अचके एगो जादू के खेला देखे के मिलल. डी. फातिमा आपन दोकान के पाछू रखल एगो पुरान बुल्लू रंग के बक्सा से खजाना सभ निकाले लगली. बक्सा में धइल एक-एक चीज कलाकारी के नमूना लागत रहे: तूतुकुंडी के दरिया के गहिर पानी में तैरे वाला बड़, बरियार मछरी सभ, जे अब सूखल चुकल रहे. घाम, नीमक आउर मेहरारू लोग के लुरगर हाथ के कमाल.
फातिमा एगो कट्ट पारई मीन (रानी मछरी) उठइली. मछरी उनकरा मुंह से लेके कमर के नीचे, मोटा-मोटी उनकर लंबाई के आधा रहे. ओकर गरदन उनकर हाथ जेतना मोट रहे. माथा से पोंछ तकले छुरी से गहिर चीरा लागल देखाई देत रहे. तेज छुरी से चीरा लगाके गुद्दा दुनो ओरी हटावल आउर आंत निकाल देहल गइल रहे. कट्ट पारई के चीरा में नीमक भरके चिलचिलात घाम में सुखावल रहे. उहे घाम, जे जवन चीज- मछरी, जमीन, जिंदा आदमी… पर पड़ जाव, ओकरा सुखा देवेला.
उनकर मुंह आउर हाथ पर पड़ल झुर्री जरावे वाला घाम के कहानी कहत रहे. बाकिर ऊ दोसरे कहानी सुरु कर देली. ऊ कवनो अलगे युग रहे. उनकर आची (दादी) मछरी में नीमक लगावत, सुखावत आउर ओकरा हाट में बेचे के काम करत रहस. ऊ शहरो कोई आउर रहे आउर ऊ गली भी कुछो आउर रहे. सड़क से सट के बहे वाला नहर कुछे फीट चउड़ा रहे. नहर उनकर पुरान घर के एकदम बगल में पड़त रहे. फेरु 2004 के भयानक सूनामी आइल. ओह लोग के जिनगी उलट-पुलट गइल. नया घर बनावे के पड़ल. बाकिर एगो समस्या रहे. सोच-समझ के बनावल गइल ऊ घर “रोम्भ दूरम” (बहुते दूर) पड़त रहे, फातिमा आपन माथ तनी टेढ़ कइली आउर हाथ ऊंचा करके अंदाज से दूरी बतावे लगली. घरे से दरिया किनारे, मछरी कीने बस से आवे में आधा घंटा लाग जात रहे.
आज ओह बात के नौ बरिस हो गइल. फातिमा आउर उनकर बहिन लोग आपन पुरान इलाका, पड़ोस के तेरेसपुरम लउट आइल बा. ई तुतूकुडी शहर के बाहरी छोर पर बसल हवे. मकान आउर दोकान के कतार के बगल में पुरान नहर बा जे अब खूब चउड़ा हो गइल बा. चउड़ा होखे से एह में के पानी अब धीरे-धीरे बहेला. दुपहरिया स्थिर आ शांत बा, घाम में सूख रहल मछरी जेका. आउर मेहरारू लोग के घाम आउर नीमक में सनल जिनगी भी इहे मछरी सभ पर टिकल बा.
फातिमा, 64 बरिस, बियाह भइला के पहिले दादी संगे मछरी के काम में लागल रहत रहस. बीस बरिस पहिले घरवाला के खत्म भइले त ऊ फेरु से एह धंधा में लाग गइली. फातिमा के इयाद बा. ऊ आठ बरिस के रहस. जाल में फंसल मछरी के जब दरिया किनारे लावल गइल त ऊ कइसे छटपटात रहे- मछरी एकदम्मे ताजा जे रहे. ऊ बतइली, आज मोटा-मोटी 56 बरिस बाद, ओकर जगह ‘बरफवाला मीन’ (मछरी) ले लेले बा. मछरी के पैक करे खातिर नाव में बरफ धइल रहेला. मछरी पकड़ला के बाद ओकरा बरफ के बक्सा में धर के नाव पर किनारे लावल जाला. मछरी के लेन-देन लाखन रुपइया में होखेला. “पहिले हमनी के धंधा में आना, पइसा के लेन-देन होखत रहे. सौ के नोट त बहुते बड़ चीज मानल जात रहे. अब हजार आउर लाख रुपइया में धंधा चल रहल बा.”
आची के जमाना में, मेहरारू लोग बेरोक-टोक हर जगह जात रहे. माथ पर ताड़ के पत्ता के टोकरी में सूखल मछरी लाद के चलत रहे. “ऊ लोग आपन माल बेचे खातिर 10 किलोमीटर पइदल चलके पट्टिकाडु (छोट बस्ती) पहुंचत रहे.” अब ऊ लोग सूखल मछरी के एल्यूमीनियम के तसला में रखेला आउर एकरा बेचे खातिर बस से चलेला. ऊ लोग लगे के गांव-देहात के संगे-संगे पड़ोस के जिला आउर ब्लॉक में भी घूम-घूम के मछरी बेचेला.
