सुरेंद्र नाथ अवस्थी नदी के दिशा ओरी आपन बांह बढ़ा के देखावे लागत बाड़े, जे नदी अब बस उनकरा इयाद में बसल बाड़ी. ऊ तनी मुस्कात कहले, “इहंवा से उहंवा ले, आउर ऊ सभ.”
“हमनी ओकरा से प्यार करत रहीं. ओकरे चलते हमनी के कुइंया में बस दस फीट पर बहुते मीठ पानी मिलत रहे. हर बरसात में ऊ हमनी के दुआरी तक आ जात रहस. हर तीन बरिस पर उनकरा खातिर एगो बलि देवे के पड़त रहे- जादे करके छोट जनावर के. एक बेर त अइसन जुलुम भइल कि ऊ हमार 16 बरिस के चचेरा भाई के अपना संगे बहा ले गइली. हमरा एतना गोस्सा रहे कि केतना दिन ले ओकरा ओरी मुंह करके चिल्लाईं.” ऊ बतइले. “बाकिर अब, ऊ बहुते दिन से रूसल बाड़ी… हमरा लागत बा पुल बने के चलते,” एतना कहत उनकर आवाज धीमा हो जात बा.
अवस्थी एगो 67 मीटर लमहर पुल पर ठाड़ बाड़े. पुल सई नाम के नदी पर बनल बा, जे मुस्किल से नजर आवत बाड़ी. ‘ऊ’ रूसल बाड़ी. पुल के नीचे खेत बा. नदी किनारे गेहूं के ताजा कटल ठूंठ देखाई देत बा, आउर नदिया किनारे पानी सोख लेवे वाला, हवा में लहरात यूक्लिप्टस के गाछ.
अवस्थी के दोस्त आउर सहयोगी जगदीश प्रसाद त्यागी, रिटायर स्कूल मास्टर बाड़े. ऊ सई के एगो ‘सुंदर नदी’ के रूप में इयाद करत बाड़े.
ऊ गहिर पानी में बनल भंवर आउर एकरा पर उछलत मछरी के बात करत बाड़ें. उनकरा अबहियो एडी, रोहू, ईल, पफर्स जइसन नदी के मछरी इयाद बा. ऊ कहले, “नदी के पानी सूखे लागल त, मछरी सभ बिला (गायब) गइली.”
आउर भी बहुते नीमन-नीमन इयाद भी बा. मालती अवस्थी, 74 बरिस, साल 2007 से 2012 ले सरपंच रहस. ऊ इयाद करत बाड़ी कि कइसे सई आपन तट से 100 किमी दूर उनकर घर के अंगना तक आ जात रहस. ओह विशाल आंगन में हर साल गांव के लोग अइसन परिवार खातिर ‘अन्न परवत दान’ (अनाज के परवत के दान) करत रहे जे लोग आपन फसल नदी के प्रकोप चलते गंवा देले रहे.
“अब त समुदाय के पुरनका भावना चल गइल. अनाज बेस्वाद हो गइल बा. कुंआ के पानी सूख गइल. हमनी जेतना मुस्किल सह रहल बानी, हमनी के मवेशी सभ भी ओसे कम नइखे झेलत. जिनगी बेस्वाद हो गइल बा," ऊ कहली.
सई, गोमती नदी के सहायक नदी कहावेली. भारत के पौराणिक कथा में एकर ऊंच स्थान बा. गोस्वामी तुलसीदास के लिखल रामचरितमानस (16वां सदी के महाकाव्य जेकर शाब्दिक अर्थ भगवान राम के करम के सरोवर) में एकरा आदि गंगा कहल गइल बा, जे गंगा से पहिले आइल रहे.
सई नदी उत्तर प्रदेश के हरदोई जिला के पिहानी प्रखंड के बिजगावां गांव के तालाब से निकलल बाड़ी. आपन पहिल 10 किमी में, आज वाला जादे चरचित नाम मिले के पहिले एकरा झाबर (तालाब) कहल जाला. 600 किमी यात्रा कइला के बाद नदी लखनऊ आउर उन्नाव जिला के बीच हदबंदी करेली. राज्य के राजधानी लखनऊ हरदोई से कोई 110 किमी उत्तर में बा, उहंई उन्नाव 122 किमी दूर बा.
जौनपुर जिला के राजेपुर गांव में गोमती (गंगा के सहायक नदी) संगे आपन उद्गम स्थल से एकर संगम तक, सई करीब 750 किमी के दूरी तय करेली. आपन घुमंतू प्रवृति चलते ऊ एतना दूर चलेली.
