ସେ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ରାତ୍ରୀଭୋଜନ‌ ‌ଶେଷ‌ ‌କଲେ,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଟେଲିଭିଜନ‌ ‌ପାଖକୁ‌ ‌ନ‌‌ ‌‌ଯିବାକୁ‌ ‌ସ୍ଥିର‌ ‌କଲେ,‌ ‌ଯାହାକି‌ ‌ସେ‌ ‌ସବୁଦିନ‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ଆଜି‌ ‌ରାତିରେ‌ ‌ପିଲାମାନେ‌ ‌ଭାତ‌ ‌ସାଙ୍ଗରେ‌ ‌ସେଜ୍‌ୱାନ୍‌‌ ‌ସସ୍‌ରେ‌ ‌ପରିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଅଡ଼ି‌ ‌ବସିଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ସେଦିନ‌ ‌ସକାଳେ‌ ‌ପରିବାବାଲା‌ ‌ପାଖରେ‌ ‌ଲାଲ‌ ‌କି‌ ‌ହଳଦିଆ‌ ‌କ୍ୟାପ୍‌ସିକମ୍‌‌ ‌ନଥିଲା‌ ‌।‌ ‌‌“‌ମଣ୍ଡି‌ ‌ବନ୍ଦ୍‌‌ ‌କର‌ ‌ଦିୟା,‌ ‌ମ୍ୟାଡାମ୍‌‌ ‌।‌ ‌ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ତୋ‌ ‌ହୈ‌ ‌ହି,‌ ‌ଉପର‌ ‌ସେ‌ ‌କର୍ଫ୍ୟୁ‌ ‌।‌ ‌ସବ୍‌ଜି‌ ‌କହାଁସେ‌ ‌ଲାୟେଁ‌ ‌?‌ ‌ୟେ‌ ‌ସବ୍‌‌ ‌ଭି‌ ‌ଅଭି‌ ‌ଖେତ୍‌‌ ‌ସେ‌ ‌ଲେ‌ ‌କେ‌ ‌ଆତେ‌ ‌ହୈ‌‌ ‌(ମାର୍କେଟ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ଅଛି‌ ‌ମ୍ୟାଡାମ୍‌‌ ‌।‌ ‌ଏ‌ ‌ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ସମୟରେ‌ ‌ପରିବା‌ ‌କେଉଁଠୁ‌ ‌ପାଇବୁ,‌ ‌ଆଉ‌ ‌ଏବେ‌ ‌କର୍ଫ୍ୟୁ‌ ‌?‌ ‌ଏ‌ ‌ସବୁ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌କ୍ଷେତରୁ‌ ‌ଆଣିଛି)‌’’‌,‌ ‌ସବୁଦିନ‌ ‌ଠେଲାଗାଡ଼ିରେ‌ ‌ସେଇ‌ ‌ଏକା‌ ‌ପ୍ରକାର‌ ‌ପୁରୁଣା‌ ‌‌ସବ୍‌ଜି‌ ‌ଆଣୁଥିବା‌ ‌କଥା‌ ‌ନେଇ‌ ‌ସେ‌ ‌ଅଭିଯୋଗ‌ ‌କରିବାରୁ‌ ‌ପରିବାବାଲା‌ ‌କ୍ଷୋଭର‌ ‌ସହ‌ ‌କହିଥିଲେ‌ ‌।‌

ପରିବାବାଲା‌ ‌ଜଣକ‌ ‌କିଛି‌ ‌ସମୟ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଜୀବନ‌ ‌ସଂଘର୍ଷ‌ ‌କଥା‌ ‌କହି‌ ‌ଚାଲିଥିଲେ,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ସେ‌ ‌ଶୁଣିବା‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌କରିଦେଇଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ପିଲାଙ୍କ‌ ‌ଚାହିଦା‌ ‌ଅନୁସାରେ‌ ‌ରାତ୍ରୀଭୋଜନ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌କିଛି‌ ‌ସୃଜନାତ୍ମକ‌ ‌ରୋଷେଇ‌ ‌କରିବାର‌ ‌ଆବଶ୍ୟକତା‌ ‌କଥା‌ ‌ସେ‌ ‌ଚିନ୍ତା‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ପରିଶେଷରେ‌ ‌ସେ‌ ‌ଖୁସି‌ ‌ହୋଇଥିଲେ‌ ‌ଯେ,‌ ‌ସେ‌ ‌ଯାହା‌ ‌ଚିନ୍ତା‌ ‌କରିଥିଲେ‌ ‌ତାହା‌ ‌ହିଁ‌ ‌ହେଲା‌ ‌ଏବଂ‌ ‌କୋକ୍‌‌ ‌ସହିତ‌ ‌ଚାଇନିଜ୍‌-ଥାଇ‌ ‌ଗ୍ରେଭି‌ ‌ପରଷା‌ ‌ପିଲାମାନଙ୍କୁ‌ ‌ଶାନ୍ତ‌ ‌କରିଦେଇଥିଲା‌ ‌।‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଆଜିକାଲି‌ ‌ସେ‌ ‌ଟେଲିଭିଜନ୍‌‌ ‌ଦେଖି‌ ‌ଖୁସି‌ ‌ହେଉ‌ ‌ନଥିଲେ‌ ‌।‌

