ए बेटी तनी एक खोड़ा चिन्हा लेले.
मरतो जीतो में साथ होयेला...
जइसन आइल ह तइसन अकेले ना जा...

(ए बेटी, तनी आपन चिन्हासी लेल.
मरलो पर साथे जाई...
जइसन अइलू ह तइसन अकेले मत जा...)

राजपति देवी दुआरे-दुआरे जाएली आउर इहे गीत गावेली. ऊ अबही झारखंड के मंदर ब्लॉक में फेरी लगा रहल बाड़ी. उनकर कान्हा पर पिलास्टिक के एगो झोरा लटक रहल बा. ओह में तनी-मनी बरतन आ सूइया के डिब्बा धइल बा. राजपति गोदना (टैटू भी कहल जाला) गोदे वाली, एगो गोदनिहार बाड़ी. कुछ पइसा लेके ऊ फूल-पत्ती, चनरमा (चांद), बिच्छू आ दोसर तरीका के डिजाइन सब बनावेली. बाकिर गोदना के गुदाने (महत्व देवे) वाला कमे लोग बचे चलते गांवे-गांवे जाके गोदना गोदे वाला राजपति (45 बरिस) जइसन कलाकार लोग बिलाएल चलल जात बा.

“माई संगे जात रहीं त देखत रहीं उहां गोदत रहन, त हमहूं देख-देख सिखत रहीं, करते करते हमहूं सीख गइली, (माई संगे जात रहीं, त देखत रहीं उहंवा गोदना गोदत. देख-देख के हमहूं सिखत रहीं, करत-करत हमहूं सीख गइनी,)” पंचमा पीढ़ी के गोदना कलाकार राजपति कहली.

गोदना सदियन पुरान लोककला बा. मलार समुदाय (झारखंड में पिछड़ा वर्ग) में ई कला पीढ़ी दर पीढ़ी चलत आइल बा. राजपति देवी भी इहे समुदाय से आवेली. देह के अलग-अलग हिस्सा में अलग-अलग डिजाइन वाला गोदना गोदल जाला. हर समुदाय, इलाका में डिजाइन के माने अलग-अलग होखेला. मेहरारू लोग के गोदना गोदवावल मरद लोग से जादे भावेला.

PHOTO • Ashwini Kumar Shukla
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बावां : राजपति देवी आपन मड़ई के बाहिर घरवाला शिवनाथ मलार, लइका सोनू आ पोता अतुल संगे बइठल बाड़ी. दहिना : आपन बांह पर गोदावल दू ठो गोदना देखावत बाड़ी- ऊपर पोथी आउर नीचे डंका के फूल

दुपहरिया के तीन बाज रहल बा. राजपति छव घंटा बाद झारखंड के रांची के गांवन से होत आपन दू कमरा वाला कांच घर में लउटल बाड़ी. उनकर घर मंदार गांव के बाहरी छोर पर मलार समुदाय के एगो छोट इलाका, खड़गे बस्ती में पड़ेला. कवनो-कवनो दिन त ऊ 30 किमी ले घूम आवेली. कबो घऱ पर बनावल बरतन सब बेचेली, त कबो घरे-घरे जाके लोग से गोदना गोदवावे के आग्रह कहेली.

बरतन उनकर घरवाला, पचास बरिस के शिवनाथ बनावेलन. ई एगो पारंपरिक धातु कला ‘डोकरा’ तरीका से तइयार होखेला. खास करके घर के मरद- बेटा आ घरवाला लोग एल्यूमीनिय आ पीतल से सामान बनावेलन. अइसे त घर के सभे लोग कइसनो ना कइसनो मदद करत रहेला. घर के मेहरारू, राजपति, उनकर लइकी आउर बहू लोग सांचा तइयार करेला, फेरु ओकरा घाम में सुखावे जइसन दोसरो तरह के काम करेला. ऊ लोग के बनावल सामान रोजमर्रा के काम आवे वाला होखेला. जइसे केरोसीन तेल से जरे वाला लैंप, पूजा के बरतन, गाय-गोरु के गला में बान्हे वाला घंटी आउर पउआ जइसन नापे वाला बरतन सब.