हरदोई, 126 किमी के लंबाई आउर 75 किमी के चौड़ाई वाला, एगो टेढ-मेढ़ चतुर्भुज आकार के बा. इहंवा के आबादी 41 लाख बा. जादे करके इहंवा रहे वाला लोग खेतिहर मजूर बा. कुछ लोग किसान बा त, कुछ लोग घरेलू उद्योग में श्रमिक बा.
साल 1904 में छपल आगरा आउर अवध के संयुक्त प्रांत के जिला गजेटियर के वाल्यूम संख्या-XlI, हरदोई एगो गजेटियर के हिसाब से, सई नदी के घाटी “जिला के बीच के हिस्सा तक फइलल बा.”
गजेट में लिखल बा: “हरदोई के भीतरी आवे वाला इलाका उपजाऊ बा बाकिर… बंजर गड्ढ़ा चलते कुछ कुछ दूर पर टूटल-फूटल बा… ढाक आउर झाड़ीदार जंगल के बिखरल टुकड़ा… एहि सभ से सई के घाटी बनल बा.”
अवस्थी अब 78 बरिस के हो गइल बाड़े आउर मेडिकल डॉक्टर (एनेस्थिटिस्ट) बाड़ें. उनकर जनम माधोगंज ब्लॉक के कुरसठ बुजुर्ग गांव में परौली में भइल रहे. उनकर टोला, पुल से कोई 500 किमी दूर बा, जेकरा पर ऊ अबही ठाड़ बाड़े.
साल 2011 के जनगणना के हिसाब से कुरसठ बुजुर्ग के आबादी 1,919 रिकॉर्ड कइल गइल बा. परौली के आबादी 130 बा. एह में मुख्य रूप से ब्राह्मण लोग बा, एकरा अलावे छिटपुट चमार (अनुसूचित जाति) आउर विश्वकर्मा (अन्य पिछड़ल जाति) के संख्या भी बा.
अवस्थी जे पुल पर ठाड़ बाड़े, ऊ परौल आउर बांड़ के गांवन के बीच बनल बा. बांड़ कछौना ब्लॉक में पड़ेला. कछौना एगो महत्वपर्ण बाजार रहल बा. इहंवा किसान लोग आपन अनाज बेचे आउर खाद खरीदे आवेला. पुल ना रहे त, कुरसठ बुजर्ग आउर कछौना के बीच के दूरी 25 किमी रहे. पुल के आवे से दूरी घटके 13 किमी हो गइल.
कुरसठ आउर कछौना (अब बालामऊ जंक्शन के रूप में जानल जाला) के रेलवे स्टेशन के बीच एगो रेलवे पुल होखत रहे. एकर भी लोग उपयोग करत रहे. पुरान लोग इयाद करेला कि कइसे लकड़ी के तख्ता से बनल पुल पर ब्यापार खातिर ऊंट आवत-जात रहे. बाकिर 1960 में, एगो भयानक बरसात में पुल ध्वस्त हो गइल. एह तरह से दू गो स्थान के आपस में जोड़े वाला अकेला छोटका रस्ता खत्म हो गइल.
नयका पुल के बिचार सबले पहिले त्यागी जी के आइल. त्यागी जी माधोगंज ब्लॉक के सरदार नगर गांव में एगो प्राथमिक विद्यालय में मास्टर रहस. ऊ परौली से इहे कोई साढ़े तीन किमी दूर आज के आजाद नगर कस्बा में रहत रहस.
त्यागी, 1945 में जन्मल एह पूर्व मास्टर के सरनेम नइखे. सरनेम त सिंह बा. त्यागी नाम, उनकरा त्याग के चलते देहल गइल. काहेकि ऊ आपन लोग के बेहतरी खातिर कवनो हद तक जा सकत रहस. जब ऊ साल 2008 में रिटायर भइले, जूनियर हाई स्कूल के हेडमास्टर रहस. इहे स्कूल में उनकर करियर सुरु भइल रहे.
त्यागी बतावत बाड़े, “हमार जन्म बहुते गरीब परिवार में भइल रहे. बाकिर अभाव चलते दोसर के भलाई करे के हमार इच्छाशक्ति में कबो कमी ना आइल.” त्यागी उमिर के संगे-संगे एतना कमजोर हो गइल बाड़न कि चलहू में दिक्कत होखेला. एक बेरा का भइल, उनकर परिवार के दूनो भैंस आजाद नगर के मुख्य गांव के सड़क पर एगो गहिर गड्ढ़ा में धंस गइल.
