“सन् 2020 में लॉकडाउन भइल, त कुछ लोग हमनी के 1.20 एकड़ जमीन पर अहाता बनावे खातिर आइल,” तीस बरिस के फगुवा उरांव बतावत बाड़न. ऊ ईंट के देवाल से घेराएल एगो खाली जमीन ओरी इसारा कइलन. हमनी खूंटी जिला के डुमारी गांव में बानी. इहंवा उरांव आदिवासी समुदाय के लोग बड़ पैमाना पर रहेला. “ऊ लोग ई कहत नापे लागल कि ई जमीन राउर नइखे, आउरो केकरो बा.” हमनी एकर बिरोध कइनी.

“एह बात के कोई 15 दिन भइल होई, हमनी गांव से 30 किमी दूर खूंटी में सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट लगे शिकायत लेके गइनी. उहंवा एक बेर आवे-जाए में 200 रुपइया से जादे खरचा लाग जाला. उहंवा हमनी के एगो वकील ठीक करे पड़ल. वकील के हमनी अबले 2,500 रुपइया दे चुकल बा. बाकिर एको फायदा ना भइल.”

“एकरा पहिले हमनी एकर शिकायत लेके आपन ब्लॉक के जोनल कार्यालय गइल रहीं. पुलिस स्टेसनो गइनी. हमनी के आपन जमीन पर दावा छोड़े खातिर धमकी देवल जात रहे. कर्रा ब्लॉक के एगो धुर दक्खिपंथी संगठन के सदस्य, जो खूंटी के जिला अध्यक्षो बानी, हमनी के धमकइलन. बाकिर कोर्टो में एह पर कवनो सुनवाई ना भइल. अब ई देवाल हमनी के जमीन पर ठाड़ बा. दू बरिस से दौड़-धूप चल रहल बा.”

“हमार दादा लूसा उरांव सन् 1930 में जमींदार बालचंद साहू से जमीन कीनले रहस. हमनी उहे जमीन पर खेती करत आइल बानी. हमनी लगे जमीन के एह टुकड़ा खातिर 1930 से 2015 तक के रसीद बा. ओकरा बाद (सन् 2016) ऑनलाइन शुरू हो गइल रहे. आउर ऑनलाइन रिकॉर्ड में हमनी के जमीन के टुकड़ा (पूर्व) जमींदार के पुरखन के नाम पर बा. हमनी के ना पता ई सब कइसे भइल.”

फगुवा उरांव केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम (डीआईएलआरएमपी) चलते आपन जमीन से हाथ धो बइठलन. देस में सभे जमीन से जुड़ल रिकॉर्ड के डिजिटल बनावे आउर ओकरा खातिर केंद्र ओरी से प्रबंधित डेटाबेस बनावे वाला ई एगो राष्ट्रव्यापी अभियान हवे. अइसन सभे अभिलेख के आधुनिक बनावे के मकसद से राज्य सरकार जनवरी 2016 में एगो भूमि बैंक पोर्टल सुरु कइलक. एह पोर्टल में जमीन के बारे में जिलावार जानकारी मौजूद बा. एकर मकसद “भूमि/संपत्ति विवाद के दायरा के कम करे आ भूमि रिकॉर्ड रखरखाव प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ावे के रहे.”

बाकिर ई पोर्टल फगुवा आउर उनकर जइसन दोसर लोग खातिर एकदम उलटा काम कइले बा.

“हमनी जमीन के ऑनलाइन स्थिति पता लगावे खातिर प्रज्ञा केंद्र गइनी. ई केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया योजना के तहत बनावल गइल झारखंड में सामान्य सेवाकेंद्रन खातिर एगो वन-स्टॉप शॉप बा, जे ग्राम पंचायत में शुल्क के बदले सार्वजनिक सेवा देवेला. उहंवा के ऑनलाइन रिकॉर्ड के हिसाब से, जमीन के मौजूदा मालिक नागेंद्र सिंह बानी. उनका पहिले संजय सिंह मालिक रहस. ऊ जमीन बिंदु देवी के बेच देलन, जे बाद में एकरा नागेंद्र सिंह के बेच देली.”

