“हरेक बखत भट्ठी जलावत, मंय जर जाथों.”

सलमा लोहार के दूनों कुहनी मन मं जरे के अनगिनत चिन्हा दिखत हवंय अऊ ओकर डेरी हाथ के दूनों ऊँगली मं तुरते कटे के घाव हवंय. वो ह भट्ठी के तरी ले मुट्ठी भर राख निकार के घाव मं रमज लेथे, जेकर ले वो ह जल्दी भर जावय.

41 बछर के सलमा के परिवार सोनीपत के बहालगढ़ बजार मं तऊन झोपड़पट्टी मं बसे छै लोहार परिवार मन ले एक आय जेन ला वो मन अपन घर कहिथें. ये झोपड़पट्टी के एक डहर भीड़भाड़ वाले बजार हवय अऊ  दूसर डहर नगरपालिका के जमा करे कचरा के ढेरी हवय. तीर मं सरकारी शौचालय अऊ पानी के टंकी हवय. सलमा के परिवार बस अतकेच सुविधा के भरोसा मं हवय.

ये झोपड़पट्टी मन मं बिजली नईं ये अऊ गर 4-6 घंटा सरलग झड़ी लगथे, त ये मं पानी भर जाथे. बीते कुंवार (2023) मं अइसनेच होय रहिस. अइसने नौबत आय ले पानी उतरे तक ले अपन खटिया मं कलेचुप बइठे रहे ला परथे. पानी उतरे मं 2-3 दिन लाग जाथे. सलमा के बेटा दिलशाद बताथे, “वो बखत मं हमन ला भारी बस्साय ला झेले ला परथे.”

सलमा कहिथे, “फेर हमन कहूँ आन जगा घलो कहां जाय सकथन? हमन जानथन के इहाँ कूड़ा-कचरा के ढेरी के बगल मं रहिके बीमार परत रहिथन. इहाँ भिनभिनावत माछी मन हमर खाय मं बइठ जाथे फेर हमन अऊ कहाँ  जाबो?”

गडिआ,गाडिया धन गडुलिया लोहार ला राजस्थान मं घुमंतू जनजाति (एनटी) के संग-संग पिछड़ा वर्ग के रूप मं घलो सूचीबद्ध करे गे हे. ये समाज के लोगन मन दिल्ली अऊ हरियाणा मं घलो रहिथें. फेर एक कोती जिहां दिल्ली मं वो मन ला घुमंतू जनजाति के दर्जा मिले हवय, उहिंचे हरियाणा मं वो मन पिछड़ा वर्ग के रूप मं  सूचीबद्ध हवंय.

बजार के जेन इलाका मं वो मन रहिथें वो ह स्टेट हाईवे -11के बगल मं बसे हवय अऊ उहाँ बनेच अकन ताज़ा साग-भाजी, मिठाई, किराना, बिजली के सामान अऊ दीगर चिल्लर बेपारी मन के दुकान हवय. स्टाल वाले मालिक मं बजार बंद होय के बाद चले जाथें.

Left: The Lohars call this juggi in Bahalgarh market, Sonipat, their home.
PHOTO • Sthitee Mohanty
Right: Salma Lohar with her nine-year-old niece, Chidiya
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डेरी: सोनीपत के बहालगढ़ बजार मं रहेइय्या ये लोहार मन ये झोपड़पट्टी मन ला अपन घर कहिथें, जउनि: सलमा लोहार अपन नौ बछर के भतीजी चिड़िया के संग

They sell ironware like kitchen utensils and agricultural implements including sieves, hammers, hoes, axe heads, chisels, kadhais , cleavers and much more. Their home (and workplace) is right by the road in the market
PHOTO • Sthitee Mohanty
They sell ironware like kitchen utensils and agricultural implements including sieves, hammers, hoes, axe heads, chisels, kadhais , cleavers and much more. Their home (and workplace) is right by the road in the market
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लोहा के बने रंधनी अऊ खेती-बारी के अऊजार जइसने चलनी, हथौड़ा, कुदारी, टंगिया, छेनी. कराही,कत्ता अऊ कतको दीगर जिनिस बेंचथे. ओकर घर अऊ काम करे के जगा बजार के सड़क के ठीक बगल मं हवय

फेर सलमा जइसने लोगन मन बर ये बजार ओकर घर घलो आय अऊ जीविका के जगा घलो.

