चन्द्रिका बेहरा 9 बछर के हवय अऊ करीब दू बछर ले इस्कूल नई जावत हवय. वो हा बाराबंकी गाँव के तेन 19 लइका मन ले आय, जेन मन ला 1 ले 5 तक के कच्छा मं होय ला चाही, फेर ये लइका मन 2020 ले सरलग इस्कूल नई गे हवंय. वो ह कहिथे के ओकर दाई वोला नई पठोय.
2007 मं बाराबंकी मं इस्कूल खुलिस, फेर 2020 मं ओडिशा सरकार ह वोला बंद कर दीस. प्रायमरी इस्कूल के लइका मन ला, अधिकतर चन्द्रिका जइसने गाँव के संथाल अऊ मुंडा आदिवासी मन ला, करीबन एक कोस (3.5 किलोमीटर) दूरिहा जमुपसी गाँव के इस्कूल मं भर्ती होय ला कहे गीस.
चन्द्रिका के दाई मामी बेहरा बताथें, “लइका मन रोज अतक रेंगे नई सकंय अऊ अतक दूरिहा आवत-जावत लड़ई करत हवंय. वो ह कहत जाथे, “हमन गरीब मजूर अन. हमन हरेक दिन बूता खोजे ला जाबो धन लइका मन के संग इस्कूल जाबो? अफसर मन ला हमर इस्कूल फिर ले खोले ला चाही.”
तब तक ले, वो ह बेबस होवत अपन खांध ला उचकावत रहिथे. 6 ले 10 बछर के अपन सबले नान लइका जइसने, जेन मन ला ये बखत बिन पढ़ई के रहे ला परत हवय. 30 बछर के ये महतारी ला येकर घलो डर हवय के इहाँ जाजपुर जिला के दानगदी ब्लाक के जंगल मं लइका चोर होय सकत हवंय.
अपन बेटा जोगी सेती, मामी ह एक ठन जुन्ना सइकिल के जुगाड़ करे रहिस. जोगी करीबन 2 कोस दूरिहा दूसर इस्कूल मं कच्छा 9 मं पढ़थे. ओकर बड़े बेटी, मोनी कच्छा सातवीं मं हवय अऊ वोला जामुपसी के इस्कूल रेंगत जाय ला होही. सबले नान चन्द्रिका ला घर मं रहे ला परथे.
मामी सवाल करत कहिथे, “ हमन अपन जमन मं भारी रेंगेन अऊ डोंगरी चढ़ेन. जब तक ले जांगर चलिस भारी मिहनत करेन. का हमन ला अपन लइका मन ले घलो इहीच आस करे ला चाही?”
बाराबंकी के चार कोरी सात घर खास करके आदिवासी आंय. कुछेक करा नान-नान खेत हवय, फेर अधिकतर रोजी मजूर आंय, जेन मन लोहा कारखाना धन सीमेंट कारखाना मं बूता करे सेती डेढ़ कोस दूरिहा सुकिंदा तक ले जाथें. कुछेक मरद मन सूत मिल धन बीयर कैन भरे यूनिट मं बूता करे तमिलनाडु चले गे हवंय.
बाराबंकी मं, इस्कूल बंद होय के पहिली इस्कूल मं मध्याह्न भोजन ला लेके घलो संदेहा हो गे रहिस –बनेच गरीब मन के सेती परिवार भोजन योजना के जरूरी हिस्सा आय. किशोर बेहरा कहिथें, “कहे गे रहिस के इस्कूल मं मध्याह्न भोजन के जगा मं चऊर धन नगदी दे जाही. फेर कम से कम सात महिना तक ले, मोला न त नगदी अऊ न त चऊर मिलिस.” कुछेक परिवार के खाता मं पइसा आइस; कभू कभू वो मन ला बताय जावत रहिस के कोस भर दूरिहा नवा इस्कूल मं बांटे जाही.
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इही ब्लाक के पुरुणमंतिरा परोसी गांव आय. ये अप्रैल 2022 के पहिला हफ्ता आय. मंझनिया के बखत, गाँव ले बहिर जाय के संकेल्ला सड़क मं चहल-पहल रहिथे. पाछू के सड़क अचानक ले माइलोगन, मरद, डोकरी दाई अऊ सइकिल धरे कुछेक किसोर उमर के लइका मन ले भरे हवय. कऊनो ककरो ले गोठियावत नई ये, रेंगत जावत हवंय. ठाढ़ मंझनिया 42 डिग्री सेल्सियस घाम ले बचे सेती कऊनो गमझा बंधे हवय अऊ कऊनो अपन अंचरा ला.
