लेनिनदासन 30 किसिम के चाउर उगावेलन. एकरा अलावे ऊ संगे के किसान लोग के उगावल आउर 15 तरह के किसिम बेचेलन. इहे ना, ऊ 80 किसिम के धान जोगावे (संरक्षण) के काम करेलन. आउर ई सभ काम तमिलनाडु के तिरुवन्नमलई जिला के उनकर आपन छव एकड़ के खेत में होखेला.

चाउर के एतना तरह के किसिमे खाली अचरज वाला बात नइखे. लंबा समय से अनदेखा कइल गइल चाउर के एह सभ पुरान किसिम इहंवा के छोट आउर मामूली किसान लोग खातिर जादे सही बा. लेनिन, जइसन कि उनकरा पुकारल जाला, आउर उनकर साथी लोग चाउर के नयका किसिम आउर मोनो-क्रॉपिंग (सालोंसाल खाली एगो फसल उगावे के तरीका) के छोड़े के कोसिस करत बा. ऊ लोग बहुफसली खेती के मदद से बिसरा (भुला) देहल गइल किसिम सभ फेरु से उगावे में लागल बा. धान के खेती में क्रांति आवे वाला बा.

ई दोसरा तरह के क्रांति होई, एकर अगुवाई करे वाला लेनिन भी दोसरा तरह के होइहन.

पोलुर तालुका के सेंगुनम गांव में उनकर खेत लगे, गोदाम में सैंकड़न तरह के धान के बोरा धइल बा. पहिले इहंवा बकरी सभ बांधल रहत रहे. एकरे नया तरीका से बनवा के अब गोदाम के काम में लावल जात बा.

बाहिर से देखे में ई छोट जगह बहुते मामूली लागेला. बाकिर भीतरी घुसते नजारा बदल जाला. “ई करुप्पु कावुनी बा, ऊ सीरग सांबा बा,” लेनिन चाउर के बोरा में सूइया घुसा-घुसा के दाना सभ बाहिर निकालत बतावत जात बाड़न. ऊ एह दुनो बिरासती किसिम के चाउर के आपन हथेली पर रख के देखावत बाड़न. पहिलका तनी करियर आउर चमक लेले बा, दोसरका पातर आउर गम-गम महक वाला बा. एगो कोना से ऊ नापे वाला लोहा के बरतन- पडी आउर मरक्का निकाल लइलन. एह से ऊ अलग-अलग नाप में धान मापल जाला.

एहि गोदाम में लेनिन चुपचाप, बिना कवनो हो-हल्ला के चाउर नापेलन, आउर बोरी में बंद करके उत्तर में बेंगलुरु आ दक्खिन में नागरकोइल जइसन भीतरी इलाका सभ में भेजेलन. अइसन लागेला ऊ दसियों बरिस से खेती करे आउर चाउर बेचे के काम कर रहल बाड़न. बाकिर अचरज के बात बा कि ई काम करत उनकरा अबही खाली छवे बरिस भइल बा.

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बावां : लेनिन के धान के खेत. दहिना : ऊ आपन ताजा-ताजा निकलल धान के दाना देखावत बाड़न

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आपन गोदाम में काम में ब्यस्त लेनिन. दहिना : करुप्पु कवुनी, चाउर के एगो पुरान किसिम

“धान कबो हमनी के दुनिया ना रहे,” 34 बरिस के लेनिन हंसत कहलन. बरखा पर टिकल एह इलाका के जमीन पर लंबा बखत से फली, तिलहन आउर बाजरा उगत आइल बा. “हमनी के धान के खेती परंपराई (बिरासत) में नइखे मिलल.” उनकर 68 बरिस के माई, सावित्री कारामणि (करियर आंख वाला मटर) उगावत आउर बेचत रहस. ऊ चार किलो मटर बेचस, त दु मुट्ठी मटर मुफ्त में दे देत रहस. “अम्मा अइसहीं जेतना दे देत रहस, जदि जोड़ल जाव, त बहुते पइसा निकली!” उनकरा घरे जादे करके कलक्का (इहंवा मूंगफली कहल जाला) के ही खेती होखत रहे. उनकर बाऊजी येलुमलई एकरा उगावस आउर बेचस. “कलक्का से कमाई होखे, ऊ अप्पा के पाकिट में जाए. आउर कारामणि से होखे वाला आमदनी अम्मा रख लेत रहस.”

‘किसान बने से पहिले लेनिन’- लेनिन के कहानी चेन्नई से सुरु होखेला. ऊ उहंवा दोसरा लोग जेका कारपोरेट के दुनिया में नौकरी बजावत रहस. उनकरा लगे डबल डिग्री (बीचे में छोड़ल मास्टर डिग्री संगे) रहे. पगार भी ठीक-ठाक रहे. आउर एक दिन ऊ किसान लोग पर बनल मन के झकझोर देवे वाला एगो फिलिम: ओन्पतु रुपाई नोट्टु (नौ रुपइया के नोट) देखलन. फिलिम से उनकरा माई-बाऊजी संगे रहे के लालसा जागल. लेनिन साल 2015 में घरे लउट अइलन.

“ओह घरिया हम 25 बरिस के रहीं. हमरा लगे जिनगी खातिर कवनो तरह के एजेंडा, चाहे प्लान ना रहे. त बस साग-तरकारी आउर फली सभ उगावे लगनी.” तीन बरिस बाद हमार जिनगी में कइएक तरह के बदलाव आइल. आउर हम धान आउर ईंक उगावे लगनी. मसीन, बजार, बंदरन के उत्पात आउर कइएक तरह के चीज उनकर एह फैसला पर असर डाललक.

आउर बरसातो, ऊ जोड़लन. “किसान लोग भलही ‘जलवायु परिवर्तन’ शब्द ना बोलत होखे, बाकिर ऊ रउआ के एकरा बारे में सभ कुछ बताई.” लेनिन खातिर बेमौसम बरखा कवनो मेहमान जइसन बा, जे खाए खातिर कबो टाइम पर ना पहुंचे. “जब भूख से राउर दम निकले लागी, त ऊ लोग आई आउर राउर मरल देह पर माला चढ़ा के दुखी होखे के दिखावा करी.”

नीम के गाछ तरे, ग्रेनाइट के बेंच पर बइठल लेनिन खूब गुदा वाला आम खात हमनी से तीन घंटा ले बतिअइलन. बतकही के बीच ऊ पुरान तमिल कवि तिरुवल्लुवर, तमिलनाडु में जैविक खेती के जनक, नम्मालवार आउर धान के जोगावे वाला (संरक्षणवादी) जानल-मानल हस्ती, देबल देव के जिकिर करत रहलन. ऊ कहलन कि पारंपरिक किसिम आउर जैविक खेती पर लउटनाई जरूरी आउर अपरिहार्य दुनो बा.

चार बरिस में उनकरा से भइल तीन ठो भेंट में ऊ हमरा खेती, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता आउर बजार के बारे में बहुत कुछ बतइलन.

ई कहानी लेनिन के बा. आउर चाउर के भी बा. ओह चाउर के जेकरा अब बरखा पर टिकल आउर कबो सूखाग्रस्त रहल खेत पर गहिर बोरवेल के पानी आउर बिया के बदद से उगावल जाला. एह बिया पर नाम के जगह अक्षर आउर गिनती आंकल बा.

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लेनिन के माई सावित्री लोहा के पडी आ मरक्का (बावां) देखावत बाड़ी, जेकरा से चाउर नापल जाला. ऊ पडी में तूयमल्ली धान (दहिना) भरत बाड़ी. ई धान के पुरान किसिम बा

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ढेरे भइंस आउर अफरात अनाज के
मालिक किसान!
रउआ लोगनी त मुंह अऩ्हारे जाग जाएनी
कम सुतेनी, आउर आपन हाथ से
करियर आंख वाला पकावल वराल मछरी
संगे भर-भर कटोरा नीमन चाउर खाएनी.

नट्रिनई 60, मरुतम तिनई.

तमिलनाडु हरमेसा से चाउर के गढ़ रहल बा. एह सुंदर कविता में किसान, ओकर अन्न के भंडार आउर भोजन के वर्णन बा. कविता कोई 2,000 बरिस पहिले, संगम युग के लिखल बा. एह महाद्वीप में चाउर कोई कोई 8 हजार साल से उगावल जात रहल बा.