ନ୍ୟୁଜ୍‌‌ ‌ଚ୍ୟାନେଲ୍‌ଗୁଡ଼ିକ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌ସବୁଠୁ‌ ‌ଅଧିକ‌ ‌ଅରୁଚିକର‌ ‌ମନେ‌ ‌ହେଉଥିଲା‌ ‌।‌ ‌ସ୍କ୍ରିନ୍‌‌ ‌ଉପରେ‌ ‌ସେଇ‌ ‌ସମାନ‌ ‌ଚିତ୍ରକୁ‌ ‌ବାରମ୍ବାର‌ ‌ଦେଖାଇ‌ ‌ଦିଆଯାଉଥିଲା‌ ‌।‌ ‌ବିନା‌ ‌ପାଣିରେ‌ ‌ବସ୍ତିରେ‌ ‌ରହୁଥିବା‌ ‌ଦରିଦ୍ର‌ ‌ଲୋକେ,‌ ‌ସୁରକ୍ଷା‌ ‌ଉପକରଣ‌ ‌ନଥିବା‌ ‌ସଫେଇ‌ ‌କର୍ମଚାରୀ,‌ ‌ଆଉ‌ ‌ସବୁଠୁ‌ ‌ଖରାପ‌ ‌କଥା‌ ‌ହେଲା-‌ ‌ଘର‌ ‌ବାହୁଡ଼ା‌ ‌ବେଳେ‌ ‌ଅଧାବାଟରେ‌ ‌ଅଟକି‌ ‌ରହିଥିବା‌ ‌ଲକ୍ଷ‌ ‌ଲକ୍ଷ‌ ‌ଭୋକିଲା‌ ‌ପ୍ରବାସୀ‌ ‌ଶ୍ରମିକ,‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ବଡ଼‌ ‌ବଡ଼‌ ‌ନଗରୀରେ‌ ‌ଫସି‌ ‌ଯାଇଥିଲେ,‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ଓ‌ ‌ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟସେବା‌ ‌ବିନା,‌ ‌କେତେ‌ ‌ଜଣ‌ ‌ତ‌ ‌ଆତ୍ମହତ୍ୟା‌ ‌କରିଥିଲେ,‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଅନେକ‌ ‌ପ୍ରତିବାଦ‌ ‌କରୁଥିଲେ,‌ ‌ଦାବି‌ ‌କରୁଥିଲେ,‌ ‌ରାସ୍ତାରେ‌ ‌ଦଙ୍ଗା‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌।