भारी घाम ला नजरंदाज करत, पुरुणमंतिरा के बासिंदा अपन नान-नान बाबू नोनी मन ला इस्कूल ले लाय सेती आधा कोस रेंगत जावत हवंय.
दीपक मलिक पुरुणमंतिरा के बासिंदा आंय अऊ सुकिंदा मं एक सीमेंट कारखाना मं ठेका मजूर आंय – सुकिंदा घाटी अपन क्रोमाइट के भारी भंडार सेती जाने जाथे. ओकरे जइसने, आदिवासी बहुल गाँव के दीगर लोगन मन घलो बने बढ़िया करके जानथें के बढ़िया पढ़ई लइका मन के बढ़िया अगम के टिकट कस आय. वो ह कहिथें, “हमर गाँव मं अधिकतर लोगन मन ला मजूरी करे ला परथे, नई त रतिहा मं चूल्हा नई बरय. इही कारन आय के 2013-14 मं एक इस्कूल भवन बने ह हमर सब्बो सेती बनेच बड़े मऊका रहिस.”
एक कोरी पांच घर के गांव के बासिंदा सुजाता रानी सामल कहिथे, 2020 मं महामारी के बाद ले पुराणमंतीरा मं तेन 14 लइका मन के सेती प्रायमरी इस्कूल नई ये, जेन मन ला कच्छा 1ले 5 मं होय ला चाही. येकर छोड़, बड़े, प्रायमरी इस्कूल के लइका मन ला भीड़-भाड़ वाले रेल लाइन के तीर के परोसी गांव चकुआ तक ले डेढ़ कोस दूरिहा जाय ला परथे.
रेल लाइन ले बचे सेती ओवरब्रिज वाले सड़क मं जाय सकथें फेर येकर ले ये दूरिहा ह डेढ़ कोस बढ़ जाथे. ब्राह्मणी रेलव टेसन तक ले जवेइय्या रेल फाटक तक ले जावत तक ले गांव के पार मं बने नान सड़क ह जुन्ना इस्कूल अऊ मन्दिर ले होवत जाथे.
तभे मालगाड़ी नरियावत गुजर जाथे.
भारतीय रेलवे के हावड़ा-चेन्नई माई लाइन मं हरेक दस बीते मालगाड़ी अऊ पेसेंजर ट्रेन मन पार करत रहिथें. अऊ येकरे सेती, पुरणमंतीरा मं कऊनो घलो परिवार अपन लइका मन ला बिन सियान के संग इस्कूल जाय नई देवय.
पटरी मन अभू घलो झनकत हवंय काबर रेल आय के पहिली हरेक दऊड़ परथें. कुछु लइका मन फाटक पार ला सरकत कूदत उतर जाथें; सबले नान मन ला जल्दी जल्दी पार ऊपर ले तरी लाय जाथे. जोर लगाके जल्दी करत हवंय. ये करीबन आधा घंटा मं लगे रथें ककरो गोड़ धुर्रा भरे, ककरो गोड़ पखना कस, घाम मं जरे, जुच्छा गोड़ बनेच थक गे हवंय, जोर ले रेंगे नई सकत हवंय.
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ओडिशा में बंद करीबन 9,000 इस्कूल मन मं बाराबंकी अऊ पुरणमंतीरा के प्रायमरी स्कूल सामिल हवंय – सरकारी भाखा मं ये ह ‘समेकित’ धन परोस गांव के इस्कूल मं ‘विलय’ कर दे गे हवय – ये ह केंद्र सरकार के सिच्छा अऊ स्वास्थ्य के छेत्र मं 'सस्टेनेबल एक्शन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग ह्यूमन कैपिटल (एसएटीएच)' के नांव ले हवय.
एसएटीएच –ई ला नवंबर 2017 मं तीन ठन राज –ओडिशा, झारखंड अऊ मध्यप्रदेश मं स्कूली शिक्षा मं सुधार करे सेती लांच करे गे रहिस. प्रेस सूचना ब्यूरो के 2018 के विज्ञप्ति के मुताबिक, येकर उद्देश्य “जम्मो सरकारी स्कूल शिक्षा प्रणाली ला हरेक लइका सेती जवाबदेह , आकांक्षी अऊ बदलावकारी” बनाय रहिस.
