“इहे स्कूल बा,” अतुल भोसले आपन अंगुरी से महाराष्ट्र के गुंडेगांव के किनारे-किनारे बंजर खेतन के बीच ठाड़ एगो छोट, दू कमरा वाला पक्का इमारत देखावत बाड़न. गांव जाए घरिया जब रउआ कीच वाला रस्ता पर जाएम, त ई जरूर देखाई पड़ी, जे आखिर में रउआ के कोई एक किमी दूर छोट पारधी बस्ती पहुंचा दीही.
बुल्लू रंग के खिड़की, रंग-बिरंग के कार्टून आउर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के फोटो से स्कूल के देवाल सजल बा. अइसे पियर देवाल के रंग तनी झर गइल बा तबो ई सब राउर ध्यान खींचेला. स्कूल इहंवा पारधी लोग के झोपड़ी आ तिरपाल से छावल माटी के घर सब के बीच एकदम अलग देखाई पड़ेला.
“अता अमच्याकडे विकास म्हंजे णी शालाच आहे. विकासाची निशानी (हमनी लगे बिकास के नाम पर बस इहे एगो स्कूल बा),” 46 बरिस के अतुल भोसले पउटकाबस्ती के बारे में कहेलन. उनकर गांव अहमद जिला के नगर तालुका में पउटकाबस्ती नाम से जानल जाला.
“दूसर काय नहीं. वस्तित यायला रास्ता नाय, पानी नाय, लाइट नाय, पक्की घर नायित (इहंवा कुछ नइखे. सड़क नइखे. पानी नइखे. पक्का मकान नइखे). स्कूल लगही बा. एहि से हमनी के बच्चा लोग कम से कम पढ़े-लिखे के त सीख रहल बा,” ऊ कहलन. अतुल के पढ़े-लिखे के एह छोट जगह पर गुमान बा. इहंई उनकर लरिकन साहिल आ शबनम 16 ठो दोसर छात्र- सात ठो लइकी आउर नौ लइका संगे पढ़ेला.
ई उहे स्कूल बा जेकरा राज्य सरकार कहूं आउर ले जाए आउर दोसर स्कूल में मिलावे के बात कर रहल बा. गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहल एह समुदाय खातिर ई बड़ झटका बा. खानाबदोश समुदाय आ विमुक्त जनजाति के रूप में पारधी महाराष्ट्र में अनुसूचित जनजाति के सूची में आवेला.
समुदाय डेढ़ शताब्दी से भी जादे समय से भयानक भेदभाव आउर अभाव के बीच रहत आइल. सन् 1871 में, ब्रिटिश राज मोटा-मोटी 200 आदिवासी समूह आ दोसर जाति के दबावे के मकसद से एगो ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ (सीटीए) लागू कइलक- ई लोग जादेतर वइसन रहे जे गोरन के शासन स्वीकार ना कइले रहे. एकरा में पारधियो लोग रहे. एह अधिनियम के मूल में इहे सोच रहे कि जदि एह में से कवनो समुदाय में जनमल बानी, त रउआ जन्मजात अपराधी बानी. आजाद भारत में 1952 में सीटीए के निरस्त कर देवल गइल, आउर पीड़ित समुदाय सब के विमुक्त कर देवल गइल. बाकिर ओह लोग पर लागल लांछन अबले ना खतम भइल. पारधी लोग खातिर नियमित रोजी-रोटी कमाइल लगभग असंभव होखेला. नियम से स्कूल जाए वाला बच्चा सभ के धमकावल, आउर अक्सरहा पिटलो जाला.