“लागत बा कि जमींदार के पुरखा एके जमीन के दू से तीन बेरा कीनत आउर बेचत रहल, जेकर जानकारी हमनी के नइखे. बाकिर अइसन कइसे संभव बा, काहे कि हमनी लगे 1930 से 2015 तक के जमीन के रसीद बा? एह सब लफड़ा में हमनी के अबले 20,000 से जादे रुपइया बुका चुकल बा. आउर देखीं, अबहियो हमनी एने-ओने मारल फिरत बानी. पइसा जुटावे खातिर घर के अनाज तकले बेचे पड़ गइल. जमीन पर डालल देवाल देखिला, त लागेला सब कंडम हो गइल. पता ना एह संघर्ष में हमनी के मदद के करी.

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फगुवा उरांव (बावां) झारखंड के खूंटी जिला के कइएक अइसन आदिवासी में से बाड़न जिनका पछिला कुछ बरिस में भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण चलते आपन पुरखा के कीनल जमीन से हाथ धोवे पड़ल. सन् 2015 तक के आपन 1.20 एकड़ जमीन के कागज (दहिना) रहला के बादो ऊ लोग जमीन खातिर लड़ रहल बा. एह में ओह लोग के केतना पइसा आउर मिहनत पानी जेका बह रहल बा

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झारखंड में जमीन से जुड़ल अधिकार के इतिहास बहुते लमहर आउर उलझल रहल बा. खनिज से संपन्न एह आदिवासी बहुल इलाका में राजनीतिक दल आउर सरकारी नीति एह अधिकार के भारी उल्लंघन कइले बा. देस भर के 40 प्रतिशत ले खनिज भंडार इहे प्रदेस में बा.

राष्ट्रीय जनगणना 2011 के हिसाब से, झारखंड में 29.76 प्रतिशत जंगल बा. ई 23,721 वर्ग किमी दूर ले फइलल बा. प्रदेस के एक चौथाई आबादी अनुसूचित जनजाति (एसटी) के बा, जे 32 आदिवासी समुदाय में बंटल बा. 13 जिला आदिवासी बहुल बा, आउर तीन जिला आंशिक तौर से पंचमा अनुसूची क्षेत्र (एफएसए) में आवेला.

प्रदेस के आदिवासी समुदाय आजादी से पहिले से आपन जल, जंगल, जमीन पर अधिकार के लड़ाई लड़ रहल बा, जे उनकर जिनगी जिए के पारंपरिक सामाजिक-सांस्कृतिक तरीका से जटिल रूप से जुड़ल बा. ऊ लोग के सामूहिक रूप से पचास बरिस से जादे समय ले लड़ाई लड़ला के बाद, अधिकार के पहिल रिकॉर्ड, 1833 में हुकूकनामा के रूप में सामने आइल. ई गोरन से आजादी मिले से कोई एक शताब्दी पहिले आदिवासी लोग के सामुदायिक कृषि अधिकार आ स्थानीय स्वशासन के आधिकारिक मान्यता रहे.

आउर एफएएस के संवैधानिक रूप से बहाली के बहुत पहिले, सन् 1908 के छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) आ मूलवासी (एससी, बीसी आउर अन्य) भूमिधारकन के अधिकार के मान्यता देवल गइल रहे. ई सब बिसेष क्षेत्र में आवेला.

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फगुवा उरांव आउर उनकर परिवार रोजी-रोटी खातिर जमींदार से आपन पुरखा के कीनल जमीन के आसरे बा. एकरा अलावे उनका लगे 1.50 एकड़ भुईंहरी जमीनो बा, जे उनकर उरांव पुरखा के बा.

जंगल के साफ करके जमीन के धान के खेत में बदले आउर गांव बनावे वाला पुरखा लोग के वंशज सामूहिक रूप से अइसन जमीन के मालिक बा. एह जमीन के उरांव इलाका में भुईंहरी आ मुंडा आदिवासी इलाका में मुंडारी खुंटकट्टी के नाम से जानल जाला.

फगुवा बतइलन, “हमनी तीन भाई बानी. तीनों के आपन-आपन परिवार बा. बड़ आउर मांझिल दुनो के तीन-तीन ठो लरिका लोग बा. आउर हमार दू ठो बाड़न. परिवार के लोग खेत आउर पहाड़ी जमीन पर खेती करेला. हमनी धान, बाजरा आ तरकारी सब उगाइला. जे उगेला ओकर आधा खाइ जाला आउर जरूरत पड़ला पर आधा बजार में बेच दिहल जाला.”