राजपति बतइली, “ई छोटका वाला डेढ़ सौ रुपइया के पड़ी.” ऊ आपन हाथ में धइल सामान के बारे में बतइली, जेकरा नागपुरी में पइला कहल जाला. “एकरा से चाउर नापल जाला. एह में जेतना चाउर आंटी, ऊ ठीक-ठीक पाव किलो (250 ग्राम) होई,” ऊ बतइली. एह इलाका में पइला (पउआ) बहुते शुभ मानल जाला. मानल जाला कि जवना घर में अनाज नापे वाला पइला बा, ओह घर में खाए के कमी कबो ना होई.

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बावां : शिवनाथ डोकरा ’ नाम के पारंपरिक धातु कारीगरी के तरीका बरतन तइयार करेलन. दहिना : उनका घर के बाहिर काम करे वाला जगह, इहंई बइठ के ऊ बरतन सब बनावेलन

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बावां ; राजपति रांची के मंदार ब्लॉक के गांवन सब में गलिए-गलिए घूम के गोदना गोदे आउर धातु के ई सब बरतन सब बेचे के काम करेली. दहिना : चाउर नापे वाला पइला देखावत बाड़ी छिपादोहर गांव के रहे वाला गोहमनी देवी

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गोदनहारी (गोदना कलाकार) हमनी के एगो छोट पियर डिबिया देखावत कहली, “एह में सूइया, आउर जरजारी काजर (कोहल) बा.”

पन्नी से कागज निकालके, राजपति आपन बनावल डिजाइन सब देखावे लगली.

“इसको पोथी कहते हैं, और इसको डंका फूल (एकरा पोथी कहल जाला, आउर ई डंका फूल बा),” राजपति एगो डिजाइन ओरी देखावत बतवली. डिजाइन देखे में कवनो गुलदस्ता में फुला रहल फूल जेका लागत रहे. इहे डिजाइन ऊ आपन बांह पर गोदइले बाड़ी. “इसको हंसुली कहते हैं, ये गले में बनता है (एकरा हंसुली कहल जाला. ई डिजाइन गरदन पर बनेला),” राजपति एगो आधा चनरमा के आकार के डिजाइन देखावत कहली.

राजपति अक्सरहा देह के पांच हिस्सा पर गोदना गोदेली: हाथ, गोड़, टखना (एड़ी के ऊपर के हिस्सा), गरदन आ लिलार (माथा). आउर हर हिस्सा खातिर गोदना के खास तरह के डिजाइन चुनल जाला. हाथ में त जादे करके फूल, चिरई आ मछरी, आउर गरदन पर घुमा-घुमा के बिंदी वाला गोलाकार डिजाइन बनावल जाला. माथा पर हर जनजाति में अलग-अलग डिजाइन के गोदना गोदल जाला.

“आदिवासी लोग के विभिन्न समूह के बीच गोदना गोदावे के अलग-अलग परंपरा बा. ओरांव में महादेव जट्ट (स्थानीय फूल) आ दोसर तरह के फूल बनावल जाला. खरिया लोग तीन ठो सीधा लाइन बनवावेला. मुंडा लोग डॉट-डॉट (बिंदी-बिंदी) बनवावेला,” राजपति बतवली. ऊ इहो बतइली कि माथा पर गोदल गोदना से लोग के पहचान होखेला. ई आम बात बा.

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बावां : राजपति जादे करके देह के पांच हिस्सा- हाथ, गोड़, टखना, गरदन आ लिलार पर गोदना गोदेली. हर हिस्सा खातिर खास डिजाइन होखेला. माथा पर के गोदना हर जनजाति में अलग होखेला. दहिना : राजपति देवी एगो दोसर गोदना कलाकार मोहरी देवी संगे

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बावां : सुनीता देवी आपन हाथ पर फूल के डिजाइन वाला गोदना गोदवइले बाड़ी. एह डिजाइन के एह इलाका में महादेव जट्ट कहल जाला. दहिना : उनकर गोड़ में सुपली के डिजाइन बनल बा. सुपली उनकर दलित समाज में शुद्धता के प्रतीक बा. एकरा होखे से उनका ऊंच जात के जमींदार लोग के खेत-खलिहान में काम करे के अनुमति मिल जाला

सुनीता देवी के गोड़ पर सुपली के डिजाइन वाला गोदना गोदल बा. पलामू के चेचरिया गांव के रहे वाला, 49 बरिस के सुनीता देवी कहेली कि उनकर गोदना शुद्धता के प्रतीक है. दलित समुदाय से आवे वाली एह बटाईदार किसान के कहनाम बा, “हमनी के अछूत मानल जाला, बाकिर ई वाला गोदना गोदवला के बाद हमनी पवितर हो जाएनी.”

