़े के पीछे काम करे वाला गणित के बारे में बतावत बाड़ें. चमेली के बात कइल जाव, त ई बीच फरवरी से फुलाए लागेला. “अप्रैल तक चमेली में बढ़िया से फूल आ जाला. बाकिर ओह घरिया भाव कम रहेला. इहे कोई 100 से 300 रुपइया किलो.” पंद्रह मई के बाद मौसम बदले लागेला, खूब हवा चलेला. तब खूब फूल आवेला. अब अगस्त आ सितंबर तक, चमेली के आधा मौसम खत्म हो जाएला. एह घरिया फूल घट जाएला. जब उपज कम होखेला, त दाम बढ़ जाला. इहे घरिया मंडी में फूल के दाम 1,000 रुपइया किलो तक पहुंच जाएला. अब आवत बा साल के अंतिम मौसम. एह घरिया तक पैदावार 25 प्रतिशत तक घट जाएला, आउर दाम आसमान छूए लागेला. “तीन, चार चाहे पांच हजार रुपइया किलो कवनो बड़ बात नइखे. थाई मौसम (15 जनवरी से 15 फरवरी) में लगन (बियाह के मौसम) चढ़ल रहेला. एह घरिया फूल के उपज सबले कम आउर मांग सबले जादे होखेला.”
मट्टुतवानी मंडी- जहंवा किसान आपन उपज लेके सीधा उतरेला- में औसत रूप से केतना के आमद होखेला. रामचंद्रन के हिसाब से मंडी में रोज 20 टन, मतलब 20,000 किलो चमेली आवत होई. इहंवा से फूल तमिलनाडु के पड़ोस के जिला जइसे डिंडीगुल, थेनी, विरुधुनगर, शिवगंगई, पुडुकोट्टई के दोसर बाजार में पहुंचेला.
बाकिर ऊ बतावत बाड़ें कि फूल फुलाए के कवनो तय मॉडल नइखे. “ई पूरा तरीका से मौसम आउर बरसात पर निर्भर बा.” एक एकड़ जमीन खेती करे वाला एगो किसान पहिल हफ्ता एक तिहाई खेत में पानी पटाई, दोसर हफ्ता दोसर एक तिहाई में पटाई, ताकि ओकरा नियम से फूल मिल सके. बाकिर जब बरसात आवेला, त सभे के खेत में पानी पट जाला, आउर एके लगले फूल आवे लागेला. “फेरु भाव गिर जाएला.”
रामचंद्रन खातिर 100 गो किसान लोग चमेली के फूल सप्लाई करेला. ऊ बतइलें, “हम चमेली जादे ना उगाईं. एकरा में बहुते खटनी बा.” खाली फूल तोड़े आउर बाजार तक ले जाए में एक किलो पर 100 रुपइया खरचा बा. एहि तरह, कुल खरचा के दू तिहाई हिस्सा मजूरी में लग जाला. अइसन में अगर चमेली के भाव गिर के सौ रुपइया किलो हो जाव, किसान के बहुते भारी नुकसान बा.
किसान आउर ब्यापारी के बीच के रिस्ता बहुते जटिल होखेला. तिरुमंगलम तालुका के मेलौप्पिलिगुंडु बस्ती के 51 बरिस के पी. गणपति, रामचंद्रन खातिर फूल सप्लाई करेलें. गणपति “आदिकालम,” चाहे बड़ ब्यापारी के शरण लेवेलें. “फूल फुलाए के मौसम में हमरा फूल के बोरा लेके बहुते बेर बाजार दउड़े के पड़ेला- भोरे, दुपहरिया, संझा सभे बेर. हमरा आपन फूल बेचे में ब्यापारी लोग मदद करेला.” पढ़ीं: रोज बोआला पसीना, तब फुलाएली चमेली
पांच बरिस पहिले, गणपति, रामचंद्रन से कुछ लाख रुपइया करजा ले ले रहस. अब आपन फूल बेच के करजा सधावत बाड़ें. अइसन मामला में करजा पर ब्याज तनी जादे- 10 से बढ़ के 12.5 प्रतिशत हो जाला.
चमेली के भाव के तय करेला? रामचंद्रन हमरा एगो उदाहरण देके समझावत बाड़ें, “बाजार त लोग से बनेला. लोगे के जेब से पइसा आवेला. इहे नियम काम करेला. भाव 500 रुपइया किलो से सुरु हो सकेला. जदि भाव बढ़े लागल, त हमनी 600 रुपइया के भाव से फूल खरीद लिहिले. मांग के हिसाब से हमनी एह फूल के दीम 800 रुपइया भी रख सकिले.”
जब ऊ छोट रहस, “100 गो फूल मुस्किल से 2 आना, 4 आना, जादे से जादे 8 आना में आवत रहे.”
ओह घरिया फूल के पहिले घोड़ा गाड़ी से ले जाएल जात रहे. एकरा बाद डिंडीगुल स्टेशन से दू गो पैसेंजर ट्रेन बदले के पड़त रहे. “बांस आउर ताड़ के पत्ता से बनल टोकरी में फूल जे लाइल जात रहे. एकरा से फूल चिपात ना रहे, आउर अंदर हवा के भी आवाजाही बनल रहत रहे. तब चमेली के खेती करे वाला किसान कम रहत रहे. ओहू में मेहरारू लोग आउर कम रहत रहे.”