“पुरातात्विक आउर आनुवंशिक प्रमाण पुष्टि करेला कि एशिया में उगे वाला चाउर के इंडिका उपप्रजाति (भारतीय उपमहादेश में पैदा होखे वाला चाउर के मोटा-मोटी सभे किसिम एहि प्रजाति से जुड़ल बा) कोई 7,000 से 9,000 साल पहिले से, पूरबी हिमालय के तराई में उगावल जात रहे.” देबल देब आपन ‘साइंटिफिक अमेरिकन’ पत्रिका में लिखत बाड़न, “कइएक हजार साल ले पर्यावरण के हिसाब से तइयार करे, उगावे के बाद परंपरागत किसान लोग चाउर के अइसन किसिम तइयार कइलक जे अलग-अलग माटी, जमीन आउर जलवायु के, पूरा तरीका से अनुकूल रहे, खास संस्कृति, खान-पान आउर औषधीय जरूरत के अनुकूल रहे. ”

बाकिर कइएक साल, खास करके हरित क्रांति के बाद, एह तरह के बिबिधता बहुत हद ले नष्ट हो गइल. 1960 के दसक के मध्य में खाद्य आउर कृषि मंत्री रह चुकल सी. सुब्रमण्यम आपन संस्मरण “द ग्रीन रेवोल्यूसन” के दोसर हिस्सा में ओह “बिनासकारी आउर ब्यापक सूखा” के बारे में खुलके लिखलन. एह सूखा चलते 1965-67 में खाद्यान्न के भयानक कमी पैदा हो गइल रहे. एह चलते लोकसभा में “संयुक्त राज्य संग भइल समझौता पीएल-480 के तहत अनाज के आयात पर लगातार निर्भरता” पर एगो प्रस्ताव लावे के मजबूर होखे के पड़ल. कारण “ई हमनी के राष्ट्र सम्मान खातिर कलंक आउर अर्थब्यवस्था खातिर नुकसानदेह रहे.”

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तूयमल्ली (बावां) आउर मुल्लनकइमा (दहिना) जइसन किसिम के धान के बाली. लेनिन एकरा उगावे आउर संरत्रित करेलन

राज्य आउर एकर नेता लगे दुइए ठो विकल्प बचल रहे- जमीन के फेरु से बांटल जाव, जे एगो राजनीतिक (संभावित रूप से भयानक) समाधान रहे, आउर दोसर, वैज्ञानिक आउर तकनीकी हल (जे सायद सभे किसान खातिर समान रूप से लाभ देवे वाला ना रहे). एहि से ऊ लोग पैदावर बढ़ावे खातिर चाउर आउर गेहूं के जादे उपज देवे वाला किसिम लावे के उपाय सोचलक.

पचास बरिस बाद, आज भारत में चाऊर आउर गेहूं एतना हो रहल बा कि ऊ एकर निर्यातक बन चुकल बा. तबो हमनी के खेती आउर किसान लोग समस्या से ग्रस्त बा. देस के अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो बतावेला कि पछिला तीस बरिस में चार लाख से जादे किसान लोग के जान आत्हत्या चलते चल गइल. देस में उचित मूल्य आउर उचित नीति के मांग लेके किसानन के बहुते बड़-बड़ बिरोध प्रदर्शन देखल गइल. जबले रउआ लोगनी ई लेख पढ़म, तबले दरजन भर आउर किसान लोग खेती छोड़ चुकल होई.

इहे बात हमनी के लेनिन आउर उनकर क्रांति ओरी लउटे के मजबूर कर देवेला. खेती में, फसल में बिबिधता लावल काहे जरूरी बा? काहेकि मवेसी, कपास आउर केला के तरहा, दुनिया कम से कम किसिम के उत्पादन करे के बादो जादे से जादे दूध, सूत आउर फल प्राप्त कर रहल बा. देब चेतइलन, बाकिर “मोनोकल्चर (एकल खेती) के अथाह बिस्तार से कुछ खास कीट सभ के महाभोज करे के मौका भेंटा जाला.”

भारत के कृषि वैज्ञानिक आउर हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस स्वामीनाथन साल 1968 में ही चेतइले रहस कि “जदि इलाका के हवा-पानी के हिसाब से उपजे वाला फसल के एगो, चाहे दू गो उन्नत किसिम से बदल देवल जाव, त फसल सभ में खराब बेमारी लाग सकत बा. एकरा से समूचा उपज खराब हो सकत बा.”

अइसे त, चाउर के नयका-नयका किसिम दुनिया भर में उगावल जा रहल बा. 28 नवंबर, 1966 के अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ओरी से पेश कइल गइल पहिल नयका चाउर के अजीब नाम, “आईआर8” देवल गइल. अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्रिका, राइस टुडे के एगो लेख के हिसाब से, एह आधा बौना किसिम के “चमत्कारी चाउर” बतावल गइल. ई चाउर एशिया आउर एकरा से बाहिर के देस में चाउर उगावे के क्षेत्र में बहुते बड़ा बदलाव लेके आइल.

हंगरी नेशन नाम के आपन किताब में बेंजामिन रॉबर्ट सीगल मद्रास (ओह घरिया चेन्नई के इहे पुकारल जात रहे) के बाहिर के एगो संपन्न किसान के बारे में लिखत बाड़न कि ऊ आपन मेहमान लोग के नास्ता में “आईआर 8 इडली” परोसत रहस. दोसर किसान आउर पत्रकार लोग समेत उनकर मेहमान, “के बतावल गइल कि आईआर-8 चाउर भारत में फिलीपींस से लावल गइल रहे. एह चाउर के दाना खूब नरम आउर स्वादिष्ट त रहले रहे, ओकर पैदावार भी अफरात होखत रहे.”

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धान के हरियर-हरियर खेत (बावां) आउर ओसौनी कइल धान (दहिना) के दाना

‘स्टफ्ड एंड स्टार्व्ड’ नाम के आपन किताब में राज पटेल कहत बाड़न, नयका बीज तबे ठीक से काम करी जब ओकरा बढ़े खातिर प्रयोगशाला जइसन नीमन जगह आ सुविधा मिली. जइसे कि पानी पटावे, खाद आउर कीटनासक के चोखा इंतजाम रहे के चाहीं. ऊ मानेलन कि “कुछ इलाका में, हरित क्रांति तकनीक के चलते, भयानक भूख पर काबू पाइल जा सकल. बाकिर एकरा से समाज आउर जलवायु के जे नुकसान भइल ऊ बहुते जादे रहे.”

ग्रामीण आ कृषि भारत के स्थिति रिपोर्ट 2020 में कहल गइल बा कि सिरिफ गेहूं, चाउर आउर ईंख के सब्सिडी देवे चलते “किसान लोग अइसन फसल बहुते बड़ पैमाना पर उगावे लागल. अइसन होखे से कम पानी वाला इलाका में सिंचाई वाला उपज के बढ़ावा मिलल आउर एकरा चलते फसल के पैटर्न गड़बड़ा गइल. फसल में बिबिधता कम होखे से लोग के सेहत पर असर पड़ल. हमनी के थरिया में तरह-तरह के अनाज कम होखत चल गइल आउर ओकरा जगह खूब पॉलिश कइल चाउर, गेहूं आउर रिफाइन चीनी जगह लेवे लागल.”

लेनिन बतावत बाड़न कि तिरुवन्नमलई जिला में ई सभ उनकर स्मृति के हिस्सा होखत रहे. “अप्पा के समय, सिरिफ मानावरी (बरखा पर टिकल) फसल होखत रहे. फली सभ बड़ पैमाना पर उगावल जात रहे. झील लगे के इलाका में सांबा (धान) के एगो फसल होखत रहे. अब उहंवा सिंचाई आधारित खेत जादे बा. अप्पा के कोई बीस बरिस पहिले बैंक से करजा आउर बोरवेल कनेक्शन मिलल रहे. ओकरा से पहिले एह तरह के पानी में ठाड़ धान के फसल वाला खेत ना नजर आवत रहे,” अप्पा कहले. ऊ अपना पाछू के खेत ओरी इसारा करत बात करत रहस. उहंवा मटमैला भुअर पानी में ठाड़ धान के हरियर-हरियन नयका पौधा लहरात रहे. आउर ओह पानी में लगे के गाछ, आसमान आउर सूरज सभे के प्रतिबिंब बनत रहे.