हाशिया पर पड़ल एह समुदाय खातिर, ई स्कूल ओह लोग के बस्ती में अकेल्ला पक्का इमारत होखे से जादे महत्वपूर्ण स्थान रखेला. ई ओह लोग खातिर खाली सरकारी बिकासे के निशानी नइखे, बलुक इंसानी बिकास के एगो अनमोल विरासतो बा. ई सायद ओह लोग के लरिकन लोग खातिर कमाए के अच्छा रस्ता बा. जवन समुदाय के ‘मुख्यधारा’ के शिक्षा से एतना लंबा समय ले बेरहमी से काट के रखल गइल बा, उहे समुदाय स्कूल ना रहला से होखे वाला नुकसान के अच्छा से समझ सकेला.
“हमार लरिकन सब मराठी नीमन से बोल सकेला. पढ़ियो सकेला. हमनी ना पढ़ सकीं,” अतुल के 41 बरिस के घरवाली रूपाली भोसले कहली. “बाकिर सुननी ह (मास्टर लोग से) कि सरकार हमनी से ई स्कूल छीने वाला बा.”
अतुल के आवाज में भी ओतने चिंता आउर परेशानी झलकल. “का ऊ लोग सांचो अइसन करी?” ऊ पूछलन.
अफसोस, कि सांचो अइसन होखे वाला बा. महाराष्ट्र सरकार जदि आपन मौजूदा प्लान के आगू बढ़ाई, त सिरिफ पउटकाबस्तिए के स्कूल ना, बलुक राज्य के दोसर 14,000 से जादे स्कूल सब के जगह बदला जाई, विलय हो जाई, चाहे बंद कर देवल जाई जाई.
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सोझे के देवाल पर स्कूल के मराठी के लाल अक्षर में लिखल नाम- पउटकाबस्ती गुंडेगांव प्राथमिक जिला परिषद स्कूल, अबहियो पढ़ल जा सकेला. सतरह बरिस बादो. स्कूल सन् 2007 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत बनावल गइल रहे. ई अभियान भारत सरकार के एगो प्रमुख शिक्षा कार्यक्रम के हिस्सा रहे. तबे से स्कूल में बस्ती के लरिकन से पहला से चौथा तक के प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर रहल बा. ओह घरिया के विचार, जे अबहियो स्कूल के देवाल पर लिखल बा, प्रत्येकमूल शालेत जायिल, एकही मूल घरी ना राहिल (सभ बच्चा स्कूल जाई, एको बच्चा घरे ना बइठी)
ओह घरिया ई विचार बहुते महान लागत रहे.
बाकिर 21 सितंबर, 2023 में छपल हाले के ऑफिशियल सर्कुलर में कहल गइल बा कि शैक्षणिक गुणवत्ता, ‘समग्र विकास आ लरिकन सभ के बीच पर्याप्त शैक्षिक सुविधा के प्रावधान के हित में’ कुछेक इलाका में 20 से कम लरिकन वाला स्कूल के एगो ‘क्लस्टर स्कूल’, चाहे समूह शाला में मिला देवल जाई. छोट-छोट शाला के एगो समूह शाला में मिलावे के ई प्रक्रिया राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के खंड 7 के तहत कइल जा रहल बा.
पउटकाबस्ती जीजेडपीएस के प्रधानाध्यापक कुसलकर गंगाराम से कहल गइल बा कि ऊ अपना इहंवा पढ़े वाला लरिका लोग के गिनती बतावस, जेसे एकरा क्लस्टर स्कूल में मिलावल जा सकेला, कि ना एह बात पर राज्य सरकार विचार कर सको. एह बात से ऊ चिंतित बाड़न. “लरिका लोग नीमन से पढ़ रहल बा. गिनती, अंग्रेजी-मराठी अक्षर, कविता सब ऊ लोग पढ़ लेवेला.”
“हमनी के स्कूल में न त शौचालय बा, ना पिए के पानी आवेला,” ऊ लगभग बिनती के स्वर में कहे लगलन. “बाकिर स्कूल खातिर कवनो नया आउर बड़ बिल्डिंग बनावे के बनिस्तपत एह मद सभ में कम पइसा खरचा करे के पड़ी. इहंवा मानेमाला बस्ती स्कूल आउर कइएक दोसर स्कूल बा, जेकरा में 20 से कम छात्र लोग बा. एह सब के मिलावल संभव नइखे. ई स्कूल के इहंई रहे के चाहीं, लरिकन सभ लगे,” ऊ कहत बाड़न. उनकर आवाज, उनकर विचारे जेतना साफ आउर मजबूत सुनाई देलक.