रामचंद्रन के आपन बचपन के खुशबूदार गुलाब के इयाद बा. एकरा ऊ, “पनीर गुलाब (बहुत तेज सुंगध वाला गुलाब)” पुकारत रहस. बाकिर “अब ऊ सभ कहंवा देखे के मिली! एगो फूल पर केतना मधुमक्खी मंडरात रहे. केतना बेर हमरा काट लेले रहे!” उनकर आवाज में गोस्सा ना, अचरज रहे.
खूब श्रद्धा से ऊ हमनी के आपन फोटो देखावत बाड़ें. फोटो में ऊ मंदिर में होखे वाला अलग अलग उत्सव में फूल दान करत बाड़ें. एह फूल से रथ, पालकी आउर भगवान के सजावे के काम होखेला. ऊ फोटो स्वाइप (ऊपर ओरी बदलत) करत जात बाड़ें. आवे वाला हर फोटो एक से बढ़के एक शानदार बा.
बाकिर ऊ अतीत में जिएलें, भविष्य पर उनकर साफ साफ नजर बा. “एह धंधा में नया सुधार आवे आउर मुनाफा बढ़े, एह खातिर नयका पीढ़ी के एह धंधा में आइल जरूरी बा.” रामचंद्रन भले कवनो महंगा आउर खास कॉलेज में नइखन पढ़ल, नया उमिर के भी नइखन. बाकिर उनकर विचार पक्का आउर टॉप के बा.
*****
पहिल नजर में, फूल के लड़ी, गजरा, माला आउर एकर खुश्बू कारोबार के कवनो क्रांतिकारी आइडिया जइसन नइखे लागत. बाकिर ई कोई मामूली बात नइखे. लगभग सभे हार बहुत कलाकारी से गूंथल गइल बा. बगइचा में फुलावे वाला एगो सामान्य फूल से बहुत खूबसूरती आ चतुराई से एगो सुंदर मनभावन हार बना देहल गइल बा. फूल के मुकाबले एह हार के जादे आसानी से कहूं भेजल, आ पहिरल जा सकेला. इस्तेमाल कइला के बाद फूल के हार से आराम से खाद भी बनावल जा सकेला.
एस. जयराज, 38 बरिस, काम पर जाए खातिर रोज मदुरई से शिवगंगई खातिर बस लेवेलन. ऊ हार बनावे के कला के बारे में सभे कुछ जानेलें. जयराज 16 बरिस के उमिर से खूब मनभावन हार बनावत आइल बाड़ें. ऊ गर्व से बतइलें कि ऊ कवनो फोटो में के डिजाइन के नकल कर सकेलें. जयराज आपन मन से भी तरह तरह के डिजाइन के माला बनावेलन. गुलाब के पंखुड़ी से जोड़ा माला बना के ऊ 1,200 से 1,500 के कमाई कर लेवेलें. चमेली के एगो साधारण माला खातिर उनकरा 200 से 250 रुपइया मिल जाएला.
रामचंद्रन बतइलें, “रउआ लोग के आवे से दू दिन पहिले तक, माला गूंथे आउर तार में फूल पिरोए वाला कलाकार के भारी कमी रहे. माला बनावे खातिर बहुत ट्रेनिंग के जरूरत पड़ेला. बाकिर एह से नीमन कमाई हो जाएला.” ऊ जोर देके इहो कहलें, “जदि एगो मेहरारू कुछ पइसा लगा के दू किलो चमेली खरीदे. एकरा से माला आउर गजरा बनाके बेचे त ऊ 500 रुपइया मुनाफा कमा सकेली.” एह में बखत आउर मिहनत आपन लागी. एक किलो मदुरई मल्ली- मोटा-मोटी 4,000 से 5,000 कली- के माला गूंथे खातिर 150 रुपइया मिलेला. जदि 100 गो फूल के छोट-छोट ढेरी, मतलब ‘कुरु’ बनावल जाव, त एकरा से भी ठीक-ठाक कमाई हो सकेला.
फूल गूंथे खातिर कलाकारी आउर तेजी दुनो के दरकार बा. रामचंद्रन हमनी के फूल गूंथ के देखावत बाड़ें. केला के रेसा के आपन बावां हाथ में धागा जइसन पकड़के, दहिना हाथ से चमेली के कली हाली-हाली उठावत आउर एकरा तागा में पिरोवत जात बाड़ें. कली के मुंह बाहिर ओरी बा. धागा (केला के रेसा) के घुमा घुमा के कली बांधत जात हवें. अइसन करे से ऊ आपन जगह से ना हिली. अगिला लाइन खातिर फेरु इहे दुहरावे के होखेला. आउर ओकरा बाद एगो आउर लाइन. आउर चमेली के माला बड़ होत जाएला.
महाविद्यालय में फूल गूंथ के माला बनावे के कला काहे ना सिखावल जा सकेला, ऊ पूछलन. “ई एगो नीमन पेशेवर कला हवे आउर रोजी-रोटी कमावे के हुनर भी. हमहूं सिखा सकिले. हम पत्राचार से जानकारी दे सकिले… हमरा ई कला आवेला.”
रामचंद्रन बतावत बाड़ें कि कन्याकुमारी जिला के तोवालई फूल मंडी में फूल गूंथ के लड़ी चाहे माला बनावे के काम, एगो फले-फूले वाला उद्योग हवे. “तागा में गूंथल फूल शहर-शहर गांव गांव पहुंचेला, खास करके केरल में तिरुवनंतपुरम, कोल्लम आउर कोचीन. अइसन मॉडल के कहूं आउर भी ना अपनावल जा सकेला? जदि जादे मेहरारूवन के ई कला सिखावल जाव त निश्चित रूप से ई आय के नीमन मॉडल बनी. चमेली के गढ़ में अइसन काहे ना होखे के चाहीं?”