लेनिन कहले, “पुरान किसान लोग से पूछम त ऊ लोग बताई कि कइसे आईआर8 ओह लोग के पेट भरत रहे. ऊ लोग इहो बताई कि कइसे ओह लोग के मवेसी के चारा मिले में परेसानी होखे लागल..” कलसपक्कम में हो रहल किसान लोग के बैठक में कइएक किसान लोग तनी मजाक में कहे लागल, “रउआ मालूम बा, किसान लोग के कुछ परिवार में नाटा लोग के आजो इरेट्टु (तमिल में आईआर8) कहल जाला.” आउर एतना कहला के बाद सभे लोग ठहाका मार के हंसे लागत रहे.

बाकिर जब जैवबिबिधता पर चरचा के बखत आवे, त सभे कोई चुप हो जात रहे.

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बावां: लेनिन गोदाम से आपन खेत ओरी जात बाड़न. दहिना: खेत जहंवा ऊ आपन नाना किसिम के धान उगावेलन आउर ओकरा जोगा के रखेलन

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साल 2021 में जब लेनिन से पहिल बेर भेंट भइल, ऊ किसानन के बड़का समूह से जलवायु परिवर्तन आउर खेती के बारे में बात कइलन. ई बैठक तिरुवन्नमलाई जिला के कलसपक्कम शहर में परंपरिया विधाइगल मय्यम (पारंपरिक बीज मंच) के मासिक बैठक रहे. समूह के बैठक हर महीना के 5 तारीख के होखेला. सितंबर के ओह भोर में खूब धूप आउर गरमी रहे. मंदिर के पाछू नीम के गाछ के छाया में तनी ठंडा रहे, जहंवा हमनी बइठल रहीं. हमनी सुनत रहीं, हंसत रहीं आउर सिखत रहीं.

“जइसहीं बताइला कि हमनी जैविक खेती करिला, लोग या त हमनी के गोड़ छूए लागी, या हमनी के मूरख समझी,” लेनिन के टिप्पणी रहे. फोरम के सह-संसाथापक, 68 बरिस के पी. टी. राजेंद्रन पूछेलन, “नयका उमिर के लइका लोग पंचकव्व्यम (गोमूत्र, गोबर आउर दोसर सामान से बनल, जे देह में रोग से लड़े के ताकत देवे आउर वृद्धि करे के काम करेला) के बारे में हो सकत बा सुनले होई. बाकिर का ई काफी बा.”

किसान लोग खातिर, कबो-कबो बदलाव सामान्य होखेला. लेनिन के बाऊजी, येलुमलई महंगा होखे के चलते दवाई वाला खाद आउर कीटनासक काम में लावल छोड़ देलन. लेनिन के कहनाम बा, “एक बेरा कीटनासक छिड़के से हमनी के हजारन के नुकसान होखत रहे. अप्पा पसुमई विकटन (कृषि मैगजीन) पढ़लन आउर कुदरती आउर जमीन से जुड़ल चीज सभ संगे प्रयोग कइलन. आउर फेरु घोल बना के हमरा के छिड़के के देवे लगलन. आउर हम छिड़के लगनी.” ई काम कर गइल.

हर महीना किसान लोग अलग-अलग बिषय पर चरचा करेला. कुछ लोग उहंवा कंद, दाल आउर कोल्हू से निकलल तेल बेचे खातिर आवेला. केहू बैठक में आवे वाला लोग खातिर नस्ता के इंतजाम करेला, त केहू दाल आउर तरकारी लेके आवेला. खुलल आंगन में चूल्हा जरा के ओह पर पारंपरिक किसिम के चाउर पकावल जाला आउर ओकरा केला के पत्ता पर गरम-गरम परोसल जाला. संगे तरकारी आउर स्वादिष्ट सांभरो रहेला. सौ लोग खातिर एह तरह के खाना के इंतजाम करे में कोई 3,000 रुपइया के खरचा आवेला.

किसान लोग एह बीच जलवायु परिवर्तन पर बहस करेला. उहंवा जैविक खेती, बिरासत में मिलल कुछ किसिम आउर बिबिधीकरण जइसन बिषय पर कइल जाला.

“करिया-करिया बदरी घिर आवेला, किसान के लागेला अब बरखा होई, आउर फेरु... बदरी सभ लुका जाला. आउर जनवरी में जब धान के फसल तइयार हो जाला, पानी बरसे लागेला आउर फसल बरबाद हो जाला. एह में हमनी का कर सकत बानी? हम त इहे कहम, एगो फसल में जादे पइसा ना लगावे के चाहीं,” राजेंद्रन सलाह देलन. “खेत के किनारे-किनारे अगति (अगस्त्य, चाहे हमिंग बर्ड गाछ) उगाईं आउर सूखल जमीन पर ताड़ के गाछ लगाईं. सिरिफ मूंगफली आउर धान उगावे के भरोसे मत रहीं.”

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पी. टी. राजेंद्रन (बावां) आउर लेनिन (दहिना) कलसपक्कम के ऑर्गेनिक मंच पर किसान सभ संगे बतियावत बाड़न

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बावां: बैठक में नाना प्रकार के फली, दाल आउर चाउर बेचल गइल. दहिना: आवे वाला लोग खातिर भात पकावल गइल आउर परोसल गइल

जैविक किसान के आंदोलन, कम से कम तिरुवन्नमलाई जिला में, अब किसान लोग के सिखावे के जगह, ग्राहक लोग के सिखावे के आंदोलन बन चुकल बा. “हरमेसा एके तरह के धान के किसिम के उम्मीद मत रखीं.” इहे रटत रहल ठीक नइखे. एगो बुजर्ग किसान कहलन: “ग्राहक लोग चाउर के पांच किलो के झोरा मांगेला. ऊ लोग के कहनाम बा कि एकरा से बड़ बोरा रखे के जगह नइखे.” ऊ चुटकी लेलन, “जब रउआ घर खरीदिला, त ओह में कार आ मोटरसाइकिल रखे के जगह देखिला, त चाउर के बोरा खातिर जगह काहे ना रखीं?”

किसान लोग के तर्क बा कि छोट मात्रा में चाउर रखनाई झंझट के काम बा. चाऊर के बड़का बोरा भेजे में कम समय, मिहनत आउर खरचा लागेला. “हाइब्रिड चाउर अब एक सिप्पम (26 किलो के बोरा) में बेचल जाला. एह पैकिंग में दस रुपइया से भी कम खरचा आवेला. जबकि एतने चाउर दस-दस किलो के बोरी में पैक कइल जाव, त एह में 30 रुपइया लाग जाला,” लेनिन फरिया के बतइलन. “नाकु तल्लुदु,” ऊ आह भरलन. तमिल भाषा में ई शब्द मोटा-मोटी थकला आउर ऊबला पर जीभ के बाहिर ओरी निकाल के कहल जाला. “शहर के लोग के हरमेसा समझ में ना आवे कि गांव में ई सभ कइसे होखेला.”

लेनिन लगे एह काम के बहुते सरल परिभाषा बा. आउर उनकर काम के घंटा भी तय बा. “जे घरिया हम सुतल ना रहीं, चाहे बाइक ना चलावत रहीं, ओह घरिया हम काम करत रहिला.” आउर फेरु जवन घरिया ऊ बाइक पर रहेलन, ऊ सांचो में काम करत रहेलन. ऊ गाड़ी पर चाऊर के बोरी बांध के घूमत रहेलन आउर ग्राहक लोग के पहुंचावत रहेलन. उनकर फोनो हरमेसा चालू रहेला. पांच बजे भोर में फोन बजे के सुरु होखेला त रात के दस बजे खत्म होखेला. उनकर जबो तनी टाइम मिलेला, ऊ ब्हाट्सऐप मैसेज के जवाब देवेलन. ऊ एह काम खातिर जरूर टाइम निकाल लेवेलन.

“तिरुवन्नमलाई जिला में हमनी एगो पुस्तिका तइयार कइले बानी. एह में सभे तरह के पुरान किसिम के धान के नाम लिखल रहेला.”  पुस्तिका के बहुते पसंद कइल गइल, दूर-दूर ले लोग एकरा जाने लागल. “हमार मामा पोंनु (मामा के लइकी) एकरा हमर व्हाट्सऐप पर भेजली,” लेनिन हंसलन. “ऊ कहली ‘देखीं, केतना नीमन से बनावल बा.’ हम ओकरा कहनी कि तनी अंतिम पन्ना उलट के देख. उनकरा उहंवा हमार नाम मिलल: लेनिनदासन.”