“कोरोना से पहिले, हमनी तिरुनेलवेली से तिरुचेंदुर रोड के किनारे के गांव में जात रहीं,” अगस्त 2022 में जब पारी उनकरा से भेंट करे गइल रहे, फातिमा हवा में हाथ से ओह इलाका के नक्शा बना के बतइले रहस. “बाद में हमनी सोमवारे-सोमवारे खाली एराल कस्बा के संतई (साप्ताहिक हाट) तक जाए लगनी.” ऊ आपन आवे-जाए के खरचा के हिसाब लगइली: ऑटो से बस डिपो आवे, आउर टोकरी के बस से ले जाए के सभे खरचा मिला के दु सौ रुपइया ठहरल. “एकरा अलावे, हमरा हाट में दोकान लगावे खातिर पांच हजार रुपइया भी लागत रहे. हमनी के घाम (खुल्ला) में बइठे के पड़े, बाकिर भाव उहे रहे.” उनकरा हिसाब से तबो ऊ फायदे में बाड़ी. हाट में उनकर पांच से सात हजार रुपइया तक ले सूखल मछरी बिका जाला.
बाकिर चार सोमवार के कमाई से महीना के खरचा पूरा ना पड़े, फातिमा के आंख में चिंता साफ नजर आवत रहे. “दस-बीस बरिस पहिले ले, मछुआरा लोग के मछरी पकड़े खातिर तूतुकुडी से जादे दूर ना जाए के पड़त रहे. ऊ लोग के हाथ ढेरे मछरी लाग जात रहे. बाकिर अब? अब त दरिया में बहुते भीतरी गइलो पर जादे कुछ हाथ ना आवेला.”
आपन अनुभव से, फातिमा एक मिनिट के भीतर समझा देली कि मछरी के गिनती काहे कम हो गइल. “पहिले त ऊ लोग रात में जाए आउर अगिला दिन संझा के लउट आवत रहे. आजकल 15-20 दिन लाग जाला आउर ऊ लोग अब कन्याकुमारी के रस्ते सिलोन आउर अंडमान तक जाला.”
ई बहुते बड़ इलाका बा जहंवा समस्या के कवनो कमी नइखे. तूतुकुडी में मछरी के भंडार दिन-ब-दिन कम भइल जात बा. एगो अइसन समस्या, जेकरा पर उनकर कवनो अख्तियार नइखे, बाकिर एह समस्या के उनकर जिनगी पर पूरा अख्तियार हो गइल बा. कमाई पर भी.
फातिमा जवन समस्या ओरी इशारा करत बाड़ी ओकर नाम ओवरफिशिंग (जरूरत से जादे मछरी के शिकार) बा. गूगल करीं, त रउआ बूझा जाई. एतना छोट सवाल के सेकेंड से कम में 1.8 करोड़ जवाब आई. ई समस्या एतना आम हो गइल बा. एह समस्या के समझे खातिर खाद्य आउर कृषि संगठन (एफएओ) के 2019 के रिपोर्ट के समझे के पड़ी. एह रिपोर्ट के हिसाब से, “दुनिया भर में, समुद्री खाना से सभे तरह के 7 प्रतिशत प्रोटीन आउर 17 प्रतिशत पशु प्रोटीन मिलेला.” ‘अमेरिकन कैच एंड फोर फिश’ के लेखक पॉल ग्रीनबर्ग बतइले, “इहे कारण बा कि हर बरिस समंदर से 8 से 9 करोड़ मीट्रिक टन जंगली समुद्री भोजन निकालल जाला.” ई आंकड़ा चौंका देवे वाला बा. काहेकि ग्रीनबर्ग के हिसाब से ई “चीन के पूरा आबादी के भार” के बराबर बा.
बाकिर एहू में एगो झोल बा. सभे मछरी ताजा ना खाइल जाए. दोसर मीट आउर तरकारी जइसन, एकरो भविष्य में उपयोग करे खातिर जोगा के रखल जाला. जोगावे चाहे संरक्षित करे खातिर नीमक लगा के घाम में सूखावे जइसन सदियन पुरान तरीका काम में लावल जाला.
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घाम में सूखत बा मछरी के टुकड़ा
मोट शार्क के मांस खाए खातिर
ताक लगवले चिरई के झुंड के पाछू हमनी दउड़िला
राउर गुण हमनी के कवना काम के?
हमनी से मछरी के गंध आवेला! इहंवा से चल जाईं!
नट्रीनई 45 , नेतल तिनई (समुद्र तटीय गीत)
कवि अज्ञात. नायिका के सखी नायक से कहेली.
ई कालजयी आउर बेजोड़ पंक्ति 2000 बरिस पुरान तमिल साहित्य संगम के हिस्सा बा. गीत में नमक के ब्यापारी आउर तट पर घूम रहल ओह लोग के जहाज के कइएक गो रोचक संदर्भ बा. सवाल उठत बा कि का दोसरो पुरान संस्कृति में मछरी के नीमक लगा के घाम में सुखावे जइसन परंपरा रहे.
हां, डॉक्टर कृष्णेंदु रे जवाब देत बाड़न. कृष्णेंदु खाद्य मामला के विशेष जानकार बानी. “बाहरी, खास करके समुद्री साम्राज्य के लोग के मछरी पकड़े के काम संगे बहुते अलग तरह के नाता रहे. काहेकि जइसन कि वाइकिंग, जेनोइज, वेनेशियन, पुर्तगाली आउर स्पेनिश मामला में देखल गइल, एह साम्राज्य सभ खातिर जरूरी जहाज बनावे आउर चलावे के कला, काफी हद तक मछरी पकड़े वाला समुदाय लगे रहे.”