फरवरी 2023 में, पारी के टीम फेरु चमेली के देस पहुंचल. एगो कस्बा में बाजार कइसे काम करेला, एकरा चलावे वाला ताकत कवन सभ बा, इहे सभ समझे खातिर हमनी तोवालई मंडी पहुंचनी. ई नागरकोइल से कोई जादे दूर नइखे. तोवालई शहर पहाड़, चौड़ा चौड़ा खेत आउर ऊंच-ऊंच पवन चक्की से घिरल बा. उहंवा एगो बड़हन नीम के गाछ तरे मंडी लागेला. सुतली में गूंथल चमेली के ढेरे माला, लड़ी सभ कमल के पत्ता में बांध के रखल बा. आउर पत्ता के ताड़ टोकरी में समेट के रखल गइल बा. ब्यापारी, सभे मरद लोग- समझइलक कि इहंवा मंडी में, तमिलनाडु के तिरुनेलवेली आउर कन्याकुमारी से चमेली आवेली. फरवरी के सुरु में 1,000 रुपइया किलो भाव रहे. इहंवा मेहरारू लोग के हाथ से गूंथल चमेली आ मोगरा के माला के मांग इहंवा सबले जादे त बा, बाकिर बाजार में एगो मेहरारू ना लउकत रहस. ऊ लोग कहंवा बा, हम पूछनी. “आपन आपन घर में,” गली के पाछू बस्ती ओरी अंगुरी देखावत ऊ मरद हमरा बतइलन.
इहंई हमनी के माई आर.मीना से भेंट भइल. हाली हाली चमेली (तरह तरह के पित्ची, चाहे जती मल्ली) उठावत आउर तागा में गूंथले जात एगो 80 बरिस के बूढ़ मेहरारू. अचरज त एह बात के करे कि अइसन महीना काम खातिर उनकरा आंख पर चस्मा ना लागल रहे. हमार हैरान करे वाला सवाल पर ऊ तनी देर खातिर हंसे लगली. “भलही हम देख ना सकीं, हमार अंगुरी त फूल के पहचानेला. बाकिर लोग के नजदीक से देखला के बादे पहिचान पावेनी.” उनकर अंगुरी अनुभव आउर अभ्यास से चलेला.
अइसे त माई, मीना के गुण के उहंवा कद्र करे वाला ना दिखाई देलक. पित्ची (चमेली के एगो किसिम) के 200 ग्राम फूल के माला गूंथे खातिर 30 रुपइया मिलेला. एह 200 ग्राम में चमेली के 2,000 कली होखेला. एकरा बनावे में माई के एक घंटा लाग जाला. एक किलो मदुरई मल्ली (मोटा-मोटी 4,000 से 5,000 कली) के माला गूंथे खातिर उनकरा 75 रुपइया मिलेला. जदी ऊ मदुरई में रहती, त इहे काम के दुगुना पइसा मिलित. ऊ बतइली कि अगर उनकर दिन नीमन बा, त तोवालई में 100 रुपइया के कमाई हो जाला. ऊ ई सब बतियावत बतियावत चमेली के गूंथल लड़ी से सुंदर, नरम आउर मोहक गोला बनावल जात बाड़ी.
एकरा उलट, हार बनावे में मुनाफा जादे मुनाफा हवे. हार बनावे के काम जादेकर के मरद लोग करेला.
रामचंद्रन के हिसाब से मदुरई इलाका में एक दिन में 1,000 किलो के चमेली के माला, लड़ी, गजरा आउर हार बनेला. बाकिर आजकल एह में बहुते कमी आ गइल बा. फूल के हाली हाली पिरोए के पड़ेला, काहे कि दुपहरिया में जरल घाम पड़ेला, “मोत्तु वेदिचिदुम”, ऊ कहले. एक बेर कली खिल जाए, त एकर मोल खत्म हो जाला. “इहंवा सिपकोट (तमिलनाडु राज्य उद्योग संवर्धन निगम) में मेहरारू लोग के बइठे खातिर इंतजाम काहे नइखे, एकरा वातानुकूलित भी बनावल जा सकेला, एह से फूल ताजा रही, आउर मेहरारू लोग के हाथ हाली-हाली चली. ह कि ना?” इहंवा तेजी से काम कइल बहुते जरूरी ह. काहे कि एकरा बिदेस भी भेजल जाला. बीच में कहीं माला के कली फूला गइल, त सभ चौपट हो जाई.
“हमनी त चमेली के कनाडा आउर दुबई तक भेजले बानी. कनाडा पहुंचे में एकरा 36 घंटा लाग जाला. उहंवा ऊ लोग के ताजा फूल मिले के चाहीं, ना?”
एहि से ऊ फूल के ढुलाई जइसन जरूरी काम में लाग गइलन. ई कवनो आसान काम नइखे. फूल के विमान पर चढ़े से पहिले सड़क मार्ग से कइएक घंटा के यात्रा करे के पड़ेला. एकरा चेन्नई चाहे कोच्चि, चाहे तिरुवनंतपुरुम जइसन दूर के शहर जाए खातिर उड़ान भरे के जरूरत होकेला. ऊ जोर देके कहलें कि मदुरई के, चमेली निर्यात केंद्र बना देवे के चाहीं.