आत्मबिस्वास से भरल आउर महीन बोली बोले वाला एगो किसान, लेनिन तमिल आउर अंगरेजी बोले में सहज बाड़न. ऊ ओतने आसानी से एक भाषा से दोसर भाषा में बोल लेवेलन. उनकर बाऊजी येलुमलई कम्युनिस्ट रहस (जे उनकर नाम, लेनिन से साफ बा). लेनिन जब नया उमिर के रहस, खेत में कइएक घंटा गुजारत रहस. बाकिर ऊ कबो ना सोचले रहस कि पूरा तरीका से जैविक खेती करे आउर चाउर जोगा के रखे वाला किसान बनिहन.

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चाउर के पुरान किसिम देखावत लेनिन

“दु बेरा ग्रेजुएशन कइला के बाद चेन्नई के एगमोर में नौकरी करे लगनी आउर उहंई रहे लगनी. उहंवा 2015 में हमरा मार्केट रिसर्च खातिर 25,000 के दरमाहा मिलत रहे. अच्छा पइसा रहे...”

जब ऊ सेंगुनम लउटन, त रसायनिक तरीका से खेती करे लगलन. “हम लउकी, बैंगन, टमाटर उगाईं आउर इहंवा लाके बेचीं,” ऊ हमनी के सड़क किनारे के इलाका ओरी देखइलन. लेनिन हर हफ्ता उलवर संदई (किसानन के मोहल्ला) भी जाएलन. उहे दौरान उनकर तीन बहिन के बियाह भइल.

“हमार मांझिल बहिन के बियाह के खरचा हरदी के फसल से पूरा भइल रहे. बाकिर रउआ जानत बानी? बहुते मिहनत के काम होखेला. हरदी उबाले में पूरा परिवार के लागे के पड़ेला,” ऊ बतइलन.

उनकर बहिन लोग जब आपन-आपन ससुराल बिदा भइली, लेनिन के खेत आउर घर के काम बहुते भारी बुझाए लागल. ऊ अकेले बरखा पर आधारित तरह-तरह के किसिम के धान ना उगा सकत रहस. आउर ना ऊ रोज के कटाई आउर बेचे के काम संभार सकत रहस. इहंवा ले कि मौसमी फसल उगावल आउर ओकरा कीट, तोता आउर शिकारी से बचावल भी मुस्किल लागत रहे. “मकई, मूंगफली, लोबिया के रखवाली करे आउर इकट्ठा करे खातिर बहुते लोग के जरूरत रहेला. आपन दू गो हाथ-गोड़ से एतना सभ कइसे कर सकत रहीं. फेरु हमरा बूढ़ माई-बाऊजी के देखभाल भी करे के रहे.”

उहे घरिया, बंदर सभ के उत्पाद तेजी से बढ़ गइल. “नरियर के गाछ देखत बानी? इहंवा से उहंवा ले,” ऊ ऊपर देखइलन, “बंदर सभ गाछ के ऊपर उछलत-कूदत रहेला. ऊ लोग उहंवा बरगद पर सुतल रहेला. ओह में से चालीस-साठ लोग हमनी के खेत पर धावा बोल देवेला. ऊ सभ हमरा से तनी डेराला. हम ओह लोग के तेजी से खदेड़ देविला. बाकिर उहो सभ चालाक रहे. माई-बाऊजी संगे ऊ सभ मनोवैज्ञानिक तरीका आजमावे लागे. एगो बंदर नीचे उतरे, त ऊ लोग जइसहीं ओकरा पाछू खदेड़े जाए, ओहि घरिया दोसरका बंदर गाछ से उतरे आउर फसल पर हमला कर देवे. कहानी में हमनी जे पढ़िला, ऊ कवनो गलत ना पढ़ीं, बंदरवा सभ बहुते चलाक होखेलन!”

बंदर सभ के उत्पात कोई चार बरिस ले चलल. तीन किमी के दायरा में रहे वाला किसान लोग अइसन फसल उगावे लागल जेकरा से बंदर सभ के कवनो मतलब ना रहे. लेनिन आउर उनकर परिवार अब धान आउर ईंख उगावे लागल.

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लेनिन (बावां) आपन दोस्त आउर बितरक एस. विग्नेस (दहिना) के बाइक पर चाउर के बोरा लाद रहल बा

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“धान हमनी के मान बा,” लेनिन कहलन. “इहंवा एकरा बहुते आदर देवल जाला. चरवाहा लोग के गाय-बकरी सभ जदि दोसरा के खेत में चरे त ऊ लोग ओतना परेसान ना होखे. बाकिर जदि केकरो धान के खेत बा, त ऊ लोग आके माफी मांगेला, चाहे अइसन कबो-कबो ही होखत होखे. हरजाना भी देवेला. धान के फसल के केतना आदर देवल जाला, सोचीं.”

एह फसल के उगावे से उन्नत किसिम के तकनीक, मसीन के लाभ मिलल आउर बजार तक पहुंच भी मिलल. लेनिन एकरा सौरियम  (आराम) पुकारेलन. “देखीं, धान उगावे वाला किसान लोग कवनो समाजिक ना, तकनीकी समाधान चाहीं. आउर फेरु ऊ लोग एकल कृषि (मोनो क्रॉपिंग) ओरी रुख करेला.”

खेती के जमीन पारंपरिक रूप से पुनसेई निलम (सूखल चाहे बरखा पर टिकल जमीन) आउर ननसेई निलम (गील चाहे सिंचाई पर टिकल खेत) में बंटल बा. लेनिन बतावत बाड़न, “पुनसेई खेत पर रउआ नाना किसिम के अनाज उगा सकिला. मूल रूप से ऊ सभ जे रउआ आपन घर खातिर चाहीं. किसान लोग के जबो बखत मिलेला ऊ लोग पुझड़ी- सूखल, धूल भरल धरती के हल से कोड़ाई, जोताई करेला. एकरा से समय आउर प्रयास के ‘बचत’ हो जाला, जइसे केहू खेत के ‘बैंक’ में एकरा बचा के रखत जाए. बाकिर मसीन के आवे से पूरा मामला बदल गइल. रउआ राते भर में 20 एकड़ जमीन जोत सकिला.”

किसान लोग एक फसल चक्र खातिर पुनसई में देसी चाउर के नाना किसिम उगा सकेला. लेनिन बतइलन, “ऊ लोग पूनकार, चाहे कुल्लनकार जइसन चाउर के दू ठो किसिम, जे देखे में एक जइसन लागेला, उगावेला. एह में अंतर सिरिफ फसल के चक्र के अवधि के बा. जदि रउआ पानी खतम होखे के चिंता लागत बा, त बनिहा रही कि रउआ पूनकार किसिम के खेती करीं. एह में फसल 75 दिन में तइयार होखेला, जबकि दोसरका में 90 दिन लागेला.”

मसीन के जादे इस्तेमाल से, लेनिन बतावत बाड़न, छोट खेत में भी धान उगावल संभव हो गइल बा. एह में खेत में जादे पानी के भी जरूरत ना होखे. “एह इलाका में 10 से 15 बरिस से बैल के इस्तेमाल नइखे भइल. नयका मसीन किराया पर मिले के चलते, एक चाहे आधा एकड़ के भी जुताई कइल जा सकेला. आउर एहि से अब जादे लोग धान उगावे लागल बा.” ऊ अब धान के रोपाई, निराई-गुड़ाई, कटनी आउर ओसौनी करे वाला मसीन सभ खड़खड़ावे लागत बाड़न. “जदि रउआ धान उगावत बानी, त बिया बोए से लेके बिया निकाले तक- मसीन सगरे काम कर देवेला.”

कबो-कबो त अइसन लागे कि धान उगावल खाली आदमी आउर मसीन के बीच के ब्यापार होखे. तिल जइसन बरखा पर टिकल फसल के भंडारण, सुखावे, आउर ओसौनी कइल आसान बा. “एकरा उगावे में जादे मिहनत ना लागे. रउआ एक बेरा बिया छींट देनी, त फेरु आराम से बइठ जाईं,” लेनिन समझावे लगलन. ऊ हाथ से एगो आधा घेरा बनाके बिया छींटे के अभिनय करे लगलन. बाकिर एकर जगह धान ले लेलक काहेकि एकरो पैदावरा नीमन होखेला. “चाहे रउआ 2.5 एकड़ में तिल रोपीं, मिली दसे बोरी. रउआ एकरा भाड़ा वाला ऑटो में भी बजार ले जा सकिला. आउर धान? एगो टिपर (एक तरह के ट्रक) भी कम पड़ी!”