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के कहनाम बा, “पहिले कीमती प्रोटीन के सुरक्षित रखे खातिर बरफ में जमा के रखे वाला तरीका से जादे, नीमक लगा के हवा में सुखावे, आग में सोझे पकावे आउर खमीर उठावे जइसन तरीका काम में लावल जात रहे. अइसन करे से लंबा दूरी के जहाज यात्रा में मछरी के जादे बखत तक आउर जादे दूर ले बचा के रखल जा सकत रहे. बहुत दूर-दूर से आवे वाला जहाज खातिर ई जरूरी तरीका रहे जेकरा तट पर पहुंचे में बहुते दूरी तय करे के पड़त रहे आउर समय भी बहुत लागत रहे. एहि से भूमध्यसागर के आस-पास के इलाका में, गरुम (खमीर वाला मछरी के सॉस) के बहुते चलन रहे. बाकिर रोम साम्राज्य के पतन के बाद इहो गायब हो गइल.”
तमिलनाडु में मछरी के जोगा के रखे के ई कारीगरी आम बा, जइसन कि एफएओ के एगो आउर रिपोर्ट में बतावल गइल बा, “आमतौर पर एह में खराबी पैदा करे वाला बैक्टीरिया आउर एंजाइम के खत्म कइल जाला आउर अइसन स्थिति बनावल जाला जे रोगाणु सभ के बिकास आउर प्रसार के प्रतिकूल स्थिति पैदा करेला.”
एएफओ रिपोर्ट में इहो कहल गइल कि नीमक वाला मछरी, “मछरी के जोगावे के सबले सस्ता तरीका बा. नीमक लगावे के दू गो तरीका आम बा: पहिल बा, ड्राई साल्टिंग. एह में सूखल नीमक लगावल जे में नीमक सीधे मछरी के ऊपर लगावल जाला, आउर दोसर तरीका बा, ब्राइनिंग. एह में मछरी के नीमक वाला पानी चाहे घोल में बहुते दिन ले डूबा के रखल जाला.” आउर एह तरह से मछरी महीनन सुरक्षित रहेला.
एगो लंबा आउर सुनहरा इतिहास होखे आउर प्रोटीन के सस्ता आउर आसानी से उपलब्ध साधन होखला के बावजूद, लोकप्रिय संस्कृति (जइसे कि तमिल सिनेमा) में करुवाडु के मजाक उड़ावल जाला. फेरु स्वाद के परंपरा में ई कहंवा फिट बइठेला?
डॉ. रे के राय बा, “अइसन सोच के पीछे बहुते तरह के कारण काम करेला. जहंवा जहंवा दुनिया में ब्राह्मणवाद के संगे क्षेत्रीय वर्चस्ववाद के प्रसार भइल- उहंवा पानी, खास करके खारा पानी पर निर्भर जिनगी आउर आजीविका के बहुते संदेह आउर घृणा से देखल गइल… जइसे जइसे क्षेत्र आउर पेशा के कुछ संबंध जाति के आधार पर भी उभरे लागल, मछरी पकड़े के काम के हीन माने जाए लागल.”
डॉ. रे कहले, “मछरी कुदरत के अइसन जीव में से बा जेकर हमनी बहुत बड़ पैमाना पर शिकार करिले आउर खूब खाइले. एकरा खातिर एकर बहुत मान कइल जा सकेला, चाहे बहुत उपेक्षा भी कइल जा सकेला. संस्कृतनिष्ठ भारत के कइएक हिस्सा में, जहंवा अनाज उगावे के आर्थिक आउर सांस्कृतिक रूप से जादे महत्व देवल जात रहे, क्षेत्रीयता, घरेलू जिनगी आउर खेती योग्य जमीन, मंदिर निवेश आउर पानी से जुड़ल बुनियादी ढांचा पर निर्भर रहे, मछली पकड़े के धंधा के उपेक्षा होखे लागल.”
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सहायपुरणी घाम के बीच, छोट छायादार जगह में बइठ के पूमीन (मिल्क फिश) मछरी तइयार करत बाड़ी. सर्र, सर्र, सर्र… आपन तेज छुरी से तीन किलो के मछरी के चोइंटा (चमड़ा) छीलत बाड़ी. एकरा ऊ तेरेसपुरम हाट (ऑक्शन सेंटर) से 300 रुपइया में कीन के लइली ह. फातिमा के दोकान लगे जे नाला बा, ऊ उहंई आपन काम करेली. नहर के पानी करियर हो गइल बा. एह में पानी से जादे कीच भरल बा. मछरी के चोइंटा उड़िया उड़िया के कबो पूमीन मछरी लगे, कबो मछरी के ढेरी पर आउर कबो दू फीट दूर बइठल हमरा ऊपर चमकत गिरत बा. ई देखके ऊ मुंह नुका के हंसे लागत बाड़ी. संगे हमनियो के हंसी आवे लागत बा. सहायपुरणी फेरु से आपन काम में जुट जात बाड़ी. बहुत सफाई से छुरी चलत बा आउर मछरी के पंख अलग हो जात बा. एकरा बाद मछरी के गरदन, फेरु धड़. तड़-तड़ आउर ओकर माथा धड़ से अलग हो जात बा.
