प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा से एक हफ़्ते पहले, तेलंगाना के सिद्दीपेट ज़िले के धर्मराम गांव के 42 वर्षीय किसान, वरदा बलैया, अपना एक एकड़ खेत बेचने वाले थे. यह ज़मीन सिद्दिपेट और रामयमपेट को जोड़ने वाले हाइवे के किनारे स्थित है.

अक्टूबर में बेमौसम बारिश के कारण उनकी मकई की फ़सल नष्ट हो गई थी. साहूकारों और आंध्रा बैंक से लिए गए ऋणों (लोन) (कुल मिलाकर लगभग 8-10 लाख रुपए) पर ब्याज़ बढ़ रहा था. वह पैसों के बिना साहूकारों का सामना नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने चार एकड़ की ज़मीन के एक एकड़ के सबसे अधिक उपजाऊ हिस्से के लिए संभावित खरीदारों की तलाश शुरू कर दी थी.

नोटबंदी से पहले उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सिरीशा से कहा, "कोई ज़मीन ख़रीदने के लिए आया है."

साल 2012 में, बलैया काफ़ी आर्थिक दबाव में आ गए थे, जब उन्होंने सिरीशा की शादी के लिए 4 लाख रुपए का क़र्ज़ लिया था. आगे उन्हें चार बोरवेल लगवाने के लिए 2 लाख रुपए का क़र्ज़ और लेना पड़ा, जिसमें से तीन बोरवेल असफल साबित हुए. इन सब वजहों से उन पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ता गया.

कुछ महीने पहले, बलैया की छोटी बेटी, 17 वर्षीय अखिला,12वीं कक्षा में पहुंच गई; अखिला की बहन की उसी उम्र में शादी कर दी गई थी. बलैया, अखिला की शादी को लेकर चिंतित रहने लगे. वह अपने सभी क़र्ज़ों को चुकाकर मुक्ति चाहते थे.

PHOTO • Rahul M.

बलैया की छोटी बेटी अखिला और उसकी दादी: दोनों ने करी नहीं खाई और उनकी जान बच गई

धर्मराम गांव के लोगों का कहना है कि बलैया जिस ज़मीन को बेचना चाहते थे, वह हाईवे के ठीक बगल में स्थित है और उसे आसानी से एक एकड़ के लिए लगभग 15 लाख रुपए मिल जाते. इससे उनकी कई समस्याओं का समाधान हो जाता: मकई की फ़सल की बर्बादी के कारण क़र्ज़, ब्याज़ के लिए उनका पीछा करने वाले साहूकार और अखिला की शादी की चिंता.

लेकिन सरकार द्वारा 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के बाद बलैया की योजना उल्टी पड़ गई. उनका संभावित ख़रीदार पीछे हट गया. अखिला याद करती हैं, “मेरे पिता पहले तो ठीक थे. फिर, नोटबंदी की घोषणा के बाद नोटों का हाल देखकर उन्हें एहसास हुआ कि कोई भी उन्हें [ज़मीन के लिए] पैसे नहीं देगा. वह बहुत दुखी रहने लगे."

फिर भी, बलैया ने हार नहीं मानी और ख़रीदारों की तलाश जारी रखी. लेकिन उस बीच कई लोगों को लगा था कि उनकी बचत रातों-रात बेकार हो गई है. यहां कई लोगों के पास सक्रिय बैंक खाते तक नहीं हैं.

नोटबंदी के एक हफ़्ते बाद, 16 नवंबर तक, बलैया को एहसास हुआ कि कोई भी कुछ समय के लिए उनकी ज़मीन नहीं ख़रीद पाएगा. वह उस सुबह अपने खेत में गए और मकई की फ़सल खराब होने के बाद बोई गई सोयाबीन की फ़सल पर कीटनाशक का छिड़काव किया. शाम को उन्होंने अपने खेत में देवी मैसम्मा को भेंट के तौर पर एक मुर्गी काटी, और रात के खाने के लिए उसे साथ लिए घर लौट आए.

बलैया के घर पर चिकन केवल त्योहारों के दौरान पकाया जाता था या जब सिरीशा अपने पति के गांव से घर आती थी, तब बनता था. बलैया हमेशा ख़ुद ही मीट पकाते थे. आख़िरी बुधवार को, शायद वह चाहते थे कि उनका आख़िरी भोजन उत्सवपूर्ण हो; उस सप्ताह को भुलाने के लिए जिसने उनकी सबसे अच्छी संपत्ति को उनके सबसे बुरे सपनों में से एक में बदल दिया था. बलैया ने चिकन करी में कीटनाशक की गोलियां मिला दीं. उनके परिवार में किसी को नहीं पता था कि उन्होंने ऐसा किया है. बलैया के एक रिश्तेदार का कहना है, "वह अपने परिवार को भारी [वित्तीय] बोझ के साथ नहीं छोड़ना चाहते थे. इसलिए उसने उन सभी को साथ ले जाने का फ़ैसला किया."