पंडित रविशंकर शुक्ल विस्वविद्यालय, रायपुर में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति आ पुरातत्व विभाग में शोध के छात्रा अंशु तिरकी बतावेली, “गोदना कला के जनम नवपाषाण काल के गुफा चित्रकला से जुड़ल बा. गुफा से ई घरे-घरे आउर लोग के देह तकले पहुंचल.”

गोहमनी देवी जेका बहुते लोग मानेला कि गोदना में बेमारी ठीक करे के ताकत होखेला. पैंसठ बरिस के गोहमनी झारखंड के लातेहार जिला के छिपादोहर गांव में रहेली. ऊ पचासो बरिस से गोदना गोदे के काम कर रहल बाड़ी. उनका लोग उनकर ‘जहर गोदना’ खातिर जानेला. जहर गोदना में रोग ठीक करे के ताकत होखेला.

“हमार गोदना हजारन लोग के घेंघा रोग ठीक कर देलक,” ऊ तनी गुमान करत आपन माई के घेंघा ठीक करे वाला आपन गोदल गोदना देखावत कहली. छत्तीसगढ़, बिहार आ बंगाल जइसन दोसरो राज्य से लोग उनका लगे इलाज करावे आवेला.

गोहमनी घेघे ना, ठेहुना के दरद, माइग्रेन (कपार के दरद) आ दोसर तरह के पुरान-पुरान दरदो के इलाज करेली. अइसे अब त उनका इहे बात के डर सतावेला कि जल्दिए इहो कला लुप्त हो जाई. “अब त केहू गोदना के पहिले जेतना ना गुदाने (महत्व देवे). गांव जाइला त पहिले जइसन कमाई ना होखेला. हमनी के बाद अब एकरा आगू ले जाए वाला केहू नइखे,” गोहमनी कहेली.

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बावां : गोदना गोदे वाला सूइया आ सियाही वाला डिबिया संगे आपन घर के बाहिर गोहमनी देवी. दहिना : ऊ आपन हाथ पर गोदल तीपा खोरा (ऊपर) आ कलाई पर पोथी देखावत

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बावां : बिहारी मलार गोहमनी के लइका हवन. उऩकर पेट दरद ठीक करे खातिर उनकर माई उनका जहर गोदना गोद लेले रहस. दहिना : गोहमनी के घरवाला आपन गोड़ के जहर गोदना देखावत बाड़न. एह इलाका के लोग मानेला कि गोदना से रोग ठीक कइल जा सकेला

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गोदना गोदे खातिर, एगो गोदनहारिन (गोदे वाला कलाकार) के ललकोरी के दूध (दूधमुंहा लरिका के माई), काजल (कोहल), हरदी आ राई के तेल के जरूरत पड़ेला. गोदना पीतल के सूइया से गोदल जाला. एकरा पेटरमुही सुइयो कहल जाला. एकरा में पीतल के नोक होखेला, जेकरा चलते एह में जंग ना लागे आउर इंफेक्शन के भी कम खतरा रहेला. राजपति कहेली, “हमनी पहिले अपने काजर (काजल) पारत रहीं. बाकिर अब बाजार से कीन के लाइला.”

गोदना के डिजाइन के हिसाब से कमो ना त दू से ग्यारह ठो सूइया के जरूरत होखेला. सबले पहिले गोदना गोदे वाला आदमी दूध आ काजर में तनी राई (सरसों) के तेल मिलावेला. एकरा बाद कलम, चाहे पेंसिल से डिजाइन बनावल जाला. डिजाइन के हिसाब से सूइया चुनल जाई. नीमन पैटर्न खातिर दू, चाहे तीन ठो सूइया, मोट बॉर्डर वाला डिजाइन खातिर पांच से सात ठो सूइया लागेला. राजपति तनी मजाक में कहेली, “हमनी गोंड लोग के जादे दरद ना होखे.”