पाछू में एगो उज्जर कुकुर बड़ी देरी से ध्यान लगइले बा. गरमी से जीभ लपलपावत ताक लगा के बइठल बा. अब सुहायपुरणी मछरी के आंत निकाल देत बारी आउर छुरी से पूरा मछरी, किताब जेका खोल देत बाड़ी. अब दरांती से मांस में गहिर चीरा लगावत बाड़ी. छूरी से छोट आ पातर लाइन खींचत बाड़ी. एक हाथ से मुट्ठी भर नीमक उठा के मछरी के भीतर-बाहिर अच्छा से रगड़ देत बाड़ी. जेतना चीरा लागल बा सभे में तबले नीमक भरात बा, जबले गुलाबी मांस नीमक के कण से भर न जाए. मछरी सूखे खातिर तइयार बा. ऊ दरांती आउर छुरी धोवे लागत बाड़ी. अब पानी में हाथ के डूबा के घिचोड़-घिचोड़ के धोवत आउर फेरु सुखावत बाड़ी. “आईं,” ऊ कहली, आउर हमनी उनकरा पाछू उनकर घर चल देत बानी.
तमिलनाडु के समुद्री मत्स्य पालन जनगणना 2016 के हिसाब से राज्य में मछरी के धंधा में 2.62 लाख मेहरारू आउर 2.74 लाख मरद लोग लागल बा. एकरा से इहो पता चलेला कि 91 प्रतिशत समुद्री मछुआरा के परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करेला.
जरत घाम से तनी दूर बइठके, हम सहायपुरणी से पूछनी ऊ एक दिन में केतना मछरी बेच लेवेली. “आंड वर (यीशु) हमनी खातिर का सोचले बाड़न, ई त उहे पर निर्भर करेला. हमनी उनकरे दया पर जिंदा बानी.” हमनी के बतकही में यीशु के चरचा बेर-बेर भइल. “उनकर कृपा रहल त हमनी सूखर मछरी बेच के रात के 10.30 बजे ले घर पहुंच जाईं.”
दाता के प्रति ई मौन समर्पण उनकर कामो में देखाई देवेला. मछरी सुखावे खातिर उनकरा जे जगह मिलल बा, ऊ नहर के किनारे बा. उनकरा हिसाब से कवनो तरह से ई जगह ठीक नइखे, बाकिर का उपाय बा? उनकरा खाली जरत घामे ना झेले के पड़े, बलुक बेबखत के बरसात भी झेले के पड़ेला. “हाले फिलहाल के बात ले लीहीं. हम मछरी के नीमक लगा के सूखे खातिर घाम में पसार देनी आउर घरे चल अइनी. अबही आराम से खटिया पर ओठंगते बानी कि अचके एगो आदमी दउड़त आइल आउर बतइलक बरखा हो रहल बा. जबले हम धउग (दौड़) के जाईं, मछरी आधा भींज चुकल रहेला. छोट-छोट मछरी एह में ना बचे, खराब हो जाला, समझनी.”
सहायपुरणी, जे अब 67 बरिस के बाड़ी, मछरी सुखावे के कला आपन चिति (मउसी)- माई के छोट बहिन से सिखले रहस. बाकिर ऊ कहतारी, भले मछरी के धंधा देखे में तेज लागे, सूखल मछरी के खपत कम भइल जात बा. “अइसन एह से कि जेकरा लगे मछरी खरीदे के ताकत बा, ऊ आराम से ताजा मछरी भी खरीद सकत बा. केतना बेरा त ई आउर सस्ता मिल जाला. एकरा अलावे, रोज-रोज कोई एके चीज खाई त ऊबिया जाई, रउआ ना उबियाएम? राउर घर में जदि हफ्ता में दू बेर मछरी बनत बा, त एक दिन बिरयानी बनी. दोसरा दिन सांभर, रसम, फेरु सोया बिरयानी…”
एकर सबले बड़ कारण डॉक्टर लोग के एक-दोसरा से विपरीत राय बा. “करुवाडु मत खा, एह में बहुते नीमक होखेला. डॉक्टर लोग के कहनाम बा कि एकरा खाए से ब्लड प्रेशर बढ़ जाला. एहि से लोग एकरा से परहेज करे लागेला.” मछरी के धंधा में मंदी आवे आउर डॉक्टर के राय के बारे में बात करत ऊ आपन माथा धीरे से झटकली आउर मुंह बिचका (निच्चे वाला ठोड़ (होंठ) बाहिर निकाल) देली. एकदम लइका लोग जइसे करेला. एह में बेबसी आउर चिढ़ दुनो बा.
जब करुवाडु तइयार हो जाला, ऊ एकरा आपन घर में रख देवेली. घर के एगो कमरा इहे काम खातिर इस्तेमाल होखेला. “बड़हन-बड़हन मछरी महीनों चल जाला,” ऊ बतइली. उनकरा आपन लुर पर भरोसा बा. जवना तरीका से ऊ मछरी में चीरा लगावेली आउर ओह में नीमक रगड़ेली, ओकरा से मछरी के जादे दिन ले टिकल निस्चित हो जाला. “ग्राहक लोग एकरा बहुते हफ्ता ले जोगा-जोगा के रख सकत बा. एकरा तनी हरदी आउर तनी नीमक लगा के अखबार में लपेट दिहीं आउर कवनो एयरटाइट डिब्बा में धर दीहीं, त ई फ्रीज में बहुते दिन ले रह सकेला.”