उनकर बेटा प्रसन्ना भी हमनी के गपशप में शामिल हो गइलें. ऊ जोर देके कहलें, “हमनी लगे निर्यात गलियारा (एक्सपोर्ट कॉरीडोर) के जरूरत बा. एह खातिर मार्गदर्शन भी चाहीं. किसान लोग के भी बाजार में मदद के जरूरत बा. इहे ना, निर्यात करे खातिर पर्याप्त पैकर लोग ना मिले. एकरा खातिर हमनी के कन्याकुमारी चाहे चेन्नई में तोवालई जाए के पड़ेला. सभे देस के आपन मानदंड आउर प्रमाणपत्र होखेला. जदि किसान लोग के एह सभ से जुड़ल बात सिखावल जाए, त ओह लोग के मदद मिली.”
एतने ना, मदुरई मल्ली के 2013 से भौगोलिक संकेत (जीआई टैग) भी भेंटा गइल बा. बाकिर प्रसन्ना के लागत बा कि एकरा से सुरुआती ब्यापारी आउर उत्पादक के फायदा नइखे मिलत.
“दोसर इलाका में मदुरई मल्ली के रूप में, चमेली के बहुते प्रजाति के पहचान मिल गइल बा. एकर सिकायत खातिर हम बहुते आवेदन कइनी.”
रामचंद्रन आखिर में आपन बात एह निचोड़ पर समाप्त करत बाड़न: मदुरई के लगे आपन इत्र कारखाना होखे के चाहीं. इहे एह इलाका के किसान आउर ब्यापारी के भी मांग बा. रामचंद्रन के हिसाब से ई कारखाना के चलावे के जिम्मेदारी सरकार के होखे के चाहीं. चमेली के देश में आपन यात्रा के दौरान हम ई बात बहुते बार सुननी. लोग मानेला जदि इत्र बनावे खातिर फूल के डिस्टिल (आसवन माने कवनो द्रव के गरम करके भाप, आउर भाप के ठंडा करके फेरु द्रव बनावे के क्रिया) करे के कारखाना बन जाव, त सभे दिक्कत दूर हो जाई. ई कवनो जादू के छड़ी हवे का, जेकरा से सभे समस्या खत्म हो जाई?
हमनी संगे पहिल बेर भेंट भइला के एक बरिस बाद, साल 2022 में, रामचंद्रन अमेरिका चल गइलें. उहंवा ऊ आपन बेटी संगे रहेलें. बाकिर अबहियो चमेली पर से उनकर ध्यान एक रत्ती नइखे हटल. उनकरा फूल भेजे वाला किसान आउर उनकर स्टाफ के कहनाम बा कि ऊ उहंवा निर्यात सुविधाजनक करे खातिर अबहियो कड़ा मिहनत करत बाड़ें. इहे ना, ऊ भारत में आपन कारोबार आउर बाजार पर बारीक नजर भी रखले बाड़ें.
*****
बाजार, एगो संस्था के रूप में सदियन से लेन-देन के खास काम करत आइल बा. समाज में एकर भूमिका बहुते महत्वपूर्ण बा. ई सभ बात रघुनाथ नागेश्वरन बतावत बाड़ें. रघुनाथ आजाद भारत में आर्थिक नीति निर्माण के इतिहास पर काम करे वाला जेनेवा ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट में शोध करत बाड़ें. उनकरा हिसाब से “बाकिर पछिला शताब्दी में, बाजार के एगो स्व-नियामक आउर तटस्थ इकाई के रूप में देखल गइल. असल में एकरा बहुत बड़ा दरजा देहल गइल बा. ”
“अइसन कुशल आउर प्रभावशाली संस्था के मुक्त छोड़ देवे के चाहीं, अइसन विचार अब सामान्य हो गइल बा. बाजार के चलते होखे वाला कवनो तरह के गड़बड़ी खातिर सरकार के जिम्मेदार ठहरावल जाला. बाजार के एह तरह के निरुपण ऐतिहासिक रूप से गलत बा.”
रघुनाथ ‘तथाकथित मुक्त बाजार’ के बारे में समझावत बाड़ें. उनकरा हिसाब से ‘जहंवा सभे कोई आपन मरजी से काम करेला.’ मतलब बाजार के लेन-देन में सक्रिय रूप से हिस्सेदारी होखेला. “बाजार में तथाकथित अदृश्य ताकत भी होखेला, हां, बाकिर इहंवा हर जगह एगो मुट्ठी, ताकत के केंद्र, भी नजर आवेला जे बाजार के काबू में रखेला. इहंवा ई ध्यान रखल जरूरी हवे कि ब्यापारी बाजार के लेन-देन खातिर जरूरी बा. काहेकि ऊ लोग लगे जरूरी जानकारी के भंडार होखेला.”
रघुनाथ के हिसाब से ई समझे खातिर कवनो आकादमिक पेपर पढ़े के जरूरत नइखे. “जानकारिए ताकत बा. जाति, वर्ग आउर लिंग के कारण जानकारी तक पहुंच समान ना रह जाएला. हमनी एकरा सीधा तौर पर तब समझिले जब खेत आउर कारखाना से भौतिक चीज खरीदिले. एकरा आपन स्मार्टफोन पर कवनो ऐप डाउनलोड करत घरिया, चाहे चिकित्सा सेवा खातिर पइसा देवे घरिया समझल जा सकेला, ठीक बा नू?