गंगाराम कहेलन, “ई बच्चा लोग में सीखे के आदत डाले खातिर हमनी मास्टर लोग बहुते मिहनत कइले बानी. जदि जीजेडपीएस जादे दूर चल जाई, जहंवा बच्चा लोग पैदल पहुंच ना सके, त ऊ लोग प्राथमिक शिक्षा से दूर हो जाई.”
ऑफिशियल सर्कुलर में कहल गइल बा कि नयका समूह शाला “बस से 40 मिनट से कम दूरी पर” होखे के चाहीं. इहो बतावल गइल बा कि सरकार आउर सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सब्लिटी) फंड से मुफ्त बस के सुविधा देवल जाई. कुसलकर कहलन, “दूरी के लेके भ्रम बनल बा. 40 मिनट के का मतलब बा, असल में केतना दूरी? ई निस्चित रूप से एक किलोमीटर से जादे होई.” मुफ्त बस सेवा के जे वादा कइल गइल बा, उनका ओकरा पर जादे भरोसा नइखे.
गंगाराम पूछत बाड़न, “हाईस्कूल त एह बस्ती से चार किमी दूर पड़ेला. बच्चा सभ के उहंवा जाए खातिर सुनसान रस्ता से जाए पड़ेला. एह चलते केतना बच्चा, खास करके लइकी लोग पढ़ाई बीचे में छोड़ देवेला. बस के किराया ना लागी, अइसन कब भइल?” उनकर कहनाम बा कि पछिला बरिस सात से आठ लरिका लोग के चौथा के बाद आपन पढ़ाई छोड़े पड़ल. ऊ लोग अब आपन माई-बाऊजी संगे काम पर जाला.
रउआ लागी कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट आउर घर आ स्कूल के बीच के दूरी ही भारी समस्या बा. बाकिर ठहरीं, अबही आउर समस्या सब बाकी बा. स्कूल में पढ़े वाला एह बच्चा सभ के माई-बाऊजी लोग के काम पर जाए पड़ेला. अक्सरहा ऊ लोग के काम के तलाश में पलायन करे पड़ेला. ई बात एह स्थिति के आऊर जटिल बना देवेला. बरसात में ओह में से जादे करके लोग खेतिहर मजूरी करेला. कबो-कबो खेत भी दूर पड़ेला. साल में बाकी जेतना दिन बचल, ऊ लोग के 34 किमी दूर अहमदनगर शहर में निर्माण स्थल पर काम खोजे जाए पड़ेला.
“इहंवा कवनो एसटी बस, चाहे शेयरिंग जीप के सुविधा नइखे. काम पर जाए खातिर गाड़ी के इंतजार में हमनी के मेन रोड तक पहुंचे खातिर 8 से 9 किमी पैदल चले के पड़ेला,” अतुल कहलन. रूपाली बतावत बाड़ी, “भोरे 6 चाहे 7 बजे तक ओह लेबर नाका पर पहुंचे के होखेला. जदि हमनी के लरिका लोग के स्कूल दूर हो जाई त हमनी खातिर मुस्किल हो जाई. हमनी त पूरा साल काम खातिर भटकत रहिला.” रूपाली आउर अतुल दुनो प्राणी लोग मिलके रोज के 400 से 450 रुपइया से जादे ना कमा पावेला. इहो काम ओह लोग के कोई 150 दिन तके मिलेला. ऊ लोग के घर चलावे खातिर साल के बाकी दिन, जहंवा संभव होखे, आउर काम खोजे जाए पड़ेला.