माई के जमाना में करुवाडु जादे खाएल जात रहे. सूखल मछरी के तल के बाजरा के दलिया संगे खाइल जात रहे. “एगो बड़ तसली में सहजन, बैंगन के कुछ टुकड़ा आउर मछरी मिला के झोर जइसन पका लेवल जात रहे. आउर एकरा दलिया पर डाल के खाइल जात रहे. बाकिर अब, सभे कुछ ‘बनल-बनावल’ बिकाला. ऊ हंसली, “अब त हाट में चाउर भी ‘तइयार’ मिलेला. लोग तरल (भुनल) अंडा संगे भेजिटेबल कूटु (दाल के संगे पकावल तरकारी) खाएला. हम 40 बरिस पहिले भेजिटेबल कूटु के नामो ना सुनले रहनी.”
जादे करके सहायपुरणी मुंह अन्हारे 4.30 बजे तइयार होके घर से काम पर निकल जाली. ऊ बस लेके 15 किमी के भीतरी पड़े वाला गांव पहुंचेली. “गुलाबी बस में हमनी के टिकट ना लागे,” ऊ बतइली कि तमिलनाडु सरकार के मुख्यमंत्री एम.के स्टालिन साल 2021 में मेहरारू लोग खातिर फ्री बस सेवा सुरु करइले रहस. “बाकिर हमनी के टोकरी खातिर फुल टिकट लग जाला. दूरी के हिसाब से टिकट में 10 चाहे 24 रुपइया लागेला.”केतना बेरा त ऊ कंडक्टर के दस रुपइया के नोट पकड़ा देवेली. “कंडक्टर तनी इज्जत से पेश आवेला,” ऊ मुस्कात कहली.
मंजिल आवते सहयापुरणी गांव में घूम-घूम के मछरी बेचे लागेली. ई बहुते भारी आउर थकाऊ काम बा, आउर एह में मुकाबला भी बहुते बा, ऊ कहली. “ताजा मछरी बेचत रहीं, त हाल आउर खराब रहे. मरद लोग दुपहिया पर मछरी के टोकरी ले आवत रहे. जेतना देर में हमनी दू घर जाईं, ऊ लोग दस घर घूम लेत रहे. गाड़ी चलते ओह लोग के मिहनत कम करे के पड़े. हमनी खातिर पैदल चलनाई सजा हो जात रहे. एकरा अलावे मरद लोग से हमनी कमाई के मामला में भी मात खा जात रहीं.” एहि से ऊ करुवाडु बेचे के काम ना छोड़ली.
अलग-अलग मौसम में सूखल मछरी के मांग भी अलग-अलग होखेला. “गांव में कवनो तीज-त्योहार होखला, त कुछ दिन चाहे हफ्ता खातिर मछली-मांस से परहेज कइल जाला. अइसन परंपरा जादे करके लोग मानेला. एकरा से हमनी के धंधा पर असर पड़ल त स्वाभाविक बा.” अइसे त ई चलन नया बा. काहे कि सहायपुरणी कहली, “पांच बरिस पहिले, जादे लोग अइसन परहेज ना मानत रहे. त्योहार के पहिले, चाहे बाद में- जब बकरी के बलि चढ़ावल जाला, भोज होखेला तब पूजा करे वाला, आपन नाता-रिस्तेदार खातिर जादे मात्रा में सूखल मछरी मंगवावेला.” उनकर 36 बरिस के लइकी, नैन्सी समझइली, “कबो-कबो ऊ लोग एक-एक किलो के ऑर्डर देवेला.”
जवन महीना में धंधा मंदा रहेला, परिवार के करजा लेके गुजारा करे के पड़ेला. सामाजिक कार्यकर्ता नैन्सी कहली, “दस पइसा के ब्याज, रोज के, हफ्ता के, महीना के ब्याज. बरसात आउर मछरी पकड़े पर रोक लगला पर हमनी के एह तरह से गुजारा करे के पड़ेला. केहू केहू के साहूकार लगे, चाहे बैंक में जेवरो गिरवी रखे के पड़ेला. बाकिर हमनी के उधार लेवे के पड़ेला,” माई उनकर अधूरा बात पूरा कइली, “अन्न खरीदे खातिर.”
करुवाडु के धंधा में जेतना खटनी बा, ओह हिसाब से कमाई नइखे. सहायपुरणी ओह दिन भोरे जे मछरी 1,300 रुपइया में (टोकरी भर सालई मीन आउर सार्डिन) खरीद के लइली, एकरा बेच के उनकरा 500 रुपइया के मुनाफा होई. मछरी के साफ करे, नीमक लगावे आउर सुखावे में दू दिन के मिहनत लागी. फेरु बस से हाट ले जाके बेचे में आउर दु दिन खरचा होखी. एतना मिहनत आउर बखत खरचा कइला पर एक दिन के 125 रुपइया के कमाई, हा कि ना? हम उनकरा से जाने के चहनी.
ऊ हां में आपन मुड़ी धीरे से हिलइली. अबकी बेरा ऊ हंसली ना.