सामान आउर सेवा देवे वाला भी बाजार के ताकत के इस्तेमाल करेला. काहेकि ओह लोग के सामान के दाम, उहे लोग तय करेला. आम धारणा त इहे बा कि उत्पादनकर्ता भाव तय करे के मामला में बहुत सक्षम ना होखे, काहे कि मौसमी आउर बाजार के स्थिति चलते जोखिम के डर रहेला. ओह लोग के भी आपन उत्पाद पर जादे अख्तियार ना रहे. हमनी इहंवा खेती करे वाला, किसान के बात कर रहल बानी.
“किसान लोग के भी अलग अलग किसिम बा. एहि से हमनी के ई बात पर विस्तार आउर गहराई से ध्यान देवे के पड़ी,” रघुनाथ के कहनाम बा. “आउर संदर्भ समझे खातिर भी. जइसे कि चमेली के इहे कहानी के उदाहरण ले लीहीं. इत्र के धंधा पर का सरकार के नियंत्रण होखे के चाहीं? कि सरकार के बाजार के सुविधा बढ़ा के, कोमल आ मूल्यवान उत्पाद खातिर नीमन निर्यात केंद्र स्थापित करके, एह क्षेत्र में छोट खिलाड़ी के सुविधा देवे खातिर दखल देवे के चाहीं?”
*****
चमेली एगो महंगा फूल हवे. एकर अतीत खंगालल जाव त कली, फूल, लकड़ी, जड़, जड़ी-बूटी, तेल जइसन सभे सुंगधित पदार्थ के रूप में बड़हन पैमाना पर एकर इस्तेमाल होखत आइल बा. जइसे पूजा-पाठ में भक्ति के प्रेरित करे खातिर, रसोई में स्वाद बढ़ावे खातिर, बिस्तर में कामोत्तेजना जगावे खातिर. चंदन, कपूर, इलायची, केसर, गुलाब के बीच चमेली- केतना तरह के गंध के बीच एगो जानल-पहचानल आउर मुकम्मल गंध. आसानी से मिल जाए आउर रोज उपयोग होखे से, चमेली हमनी के अनोखा ना लागस. बाकिर एकर इत्र के कारोबार एगो अलगे कहानी कहेला.
इत्र उद्योग में कामकाज कइसे होखेला एकरा बारे में हमनी के शिक्षा बस अबहिए सुरु भइल बा.
सबसे पहिल आउर जरूरी चरण ‘ठोस’ के बा. एह चरण में खाद्य विलायक (फूड ग्रेड सॉल्वेन्ट) के मदद से फूल के अरक निकालल जाला. ई अरक मोम जइसन आउर गाढ़ (आधा ठोस) होखेला. मोम के हटा देहला पर ई पूरा तरीका से ‘एब्सोल्यूट’ तरल बन जाला. इहे सबसे जरूरी आ उपयोग करे वाला चीज होखेला, काहे कि ई अल्कोहल में घुल सकेला.
एक किलो चमेली के ‘एब्सोल्यूट’ मोटा-मोटी 3,26,000 में बिकेला.
राजा पलानीस्वामी जैसमीन सी.ई. प्राइवेट लिमिटेड (जेसीईपीएल) के निदेशक हवें. ई कंपनी दुनिया भर में मोगरा (जैसमीन सैम्बक कंक्रीट) सहित दोसर तरह तरह के फूल के अरक- एब्सोल्यूट आउर सांद्र तइयार करे वाला सबसे बड़ा निर्माता हवे. ऊ हमनी के समझावत बाड़ें कि चमेली के एक किलो एब्सोल्यूट पाए खातिर, रउआ एक टन फूल के जरूरत होखी. चेन्नई के आपन दफ्तर में बइठ के ऊ हमनी के दुनिया भर में फइलल इत्र के उद्योग के बारे में बतइलन.
सबसे पहिले ऊ बतइलें, “हमनी इत्र ना बनाईं. हमनी इत्र चाहे सुगंध तइयार करे में जरूरी कुछ कुदरती पदार्थ तइयार करिले. ”
चमेली के इत्र जे चार किसिम से बनेला, ओकरा अलावा दु गो आउर जरूरी किसिम बा: जैसमीन ग्रैंडीफ्लोरम (जती मल्ली) आउर जैसमीन सैम्बक (गुंडू मल्ली). पहिल किसिम के एबसोल्यूट के दाम 3,000 अमरिकी डॉलर प्रति किलो, आउर गुंडू मल्ली के 4,000 अमरिकी डॉलर प्रति किलो बा.
“ठोस आउर ‘एबसोल्यूट’ किसिम के दाम पूरा तरीका से फूल के भाव पर निर्भर करेला, इतिहास पलटल जाव त फूल के दाम हरमेसा बढ़ते रहल बा. बीच के कवनो साल में एक-दू बरे दाम कम भले भइल होई, बाकिर जादेकर बढ़बे कइल ह,” राजा पलानीस्वामी बतावत बाड़ें. उनकर कंपनी एक बरिस में 1,000 से 1,200 टन मदुरई मल्ली (गुंडू मल्ली) के प्रसंस्करण करेला. एह से 1 से 1.2 टन के बीच जैसमिन सैम्बक ‘एब्सोल्यूट’ तइयार होखेला. ई एब्सोल्यूट, दुनिया भर के 3.5 टन के मांग के एक तिहाई भाग पूरा करे में सक्षम हवे. कुल मिला के भारत के समस्त इत्र उद्योग, जेह में राजा के तमिलनाडु के दू गो कारखाना आउर कुछ दोसर कारोबार शामिल हवे, में सैम्बक फूल के 5 प्रतिशत के खपत होखेला.