अइसन एनईपी 2020 पॉलिसी के दस्तावेज में दावा कइल गइल बा कि छोट स्कूल के संभारल सरकार खातिर मुस्किल हो रहल बा. एह में कहल गइल बा कि छोट होखे चले ओह लोग के “मास्टर लोग के तैनाती करे आ जरूरी भौतिक संसाधन के व्यवस्था करे में आर्थिक रूप से मुस्किल आ रहल बा आउर एकरा से संचालन भी जटिल हो जाला.” अइसन स्कूल शासन आउर प्रबंधन खातिर चुनौती बा, काहेकि “भौगोलिक बिखराव, स्कूल ले पहुंचे के चुनौती भरल स्थिति आउर अइसन स्कूल के बड़ संख्या में होखे चलते सभे स्कूल पर एक जइसन तरीका से ध्यान रख पावल मुश्किल हो जाला.”
छोट स्कूल से तरह-तरह के समस्या जरूर बा, बाकिर एकरा एक-दोसरा में मिला देवल कोई होशियारी के काम नइखे. जदि पुणे के पानशेत गांव में महाराष्ट्र सरकार के अइसन पहिल प्रयोग पर नजर डाल जाव, त अइसने लागेला. रिपोर्ट के हिसाब से, वेल्हे तालुका में समूह शाला के रूप में फेरु से बिकसित कइल जाए वाला पहिल स्कूल में स्टाफ के कमी बा, आउर ई बुनियादी ढांचा के कमी आउर बहुते कुछ दोसर मुद्दा सभ से जूझ रहल बा. एह सब के बावजूद सरकार एह परियोजना के विस्तार पर जोर लगइले बा.
“पहाड़ी आउर दुर्गम इलाका के छोट स्कूल सही में एगो गंभीर मसला बा. बाकिर अइसन लागेला कि ओह स्कूलन में नीमन पढ़ाई-लिखाई के कवनो दोसर तरीका नइखे, भलही बच्चा सब के गिनती कम होखे,” शिक्षा से जुड़ल बात के जानकार जानल-मानल विद्वान जंध्याला बी. जी तिलक कहलन. ऊ पारी के मेल से भेजल गइल सवाल सभ के जवाब देत रहस.
“स्कूलन के विलय शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के मानदंड के खिलाफ बा,” ऊ कहलन. एह अधिनियम में साफ कहल गइल बा कि पहिल से पंचमा कक्षा तक के बच्चा लोग खातिर स्कूल ओह लोग के घर के एक किमी के दायरा में होखे के चाहीं. उहंवा 6 से 11 बरिस के लइका लोग के गिनती कम से कम 20 होखे के चाहीं.
“इहे ना 2-3 मास्टर संगे ‘पूरा’ स्कूल चलावल आउर मोटा-मोटी 5-10 बच्चा वाला स्कूल कातिर आरटीई के तहत मिले वाला सभे सुविधा उपलब्ध करावल भी तार्किक नइखे लागत. प्रशासन अक्सरहा एह तरह के मुद्दा उठावत रहेला. हमनी के नया तरीका से सोचे के जरूरत बा. अइसे स्कूल के विलय सुने में नीमन त लागेला, बाकिर एकरा से हल ना निकले,” तिलक बतावत बाड़न.
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बाकिर ई सवाल महाराष्ट्र राज्य शिक्षा विभाग खातिर खाली पउटकाबस्ती स्कूले तक सीमित नइखे. सन् 2023 के सर्कुलर में कहल गइल बा कि सउंसे राज्य में 1 से 20 विद्यार्थी वाला 14,783 स्कूल बा, जेह में कुल 1,85,467 बच्चा सभ पढ़ेला. एह सभे के बड़ समूह शाला में मिलावे के योजना बा. एहि चलते सभे पर अनिश्चितता के बादल मंडराए लागल बा.
गीता महाशब्दे छोट स्कूल सब के इतिहास के बारे में बतावत बाड़ी, “ई स्कूल सब कइएक कारण से छोट आकार के बा.” ऊ गैर-लाभकारी संस्थान नवनिर्मिति लर्निंग फाउंडेशन के निदेशक बानी.