बाराबंकी, जेन गाँव के इस्कूल बंद रहिस, उहाँ के बदलाव थोकन अलग हवय. गांव मं एक झिन डिप्लोमाधारी रहिस. कुछेक मन 12 वीं पास कर ले रहिन, अऊ कतको मेट्रिक मं फेल होगे रहिन. अब खतम हो चुके इस्कूल के प्रबंधन समिति के अध्यक्ष किशोर बेहरा कहिथें, “अब हमर गाँव मं येहू घलो नई होय सकय.”
बनेच कम लइका वाले इस्कूल ला बंद करे सेती परोसी गांव मं छांटे गे इस्कूल संग प्रायमरी इस्कूल मन ला मिलाय गे हवय. नीति आयोग के वो बखत के सीईओ, अमिताभ कांत ह एसएटीएच –ई ऊपर नवंबर 2021 के रिपोर्ट मं स्कूल बंद करे ला ‘साहस ले भरे अऊ रद्दा देखेइय्या सुधार’ मेर ले एक बताय हवय.
पुरणमंतीरा के किशोर उमर के लइका सिद्धार्थ मलिक चकुआ के अपन नवा इस्कूल रोजके आय जाय ले अपन गोड़ पिराय के बात करथे. ओकर ददा दीपक कहिथें के वो ह कतको बेर इस्कूल नई जाय सके.
भारत के करीबन 11 लाख सरकारी इस्कूल मन ले करीबन 4 लाख मं 50 ले कमती लइका हवंय, अऊ 1.1 लाख मं 20 ले कमती लइका हवंय. एसएटीएच-ई के रिपोर्ट ह ये मन ला ‘सब-स्केल स्कूल’ के रूप मं बताय हवय अऊ ओकर कमी ला सूचीबद्ध करे हवय जेन मं बिन विषय-खास जानकार वाले गुरूजी, समर्पित हेड मास्टर मं के कमी, खेल सेती मैदान के बगेर, बिन अहाता अऊ बिन पुस्तकालय हवय.
फेर पुरणमंतीरा के लोगन मन बताथें के उपरहा कतको सुविधा के बेवस्था वो मन के इस्कूल मं करे जाय सकत रहिस.
चकुआ के स्कूल मं पुस्तकालय हवय धन नई कऊनो ला मालूम नई ये; इहाँ अहाता हवय जेन ह वो मन के जुन्ना स्कूल मं नई रहिस.
ओडिशा मं, ये बखत एसएटीएच-ई परियोजना के तीसर चरण चलत हवय. ये चरण मं ‘बंद करे’ सेती कुल 15,000 स्कूल के चिन्हारी करे गे हवय.
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झिली देहुरी अपन सइकिल ला चढ़ोल मं पेलत हवय, ओकर घर तीर मं हवय. ओकर गाँव बाराबंकी मं एक बड़े आमा रुख तरी नारंगी रंग के तिरपाल बिछे हवय. स्कूली शिक्षा के दिक्कत ला ले के लइका मन के घर के मन संकलाय हवंय. झिली आवत ले थक गे रहिथे.
बाराबंकी के अपर प्रायमरी अऊ जुन्ना लइका मन (11 ले 16 बछर उमर के) एक कोस दूरिहा जमुपसी स्कूल मं जाथें. किशोर बेहरा कहिथें, वो मन ला मंझनिया के घाम मं रेंगे अऊ सइकिल चलाय दूनोच थका देवेइय्या जइसने लागथे. ओकर भतीजी जेन ह महामारी के बाद ले 2022 मं कच्छा 5 मं रहिस अऊ कभू दूरिहा जाय नई रहिस, बीते हफ्ता घर आवत रद्दा मं अचेत हो गे रहिस. जमुपसी के अनजान लोगन मन फटफटी मं धरके घर लाय रहिन.
किशोर कहिथें, “हमर लइका मन करा मोबाइल फोन नई ये. न ही इस्कूल मं अपात हालत सेती दाई-ददा के फोन नंबर रखे के नियम हवय.”
