“हमनी के ना त कवनो छुट्टी मिलेला, ना ब्रेक, काम के भी बखत तय ना होखे.”

सलाउद्दीन शेख एगो कैब एग्रीगेटर कंपनी में ड्राइवर बाड़ें. हैदराबाद में रहे वाला 37 बरिस के ई ड्राइवर ग्रेजुएशन कइले बाड़ें बाकिर कंपनी साथे काम सुरु करे घरिया कॉन्ट्रैक्ट ना पढ़लें. अबही ऊ एह कंपनी के नाम नइखन लेवे के चाहत. “एह में बहुते कानूनी बात सभ लिखल बा.” कॉन्ट्रैक्ट के कवनो कॉपी उनकरा लगे नइखे. एकरा ऊ ऐप से डाउनलोड कइले रहस.

डिलीवरी एजेंट, रमेश दास (नाम बदलल बा) के कहनाम बा, “सुरु में कवनो कॉन्ट्रैक्ट पर साइन ना भइल रहे.” रमेश कोलकाता से इहंवा आके काम करे वाला एगो प्रवासी मजूर बाड़ें. पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिला के गांव बहा रूना से इहंवा काम खोजत अइलन. ओह घरिया ऊ काम खातिर एतना हड़बड़ाएल रहस कि कवनो तरह के कानूनी बात जांचे-परखे के दिमाग में ना आइल. ऊ बतावत बाड़ें, “कवनो कागजी कार्रवाई ना भइल. हमार आईडी (पहचान पत्र) ऐप में मौजूद बा, इहे हमार पहचान बा. हमनी के ई काम वेंडर्स (तीसर पार्टी के मदद से आउटसोर्स) से मिलल बा.”

रमेश पार्सल पार्सल पहुंचावे के काम करेलें. हर पार्सल पर उनकरा 12 से 14 प्रतिशत के कमीशन मिलेला. एक दिन में जदि ऊ 40 से 45 पार्सल डिलीवरी भइल, त एकरा से उनकरा रोज के 600 रुपइया के आमदनी हो जाला. बाकिर ऊ इहो बतइलें, “हमनी के एह काम में ना त पेट्रोल के खरचा मिलेला, ना कवनो तरह के मेडिकल बेनिफिट, आउर ना ही कवनो भत्ता.”

Left: Shaik Salauddin, is a driver in an aggregated cab company based out of Hyderabad. He says he took up driving as it was the easiest skill for him to learn.
PHOTO • Amrutha Kosuru
Right: Monsoon deliveries are the hardest
PHOTO • Smita Khator

बावां: सलाउद्दीन शेख हैदराबाद के कैब एग्रीगेटर कंपनी खातिर ड्राइवर के काम करेलन. उनकरा हिसाब से ऊ ड्राइवरी एहि से सिखले कि ई सबले आसान काम लागल. दहिना: बरसात में डिलीवरी कइल सबले जादे मोस्किल काम होखेला

तीन बरिस पहिले ऊ आपन घर बिलासपुर से रायपुर आइल रहले. सागर कुमार के ठीक-ठाक कमाई करे खातिर दोहरा जिनगी जिए के पड़ेला. चौबीस बरिस के सेक्योरिटी गार्ड छत्तीसगढ़ के राजधानी के एगो दफ्तर के बिल्डिंग में 10 से 6 के ड्यूटी बजावेलें. फेरु एकरा बाद ऊ 12 बजे आधा रात तक आपन बाइक से स्विगी खातिर सामान के डिलीवरी करेलें.

बेंगलुरु के एगो नामी रेस्तरां के बाहिर स्विगी डिलीवरी एजेंट के लमहर लाइन लागल बा. हाथ में मोबाइल लेले सभे कोई आपन बारी के इंतिजारी करत बा. सुंदर बहादुर बिष्ट के भी आपन फोन पर अगिला ऑर्डर खातिर बीप के इंतजार बा. अठमां क्लास में स्कूल छोड़ देवे वाला लड़िका के आज कस्टमर के फोन उठइला पर ओकर निर्देश समझे खातिर जूझे के पड़त बा.