सभे किसान आउर बिचवइया लोग इत्र कारखाना के जेतना संख्या बतइले रहे, ओकरा हिसाब से जे असल संख्या बा, ऊ अचरज से भरल बा. इहो जानल आश्चर्यजनक बा कि एह धंधा में उनकर केतना महत्व बा. राजा मुस्कुरात कहलन, “हमनी एगो उद्योग के रूप में एह फूल के छोट उपभोक्ता हईं. बाकिर किसान खातिर एगो न्यूनतम मूल्य तय कइल बहुते जरूरी हवे आउर हमनी एकरा में भूमिका निभा सकिले. न्यूनतम मूल्य तय होखला से किसान के लाभ सुनिश्चित होकी. किसान आउर ब्यापारी भले साल भर आपन फूल जादे दाम में बेचे के चाहेलन, बाकिर सभे कोई जानेला कि सौन्दर्य आउर गंध के ई कारोबार के प्रकृति केतना चंचल बा. सभे के लागेला हमनी के बहुते मुनाफा होकेला. बाकिर सच्चाई इहे हवे कि ई एगो उपभोक्ता बाजार हवे.”
एगो बहस बा, जे बहुते जगह चलत बा. भारत से फ्रांस आउर मदुरई के चमेली मंडी से लेके एकर ग्राहक सहित दुनिया भर में कुछ खास ब्रांड के इत्र मशहूर हवे. एह ब्रांड में डायर, गुएर्लिन, लश, बुल्गारी. हम एह दू गो दुनिया के बारे में तनी कुछ सीख पइनी ह. ई दुनिया एक-दोसरा से बहुते अलग होखला के बादे आपस में जुड़ल बा.
फ्रांस के दुनिया भर में इत्र के राजधानी मानल जाला. ऊ लोग पांच दशक पहिले से भारत से चमेली के अरक मंगावे लागल रहे. ऊ लोग इहंवा जैसमिनम ग्रैंडीफ्लोरम, चाहे जती मल्ली के खोजत इहंवा आइल रहे. “आउर इहंवा ओह लोग के अलग अलग फूल के बहुते किसिम के खजाना मिल गइल.”
एह मामला में फ्रांंसिसी ब्रांड, जे’अडोर के जन्म जरूरी मानल जा सकत बा. एकरा बारे में डायर 1999 में एलान कइले रहस. कंपनी आपन उत्पाद के बारे में वेबसाइट पर एगो नोट लिखलक, “इनवेंट्स ए फ्लावर दैट डज नॉट एक्जिस्ट, एन आइडियल! मतलब अइसन आदर्श फूल के खोज कइल जाव जेकर वजूद ही नइखे.” राजा बतावत बाड़ें कि ऊ आदर्श फूल “ताजा आउर हरा भरा” जैसमिन सैम्बक बा. ई फूल अब जादे चलन में बा. आउर मदुरई मल्ली, जइसन डायर एकरा पुकारेलन, “समृद्ध जैसमिन सैम्बक” अब छोट शीशी में फ्रांस आउर दोसर देश में आपन जगह बना लेले बा.
बहुत पहिले से, चमेली के फूल मदुरई आउर एकरा लगे के फूल मंडी से लावल जाएला. बाकिर रोज ना. साल के जादे दिन में जैसमिन सैम्बक के दाम जादे होखे के चलते, एकर अरक ना निकालल जाला.
राजा के हिसाब से, “एह फूल मंडी में फूल के मांग आउर पूर्ति पर कवन तरह के कारक असर डालेला, हमनी के एह बात के साफ समझ रखे के पड़ी.” ऊ बतइलें, “हमनी के एगो खरीददार/समन्वयक बाजार में बइठल रहेला. ऊ लोग दाम पर कड़ा नजर रखेला. हमनी धंधा के हिसाब से सही-सही भाव रखिला. फेरु दाम, मान ली 120 रुपइया तय कइला के बाद इंतजार करिले. कीमत तय करे में हमनी के कवनो भूमिका ना होखेला.” ऊ हमनी के साफ-साफ समझावत बाड़ें कि बाजारे एह कीमत के तय करेला.
हमनी खाली बाजार पर नजर रखिले आउर इंतजार करिले. हमनी 15 बरिस से फूल के अधिकतम मात्रा प्राप्त करिला. एहि से पूरा सीजन के बाखत कीमत के अनुमान लगावल जाला. हमनी के कंपनी 1991 में ही सुरु भइल रहे. एहि से हम आपन खरीददारी आउर उत्पादन के बढ़ावे के कोसिस करिले.”
राजा के कहनाम बा कि इहे मॉडल के चलते उनकर क्षमता के भरपूर उपयोग नइखे हो पावत. “रउआ रोज पर्याप्त आउर स्थिर मात्रा में फूल ना मिलेला. ई कवनो इस्पात के कारखाना नइखे जहंवा साल भर नियमित उत्पादन खातिर पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल के भंडारण कइल होथ होई. इहंवा हमनी रोज फूल के इंतजार करिले. हमनी के क्षमता एह तरह से विकसित भइल बा कि हमनी के चमेली के खेप ठीक ठीक मात्रा में बिके खातिर बाजार तक पहुंच जाई.”
