जंगली-बकरियां-और-घर-वापसी

Allahabad, Uttar Pradesh

Nov 25, 2021

जंगली बकरियां और 'घर-वापसी'

दुनिया भर में बढ़ती नस्लीय हिंसा और विस्थापितों को रोकने, हिरासत में लेने व निर्वासित करने की घटनाओं, और अपने देश में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत से परेशान एक कवि, 'घर-वापसी' के मतलब को मथ रहा है

Poem and Text

Anshu Malviya

Translator

Devesh

Illustrations

Labani Jangi

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Poem and Text

Anshu Malviya

अंशु मालवीय, हिन्दी के वरिष्ठ कवि हैं जिनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. वह इलाहाबाद में रहते हैं और बतौर सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता, शहरी ग़रीबों और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के बीच सक्रिय हैं. वह मिली-जुली विरासत संजोने का महत्वपूर्ण काम भी कर रहे हैं.

Illustrations

Labani Jangi

लाबनी जंगी साल 2020 की पारी फ़ेलो हैं. वह पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले की एक कुशल पेंटर हैं, और उन्होंने इसकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हासिल की है. लाबनी, कोलकाता के 'सेंटर फ़ॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज़' से मज़दूरों के पलायन के मुद्दे पर पीएचडी लिख रही हैं.

Translator

Devesh

देवेश एक कवि, पत्रकार, फ़िल्ममेकर, और अनुवादक हैं. वह पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के हिन्दी एडिटर हैं और बतौर ‘ट्रांसलेशंस एडिटर: हिन्दी’ भी काम करते हैं.