ये ह कऊनो जादू के खेल कस आय. डी. फ़ातिमा अपन दुकान के पाछू के जगा मं रखाय बक्सा ला खोल के वो मेर ले एक एके करके अपन खजाना निकारत जाथे. वो मं रखाय सब्बो मछरी कला के नमूना कस दिखथे –बड़े अकन भारी मछरी, जऊन ह कभू तूतुकुडी ले दूरिहन बीच समंदर मं तइरत रहे होही, फेर वो ला अब ये काबिल हाथ ह, नून अऊ भरी गहम मं सुखाके सुकसी बनाके राख ले हवय.

फातिमा एक ठन कट्ट पारई मीन (रानी मछरी) धरथे अऊ वो ला अपन चेहरा के नजीक लाथे. मछरी के लंबाई ओकर खुद के कद के आधा हवय अऊ ओकर गला ओकर ओकर हाथ के बरोबर चाकर हवय. मछरी के मुंह ले लेके पूंछी तक ले काटे जाय के चिन्हा हवय, जिहां वो ह नून भरे के पहिलीच एक ठन धार वाले चाक़ू ले चीर के ओकर पोटा अऊ दीगर जरूरी हिस्सा ला निकार दे हवय. नून ला भराय कट्ट पारई ला अतक भारी घाम मं सूखे सेती रखे गे हवय, जेन ह कऊनो जिनिस ला सूखा य के ताकत रखथे –चाहे वो ह मछरी होय, धरती होय धन चलत-फिरत मइनखे...

ओकर मुंह अऊ हाथ मं परे झुर्री मन सब्बो कहिनी खत हवंय. फेर वो ह अचानक ले दूसर कहिनी बताय ला सुरु कर देथे. ये ह कऊनो दीगर जुग के कहिनी आय – वो बखत के जब ओकर आची (डोकरी दाई) सुकसी बनाय अऊ बेंचे के बूता करत रहिस. वो शहर घलो दीगर रहिस अऊ वो रद्दा घलो दूसर रहिन. वो बखत सड़क ले लगे नहर ह कुछेक फीट चाकर होवत रहिस. तऊन नहर के ठीक बाजू मं ओकर जुन्ना घर रहिस. फेर 2004 मं आय सुनामी ह ओकर अऊ लकठा के दीगर घर मन के मटियामेट कर दीस. वइसने ओकर ले नवा घर देय के वादा करे गे रहिस, फेर ये ह मुस्किल रहिस. नवा घर “रोम्भ दूरम [बनेच दूरिहा”] रहिस. दूरिहा ला अंदाजा ले बतावत वो ह अपन मुड़ी ला एक डहर ओरमावत आरो करत अपन हाथ ला दूसर हाथ उपर उठाथे. बस ले वोला आय मं आधा घंटा लग गीस, अऊ मछरी बिसोत सेती वइसे घलो समंदर तीर मं आनाच रहिस.

नौ बछर बीते फातिमा अऊ ओकर बहिनी मन अपन जुन्ना जगा तेरेसपुरम लहूंट आय हवंय, जेन ह तूतुकुड़ी शहर के बहिर इलाका आय. ओकर घर अऊ दुकान दूनों तऊन नहर के बाजू मं हवंय जेन ला अब चाकर करे दे गे हवय, जउन मं पानी अब भारी धीर बोहाथे. ये माइलोगन मन के नून अऊ घाम मं सनाय जिनगी इहीच मं टिके हवय.

64 बछर के फातिमा बिहाव होय के पहिली अपन डोकरी दाई के संग मछरी के काम मं हाथ बंटावत रहिस. करीबन बीस बछर पहिली अपन घरवाला के गुजर जाय के बाद वो ह ये कारोबार मं फिर ले आ गीस.  फातिमा ला सुरता हवय, जब वो ह सिरिफ आठ बछर के उमर मं वो ह जाल ले पार मं उतारे गे मछरी के गादा मन ला देखत रहय. वो मछरी मन अतक ताजा रहंय के पानी ले निकारे जाय के बाद घलो जींयत रहेंव, बनेच बखत ले छटपटावत रहंय. करीबन 56 बछर बीते अब ओकर जगा “आइस मीन (मछरी)’ ले ले हवय. वो ह बताथे. अब डोंगा मन बरफ लाद के समंदर मं जाथें अऊ लहूंटत उही बरफ मं तोप के मछरी ला धर के पार मं आथें. बड़े मछरी मन के बिक्री लाखों रूपिया मं होथे. “वो बखत हमन आना अऊ पइसा मं कारोबार करत रहेन. सौ रूपिया बड़े रकम होवत रहिस, अब हजारों अऊ लाखों मं ये कारोबार होथें.”

Fathima and her sisters outside their shop
PHOTO • Tehsin Pala

फातिमा अऊ ओकर बहिनी मन अपन दुकान के बहिर मं

Fathima inspecting her wares
PHOTO • M. Palani Kumar

फातिमा अपन जिनिस के जाँच करत हवय

ओकर डोकरी दाई के जमाना मं माई लोगन मन कहूँ घलो बेरोक टोक आवत जावत रहिन. वो मन के मुड़ मं ताड़ पाना के बने टोकरी मन सुसकी मछरी ला भरे रहेंव. “वो मन सुभीता ले 3 कोस (10 किमी) रेंगत पट्टिकाडु (छोटे बस्ती मन मं) अपन माल ला बेंचत रहेंव.” अब गिलट के बरतन मं अपन सुसकी मछरी ला रखे हवंय अऊ वो ला बेंचे सेती बस मं आवत-जावत हवंय. अब वो मन लकठा के गाँव के संग परोस के ब्लाक अऊ जिला तक ले चले जाथें.

“कोरोना के पहिली हमन तिरुनेलवेली रोड अऊ तिरुचेंदुर रोड के गाँव तक ले जावत रहेन,” पारी ह अगस्त 2022 मं जब फातिमा ले भेंट करे रहिस, तब वो ह अपन हाथ ले हवा मं एक ठन नक्सा बनावट हमन ला समझाय के कोसिस करे रहिस. “अब हमन सोमबार के दिन सिरिफ एराल शहर के संतई [हफ्ता मं लगेइय्या बजार} तकेच जाथन.” वो ह अपन अवई-जवई के हिसाब करत बताथे: बस टेसन तक ले ऑटो ले आय जाय के भाड़ा अऊ बस मं टुकना संग जाय के टिकट दू सौ रूपिया. “ओकर बाद बजार मं पसरा लगाय सेती मोला पांच सौ रूपिया अलग ले देय ला परथे. हमन भारी घाम मं [ अकास तरी] मं बइठथन. येकर बाद घलो ये जियादा महंगा नई परे,” काबर वो ह हफ्ता बजार मं पांच ले सात हजार के सुकसी मछरी बेंच लेथे.