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तेरेसपुरम में करुवाड़ु ब्यापार के अर्थशास्त्र आउर मानव संसाधन के तस्वीर धुंधला बा. हमनी के तमिलनाडु के समुद्री मत्स्य जनगणना से कुछ जानकारी जुटइनी. तेरेसपुरम में 79 लोग मछरी के साफ करे आउर संरक्षित करे के काम में लागल बा. तूतिकोरिन जिला के बात कइल जाव, त इहंवा एह काम में 465 लोग लागल बा. सगरे सूबा में एह काम में मछुआरा लोग के बस 9 प्रतिशत आबादी ही लागल बा. चौंका देवे वाला बात बा कि एह काम में 87 प्रतिशत मेहरारू लोग लागल बा. एफएओ के एह रिपोर्ट के हिसाब से दुनिया भर के जे आंकड़ा बा ओकरा से ई बहुते जादे बा. इहंवा “छोट पैैमाना पर होखे वाला मत्स्य पालन में जेतना श्रमशक्ति लागल बा, ओकर लगभग आधा हिस्सा मेहरारू लोग के योगदान पर निर्भर बा.”
एह काम में मुनाफा आउर घाटा के गिनती अउरो मुस्किल बा. एगो 5 किलो के बड़ मछरी जे हजार रुपइया में बिकाई, तनी पिलपिला भइला पर ओकरा चार सौ रुपइया में बेचे पड़ेला. मेहरारू लोग एकरा ‘गुलगुल’ कहेला. ताजा मछरी कीने वाला ग्राहक एकरा छांट देवेला. छंटल माल के तलाश में करुवाडु तइयार करे वाला लोग रहेला. ऊ लोग तनी छोट मछरी पसंद करेला, काहेकि ओकरा तइयार करे में जादे बखत ना लागे.
फातिमा के 5 किलो के बड़का मछरी तइयार करे में एक घंटा लाग जाला. एतने भार के छोट मछरी तइयार करे में दोगुना समय लाग जाला. नीमक के जरूरत भी अलग अलग होखेला. बड़ ताजा मछरी में ओकर वजन के आधा नीमक लागेला. छोट मछरी के ओकर वजन के अठमा हिस्सा के बराबर नीमक के जरूरत पड़ेला.
सूखल मछरी के धंधा करे वाला लोग नीमक सीधा अप्पलम, चाहे नीमक के खेत से लेके आवेला. एकर मात्रा एह बात पर निर्भर करेला कि खरीदे वाला के इंहवा केतना नीमक के जरूरत बा. नीमक के एक खेप के दाम ओकर मात्रा के हिसाब से 1,000 से 3,000 रुपइया ले होखेला. नीमक के बोरी के ढोए खातिर तिपहिया, चाहे ‘कुट्टियानई’ (मतलब छोट हाथी, जे असल में एगो छोट टेम्पू ट्रक) होखेला. नीमक के हाट से ले आके ऊ लोग के घर लगे लमहर बुल्लू पिलास्टिक के ड्रम में भर के रखेला.
फातिमा बतावत बाड़ी कि करुवाडु तइयार करे के तरीका में दादी के बखत से कवनो खास बदलाव नइखे आइल. मछरी के पेट साफ करे, धोए आउर चोइंटा छोड़ावे के काम सबले पहिले होखेला. एकरा बाद नीमक के मछरी पर आउर एकरा भीतर लगावल जाला. ऊ लोग आपन काम सफाई से करेला. ऊ हमरा भरोसा दिलावे खातिर मछरी के कइएक टोकरी देखइली. एगो में सूखल, कतरल करुवाडु रहे जे हरदी में लपेटल रहे. एकर एक किलो खातिर 150 से 200 रुपइया मिल जाई. कपड़ा के एगो दोसर गठरी में ऊलि मीन (बाराकुडा) रहे. ओकरा नीचे पिलास्टिक के एगो डोल (बाल्टी) में सूखल सालई करुवडु (सूखल सार्डिन) मछरी रखल रहे. उनकर बहिन फ्रेडरिक बगल के दोकान से उनकरा हकार पाड़त (पुकारत) कहली, “हमनी के काम जदि ‘नाकरे मूकरे’ (खराब आउर गंदा) होई, त के खरीदी? हमनी से बड़-बड़ लोग- इहंवा ले कि पुलिस भी- मछरी खरीदे आवेला. करुवाडु के धंधा में हमनी के एगो नाम बा.”
दुनो बहिन घाव आउर दरद भी कम नइखे कमइले. फ्रेडरिक हमरा के आपन हाथ देखावे लगली. तेज छूरी से बहुते जगह कटे के आड़ा-तिरछा निसान बा, कहूं छोट त कहूं गहिर. हर निसान के आपन अतीत बा. निसान हाथ के लकीर के भविष्यवाणी से जादे सटीक बात बतावेला.
“मछरी लावे के काम हमार बहनोई के बा. हमनी चारो बहिन मिलके एकरा सूखाई आउर बेचिला,” आपन दोकान के भीतरी, छांह में बइठल फातिमा कहली. “उनकरा त चार बेर सर्जरी भइल बा. अब ऊ समंदर में ना जा सकस. एहि से ऊ तेरेसपुरम नीलामी केंद्र चाहे तूतुकुडी के मछरी मारे वाला मुख्य बाजार से माल स्टॉक में खरीद के लावेलन- कइएक हजार रुपइया के. हमार बहिन लोग आउर हमनी उनकरे से मछरी खरीदेनी आउर कुछ कमीशन दे देवेनी. आउर फेरु ओहि मछरी से करुवाडु बनावेनी.” फातिमा आपन बहनोई के ‘मापिल्लई’ कहेली, जेकर मतलब आमतौर पर दामाद होखेला. ऊ आपन बहिन सभ के “पोन्नू” पुकारेली जेकर मतलब छोट लइकी होखेला.
