वीडियो देखें: शांतिपुर के आख़िरी हथकरघा बुनकर

पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले में स्थित शांतिपुर, कोलकाता से क़रीब 90 किलोमीटर दूर है. यह शहर और इसके आसपास के क़स्बे हथकरघे पर बुनी जाने वाली मुलायम और बेहतरीन क्वालिटी की साड़ियों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं.

हथकरघे के कपड़े की मांग भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी काफ़ी बनी हुई है. लेकिन तमाम वजहों के बीच पावरलूमों के बढ़ते ज़ोर और आय में गिरावट के कारण, देश के हुनरमंद बुनकर आजीविका चलाने के लिए सालों से संघर्ष कर रहे हैं. शांतिपुर में बहुत से बुनकरों ने हथकरघे पर काम करना छोड़ दिया है और काम की तलाश में पलायन कर गए हैं.

पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले में हथकरघे पर बुनी जाने वाली साड़ियों को शांतिपुरी साड़ियों के नाम से जाना जाता है. शांतिपुर-फुलिया क्षेत्र में हज़ारों हथकरघा समूह कपास, तसर और रेशम जैसे विभिन्न प्रकार के धागों से शांतिपुरी तांत, तंगैल और जामदानी साड़ियां बनाते हैं.

Perforated graphs such as these are given by artists to the weavers, which help them insert threads into the loom
PHOTO • Sinchita Maaji
From such threads emerge, after a multi-level intricate process, exquisite Santipuri handloom sarees
PHOTO • Sinchita Maaji

बाएं: कलाकार, बुनकरों को ऐसे ग्राफ़ देते हैं, जिनकी मदद से बुनकर करघों में धागे डालते हैं. दाएं: बहु-स्तरीय जटिल प्रक्रिया पूरी होने के बाद, इन धागों से उत्कृष्ट क्वालिटी की शांतिपुरी साड़ियां तैयार होती हैं

सिंचिता माजी ने यह वीडियो स्टोरी साल 2015-16 की पारी फ़ेलोशिप के तहत रिपोर्ट की थी.

अनुवाद: नेहा कुलश्रेष्ठ

Sinchita Maji

सिंचिता माजी, पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया में बतौर सीनियर वीडियो एडिटर कार्यरत हैं. वह एक स्वतंत्र फ़ोटोग्राफ़र और डाक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर भी हैं.

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Text Editor : Sharmila Joshi

शर्मिला जोशी, पूर्व में पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के लिए बतौर कार्यकारी संपादक काम कर चुकी हैं. वह एक लेखक व रिसर्चर हैं और कई दफ़ा शिक्षक की भूमिका में भी होती हैं.

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Translator : Neha Kulshreshtha

नेहा कुलश्रेष्ठ, जर्मनी के गॉटिंगन विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स) में पीएचडी कर रही हैं. उनके शोध का विषय है भारतीय सांकेतिक भाषा, जो भारत के बधिर समुदाय की भाषा है. उन्होंने साल 2016-2017 में पीपल्स लिंग्विस्टिक्स सर्वे ऑफ़ इंडिया के द्वारा निकाली गई किताबों की शृंखला में से एक, भारत की सांकेतिक भाषा(एं) का अंग्रेज़ी से हिंदी में सह-अनुवाद भी किया है.

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