फेर चार ठन सोमबार ले महिना नई होवय. फातिमा ला ये कारोबार के मुस्किल अऊ बारीकी मन ला बने करके जानथे. “बीस पच्चीस बछर पहिली तक ले मछुवार मन ला तूतूकड़ी ले समंदर मं जियादा दूरिहा जाय ला नई परत रहिस. वो मन ला लकठाच मं बनेच अकन मछरी मिल जावत रहिस. फेर अब त वो मन ला समंदर मं दूरिहा जाय ला परथे, अऊ उहाँ घलो बनेच अकन मछरी नई मिलय.”

अपन तजुरबा ले मछरी मन मं आय कमी ला बताय मं फातिमा ला मिनट भर ले घलो जियादा नई लगय. “वो बखत लोगन मन मछरी धरे सेती रतिहा मं निकरत रहिन अऊ दूसर दिन संझा तक ले लहूंट आवत रहिन. अब मछुवारा मन एक बेर 15-20 दिन के सेती निकरथें अऊ कन्याकुमारी ला पर करत सीलोन अऊ अंडमान तक ले चले जाथें.”

ये एक ठन बड़े इलाका आय, जिहां कतको समस्या के कऊनो कमी नई ये. तूतुकुड़ी मं मछरी के भंडार दिनोंदिन कमतियात जावत हवय, अऊ फातिमा धन ककरो घलो के बस मं नई ये.उल्टा वो मन के जिनगी ये समस्या के चपेट मं हवय अऊ संगे संग वो मन के जीविका घलो.

फातिमा जेकर बारे मं गोठियावत हवय ओकर ओकरनांव ओवरफिशिंग आय मतलब बहुते अकन मछरी मारे ले आय. ये ह अतक अमान्य सवाल आय के तुमन एक बेर गूगल मं खोजव, अऊ सेकंड भर ले कमती बखत मं तुमन ला करीबन 1.8 करोड़ जुवाब मिल जाही. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य अऊ कृषि संगठन (एफएओ) के रपट के मुताबिक, “दुनिया मं साल 2019 मं समुद्री खाय के जिनिस ले 17 फीसदी पशु प्रोटीन अऊ     7 फीसदी सब्बो प्रोटीन रहिस.” अमेरिकन कैच एंड फोर फिश के लेखक पॉल ग्रीनबर्ग कहिथें, मतलब, हरेक बछर, हमन समंदर ले 80 ले 90 मीट्रिक टन जंगली समुद्री भोजन निकारथन. ये आंकड़ा चिंता मं डार देथे के काबर के ग्रीनबर्ग के कहना आय के “ये ह चीन के जम्मो अबादी के वजन बरोबर आय.”

फेर इहाँ एक बात धियान देय के आय सब्बो मछरी ताजा-ताजा नई खाय जावय. दीगर गोस अऊ साग भाजी जइसने, येला अवेइय्या बखत बऊरे सेती बंचा के रखे जाथे. अऊ येकर बर वो मं नून डारके वोला घाम मं सुखाय के जुन्ना तरीका अपनाय जाथे.

Left: Boats docked near the Therespuram harbour.
PHOTO • M. Palani Kumar
Right: Nethili meen (anchovies) drying in the sun
PHOTO • M. Palani Kumar

डेरी: तेरेसपुरम बंदरगाह मं ठाढ़े कतको डोंगा .जउनि: घाम मं सूखे सेती रखाय नेतिलीमीन (एन्कोवीज़ मछरी)

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हमन चिरई-चिरगुन के होद्दा ला भगाय दऊड़त हवन
जऊन मन शार्क के गोस के लालच मं आथें
जेन ला हमन घाम मं सूखे सेती बगराय हवन.
तुम्हर गुन के हमन काय करबो?
हमर ले मछरी के आते बास ! चले जावव इहाँ ले !

नट्रीनई 45 , नेतल तिनई (समुद्र तटीय गीत)

कवि अज्ञात. हिरोइन के सहेली हीरो ले कहत हवय.

ये कालजयी बेजोड़ पांत 2,000 बछर जुन्ना तमिल संगम साहित्य के एक ठन हिस्सा आय. ये गीत मं समंदर तीर मं नून लदाय गाड़ी मं जावत बेपारी मन के कतको किस्सा देखे जा सकथे. काय नून मिलाके भारी घाम मं खाय के जिनिस मन ला सुखाय के अइसने कऊनो दीगर उदाहरन कऊनो जगा मं देखे ला मिलथे?

“हव मिलथे.” खाद्य मामला के खास जानकार डॉ. कृष्णेंदु राय कहिथें,बहिर के खास करके समुद्री साम्राज्य  के लोगन मन के मछरी धरे के काम अलग किसम ले रहिस. येकर एक ठन कारन डोंगा बनाय के कारीगरी अऊ वो मं लगेइय्या मिहनत रहिस, ये बूता मं कारीगरी खास करके मछुआरा समाज ला आय रहिस जइसने के हमन बाद के कतको बछर मं वाइकिंग, जेनोइज़, वेनिशियन, पुर्तगीज़ अऊ स्पेनिश मामला मं देखे गे रहिस.

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. राय बताथें, “पहिली कीमती प्रोटीन ला बरफ मं रखे के तरीका ले जियादा नून लगा के हवा मं सुखाय, आगि मं धुमियाय अऊ खमीर बनाय ज इसने तरीका बऊरे जावत रहिस. जेकर ले बनेच दूरिहा तक जहाज मं जाय के बाद घलो मछरी खराब झन होवय. बनेच दूरिहा ले अवेइय्या जहाज मं ये तरीका अपनावत रहिन काबर दूरिहा जाय मं बनेच बखत लगय. येकरे सेती भूमध्यसागर के तीर के इलाका मं गरुम [खमीर वाले  मछरी के सॉस] भारी चलन मं रहिस. फेर रोमन राज के पतन के बाद ले ये ह घलो नंदा गे.”