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पूनकार किसिम वाला धान के खेत

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बावां: खलिहान जहंवा धान के ओसौनी कइल जाला. दहिना: आपन गोदाम में लेनिन

दोसर बात चाउर खातिर नियंत्रित बजार से जुड़ल बा. सगरे आपूर्ति ब्यवस्था उन्नत किसिम के उपज के प्रोत्साहित करेला. हरित क्रांति के बाद लगावल चाउर के नयका मिल में चलनी सहित सभ मसीन उच्च कोटि के बा. देसी किसिम खातिर एह तरह के मसीन ठीक नइखे. काहेकि ओकर दाने के आकार अलग-अलग होखेला. एकरा अलावे, रंग वाला चाउर के नयका मिल में प्रोसेस ना कइल जा सके. “चाउर के मिल मालिक लोग भलही हरित क्रांति के बड़ पैरोकार ना हो, संभव बा कि एह बारे में ओह लोग के आपन कोई राय भी ना होखे. बाकिर ऊ लोग ई समझेला कि ग्राहक के पातर, उज्जर, आउर चमके वाला खास किसिम के हाईब्रिड चाउर पसंद आवेला. चावल के मिल ओह लोग के इहे पसंद के भुनावे खातिर खोलल गइल बा.”

कवनो अचरज के बात नइखे कि पुरान चाउर में बिबिधता लावे आ उगावे वाला किसान के आपने जानकारी के आसरे रहे के पड़ेला. ओह लोग के छोट प्रोसेसिंग यूनिट, अप्रत्याशित समाजिक समर्थन से जूझे के पड़ेला, लेनिन बतावत बाड़न. “जबकि जादे उपज देवे वाला, नयका किसिम के चाउर के ई सभ सुविधा आसानी से मिल जाला.”

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तिरुवन्नमलाई, चेन्नई से कोई 190 किमी दूर दक्खिन-पूरब इलाका में बसल, खेत से घिरल एगो जिला बा. इहंवा के हर दोसर आदमी कमाई खातिर ‘खेती से जुड़ल काम’ पर निर्भर बा. इलाका में चीनी मिल के अलावे, चाउर के अनगिनत मिल मिल जाई.

साल् 2020-21 में, तिरुवन्नमलाई तमिलनाडु में धान के खेती के तेसर सबले बड़ इलाका रहे. बाकिर ई चाउर उत्पादन में पहिल स्थान पर रहे, राज्य के 10 फीसदी से जादे चाउर एहि जिला से आवत रहे. डॉ. आ. गोपीनाथ कहले, “तिरुवन्नमलाई, दोसर जिला के 3,500 किलो प्रति हेक्टेयर के मुकाबले 3,907 किलो के औसत उत्पादन करेला.” डॉक्टर एम. एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन, इकोटेक्नोलॉजी में प्रमुख वैज्ञानिक बाड़न.

एमएसएसआरएफ, इकोटेक्नोलॉजी में निदेशक डॉ. आर. रेंगलक्ष्मी के कहनाम बा, तिरुवन्नमलाई में धान के खेती तेजी से बढ़ल बा. “एकर कइएक बजह बा. जब बरखा होखेला, त किसान लोग धान उगावे में जोखिम कम करे, उपलब्ध पानी के जादे काम में लावे के चाहेला. अइसन करे से नीमन पैदावार होखेला आउर फायदो अच्छा रहेला. दोसरका कारण, ओह इलाका में जहंवा एकरा उगावल जाला, ऊ घर के इस्तेमाल खातिर होखेला, उहंवा किसान लोग निस्चित रूप से एकरा उगाई. आउर आखिर में, जब भूजल सिंचाई के साधन के स्थिति अच्छा हो जाला, त एक से जादे फसल चक्र में जादे धान उगावल जाला. आउर आखिर में, भू-जल जादे उपलब्ध होखला से एकरा पर निर्भर धान एक से जादे फसल चक्र में उगावल जाए लागेला. एहि से भलही भू-जल पर निर्भर धान के जमीन में इजाफा ना होखे, उपज में जरूर इजाफा हो जाला.”

चाउर के जादे पानी चाहीं. “नाबार्ड के ‘प्रमुख भारतीय फसल के जल उत्पादकता मानचित्र (2018) के हिसाब से एक किलो चाउर उगावे खातिर कोई 3,000 लीटर पानी के जरूरत पड़ेला. पंजाब-हरियाणा में त एतने चाउर उगावे खातिर 5,000 लीटर पानी लागेला,” डॉक्टर गोपीनाथ कहलन.

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लेनिन के खेत में धान के ताजा-ताजा बिचरा रोपल बा

लेनिन के खेत में 100 फीट गहिर ईनार से पानी पटावल जाला. “एतना पानी हमनी के फसल खातिर पर्याप्त बा. हमनी तीन इंच के पाइप वाला मोटर एक बेरा में दू घंटा ले पानी पटा सकिला, आउर जादे से जादे पांच घंटा ले चला सकिला. बाकिर,” ऊ कहेलन, “हम एकरा अइसहीं चलता छोड़ के एने-ओने घूम ना सकीं.”

डॉ रेंगलक्ष्मी के कहनाम बा, सिंचाई के क्षमता 2000 से 2010 के बीच बढ़ल बा. “जादे क्षमता वाला बोरवेल मोटर सभ ओहि घरिया मिलियो जाला. संगही ड्रिलिंग मसीन भी अब आम हो गइल बा. तमिनलाडु में तिरुचेंगोदे, बोरवेल रिग्स के गढ़ रहे. कबो-कबो किसान लोग हर तीन से चार बरिस में एगो नया बोर लगावत रहे. जदि ऊ लोग सिरिफ बरखा के पानी पर निर्भर रहित, त ऊ लोग के खाली तीन से पांच महीना ले काम करे के पड़ित. सिंचाई करे में ओह लोग के लगातार काम करे के पड़ल आउर एकरा से उत्पादन पर भी असर पड़ल. अइसन हालात चाउर खातिर एगो महत्वपूर्ण मोड़ रहे. 1970 के दसक तक ई सिरिफ तीज-त्योहार के बात रहे. आउर अब ई रोज के बात हो गइल बा. सार्वजनिक वितरण ब्यस्था में एकर बड़ पैमाना पर उपलब्ध होखे चलते एकर उपयोग भी जादे होखे लागल बा.”

तमिलनाडु में अब कुल फसल क्षेत्र के 35 प्रतिशत हिस्सा में धान उगावल जाला. बाकिर केतना किसान लोग जैविक तरीका से देसी किसिम उगा पावेला?

नीमन सवाल बा, लेनिन हंसलन. “जदि रउआ एकरा एक्सेल शीट में डालन, त पता चली कि सिंचाई वाला धान के खेत के सिरिफ 1 चाहे 2 प्रतिशत में ही पुरान किसिम के चाउर उगावल जा रहल बा. एतना भी बहुते होई. एकर बड़ा फायदा ई बा कि एकर प्रचलन पूरा राज्य में बढ़ल बा.”

बाकिर लेनिन पूछत बाड़न कि नयका किसिम उगावे वाला किसान लोग के कवना तरह के ट्रेनिंग मिल रहल बा? “ई सभ उत्पादन बढ़ावे खातिर बा. आउर कमाई बढ़ावे खातिर. ओह लोग लगे सभे निर्देश ऊपर से, चेन्नई, चाहे कोयंबटूर से आवेला. आउर ई अलग-अलग ब्लॉक तक आउर फेरु ब्यक्तिगत किसान तक जाला. का एह तरीका से ऊ लोग पिछड़ ना जाई? ऊ लोग अपना बारे में कुछो सोच ना पाई.?” लेनिन अचरज से कहलन.

बात जब मूल्य-संवर्द्धन के आवेला, त ‘नीचे से ऊपर’ के नियम अपनावल जाला, ऊ बतावत बाड़न. “हमनी के सिरिफ चाउर के प्रोसेस करे, पैक करे आउर जइसन काम करे के कहल जाला.” किसान लोग के उत्पादन आउर कमाई के चस्मा से सभ कुछ देखावे के प्रयत्न कइल जाला. ओह लोग के दिन में सपना देखावल जाला कि आउर जादे पैदावार के लक्ष्य हासिल कइल जा सकत बा

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लेनिन आउर उनकर दोस्त के हाथ में धान के अलग-अलग किसिम के बाली

जैविक तरीका से खेती करे वाला किसान लोग, एक समूह के रूप में, बिबिधता, स्थिरता आउर दोसर मुद्दा में रुचि रखेला. ई बड़ पैमाना पर लोग के प्रभावित करेला, लेनिन के कहनाम बा. ऊ पूछत बाड़न, “चाउर, चाहे खेती पर चरचा हमनी के बराबरी के हिस्सेदार मानत आमने-सामने बइठ के ना होखे के चाहीं? अनुभवी किसान लोग के पूरा चरचा से काहे दूर रखल जाला?”