एह इलाका में साल में एक बेरा खेती होखेला. बाकी समय पेट पाले खातिर ओह लोग के कर्रा ब्लॉक, चाहे आपने गांव आ लगे के इलाका में मजूरी करे पड़ेला.

डिजिटलीकरण आउर एकर दिक्कत अइसन पारिवारिक स्वामित्व वाला जमीन से बहुत आगे तलक जाला.

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खूंटी जिला के कोसंबी गांव में संयुक्त पड़हा समिति के बैठक में जुटल लोग सब. समिति आदिवासी लोग के, ओह लोग के जमीन से जुड़ल अधिकार के बारे में जागरूक करे के प्रयास कर रहल बा. ओह लोग के खतियान देखावल जा रहल बा, जे सन् 1932 के भूमि सर्वेक्षण के आधार पर सामुदायिक आ निजी भूमि स्वामित्व अधिकार के रिकॉर्ड बा

कोई पांच किमी दूर एगो दोसर गांव, कोसंबी में बंधु होरो आपन सामूहिक जमीन के एगो किस्सा सुनावत बाड़न. ऊ बतावत बाड़न, “जून 2022 में कुछ लोग आइल आउर हमार जमीन के घेराबंदी करे के कोसिस करे लागल. ऊ लोग लगे जेसीबी मसीनो रहे. तबहिए गांव के सभे लोग एकजुट होके बाहिर आइल आ ओह लोग के रोके लागल.”

“गांव के कोई 20 से 25 आदिवासी लोग खेत में बइठ गइल. ऊ लोग खेत के जुताइयो सुरु कर देलक. जमीन कीने वाला पार्टी पुलिस बोला लेलक. बाकिर गांव के लोग सांझ ले उहंवा से टस से मस ना भइल. बाद में खेत में सरगुजा (गुइजोटिया एबिसिनिका) बोवल गइल,” उहे गांव के 76 बरिस के बूढ़ फ्लोरा होरो बतइली.

ग्राम प्रधान विकास होरा (36 बरिस) तनी फरिया के बतइलन, “कोसंबी गांव में 83 एकड़ जमीन बा, जेकरा मझिहस कहल जाला. ई गांव के “बिसेषाधिकार प्राप्त” जमीन बा, जेकरा आदिवासी समुदाय जमींदार के जमीन के रूप में अलग कर देले रहे. गांव के लोग एह जमीन पर सामूहिक रूप से खेती करेला, आ फसल के एक हिस्सा जमींदार के परिवार के सलामी के रूप में देवेला.” राज्य में जमींदारी प्रथा त खतम हो गइल, बाकिर गुलामी खतम ना भइल. “आजो,” ऊ कहेलन, “गांव के केतना आदिवासी लोग आपन अधिकार से अनजान बा.”

किसान सेतेंग होरो (35) के परिवार आपन तीन भाइयन जेका पेट भरे खातिर आपन दस एकड़ सामूहिक मलिकाई वाला जमीन पर निर्भर बा. उहो अइसने कहानी बतावत बाड़न. “सुरु में हमनी के ना पता रहे कि जमींदारी प्रथा खतम भइला के साथे, मझियस जमीन ओह लोग के हो जाला जे ओह पर सामूहिक रूप से खेती करत रहे. हमनी के मालूम ना रहे, एहि से हमनी खेती के बाद पूर्व जमींदार के वंशज लोग के कुछ अनाज दे देत रहीं. जब ऊ लोग अइसन जमीन के गैरकानूनी तरीका से बेचे के सुरु कइलक, त हमनी एक भइनी आउर जमीन बचावे खातिर आवाज उठइनी,” ऊ बतइलन.

वरिष्ठ अधिवक्ता रश्मि कात्यायन बतावत बाड़न, “बिहार भूमि सुधार अधिनियम सन् 1950-55 के बीच लागू भइल रहे. जमीन में जमींदार लोग के सभे हित- बंजर जमीन के पट्टा पर देवे के अधिकार, लगान आ कर बसूले के अधिकार, नयका रइयत बसावे के अधिकार, बंजर जमीन पर, गांव के बाजार आउर मेला आदि से कर जमा करे के अधिकार तब सरकार लगे रहे, सिवाय ओह जमीन सभ के जेकरा पर पूर्व जमींदार लोग खेती करत रहे.”