रात के खाने के वक़्त बलैया ने एक शब्द नहीं बोला, लेकिन जब उनके 19 वर्षीय बेटे प्रशांत ने उनसे करी से आ रही अजीब गंध के बारे में पूछा, तो अखिला के अनुसार उन्होंने कहा, “मैंने सुबह से शाम तक [कीटनाशक] छिड़काव किया है. यह उसकी गंध है"

परिवार के छह सदस्यों में से चार ने चिकन करी खाई - बलैया, उनकी पत्नी बालालक्ष्मी, प्रशांत, जो बी.टेक कर रहा है, और बलैया के 70 वर्षीय पिता, गालैया. चूंकि, अखिला और उसकी दादी मांस नहीं खाती, इसलिए उस रात घातक खाने से बच गईं.

PHOTO • Rahul M.

पड़ोसियों के साथ एक दुःखी मां और विधवा पत्नी - उन्होंने अपने बेटे बलैया के साथ-साथ, अपने पति गालैया को खो दिया

रात के खाने के बाद दादाजी को चक्कर आने लगे और वे लेट गए. अखिला याद करती हैं, "उनके मुंह से लार टपक रही थी. हमने सोचा कि यह पैरालिसिस का अटैक है और उनके पैर और हाथ रगड़ने लगे." क्षण भर बाद, गालैया की मृत्यु हो गई.

बलैया भी उल्टी करके लेट गए. शंका और डर के मारे अखिला और प्रशांत ने मदद के लिए अपने पड़ोसियों को बुलाया. एक बार जब उन्हें पता चला कि चिकन करी में कीटनाशक मिला हुआ है, तो उन्होंने बलैया, बालालक्ष्मी, और प्रशांत को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस बुलाया. अखिला अपने दादा के शव के पास, अपनी दादी के साथ घर पर रुकीं.

अस्पताल ले जाते समय बलैया की मौत हो गई. उनकी पत्नी और बेटे का इलाज उनके गांव से क़रीब 20 किलोमीटर दूर सिद्दिपेट शहर के एक निजी अस्पताल में चल रहा है. सिरीशा और उनके पति रमेश, अस्पताल के बिलों का भुगतान करने और मां-बेटे की देखभाल करने की कोशिश कर रहे हैं. रमेश कहते हैं, “प्रशांत को आपातकालीन वार्ड में भर्ती कराया गया था, इसलिए उनका इलाज आरोग्यश्री [एक स्वास्थ्य योजना] के तहत किया जा रहा है. लेकिन हम [गांव के लोगों द्वारा] उधार दिए गए पैसे से उसकी मां का इलाज करवा रहे हैं और अपनी बचत का उपयोग कर रहे हैं. वह अस्पताल के सभी बिलों को ध्यान से सहेजते हैं, क्योंकि राज्य सरकार ने बलैया की मृत्यु के बाद परिवार के मदद की घोषणा की है.

घर पर अखिला ने पड़ोसियों से उधार लिए गए पैसों और प्रशासनिक अधिकारियों से मिले कथित 15,000 रुपयों से अपने पिता और दादा का अंतिम संस्कार किया.

वह दृड़ हैं, लेकिन अपने भविष्य को लेकर उदास रहती हैं: वह कहती हैं, “मुझे पढ़ाई में बहुत दिलचस्पी है. मुझे गणित पसंद है. और मैं ईएएमसीईटी [इंजीनियरिंग और मेडिकल छात्रों के लिए होने वाली परीक्षा] परीक्षा में बैठना चाहती थी. लेकिन अब मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा..."

अनुवाद: शेफाली मेहरा

Rahul M.

राहुल एम, आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के रहने वाले एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और साल 2017 में पारी के फ़ेलो रह चुके हैं.

की अन्य स्टोरी Rahul M.
Translator : Shefali Mehra

शेफाली मेहरा, अशोका विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की छात्र हैं और उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की है. वह शोध करने में कुशल हैं और अवाम व उनसे जुड़ी कहानियों में दिलचस्पी रखती हैं.

की अन्य स्टोरी Shefali Mehra