जइसने के एफओ के एक ठन दूसर रपट मं कहे गे हवय, “तमिलनाडु मं मछरी ला अइसने रखे आम बात आय. अक्सर ये मं खराबी करेइय्या बैक्टीरिया अऊ एंजाइम ला खतम करेइय्या अऊ अइसने स्थिति बना देथें जेकर ले रोगानु के बढ़े अऊ बगरे के उलट हालत बनाथे.”

Salted and sun dried fish
PHOTO • M. Palani Kumar

मछरी ला नून लगाके सूखे खातिर घाम मं बगराय गे हवय

Karuvadu stored in containers in Fathima's shop
PHOTO • M. Palani Kumar

फातिमा के दुकान मं कंटेनर मं रखाय करुवाडु

एफओ के रपट मं बत्ती गे हवय, “नून मिलाके घाम मं सुखाके मछरी ला रखे (सुकसी बना के) ह सस्ता तरीका आय. मछरी मं नून मिलाय के दू ठन समान्य विधि हवय - ड्राई साल्टिंग, जेन मं मछरी मं सीधा नून लगाय जाथे, अऊ दूसर ब्राइनिंग, जेन मं नून पानी के घोर मं मछरी ला महीनों तक ले डूबो के रखे जाथे.”

लंबा अऊ सुनहरा इतिहास अऊ प्रोटीन के सस्ता अऊ सुभीता जरिया होय के बाद घलो करुवाडु ला लोकप्रिय संस्कृति (तमिल सिनेमा) मं खिल्ली उड़ाय जाथे. फेर स्वाद के परंपरा मं येकर जगा कहाँ हवय? येकर जुवाब ककरो तीर नई ये.

डॉ. राय कहिथें,  “अइसने सोच के पाछू कतको कारन हवय. जिहां घलो कऊनो रूप मं बाम्हनवाद के संगे संग इलाका के वर्चस्व के रूप मं जरी धरे हवय, उहाँ खास करके पानी अऊ खास करके नुनछुर पानी ऊपर आसरित जिनगी अऊ जीविका ले जुरे संदेहा अऊ घिन देखे जा सकथे ...काबर के इलाका अऊ पेशा के थोर बहुत नाता जात ले घलो रहिस, येकरे सेती मछरी धरे के बूता ला हीन माने गीस.”

डॉ. राय कहिथें, “मछरी अइसने जीव आय जेन ला हमन बनेच धरथन अऊ बनेच खाथन. येकर भारी मान धन भारी घिन दूनों हो सकथे. संस्कृतनिष्ठ भारत के कतको हिस्सा मं अनाज उपजाय ला आर्थिक अऊ सांस्कृतिक रूप ले जियादा भाव दे जावत रहिस, क्षेत्रीयता, घर-परिवार के जिनगी अऊ खेती करे के जमीन, मन्दिर अऊ पानी ले जुरे बुनियादी सुविधा होय के बाद घलो, मछरी मारे के कारोबार ला धियान नई दे गीस.”

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घाम के बीच मं थोकन छाँव के जगा मं सहायपुरणी एक ठन पूमीन [मिल्क मछरी] ला निमारत हवय. सर्र ... सर्र...सर्र अपन धारवाले चाकू ले वो ह  तेरेसपुरम ऑक्शन सेंटर मं तीन सौ मं बिसोय तीन किलो के मछरी के सेहरा ला निमारत हवय. वो ह जिहां बइठ के बूता करते वो जगा फातिमा के दुकान के ठीक नहर के वो पार हवय. नहर मं पानी कम अऊ चिखला जियादा हवय, येकरे सेती पानी के रंग मटमैला दिखथे. मछरी के सेहरा येती वोती बगरे परे हवय. कुछेक सेहरा पूमीन मछली के तीर मं गिरत हवय अऊ कुछु चमकत दू फीट दूरिहा मोर करा आके छटके गिरथे. मोर कपड़ा मं चिपके सेहरा ला देख के वो ह हंसथे. थोकन घड़ी के ओकर मयारु हँसी मं हमन घलो सामिल हो जाथन. सहायपुरणी अपन काम करत चलत हवय. वो ह दू बेर भारी सफाई ले चाकू चलाथे अऊ मछरी के दूनो पांख अलग हो जाथे. ओकर बाद वो ह मछरी केघेंच ला काटथे अऊ आरी ले मुड़ी ला अलग कर देथे. तड़...तड़...तड़ – छे बेर – अऊ मछरी के धड़ अऊ मुड़ी एक दूसर ले अलग हो जाथे.

ओकर पाछू बंधाय धंउरा कुकुर सब्बो देखत हवय. घाम के सेती ओकत जीभ बहिर निकरे हवय. सहायपुरणी ओकर बाद पोटा मन ला हेरथे अऊ भीतरी के हिस्सा ला बढ़िया करके निमारथे. ओकर बाद वो ह चाकू ले मछरी के देह मं नान नान पात्र चीरा लगाथें. एक हाथ ले मुठ्ठा भर नून धरते अऊ मछरी के बहिर अऊ भीतरी मं बढ़िया करके रगड़थे. नून के उज्जर अऊ बारीक़ दाना चीरे गे हिस्सा मं भरे जाथे अऊ अइसने करके मछरी ह सुखाय सेती तियार हो जाथे. वो ह अपन आरी अऊ चाकू ला मांज के अपन हाथ ला धोथे अऊ कपड़ा ले पोंछ लेथे. “आवव,” वो कहिथे अऊ हमन ओकर पाछू पाछू ओकर घर तक हबर जाथन.

Sahayapurani scrapes off the scales of Poomeen karuvadu as her neighbour's dog watches on
PHOTO • M. Palani Kumar

सहायपुरणी पूमीन करुवाडु के सेहरा ला निमारत हवंय अऊ ओकर परोसी कुकुर वोला देखत हवय

Sahayapurani rubs salt into the poomeen 's soft pink flesh
PHOTO • M. Palani Kumar

हायपुरणी पूमीन के कोंवर अऊ गुलाबी मांस मं नून रगड़त हवय

तमिलनाडु के समुद्री मत्स्य जनगणना 2016 के मुताबिक राज मं मछरी के कारोबार मं 2. 62 लाख माइलोगन अऊ 2.74 लाख मरद लोगन मन सामिल हवय. ये जनगणना ये बात ला घलो बताथे के 91 फीसदी समुद्री मछुवारा परिवार गरीबी रेखा (बीपीएल) के तरी मं आथें.