“पूर्व जमींदार लोग के अइसन जमीन के साथे-साथे आपन ‘बिसेषाधिकार प्राप्त’ जमीन, जेकरा मझिहस कहल जाला, खातिर रिटर्न दाखिल करे के रहे. बाकिर ऊ लोग अइसन जमीन पर आपन हक जमा लेलक आउर ओह पर कबो रिटर्न दाखिल ना कइलक. एतने ना, बलुक जमींदारी प्रथा खतम होखला के बहुते बादो ले ऊ लोग गांव के लोग से आधा-आधा हिस्सा लेत रहल. पछिला पांच बरिस में डिजिटलीकरण के संगे जमीन के संघर्ष बढ़ गइल बा,” 72 बरिस के कात्यायन कहेलन.

खूंटी जिला में पूर्व जमींदार के वंशज आ आदिवासी लोग के बीच बढ़ रहल झगड़ा पर बतियावत 45 बरिस के अधिवक्ता अनूप मिंज कहलन, “जमींदार के वंशज लोग लगे ना त लगान के रसीद बा, ना अइसन जमीन पर कब्जा. बाकिर ऊ लोग अइसन जमीन के ऑनलाइन चिन्हित करके केहू ना केहू के बेच रहल बा. छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट, 1908 के अधिभोग अधिकार धारा के हिसाब से, जे आदमी 12 बरिस से जादे समय से जमीन पर खेती कर रहल बा, मझिहस जमीन ओकरे हो जाला. अइसन जमीन पर मालिकाना हक खेती करे वाला आदिवासी के बा.”

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कोसंबी गांव के लोग आपन जमीन देखावत बा, जे पर ऊ अब सामूहिक खेती होला. एह जमीन के पूर्व जमींदार के वंशज लोग से बचावे खातिर ऊ लोग लमहर आउर सामूहिक संघर्ष कइले बा

संयुक्त पड़हा समिति पछिला कइएक बरिस से सक्रिय बा. समिति आदिवासी स्वशासन के पारंपरिक लोकतांत्रिक पड़हा व्यवस्था के तहत एह जमीनन पर खेती करे वाला आदिवासी लोग के एकजुट कर रहल बा. उहंवा पड़हा में 12 से 22 गांव तक के टोला शामिल बा.

समिति के 45 बरिस के सामाजिक कार्यकर्ता अल्फ्रेड होरो कहत बाड़न, “खूंटी जिला के कइएक इलाका में अइसन संघर्ष चल रहल बा. जमींदार के वंशज लोग तोरपा ब्लॉक में 300 एकड़ जमीन पर दोबारा कब्जा करे के कोसिस कर रहल बा. जिला के कर्रा प्रखंड के तियू गांव में 23 एकड़, पड़गांव में 40, कोसंबी गांव में 83, मधुगामा में 45, मेहा में 23, आउर छाता गांव में अबले 90 एकड़ जमीन संयुक्त पड़हा समिति लगे बा. अबले मोटा-मोटी 700 एकड़ आदिवासी जमीन बचावल जा चुकल बा,” ऊ बतइलन.

समिति आदिवासी लोग के जमीन के अधिकार के बारे में जागरूक कर रहल बा, ओह लोग के खतियान देखा रहल बा. खतियान सन् 1932 के भूमि सर्वेक्षण के आधार पर सामुदायिक आ निजी भूमि स्वामित्व अधिकार के रिकॉर्ड बा. एह में कवन जमीन पर केकर हक बा, आ जमीन कइसन बा एह सब विस्तार से बतावल गइल बा. गांव के लोग जब खतियान देखेला, त ओह लोग के पता चलेला कि जवन जमीन पर ऊ लोग सामूहिक खेती कर रहल बा, ओकर मालिक ओह लोग के पुरखा लोग रहे. आउर ई पूर्व जमींदारन के जमीन नइखे आ जमींदारी प्रथो समाप्त हो गइल बा.