त्यागी खूब दम लगइले आउर कइसहूं एकरा बाहिर निकालल गइल. तबहिए त्यागी के कान में उऩकर बाऊजी मोहन सिंह के कराहत आवाज आइल, “कबो अइसन समय आई, कि एह रस्ता सभ पर चले में खतरा ना रही?”
“बाऊजी के ऊ बात हमरा चुभ गइल. हम गड्ढ़ा भरे के सुरु कइनी. गड्ढ़ा छव फीट गहिर आउर लंबाई में दोगुना से भी जादे रहे. रोज भोरे स्कूल जाए के पहिले आउर स्कूल से लउटला पर हम बगल के कीचड़ के ताल नाम के तालाब से माटी लाके एकरा भरे लगनी. एगो गड्ढा भरला के बाद दोसर गड्ढ़ा भरे में लाग गइनी. अब दोसरो लोग हमरा संगे आवे लागल,” त्यागी बतइले.
ऊ आपन गांव के लोग खातिर नाना प्रकार के काम करस. जइसे कि लगे के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से गांव के लोग के चेकअप खातिर डॉक्टर के बुलावल, इंफेक्शन से बचे खातिर ब्लीच पाउडर के छिड़काव, टीका लगवावे खातिर गांव के बच्चा लोग के जुटावस, आउर इहंवा तक कि आपन गांव के शहरी इलाका में शामिल करवइले. जादे करके काम आसानी से हो जात रहे, काहेकि मास्टर होखे से लोग उऩका बहुते आदर देवत रहे. बाद में केतना बेरा ऊ सार्वजनिक निर्माण विभाग खातिर औचक निरीक्षण करे के जिम्मा भी अपना ऊपर ले लेलन.
अवस्थी आउर त्यागी साल 1994 तक एक दोसरा से परिचित ना रहस. अइसे, दूनू लोग एक-दोसरा के नाम सुनले रहे. अवस्थी, आपन गांव के पहिल डॉक्टर, ओह घरिया तक बिदेस (नाइजीरिया, यूनाइटेड किंगडम आ मलेशिया में) काम करत रहस. सई नदी चलते लरिकाई में उनकर आउर उनकरा जइसन लरिका लोग के हाई स्कूल के पढ़ाई, खास करके गांव के लइकी लोग के, संभव ना हो पाइल रहे. ई दरद ऊ अबले आपन दिल में समेटले रहस. ऊ चाहत रहस कि गांव के बच्चा लोग के पढ़ाई में नदी चलते बाधा ना आवे. एहि से ऊ आपन इलेक्ट्रिक इंजीनियर भाई, नरेंद्र से एगो नाव चलावे वाला खोजे के कहले, जे बरसात में गांव के लइका लोग के, बिना कवनो पइसा लेले नदी पार करावे. अवस्थी लकड़ी के नाव खरीदे खातिर भी 4,000 रुपइया देले.
स्कूल के काम पूरा कइला के बाद नाव चलावे वाला, चोटाई पूरा दिन बाकि लोग के नदी पार करवावे आउर जे वाजिब भाड़ा होखे, लेवे खातिर आजाद रहस. बस इहे शर्त रहे कि ऊ स्कूल वाला दिन में से एको दिन गैरहाजिर ना रहस. कुछ बरिस बीतत-बीतत नाव टूट गइल. बाकिर अवस्थी 1980 में आपन गांव में अठमा क्लास तक के एगो स्कूल बनवइलन. स्कूल के नाम उनकर दादा-दादी जी के नाम- गंगा सुग्रही स्मृति शिक्षा केंद्र रखल गइल. साल 1987 में, स्कूल के उत्तर प्रदेश राज्य हाई स्कूल आउर इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड से मान्यता मिल गइल. बाकि, तबहियो एगो चुनौती बनल रहल- परौली से दोसर बच्चा लोग बचल पढ़ाई खातिर कइसे आई.
अवस्थी आउर त्यागी के अंतत: जब भेंट भइस, त ऊ लोग इहे फैसला कइलक कि पुल बनइले बिना एह समस्या के समाधान ना होई. स्वभाव में दूनो लोग एक-दोसरा से उलट रहे. अवस्थी के पानी में तैरे आवत रहे. उहंई त्यागी के पानी में पांव डाले के भी हिम्मत ना होत रहे. अवस्थी, सरकारी नौकरी चलते कबो आंदोलन के अगुआई ना कर सकत रहस, जबकि त्यागी आगू बढ़ के नेतृत्व करे के जानत रहस. दू गो अलग बाकिर समर्पित लोग मिलल आउर तब क्षेत्रीय विकास जन आंदोलन (केवीजेए- क्षेत्रीय विकास खातिर जनसंघर्ष) के जनम भइल.