साल 2000 में महाराष्ट्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत बस्ती शाला योजना सुरु कइले रहे. ई योजना पउटकाबस्ती जइसन छोट बस्तियन में स्कूल खोले खातिर सुरु करे वाला एगो कार्यक्रम था. “एह सरकारी योजना में वइसन बच्चा सभ के पहचान करे के रहे जे शिक्षा से वंचित रहे. आउर ओह लोग खातिर उहे लोग के बस्ती, चाहे दुर्गम पहाड़ी इलाका में नया स्कूल खोलल जाए के रहे. एह योजना के महात्मा फुले शिक्षण हमी केंद्र योजना के नाम से जानल जात रहे,” गीता बतइली.
योजना के हिसाब से, एगो बस्ती शाला में पहिल से चउथा कक्षा के मोटा-मोटी 15 छात्र लोग पढ़ सकत बा. जिला परिषद चाहे नगर निगम कार्यकारी समिति के मंजूरी से गिनती में छूट देवल जा सकत रहे. खास स्थिति में छात्रन के संख्या दसो हो सकत रहे.
एह तरह राज्य सरकार 2000 आ 2007 के बीच मोटा-मोटी 8,000 बस्ती शाला सुरु कइलक.
अइसे, मार्च 2008 में सरकार एह योजना के ‘अस्थायी व्यवस्था’ बता के बंद करे के फैसला लेले बा.
गीता के कहनाम बा, “महाराष्ट्र सरकार एह स्कूलन के स्थिति समझे आउर सिफारिश देवे खातिर एगो समिति बनवले रहे.” समिति, जेकर उहो एगो सदस्य रहस, कुछ सूकल के नियमित प्राथमिक स्कूल में बदले के सिफारिश कइले रहे. साल 2008 आ 2011 के बीच, राज्य सरकार 6,852 बस्ती शाला के प्राथमिक विद्यालय के रूप में नियमित करे के तय कइलक आउर 686 शाला पर ताला लगा देलक.
बस्ती शाला योजना में सरकार साल 2000 आ 2007 के बीच कोई 8,000 शाला सुरु कइलक. अइसे त, मार्च 2008 में सरकार एह योजना के 'अस्थायी व्यवस्था' बता के बंद करे के तय कर लेलक
अब त एक दशक से जादे बीत चुकल बा. आउर ई फैसलो पलटल जा सकत बा. अब एनईपी 2020 के तहत अइसन नियमित स्कूल के भी बंद करे पर बहस सुरु हो गइल बा. गीता कहेली, “नियमित स्कूलन के बंद करे के कवनो तुक नइखे बनत. भलही छात्र लोग के गिनती कम होखो, बाकिर बस्ती त उहंई बा. आउर उहंवा के लरिकन के पढ़ावे-लिखावे के आउर कवनो रस्ता नइखे.”
“पड़घम वरती टिपरी पदली, तड़म तत्तड़ तड़म... (ढोल पर थाप पड़ेला, त ऊ तड़म तत्तड़ तड़म आवाज करेला)” अतुल के आठ बरिस के लइकी शबनम आपन पढ़ाई के बारे में बतावे के मौका मिले से उत्साहित बाड़ी. ऊ कहत बाड़ी, “हमरा कविता पढ़ल नीमन लागेला.” आउर हमनी के आपन तेसर कक्षा के मराठी किताब से एगो कविता पढ़के सुनावे लगली.
साहिल आपन बहिन से तेज बने के कोसिस करत टोकलन, “हम त जोड़-घटाव भी कर सकिला. हमरा पंचमा तक के पहाड़ा आवेला. पांच इके पांच, पांच दुनी दाहा... (पांच एकम पांच, पांच दूनी दस).”