जाजपुर जिला के सुकिंदा अऊ दानगदी ब्लाक के, दूर दराज इलाका के सैकड़ों दाई-ददा मन लंबा दूरिहा स्कूल आय जाय के खतरा ला ले के बात करिन: ये ह घन जंगल ले होवत धन भारी अवई-जवई वाले सड़क के संग, धन रेल पटरी पर करे, ठाढ़ डोंगरी के तरी रेंगत जाय, बरसात मं नंदिया-नरूवा ले भरे रद्दा, गांव के रेल पटरी मं जंगली कुकुर अऊ हाथी गोहड़ी देखे जाथे जेन मं खेत मं घूमत रहिथें.
एसएटीएच-ई के रिपोर्ट कहिथे के भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के मदद ले बंद होवेइय्या इस्कूल ले नवा इस्कूल मन के दूरी के पता लगाय के कोसिस करे गे रहिस. फेर जीआईएस के अधार ले करे नाप ह येकर असल हालत ला बताय नई सकय.
पुरणमंतीरा के पूर्व पंच गीता मलिक कहिथें, महतारी मन ला रेल अऊ दूरिहा ला छोड़ दूसर चिंता रहिथे. “हाल के बछर मं मऊसम के रूप अलगा देखे ला मिलिस. बरसात मं कभू कभू घाम निकरथे अऊ इस्कूल बंद होवत होवत तूफान आ जाथे. अइसने हालत मं तुमन एक लइका ला पढ़े सेती दूसर गाँव कइसने भेज सकत हवव?”
गीता की दू झिन बेटा हवंय, एक ह 11 बछर के जेन ह छठवीं मं, अऊ दूसर छे बछर के, जेन ह अभी अभी स्कूल जाय ला सुरु करे हवय. ओकर परिवार भगचासी (अधिया/ रेगा) न खेती करथे अऊ ओकर साध हवय के ओकर ल इका मन बढ़िया पढ़ेंय, बढ़िया कमायेंव अऊ खेती करे जमीन बिसोंय.
आमा रुख तरी संकलाय सब्बो लइका के दाई-ददा मन के कहना रहिस के जब वो मं के गांव के इस्कूल बंद होगे, त वो मन के ल इका मन इस्कूल जाय ला बंद करे दे रहिन धन सरलग नई जावत रहिन. कुछेक त महिना मं पाख भर नई गे रहिन.
पुरणमंतीरा मं जब ले इस्कूल बंद हो गीस, त 6 बछर ले कम उमर के लइका मन के आंगनबाड़ी केंद्र ला घलो इस्कूल अहाता ले दूसर जगा ले जाय गीस अऊ अब ये ह करीबन कोस भर दूरिहा मं हवय.
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कतको लोगन मन के सेती गांव के इस्कूल ह उन्नति के चिन्हा आय; कतको अगम अऊ मनोती के पुरन करेइय्या कुल देंवता आय.
माधव मलिक, रोजी मजूर आय, वो ह छठवीं तक ले पढ़े हवय. ओकर कहना हवय के 2014 मं पुरुणमंतिरा मं गाँव मं जब इस्कूल खुले रहिस त अइसने लगिस के ओकर बेटा, मनोज अऊ देबाशीष बर ये बछर ह सबले बढ़िया रहे के घोसना हो गे हवय, हमन अपन इस्कूल के बनेच चेत धरे रहें काबर ये ह हमर आस के चिन्हा रहिस.
इहाँ के बंद सरकारी प्रायमरी इस्कूल के कच्छा मन भारी साफ-सुथरा हवंय. दीवार ला सफेद अऊ नीला रंग ले पोते गे हवय अऊ उड़िया वर्णमाला, गिनती अऊ फोटू ला बतावत चार्ट भरे गे हवय. दीवार मं एक ठन करिया तख्ता बनाय गे हवय. इस्कूल नई लगे के बाद ले गांव के लोगन मन फैसला करिन के इस्कूल ह भगवान ला सुमिरन करे के सबले बढ़िया नीक जगा आय; एक ठन कच्छा ह अब कीर्तन (भक्ति गीत) करे सेती जुरे बर बन गे हवय. एक ठन देंवता के फ्रेम वाले फोटू के बगल मं दीवार के दूसर कोती पीतल के बरतन रखे गे हवय.