घाम ले दूरिहा बइठे के बाद मंय सहायपुरणी ले पूछेंव के वो ह एक दिन मं कतक कमा लेथे. “ये ह आंड वर [यीशु] के भरोसा ऊपर हवय. हम सब्बो ओकर रहमो करम ले जींयत हवन.” हमर गोठ-बात मं यीशु के जिकर घेरी-बेरी होवत रहिथे. “गर ओकर किरिपा ले हमर सब्बो सुकसी बेंचा जाय, त हमन साढ़े दस बजे बिहनिया तक घर लहूँट जाबो.”

ओकर मौन सहमति ओकर काम करे के जगा मं घलो वइसने बने रहिथे. मछरी ला सुखाय के सेती वोला जऊन जगा दे गे हवय वो ह नहर के बगल मं हवय. ये जगा ला कऊनो नजर ले उचित नई कहे जाय सकय. फेर ओकर तीर अऊ कायच उपाय हवय? इहाँ वो ह सिरिफ भारी घाम लेच ले नई, बेबखत होवेइय्या बरसात ले घलो हलकान रइथे.“ हालेच के बात आय, नून मेंझारे के बाद मछरी ला सूखाय सेती घाम मं रखे रहेंव अऊ थोकं सुस्ताय बर घर हबरेच रहेंव... अचानक एक झिन मइनखे भगत आइस अऊ वो ह बताइस के पानी बरसत हवय. मंय तुरते भागेंव, फेर आधा मछरी भींग गे रहिस. नान मछरी ला बचाय नई सकाय, वो खराब हो जाथे.”

67 बछर के सहायपुरणी ह सुकसी बनाय के काम अपन चिति – मतलब मौसी ले सीखे रहिस. फेर वो ह बताथे के मछरी के कारोबार बढ़े के बाद घलो सुकसी मछरी के लेवाली गिरे हवय. “येकर कारन आय के जऊन मन मछरी खाय ला चाहथें वो मन आराम ले ताजा मछरी बिसोय सकथें. कतको बखत वो ह सस्ता घलो मिल जाथे. येकर छोड़, रोज रोज एकेच चीज नई खवाय. काय चाही? गर हफ्ता मं दू दिन मछरी खाहीं , त एक दिन बिरयानी खाहीं, दूसर दिन सांभर, रसम, सोया बिरयानी अऊ अइसने दीगर जिनिस मन घलो...”

असल कारन डाक्टर मन के सलाह घलो हवय. “करुवाडु झन खावव, ये मं बहुते जियादा नून होथे. डाक्टर मन कहिथें येकर ले ब्लडप्रेशर बढ़थे. येकरे सेती लोगन मन परहेज करे ला धरे हवंय.” जब वो ह डाक्टर मन के सलाह अऊ कारोबार मं गिरती के बात करत जाथे त संगे संग अपन माथा ला घलो हलावत डुलावत रहिथे. अपन तरी के ओंठ ला बेपार के अचिंता नई होय ला बताय बर एक ठन खास ढंग ले वो ला घेरी बेरी बहिर निकारत हवय. ओकर चेहरा मं लइका मन कस बात झलकथे, जऊन मं निरासा अऊ बेबस दूनो के भाव मिलेजुले हवय.

जब करुवाडु बन जाथे, तब वो ह वोला अपन घर के दूसर खोली मं रखथे. ये खोली ला बेपार के काम सेतीच बऊरे जाथे. वो ह कहिथे, ”बड़े मछरी कतको महिना तक ले सुरच्छित रइथे.” वोला अपन हुनर ऊपर भरोसा हवय. जेन तरीका ले वो ह मछरी के भीतरी जगा के सफई करके वो मं नून भरथे, ओकर ले ओकर जियादा दिन तक ले टिके रहे ह करीबन तय हो जाथे. ग्राहेक येला कतको हफ्ता तक ले राख सकथें. गर ये मं थोकन हल्दी अऊ नून लगा के कागज मं लपेट दे जाय, अऊ डब्बा मं बंद कर दे जाय त ये मछरी ला फ्रिज मं लंबा बखत तक ले रखे जा सकथे.”

Sahayapurani transferring fishes from her morning lot into a box. The salt and ice inside will help cure it
PHOTO • M. Palani Kumar

सहायपुरणी बिहनिया के खेप के मछरी ला एक ठन बक्सा मं राखत. बक्सा मं रखे नून अऊ बरफ ये मछरी ला खराब नई होय देय

ओकर दाई के जमाना मं करुवाडु बनेच खाय जावत रहिस. सुकसी ला तल के वोला बाजरा के दलिया संग खाय जावत रहिस.“एक ठन बड़े कड़ाही मं मूनगा के कुछु टुकड़ा, कटाय कुछु भटा अऊ मछरी ला मिला के झोर बनाय जावत रहिस अऊ वोला दलिया मं सान के खाय जावत रहिस. फेर अब हरेक जिनिस ‘बने बनाय’ मिलथे,” वो ह हंसत कहिथे, “है ना? अब त बजार मं भात घलो ‘तियार’ मिलथे, अऊ लोगन मं ओकर संग अलग ले  वेजिटेबल कूटु [दार मं रांधे साग ] अऊ तले अंडा खाथें. करीबन 50 बछर पहिली मंय वेजिटेबल कूटु के नांव घलो नई सुने रहेंव.”

अक्सर सहायपुरणी रोज बिहनिया 4.30 बजे घर ले निकर जाथे अऊ 1 कोस (15 किमी) के दायरा मं अवेइय्या लकठा के गाँव मं बस ले जाथे. “गुलाबी बस मं आय जाय सेती हमन ला पइसा नई दे ला परय,” माइलोगन मन के सेती बस मं मुफत आय जाय के तमिलनाडु सरकार के योजना ला बतावत वो ह कहिथे, जेकर घोसना मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ह 2021 मं करे रहिस.“फेर अपन टुकना के भाड़ा देय ला परथे. ये ह 10 रूपिया घलो हो सकथे धन 24 रूपिया घलो.” कतको बेर वो ह कंडक्टर ला दस के नोट धरा देथे. “तब वो ह थोकन इज्जत के बेवहार करथे,” वो ह कहत हंस परथे.