ପାଗଳଙ୍କ‌ ‌ଭଳି‌ ‌ଇତସ୍ତତଃ‌ ‌ଘୂରି‌ ‌ବୁଲୁଥିବା‌ ‌ଉଇମାନଙ୍କର‌ ‌ଦୃଶ୍ୟକୁ‌ ‌ଆଉ‌ ‌କେତେ‌ ‌ସମୟ‌ ‌ଧରି‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ଦେଖିପାରିବ‌ ‌?‌ ‌ଏଥର‌ ‌ସେ‌ ‌ହ୍ୱାଟ୍‌ସଆପ୍‌କୁ‌ ‌ଫେରିଗଲେ,‌ ‌ଯେଉଁଠି‌ ‌ଗୋଟିଏ‌ ‌ଗ୍ରୁପ୍‌ରେ‌ ‌ବନ୍ଧୁମାନେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ନବ‌ ‌ଆବିଷ୍କୃତ‌ ‌ବ୍ୟଞ୍ଜନ‌ ‌କଳା‌ ‌ପ୍ରଦର୍ଶନ‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ସେ‌ ‌ନିଜ‌ ‌ଡିନର୍‌‌ ‌ଟେବୁଲରୁ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ନିଜର‌ ‌ଚିତ୍ରଟିଏ‌ ‌ଉଠାଇ‌ ‌ପଠାଇ‌ ‌ଦେଲେ‌ ‌।‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌ଏକ‌ ‌ଗ୍ରୁପ୍‌ର‌ ‌ସଦସ୍ୟମାନେ‌ ‌ମୁମ୍ବାଇର‌ ‌ବ୍ରିଚ୍‌‌ ‌କାଣ୍ଡି‌ ‌କ୍ଲବ୍‌‌ ‌ନିକଟ‌ ‌ସମୁଦ୍ରରେ‌ ‌କ୍ରୀଡ଼ାକୌତୁକରେ‌ ‌ମାତିଥିବା‌ ‌ଡଲ୍‌ଫିନ୍‌,‌ ‌ନବୀ‌ ‌ମୁମ୍ବାଇରେ‌ ‌ରାଜହଂସ,‌ ‌କୋଝିକୋଡ଼‌ ‌ରାସ୍ତାରେ‌ ‌ବୁଲୁଥିବା‌ ‌ମାଲାବାର‌ ‌ଅଞ୍ଚଳର‌ ‌ବଣୁଆ‌ ‌ବିଲେଇ,‌ ‌ଚଣ୍ଡୀଗଡ଼ରେ‌ ‌ସମ୍ବର‌ ‌ହରିଣର‌ ‌ଭିଡିଓ‌ ‌ପଠାଉଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ହଠାତ୍‌‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଆଖିରେ‌ ‌ପଡ଼ିଲା,‌ ‌ଧୀରେ‌ ‌ଧୀରେ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ମୋବାଇଲ‌ ‌ଫୋନ୍‌‌ ‌ଉପରକୁ‌ ‌ମାଡ଼ି‌ ‌ଯାଉଥିବା‌ ‌ନାଲି‌ ‌ପିମ୍ପୁଡ଼ିମାନଙ୍କର‌ ‌ଏକ‌ ‌ଲମ୍ବା‌ ‌ଧାର‌ ‌...‌

ସୁଧନ୍ୱା‌ ‌ଦେଶପାଣ୍ଡେଙ୍କ‌ ‌କବିତା‌ ‌ଆବୃତ୍ତି‌ ‌ଶୁଣନ୍ତୁ‌

The paintings with this poem is an artist's view of the march of the 'ants'. The artist, Labani Jangi, is a self-taught painter doing her PhD on labour migrations at the Centre for Studies in Social Sciences, Kolkata

ଏହି‌ ‌କବିତା‌ ‌ସହିତ‌ ‌ସ୍ଥାନିତ‌ ‌ଚିତ୍ରକଳାରେ‌ ‌‘ପିମ୍ପୁଡ଼ିମାନଙ୍କ’‌ ‌ଯାତ୍ରା‌ ‌ସଂପର୍କରେ‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀଙ୍କ‌ ‌ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ‌ ‌ସନ୍ନିହିତ‌ ‌ ।‌ ‌ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ‌ ‌ଜଣକ‌ ‌ହେଲେ‌ ‌ଲବଣୀ‌ ‌ଜାଙ୍ଗି,‌ ‌ସଂପ୍ରତି‌ ‌କୋଲକାତାର‌ ‌ସେଣ୍ଟର‌ ‌ଫର‌ ‌ଷ୍ଟଡିଜ୍‌‌ ‌ଇନ୍‌‌ ‌ସୋସିଆଲ‌ ‌ ସାଇନ୍‌ସେସ୍‌ରେ‌ ‌ଶ୍ରମିକ‌ ‌ପ୍ରବାସନ‌ ‌ପ୍ରସଙ୍ଗରେ‌ ‌ପିଏଚ୍‌ଡି‌ ‌କରୁଥିବା‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ଆତ୍ମ-ଶିକ୍ଷିତ‌ ‌ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ‌ ‌।‌