केवीजेए में केतना सदस्य लोग रहे, एकर असल में कवनो गिनती ना रहे, बाकिर ऊ बढ़त चल गइल. त्यागी चुनाव लड़ ना सकत रहस. ऊ आपन माई भगवती देवी के नगर निगम चुनाव में खड़ा होखे खातिर मना लेलन, ताकि विकास खातिर अच्छा काम हो सके. भगवती देवी वोट गिनती के दिन पांच वोट से हारे वाला रहस. बाकिर उप जिला मजिस्ट्रेट (एडसीएम) अदालत में एगो अपील के बाद फइसला पलट गइल. साल 1997-2007 ले, ऊ टाउन एरिया चेयरमैन के पद पर रहली.
अब सबसे पहिल काम रहे, केवीजेए के पंजीकरण करनाई. लखनऊ में अवस्थी के जान-पहचान आउर हैसियत के बावजूद ई काम ना हो सकल. एहि से आंदोलन में नेता आउर विधायक लोग के खिलाफ ‘विकास नहीं, तो वोट नहीं’ आउर ‘विकास करो या गद्दी छोड़ो’ जइसन नारा लगावल गइल.
‘हमनी के उनकरा (सई नदी) से बहुते लगाव रहे. उनकरे चलते हमनी के कुइंया में दसे फीट पर मीठ पानी मिल जात रहे. जबो बरसात आवे, ऊ हमनी के घर तक चल आवत रहस’
अबले तक गैर-पंजीकृत एह संगठन के पहिल बैठक भइल. ओह में कोई 3,000 लोग भगवती देवी के सुने खातिर 17 गो अलग-अलग प्रभावित गांव से परौली जुटल. परचा बांटल गइल. लिखल रहे, “हमनी तन-मन से एह आंदोलन खातिर अपना के समर्पित करत बानी. हमनी पाछू ना हटम. प्रतिज्ञा पत्र पर हमनी आपन खून से हस्ताक्षर करम. जबले बांड़ आउर परौली के बीच पुल ना बनी, हार ना मानम.” हर परचा में ‘लाल होगा हमारा झंडा, क्रांति होगा काम’ के संगे हस्ताक्षर कइल रहे.
अइसन 1,000 से जादे परचा बांटल गइल. लोग एकरा पर आपन खून से हस्ताक्षर कइलक, केहू अंगूठा लगइलक.
एकरा बाद पुल बने से प्रभावित होखे वाला सभे 17 गांव के दौरा कइल गइल. त्यागी इयाद करत बाड़े, “लोग आपन साइकिल उठावे, ओह पर बिछौना बांधे आउर चल देवे. कवनो तरह के जादे तइयारी के जरूरत ना रहे.” यात्रा जवन गांव में पहुंचे के रहत रहे, उहंवा पहिले से संदेश भेज देहल जात रहे. डुगडुगी (छोट ढोल) बजाके लोग के आवे के बारे में बतावल जात रहे.
एकरा बाद त्यागी के माई के अगुआई में सभे लोग नदी किनारे जुटे. लोग के बीच उनकर बहुते सम्मान रहे. धरना के आगाज करे खातिर अवस्थी, नदी किनारे के आपन खेत दे देले रहस. आंदोलनकारी लोग धरना स्थल के बांस के छड़ी से घेर देले रहे. रात में रुके वाला खातिर इहंई भूसा के छतरी बनावल गइल. सात लोग के झुंड बारी-बारी से धरना पर बइठे आउर 24 घंटा के धरना पूरा करे. प्रतिरोध के जनगीत गावल जाए. जब मेहरारू लोग बइठे त ऊ लोग भजन गावे. ओह लोग के चारो ओरी मरद लोग घेरा बना लेवे ताकि कवनो तरह के अप्रिय घटना ना घटे. आंदोलनकारी लोग के सुविधा खातिर अवस्थी उहंवा हैंडपंप भी लगवा देले रहस. अइसे, उहंवा पानी वाला सांप के डर हरमेसा रहत रहे. बाकिर सुकर बा कि अइसन कवनो घटना ना भइल. जिला पुलिस के स्थानीय खुफिया विभाग विरोध प्रदर्शन आउर धरना पर बीच-बीच में निगरानी रखले रहत रहे. बाकिर अफसोस कि आंदोलन कर रहल लोग से बात करे, मांग सुने खातिर कवनो अधिकारी चाहे निर्वाचित प्रतिनिध लोग उहंवा ना आइल.