अपन ठिकाना तक हबरे के बाद सहायपुरणी ला गाँव मं किंदर-किंदर के मछरी बेंचे ला परथे. ये ह मुस्किल अऊ थका देय के बूता आय, वो ह बताथे. ये धंधा मं एक-दूसर ले आगू बढ़े ला घलो हवय. “जब हमन ताजा मछरी बेचत रहेन तब हालत अऊ जियादा खराब रहिस. मरद लोगन मन अपन टुकना दुपहिया गाड़ी मं लेके आवत रहिन, अऊ जब तक ले हमन एक दू घर मं जावत रहें, तब तक ले वो मन दस घर किंदर ले रहंय. गाड़ी सेती वो मन ला जियादा मिहनत नई लगत रहिस. दुसर डहर, हमन रेंगत न सिरिफ थक जावन, कमई घलो ओकर मन ले कमती रहय.” येकरे सेती वो ह करुवाडु बेंचे के काम नई छोड़ीस.

अलग-अलग सीजन मं सुकसी मछरी के मांग घलो अलग-अलग होथे. सहायपुरणी  कहिथे, “गांव मन मं जब तिहार मनाय जाथे, तब लोगन मन कतको दिन धन हफ्ता हफ्ता तक ले मांस मछरी नई खावंय. काबर ये परंपरा ला कतको लोगन मन मानथें , त येकर असर हमर कारोबार मं परे सुभाविक आय.”  वो ह कहिथे, “वइसे ये नवा चलन आय. पांच बछर पहिली अतक जियादा लोगन मन मानत-गुनत नई रहिन.” तिहार मं अऊ तिहार के बाद जब परिवार के लोगन मन एके संग खाय बकरा के बलि देय जाथे, तब लोगन मन नाता रिस्ता के लोगन मन ला खवाय सेती बनेच अकन सुकसी मछरी के ऑर्डर देथें. ओकर 36 बछर के बेटी नैंसी बताथे, “कतको बेर त वो मन एक किलो मछरी घलो बिसोथें.”

बने कारोबार नई होय के महिना मं ओकर परिवार ला करजा लेगे ला परथे. नैंसी, जेन ह एक समाजिक कार्यकर्ता आय , कहिथें, “दस पइसा बियाज, रोज के बियाज, हफ्ता के बियाज, महिना के बियाज. बरसात अऊ मछरी धरे मं रोक के महिना मं हमन ला अईसने गुजरा करे ला परथे. कतको त महाजन के इहाँ धन बैंक मं अपन जेब्र गिरवी रखे ला पर जाथे. फेर हमन ला करजा लेगेच ला परथे.” ओकर दाई ओकर छोड़े बात ला आगू बढ़ाथे, “ रासन बिसोय सेती.”

Left: A portrait of Sahayapurani.
PHOTO • M. Palani Kumar
Right: Sahayapurani and her daughters talk to PARI about the Karuvadu trade
PHOTO • M. Palani Kumar

डेरी: सहायपुरणी की एक ठन फोटू. जउनि : पारी ले करुवाडु के बारे मं गोठियावत सहायपुरणी अऊ ओकर बेटी

करुवाडु के कारोबार मं लगेइय्या मिहनत अऊ ओकर ले होय लाभ एक बरोबर नो हे. वो बिहनिया सहायपुरणी ह नीलामी मं जतक मछरी [ सालई मीन धन सार्डिन ले भरे टुकना] 1,300 रूपिया मं बिसोय रहिस ओकर ले वोला 500 रूपिया के नफा होही. ये नफा के बदले मं वोला मछरी निमारे, नून मिलय अऊ सूखाय मं वोला दू दिन मिहनत करे ला परही. ओकर बाद वोला बस मं लाद के दू दिन तक ले बेंचे ला परही. ये हिसाब ले ओकर रोज के कमई 125 रूपिया होथे. हय कि नई? मंय ओकर ले जाने ला चाहत हवंव.

वो ह राजी मं अपन मुड़ी हलाथे. ये बखत ओकर चेहरा मं कऊनो हँसी नई ये.

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तेरेसपुरम मं करुवाडु के कारोबार के अर्थशास्त्र अऊ ओकर ले जुरे मानव संसाधन के नजारा अचिंता के हालत मं नई ये. हमर करा तमिलनाडु समुद्री मत्स्य जनगणना के कुछु आंकड़ा हवय. तूतिकोरिन जिला मं मछरी ला निमारे अऊ सुकसी बनाय के काम मं लगे कुल 465 मइनखे मन ले 79 लोगन मन तेरेसपुरम मं ये काम करथें. जम्मो राज के मछुवारा मन के सिरिफ 9 फीसदी अबादीच ये कारोबार मं हवय. जऊन मं माईलोगन के  संख्या अचमित ले भरे तरीका ले 87 फीसदी हवय. एफएओ रपट के मुताबिक ये ह दुनिया के आंकड़ा के तुलना मं बनेच जियादा हवय. “दुनिया मं छोटे पैमाना मं मछरी पालन मं जतक मिहनत लागथे, ओकर करीबन आधा हिस्सा ह माईलोगन मन के हाथ के भरोसा मं हवय.”

ये कारोबार मं नफा-नुकसान के हिसाब किताब करे कठिन काम आय. एक ठन बड़े पांच किलो वजन के मछरी जेन ह हजार रूपिया मं बिके ला चाही, वो ह थोकन अइलाय जाय ले सिरिफ चार सौ रूपिया मं मिल जाथे. माईलोगन मन ये मछरी ला ‘गुलुगुलु’ कहिथें, थोकन ऊँगली ले दबाय ले जेन ह दब जाथे. ताजा मछरी के लेवाल मन के छांटे के बाद करुवाडु बनेइय्या ये माईलोगन सेती ये ह नफा के सौदा आय. येला बनाय मं घलो कमती बखत लागथे.