तिरुवन्नमलाई में जैविक खेती बहुते पसंद कइल जाला, “खास करके नयका उमिर के किसान के बीच. एह में से 25 से 30 बरिस के आधा लोग खेत में दवाई ना डाले,” लेनिन बतइलन. एहि से इहंवा जमीन से जुड़ल गतिविधि जादे बा. एह जिला में कइएक गुरु लोग भी बा, “जमींदार से लेके ऊ लोग जेकरा लगे एको प्रतिशत जमीन नइखे. अइसन कइएक मास्टर लोग बा!” लेनिन तमिलनाडु में कलसपक्कम फोरम के नींव रखे वाला वेंकटचलम अइया, नम्मलवार, पमायन (विचारक आउर जैविक तरीका से खेती करे वाला), मीनाक्षी सुंदरम, जैविक खेती करे वाला किसान लोग आउर जिला के नौजवान सभ के प्रेरणा आउर कृषि वैज्ञानिक डॉ. वी. अरिवुदई नामंबी जइसन हस्ती सभ के योगदान पर चरचा कइलन. “अइसन हस्ती लोग हमनी के सिखइले बा...”

कुछ किसान लोग लगे आमदनी के अतिरिक्त (गैर-कृषि) जरिया भी बा. “ऊ लोग जानत बा कि खेती से पर्याप्त कमाई ना होखे.” बिल चुकावे में एह पइसा से तनी मदद हो जाला.

एगो किसान कबो सीखे के ना छोड़े. ई बात मार्च, 2024 में हमरा से तेसर भेंट में लेनिन कहलन. “अनुभव से हम अनाज, एकर लमहर आउर भनिया उगे वाला किसिम के बारे में जननी. ई बरखा आउर दोसर किसिम के समस्या के भी झेल सकेला. हम चार तरह के सिद्धांत पर भी भरोसा करेनी: संरक्षण, खेती, उपभोग आउर कारोबार.”

हमनी गोदाम से उनकर खेत गइनी. खेत करियर बूंट वाला खेत के पार, ईंख के गाछ लगे, ‘प्लॉट’ के ओह तरफ पड़ेला. उहंवा चापट छत वाला घर सभ उग आइल बा. लेनिन तनी मेहराइल आवाज में कहलन, “अब इहंवा जमीन स्क्वायर फुट के हिसाब से बेचात बा. समाजवादी सोच वाला लोग भी अब पूंजीवाद से प्रभावित हो रहल बा.”

लेनिन 25 सेंट (एक चौथाई एकड़) में पूनकार उगावेलन. “हम पूनकार के बिया दोसर किसान के भी देले रहीं. फसल भइला पर ऊ हमरा लउटा भी देलन.” एह तरह के फोकट के आदान-प्रदान से एह चाउर के बिया सभ प्रचलन में रहेला.

जमीन के एगो दोसर टुकड़ा में ऊ हमनी के उहंवा लागल वालइपू सांबा नाम के किसिम के दर्शन करइलन. “बिया के संरक्षण करे वाला एगो आउर आदमी, कार्ती अन्ना हमरा एकर बिया देलन.” पाकल धान के गुच्छा अपना हाथ में उठइले लेनिन कहलन, “हमनी के एह तरह के किसिम पर ध्यान देवे के पड़ी.” धान के गुच्छा में दाना सभ सुंदर से लटकल बा, जइसे हाथ से बनावल कोई कीमती गहना होखे.

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लेनिन हमनी के धान के पुरान किसिम वालइपू सांबा देखावत बाड़न

लेनिन मानत बाड़न कि सरकारो जैविक खेती आउर देसी नस्ल के लोकप्रिय बनावे के कोसिस कर रहल बा. सरकार ओरी से एह खातिर तरह-तरह मेला आउर ट्रेनिंग प्रोग्राम करवावल जा रहल बा. उनकर कहनाम बा, “रातोंरात कुछुओ ना बदली. खाद के कारखाना, बिया के दोकान सभ अचानक बंद ना हो जाई, हो जाई का? बदलाव धीरे-धीरे आवेला.”

तमिलनाडु के कृषि आ किसान कल्याण मंत्री एम. आर. के पन्नीरसेल्वम आपन 2024 के कृषि बजट में कहलन:  धानके पुरान किसिम के जोगावे के नील जयरमण मिशन के तहत, “साल 2023-24 के बीच 12,400 एकड़ पर देसी किसिम के खेती करे से 20,979 किसान फायदा में रहल.”

ई अभियान स्वर्गीय नेल जयरामन खातिर एगो श्रद्धांजलि बा. उहे साल 2007 में पारंपरिक धान के बिया के मेला, नेल तिरुविला सुरु कइले रहस. मेला ‘सेव आवर राइस’ अभियान के हिस्सा रहे. “कोई 12 बरिस में जैविक खेती करे वाला किसान आउर बिया के जोगावे वाला लोग संगे मिलके ऊ 174 किसिम के संग्रह कइलन. एह में से जादे करके किसिम सभ खत्म होखे के कगार पर रहे.”

एगो लेनिने जानेलन कि किसान आउर ग्राहक लोग के बीच चाउर के एह तरह के किसिम के लोकप्रिय करे के का मतलब बा. “पुरान किसिम के बिया के संरक्षण कइल पहिल काम बा. एह खातिर छोट जमी पर धान रोपल जाला. एकर अनुवांशिक शुद्धता आउर किसिम के बचावल सबले जरूरी बा. फसल खातिर एह किसिम सभ के फइलावे के जरूरत बा. एह काम में समाज के भी मदद चाहीं. आखिर के दू ठो... उपभोग आउर कारोबार संगे-संगे चले वाला चीज बा. रउआ से बजार बनेला, रउए धान के लेके ग्राहक लगे जाइले. जइसे कि, हमनी सीरग सांबा से अवाल (चिवड़ा) तइयार करे के प्रयास कइनी. ई प्रयास खूब सफल रहल,” ऊ खुस होके बतावत बाड़न. “अब हमन आपन पुरान तरीका के फेरु से अपनावे आउर ओकरा लोकप्रिय करे के प्रयास कर रहल बानी!”

लेनिन के कहनाम बा सीरग सांबा तमिलनाडु में ‘मस्त बजार’ बा. “ऊ लोग बासमती के जगह एह चाउर से बिरयानी बनावेला. एहि से इहंवा बासमती चाउर प्रोसेस करे के कवनो यूनिट नइखे.” पाछू भोंपू बाजे लागत बा, जइसे कि उहो सीरग सांबा खातिर उत्सव मना रहल होखे. एहि तरह किसानन में करुप्पु कवुनी के तुलना, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के छक्का से कइ जाला. बाकिर इहंवा एगो झोल बा. “मान लीहीं कोई किसान आपन बिसाल खेत में कोई 2,000 बोरी के बराबर करुप्पु कवुनी चाउर उगावे के सुरु करत बा. साफ बा कि बाजी पलट जाई आउर दाम मुंह के बल गिरी.” छोट खेत खातिर जवन बिबिधता आउर काम मात्र बहुते लाभ के काम करेला, उहे बहुत बड़ नुकसान भी कर सकत बा.

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लेनिन के उगावल करुप्पु कवुनी के बाली. दहिना: फोरम में बेचे खातिर आइल बिना पॉलिश वाला इल्लपइपु चाउर

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एह सभ के सबले बड़ पहलू आर्थिक बा, जेकरा समझल आसान बा. का जैविक तरीका से धान के पारंपरिक किसिम उगावल मुनाफा वाला बा? “हां, बड़ले बा,” लेनिन अस्ते (धीमे) बाकिर मजबूत आवाज में कहलन.

एक एकड़ से कोई 10,000 रुपइया. लेनिन हिसाब लगइलन. “एक एकड़ में जैविक तरीका से हेयरलूम चाउर उगावे में कोई 20,000 रुपइया के खरचा आवेला. दवाई वाला तरीका से खेती करीं त इहे खरचा बढ़के 30,000 से 35,000 हजार हो जाला. उपज से जे लाभ होखेला उहो इहे अनुपात में होखेला. पारंपरिक चाउर औसतन 75 किलो के 15 से 22 बोरा होखेला. जबकि नयका चाउर 30 बोरी के लगभग.”