प्रदर्शन-धरना के बीच, साल 1996 में विधान सभा चुनाव आ गइल. गांव वाला लोग एकर पूरा तरह से बहिष्कार कइलक. गांव के लोग से ना केवल मतदान से दूर रहे के आह्वान कइल गइल, बलुक मतदान करे के बहाने मतपेटी सभ में पानी भी डालल गइल. स्कूल के लरिकन सभ मिलके राज्य के गवर्नर, मोतीलाल वोरा के 11,000 चिट्ठी लिखलक, जेकरा बोरी में भरके भेजल गइल.
अब अवस्थी आउर त्यागी लोग आपन लड़ाई के आगू लखनऊ ले जाए के फैसला कइलक. त्यागी जिलाधिकारी आउर एसडीएम के चिट्ठी लिख के चेतावनी देलन कि जदि ओह लोग के आगू भी अनदेखी कइल गइल, त जनता आपन ताकत देखावे के तइयार बा. लखनई निकले से पहिले, एगो अंतिम कोसिस कइल गइल. आठ किलोमीटर दूर माधोगंज शहर में एगो साइकिल रैली कइल गइल. सड़क पर जब 4,000 साइकल पोस्टर, बैनर आउर झंडा लेले निकलल, त मीडिया के कान खड़ा भइल. कुछ स्थानीय रिपोर्टर लोग एह मुद्दा के उठइलक. अइसन जानकारी भी मिलल कि कुछ आंदोलनकारी लोग, मांग पूरा ना होखे के स्थिति में, डीएम के जीप नदी में धकेले के प्लान कइले बा.
कुछ हफ्ता बाद, 51 ट्रैक्टर पर लोग मिलके जिलाधिकारी के ऑफिस के घेराव कइलक. बाकिर ऊ प्रदर्शनकारी सभ से बाहिर आके मिले से इंकार कर देले.
अब लखनई गइल बिना कवनो चारा ना बचल. लखनऊ में गवर्नर के आवास औह लोग के अगिला पड़ाव रहे. मांग पत्र छपवावल गइल, ओह पर लोग खून से आपन हस्ताक्षर कइलक. हर गांव खातिर एगो आदमी नियुक्त कइल गइल जेकर काम आपन गांव के लोग के यात्रा खातिर तइयार करनाई रहे. मेहरारू लोग के ई सभ से दूर रखल गइल रहे. बाकिर त्यागी के माई कहां माने वाला रहस. ऊ जिद कइली कि जहंवा उनकर लइका जइहन ऊहो जइहन.
अप्रिल 1995 में परौली से कुछ 20 किलोमीटर के यात्रा करके 14 ठो बस संडीला पहुंचल. एह सभ के राज्य रोडवेज निगम के एगो अधिकारी गुप्त रूप से प्रायोजित कइले रहस. बिहान में 5 बजे हमनी सभे कोई लखनऊ पहुंचल. कवनो आंदोलनकारी के शहर के रस्ता के जानकारी ना रहे से भटकत भटकत लोग महात्मा गांधी मार्ग पर गवर्नर हाउस पहुंचे में 11 बजा देलक.
“ओह दिन जबरदस्त हंगामा भइल. देखत-देखत पुलिस के 15 गो जीप हमनी के चारो ओरी से घेर लेलक. कुछ पुलिस वाला घोड़ा पर चढ़ल रहे. वाटर कैनन (पानी के लमहर बड़ पाइप) आ चुकल रहे. पुलिस हमरा के जमीन पर घसीटे लागल, त माई चिल्लात हमरा ऊपर गिर पड़ली, कि बेटा से पहिले ऊ जेल जइहन,” त्यागी बतइले. कुछ प्रदर्शनकारी ई सभ देख भाग गइले. दोसरा लोग के हरदोई के राजनीतिक प्रतिनिधि लोग पहुंच के बचा लेलक. देह से हारल, बाकिर मन से जीतल लोग के झुंड ओह रात 12 बजे वापिस हरदोई पहुंचल. उंहवा गेंदा के माला से सभे के स्वागत भइल.
अबले पुल खातिर लड़ाई के मोटा-मोटी डेढ़ साल हो गइल रहे. लखनऊ में भइल घेराबंदी बड़ पैमाना पर हलचल मचा देले रहे.
लखनऊ के घेराबंदी के बाद सबसे पहिले जे हमनी से मिलल, ऊ सहकारिता मंत्री राम प्रकाश त्रिपाठी रहस. ऊ आंदोलकारी लोग के पूरा बात सुनले आउर लोक निर्माण विभाग मंत्री कलराज मिश्र से भेंट कइले. भेंट करके ऊ ना खाली प्रदर्शनकारी के मांग, बलुक एह सच्चाई से भी अवगत करइले कि जदि आंदोलन इहे तरहा जारी रहल त क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आपन समर्थन खो दीही.