गोदना के बड़-छोट होखे के हिसाब से, “छोट गोदना में कुछ मिनट आउर बड़ वाला गोदे में कुछ घंटा लाग जाला,” राजपति कहली. गोदना गोदे के बाद एकरा पहिले गाय के गोबर से आ ओकरा बाद हरदी से धोवल जाला. मानल जाला कि गोबर बुरा नजर से बचावेला आउर हरदी आ सरसों तेल से इंफेक्शन ना होखेला.

राजपति कहली, “पहिले के जमाना में मेहरारू लोग गोदना गोदवावे घरिया गीत गावत रहे. बाकिर अब ई चलन समाप्त हो गइल बा.” राजपति छत्तीसगढ़ आ उड़ीसा जाके गोदना गोदले बाड़ी.

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बावां: गोदना गोदे खातिर गोदनहारिन के ललकोरी के दूध (दुधमुंहा लरिका के माई), काजर (कोहल), हरदी आ राई के तेल के जरूरत पड़ेला. गोदना पेटमुही सूई से गोदल जाला. एह सूई में जंग ना लागे आउर एहि से मानल जाला कि एकरा से इंफेक्शन ना होखे. दहिना: जरजरी काजर के डिबिया, गोदना गोदे खातिर काम में आवे वाला सियाही

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बावां: चिंता देवी के हाथ में बिंदु, सीधा लाइन आ मुड़ल लाइन से टीपा खोड़ा बनल बा. उऩकर सहेली चांदी देवी आपन बांह पर बनल बियाहल मेहरारू लोग के चिन्हासी, गोदना देखावत बाड़ी

“तीन-बिंदी वाला गोदना गोदवावे के 150 आउर अइसन फूल वाला डिजाइन के 500 रुपइया मजूरी बा,” राजपति आपन बांह पर बनल गोदना देखावत कहली. “गोदना गोदे के बदला में कबो हमनी के पइसा मिलेला, त केहू चाऊर, तेल आ तरकारी, चाहे लुगा जइसन चीज देवेला,” ऊ कहली.

गोदना के नयका मसीन आवे चलते एह तरह के पारंपरिक गोदना कलाकार लोग के रोजी-रोटी संकट में आ गइल बा. राजपति कहेली, “अब त बहुते कम लोग गोदना गोदवावे आवेला. लइकी लोग के मसीन वाला टैटू जादे भा रहल बा. ऊ लोग फोन पर डिजाइन देखा देवेला, आ कहेला कि अइसने बना द,” ऊ इहो बतइली.

लोग अब पहिले जेका पूरा देह में गोदना ना गोदवावे, राजपति बतइली, “अब ऊ लोग एगो छोट फूल बनवा ली, चाहे एगो बिच्छू गोदवा लीही, बस्स.”

गोदना कलाकार के एह काम से होखे वाला कमाई घर-परिवार चलावे खातिर पूरा ना पड़े. ओह लोग के जादे करके बरतन के धंधा पर निर्भर रहे पड़ेला. कमाई के बड़ हिस्सा रांची में लागे वाला सलाना मेला में बेचल माल से आवेला. राजपति कहली, “मेला में जब 40-50 हजार के कमाई हो जाला, त लागेला कि नीमन कमाई भइल. ना त उहे रोज के 100-200 जइसन चिंदी कमाई से काम चलावे पड़ेला.”

“गोदना शुभ होखेला,” ऊ रौ में कहत जात रहस, “इहे एगो अइसन चीज बा, जे रउआ संगे परलोको जाई. बाकी सब चीज त इहंई धइल रह जाला.”

कहानी मृणालिनी मुखर्जी फाउंडेशन (एमएमएफ) फेलोशिप के मदद से कइल गइल बा.

अनुवाद : स्वर्ण कांता

Ashwini Kumar Shukla

अश्विनी कुमार शुक्ला झारखंड स्थित मुक्त पत्रकार असून नवी दिल्लीच्या इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन इथून त्यांनी पदवी घेतली आहे. ते २०२३ सालासाठीचे पारी-एमएमएफ फेलो आहेत.

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Editor : Sarbajaya Bhattacharya

Sarbajaya Bhattacharya is a Senior Assistant Editor at PARI. She is an experienced Bangla translator. Based in Kolkata, she is interested in the history of the city and travel literature.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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