ନାଲି‌ ‌ପିମ୍ପୁଡ଼ି‌

ଛୋଟ‌ ‌ଛୋଟ‌ ‌ନାଲି‌ ‌ପିମ୍ପୁଡ଼ି‌ ‌
ରନ୍ଧାଘର‌ ‌କବାଟ‌ ‌ଚଉକାଠର‌ ‌ ‌
ଡାହାଣ‌ ‌ପଟ‌ ‌ତଳ‌ ‌କୋଣ‌ ‌ପାଖ‌ ‌
ଛୋଟ‌ ‌ଏକ‌ ‌ବସତିରୁ‌ ‌ବାହାରିଲେ‌ ‌
ସରଳରେଖାଟିଏରେ‌ ‌ଚାଲି‌ ‌ଚାଲି‌ ‌
ଆଗ‌ ‌ଉପରକୁ‌ ‌ଗଲେ‌ ‌
ତା‌’‌ପରେ‌ ‌ବାମକୁ‌ ‌
ଏବଂ‌ ‌ପରେ‌ ‌ତଳକୁ‌ ‌
ଏବଂ‌ ‌ତା‌’‌ପରେ‌ ‌ପୁଣି‌ ‌ଏକ‌ ‌ସରଳରେଖାରେ‌ ‌
ରନ୍ଧାଘର‌ ‌ପିଣ୍ଡିକୁ‌ ‌ଘେରି‌ ‌ ‌
ଗୋଟିକିଆ‌ ‌ଧାଡ଼ିରେ‌ ‌ଚାଲିଥିଲେ‌ ‌
ଜଣକ‌ ‌ପରେ‌ ‌ଆଉ‌ ‌ଜଣେ‌ ‌
ଦଳେ‌ ‌ଶୃଙ୍ଖଳିତ‌ ‌ଶ୍ରମିକଙ୍କ‌ ‌ଭଳି‌।‌

ସେମାନେ‌ ‌ତ‌ ‌ସବୁଥର‌ ‌ଆସୁଥିଲେ‌ ‌
ମା‌’‌ଙ୍କ‌ ‌ହାତରୁ‌ ‌ଯେବେ‌ ‌ଚିନି‌ ‌ଟିକେ‌ ‌ଛିଟିକି‌ ‌ପଡୁଥିଲା‌ ‌
କିମ୍ବା‌ ‌ରନ୍ଧାଘର‌ ‌ଚଟାଣରେ‌ ‌
ମଲା‌ ‌ଅସରପାଟିଏ‌ ‌ପଡ଼ିଥିଲା‌।‌ ‌
ଗୋଟି‌ ‌ଗୋଟି‌ ‌ଶସ୍ୟର‌ ‌ଦାନାକୁ‌ ‌ଟାଣିନେଇ‌ ‌
କିମ୍ବା‌ ‌ଏକ‌ ‌ସଂପୂର୍ଣ୍ଣ‌ ‌ମୃତଶରୀରକୁ‌ ‌ବୋହି‌ ‌ନେଇ‌ ‌
ସେଇ‌ ‌ଏକାଭଳି‌ ‌ଶୃଙ୍ଖଳିତ‌ ‌ଧାରାରେ‌ ‌
ପିମ୍ପୁଡ଼ିମାନେ‌ ‌ଫେରିଯିବାର‌ ‌
‌ଦୃଶ୍ୟ‌ ‌ଦେଖି‌ ‌ଦେଖି‌ ‌
ତାକୁ‌ ‌ବାନ୍ତି‌ ‌ବାନ୍ତି‌ ‌ଲାଗୁଥିଲା‌।`‌ ‌
ଖୁବ୍‌‌ ‌ଜୋର୍‌ରେ‌ ‌ସେ‌ ‌ଚିତ୍କାର‌ ‌କରିଉଠୁଥିଲା‌ ‌
ଆଉ‌ ‌ତାକୁ‌ ‌ଉଦ୍ଧାରିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌
ମା‌’‌‌ ‌ଧାଇଁ‌ ‌ଆସୁଥିଲେ‌।‌