एकरा पहिले कि मिश्रा दखल देते, प्रदर्शनकारी लोग फइसला कइलक कि जदि ओह लोग के मांग ना मानल जाई त ऊ लोग अपना के आग लगा लीही. आउर एह इरादा के मीडिया के आगे घोषणा कर देहल गइल. पुलिस फौरन कदम उठइलक आउर त्यागी के भाई ह्रदयनाथ सहित बहुते आंदोलनकारी लोग के गिरफ्तार कर लेहल गइल.
साल 1997 में, 13 अगस्त के हरदोई के डीएम के अगुआई में एगो टीम, अंतत: प्रदर्शनकारी से मिले के तय कइलक. आंदोलनकारी लोग खातिर त्यागी अब उनकर नेता, नायक रहस. लखनई में, प्रदर्शन के पइसा से मदद देवे वाला अवस्थी के रिहा कर देहल गइल. कुछ महीना बाद, पुल के मंजूरी मिल गइल. अइसे त, पुल बनावे खातिर जे पइसा के दू गो किस्त बरिस भर विरोध कइला के बादे आइ.
साल 1998 में, 14 जुलाई के तइयार पुल के लोक निर्माण मंत्री उद्घाटन कइलन. उनकरा बतावल गइल रहे कि गांव के लोग आभार जतावे खातिर उनकरा के प्रतीक के रूप में सिक्का से तौली. बाकिर अइसन ना भइला पर ऊ आपन उद्घाटन भाषण में एह बात पर चुटकी लेवे से बाज ना अइलन.
पुल खातिर सभे 17 गांव के लोग गोलबंद भइल रहे, सभे खातिर आजू जश्न के दिन रहे. अवस्थी के इयाद आवत बा, “ऊ दिन दिवाली से भी जादे रोशन रहे, होली से भी जादे रंगीन.”
लगभग एकरा तुरंते बाद, सई नदी सिमटे के सुरु कर देली. बरसाती नदी जे कबो साल भर शान से बहत रहस, बरसात में कहर ढाए लगली. बरिस बीते के साथे-साथे कमजोर होखे लगली.
अइसे, खाली सई के भाग अइसन ना रहे - बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में स्कूल फॉर एनवायरमेंटल साइंसेज के प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता के कहनाम बा, “दुनिया भर के नदी एह घटे-बढ़े के परेसानी से जूझ रहल बा. कबो बारहमासी रह चुकल नदी (सई जेका) में पानी आउर बहाव अब सुस्त, आउर बरसात पर निर्भर हो गइल बा. साल 1984 से 2016 के बीच जुटाइल जानकारी के हिसाब से भूजल आउर बेसफ्लो (नदी के आधार प्रवाह) घट रहल बा.”
बेसफ्लो (नदी के आधार प्रवाह) मतलब नदी के तल के नीचे के पानी, जे नदी के बहाव या प्रवाह के बनाए रखे में मदद करेला. आउर आधार प्रवाह पर भूजल के घटे-बढ़े के बहुते असर होखेला. भूजल के मतलब धरती के नीचे के पानी. अइसन भंडार जेकरा नदी सूखला पर काम में लावल जाला. एक बेरा फेरु से, बेस फ्लो मतलब आज के नदी, आउर भूजल मतलब भविष्य के नदी. साल 1996 के बाद से 20 बरिस ले, यूपी में होखे वाला बरसात में 5 प्रतिशत के कमी देखल गइल बा.
जुलाई, 2021 में, उत्तर प्रदेश में भूजल के स्थिति पर वाटरएड के एगो रिपोर्ट आइल. ओह रिपोर्ट के हिसाब से, “जल स्तर में तेजी से आइल कमी चलते राज्य के भूजल पर आधारित नदी सभ पर गंभीर असर पड़ल बा. काहेकि भूजल प्रणाली से निकले वाला नदी, आउर आद्र भूमि के कुदरती बेसफ्लो या त बहुत कम हो गइल बा, या लगभग नदारद हो गइल बा. एकरा अलावे जल निकाय आउर ओकर जलग्रहण के इलाका पर बड़ा पैमाना पर अतिक्रमण से संकट आउर गहिर हो गइल… बेसफ्लो कम होखे से भूजल प्रणाली पर निर्भर नदी आउर उनकर पारिस्थितिक प्रवाह के संगे-संगे सतह पर होखे वाला जल भंडारण पर गंभीर सकंट आ गइल बा. गोमती नदी आउर एकर सहायक नदी सभ संगे-संगे राज्य के दोसर बहुते नदी भूजल से पोषित होखेला. बाकिर भारी निकासी आउर बाद में नदी के जलग्रहण क्षेत्र के भूजल स्तर में गिरावट, नदी के बहाव के गंभीर रूप से प्रभावित कइले बा.”