सभे 60 पार कर चुकल बा.
फ्रेडरिक आपन नाम के तमिल रूप इस्तेमाल करेली: पेट्री. ऊ 37 बरिस ले अकेले काम करत रहली. मतलब तब से जब उनकर घरवाला, जॉन जेवियर गुजरले. उनकरो के ऊ मापिल्लई कहत रहस. ऊ बतइली, “बरसात के मौसम में हमनी मछरी सुखावे का काम ना कर सकिले. तब कमाई के भारी संकट रहेला. दोसरा से भारी भारी बियाज पर पइसा उधार लेवे के पड़ेला. हर महीना एक रुपइया पर 5 पइसा आउर दस पइसा के ब्याज.” साल भर में उनकरा 60 से 120 प्रतिशत ब्याज चुकावे के पड़ेला.
कामचलाऊ स्टॉल के बाहिर मंद-मंद बहत नहर किनारे बइठ के फ्रेडरिक कहे लगली कि उनका एगो नया बरफ के बक्सा चाहीं. “एगो बड़ा बक्सा, जेकर ढक्कन मजबूत होके. जेकरा में हम ताजा मछरी के रख सकीं आउर बरसात के मौसम में बेच सकीं. बात ई बा, हमनी हरमेसा आपन संगी-साथी लोग से पइसा ना ले सकीं, सभे के धंधा मंद चलत बा. केकरा पास एतना पइसा बा? कबो-कबो त दूध के एगो थैली खरीदल मुहाल होला.”
सूखल मछरी के बेच के जे पइसा आवेला ऊ घर, खाना आउर दवाई में खरचा हो जाला. ऊ अंतिम बात पर तनी जोर देली- “बीपी आउर शुगर के गोली”. ऊ इहो बतइली कि केतना महीना मछरी पकड़े वाला नाव पर रोक रहेला. ओह घरिया रोटी खाए खातिर पइसा उधार लेवे के पड़ेला. “अप्रिल आउर मई में, मछरी सभ के अंडा देवे के बखत रहेला. एहि से मछरी पकड़े के मनाही रहेला. हमनी के काम रुक जाला. एकरा अलावे बरसातो में अइसने होखेला. ओह घरिया मछरी के नीमक लगा के घाम में सुखावल मुस्किल रहेला. हमनी के कमाई एतना ना होखे कि बुरा दिन खातिर पइसा अलग से बचा के रखीं.”
बरफ के एगो नया बक्सा के कीमत 4,500 होखी. वजन करे वाला लोहा के तराजू, आउर एल्यूमिनियम के टोकरी. फ्रेडरिक के भरोसा बा कि ई सभ सामान रहे से जिनगी आसान हो जाई. “हम ई सभ खाली अपना खातिर नइखी चाहत. हम चाहत बानी ई सामान सभे लगे होखे. हमनी लगे ई सभ होई,” ऊ कहली, “त मुस्किल बखत निकाल लेहम.”
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तमिलनाडु के बारे में बात कइल जाव त, हाथ से काटल आउर तइयार कइल फसल (खासकरके बूढ़ मेहरारू मजूर के हाथ) के जे दाम होखेला, ऊ मेहरारू लोग के समय आउर मिहनत के तुलना में बहुते कम होखेला.
मछरी सुखावे के काम भी एकरा से अलग नइखे.
“लैंगिक के आधार पर अवैतनकि (बिना मेहनताना) श्रम के इतिहास रहल बा. इहे कारण बा कि पूजा-अर्चना, इलाज, खाना बनावल, पढ़ाई-लिखाई के बाजारीकरण संगे जादू-टोना, अंधविश्वास, चुड़ैल के काढ़ा जइसन मेहरारू विरोधी सोच बिकसित भइल.” डॉक्टर विस्तार से बतइले. संक्षेप में कहल जाव त मेहरारू लोग के अवैतनिक श्रम के उचित आ तर्कसंगत ठहरावे के खातिर, अतीत के ढेरे मनगढंत कहावत आउर मिथक के सहारा लेवल गइल. “धंधा के बनल आउर बिगड़ल कवनो संयोग नइखे, बलुक जरूरी घटना बा. इहे कारण बा कि आजो पेशेवर रसोइया पौरुष प्रदर्शन के एगो खराब नकल लागेला. काहेकि ऊ लोग हरमसा घरेलू खाना के जादे अच्छा पकावे के दावा करेला. एकरा से पहिले इहे काम पुजारी लोग कइलक. डॉक्टर लोग भी इहे कइलक आउर प्रोफेसर लोग त कइबे कइलक.”
तूतुकुड़ी शहर के दोसरा ओरी, एगो नमक कारीगर, एस.रानी के रसोई में, करुवाडु कोडम्बू (झोर) बनावल देखल जा सकत बा. कोई एक बरिस पहिले, सितंबर 2021 में, हमनी उनकरा नमक के खेत में नीमक बनावत देखले बानी- खेत घाम से एतना जरत रहे कि लागे पानी केहू उबाल देले होके. अइसन में ऊ नीमक के चमकत दाना के फसल उगावत रहस.