एक बरिस में, अइसन दिन मुस्किल से 20 से 25 ही होखेला, राजा कहलें. “एह दिनन में हमनी रोज 12 से 15 टन फूल के प्रसंस्करण करिला. बाकी बचल दिन में हमनी के फूल कम मिल पावेला. ई मात्रा 1 से 3 टन के होखेला, चाहे कबो त एकदम्मे ना होखे.”
किसान के फूल के एगो स्थिर दाम मिल सके एकरा खातिर सरकार से एगो कारखाना स्थापित करे के मांग करे के चाहीं. एकरा बारे में राजा के विचार जाने के कोसिस कइल गइल. राजा के कहनाम बा, “मांग में फेर-बदल होखे आउर एह कारोबार के अनिश्चित प्रकृति होखे के चलते, सरकार एह कारोबार में नइखे आवे के चाहत. किसान आउर ब्यापारी के जेह कारोबार में संभावना देखाई देत बा, उहंवा सरकार से शायद कवनो फायदा ना नजर आवे. जबले ऊ लोग बाकि लोग के फूल उगावे से ना रोकी, आउर एकर उत्पादन पर आपन एकाधिकार ना करी, तबले ओह लोग के हैसियत भी दोसर उत्पादक जइसन सामान्य रही. सरकार भी उहे किसान से फूल खरीदी जेकरा से दोसर ब्यापारी खरीद रहल बा. आउर उहे ग्राहक के फूल के अरक बेची जिनका से दोसर किसान बेचेले.”
सबसे लाजवाब इत्र बनावे खातिर चमेली के खिलते के साथ ओकर प्रसंस्करण जरूरी हवे. ई बात भी राजा बतइलें. “एगो स्थिर रसायनिक प्रतिक्रिया से ही इत्र से उहे गंध मिली जे चमेली के ठीक खिले घरिया ओह में होखेला. इहे फूल जदि बासी हो जई, त एकर गंध भी खराब निकली.”
एह प्रक्रिया के बेहतरीन तरीके से समझे के खातिर राजा हमरा एह बरस फरवरी के सुरु में आपन कारखान में आवे के निमंत्रण देले बाड़ें. उनकर कारखाना मदुरई में बा.
*****
फरवरी 2023 के बात हवे, हमनी के यात्रा के पहिल दिन रहे. हमनी मदुरई के मट्टुतवानी बाजार के एगो छोट भ्रमण सुरु कईनी. हमार ई मदुरई के तीसर दौरा हवे. आउर संजोग से आज मंडी में जादे चहल पहल नइखे. फूल मंडी में आज चमेली के बहुत कम फूल उतरल हवे. इनकरा तुलना में कवनो दोसर रंग के फूल के ढेर लागल नजर आ रहल बा. गुलाब के टोकरी, रजनीगंधा आउर गेंदा के बोरी, मर्जोरम के ढेर आउर बहुते दोसर फूल आउर वनस्पति. आपूर्ति में कमी आवे के बादो, हैरत के बात बा कि चमेली के फूल 1,000 रुपइया किलो के भाव बिक रहल बा. काहे कि ई कवनो शुभ अवसर नइखे, एगो आम दिन बा. बाकिर ब्यापारी लोग खातिर ई एगो खले वाला बात बा.
मदुरई शहर से हमनी सड़क से होखत पड़ोसी डिंडीगुल जिला के निलकोट्टई तालुका ओरी निकल पड़लीं. हमनी के ओह किसान लोग से मिले के रहे, जे राजा के कंपनी मे चमेली के दु गो किसिम- ग्रैंडीफ्लोरम आउर सैम्बक के सप्लाई करेलें. इहंवा हमनी के सबसे अचरज में डाले वाला कहानी सुने के मिलल.
एगो तरक्कीपसंद किसान मारिया वेलान्कन्नी लगे दू से भी जादे दशक से मल्ली के खेती करे के अनुभव बा. ऊ हमरा नीमन उपज के रहस्य बतइलें. ऊ बतइलें कि एकरा खातिर जरूरी बा कि बकरी चमेली के गाछ के पुरान पत्ता के चबा जाए.
“इहे एगो उपाय काम आवेला. एकरा से चमेली के पैदावार दोगुना, आउर कबो कबो त तिगुना हो सकत बा,” ऊ आपन एक एकड़ के छठा भाग में लागल हरा-भरा चमेली के गाछ देखावत कहलें. ई एगो अजीब टोटका हवे. मतलब के झुंड के हांकत चमेली के खेत में ले जाईं, उहंवा पत्ती चरे खातिर खुल्ला छोड़ दीहीं. एकर बाद खेत के दस दिन खातिर सूखे दीहीं. फेरु एकरा में खाद डाली. कोई पन्द्रहवां दिन गाछ पर नया कोंपल फूटल देखाई दीही. आउर पच्चीसवां दिन तो रउआ सामने चमेली के गाछ फूल से लद जाई.
मुस्कात ऊ बतइलें कि एह इलाका में ई टोटका आम हवे. “बकरी लोग के पत्ता खाए आउर फूल खिले के बीच सोझ संबंध बा आउर एह बात के इहंवा के बच्चा बच्चा जानले. एह उपाय के साल में तीन बेर कइल जाला. एह इलाका के बकरी गरमी में चमेली के पत्ता खाए आवेली. उनकरा चरे से खेत के नीमन गुड़ाई हो जाला. आउर एने ओने जे पत्ती टूट के गिर जाला, ओकरा से माटी आउर उपजाऊ होखेला. चरवाहा लोग एकरा खातिर कवनो पइसा ना लेवे. ओह लोग के बस चाय आउर वड़ा चाहीं. अइसे त, कबो कबो इहे सेवा के बदला में चरवाहा लोग सौ बकरी चरावे खातिर 500 रुपइया लेवेला. बाकिर एकरा से अंतिम मुनापा त चमेली उगावे वाला किसाने के होखेला.”