ଆଜି,‌ ‌ସତେ‌ ‌ଯେମିତି‌ ‌ରାଗ‌ ‌ଶୁଝାଇବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌
ସେମାନେ‌ ‌ତା‌ ‌ଘରେ‌ ‌ଧସେଇ‌ ‌ପଶିଲେ‌ ‌
ସେ‌ ‌ଆଚମ୍ବିତ‌ ‌ହେଲା‌ ‌
କେମିତି‌ ‌ପଶିଲେ‌ ‌ରାତି‌ ‌ଅଧରେ‌ ‌
ଏକ‌ ‌ଦୁଃସ୍ୱପ୍ନ‌ ‌ଭଳି,‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ସେଠାରେ‌ ‌ହିଁ‌ ‌ଥିଲେ‌ ‌
ଅଗଣିତ‌ ‌ନାଲି‌ ‌ପିମ୍ପୁଡ଼ି‌ ‌
ତା‌’‌ରି‌ ‌ଘର‌ ‌ଭିତରେ‌।‌
ନା‌ ‌ଧାଡ଼ିବାନ୍ଧି‌ ‌ଥିଲେ‌ ‌
ନା‌ ‌ଥିଲା‌ ‌ବିନ୍ୟାସ‌ ‌
ନା‌ ‌ଶୃଙ୍ଖଳା‌ ‌
ସେମାନେ‌ ‌ବାହାରି‌ ‌ଆସିଲେ‌ ‌
ସେମାନଙ୍କ‌ ‌ସବୁ‌ ‌ବସତିରୁ‌ ‌
ଯେମିତି‌ ‌ଆଗରୁ‌ ‌ବାହାରୁଥିଲେ‌ ‌
ଯେତେବେଳେ‌ ‌ମା‌’‌ ‌
ସେମାନଙ୍କ‌ ‌ମନ୍ଦା‌ ‌ଉପରେ‌ ‌
କିଛି‌ ‌ଗାମାକ୍‌ସିନ୍‌‌ ‌ପାଉଡର‌ ‌ପକାଉଥିଲେ‌ ‌
ଉଚ୍ଛୃଙ୍ଖଳ,‌ ‌ଉନ୍ମତ୍ତ‌ ‌ଭଙ୍ଗୀରେ‌ ‌
ଶ୍ୱାସ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ସଂଘର୍ଷରତ‌ ‌ଅବସ୍ଥାରେ‌ ‌
ସେମାନେ‌ ‌ତା‌’‌‌ ‌ଘର‌ ‌ଭିତରକୁ‌ ‌ମାଡ଼ି‌ ‌ଚାଲିଲେ‌।‌