खूंटी के मेरले गांव के इपील होरो कहेली, “डिजिटल इंडिया के मदद से लोग जमीन के बारे में सभे बात ऑनलाइन जान-देख सकत बा. एहि चलते संघर्ष बढ़ गइल बा. मजदूर दिवस, 1 मई, 2024 के कुछ लोग अहाता बनावे आइल. दावा कइलक कि ऊ लोग गांव के लगे मझिहस जमीन कीनले बा. गांव के 60 मरद आ मेहरारू लोग एकजुट होके ओह लोग के रोकलक.”

“पूर्व जमींदार के वंशज लोग मझिहस जमीन के ऑनलाइन देख सकत बा. ऊ लोग अबहियो अइसन जमीन पर आपन ‘विशेषाधिकार प्राप्त’ कब्जा मानेला आउर एकरा गलत तरीका से बेचेला. हमनी सभे गोटा मिलके ओह लोग के जमीन हड़पे के बिरोध कर रहल बानी,” ऊ बतइलन. एह मुंडा गांव में कुल 36 एकड़ मझिहस जमीन बा, जेकरा पर गांव के लोग पीढ़ियन से सामूहिक खेती करत आइल बा.

भरोसी होरो (30) कहेली, “गांव के लोग जादे पढ़ल-लिखल नइखे. हमनी के नइखे मालूम देस में का नियम बनल आउर बदलल. पढ़ल-लिखल लोग सब बात जानेला. बाकिर ओह ज्ञान के नाजायज फायदा उठा के लोग के लूटल जा रहल बा, दिक् कइल जा रहल बा. एहि से आदिवासी लोग बिरोध कर रहल बा.”

खाली जानकारिए ना, बलुक बहुप्रतीक्षित ‘डिजिटल क्रांति’ भी छिटपुट बिजली आपूर्ति आउर खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी वाला इलाका में रहे वाला लाभार्थी तक नइखे पहुंचत. जइसे, झारखंड में गांव-देहात में इंटरनेट तक पहुंच सिरिफ 32 प्रतिशत लोग के बा. पहिले से मौजूद जात-पांत, लिंग आ आदिवासी जइसन बिभाजन चलते डिजिटल बिभाजन आउर बढ़ गइल बा.

नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस 75वां दौर- जुलाई 2017-जून 2018) कहत बा कि झारखंड के आदिवासी बहुल इलाका के मात्र 11.3 प्रतिशते घर में इंटरनेट बा. ओह में से मात्र 12 प्रतिशत मरद आ 2 प्रतिशत मेहरारू लोग इंटरनेट चलावे जानेला. गांव-देहात में लोग इंटरनेट सेवा खातिर प्रज्ञा केंद्र पर निर्भर  बा. एकरा बारे में पहिलहीं दस जिला के सर्वेक्षण में चरचा हो चुकल बा.

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गांव में आदिवासी लोग एकजुट होके आपन जमीन खातिर लड़ रहल बा. जब पूर्व जमींदार लोग के वंशज जेसीबी मसीन संगे जमीन के घेराबंदी करे आइल, त गांव के लोग खेते में बइठ गइल, हल चलइलक, देर ले निगरानी कइलक, आ अंत में सरगुजा बोवल गइल

खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के अंचल अधिकारी (सीओ) वंदना भारती बोले में तनी संकोची बुझात बाड़ी. ऊ कहली, “पूर्व जमींदार के परिवार के लोग लगे जमीन के कागज त बा. बाकिर देखे के बात ई बा कि जमीन पर असल में केकर कब्जा बा. जमीन पर आदिवासी लोग के कब्जा बा, आ उहे लोग जमीन पर खेती करत आइल बा. अब ई मामला बहुते झंझटियाहा हो गइल बा. अइसन मामला जादेतर अदालत जाला. हां, कबो-कबो पूर्व जमींदार के वंशज आ लोग खुदे मामला सलटा लेवेला.”

साल 2023 में, झारखंड के स्थानीय निवास नीति के बारे में छपल एगो रिसर्च पेपर में कहल गइल बा, “राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (एनएलआरएमपी), 2008 आ डिजिटल इंडिया लैंड के तहत डिजिटल अधिकार अभिलेख (अधिकार सब के रिकॉर्ड) के हाले में ऑनलाइन भूमि रिकॉर्ड प्रणाली में अपलोड कइल गइल बा. अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी), 2014 से इहो मालूम पड़ेला कि डिजिटल भूमि रिकॉर्ड, राजस्व भूमि के निजी संपत्ति में बदल रहल बा. ई सामुदायिक भूमि कार्यकाल अधिकारन के दरज करे के पारंपरिक/खतियानी प्रणाली के अंठियावत बा, जे सीएनटी एक्ट के तहत देवल गइल बा.”