इस्कूल के रखरखाव करे के संगे संग, पुरणमंतीरा के बासिंदा मन अपन लइका मन के बढ़िया पढ़ई-लिखई मिले रहय, येकर बर चेत धरे हवंय. वो मन गांव के हरेक लइका मन सेती ट्यूशन क्लास के बेवस्था करे हवंय, जेन ला एक झिन मास्टर चलाथे, जेन ह आधा कोस दूरिहा ले सइकिल मं आथे. दीपक कहिथे, अक्सर बरसात मं, माई सड़क मं पानी भर जाय ले, वो धन कऊनो गांव के दीगर बासिंदा ट्यूशन मास्टर ला फटफटी मं बइठा के लाथे, जेकर ले ट्यूशन क्लास नागा नई परे. ट्यूशन क्लास वो मन के जुन्ना इस्कूल मं चलथे, ट्यूशन मास्टर ला हरेक परिवार महिना मं 250 ले 400 रूपिया महिना देथें.
दीपक कहिथें, “ट्यूशन क्लास मं करीबन सब्बो पढ़ई इहींचे होथे.”
बहिर, आगि धरे कस फूल ले लदाय परसा रुख के थोकन छाँव मं, बासिंदा मन गोठ-बात करत हवंय के इस्कूल बंद करे के मतलब का आय. जब बरसात मं ब्राह्मणी मं पुर आ जाथे त पुरणमंतिरा तक जाय मं भारी भारी जूझे ला परथे. इलाज के अपात हालत मं एम्बुलेंस नई आय सकय अऊ गांव कतको दिन बिन बिजली के रहिथे.
माधव कहिथे, “इस्कूल के बंद होय ह येकर आरो हवय के हमन पाछू जावत हवन, कतको जिनिस अऊ घलो खराब हालत मं हो जाही.”
ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी), एसएटीएच –ई प्रोजेक्ट मं केंद्र सरकार के जोड़ीदार, ह येला “मार्की एजुकेशन ट्रांसफॉर्मेशन प्रोग्राम ” कहे हवय जेन ह सीखे के बेहतर नतीजा ला बताथे.
फेर जाजपुर के ये दू ब्लाक अऊ ओडिशा मं दीगर जगा के गांव के दाई-ददा मन के कहना आय के इस्कूल बंद होय सेती पढ़े जाय ह अपन अपन मं चुनोती बन गे हवय.
साल 1954 मं गुंडुचीपसी गांव मं इस्कूल खुले रहिस. सुकिंदा ब्लॉक के, खराड़ी डोंगरी जंगल इलाका मं बसे ये गाँव मं सबर समाज के लोगन मन रहिथें, ये मन ला शाबर धन सवर के नांव ले घलो जाने जाथें अऊ राज मं अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के रूप मं सूचीबद्ध हवय.
वो मन के बंद होय के पहिली आठ कम दू कोरी लइका इहाँ के गांव के सरकारी प्रायमरी स्कूल मं पढ़त रहिन. एक बेर जब स्कूल फिर ले खुल गे, त लइका मन ला तीर के खराड़ी गांव रेंगत जाय ला परत रहिस. फेर जंगल डहर के रद्द सिरिफ एक किलोमीटर हवय. दूसर रद्दा, भीड़-भड़क्का वाले माई सड़क आय, जेन ह नान-नान लइका मन के सेती खतरा ला भरे आय.
अब जब हाजिरी कम हो गे हवय, दाई-ददा मन येकर बर सुरच्छा अऊ मध्याह्न भोजन नई मिले ला मानथें.
ओम देहुरी, दूसरी अऊ पहिली कच्छा के सुरजप्रकाश नाइक के कहना हवय के वो एके संग इस्कूल जाथें. वो मन प्लास्टिक के बाटल मं पानी भरके ले जाथें फेर खई धन खई सेती पइसा नई ये. तीसरी कच्छा के रानी बारीक़ के कहना हवय के वोला घंटा भर लगथे, फेर ये ह येकरे सेती आय काबर वो ह सुस्तावत जाथे अऊ अपन संगी-सहेली मं संग जाय वो मन ला अगोरत हवय.
रानी के दादी बकोटी बारीक़ कहिथे के वो ला समझ मं नई आवत हवय के 60 बछर जुन्ना इस्कूल ला बंद करे अऊ लइका मन ला जंगल के रद्दा परोस के गांव भेजे के काय मतलब आय. वो सवाल करत कहिथे, कुकुर अऊ सांप हवंय, कभू-कभू भलुआ - का तुम्हर सहर के दाई-ददा मन मानथें के ये ह इस्कूल जाय के सुरच्छित तरीका आय?”