“बिहनिया उबत सुरुज के संग मोर दिन ह सुरु हो जाथे, काबर के मोला अपन भट्ठी सुलगाय ला परथे, अपन घर बर रांधे ला परथे अऊ ओकर बाद काम मं जाय ला होथे,” 41 बछर के सलमा कहिथे. अपन घरवाला विजय के संग दिन मं दू बेर वोला लंबा बखत तक ले भट्ठी मं बूता करे ला होथे. दूनों लोहा के कबाड़ ला तिपो के ठोंक-पीट के ओकर ले नवा समान बनाथें. दिन भर मं वो मन चार-पांच समान बना लेथें.

सलमा ला अपन काम ले थोकन सुस्ताय के बखत मंझनिया मं मिलथे. ये बखत वो ह अपन खटिया मं बइठे ताते तात चाहा पियत हवय अऊ ओकर दू झिन लइका ओकर संग बइठे हवंय – ओकर छेदोली बेटी तनु 16 बछर के हवय अऊ सबले छोटे बेटा 14 बछर के हवय. ओकर देरानी के बेटी –शिवानी, काजल अऊ चिड़िया –घलो ओकरेच तीर मं बइठे हवंय, नौ बछर के चिड़िया ह सिरिफ स्कूल जाथे.

काय येला व्हाट्सऐप कर सकथो? सलमा पूछथे. “मोर काम के बारे मं सबले पहिली लिखहू!”

ओकर कारोबार मं काम अवेइय्या अऊजार अऊ बने समान मंझनिया के भारी घाम मं चमकत हवंय – चलनी, हथौड़ा, रांपा, टंगिया, छेनी, कराही, कत्ता अऊ बने कतको समान.

“ये झुग्गी मं हमर सबले नोहर जिनिस हमर अऊजार आंय,” वो ह कहिथे. वो ह लोहा के एक ठन बड़े बरतन के आगू बइठे हवय. ओकर मंझनिया के सुस्ताय के बखत नई ये,अऊ ओकर हाथ मं चाहा के खाली कप के जगा में छेनी अऊ हथौड़ी हवय, भारी आराम ले वो ह बरतन के तल्ला मं हथौड़ी ले छेदा बनाथे. सरलग करे सेती ओकर ये काम ह वोला कठिन नई ये. हरेक दू बेर हथौड़ी चलाय के बाद छेनी के दिसा ला बदल देथे. “ये ह रंधनीखोली सेती नो हे. येला ला किसान अनाज चलाय मं करथें.”

Left: Salma’s day begins around sunrise when she cooks for her family and lights the furnace for work. She enjoys a break in the afternoon with a cup of tea.
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Right: Wearing a traditional kadhai ( thick bangle), Salma's son Dilshad shows the hammers and hoes made by the family
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डेरी: सुरुज ऊबे के संग सलमा के दिन सुरु हो जाथे, जगे के बाद वो ह अपन परिवार सेती रांधथे अऊ काम करे बर भट्ठी ला सुलगाथे. मंझनिया मं अपन काम ले थोकन बखत निकाल के वो ह चाहा पीथे. जउनि: सलमा ह अपन हाथ मं एक ठन पारंपरिक कढ़ाई (कड़ा) पहिरे हवय, अऊ ओकर बेटा दिलशाद परिवार के बनाय हथौड़ा अऊ रांपा दिखावत हवय

Salma uses a hammer and chisel to make a sieve which will be used by farmers to sort grain. With practiced ease, she changes the angle every two strikes
PHOTO • Sthitee Mohanty
Salma uses a hammer and chisel to make a sieve which will be used by farmers to sort grain. With practiced ease, she changes the angle every two strikes
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सलमा छेनी अऊ हथौड़ी ले चलनी बनावत हवय, येला ला किसान अनाज चलाय मं करथें. सरलग करे सेती ओकर ये काम ह वोला कठिन नई ये अऊ हरेक दू बेर हथौड़ी चलाय के बाद छेनी के दिसा ला बदल देथे