ଅବିଳମ୍ବ‌ ‌ସେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କୁ‌ ‌ଓଳେଇ‌ ‌ଦେଲା‌ ‌
ଦାଣ୍ଡଘରୁ‌ ‌ବାହାର‌ ‌କରି‌ ‌
ବଗିଚାରେ‌ ‌ଫିଙ୍ଗି‌ ‌ଦେଇ‌ ‌
ଭଲ‌ ‌ଭାବେ‌ ‌କବାଟ‌ ‌ଦେଇଦେଲା‌।‌
କିନ୍ତୁ‌ ‌ଠିକ୍‌‌ ‌ତା‌’‌‌ ‌ପରେ‌ ‌ପରେ‌ ‌
ସେମାନେ‌ ‌ପୁଣି‌ ‌ବାହାରିଲେ‌ ‌
ଏକାଥରେ‌ ‌ଲକ୍ଷ‌ ‌ଲକ୍ଷ‌ ‌ସଂଖ୍ୟାରେ‌ ‌
ଝରକା‌ ‌ତଳ‌ ‌କାଠ‌ ‌ପଛପଟୁ‌ ‌
କବାଟ‌ ‌ତଳ‌ ‌ଫାଙ୍କା‌ ‌ସ୍ଥାନରୁ‌ ‌
ସହଜରେ‌ ‌ଆଖିରେ‌ ‌ନ‌ ‌ପଡ଼ିବା‌ ‌ଭଳି‌ ‌ଜାଗାରୁ‌
କବାଟ‌ ‌ଚଉକାଠର‌ ‌ଫାଟରୁ‌ ‌
ଦାଣ୍ଡ‌ ‌କବାଟର‌ ‌ଛୋଟିଆ‌ ‌ଚାବି‌ ‌ରନ୍ଧ୍ରରୁ‌ ‌
ଗାଧୁଆ‌ ‌ଘର‌ ‌ନଳାର‌ ‌ଛିଦ୍ରରୁ‌ ‌
ଚଟାଣ‌ ‌ଟାଇଲ୍‌ରେ‌ ‌ଲାଗିଥିବା‌ ‌ ‌
ହ୍ୱାଇଟ୍‌‌ ‌ସିମେଣ୍ଟ‌ ‌ମଝିରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ଫାଙ୍କରୁ‌
ସୁଇଚ୍‌ବୋର୍ଡ‌ ‌ପଛ‌ ‌ପାଖରୁ‌ ‌
କାନ୍ଥର‌ ‌ଓଦାଳିଆ‌ ‌ଫାଟରୁ‌ ‌
କେବୁଲ‌ ‌ତାରର‌ ‌ଖୋଳ‌ ‌ଭିତରୁ‌ ‌
କପ୍‌ବୋର୍ଡର‌ ‌ଅନ୍ଧାରୁଆ‌ ‌କୋଣରୁ‌ ‌
ବିଛଣା‌ ‌ତଳର‌ ‌ଶୂନ୍ୟସ୍ଥାନରୁ‌ ‌ ‌
ନିଜ‌ ‌ଘର‌ ‌ଖୋଜୁଥିବା‌ ‌
ଆତଙ୍କିତ‌ ‌ପିମ୍ପୁଡ଼ି‌ ‌ସମୂହର‌ ‌ସୁଅ‌ ‌ଛୁଟେ‌
ଭଗ୍ନ,‌ ‌ବିଧ୍ୱସ୍ତ,‌ ‌ବିପର୍ଯ୍ୟସ୍ତ‌ ‌ମନ‌ ‌ନେଇ‌ ‌
ନିଜ‌ ‌ନିଜ‌ ‌ଜୀବନ‌ ‌ସନ୍ଧାନରେ‌ ‌
କାହା‌ ‌ଆଙ୍ଗୁଠି‌ ‌ମଝିରେ‌ ‌ଚାପି‌ ‌ହୋଇ‌ ‌
କାହା‌ ‌ପାଦ‌ ‌ତଳେ‌ ‌ଶ୍ୱାସରୁଦ୍ଧ‌ ‌ହୋଇ‌ ‌
କ୍ଷୁଧାର୍ତ୍ତ‌ ‌ଦଳ‌ ‌ ‌
ତୃଷାର୍ତ୍ତ‌ ‌ଦଳ‌ ‌ ‌
କ୍ରୋଧ‌ ‌ଜର୍ଜରିତ‌ ‌ଦଳ‌ ‌ ‌
ଦଳେ‌ ‌ନାଲି‌ ‌ଦଂଶନ‌ ‌
ଅଣନିଶ୍ୱାସୀ‌ ‌ହୋଇ‌ ‌ପଡ଼ିଥିବା‌ ‌
ଦଳ‌ ‌ଦଳ‌ ‌ନାଲି‌ ‌ପିମ୍ପୁଡ଼ି‌।‌

-ଲେଖିକାଙ୍କ‌ ‌ଦ୍ୱାରା‌ ‌ସ୍ୱଲିଖିତ‌ ‌ମୂଳ‌ ‌ଗୁଜରାଟୀ‌ ‌କବିତାରୁ‌ ‌ଅନୁଦିତ‌

ଆବୃତ୍ତି‌:‌‌ ‌ସୁଧନ୍ୱା‌ ‌ଦେଶପାଣ୍ଡେ,‌ ‌ଜନ‌ ‌ନାଟ୍ୟ‌ ‌ମଞ୍ଚର‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ଅଭିନେତ୍ରୀ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ନିର୍ଦ୍ଦେଶିକା‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଲେଫ୍‌ଟ‌ ‌ୱାର୍ଡ‌ ‌ବୁକ୍‌ର‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ସଂପାଦିକା‌

ଅନୁବାଦ:‌ ‌ଓଡ଼ିଶାଲାଇଭ୍‍‌

Pratishtha Pandya

प्रतिष्ठा पांड्या, पारी में बतौर वरिष्ठ संपादक कार्यरत हैं, और पारी के रचनात्मक लेखन अनुभाग का नेतृत्व करती हैं. वह पारी’भाषा टीम की सदस्य हैं और गुजराती में कहानियों का अनुवाद व संपादन करती हैं. प्रतिष्ठा गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा की कवि भी हैं.

की अन्य स्टोरी Pratishtha Pandya
Translator : OdishaLIVE

This translation was coordinated by OdishaLIVE– a dynamic digital platform and creative media and communication agency based out of Bhubaneswar. It handles news, audio-visual content and extends services in the areas of localization, video production and web & social media.

की अन्य स्टोरी OdishaLIVE