दुनो भाई-बहिन के स्कूल भावेला. बाकिर एकर कारण सिरिफ कविता, चाहे गणित नइखे. साहिल कहलन, “हमरा स्कूल जाएल पसंद बा. काहेकि बस्ती के सभे दोस्त लोग से मिले के मौका मिलेला. हमनी टिफिन में लंगड़ी आउर खो-खो खेलिला.” पउटकाबस्ती जीजेडपीएस के सभे लरिका लोग आपन घर के स्कूल जाए वाला पहिल पीढ़ी से बा.
आपन माटी के झोपड़ी के बाहिर बइठल उनकर माई रूपाली कहली, “स्कूल आउर पढ़ाई में एह लोग के मन लागेला. ई हमनी खातिर बहुते खुसी के बात बा.” स्कूल बंद होखे के डर से ऊ लोग के मन मेहार जाला. ऊ अपने कबो स्कूल ना गइली, ना कबो उनकर घरवाला गइलन. पारधी समुदाय खातिर शिक्षा पावल हरमेसा से चुनौती भरल रहल. जनगणना 2011 के अनुसार, महाराष्ट्र में पारधी समुदाय के 223,527 लोग रहेला. दशकन ले नीतिगत हस्तक्षेप के बादो जादे करके पारधी लरिकन के प्राथमिक स्कूलो के मुंह देखे के ना मिल सकल.
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“इहंवा केहू स्कूल ना जाए,” दस बरिस के आकाश बरडे बेफिकरी से कहलन. ऊ पउटकाबस्ती से कोई 76 किमी दूर तालुका के एगो पारधी बस्ती में रहेलन. कुकड़ी नदी किनारे एह शिंदोडी कॉलोनी से प्राथमिक आ माध्यमिक स्कूल तीन किमी दूर बा. ऊ पैदल चल के जाए के हिसाब से बहुते दूर पड़ेला. “हम कबो-कबो मछरी पकड़िला. हमरा मछली पकड़ल नीमन लागेला,” ऊ कहलन. “हमार माई-बाऊजी लोग ईंट-भट्टा आउर निर्माण स्थल पर काम करेला. ऊ लोग अबही मजूरी करे गइल बा, 3-4 महीना बाद आई. हमरा त इयादो नइखे कि कबो ऊ लोग हमरा स्कूल के बारे में बतइले होई, आउर ना हम कबो एकरा बारे में सोचनी.”
एह बस्ती में 5 से 14 बरिस के 21 ठो लरिका लोग बा. बाकिर केहू स्कूल ना जाए.
महाराष्ट्र के खानाबदोश आ विमुक्त जनजाति के पढ़ाई-लिखाई के स्थिति के आधार पर 2015 के एगो सर्वे सामने आइल. एह में पता चलल कि 2006-07 आ 2013-14 के बीच, एह समुदायन के कुल 22 लाख से जादे बच्चा के नाम स्कूल में ना लिखावल गइल रहे.
“एह में से सभे बच्चा के माई-बाऊजी लोग बाहिर काम करेला- मुंबई, चाहे पुणे में. लरिका लोग अकेले रह जाला आउर ओह में से कुछ आपन माई-बाऊजी संगे जाला,” 58 बरिस कांताबाई बरडे कहेला. कांताबाई आपन पोती लोग- नौ बरिस के अश्विनी आ छह बरिस के ट्विंकल- के घरे छोड़ के जाली. जब ऊ आउर उनकर लइका-पुतोह लोग सांगली में ऊंख के खेतन में काम करे खातिर चल जाला. दुनो में से कवनो लइकी स्कूल ना जाए.
ऊ बतावत बाड़ी कि ट्विंकल के जनम ऊंखे के खेते में भइल रहे. परिवार जब उनकर नाम स्कूल में लिखावे गइल त ओह लोग से दाखला (जनम प्रमाण पत्र) मांगल गइल. “इहंवा कवनो आशा कार्यकर्ता ना आवे. हमनी के लरिकन आउर पोती लोग, सभे घरे में जनमल बा. हमनी लगे दाखला नइखे,” कांताबाई कहेली.