खरचा बचावे खातिर लेनिन जादेतर काम बिना मसीन के मदद के, अपने करेलन. कटनी के बाद बोझा (गट्ठर) बनावेलन, कुटाई से लेके ओसवनी (धान से चाउर अलग करे) करे आउर आखिर में बोरा में बंद करे के काम ऊ अपने करेलन. एकरा से उनकरा अंदाजन एक एकड़ पर 12,000 रुपइया के बचत हो जाला. “हमरा लागेला कि हमनी के स्थानीय आंकड़ा सभ के जादे जरूरत बा. जइसे रउआ 30 धुर जमीन पर मापिल्लई सांबा जइसन कवनो पुरान किसिम के खेती करीं आउर एकर कटाई से लेके बिया तइयार करे तक के काम हाथ से करे के लागत के हिसाब लगाईं आउर ध्यान से समझीं.” ऊ दूरदर्शी बाड़न. उनकरा मालूम बा कि मसीन से काम करे से मिहनत कम लागी, खरचा ना. “जदि दाम से जुड़ल मुनाफा होबो करी, त ई किसान के हाथ में ना पहुंचेला. गायब हो जाला.”

लेनिन सोचेलन कि मुनाफा के अलग तरीका से समझे के जरूरत बा. ऊ देबल देब के बात दोहरावत कहलन, “जदि रउआ आपन पुआल, भूसा, चिवड़ा, बिया आउर इहंवा तक ले कि चाउर भी लगावत बानी, तब जाके रउआ फायदा होई. एह में छिपल फायदा, चाहे बचत उहे बा कि राउर माटी के केतना फायदा हो रहल बा. धान के हाट में बेचे से आगू के बात सोचल जादे जरूरी बा.”

पारंपरिक किसिम के कम से कम प्रोसेसिंग के जरूरत पड़ेला. “ग्राहक लोग के जैविक तरीका से उगावल अनाज देखे में कइसन लागत बा, एकरा बारे में जादे ना सोचे.” एह बात के किसान लोग आसानी से समझेला कि सेब देखे में टेढ़-मेढ़ हो सकेला, गाजर गांठ वाला, चाहे नोक वाला हो सकेला, आउर चाउर के दाना देखे में बड़ा-छोटा, चाहे कवनो रंग के हो सकेला. बाकिर ई सभ में भीतरी गुण बा, चाहे देखे में ई अच्छा ना लागत होखे.

बाकिर अर्थशास्त्र काम करे, एकरा खातिर जरूरी बा कि किसान लोग के समूह बिक्री आउर आपूर्ति के कड़ी के ध्यान रखे. आउर लेनिन एह में माहिर बाड़न. दू बरिस से ऊ एह इलाका के कइएक किसान के उगावल देसी चाउर के आपन गोदाम में लाके बेचले बाड़न. पछिला छव महीना से उनकर 10X11 फुट के शेड से 60 टन चाउर बेचे में सहयोग मिलल बा. उनकर ग्राहक लोग उनकरा पर बिस्वास करेला, ऊ लोग उनकरा के नीमन से पहचानेला. “ऊ लोग मीटिंग में हमार बात ध्यान से सुनेला. ओह लोग के हमार घर के पता मालूम बा आउर ऊ लोग हमार काम भी जानेला. एहि से बेफिकिर होके ऊ लोग आपन फसल इहंवा लेके आ जाला. आउर हमरा से कहेला कि जबो फसल बिकाए, तब पइसा देहम.”

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कटनी के बाद धान ओसौनी खातिर तइयार बा

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बावां: लेनिन मरक्का से धान नापत आउर वजन करत बाड़न. दहिना: डिलीवरी खातिर धान के बोरी सभ विग्नेस के मोटरसाइकिल पर लदात बा

दिन भर उनका ग्राहक लोग के फोन आउर मैसेज आवत रहेला. ई सभ संभारल बड़ा मुस्किल काम होखेला. चाउर के तौले, बोरा में भरे, आउर कइएक बेरा चाउर के बोरा लेके तिरुवनमलाई, आरनी, कन्नमंगलम... जइसन लगे के सहर में पहुंचावे में बहुते भागदौड़ करे के पड़ेला.

लेनिन लगे केतना ग्राहक लोग आवेला जेकर उनकरा अंदाजा ना रहेला. “जे लोग रसायनिक खाद बेचेला, जे हाइब्रिड चाउर के प्रचार करेला, ऊ सभे कोई हमरे से चाउर कीने आवेला.” लेनिन एह बिंडबना पर हंसे लगलन. “कृषि उत्पाद बेचे वाला कंपनी के मालिक लोग हमरा से कहेला कि हम सादा बोरी (जेकरा पर नाम ना लिखल होखे) में चाउर भरके उनकर दोकान में दे जाईं. ऊ लोग एकरा खातिर हमरा जीपे (गूगल पे) कर देवेला. ऊ लोग एह काम में कवनो हल्ला ना चाहे.”

हर महीना आठ लाख रुपइया ले चाउर के बिक्री हो जाला. एह में मुनाफा 4,000 से 8,000 ले रहेला. जे भी होखे, लेनिन अब खुस बाड़न. “शहर में जब चाउर के भंडार करेला कमरा किराया पर लेनी त एकर खरचा उठावल मुस्किल हो गइल रहे. किराया बहुते रहे. एकरा अलावे खेत से दूर रहे के पड़त रहे आउर एगो हेल्पर रखे के भी खरचा रहे. ओह घरिया लगही लागल भव्य चाउर मिल के हमरा पर बहुते असर रहे. एकर जगह-जगह बहुते शाखा रहे आउर सभ में नयका मसीन सभ लागल रहे. हमरा त ओह मिल में घुसहूं में संकोच होखत रहे. बाद में पता चलल कि ओह लोग के माथा पर करोड़ों के करजा रहे.”

पछिलका पीढ़ी पारंपरिक चाउर के बढ़ावा देके भी कुछ ना कमा पाइल, लेनिन कहले. “हमरा त लाभ मिलल, तनिए सही. हम प्रकृति संगे रहनी, पर्यावरण के पहुंचे वाला नुकसान कम करे के कोसिस कइनी, खतम हो रहल चाउर के किसिम के फेरु से जिंदा कइनी.” उनकर चेहरा पर हंसी तैरत रहे.

ऊ हंसेलन, त उनकर आंख भी हंसे लागेला. आपन योजना के बारे में बतियावे घरिया ऊ चमक उठेला. ऊ पांच ठो चीज बदले के चाहत बाड़न- बिया, कारोबार, किताब, हस्तकला आर संरक्षण.

दू ठो कुकुरो हमनी संगे खेत में घूमत रहे, लागे कि हमनी के बतकही सुन रहल होखे. जब हम एगो कुकुर के फोटो लेवे लगनी, लेनिन कहे लगलन, “बिलाई सभ किसान लोग खातिर जादे ठीक रहेली. खासकर तब जब ऊ चूहा मार के खात होखे.” छोटका कुकुर आपन जीभी लपलपावत हमरा देखे लागल.

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मार्च 2024 में कलसपक्कम ऑर्गेनिक फार्मर्सफोरम के मासिक बैठक में तीन दिन पहिले, 5 मार्च के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनावल जात रहे. आज मरद लोग, मेहरारू लोग के पाछू ठाड़ रहे. मेहरारू लोग बोलत रहे. किसान सुमति मरद लोग से पूछे लगली, “जदि रउआ लोग के परिवार में मेहरारू लोग- बहिन, घरवाली के नाम पर जमीन होखित, त आज इहंवा जादे गिनती में मेहरारू लोग देखाई दित. ह कि ना?” उनकर सवाल के उहंवा मौजूद लोग ताली बजा के स्वागत कइलक.

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5 मार्च, 2024 के कलसपक्कम ऑर्गेनिक फोरम के बैठक में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनावल जा रहल बा

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कलसपक्कम के साप्ताहिक हाट में जुलाई, 2023 में किसान लोग आपन उपज लेके आइल बा आउर सीधा ग्राहक के बेचत बा

“हमनी अब हर साल महिला दिवस मनाएम,” राजेंद्रन कहलन. सभे लोग उनकर एह बात पर ताली बजइलक. उनकरा लगे दोसर योजना सभ भी बा. शुक्कर (शुक्रवार) के लगे वाला एह साप्ताहिक हाट के योजना सफल रहल. दू बरिस पहिले एकरा सुरु कइल गइल रहे. लगे के गांव से आइल दस ठो किसान लोग कलसपक्कम के एगो स्कूल के सोझे इमली के गाछ के नीचे बइठ के आपन सामान (खेत में उपजल) बेचत रहे. तमिल महीना आदि (मध्य जुलाई से मध्य अगस्त) में रोपाई से पहिले होखे वाला सलाना बीज मेला खातिर तिथि तय हो गइल बा. जनवरी में एगो खाद्य-मेला भी होखे वाला बा. राजेंद्रन प्रस्ताव रखलन, “अबकी मई में महापंचायत बोलावल जाव, त नीमन रही. हमनी के बहुत बात करे के बा, आउर बहुत कामो करे के बा.”