फातिमा के बड़े मछरी जेन ह पांच किलो के आय, घंटा भर मं बन जाथे. अतकेच वजन के बरोबर नान नान मछरी मं येकर दुगुना बखत लागथे. नून के जरूरत घलो मं कमी बेसी हो जाथे. बड़े मछरी ला अपन वजन ले आधा नून के जरूरत परथे, फेर नान अऊ ताजा मछरी ला अपन वजन के आठ हिस्सा बरोबर नून के जरूरत परथे.

Scenes from Therespuram auction centre on a busy morning. Buyers and sellers crowd around the fish and each lot goes to the highest bidder
PHOTO • M. Palani Kumar
Scenes from Therespuram auction centre on a busy morning. Buyers and sellers crowd around the fish and each lot goes to the highest bidder
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तेरेसपुरम ऑक्शन सेंटर मं रेलमपेल वाले बिहनिया के नजारा. मछरी के खेप के चरों डहर बेचेइय्या अऊ लेवाल मन के भीड़ लगे हवय फेर खेप तऊन ला मिलथे जेन ह जियादा के बोली लगाथे

A woman vendor carrying fishes at the Therespuram auction centre on a busy morning. Right: At the main fishing Harbour in Tuticorin, the catch is brought l ate in the night. It is noisy and chaotic to an outsider, but organised and systematic to the regular buyers and sellers
PHOTO • M. Palani Kumar
A woman vendor carrying fishes at the Therespuram auction centre on a busy morning. Right: At the main fishing Harbour in Tuticorin, the catch is brought l ate in the night. It is noisy and chaotic to an outsider, but organised and systematic to the regular buyers and sellers
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तेरेसपुरम ऑक्शन सेंटर मं रेलमपेल वाले बिहनिया के बखत मछरी के खेप के संग एक झिन कोचनिन. जउनि : तूतिकोरिन के माई बंदरगाह मं मछरी के खेप बनेच रतिहा मं उतरथे. इहाँ बहिर ले आय लोगन मन के सेती इहाँ के माहौल ह हल्लागुल्ला वाले लाग सकथे, फेर रोज के लेवाल मन बर ये सब्बो समान्य बात आय

सुकसी बनेइय्या मन नून सीधा उप्पलम धन नून के खेत ले बिसोथें. येकर मात्रा येकर उपर रहिथे के लेवाल के इहाँ नून के खपत कतक हवय. नून के एक खेप के दाम ओकर मात्र के हिसाब से 1,000 रूपिया ले 3,000 रूपिया होथे. नून के बोरी ला रिक्शा धन कुट्टियानई’ (छोटा हाथी) मं मंगाय जाथे. असल मं ये ह नान कन टेम्पो ट्रक आय. नून ला घर के तीर नीला प्लास्टिक केलंबा ड्रम मं भरके रखे जाथे.

फातिमा बताथे के करुवाडु बनाय के तरीका ओकर डोकरी दाई के जमाना ले बदले नई ये. मछरी मं चीरा लगाय जाथे, वोला निमारे जाथे, ओकर सेहरा निकारे जाथे. ओकर बाद वो मं नून लगाके वोला भारी घाम मं सुखाय जाथे. वो ह भारी माहिर ढंग ले अपन बूता करथे. ये बात ला बतावत वो ह मोला मछरी ले भरे टुकना मं ला दिखाथे. एक ठन टुकना मं कटाय सुसकी करुवाडु हवय जेन ला हल्दी ले सने गे हवय. एक किलो करुवाडु 150 ले 200 रूपिया के भाव ले बेंचे जाही. कपड़ा के एक ठन गठरी मं ऊलि मीन (बाराकुडा) अऊ ओकर तरी प्लास्टिक के बाल्टी मं सूखाय सालई करुवाडु ( सूखाय सार्डिन) हवय. बाजू के दुकान ओकर बहिनी फ्रेडरिक ऊंच अवाज मं कहिथे, “गर हमर काम ‘ नाक्रे मूक्रे ( बिन सफई के गन्दा) होही, त हमर मछरी कऊन बिसोही? बनेच अकन लोगन मन, इहाँ तक ले पुलिस वाला मं घलो हमर ग्राहेक आंय. अपन करुवाडु सेती हमन अपन नांव बनाय हवय.”

ये बहिनी मन कतको घाव अऊ दरद ला घलो कमती झेले नई यें. फ्रेडरिक मोला अपन हथेली ला दिखाथे. ओकर हथेली मं चाकू ले कटे के कतको छोटे-बड़े चिन्हा हवंय. हरेक चिन्हा ओकर बीते बात ला बतावत हवय. ये चिन्हा ओकर हथेली के तऊन लकीर ले अलग आय जेन ह ओकर अगम ला बताथे.

“मछरी लाय के काम मोर बहिन दमान के आय. हमन चरों बहिनी वोला सुखाथन अऊ बेंचथन.” अपन पसरा के भीतरी छेंइय्या मं बइठे के बाद फातिमा बताथे. “ओकर चार बेर आपरेसन हो चुके हवय, वो अब समंदर मं नई जावय. येकरे सेती तेरेसपुरम ऑक्शन सेंटर धन तूतुकुड़ी के माई बंदरगाह ले हजारों रूपिया के मछरी के खेप उहिच बिसो के लाथे. वो जतक किलो अऊ दाम मं मछरी ला लाथे, वोला एक ठन कार्ड मं लिख लेथे. मंय अऊ मोर बहिनी ओकरेच ले मछरी बिसोथन अऊ बदला मं हमन ओकर दलाली चुकता कर देथन. हमन उहिच मछरी ले करुवाडु बनाथन.” फातिमा अपन बहिन दमान ला “मापिल्लई” कहिके बलाथे, जेन ह अक्सर दमान ला कहे जाथे. अऊ अपन छोटे बहिनी मन ला वो ह “पोन्नू” कहिथें. अक्सर नान नोनी मं ला इहीच कहिके बलाय जाथे.

ओकर मन के सब्बो के उमर 60 बछर ले जियादा हवय.