शोध करे वाला लोग खाता, चाहे प्लॉट नंबर, रकबा आ जमीन के मालिकन के बदलल नाम आ जनजाति/जाति खातिर गलत प्रविष्टि के संगे-संगे जमीन के धोखाधड़ी वाला बिक्री के मान लेले बा. एहि चलते गांव के लोग के ऑनलाइन आवेदन खातिर भटके पड़ रहल बा, ताकि रिकॉर्ड ठीक आउर अपडेट कइल जा सके. बाकिर नतीजा कुछो ना निकलल. आउर अब जब जमीन केहू और के नाम पर बा, त ऊ लोग एकर कर देवे में सक्षम नइखे.

“एह मिशन के असल फायदा लेवे वाला लोग के बा?” एकता परिषद के राष्ट्रीय समन्वयक रमेश शर्मा पूछत बाड़न. “का भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण लोकतांत्रिक प्रक्रिया बा? एह में तनिको संदेह नइखे कि एह मामला में राज्य आ दोसर बरियार लोग सबसे बड़ा लाभार्थी बा. उहे लोग एह मिशन के सभे आनंद उठा रहल बा. जइसे पहिले जमींदार, भू-माफिया आ बिचौलिया लोग उठावत रहे.” उनकर मानना बा कि पारंपरिक भूमि आ सीमांकन के समझे आ पहचाने में स्थानीय प्रशासन के जान बूझके लाचार बनावल गइल बा, जे ओह लोग के अलोकतांत्रिक आ बरियार लोग के पक्ष में खड़ा करेला.

बसंती देवी (35 बरिस) आदिवासी समुदायन के जवन डर के बारे में बात करत बाड़ी, ऊ सोचलो ना जा सके. ऊ कहली, “ई गांव चहूं ओरी से मझिहस जमीन से घेराइल बा. इहंवा कुल 45 ठो घर बा. लोग शांति से रहेला. हमनी एक-दोसरा के सहजोग करिला, गांव एहि तरहा चलेला. अब जदि चारों तरफ के जमीन गलत तरीका से बेच देवल जाए, अहाता बना देवल जाए, त हमनी के गाई, बैल आ बकरी सभ कहंवा चरी? गांव एकदम से बंद हो जाई. हमनी इहंवा से पलायन करे के मजबूर हो जाएम.”

लेखिका वरिष्ठ अधिवक्ता रश्मि कथ्यायन से मिलल गहन चरचा आ मदद खातिर बहुते आभारी बाड़ी, जे से उनकर लिखल समृद्ध भइल.

अनुवाद : स्वर्ण कांता

Jacinta Kerketta

اوراؤں آدیواسی برادری سے تعلق رکھنے والی جیسنتا کیرکیٹا، جھارکھنڈ کے دیہی علاقوں میں سفر کرتی ہیں اور آزاد قلم کار اور نامہ نگار کے طور پر کام کرتی ہیں۔ وہ آدیواسی برادریوں کی جدوجہد کو بیان کرنے والی شاعرہ بھی ہیں اور آدیواسیوں کے خلاف ہونے والی نا انصافیوں کے احتجاج میں آواز اٹھاتی ہیں۔

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Editor : Pratishtha Pandya

پرتشٹھا پانڈیہ، پاری میں بطور سینئر ایڈیٹر کام کرتی ہیں، اور پاری کے تخلیقی تحریر والے شعبہ کی سربراہ ہیں۔ وہ پاری بھاشا ٹیم کی رکن ہیں اور گجراتی میں اسٹوریز کا ترجمہ اور ایڈیٹنگ کرتی ہیں۔ پرتشٹھا گجراتی اور انگریزی زبان کی شاعرہ بھی ہیں۔

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Translator : Swarn Kanta

سورن کانتا ایک صحافی، ایڈیٹر، ٹیک بلاگر، کنٹینٹ رائٹر، ماہر لسانیات اور کارکن ہیں۔

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