“हम अंग्रेजी में पढ़ लिहिला, बस काम चल जाएला. जादे पढ़े खातिर कुछ होखेला भी ना… फर्स्ट फ्लोर, फ्लैट 1ए…” ऊ लाइन पढ़े लागत बाड़ें. ना, उनकरा हाथ में कवनो कॉन्ट्रैक्ट नइखे, आउर मुंह देखावे खातिर ‘ऑफिस’ भी नइखे. कवनो तरह के छुट्टी, बेमार पड़ला पर छुट्टी, कुछो ना मिलेला…

मेट्रो, छोट शहर जइसन देस भर के कोना कोना में फइलल शेख, रमेश, सागर आउर सुंदर जइसन लोग गिग मजूर बा. नीति आयोग के साल 2022 में छपल एगो रिपोर्ट के हिसाब से भारत भर में अइसन मजूरन के गिनती कोई 77 लाख होई.

Left: Sagar Kumar moved from his home in Bilaspur to Raipur to earn better.
PHOTO • Purusottam Thakur
Right: Sunder Bahadur Bisht showing how the app works assigning him his next delivery task in Bangalore
PHOTO • Priti David

बावां: सागर कुमार अच्छा नौकरी खातिर बिलासपुर के आपन घर से रायपुर आ गइलें. दहिना: बेंगुलुरु में सुंदर बहादुर बिष्ट देखावत बाड़ें कि ऐप कइसे उनकरा अगिला डिलीवरी के काम देवेला

गिग मजदूर में कैब ड्राइविंग, फूड आउर पार्सल डिलीवर (घरे पहुंचावे) करे आउर इहंवा तक कि घरे आके ब्यूटी मेकओवर करे वाला कामगार लोग शामिल बा. एकरा में जादे जवान लइका-लइकी लोग बा. एह लोग के माबाइल ही उनकर दफ्तर बन गइल बा. अइसन दफ्तर जहंवा काम के पक्का जानकारी ना होखे. एगो दिहाड़ी मजूर जइनस उनकर नौकरी कब चल जाई पता ना होखे. हाल ही में दू गो कंपनी लागत में कटौती करे के नाम पर अइसन हजारन कर्मचारी के निकाल देलक

आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (जुलाई-सितंबर 2022) के हिसाब से 15 से 29 बरिस के बीच बेरोजगारी 18.5 प्रतिशत बा. एहि से नयका उमिर के लइकन लोग कानून आउर ठेका (अनुबंध/कॉन्ट्रैक्ट) में कमी लागे के बादो काम खातिर बेसरब हो रहल बा. शहर में दिहाड़ी मजूर के मुकाबले गिग मजूर के संख्या काहे जादे बा, एकरा पीछे बहुते कारण बा.

“हम कूली के काम कइले बानी आउर कपड़ा आ बैग के दोकान में भी काम क चुकल बानी. स्विगी (डिलीवरी) खातिर हमरा बस बाइक आउर एक ठो फोन के जरूरत बा. हमरा ना त भारी सामान उठावे के जरूरत बा, ना कवनो अइसन काम करे के जे हमार देह खातिर मुस्किल होखे,” सागर कहलें. रायपुर में सांझ के 6 बजे के बाद खाना आउर दोसर सामान घरे पहुंचावे के काम करके, ऊ रोज के 300 से 400 रुपइया कमा लेवेलें. तीज त्योहार में त 500 तक के कमाई हो जाला. उनकर आईडी कार्ड 2039 तक मान्य बा. बाकिर एकरा में उनकर ब्लड ग्रुप आउर इमरजेंसी कॉन्टैक्ट नंबर नइखे देहल. उनकर कहनाम बा कि इस सभ डिटेल अपडेट करे खातिर उनकरा लगे समय नइखे.

बाकिर दोसरा लोग से उलट, सागर के दिन के सेक्योरिटी एजेंसी के नौकरी से उनकरा 11,000 रुपइया के कमाई हो जाला. इहंवा उनका मेडिकल इंश्योरेंस आउर प्रोविडेंट फंड मिलेला. एह स्थिर नौकरी आउर डिलीवरी वाला काम से ऊपर के कमाई हो जाला. एकरा से ऊ अब थोड़िका बचत कर पावत बाड़ें. “पहिले एगो नौकरी रहे. एकरा से हम एको नया पइसा ना बचा पावत रहनी, घरे पइसा ना भेज सकत रहीं आउर कोरोना घरिया लेहल करजा भी ना चुका पावत रहीं. अब कम से कम हम तनी बचत कर सकिले. ”