जेसीईपीएल के डिंडीगुल कारखाना के दौरा करे घरिया केतना आउर बात हमनी के इंतजारी में रहे. हमनी के पहिले प्रसंस्करण संयंत्र ले जाइल गइल. उहंवा क्रेन, पुली, डिस्टिलर आउर कूलर के मदद से ‘सांद्र’ आउर ‘एबसोल्यूट’ तइयार होखत रहे. हमनी उहंवा गइनी तब, चमेली के सीजन ना रहे. फरवरी के सुरु सुरु में फूल के पैदावार कम होखेला आउर महंगा भी मिलेला. बाकिर दोसर गंध वाला फूल के अरक निकाले के काम पहिले से चलत रहे. चमचम करत स्टील के मशीन मामूली शोर संगे आपन आपन काम करत रहे. ओह मशीन से निकले वाला मोहक सुगंध हमनी के नाक में भरत जात रहे. ई सुगंध बहुते तेज रहे. हमनी सभे के चेहरा पर मुस्कान रहे.
वी. कतिरोली (51 बरिस) हमनी के मुस्कुरा के स्वागत करत बाड़ें. ऊ जेसीईपीेल में आर. एंड डी. के प्रबंधक बाड़ें. ऊ हमनी के ‘एबसोल्यूट’ के सैंपल शूंगे खातिर देलें. कतिरोली एगो लमहर मेज के पाछू ठाड़ बाड़ें. मेज पर फूल से भरल बेंत के छोट छोट टोकरी रखल बा. लेमिनेट कइल कुछ चार्ट भी रखल बा. एह चार्ट में खुशबू से जुड़ल जानकारी बा. कुछ छोट छोट बोतल बा. एह में अलग अलग गंध के ‘एबसोल्यूट’ रखल बा. ऊ हमनी के खूब जोश से ‘एबसोल्यूट’ के सैंपल देत बाड़ें आउर हमनी के प्रतिक्रिया एगो कागज पर नोट करत जात बाड़ें.
एह गंध में एगो गंध चंपा के बा- मीठ आउर मादक. आउर दोसर गंध रजनीगंधा के बा- तेज आउर तीखा. एकरा बाद ऊ दू किसिम के गुलाब के ‘एबसोल्यूट’ के सैंपल देलें. पहिल एकदम हल्का आउर ताजा बा. दोसर गंध दूब जइसन नरम आउर खास बा. फेरु गुलाबी आउर सफेद रंग के कमल के बारी आवत बा. ई दुनो से कवनो हल्का आउर खुशबूदार फूल के गंध आवत रहे. आउर आखिर में गुलदाउदी- जेकर गंध से आमतौर पर भारत के कवनो बियाह समारोह के याद आ जात बा.
उहंवा कुछ महंगा आउर जानल-पहचानल मसाला आउर वनस्पति बा. मेथी के गंध गरमागरम तड़के के याद दिलावेला. एह तरह से करी पत्ता के गंध से हमरा आपन दादी के हाथ के बनल खाना इयाद आवेला. बाकिर चमेली के खुशबू एह सभ गंध पर भारी पड़त बा. हम एह गंध सभ के बखान करे में जब जूझे लागत बानी, त कतिरोली हमारा मदद करे के कोसिसि करत बाड़ें, “फूल के गंध, मीठ, एनिमलिक (पशुअन के देह जेका, जइसे कस्तूरी), हरियाली, फल के गंध, तनी तेज,” ऊ लगातर बतावत जात बाड़ें. राउर पसंदीदा खुशबू कवन बा, हम उनकरा से पूछनी. हमरा पक्का यकीन बा ऊ कवनो फूल के ही नाम लिहें.
ऊ हंसत कहले, “वनिला.” ऊ आपन टीम संगे पूरा शोध के बाद कंपनी खातिर नीमन वनिला खुशबू तइयार कइले बाड़ें. जदि उनकरा आपन एगो खास इत्र बनावे के होखित, त ऊ मदुरई मल्ली के ही बनइतन. ऊ आपन पहचान इत्र उद्योग खातिर सबसे नीमन सामान बनावे वाला अग्रणी कंपनी के बनावे के चाहत बाड़ें.
मदुरई शहर से निकलते हरा-भरा खेत में किसान चमेली के खेती करत देखाई देत बाड़ें. ई जगह कारखान से जादे दूर नइखे. अब फुलाए के बाद चमेली के किस्मत, ऊ कहंवा जाई. भगवान के चरण में चढ़ावल जइहें, कवनो बियाह में सजिहें, नाजुक टोकरी में रखल जइहें, रस्ता में गिर के धूल खइहें, कवनो जूड़ा में बांधल जइहें. बाकिर जहंवा रहिहें उनकरा संगे उहे परिचित पवित्र गंध मौजूद रही.
एह शोध खातिर अजीम प्रेमजी विश्विद्यालय पइसा से मदद कइले बा, आउर ई रिसर्च फंडिंग प्रोग्राम 2020 के हिस्सा बा.
अनुवाद: स्वर्ण कांता