रानी, जे करुवाडु खरीदेली, ऊ उनकर पड़ोस में तइयार होखेला. आउर ई स्थानीय नीमक के मदद से बनेला. झोर बनावे खातिर, ऊ नींबू के आकार के इमली के टुकड़ा पानी में फुला देली. एकरा बाद नरियर तुड़ के, दरांती के घुमावदार नोक से आधा टुकड़ा से छिलका हटइली. एकरा काट के ऊ एगो बिजली से चले वाला मिक्सर में छिलल प्याज संगे पीसे खातिर डाल देत बाड़ी. फेरु एकरा तबले पीसत बाड़ी जबले चटनी मक्खन जइसन चिक्कन ना हो जाए. खाना बनावत बनावत ऊ बीच बीच में बतियावतो जात बाड़ी. ऊ ऊपर देखत कहत बाड़ी, “करुवाडु कोडम्बू एक दिन बादो खाए में नीमन लागेला. दलिया संगे काम पर ले जाए खातिर नीमन बा.”
अब ऊ तरकारी- दु गो सहजन, कच्चा केला, बैंगन आउर तीन गो टमाटर के साफ करके काटत बाड़ी. साथे तनी करी पत्ता आउर मसाला पाउडर भी रखल बा. लगही एगो बिल्ली के मछरी के गंध लागत बा, ऊ भूख से म्याऊं करे लागत बिया. रानी पैकेट में से तरह-तरह के करुवाडु- नगर, असलकुट्टि, पारई आउर सालई निकालत बाड़ी. ऊ बतावत बाड़ी. “ई सभ हमरा 40 रुपइया में मिलल ह.” आज झोर बनावे खातिर पैकेट में से अधिया मछरी निकाल लेत बाड़ी.
एगो आउर व्यंजन पक रहल बा, जे रानी के बहुते नीमन लागेला. रानी करुवाडु अवियल के बारे में बतावत बाड़ी. एकरा बनावे खातिर करुवाडु संगे ईमली, हरियर मरिचाई, पियाज, टमाटर डालल जाला. मसाला, नीमक आउर खट्टा के एगो खूब तेज आउर चहटगर झोर बनके तइयार होखेला. ई बहुते लोकप्रिय व्यंजन बा. नीमक के खेत पर काम करे खातिर मजूर लोग अपना संगे लेके जाएल पसंद करेला. रानी आउर उनकर सहेली लोग आउर व्यंजन के विधि बतावे लागल. जीरा, लहसून, सरसों आउर हींग के एक साथ पीस के उबल रहल सूखल मछरी, टमाटर, हरदी आउर लाल मरिचाई के रस्सा में डालल जाला. रानी कहली, “एकरा मिलगुतन्नी कहल जाला. जेकरा तुरंत बच्चा पैदा भइल हवे, अइसन लरकोरी खातिर ई झोर बहुते फायदा करेला. एह में जेतना मसाला पड़ल बा, ओकरा से तबियत के बहुते फायदा बा.” कहल जाला कि एकरा से लरकोरी के दूध बढ़ेला. मिलगुतन्नी के एगो अइसन रूप भी बा, जे में करुवाडु ना डालल जाला. तमिलनाडु के बाहिर एकरा रसम नाम से जानल जाला. अंग्रेज सभ एकरा बहुते पहिले अपना संगे ले गइल रहे. कइएक उपमहादेश में मेनू में ई ‘मुलिगटॉनी’ सूप के नाम से मिलेला.
रानी पानी के देगची में करुवाडु डालत बाड़ी आउर फेरु मछरी के साफ करत बाड़ी. मछरी के माथा, पोंछ आउर पंख हटा देत बाड़ी. सोशल वर्कर उमा माहेश्वरी के कहनाम बा, “इहंवा त सभे कोई करुवडु खाएला. लरिका लोग त एकरा खालिए खाला. आउर कुछ लोग, हमार घरवाला जइसन, के स्मोक्ड कइल पसंद आवेला.” करुवड़ु के लकड़ी के चूल्हा के गरम-गरम राख में डाल के पकावल जाला. आउर गरमे-गरम खाइल जाला. “एकर सोंधा-सोॆधा महक बहुते नीमन लागेला. सुट्ट करुवाडु बहुते स्वादिष्ट व्यंजन हवे.”
जबले कोडम्बू खउल रहल बा, रानी आपन घर के बाहिर ओसारा में पिलास्टिक के कुरसी पर बइठ जात बाड़ी. हमनी बात करे लागत बानी. हम उनकरा से सिनेमा में करुवाडु के मजाक उड़ावे के बारे में पूछत बानी. ऊ मुस्काए लागत बाड़ी. “कुछ जात के लोग मांस-मछरी ना खाएला. उहे लोग जब सिनेमा बनावेला त अइसन बात देखावेला.” ऊ कहत बाड़ी. “कुछ लोग खातिर ई नातम (बदबूदार) बा. हमनी खातिर, ई मणम (खुशबूदार) बा.” आउर एह तरह से, तूतूकुड़ी के नीमक कारखाना के रानी करुवाडु पर चल रहल बहस के खत्म कर देत बाड़ी.
एह शोध अध्ययन के अजीम प्रेमजी विश्ववद्यालय, बेंगलुरू के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत अनुदान मिलल बा.
अनुवाद: स्वर्ण कांता