वइसे कुछ समस्या भी बा, जेकरा बारे में खुलके बात नइखे भइल. धान किसान लोग खातिर अभिमान हो सकत बा, बाकिर समाज किसान के ओह तरह के दरजा ना देवे. “फिलिम में देख लीहीं, हीरो लोग हरमेसा डॉक्टर, इंजीनियर आ बकील लोग होखी. किसान नजर कहंवा आवेला?” राजेंद्र पूछलन. लेनिन इसारा करत बाड़न, “एह सभ से बियाह के बजार में किसान के औकात... समझ में आवेला.”

“चाहे हमनी लगे जमीन, डिग्री (कबो-कबो त दू-दू ठो), नीमन आमदनी होखे, तबो हमनी के ठुकरा देवल जाला. काहेकि हमनी किसान बानी,” लेनिन कहलन. “खेती कइल एतना अनिश्चितता से भर गइल बा कि मेट्रोमोनियल (बियाह खातिर बिज्ञापन) में किसान के ना खोजे. ह कि ना?”

एगो जिम्मेदार आउर ईमानदार किसान आउर बितरक के रूप में लेनिन बिबिधता में समाज के नाना प्रकार के समस्या के समाधान देखाई देवेला. “जिनगी जेका रोजी-रोटी में भी, रउआ जब संसाधन बढ़ाएम, त सफलता के संभावना भी बढ़ी.”

चाउर के किसिम जादे उगावल आउर बेचल जाई, त किसान के जोखिम भी कम होई. “जलवायु परिवर्तन के खतरा से बचे के इहे अकेला रस्ता बा,” ऊ कहलन. लेनिन आपन बात खास उदाहरण आउर बिकास के अवधि के जरिए समझावत बाड़न. “अइसन सोचल गलत बा कि नयका किसिम सभ के जल्दी उगावल आउर काटल जा सकेला. कि देसी किसिम सभ में एह बनिस्पत जादे समय लागेला.” ऊ कहलन, “पुरान किसिम सभ के फसल चक्र लमहर आउर छोट दुनो होखेला. दोसरा ओरी नयका किसिम जादे करके न कम, आउर न जादे समय लेवेला. एकर कटाई के सीजन एक, चाहे दू ठो होखेला.”

पारंपरिक धान के कइएक आउर बिकल्प बा. “कुछ के त्योहार खातिर, कुछ औषधि खातिर उगावल जाला. ई सभ मजबूत होखेला आउर एकरा में कीट, सूखा आउर पानी के खारापन से लड़े के ताकत रहेला.”

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लेनिन के उगावल कुतिरई वाल सांबा (बावां) आ रतसाली (दहिना) जइसन किसिम

डॉ. रेंगलक्ष्मी कहेली, जहंवा दबाव जादे होखेला, उहंवा बिबिधता भी जादे होखेला. “तमिलनाडु के तटीय इलाका, खास करके कडलूर से लेके रामनातपुरम जिला के बीच के इलाका के ही नमूना ले लीहीं. इहंवा पानी के खारा होखे आउर माटी के नीमन होखे के चलते धान के कइएक अद्भुत पारंपरिक किसिम देखे के मिलेला. एह सभ के अलग-अलग अवधि में तइयार कइल जाला. जइसे कि नागपट्टिनम आ वेदारण्यम के बीच के इलाका में कुलिवेदिचान आउर अइसने 20 से जादे किसिम के चाउर चलन में बा.”

“नागपट्टिनम आउर पूम्पुहार के बीच में एगो दोसर किसिम- कलुरंडई आउर एकरा से मिलत-जुलत कुछ आउर किसिम सभ उगावल जात रहे. ई सभ इहंवा के आबोहवा के हिसाब से रहे, जेकरा से खेती से जुड़ल पारिस्थितिकी संतुलित रखल जा सके. एह किसिम सभ के पारंपरिक मानल जात रहे. बाकिर अब इहंवा बिया सभ बाहिर से आवे लागल बा. पारंपरिक किसिम के धान सभ के बिया के जोगा के रखे के परंपरा भी समाप्त हो चुकल बा.” एहि से इहंवा जलवायु बदलाव चलते दबाव जादे बा, “बिबिधता से जुड़ल जानकारी समाप्त हो गइल,” डॉ. रेंगलक्ष्मी इसारा कइली.

छोट खेत में एक साथे कइएक फसल उगावे के चलते बिबिधता बचल बा, लेनिन कहले. “मसीन आउर बड़ बजार हरमेसा एकरा अनदेखा ही कइलक. अबहियो अइसन कइएक फसल बा जेकरा बरसात पर टिकल इलाका में उगावल जा सकेला. ई जलवायु बदलाव के चुनौती के झेल सकेला. रागी, तिल, हरियर मटर, बटर बीन, चाहे सीवा बीन, बाजरा आ ज्वार भी नीमन फसल बा. बाकिर जब किसान खेती के नयका तौर-तरीका से खेती करेला, त मसीनी गतिविधि बेसंभार होखे लागेला. गहिर जानकारी के अभाव हो जाला.”

कौशल नष्ट होखे जइसन गंभीर नुकसान होखेला. एह से ना कि जानकारी बेकार चीज बा, बलुक एह से कि जानकारी- कौशल वाला लोग के गंवार मान लेवल जाला. “मान लेवल जाला कि तेज आदमी कबो कौशल के पाछू ना भागे. एह तरह के खतरनाक सोच के चलते केतना लोग समाज के नजर से ओझल हो गइल,” लेनिन जोर देके कहलन.

लेनिन मानेलन कि एकर हल बा. “हमनी के अइसन किसिम पर जोर देवे के जरूरत बा जे मूल रूप से एहि इलाका के होखे. अइसन किसिम के जोगावे, उगावे आउर फेरु थरिया तक पहुंचावे के होई. बाकिर रउआ अकेले तिरुवन्नमलाई में अइसन सौ ठो उद्यमी लोग चाहीं जे ‘बजार’ नाम के एह दानव से लड़ सके,” ऊ कहलन.

“हमरा लागत बा कि पांच बरिस में हम को-ऑपरेटिव के हिस्सा बन जाएम आउर समूह में खेती कर रहल होखम. पछिला बरिस बहुते दिन ले पानी बरसल. मोटा-मोटी चालीस दिन तक रउदा (धूप) ना भइल. अइसन हाल में धान कइसे सुखावल जाई? धान के सुखावे वाला सुविधा चाहीं. मिल के काम कइल जाई, त ताकत आई.”

उनकरा बिस्वास बा कि बदलाव ई. बदलाव त उनकर आपन जिनगी में भी आ रहल बा. जून में उनकर बियाह होखे वाला बा. “राजनीति, चाहे नीतिगत स्तर पर, बदलाव अस्ते-अस्ते आई. जल्दबाजी में फैसला करे से नुकसान हो सकत बा.”

एहि से आपन साथी लोग संगे लेनिन के सुस्त, खामोस आंदोलन, सायद सफल साबित होखे...

बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी बिस्वबिद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत एह शोध अध्ययन के अनुदान मिलल बा.

कवर फोटो: चाउर के कुल्लनकार, करुडन सांबा आ करुनसीरक सांबा किसिम

अनुवादक: स्वर्ण कांता

Aparna Karthikeyan

Aparna Karthikeyan is an independent journalist, author and Senior Fellow, PARI. Her non-fiction book 'Nine Rupees an Hour' documents the disappearing livelihoods of Tamil Nadu. She has written five books for children. Aparna lives in Chennai with her family and dogs.

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Photographs : M. Palani Kumar

M. Palani Kumar is Staff Photographer at People's Archive of Rural India. He is interested in documenting the lives of working-class women and marginalised people. Palani has received the Amplify grant in 2021, and Samyak Drishti and Photo South Asia Grant in 2020. He received the first Dayanita Singh-PARI Documentary Photography Award in 2022. Palani was also the cinematographer of ‘Kakoos' (Toilet), a Tamil-language documentary exposing the practice of manual scavenging in Tamil Nadu.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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