एह सभ आपदा के संगे-संगे, जिला के एगो तेसर समस्या से जूझे के पड़त बा. एगो अध्ययन के मुताबिक हरदोई में साल 1997 से 2003 के बीच 85 प्रतिशत आद्र भूमि समाप्त हो गइल.
परौली में ऊ लोग के भी बदलाव साफ नजर आवत बा, जिनका विज्ञान से जादे कुछ लेना-देना नइखे. जइसे कि बस दू दशक में गांव के सभे छव कुइंया सूख गइल. कुइंया पर होखे वाला सभे पूजा-पाठ, रीत रिवाज (नयका दुल्हिन के हाथ से पूजा) खत्म हो गइल. गरमी में सई एगो पातर धार भर रह जाली.
शिवराम सक्सेना, 47 बरिस, जइसन किसान लोग खातिर गरमी में नदी में तैरल सबसे बड़ आनंद होखत रहे. ऊ लोग अब नदी में पांव धरे के भी ना चाहेला. ऊ घुटना भर पानी में ठाड़ कहे लगले, “ई हमार सुंदर साफ नदी नइखी रह गइल, जेकरा संगे हमनी जवान भइनी.” शिवराम के घुटना लगे एगो जनावर के शव तैरत पहुंच गइल बा.
अवस्थी के बाऊजी देवी चरण एगो पतरौल (जमीन नापे वाला, सिंचाई विभाग खातिर नियुक्त कइल एगो सरकारी आदमी) रहस. सई नदी के पानी से सिंचाई खातिर, नदी के परौली ओरी मोड़ेला ऊ एक छोट नहर बनवइलन. अब उहो सुखा गइल बा.
एकरा जगह, नदी के किनारे, खेतन में पानी पटावे खातिर डीजल से चले वाला पानी के पंप लगा देहल गइल.
सई खातिर लड़े वाला लोग के कमी ना रहे. ओह में से एगो, 74 बरिस के विंध्यवासनी कुमार बाड़े. ऊ राज्य के विधान परिषद के पूर्व सदस्य (1996-2002) रहस. साल 2013 में सई नदी किनारे भइल 725 किमी यात्रा के ऊ हिस्सा रह चुकल बाड़े. अबले ऊ 82 गो जनसभा, हजारन गाछ के रोपाई कर चुकले. एह सभ के पाछू उऩकर संदेश रहे कि गंगा के बचावे के बा, त एकर सहायक नदी सभ के रक्षा करे के होई.
प्रतापगढ़ जिला में जन्मल कुमार के कहनाम बा, “हम आपन जिनगी में सई नदी के सिसकत सिसकत मरत देखनी. नदी सिकुड़ गइल बा, पानी के स्रोत सूख गइल, एह में कारखाना के मलबा गिरावल जात बा, नदी के किनारा खेती खातिर कब्जा कर लेहल गइल बा, भूजल के जरूरत से जादे दोहन कइल गइल बा. केतना अफसोस के बात बा कि हमनी के नीति निर्माता एकरा के अनदेखा कर रहल बाड़े." सई प्रतापगढ़ जिला से भी गुजरेली.
नीति निर्माता भलही गायब हो रहल हमनी के नदी के दुर्दशा पर ध्यान ना देस, बाकिर आपन उपलब्धि के ढिंढोरा पीटे में पीछे ना रहस.
उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ 1 नवंबर साल 2022 के, इंडिया वाटर वीक के एगो अवसर पर दावा कइले कि राज्य में 60 गो से जादे नदी के पछिला कुछ बरिस में फेरु से जिंदा कइल गइल बा.
प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता के कहनाम बा कि नदी के कायाकल्प कइल कवनो ‘जादू’ के चीज नइखे, एह में बरिस बरिस के मिहनत आउर समय लागेला. इमानदारी कोसिस कइल जाव त कुछ बरिस में अइसन कइल जा सकेला. “बड़ जलाशय, झील, तालाब आउर झरना के मदद से खाली कुदरती रूप से नदी के फिर से भर के ही नदी में पानी वापिस लावल जा सकेला. फसल के चुनाव बीच बीच में बदलत रहे के होई. सही सिंचाई करके भी पानी के बचत कइल जा सकेला. आउर एकरा बाद भी, एगो नदी में दोबारा जान फूंके में 15-20 बरिस लाग जाला.” नदी पर राष्ट्रीय नीति के कमी पर भी अफसोस जतइले.