“हम जादे करके आपन बहिन संगे रहिला. अकेले,” अश्विनी कहेली. “मोठी आई (दादी) हमनी के देखभाल करे खातिर कुछ हफ्ता खातिर लउट आवेली. हम सभे खाना बना सकेनी. भाकरियो. स्कूल के कुछ नइखे पता. एह बारे में कबो सोचनी ना. हम लइकी लोग के स्कूल ड्रेस में देखले बानी. केतना नीमन लागेला देखके,” ऊ हंसत कहली.
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस), 2017-18 के हिसाब से, शिंदोडी में आकाश, अश्विनी आ ट्विंकल के जइसन भारत के गांव-देहात में 3 से 35 बरिस के मोटा-मोटी 13 प्रतिशत मरद आउर 19 प्रतिशत मेहरारू कबो कवनो स्कूल ना गइल.
“लोग हमनी के चोर-चुहार कहेला. खराब बतावेला. आपन गांव में घुसे ना देवे. रउए बताईं, हमनी बच्चा सभ के स्कूल कइसे भेजीं?” कांताबाई आपन समुदाय के लरिकन लोग खातिर स्कूल सुरक्षित ना लागे.
आपराधिक जनजाति अधिनियम के निरस्त भइला के दशकन बादो पारधी लोग भेदभाव से जूझ रहल बा. (पढ़ीं: एह देस में ‘पारधी’ भइल गुनाह बा ). जन्म प्रमाणपत्र, आधार कार्ड, वोटिंग कार्ड जइसन जरूरी कागज के अभाव में ओह लोग के सरकारी योजना सभ के फायदा नइखे मिलत. (पढ़ीं: हमार पोता-पोती के आपन घर जरूर होई आउर समृद्धि राजमार्ग के बुलडोजर तले पारधी विद्यालय )
महाराष्ट्र के 25 जिला के विमुक्त, घुमंतू आ अर्द्ध घुमंतू जनजाति पर साल 2017 में हैदराबाद के काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के कइल एगो सर्वे से पता चलल कि एह में शामिल 199 पारधी परिवार में से 38 प्रतिशत घर में बच्चा लोग संगे भेदभाव, भाषा से जुड़ल परेशानी, बियाह आउर पढ़ाई के लेके जागरूकता के कमी चलते प्राथमिक शिक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देले रहे.
“हमनी के बच्चा सब के नसीब में पढ़ाई नइखे लिखल. समाज आजो हमनी के कदर ना करे. हमरा ना लागे कि कुछो बदलल बा,” कांताबाई मेहराइल लउकत रहस.
बहुते दुख के बात बा कि उनकर कहल सच लागेला. सन् 1919 में, महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक आ मास्टर कर्मवीर भाऊराव पाटिल, शिक्षा के रैयत (आम अवाम) ले ले जाए खातिर मजबूत इरादा रखले रहस. आउर ऊ वस्ती तिथे शाला (हर बस्ती में स्कूल) के वकालत कइले रहस. अइसे, एकरा 105 बरिस बादो शिंदोडी में एको स्कूल ना पहुंच पाइल बा. पउटकाबस्ती में स्कूल बने में 90 बरिस लाग गइल. आउर अब सरकारी नीति नियम के आंधी में एकरो पर बंद होखे के खतरा मंडरात बा. समुदाय के लरिका सभ के पूरा तरीका से अलग-थलग छोड़ देवल गइल बा.
पउटकाबस्ती जिला परिषद् स्कूल के देवाल पर लिखल बा:
शिक्षण हक्काची किमया
न्यारी,
शिक्षण गंगा आता
घरोघरी.
(शिक्षा के हक के जादू चंगा,
घरे-घरे बही ज्ञान के गंगा.)
ई सांच होखे में केतना दिन आउर लागी?
अनुवाद: स्वर्ण कांता