भीतरी, विजय भट्ठी मं काम करत हवय, जेन ला वोला दिन मं दू बेर बारे ला परथे – एक बेर बिहनिया अऊ दूसर बेर संझा के, जऊन लोहा ला वो ह बनावट हवय, वो ह तिप के लाल हो चुके हवय, फेर वोला लोहा के ये गरमी के जइसने कऊनो फिकरेच नई ये. जब ओकर ले पूछे जाथे के भट्ठी ला सुलगाय मं कतक बखत लागथे, त जुवाब देवत वो ह हंस परथे, “जब भीतरी ले चमक निकरे लगही, त हमन ला पता चल जाही. हवा मं नम्मी होय ले भट्ठी ला सुलगे मं जियादा बखत लागथे. अक्सर हमन ला ये काम मं एक ले दू घंटा लगथे, फेर ये ह हमर बऊरेइय्या कोयला उपर रहिथे.”

कोयला के दाम 15 ले 70 रूपिया किलो के बीच मं कुछु घलो हो सकथे. ये ह कोयला के किसिम उपर रहिथे, येला थोक मं बिसोय सेती सलमा अऊ विजय उत्तर प्रदेश के ईंट-भट्ठा मन मं जाथें.

विजय निहाई ऊपर लोहा के दहकत सलाख ला रखके हथौड़े के मार ले ओकर मुड़ी ला चपटा करे के काम सुरु करथे. छोटे भट्टी लोहा ला पूरा गलाय नई सकय येकरे सेती वोला जियादा मिहनत करे ला परत हवय.

लोहार अपन आप ला सोलहवीं सदी के राजस्थान के तऊन समाज के वंसज बताथें जेकर मन के पेशा हथियार बनाय रहिस. बाद के कतको बछर मं चित्तौड़गढ़ ऊपर मुगल मन के कब्जा के बाद वो मन उत्तर भारत के अलग-अलग जगा मं चले गीन. “वो हमर पुरखा के रहिन, अब हमन सबले अलग जिनगी जियत हवन,” विजय हंसत कहिथे. “फेर आज घलो ओकर मन के कारीगरी के काम ला करत हवन जेल ला वो मन हमन ला सिखाय रहिन. हमन ये जेन कढ़ाई (मोट कड़ा] पहिरे हवन, ये घलो ओकरेच मन के देय आय.”

अब वो ह ये हुनर ला अपन लइका मन ला सिखाय मं लगे हवय. “ये काम मं सबले हुसियार दिलशाद आय,” वो ह बताथे. दिलशाद सलमा अऊ विजय के सबले छोट संतान आय. अऊजार मन के डहर आरो करत वो ह कहिथे, “ ये हथौड़ा आय. बड़े वाले ला घन कहिथें. बापू (ददा) टिपत लोहा ला चिमटा ले धरथे अऊ सोझ करे सेती कैंची ले धरथे.”

चिड़िया हाथ ले चलेइय्या पंखा के हैंडल ला घुमावत हवय, जेन ला भट्ठी के आंच ला अपन काम के मुताबिक रखे जा सकथे. जब सूखाय राख उड़े लगथे त वो ह खिलखिलावत हंसी निकर परथे.

The bhatti’s (furnace) flames are unpredictable but the family has to make do
PHOTO • Sthitee Mohanty
The bhatti’s (furnace) flames are unpredictable but the family has to make do
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भट्ठी के आंच कम जियादा होवत रहिथे फेर परिवार ला बूता करे ला परथे

The sieves, rakes and scythes on display at the family shop. They also make wrenches, hooks, axe heads, tongs and cleavers
PHOTO • Sthitee Mohanty
The sieves, rakes and scythes on display at the family shop. They also make wrenches, hooks, axe heads, tongs and cleavers
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घर के दुकान के आगू रखाय कतको चलनी, खुरपी अऊ हंसिया. ये मन रिंच, हुक, टंगिया , गंडासा अऊ चिमटा घलो बनाथें

दुकान मं एक झिन माईलोगन ह चाक़ू बिसोय ला आथे. सलमा वोला चाक़ू के दाम 100 रूपिया बताथे. माईलोगन ह जुवाब देथे, येकर मंय 100 रूपिया नई दवं. मंय प्लास्टिक के बने चाकू बिसो लिहूं, जेन ह मोला सस्ता मं मिला जाही. दूनों मं थोकन बखत मोलभाव चलथे अऊ आखिर मं 50 रूपिया मं सौदा हो जाथे.