विंध्यवासनी कुमार के कहनाम बा स्कूल में स्थानीय भूगोल के अनिवार्य जानकारी देहल एगो दीर्घकालिक समाधान बा. ऊ सवाल करतारे, “जबले बच्चा लोग गाछ, जमीन आ नदी के बारे में जानी ना, बड़ा होके एकर देखभाल कइसे करी?”
उत्तर प्रदेश के भूजल विभाग के पूर्व वरिष्ठ हाइड्रोलॉजिस्ट आउर ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप के संयोजक रवींद्र स्वरुप सिन्हा के कहनाम बा कि नदी के फेरु से जिंदा करे खातिर ‘समग्र दृष्टिकोण’ के जरूरत बा.
"गंगा जइसन बिशाल नदी के फिर से जिंदा नइखे कइल जा सकत जबले ओकर भरण-पोषण करे वाला छोट धारा में फेरु से प्राण ना भरल जाव. व्यापक नजरिया अपनावल जाव त आंकड़ा के एक जगह जुटावे, ओकर विश्लेषण आउर प्रबंधन करे के जरूरत होखी. पानी के निकले के पूरा सीमा बांधे के पड़ी. मांग घटे, कम निकासी आउर भूजल के फिर से जिंदा करे खातिर एक होके कदम उठावे, भूजल आउर सतही जल के संतुलित इस्तेमाल खातिर जरूरी होखी."
सिंहा कहले, “नदी से खाली गाद निकाले आउर जलकुंभी हटावे से कुछो ना होई. एकरा से पानी के बहाव बस कुछ समय खातिर बढ़ जाला.”
ऊ इहे कहले, “भूजल, बरखा आउर नदी में आपस में एगो चक्रीय रिस्ता होखत रहे, जे टूट गइल बा.”
बरबादी दूनो तरफ से भइल बा- इंसान के बूता से बाहर के कारण आउर मानवजनति गतिविधि के नतीजा.
सिन्हा के मानल जाव त, “हरित क्रांति हमनी के भूजल पर निर्भरता बढ़ा देलक. गाछ कम हो गइल. बरखा के पैटर्न बदल गइल- एक समान बरखा के बजाय, थोड़िका दिन में जादे बरखा. एकर मतलब बारिश के जादे पानी बह के गायब हो जाना, काहे कि एकरा जमीन के भीतर रिस के जाए के समय ना होखेला. भूजल दुर्लभ हो जाला आउर एह तरीका से हमनी के नदी के देवे खातिर एकरा लगे जादे पानी ना बचे.”
एतना के बावजूद सरकारी बिकास नीति भूजल के मुस्किल से एगो कारक मानेला. सिन्हा दू गो उदाहरण देले- पहिल, राज्य में मौजूदा सरकार के कार्यकाल में ट्यूबवेल के गिनती 10,000 से बढ़के 30,000 हो गइल. आउर दोसर, हर घर जल योजना के जेकर मकसद घरे-घरे जल पहुंचावे के रहे.
सिन्हा जरूरी कदम सभ के गिनावत बाड़े जेह में नदियन के मानचित्रण, भूजल के हालत. आकृति विज्ञान आउर ऑक्सबो झील (यू आकार के जलाशय, उपग्रह मानचित्र) शामिल बा.
अधिक संतुलित नजरिया अपनावे के जगह सरकार आंकड़ा के उलझावे में लागल बा. उदाहरण लीहीं, साल 2015 में डार्क जोन (जहंवा भूजल खतरनाक स्तर पर नीचे गिर गइल बा) के गिनती करे घरिया, सरकार भूजल निकासी के मापे से ही पीछा छोड़ावे के फैसला कइलक. तब से गणना खाली जमीन द्वारा सोखे वाला पानी के अनुमान पर निर्भर बा.
आजाद नगर में, बीमार त्यागी सई नदी तक चल के जाए से मजबूर बाड़े. ऊ कहत बाड़े, “एकरा हालत के बारे में जइसन सुने में आवेला, ओह हिसाब से एकरा देखल हमरा खातिर असहनीय होई.”
अवस्थी के कहनाम बा नदी (पुल आउर नहर सहित) के रोके के इंसानी कोसिस एगो दुर्घटना साबित भइल. आज हमनी लगे पुल त बा, बाकिर ओकरा नीचे से कवनो नदी ना बहे. एकरा से बड़ त्रासदी आउर का हो सकत बा?”
अनुवाद: स्वर्ण कांता