सातवीं अऊ आठवीं के बड़े लइका मन ला अब नान लइका मं ला अपन संग लेगे अऊ संग मं लाय के जिम्मा दे गे हवय. कच्छा सातवीं के सुभाश्री बेहरा ला अपन दू झिन चचेरी बहिनी भूमिका अऊ ओम देहुरी ला काबू करे मं दिक्कत होथे. वो ह कहिथे, “वो मन हमेसा मोर बात नई सुनंय. गर वो मन भाग जाथें त हरेक के पाछु भागे असान नई होवय.
मामीना प्रधान के लइका – राजेश सातवीं मं अऊ लिजा पांचवीं कच्छा मं – नवा स्कूल मं जाथें. “लइका मन करीबन घंटा भर रेंगत जाथें, फेर हमर करा अऊ काय रद्दा हवय?” माटी अऊ पैरा ला बने खदर छानी वाले अपन घर के बहिर बइठे ये बनिहारिन कहिथे. वो अऊ ओकर घरवाला महंतो खेती के सीजन मं दूसर के खेत मं कमाथे अऊ बाकि बखत दीगर बूता-काम खोजत रहिथे.
लइका मन के दाई ददा के कहना हवय के वो मन के गुंडुचीपसी इस्कूल मं पढ़ई के स्तर ह भारी बढ़िया रहिस. 68 बछर के गांव के मुखिया गोलकचंद्र प्रधान कहिथें, “इहाँ हमर लइका मन के संग गुरूजी मन भेद करथें. (नवा इस्कूल मं), हमर लइका मन ला कच्छा मं सबले पाछू बइठारे जाथे.”
लकठा के सुकिंदा ब्लॉक संतरापुर गांव मं घलो, प्रायमरी स्कूल 2019 मं बंद हो गे. लइका मन अब जमुपसी इस्कूल ला आधा कोस रेंगत जाथें. एगारह बछर के सचिन मलिक ह एक ठन जंगली कुकुर ले बांचे के कोसिस मं तरिया मं गिर गे. “ये ह 20 21 के आखिर मं होय रहिस,” सचिन के भैय्या 21 बछर के सौरव कहिथें, जेन ह 3 कोस दूरिहा एक ठन लोहा कारखाना मं बूता करथे. वो ह कहिथे, “दू बड़े उमर के लइका मन वोला बूड़े ले बचा लीन, फेर तेन दिन वो ह अतक डेर्राय रहिस के दूसर दिन गाँव के कतको लइका इस्कूल नई गीन.”
जमुपसी इस्कूल मं मध्यान्ह भोजन रंधेइय्या बेवा लबन्या मलिक कहिथें के संतरापुर-जमुपसी रद्दा मं आवारा कुकुर मन बड़े लोगन मं के उपर घलो हमला करे हवंय. वो ह कहिथे, “ये 15-20 कुकुर मन के गोहड़ी हवय. एक बेर जब वो मन मोर पाछू पर गीन त मंय मुंह के भार गिर गेंय, मोर ऊपर कूद गीन. एक ठन ह मोर गोड़ ला हबक दीस.
संतरापुर के सात कम पांच कोरी (93) परिवार मं खास करके अनुसूचित जाति अऊ अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगन मन हवंय. गांव के प्रायमरी इस्कूल बंद होय बखत एक कोरी आठ लइका पढ़त रहिन. अब सिरिफ 8-10 झिन रोज के इस्कूल जाथें.
जमुपसी मं संतरापुर के गंगा मलिक कच्छा छठवीं के नोनी ह जंगल के रद्दा मं डबरी मं गिरे के बाद इस्कूल जाय ला बंद कर दीस. ओकर ददा, रोजी मजूर, सुशांत मलिक, ह तऊ न घटना ले सुरत करथें: “वो ह डबरी मं अपन मुंह धोवत रहिस अऊ फिसल गे. वो ह करीबन बूड़ गे रहिस फेर वो ला बचा लेय गीस. ओकर बाद ले वो ह बनेच बखत इस्कूल जाय मं नागा करे लगिस.”
असल मं, गंगा अपन आखिरी परिच्छा देय जाय के हिम्मत नई करे सकिस, फेर वो ह कहिथे, मोला वइसे घलो आगू के कच्छा सेती पास कर देय गे रहिस.”
रिपोर्टर ह एस्पायर-इंडिया के कर्मचारी मन ला वो मन के मदद सेती आभार जतावत हवय
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू