फ़िल्म देखें: बहुरूपी कलाकार तमाम अलग किरदारों का रूप धर लेते हैं

राजू चौधरी कहते हैं, “हमें जीवित रहने के लिए बहुरूपी का यह काम करते रहना होगा. हमारे पास खेती करने के लिए कोई कृषि योग्य भूमि नहीं है. उनके जैसे बहुरूपी कलाकार बहुत सी धार्मिक और पौराणिक भूमिकाएं निभाते हैं.

इस फ़िल्म में चौधरी परिवार नज़र आता है. परिवार में माता-पिता और बच्चे, सभी बहुरूपी कलाकार हैं. ये बीरभूम ज़िले के बिशायपुर गांव के हैं और ज़्यादातर दिनों में नाटक परफ़ॉर्म करने के लिए अलग-अलग गांवों और क़स्बों की यात्रा करते रहते हैं.

एक दौर था जब यह लोककला पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाक़े में काफ़ी मशहूर हुआ करती थी, लेकिन अब यह विलुप्त हो रही है. इसके कलाकारों ने पीढ़ी दर पीढ़ी इसकी सेवा की है, लेकिन वे इससे मामूली कमाई ही करते हैं. चूंकि अब दर्शक तेज़ी से मनोरंजन के दूसरे विकल्पों की ओर जा रहे हैं, तो बहुरूपी परिवारों की युवा पीढ़ी इस पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हो रही है. चौधरी परिवार की तरह, तमाम लोगों के पास जीविकोपार्जन का कोई दूसरा साधन मौजूद नहीं हैं.

PHOTO • Ankan Roy & Sagarika Basu

चिदम चौधरी अपने पिता राजू की सहायता से एक बहुरूपी परफ़ॉर्मेंस के लिए मेक-अप लगा रहे हैं

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माला चौधरी ऐसे परिवार की अगुआ कलाकार हैं जो आज भी जीवनयापन के लिए इस कला पर निर्भर है

स्टोरी में इस फ़िल्म के शामिल किए गए संस्करण को अंकन रॉय (कैमरा) और सागरिका बसु (एडिटिंग) ने साल 2015 में शांतिनिकेतन के विश्वभारती विश्वविद्यालय में अपने डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट के रूप में बनाया था.

अनुवाद: अमित कुमार झा

Ankan Roy & Sagarika Basu

अंकन रॉय ने शांतिनिकेतन के विश्वभारती विश्वविद्यालय से पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है. सागरिका बसु साल 2016 की पारी इंटर्न हैं, और वह भी पूर्व में शांतिनिकेतन के विश्वभारती विश्वविद्यालय की छात्र रह चुकी हैं. सागरिका फ़िलहाल कोलकाता स्थित समाचार चैनल ‘24 घंटा’ में एडिटोरियल इंटर्न हैं.

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Translator : Amit Kumar Jha

अमित कुमार झा एक अनुवादक हैं, और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है.

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