Sagar says, ‘I had to drop out after Class 10 [in Bilaspur]because of our financial situation. I decided to move to the city [Raipur] and start working’
PHOTO • Purusottam Thakur

सागर के कहनाम बा, ‘घर के माली हालत चलते दसमा (बिलासपुर) के बाद स्कूल छोड़े के पड़ल. हम रायपुर आके काम करे के सोच लेहनी’

बिलासपुर में, सागर के बाबूजी, साईराम के शहर में तरकारी के दोकान बा. उनकर माई छोट भाई- छव बरस के भावेश आउर एक बरिस के चरण के देखभाल करेली. परिवार छत्तीसगढ़ के दलित समुदाय से आवेला. ऊ बतइलें, “हमरा घर के माली हालत खराब होखे के चलते दसमा में पढ़ाई छोड़े के पड़ल. फेरु हम शहर में आके काम करे के तय कर लेहनी.”

हैदराबाद में ऐप से चले वाला कैब के ड्राइवर, शेख बतइलें कि ऊ गाड़ी चलावे के सिखलें काहे कि एकरा सिखल उनकरा सबले आसान काम लागल. तीन गो जवान लइका के बाबूजी के कहनाम बा कि ऊ आपन यूनियन के काम आउर ड्राइवरी के बीच समय बांट लेवेलें. ऊ रात में गाड़ी चलावेलें काहेकि, “रात में ट्रैफिक कम रहेला, आउर पइसा तनी जादे मिलेला.” शेख महीना के मोटा-मोटी 15,000 से 18,000 रुपइया कमा लेवेलें.

कोलकाता से आवे वाला रमेश के भी नौकरी के जल्दीबाजी रहे. एहि से ऊ ऐप वाला डिलीवरी बिजनेस में आ गइलें. बाबूजी के मरला के बाद परिवार के सहारा देवे खातिर उनकरा दसमा क्लास में पढ़ाई छोड़े के पड़ल. ऊ पछिला दस बरिस के बारे में बात करत कहलें, “हमरा आपन माई के मदद खातिर कमाए के पड़ल. हमार भाई बहुते छोट रहे. हम तरह-तरह उल्टा-सीधा काम भी कइनी- दोकान पर भी खटनी.”

कोलकाता के जादवपुर में पार्सल डिलीवरी करे निकल बाड़ें. रमेश बतइलें कि ट्रैफिक सिग्नल पर जब रुके के पड़ेला, त बड़ा कोफ्त होखे लागेला. “हम हरमेसा हड़बड़ी में रहिला. काम के बखत पर पूरा करे के बहुते दबाव रहेला. बरसात में हमनी के सबले बुरा हाल हो जाला. टारगेट पूरा करे खातिर खाना, आराम, देह सबसे मुंह मोड़े के पड़ेला,” ऊ बतइलें. बड़हन बड़हन बैग में पार्सल कंधा पर टांगे से कमर के परेसानी रहे लागल बा. “हमनी के भारी भारी सामान ले जाए के होखेला. डिलीवरी करे वाला सभे लोग पीठ के दरद से हलकान बा. बाकिर कंपनी हमनी के सेहत से जुड़ल कवनो सुविधा (कवरेज) ना देवे.”

Some delivery agents like Sunder (right) have small parcels to carry, but some others like Ramesh (left) have large backpacks that cause their backs to ache
PHOTO • Anirban Dey
Some delivery agents like Sunder (right) have small parcels to carry, but some others like Ramesh (left) have large backpacks that cause their backs to ache
PHOTO • Priti David

सुंदर (दहिना) जइसन कुछ डिलीवरी एजेंट के छोट पार्सल ले जाए के रहेला, बाकिर रमेश (बावां) जइसन कुछ दोसर लोग के पार्सल के बड़हन बड़हन बैग डिलीवरी खातिर नियत जगह पर पहुंचावे के होखेला. एकरा से ऊ लोग के पीठ के दरद रहे लागेला

बेंगलुरु में एने-ओने काम खातिर आवे-जावेला, सुंदर चार महीना पहिले एगो स्कूल खरीदलन. उनकर कहनाम बा कि ऊ हफ्ता में 5 से 7 हजार के कमाई कर लेवेलें. एह में से स्कूटर के ईएमआई, पेट्रोल, कमरा के किराया आउर घर के जरूरी सामान पर 4 हजार रुपिया खरचा हो जाला.

आठ भाई-बहिन में सबले छोट, सुंदर आपन परिवार के अकेला कमावे वाला बाड़ें. उनकर परिवार किसानी आउर दिहाड़ी मजूरी करेला. काम खातिर नेपाल में आपन घर छोड़के हजारन किलोमीटर दूर निकले के पड़ले. ऊ बतावत बाड़ें, “हम जे जमीन खरीदनी ह, ओकर उधार चुकावे के बाकी बा. आउर हम ई काम तबले करम, जबले ई उधार चुकता ना कर देहम.”

*****

“मैडम, रउआ गाड़ी चलावे के जानिला?”

शबनम शहादली शेख से ई सवाल अक्सरहा पूछल जाला. अहमदाबाद के सड़क पर 26 बरिस के एगो मेहरारू कैब ड्राइवर बाड़ी. शबनम चार बरिस से जादे से ड्राइविंग करत बाड़ीं. अब ऊ अब एह तरह के कमेंट से परेसान ना होखस.

Shabnambanu Shehadali Sheikh works for a app-based cab company in Ahmedabad. A single parent, she is happy her earnings are putting her daughter through school
PHOTO • Umesh Solanki
Shabnambanu Shehadali Sheikh works for a app-based cab company in Ahmedabad. A single parent, she is happy her earnings are putting her daughter through school
PHOTO • Umesh Solanki

शबनमबानू शहादली शेख अहमदाबाद के एगो ऐप वाला कैब कंपनी खातिर काम करेली. ऊ अकेले आपन लइकी के पाल रहल बाड़ी, आपन कमाई से लइकी के स्कूल भेज के बहुते खुस बाड़ी

घरवाला के दरदनाक मउत के बाद ऊ ई काम सुरु कइली. बीतल दिन इयाद करत ऊ कहली, “हम पहिले कबो, अपना से सड़क भी पार ना कइले रहीं.” शबनमबानू गाड़ी चलावे के सिखली. फेरु साल 2018 में एगो लरिका के माई किराया पर कार उठइली. आउर ऐप वाला कैब सर्विस संगे काम सुरु कर देली.

“अब त हम हाईवे पर भी गाड़ी चला लीहिले,” ऊ मुस्कुरात कहली.

बेरोजगारी से जुड़ल जानकारी बतावत बा कि नौकरी करे वाला मेहरारू लोग के गिनती, मरद लोग के मुकाबले 24.7 प्रतिशत कम बा. शबनमबानू अपवाद हई. उनकरा एह बात के गर्व बा कि ऊ आपन कमाई से आपन लइकी के पढ़ा-लिखा रहल बाड़ी.

मरदवादी सोच (आपन सवारी के) के इलावा, 26 बरिस के शबनम के बहुत तरह के दिक्कत झेले के पड़ेला. “सड़क पर, शौचालय बहुते दूर होखेला. पेट्रोल पंप में जे शौचालय रहेला, ऊ लोग ओकरा पर ताला लगा देवेला. चाबी मांगे में हमरा शरम आवेला, काहेकि उहंवा खाली मरदे लोग रहेला.” भारत में गिग अर्थव्यवस्था में महिला कामगार जइसन शीर्षक से एगो ‘खोजपूर्ण’ अध्ययन भइल बा. एह में पता चलल बा कि रोजगार के एह क्षेत्र में मेहरारू कामगार के दूर शौचालय दूर, वेतन मिले में लैंगिक भेदभाव (एके काम खातिर मरद के जादे, मेहरारू के कम) आउर काम पर असुरक्षा आउर खराब माहौल जइसन मुस्किल से लड़े पड़ेला.

On the road, the toilets are far away, so if she needs to find a toilet, Shabnambanu simply Googles the nearest restrooms and drives the extra two or three kilometres to reach them
PHOTO • Umesh Solanki

सड़क पर, शौचालय सभ बहुत दूर रहेला, एहि से जब शबनमबानू के प्रेशर आवेला, ऊ गूगल पर लगे के रेस्टरूम खोजेली. पहुंच के गूगल करेली, फेरु एह खातिर दू चाहे तीन किलोमीटर जादे जाए के पड़ेला

जब प्रेशर आवेला, त शबनमबानू लगे के रेस्टरूम पता करे खातिर गूगल करेली आउर दू आउर तीन किमी आउर ड्राइव करके पहुंचेली. ऊ कहेली, “पानी कम पिए के अलावा आउर कवनो चारा ना होखे. बाकिर अइसन कइला पर, एह गरमी में चक्कर आवे लागेला. आंख के आगू अन्हार छा जाला.”

कोलकाता में एक जगह से दोसरा जगह आवे-जावे में रमेश दास के भी अइसने परेसानी के सामना करे के पड़ेला. ऊ चिंतित होके कहे लगलें, “रोज के काम के कोटा पूरा करे के चक्कर में हमनी के ई सभ प्रेशर झेले के पड़ेला.” “मान लीहीं कवनो ड्राइवर के लू (टॉयलेट) लागल बा, ओहि घरिया ऐप पर कहूं जाए के रिक्वेस्ट आ गइल, त एकरा डिक्लाइन (मना) करे से पहिले बहुते बेरा सोचे के पड़ेला,” शेख कहलें. ऊ तेलंगाना गिग आउर प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन (टीजीपीडब्ल्यूयू) के संस्थापक आउर अध्यक्ष बाड़ें.

ऐप पर कवनो ऑर्डर/राइड मना करे से ड्राइवर के रिकॉर्ड खराब हो जाला. रउआ एकरा खातिर सजा मिल सकेला, चाहे काम में किनारे कइल जा सकेला. अइसे में त बस भगवाने मालिक होखेला.

नीति आयोग ‘एसडीजी 8 खातिर रोडमैप’ नाम के रिपोर्ट में एह बात पर जोर देले बा कि,“भारत के मोटामोटी 92 प्रतिशत कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में काम करत बा… ओकर भाग में मनमाफिक सामाजिक सुरक्षा नइखे…” संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-8 दोसर बहुते तरह के मसला के अलावा, “श्रम अधिकार के रक्षा आउर सुरक्षित कार्य माहौल के बढ़ावा” देहल जइसन मुद्दा पर भी ध्यान दे रहल बा.

Shaik Salauddin is founder and president of the Telangana Gig and Platform Workers Union (TGPWU)
PHOTO • Amrutha Kosuru

शेख सलाउद्दीन तेलंगाना गिग आउर प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन (टीजीपीडब्ल्यूयू) के संस्थापक आउर अध्यक्ष बाड़ें

संसद 2020 में सामाजिक सुरक्षा संहिता पास कइलक. ई संहिता अऩौपचारिक रूप से काम करे वाला मजूर के सामजाकि सुरक्षा के दायरा में लावे के कोसिस करेला. एकरा बाद संसद, केंद्र सरकार से गिग आउर प्लेटफॉर्म मजूर लोग खातिर सामाजिक सुरक्षा योजना तइयार करे के आह्वान कइलक. इहंवा गिग आउर प्लेटफॉर्म मजूर के गिनती 2029-30 तक 235 लाख तक बढ़ के तिगुना होखे के आसार बा.

*****

एह स्टोरी खातिर जे मजूर आउर कामगार लोग से बात भइल, ऊ सभे ‘मालिक’ से आजादी के बात कहलक. पारी से बात करे के पहिल मिनट में, सुंदर बतइलें कि उनकरा बेंगलुरु में कपड़ा बेचे वाला सेल्समैन के नियमित नौकरी के मुकाबले ई काम पसंद बा. “हम आपन मालिक खुद हईं. हम आपन टाइम के हिसाब से काम कर सकिले आउर अगर हमरा एह घरिया छुट्टी चाहीं, त हम एहि घरिया छुट्टी ले सकिले.” बाकिर उनकरा साफ पता बा कि जदि एक बार करजा चुक गइल, त ऊ एकरा से जादे स्थिर आउर कम बिजी रहे वाला काम तलाश लिहन.

शंभूनाथ त्रिपुरा से बाड़ें आउर उनकरा पास बात करे के जादे बखत ना रहे- ऊ पुणें के एगो नामी आउर बहुते व्यस्त फूड ज्वाइंट के बार इंतजार में रहस. उहंवा आउर जोमैटो आउर स्विगी के एजेंट लोग आपन बाइक पर सवार, खाना के पार्सल खातिर इंतजार करत रहे. ऊ पछिला चार बरिस से पुणे में बाड़ें. अब त नीमन मराठी बोले लागल बाड़ें.

सुंदर जइसन उनकरो ई काम आपन मॉल के काम से जादे नीमन लागेला. मॉल वाला काम में उनकरा 17,000 के कमाई हो जात रहे. शंभूनाथ कहलें, “ई काम नीमन बा. हमनी फ्लैट किराया पर ले लेहले बानी. अब हम (उनकर दोस्त) सभे संगे रहिले. हम रोज के हजार रुपइया कमा लीहिले.”

Rupali Koli has turned down an app-based company as she feels an unfair percentage of her earnings are taken away. She supports her parents, husband and in-laws through her work as a beautician
PHOTO • Riya Behl
Rupali Koli has turned down an app-based company as she feels an unfair percentage of her earnings are taken away. She supports her parents, husband and in-laws through her work as a beautician
PHOTO • Riya Behl

रुपाली कोली ऐप कंपनी के काम छोड़ देली. एक दिन उनकरा समझ में आइल कि  उनकर कमाई से गलत तरीका से पइसा काटल जात बा. ऊ आपन काम से माई-बाबूजी, घरवाला आउर ससुराल के खरचा चलावेली

कोविड-19 के लॉकडाउन के बखत रहे. रुपाली ब्यूटीशियन के काम सुरु कइली. “पार्लर हमनी के आधा तनखा काट लेत रहे. एहि से हम फ्रीलांस करे के सोचनी.” ऊ ऐप से जुड़ल कवनो नौकरी करे के त सोचली, बाकिर फेरु रुक गइली, “मिहनत हम करीं, ब्यूटी के सामान हम खरीदीं, आवे-जाए के पइसा हम लगाईं, फेरु केहू के 40 प्रतिशत कमीशन काहे दीहीं? हमरा आपन 100 प्रतिशत देवे आउर बदला में खाली 60 प्रतिशत मिले से दिक्कत रहे.”

रुपाली मुंबई के मड आइलैंड में अंधेरी तालुका के एगो मछुआरा परिवार से बाड़ी. 32 बरिस के एगो स्वतंत्र ब्यूटीशियन आपन माई-बाबूजी, घरवाला आउर ससुराल के लोग के खरचा चलावेली. ऊ बतइली, “एहि काम करके हम आपन घर आउर बियाह के खरचा उठइनी.” ऊ कोली समुदाय से बाड़ी. कोली समुदाय के महाराष्ट्र में विशेष पिछड़ा वर्ग (एसबीसी) मानल जाला.

रुपाली मोटा-मोटी आठ किलो के वजन वाला ट्रॉली बैग आउर पीठ पर तीन किलो के बैकपैक उठावेली आउर दिन भर कॉल के हिसाब से शहर में घूमत रहेली. केहू ग्राहक से अप्वाइंटमेंट के बीच, ऊ आपन घर के रोज के काम करेली, परिवार खातिर रोज के तीन बखत के खाना पकावेली. एतना खटनी के बादो कहेली, “आपन मन के मालिक होखे के चाहीं.”

स्टोरी खातिर हैदराबाद से अमृता कोसूरू , रायपुर से पुरुषोत्तम ठाकुर , अहमदाबाद से उमेश सोलंकी , कोलकाता से स्मिता खटोर , बेंगलुरु से प्रीति डेविड , पुणे से मेधा काले , मुंबई से रिया बहल के रिपोर्टिंग रहे. संपादकीय सहयोग खातिर मेधा काले , प्रतिष्ठा पंड्या , जोशुआ बोधिनेत्र , संविति अय्यर , रिया बहल आउर प्रीति डेविड के बहुत बहुत शुक्रिया

आवरण चित्र: प्रीति डेविड

अनुवाद : स्वर्ण कांता

Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

ଏହାଙ୍କ ଲିଖିତ ଅନ୍ୟ ବିଷୟଗୁଡିକ Swarn Kanta