Left: All the different tools owned by Fathima
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Right: Fathima cleaning the fish before drying them
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डेरी: कारोबार मं काम अवेइय्या फातिमा के अऊजार. जउनि; मछरी ला सुखाय के पहिली फातिमा वोला निमारत हवय

Right: Fathima cleaning the fish before drying them
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Right: Dry fish is cut and coated with turmeric to preserve it further
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डेरी: नीला रंग के बड़े प्लास्टिक ड्रम मं रखाय नून. जउनि: सुकसी मछरी ला जियादा दिन तक ले रखे सेती वो मं चीरा लगा के हल्दी पाउडर ले सान देय जाथे

फ्रेडरिक अपन नांव ला तमिल मं बोले के बऊरथे- पेट्री. अपन घरवाला के गुजर जाय के बाद वो ह अकेल्लेच बीते 37 बछर ले काम करत हवंय. अपन घरवाला जॉन जेवियर ला घलो वो ह मापिल्लई कहिके बलाथे. वो ह बताथें, “बरसात के महिना मं हमन मछरी नई सुखाय सकन. अइसने मं हमर गुजारा घलो मुस्किल ले चलथे, अऊ मजबूर होक ऊंच बियाज मं करजा लेगे ला परथे – महिना मं रुपिया पाछू 5 ले 10 पइसा के कंतर मं.” अइसने करके बछर भर मं वोला 60 ले 120 फीसदी बियाज चुकता करे ला परथे.

धीर ले बोहावत नहर तीर के अपन काम चलाऊ पसरा के बहिर बइठे फातिमा कहिथें के वोला एक ठन नवा आइसबॉक्स के जरूरत हवय. “मोला एक ठन बड़े आइसबॉक्स [बरफ के खोखा] चाही, जेकर ढक्कन मजबूत होय, जेकर ले मंय बरसात मं अपन ताजा मछरी ला राख के बेंचे सकंव. हमन हमेसा अपन जान पहिचान के लोगन ले उधार त नई लेगे लेगे सकन, काबर सब्बो के बेपार नुकसान मं हवय. काकर करा अतका पइसा हवय? कतको बखत त एक पाकिट गोरस बिसोय घलो मुस्किल हो जाथे.”

सुकसी बेंचे ले जेन आमदनी होथे वो ह घर के खरचा, खाय पिये अऊ इलाज मं खरचा हो जाथे. खरचा के आखिरी बात ला बतावत ओकर अवाज थोकन जियादा ऊंच लागथे – “प्रेसर अऊ सुगर के गोली.” जेन महिना मं मछरी धरे जाय डोंगा मन मं रोक लगे होथे, वो मन ला रासन पानी सेती करजा लेगे ला परथे. “अप्रैल अऊ मई के बखत मछरी अंडा देथें. येकरे सेती मरे मं रोक लगे रइथे. अऊ बरसात के महिना मं- अक्टूबर ले जनवरी तक – नून मिलाय अऊ सुखाय मं दिक्कत होथे. हमर आमदनी अतक नई ये के हमन बचाय सकन धन बिपत बखत सेती बचाय सकन.”

फ्रेडरिक ला बेस्वास हवय के एक ठन नवा आइसबॉक्स, जेकर दाम करीबन 4,500 रूपिया आय, अऊ लोहा के एक ठन तराजू अऊ गिलट के बक्सा ओकर जिनगी बदल दिही. वो ह कहिथे, “ये मंय सिरिफ अपन बर नई, फेर सब्बो के सेती चाहत हवंव. गर हमन ला ये सब्बो मिला जाही, त हमन बाकि जिनिस मन ला संभाल लेबो.”

Left: Frederique with the fish she's drying near her house.
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Right: Fathima with a Paarai meen katuvadu (dried Trevally fish)
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डेरी: अपन घर के तीर सुखत मछरी के संग फ्रेडरिक. जउनि: पारई मीन करुवाडु (ट्रेवली मछली के सुकसी)

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तमिलनाडु के बारे मं बात करे जाय त हाथ ले निमारे अऊ बनाय (खासकरके डोकरी सियान माइलोगन के हाथ ले) के जेन दाम होथे, वो ह ओकर मन के बखत अऊ मिहनत के बनिस्बत बनेच कम होथे.

सुकसी बनाय के कारोबर घलो येकर ले अलग नो हे.

“लैंगिक अधार ले बिन मेहनताना के मिहनत, इतिहास मं कऊनो नवा बात नो हे. इही करन आय के पूजा-पाठ, इलाज के तरीका, रांधे, पढ़ई-लिखई के बाजारीकरन के संगे संग जातू टोना अऊ अन्धविश्वास ले जुरे कतको दीगर कहिनी जइसने टोनही के सोच माई लोगन के खिलाफ सोच विकसित होय हवय.” डॉ. राय फोरके बताथें. सार बात ये के, मईलोगन मन के बिन मेहनताना के बूता ला उचित ठहराय सेती बीते बखत मं ढेरों मनगढ़ंत अऊ मिथक के सहारा लेय मं कऊनो कसर बाकि नई रखे गीस. “उदिम के बनाय अऊ बिगड़े ह कऊनो संजोग नो हे, जरूरी घटना आय. इही कारन आय के आज घलो पेशेवर रसोइया पौरुष प्रदर्सन के एक ठन खराब नकल जइसने लागथे, काबर वो मन हमेसा घरेलू रांधे के तरीका ले बढ़िया बनाय रांधे के दावा करथें. येकर पहिली ये काम पंडित मन करत रहिन. डाक्टर मं घलो इहीच करिन अऊ प्रोफेसर मन त करेच हवंय.”

तूतुकुड़ी सहर के दूसर डहर नून बनेइय्या मजूर एस.रानी के रंधनी मं हमन ला करुवाडु कोडम्बू (झोर) रांधत देखे ला मिलथे. बछर भर पहिली सितंबर 20 21 मं हमन वोला खेत मं नून बनावत देखे रहेन. तब अतक जियादा घाम रहिस के धरती घलो तपत रहय अऊ पानी ला जइसने कऊनो खौला दे रहिस. तब वो ह नून के गोढा बनावत रहिस.

रानी, जेन करुवाडु बिसोथे, वो ह ओकर परोस मं बनथे अऊ वो ह इहाँ के नून के मदद ले बने रइथे. ओकर झोर बनाय सेती वो ह लिंबू के अकार बरोबर अमली पानी मं भिंगो देथे. ओकर बाद वो ह एक ठन नरियर फोरथे अऊ आधा टुकड़ा चाकू ले हेर लेथे. फेर वोला काटके मिक्सी मं चलके बारीक़ पीस लेथे. रांधे के संगे संग रानी गोठियावत घलो रइथे. मोर डहर देखत वो ह कहिथे, “करुवाडु कोडम्बु ला एक दिन के बासी खाय के बाद घलो ओतकेच मिठाथे. दलिया के संग येकर मेल मजेदार हवय.”

