“ओद्दे गोराल !” अरुणाचल प्रदेश के पच्छम कामेंग जिला के एक ठन कस्बा सिंगचुंग के मोड़ वाले सड़क मं गाड़ी चलावत डॉ. उमेश श्रीनिवासन नरियाथे.

थोकन दूरिहा मं, नानकन अऊ मोटाय भुरुवा रंग के छेरी कस जानवर सड़क के ओ पार, डोंगरी के खाल्हे, उदती हिमालय के जंगल उठा धूर्रा भागथे.

“तुमन येला पहिली कभू देखे नई होहू,” अकबकाय वन्यजीव जीवविज्ञानी कहिथे. जेन ह 13 बछर ले जियादा बखत ले पच्छम कामेंग जिला के जंगल मं काम करत हवय.

ग्रे गोरल (नेमोरहेडस गोरल) बोविड प्रजाति के आय जेन ह हिमालय के पार भूटान, चीन, उत्तरी भारत, नेपाल अऊ पाकिस्तान मं देखे जाथे. फेर साल 2008 मं, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ह ओकर ठीहा के नुकसान अऊ खेदा सेती येला “खतरा मं परे” के रूप मं सूचीबद्ध करे हवय.

“वो मन हमेशा भीतरी घन जंगल मं रहत रहिन, बहिर आय ले भारी डेर्रावत रहिन, “उमेश तऊन प्रजाति मन ला कहत हवंय जेन ह खास करके हिमालय के खाल्हे अऊ उत्तरपूर्वी भारत मं सुरच्छित नई ये, जिहां मनखे मन के अबादी जियादा हवय.

गोराल ला देखे के तुरते बाद, सिंगचुंग के बासिंदा किसान नीमा त्सेरिंग मोनपा ह हमन ला चाहा पिये के नेवता दीस अऊ दीगर जानवर देखे जाय के जानकारी दीस, “कुछेक हफ्ता पहिली, मंय खेत मं एक ठन लाल पांडा (ऐलुरस फुलगेन्स) देखे रहेंव, जेन ह इहाँ ले बनेच दूरिहा नई रहिस.” नंदावत जावत ये जीव, लाल पांडा चीन, म्यांमार, भूटान, नेपाल अऊ भारत मं मिलथे, फेर बीते तीन पुस्त मं येकर अबादी मं 50 फिसदी गिरती आय हवय अय अवेइय्या 20 बछर मं हालत अऊ घलो बदतर होय के अंदाजा हवय, आईयूसीएन ह चेतावनी जारी करे हवय.

Inside the Singchung Bugun Village Community Reserve(SBVCR) in West Kameng, Arunachal Pradesh.
PHOTO • Binaifer Bharucha
Gorals are listed as Near Threatened by the IUCN due to habitat loss and hunting
PHOTO • A. J. T. Johnsingh

डेरी: अरुणाचल प्रदेश के पच्छम कामेंग जिला मं सिंगचुंग बुगुन विलेज कम्युनिटी रिजर्व (एसबीवीसीआर) के भीतरी के नजारा. जउनि : ठीहा के नुकसान अऊ खेदा सेती आईयूसीएन ह गोराल मन ला खतरा मं परे के रूप मं सूचीबद्ध करे हवय

Singchung is a town in West Kameng district of Arunachal Pradesh, home to the Bugun tribe.
PHOTO • Vishaka George
The critically endangered Bugun Liocichla bird inhabits the 17 sq. km SBVCR forest reserve adjacent to Singchung town
PHOTO • Binaifer Bharucha

सिंगचुंग (डेरी) अरुणाचल प्रदेश के पच्छम कामेंग जिला के एक ठन शहर आय,जेन ह बुगुन जनजाति के ठीहा आय. जउनि: भारी ढंग ले नंदावत जावत बुगुन लियोसिचला चिरई सिंगचुंग शहर ले लगके 17 वर्ग किमी के एसबीवीसीआर वन अभ्यारण्य मं हवय

इहाँ के बासिंदा मन के कहना आय के सिंगचुंग तीर मं जंगली जानवर नजर आय संजोग नो हे. ओकर मन के मानना आय के ये ह सरलग बच्चे के काम मं लगे के नतीजा आय जऊन ह साल 2017 मं शुरू होय रहिस. वो बखत अरुणाचल वन विभाग ह पहिली ले अवर्गीकृत सामुदायिक जंगल मं सिंगचुंगबुगुन ग्राम सामुदायिक रिजर्व (एसबीवीसीआर) बनाय सेती इहाँ के बासिंदा आदिवासी समाज बुगुन के संग मिलके काम करत रहिस.

ये समाजिक वन अभ्यारण्य के कहिनी दुनिया के सबले गहिर ढंग ले नंदावत जावत चिरई मन ला खोजे ले शुरू होथे - बुगुन लियोसिचला (लियोसिचला बुगुनोरम), सिंगचुंग के तीर के जंगल मन के एक ठन नानकन दायराच मं मिलथे.

चिन्हे मं मुसकुल जैतून हरियर रंग के चिरई करिया माथा, चमकीला पिंयर भौंह अऊ लाली पांख वाले होथें. औपचारिक रूप ले साल 2006 मं येला एक प्रजाति के रूप मं जाने-चिन्हे, ये चिरई के नांव तऊन आदिवासी समाज के नांव बुगुन्स उपर रखे गीस, जेकर मन के संग ये ह जंगल मं रहिथे.

“दुनिया भर के लोगन मन ये चिरई के बारे मं जनत रहिन,” सलीना पिन्या सिंगचुंग के अपन बइठका खोली मं कहिथे, जिहां इलाका के उष्णकटिबंधीय पर्वतीय जंगल मन के जड़ाय फोटू मन टंगाय हवंय.

पांच बछर पहिली, पिन्या के कहना आय के वोला बुगुन लियोसिचला के होय के बारे मं कऊनो जानकारी नई रहिस, फेर आज ये 24 बछर के सिंगचुंगबुगुन विलेज कम्युनिटी रिजर्व (एसबीवीसीआर) मं पहिली माईलोगन आय जेन ह गश्त अफसर अऊ फिलिम बनेइय्या आय, जेन ह उदती हिमालय के ये जंगल मन के दस्तावेजीकरण करथे.

दुब्भर प्रजाति मं इजाफा सरलग बचाय के नतीजा आय जेन ह 2017 मं सिंगचुंग बुगुन गाँव मं सामुदायिक रिजर्व बनाय के संग शुरू होय रहिस

बुगुन लियोसिचला के दुब्भर नजारा ये वीडियो मं देखव

साल 1996 मं सबले पहिली ये चिरई के खोजेइय्या नामी पक्षीविद रामना अत्रेया के कहना आय, “एसबीवीसीआर (सिंगचुंग बुगुन विलेज कम्युनिटी रिजर्व) समाज के भरोसा हासिल करे मं लगे रहिस के ये जंगल मं वो मन के हक हवय. समाज अपन जैव विविधता ला बंचा के रखे सकही अऊ आगू बढ़े खातिर अपन जिनगी मुताबिक ये जंगल इलाका ला बऊरे सकही.”

वो ह जोर देवत कहिथे के येकर नांव बुगुन्स के नांव मं रखे जाय ले जेन मन इहाँ रहिथें जेकर ले ये तय होय सकय के बचाय के कोशिश मं समाज घलो जुरही, अऊ इहाँ के लोगन मं नान पांख वाले ये परानी अऊ ओकर ठीहा के संग मित मितान के बहव रखहीं- जेन ह अब संरक्षित रिजर्व हवय.

अरुणाचल प्रदेश के पश्चमकामेंग जिला मं ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य के तरी मं बसे, एसबीवीसीआर भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत स्थापित करे गे हवय. अपन बने के पांच बछर मं, ये 17 वर्ग किलोमीटर सामुदायिक वन रिजर्व ह समाजिक संरक्षण सेती नियम बनाए हवंय.

पिन्या, बुगुन जइसने इहाँ के लोगन मन ये जंगल अऊ वो मं रहेइय्या वन्यजीव के सुरच्छा मं महत्तम भूमका निभाथें. ओकर मन के काम, 10 दीगर जंगल अफसर मन के संग, इलाका मं गस्त करे अऊ शिकारी मन ला खुसरे नई देय आय.

लेकी नोरबू, जेन ह एसबीवीसीआर मं एक गश्ती अफसर घलो हवंय, रुख मन ला काटे, खेदा करे अऊ फांदा लगाय जइसने गैर कानूनी काम ला रोके बर जंगल के निगरानी करथें. 33 बछर के बुगुन आदवासी के कहना आय, “रूख काटे ले 1 लाख तक के जुरमाना हो सकथे अऊ खेदा बर त येकर ले अऊ जियादा जुरमाना हो सकथे.”

Shaleena Phinya, the first woman patrolling officer at the SBVCR, in her living room in Singchung.
PHOTO • Binaifer Bharucha
Leki Norbu and his family outside his home in Singchung. Behind them are paintings of the Bugun Liochicla (left) and another passerine, the Sultan Tit (right)
PHOTO • Binaifer Bharucha

डेरी: एसबीवीसीआर मं पहली माई गश्ती अफसर सलीना पिन्या, सिंगचुंग मं अपन बइठकी खोली मं. जउनि: लेकी नोरबू अऊ ओकर परिवार सिंगचुंग मं अपन घर के बहिर मं. ओकर पाछू बुगुन लियोसिचला (डेरी) अऊ एक दीगर पासरीन, सुल्तान टाइट (जऊनि) के पेंटिंग हवय

Patrolling officers seen here with District Forest Officer Milo Tasser (centre) who played a crucial role in establishing the community forest reserve.
PHOTO • Courtesy: SBVCR
Ramana Athreya, the man who discovered the Bugun Liocichla and named it after the community with whom it shares these forests
PHOTO • Courtesy: Ramana Athreya

डेरी:  गश्ती अफसर, जिला वन अफसर मिलो टैसर (बीच मं ) के संग नजर आवत हवय , जेकर सामुदायिक वन अभ्यारण्य के स्थापना मं महत्तम भूमका हवय. जउनि: रमना अथरेया , वो मइनखे जेन ह बुगुन लियोसिचला के खोज करिस अऊ ओकर नांव ये समाज के नांव मं रखिस जऊन मन ये जंगल मं रहिथें

लोगन मन के आमद नई होय सेती, जानवर जंगल भीतर ले बहिर निकर के एसबीवीसीआर मं चरे ला आथें. गौर बायसन सबले बड़े जानवर आय अऊ येला कम होवत प्रजाति के रूप मं सूचीबद्ध करे गे हवय, फेर एसबीवीसीआर मं, लेकी कहिथे, “नंबर थो ज्यादा हुआ जैसा है. पहले से आता था, प्रति ज्यादा नंबर में नहीं आता है, सिंगल ही आता था [ अब हमन रिजर्व मं ओकर ले जियादा देखत हवन. पहिली हमन सिरिफ एके ठन जानवर ला देखत रहेन, फेर अब हमन वो मन ला गोहड़ी मं देखथन.”

दीगर जानवर मन घलो गोहड़ी मं देखे जाथें. सिंगचुन बासिंदा अऊ बुगुन, खांडू ग्लो, जेन ह एसबीवीसीआर समिति के अध्यक्ष घलो हवंय, कहिथे, “बीते 3-4 बछर मं एसबीवीसीआर मं ढोल- कोगवा/लोड़हा/लेंझवा [कुओन अल्पिनस] के आमद घलो बढ़े हवय.”

ये रिजर्व ह सिंगचुंग शहर अऊ ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य ला जोड़े के काम करथे. जेन ह चितरी बघवा, सफेद बिलई, एशियाई सुनहरा बिलई  समेत कतको जानवर ले भरे परे हवय. नंदावत जावत कैप्ड लंगूर, गोरल, लाल पांडा, एशियाई करिया भालू अऊ कम होवत मकाक अऊ गौर घलो ये जंगल ला अपन ठीहा मानथें. 3 ,250 मीटर ऊंच जगा ईगलनेस्ट घलो ये संसार मं हाथी के अकेल्ला ठीहा आय.

फेर ये चिरईच मन आंय जेन मन दुनिया भर के सैलानी ला अपन डहर खिंचथें. ईगलनेस्ट चिरई-चिरगुन के 600 ले जियादा प्रजाति के ठीहा आय, जेन मं कुछेक दुब्भर प्रजाति घलो हवंय जइसने ( खतरा मं परे ) स्कार्लेट-बेलिड वार्ड ट्रोगोन, असुरच्छित बड़े तितुर जइसने ब्लिथ ट्रैगोपैन अऊ ( खतरा मं परे ) रेशमी नीला-भुरुवा रंग के सुग्घर न्यूथैच.

अब ईगलनेस्ट के संगे संग सिंगचुंग घलो चिरई प्रेमी मन के पसंद के जाय के एक ठन जगा बं गे हवय. नंदावत जावत बुगुन लियोसिचला के मनभावन सीटी ला सुने बर सैलानी मन ये इलाका मं आथें. ये चिरई दुनिया मं सिरिफ 14-20 वंश बढ़ेइय्या उमर के बांचे हवंय, चिरई प्रेमी ये मायावी चिरई के एक झलक देख के अपन आप ला किस्मत वाला मानथें.

The scarlet-bellied Ward's trogon found in Eaglenest, a wildlife sanctuary in the eastern Himalayas
PHOTO • Micah Rai
The large pheasant-like Blyth's Tragopan found in Eaglenest, a wildlife sanctuary in the eastern Himalayas
PHOTO • Micah Rai

स्कार्लेट-बेलिड वार्ड ट्रोगोन (डेरी) अऊ बड़े तीतुर जइसने ब्लिथ ट्रैगोपैन (जउनि) उदती हिमालय के  वन्यजीव अभयारण्य ईगलनेस्ट मं मिले हवंय

Only between 14-20 breeding Bugun Liocichla adults are estimated to be alive in these forests
PHOTO • Micah Rai
Birders at the SBVCR hoping to catch a glimpse of the bird
PHOTO • Binaifer Bharucha

ये जंगल मन मं सिरिफ 14-20 वंश बढ़ेइय्या उमर के बुगुन लियोसिचला होय के अंदाजा हवय (डेरी). एसबीवीसीआर मं चिरई प्रेमी (जउनि) चिरई के एक झलक पाय कास करत हवंय

बुगुन लियोसिचलास अक्सर जोड़ा धन नान गोहड़ी मं मिलथें. उदती हिमालय के तरी के घन जंगल (समुद्र तल ले 2,060-2,340 मीटर ऊपर) मं ये वो मन के अकेल्ला ठीहा आय.

“ईगलनेस्ट, नामदफा नेशनल पार्क (अरुणाचल प्रदेश मं घलो) अऊ असम मं कतको चिरई हवंय, फेर लियोसिचला सिरिफ सिंगचुंग मं हवंय. गर ये चिरई इहाँ नई होतिस त लोगन मन नई आतिन, पर्यावरण-मुताबिक कैंपिंग साइट लामा कैंप चलेइय्या इंडी ग्लो कहिथें. ग्लो कहिथें, “गर लोगन मन येला देखे नई पावंय त अऊ एक दू दिन अऊ ठहर जाथें.”

सैकड़ों सैलानी मन इहाँ आथें, येकर ले इहाँ के लोगन मन ला फायदा होथे. ग्लो कहिथें, “आज सिंगचुंग मं हर बछर 300 ले 400 सैलानी आथें अऊ ये आंकड़ा सरलग बढ़त जावत हवय.” सैलानी मन के पीक सीजन बरसात के ठीक पहिली अप्रैल ले जून आय.

अत्रेया पइसा देवेइय्या सैलानी मन के आय अऊ वो सब्बो बात ला ख़ारिज कर देथें, “इहाँ पइसा के जरूरत हवय. सिरिफ तनखा मं [बचाय के काम बर] 15 लाख सलाना लागथे.” पेशा ले रेडियो खगोलशास्त्री अत्रेया अरुणाचल प्रदेश मं बचाय के कोशिश मं सरलग लगे हवंय अऊ वो ह ये बात के सराहना करथें के, “बुगुन्स ह गेंद धर ले हवय अऊ ओकर पाछू दऊड़त हवन. मंय जऊन ला सोचे रहेंव, वो ओकर ले आगू निकर गे हवंय.”

आज समाज ह पर्यावरण-पर्यटन शिविर, बेरा के बेरा गश्त अऊ इहाँ तक ले इलाका के स्कूल मन मं जागरूकता अभियान घलो चलाथे. बुगुन ला अनुसूचित जनजाति के रूप मं सूचीबद्ध करे गे हवय अऊ साल 2013 के ये रिपोर्ट के मुताबिक, ओकर आबादी 1,432 हवय, फेर वो मन ये आंकड़ा ला नई मानत हवंय, ओकर मनके कहना आय के ये आंकड़ा कम से कम दुगुना हवय.

Indie Glow runs Lama Camp, an eco-friendly site for birders seeking the elusive Bugun Liocichla and other wildlife .
PHOTO • Binaifer Bharucha
The walls of Lama Camp adorned with posters of the famed bird
PHOTO • Binaifer Bharucha

डेरी: इंडी ग्लो लामा कैंप चलाथे, जऊन ह बुगुन लियोसिचला अऊ दीगर वन्य जीव चिरई मन बर पर्यावरण मुताबिक जगा हवय. जउनि: लामा कैम्प के भिथि मन मं नामी चिरई मन के पोस्टर लगे हवय

The view of the SBVCR from Lama camp. The Bugun Liocichla is found only within a 2 sq km radius within this 17 sq km protected reserve
PHOTO • Binaifer Bharucha

लामा शिविर ले एसबीवीसीआर के नजारा. बुगुन लियोसिचला ये 17 वर्ग किमी संरक्षित अभ्यारण्य के सिरिफ 2 वर्ग किमी के दायरा मं मिलथे

पिन्या जइसने इहाँ के लोगन मन पच्छम कामेंग के स्कूली लइका मन ला जंगल के महत्ता अऊ ओकर जैव विविधता के बारे मं बताय बर ‘वन्यजीव सप्ताह’ मं हिस्सा लेथें. ये ओकर बर खास करके महत्तम हवय काबर के वो ह बचपना मं जेन ला देखे रहिस, मंय अपन संगवारी मन ला जंगल मं जावत, चिरई चिरगुन ला मार के खावत देखत रहंय. येकर ले मोर मन बिदक जावय अऊ मंय वो मन ले पूछेंव, ‘जब तुमन खाय सेती पोसे कुकुरी जइसने चिरई मन ला खाय सकथो, त ये जंगल ला काबर हलाकान करत हव?’”

ओकर संगवारी नोरबू कहिथे: “हमन ला पढ़े मं मन नई लगत रहिस. हमन मंडली बनाके जंगल मं जावत रहेन अऊ कभू-कभू हिरन कालिज तितुर, बरहा जइसने जानवर के खेदा करके लहूंटत रहेन.” वो ह कहिथे, वो बखत मं खेदा करे शौक अऊ पढ़ई मं चेत नई रहिस.

“कभू-कभू ये ह खाय सेती रहिस, नई त, ये ह बस अइसने चीज रहिस जेन ला लोगन मं करेंव,”नोरबू कहिथे, जेन ह इहाँ गैर-कानूनी काम ऊपर नजर रखते जेकर ले जंगली जीव जन्तु खतरा मं पर सकथें.

रिजर्व मं हौसला देवेइय्या लोगन मन मं एक मिलो तसर रहिस, जेन ह आठ बछर तक ले पच्छम कामेंगजिला के डीएफओ रहिस.  तसर, जेन ह अब जीरो वैली के डीएफओ हवंय, कहिथें, “गर समाज ला ये मं शामिल नई करे रतेन त एसबीवीसीआर नई बने रतिस.” वो ह जोर देवत कहिथे, “ये ह परगट ले धन बिन परगट के काम के मऊका देय हवय फेर गर हमन समाज ला नई लेगे रइतेन त एसबीवीसीआर नई होतिस.”

कतको परिवार के कम से कम एक झिन हा रसोइया, वन करमचारी, ड्राइवर अऊ दीगर करमचारी के रूप मं काम करत हवंय. जमीनी करमचारी मन ला अक्सर राज के अनुदान सेती तनखा मिले मं बिलम हो जाथे, पर्यटन ले होय दीगर कमई के भारी जरूरत होथे.

वइसे, बुगुंस शहर के बदलाव बर नान चिरई के हाथ मानथे, ग्लो कहिथे, “गर ये लिओसिचला नई होतिस त सिंगचुंग अतक बदले नई रतिस.”

The entry point of the SBVCR. The fee to enter this reserve is Rs. 300
PHOTO • Binaifer Bharucha
The entry point of the SBVCR. The fee to enter this reserve is Rs. 300
PHOTO • Binaifer Bharucha

एसबीवीसीआर के मुहटा. इहाँ भीतरी मं जाय के 300 रूपिया के टिकिट लागथे

*****

ये चिरई के नांव के आधा हिस्सा समाज ले हवय, “येकर बाकि हिस्सा, लिओसिचला,रोमन भाखा के आय जेकर मतलब चिकन चिरई होथे,” एसबीवीसीआर मं किंदरत उमेश फोर के कहिथे. बिट हरियर डोंगरी अऊ घाटी मं चिरई-चिरगुन के अवाज गूँजत रहिथे.

हमन ला पता चलिस के ये सरग मं कुछु दिक्कत हवय.

ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य मं पक्षी विज्ञानी श्रीनिवासन के शोध ले पता चलथे के इहाँ गरमी बढ़त हवय. जेकर सेती उज्जर पूंछ वाले रॉबिन अऊ कॉमन ग्रीन मैगपाई जइसने नान नान चिरई गरमी ले बांचे अऊ ऊंच जगा मं चले जावत हवंय.

वो ह कहिथें, “ये नामी चिरई अब सिरिफ समुद्र तल ले 2,000 -2,300 मीटर के बीच मं 2 वर्ग किमी के दायरा मं मिलथें.” येला नजर मं रखत, एक ठन बड़े ऊंच वाले ढलान मं सामुदायिक रिजर्व बनाय गीस. श्रीनिवासन कहिथें, एसबीवीसीआर के 1,300 ले 3,300 मीटर के ऊंच तक ले बगरे के हिसाब ले बनाय गे हवय. गरमी ले बचे अरुणाचल के चिरई मन कइसने डोंगरी के ऊंच जगा मं जावत हवंय, येकर बारे मं पढ़व: धरती मं बिपत के आरो देवत चिरई-चिरगुन

Srinivasan in Eaglenest measuring the tarsus of a bird. The scientist's work indicates birds in this hotspot are moving their ranges higher to beat the heat.
PHOTO • Binaifer Bharucha
Sang Norbu Sarai was one of the Singchung residents who opposed the SBVCR initially, fearing the Buguns would lose touch with the forest
PHOTO • Binaifer Bharucha

ईगलनेस्ट मं श्रीनिवासन (डेरी) एक ठन चिरई ला नापत. वैज्ञानिक मन के जाँच पड़ताल ले पता चलथे के ये जगा मं बढ़त गरमी ले बांचे बर चिरई-चिरगुन मन अपन ठीहा ले अऊ ऊंच जगा मं जावत हवंय. सांग नोरबू सराय (जउनि) सिंगचुंग के बासिंदा मन ले एक आंय जेन ह शुरू मं एसबीवीसीआर के खिलाफ रहिन, वो ह डेर्रावत रहिस के बुगुन जंगल ले दूरिहा हो जाहीं

The SBVCR is regularly patrolled by forest officers who watch out for hunters, poaching and logging activities
PHOTO • Binaifer Bharucha

एसबीवीसीआर मं वन अफसर मन बेरा के बेरा गश्त करथें वो मन शिकारी, खेदा अऊ लकरी कटेइय्या मन के ऊपर नजर रखथें

फेर सीएफआर बनाय ह बिन मिन मेख निकाले नई रहे हवय. इहाँ के एक झिन ठेकादार, सांग नोरबू सराय कहिथे, “हमन अपन जमीन ले जुड़ाव ला खो देबो अऊ इही कारन रहिस के मंय वो लोगन मन ले एक रहेंव जेन मन ये सामुदायिक रिजर्व बनाय मं आपत्ति करे रहेंव. सिंगचुंग के बासिंदा अऊ बुगुन आदिवासी सियान कहिथे, “वन विभाग ह जमीन लेथे अऊ ओकर बदला मं लोगन मन ला कुछु नई मिलय.”

वइसे, एसबीवीसीआर मं वाटरशेड ओकर मन के अऊ दीगर विरोधी मन के मुंह बंद कर दिस. इहाँ के एक झिन रिटायर ठेकादार सराय कहिथें ”सिंगचुंग तऊन पानी के इलाका के खाल्हे मं हवय जिहां ले शहर ला पानी देय जाथे. गर हमन बांध ला बचाय ला चाहथन, त हमन ये जानत हवन के जंगल ला बचाय, कटाई अऊ जंगल ला कटे ला रोके ला चाही. हमन ये तय करे ला चाहत रहेन के हमर अवेईय्या पीढ़ी ला पानी मिले अऊ वो मन सुरच्छित रहंय.” एसबीवीसीआर ये डहर मं एक बड़े फइसला रहिस.

असम के तेजपुर ले लेके अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट तक, बुगुन लियोसिचला के ये फोटू मन ये इलाका के हरेक जगा मं हवय, येकर नांव के पाछू बुगुन लोगन के काम येकर सबूत आय. सराय कहिथे, “आज दुनिया मं हमर नांव हवय, हमर पहिचान हवय अऊ जियादा हमन काय कहे सकथन?”

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Vishaka George

Vishaka George is Senior Editor at PARI. She reports on livelihoods and environmental issues. Vishaka heads PARI's Social Media functions and works in the Education team to take PARI's stories into the classroom and get students to document issues around them.

Other stories by Vishaka George
Photographs : Binaifer Bharucha

Binaifer Bharucha is a freelance photographer based in Mumbai, and Photo Editor at the People's Archive of Rural India.

Other stories by Binaifer Bharucha
Editor : Priti David

Priti David is the Executive Editor of PARI. She writes on forests, Adivasis and livelihoods. Priti also leads the Education section of PARI and works with schools and colleges to bring rural issues into the classroom and curriculum.

Other stories by Priti David
Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

Other stories by Nirmal Kumar Sahu