माईलोगन के जाय के बाद सलमा थोकन सुस्ताथे. परिवार के गुजर-बसर लइक भरपूर समान नई बेंचे सकत हवय. प्लास्टिक के बने समान ले ओकर बनाय समान ला भारी जूझे ला परत हवय. न त वो मन तेजी ले बनाय सकत हवंय अऊ न दाम के मामला मं प्लास्टिक ले आगू ठहर सकत हवंय.

“अब हमन घलो प्लास्टिक के समान बेंचे ला सुरु कर दे हवन,” वो ह कहिथे. “मोर देवर के अपन झुग्गी के आगू प्लास्टिक के समान के दुकान हवय अऊ मोर भाई दिल्ली के तीर टिकरी बार्डर मं प्लास्टिक के समान बेंचथे.” वो मन बजार ले दूसर बेपारी मन ले प्लास्टिक के समान बिसोथें अऊ वोला दूसर जगा मं बेंचथें, फेर वो मन ला नाम के मुनाफा होथे.

तनु बताथे के दिल्ली मं ओकर मोमा मन जियादा कमाथें. “बड़े शहर मं लोगन मन अइसने समान मं जियादा पइसा खरचा करथें. वो मं बर 10 रूपिया कऊनो मायने नई रखय. फेर गाँव देहात के लोगन मन बर ये ह बड़े रकम आय अऊ वो मन अइसने खरचा नईं करंय. येकरे सेती मोर मोमा जियादा पइसा वाले मनखे आंय.”

*****

“मंय अपन लइका मन ला पढ़ाय चाहथों,” सलमा कहिथे. पहिली बेर मंय ओकर ले साल 2023 मं मिले रहेंव. मंय तीर के यूनिवर्सिटी मं स्नातक के छात्रा रहेंव. “मंय चाहथों के वो मन अपन जिनगी मं कुछु बनें.” वो ये बात ले तब ले मसूस करत रहिस, जबले ओकर बड़े बेटा ला जरूरी कागजात नई होय सेती मिडिल स्कूल ले निकार देय गीस. अब वो ह 20 बछर के हवय.

“मंय सरपंच ले लेके जिला दफ्तर तक ले सब्बो जगा दऊड़-भाग करेंव, वो मन ला आधार, रासन कार्ड, जाति ले जुरे वो जम्मो कागजात देवंय जेन जेन ला वो मन मांगे रहिन. कतको कागज मं अंगूठा के निशान लगायेंव, फेर काम नई होईस.”

Left: Vijay says that of all his children, Dilshad is the best at the trade.
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Right: The iron needs to be cut with scissors and flattened to achieve the right shape. When the small furnace is too weak to melt the iron, applying brute force becomes necessary
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डेरी: विजय बताथे के ओकर सब्बो लइका मं दिलशाद ये काम मं सबले जियादा माहिर हवय. जउनि: लोहा  ला कैंची ले काटे ला परथे अऊ सही आकार देय बर वोला चपटा करे ला परथे. फेर काबर के भट्ठी छोटे हवय अऊ लोहा ला गलाय नई सकय येकरे सेती ये काम मं भारी मिहनत लागथे

बीते बछर दिलशाद ला घलो छटवीं क्लास के पढ़ई अधुरा छोड़े ला परिस. वो ह कहिथे, सरकारी स्कूल मन मं काम के लइक पढ़ई नई होवय, फेर मोर बहिनी तनु बनेच कुछु जानथे. वो ह पढ़े लिखे नोनी आय.” तनु ह आठवीं तक ले पढ़े हवय, फेर वो ह अब आगू पढ़े ला नई चाहय. लकठा के स्कूल मं दसवीं तक ले पढ़ाई नई होवय, येकरे सेती वोला घंटा भर रेंगत एक कोस दूरिहा खेवारा स्कूल मं जाय ला परही.

“लोगन मन मोला घूरके देखथें,” तनु कहिथे. “वो मन गंदा-गंदा बात घलो करथें. मंय बताय घलो नईं सकवं.” येकरे सेती अब तनु घरेच मं रहिथे अऊ काम मं अपन दाई-ददा के हाथ बंटाथे.

घर के सब्बो लोगन मन सरकारी टंकी के तीर खुल्ला जगा मं नुहाय बर मजबूर हवंय. तनु धीरे ले कहिथे, “हमन ला खुल्ला मं नुहावत हर कऊनो देख सकथे.” सार्वजनिक शौचालय मं जाय ले हर बेर के 10 रूपिया चुके ला परथे. जम्मो परिवार सेती ये ह महंगा परथे. ओकर आमदनी अतक जियादा नई ये के वो ह भाड़ा मं खोली ले सके, जेन मं शौचालय घलो होय. येकरे सेती मजबूरन वो मन ला सड़क तीर मं रहे ला परत हवय.

घर के कऊनो ला कोविड-19 के टीका नई लगे हे. बीमार परे ले वो मन ला बढ़ खलसा या सेवली के सरकारी अस्पताल (पीएचसी) मं जाय ला परथे. निजी दवाखाना महंगा होय सेती आखिरी मं जाय ला परथे.

सलमा भारी जतन ले खरचा करथे. “जब तंगी रहिथे, त हमन कचरा बिनेइय्या मन ले कपड़ा बिसोथन, उहाँ हमन ला 200 रूपिया मं पहिरे लइक कपड़ा मिला जाथे,” वो ह बताथे.

कभू-कभू ओकर परिवार सोनीपत के दूसर बजार मन मं घलो जाथे. तनु बताथे, “हमन सब्बो रामलीला देखे बर जाबो, जेन ह तीर मं रामनवमीं बखत होवेइय्या हे. गर हमर करा पइसा होही, त हमन चाट-गुपचुप खाबो.”

“भले मोर नांव मुसलमान मन के जइसने आय, फेर में हिंदू अंव, सलमा कहिथे. “हमन हनुमान, शिव, गणेश,  सब्बो देंवता के पूजा करथन.”

“अऊ अपन काम के जरिया ले अपन पुरखा के घलो पूजा करथन!” दिलशाद तुरते अपन डहर ले जोड़त कहिथे जेन ला सुन के ओकर महतारी हँस परथे.

*****

Left: The family has started selling plastic items as ironware sales are declining with each passing day.
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Right: They share their space with a calf given to them by someone from a nearby village
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डेरी: काबर के लोहा के समान के बिक्री दिन बदिन गिरत जावत हवय येकरे सेती ओकर परिवार ह प्लास्टिक के समान घलो बेंचे ला सुरु कर दे हवय. जउनि: वोला अपन झुग्गी मं अपन संग एक ठन बछरू ला घलो रखे ला परथे जेन ला वोला लकठा के गाँव के एक झिन लोगन ह देय हवय

जब बजार मं मंदी आ जाथे त अपन समान बेंचे बर विजय अऊ सलमा ला तीर के गाँव मन मं जय ला परथे.  वो मन महिना मं एक दू बेर जाथें. वइसे, वो मन कभू कभार गाँव मं जाथें, फेर जब कभू जाथें, त वो मन के कमई मुस्किल ले 400-500 रूपियाच होथे. सलमा कहिथे, “कतको बेर हमन ला अतक रेंग लेथन के लागथे के गोड़ के हाड़ा मन टूट गे होंय.”

कभू-कभू गाँव के लोगन मन वो मन ला मवेसी दे देथें -  बछरू जेन ला दूध छुड़ाके अलग करे रहिथें. परिवार के आमदनी घलो अतक नई ये के वो ह ढंग के खोली भाड़ा मं ले सके, मजबूरन वो मन ला सड़क तीर मं रहे ला परथे.

तनु ला दरूहा मन ले बचथे जेन मं रतिहा मं ओकर पीछा करे के कोसिस करथें. दिलशाद कहिथे, “हमन ला कतको बखत पीटे धन नरियाय ला परथे. हमर दाई-बहिनी मन इहींचे सुतथें.”

हालेच मं कुछु लोगन मन वो मन ला ये जगा खाली करे ला कहे हवंय. वो मन अपन आप ला नगर निगम (सोनीपत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन) ले आय बताय रहिन. लोहार मन ले कहे गे हवय के झुग्गी के पाछू के हिस्सा मं कचरा फेनेके के मैदान मं जाय सेती गेट बनाय जाही, येकरे सेती वो मन ला अपन कब्जा के सरकारी जगा ला खाली करे ला परही.

इहाँ अवेइय्या अफसर मन आधार कार्ड, राशन कार्ड अऊ दीगर कागजात के जरिया ले परिवार के आंकड़ा जुटाय हवंय, फेर इहाँ अपन आय के कऊनो सरकारी सबूत नई छोड़े हवंय. येकरे सेती इहाँ रहेइय्या कउनो घलो पक्का तौर मं ये कहे नई सकय के वो मन कऊन रहिन. वो मन हर दू महिना बाद मं आवत रहिथें.

“वो मन हमन ले वादा करे हवंय के वो मन हमन ला रहे बर प्लाट दिहीं,” तनु पूछथे, “कऊन प्लाट? कहाँ? काय वो ह बजार ले दूरिहा हवय? वो मन ये सब हमन ला नई बताय हवंय.”

Nine-year-old Chidiya uses a hand-operated fan to blow the ashes away from the unlit bhatti . The family earn much less these days than they did just a few years ago – even though they work in the middle of a busy market, sales have been slow since the pandemic
PHOTO • Sthitee Mohanty
Nine-year-old Chidiya uses a hand-operated fan to blow the ashes away from the unlit bhatti . The family earn much less these days than they did just a few years ago – even though they work in the middle of a busy market, sales have been slow since the pandemic
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नौ साल बछर के चिड़िया बुथाय भट्टी ले राख ला निकारे सेती एक हाथ ले चलेइय्या पंखा चलाथे. परिवार के कमई बीते कतक बछर मं गिरत बनेच कम होगे हवय. वइसे वो मन भीड़ भाड़ वाले बजार के मंझा मं काम करथें, ओकर बाद घलो महामारी के बाद ले बिक्री मं बनेच कमी आय हवय

परिवार के आय-प्रमाण पत्र बताथे के कभू वो मन महिना मं 50,000 रूपिया कमावत रहिन, अब वो मन सिरिफ 10,000 रूपिया कमाय पाथें. पइसा के जरूरत परे ले वो मन ला रिस्तेदार मन ले करजा लेगे ला परथे. रिस्तेदार जतक तीर के होथें बियाज ओतके कम लगथे. बाद मं बनाय समान ला बेंच के वो मन अपन करजा छुटथें, फेर महामारी के बाद ले वो मन के बिक्री बनेच कम होगे हवय.

“कोविड के बखत ह हमर बर बढ़िया रहिस,” तनु बताथे. “बजार सुन्ना परे रहय. हमर बर रासन लेके सरकारी तर्क आवत रहिस. मास्क बांटे बर दीगर लोगन मन घलो आवत रहिन.”

सलमा कतको बिचार करे लगथे, “महामारी के बाद ले लोगन मन हमन ला संदेह के नजर ले देखे लगे हवंय. वो मन के आंखी मं घिन का भाव झलकथे.” जब कभू वो मन बहिर निकरथें, इहाँ के लोगन मन वो मन जात ला लेके गारी देथें.

“वो मन हमन ला अपन गाँव मं रहे ला नईं देवंय. मोर समझ मं नईं आवय के वो मन हमर जात ला लेके काबर गाली देथें.” सलमा के साध आय के दुनिया वो मन ला घलो बराबरी के दर्जा देवय. “रोटी तो रोटी होथे – हमर बर अऊ ओकरे मन बर घलो.सब्बो एके जिनिस खाथें. हमर अऊ वो अमीर लोगन मन मं काय भेद हवय?”

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Student Reporter : Sthitee Mohanty

Sthitee Mohanty is an undergraduate student of English Literature and Media Studies at Ashoka University, Haryana. From Cuttack, Odisha, she is eager to study the intersections of urban and rural spaces and what 'development' means for the people of India.

यांचे इतर लिखाण Sthitee Mohanty
Editor : Swadesha Sharma

Swadesha Sharma is a researcher and Content Editor at the People's Archive of Rural India. She also works with volunteers to curate resources for the PARI Library.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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