Left: A mixed batch of dry fish that will go into the day's dry fish gravy.
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Right: Tamarind is soaked and the pulp is extracted to make a tangy gravy
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डेरी: मिले जुले सुकसी, जेन ला आज दिन मं झोर बनाय जाही. जउनि: चुरपुर बनी सेती झोर बनाय सेती अमली ला भिंगो के ओकर गुदा ला हेर ले गे हवय

Left: Rani winnows the rice to remove any impurities.
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Right: It is then cooked over a firewood stove while the gravy is made inside the kitchen, over a gas stove
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चऊर ला निमारे सेती सुपा मं फटकत रानी. जउनि; ये ला लकरी के चूल्हा मं रांधे जावत हवय फेर झोर ला रंधनी के गैस चुल्हा मं रांधे जावत हवय

येकर बाद वो ह सब्जी मन ला धोथे अऊ काटथे दू ठन मुनगा, कच्चा केरा, भंटा अऊ तीन ठन पताल. कुछु करी पत्ता अऊ एक पाकिट मसाला पाउडर निकारे के बाद जम्मो जिनिस पूरा हो जाथे. मछरी के बास पा के एक ठन भूखाय बिलई म्याऊं करत हवय. रानी पाकिट ले कतको किसिम के करुवाडु निकारथे- नगर, असलकुट्टि, पारई अऊ सालई. “मंय येला चालीस रूपिया मं बिसोय हवं,” वो ह बताथे अऊ रांधे सेती ओकर आधा मछरी हेर लेथे.

आज एक ठन अऊ तरकारी घलो पकत हवय. रानी बताथे के ये ह वोला भारी नीक लागथे - करुवाडु अवियल. येला वो ह अमली, गोंदली, कइनचा मिर्चा, पताल अऊ करुवाडु मिलाके रांधथे, अऊ ये मं मसाला, नून अऊ अमट बरोबर मं बऊरे जाथे. ये ह लोकप्रिय तरकारी आय. नून का खेत मं बूता करेइय्या मजूर मं अक्सर कलेवा के रूप मं खाय सेती धर के खेत मं जाथे. रानी अऊ ओकर सहेली मन आपस मं येला बनाय के तरीका ला एक दूसर ला बतावत हवंय. जीरा, लसून, सरसों अऊ हींग ला एके संग कुटे जाथे अऊ ये ला पताल अऊ अमली के खौलत पानी मं डार दे जाथे. आखिर मं, कुटे काली मरीच अऊ मछरी ला मिला दे जाथे. रानी बताथें, “येला मिलगुतन्नी कहिथें. ये ह छेवारी महतारी मन ला भारी फायदा करथे. काबर के ये मं औषध वाले मसला डारे गे हवय.” येला दुदु पियावत महतारी मं के सेती घलो बढ़िया बताय गे हवय. करुवाडु मिलाये बगेर गर मिलगुतन्नी रांधे जाथे, त वो तरकारी ला रसम कहे जाथे जेन ह तमिलनाडु के बहिर घलो लोकप्रिय हवय. अंगरेज बनेच पहिली ये तरकारी ला अपन संग लेके गे रहिन, अऊ कतको उपमहादेश मन मं ये ह ‘मुलिगटॉनी’ सूप के नांव ले मिलथे.

रानी करुवाडु ला पानी भरे एक ठन बरतन मं डार देथे, अऊ मछरी ला निमारथे. वो ह मछरी पांख, मुड़ी अऊ पूंछी ला हेर देथे. “इहाँ हर कऊनो करुवाडु खाथे.” समाजिक कार्यकर्ता उमा माहेश्वरी कहिथें, लइका मन येला अइसने भाथें, अऊ मोर घरवाला जइसने कुछेक लोगन मन ला भुनाय ह भाथे. करुवाडु ला लकरी के चूल्हा के राख मं डार के चुरोय जाथे, अऊ बढ़िया करके चुर जाय के बाद येला ताते-तात खाय जाथे. उमा बताथे, “येकर महक भारी नीक लागथे. सुट्ट करुवाडु बहुते बढ़िया तरकारी आय.”

जब तक ले कोडम्बू नई उबले, रानी अपन घर के बहिर प्लास्टिक के एक ठन कुर्सी मं बइठे रइथे. हमन गप्प मारत हवन. मंय रानी ले फिलिम मन मं करुवाडु के मजाक उड़ाय के बारे मं पूछ्थों. वो ह मुचमुचावत कहिथे, कुछेक जात मन मांस-मछरी नई खावंय. उहिच जाट के लोगन मं जब फिलिम बनाथें, त अइसने दृश्य वो मं डार देथें. कुछेक सेती ये ह नातम [ बास वाले] आय. हमर सेती ये ह मणम [महक] आय.” अऊ ये बात के संग तूतुकुड़ी के नून के खेत के ‘रानी’ करुवाडु ले जुरे ये विवाद के निपटारा कर देथे...

ये शोध अध्ययन ला बेंगलुरु के अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत अनुदान मिले हवय

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Aparna Karthikeyan

Aparna Karthikeyan is an independent journalist, author and Senior Fellow, PARI. Her non-fiction book 'Nine Rupees an Hour' documents the disappearing livelihoods of Tamil Nadu. She has written five books for children. Aparna lives in Chennai with her family and dogs.

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Photographs : M. Palani Kumar

M. Palani Kumar is Staff Photographer at People's Archive of Rural India. He is interested in documenting the lives of working-class women and marginalised people. Palani has received the Amplify grant in 2021, and Samyak Drishti and Photo South Asia Grant in 2020. He received the first Dayanita Singh-PARI Documentary Photography Award in 2022. Palani was also the cinematographer of ‘Kakoos' (Toilet), a Tamil-language documentary exposing the practice of manual scavenging in Tamil Nadu.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Photo Editor : Binaifer Bharucha

Binaifer Bharucha is a freelance photographer based in Mumbai, and Photo Editor at the People's Archive of Rural India.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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