अदैकलसेलवी बाइक पर बइठल, गरदा उड़ावत फट-फट करत पहुंचली. बुल्लू लुगा पहिरले, नाक में बड़का नथिया आ चेहरा पर हंसी सज रहल बा. तनिए देर पहिले मरिचाई के खेत पर ऊ हमनी के ताला लागल आपन घर के बाहिर इंतिजारी करे के कहले रहस. मार्च के महीना बा, चढ़ल दुपहरिया बा. सोझे पड़त रउद में हमनी के छाया छोट देखाई पड़ रहल बा. पियास जोर से लागल बा. ऊ अमरूद के मीठ गाछ तरे बाइक लगा के जल्दी से दरवाजा खोलली आ हमनी के अंदर बोलवली. गिरिजाघर के घंटी बाजल. अदैकलसेलवी हमनी खातिर पानी ले अइली, फेरु हमनी बइठ के गप-सप करे लगनी.
बातचीत के सुरुआत उनकर बाइके से भइल. एतना छोट गांव में उनकर उमिर के कवनो मेहरारू खातिर बाइक चलावल कवनो आम बात नइखे. “बाकिर ई त बहुते काम के बा,” 51 बरिस के अदैकलसेलवी कहली. ऊ बाइक चलावल बहुते जल्दी सीख लेले रहस. “अठमां में पढ़त रहीं, त भइया बाइक चलावे के सीखइलन. पहिले से साइकिल चलावे जानत रहीं, त जादे दिक्कत ना भइल.”
ऊ कहली कि ई दुपहिया ना रहित, त उनकर जिनगी आउरो मुहाल रहित. “हमार घरवाला कइएक साल से बाहिर रहत रहस. ऊ प्लंबर के काम करत रहस- पहिले सिंगापुर आ बाद में दुबई आ कतर में. हम अकेलहीं आपन लइकी लोग के पालले-पोसले बानी, आ खेतियो-बाड़ी संभालले बानी.”
जे. अदैकसेलवी सुरुए से खेती-किसानी करत रहस. ऊ भुइंया पर पलथी लगाके, पीठ एकदम सोझ तानके बइठल रहस. दुनो हाथ ठेहुना पर रहै. हाथ में एगो-एगो चूड़ी रहे. शिवगंगई जिला के कालयारकोइल में एगो खेती-खलिहानी करे वाला परिवार में उनकर जनम भइल. ई जगह इहंवा मुदुकुलतुर ब्लॉक के उनकर छोट गांव पी. मुतुविजयपुरुम से सड़क के रस्ते गइला पर, कोई डेढ़ घंटा दूर पड़ेला.
अदैकसेलवी आपन लइकी लोग के लरिकाइए में हॉस्टल में डाल देली. खेती के काम निपटइला के बाद लइकी लोग के देखे खातिर पहिले घरे भागस. ओकरा बाद भाग के खेत जास. एह तरीका से ऊ घर, खेती आ बाल-बच्चा संभरली. अबही उनका लगे छव एकड़ जमीन बा. एक एकड़ ऊ अपने जोतेली आउर बचल पांच एकड़ पट्टा पर देले बाड़ी. “धान, मरिचाई आ कपास बजार खातिर उगावेनी, आ धनिया, भिंडी, बैंगन, लौकी आ छोट पियाज घरे खातिर...”
ऊ बइठकी में बनावल मचान देखइली. “चूहा के काटे के डरे हम धान के बोरा सब इहंई धर दीहिला. मरिचाई चौका में बनल मचान पर रखाला.” एहि तरह समय-समय पर कमरा बदलत जाला. मोटा-मोटी बीस बरिस पहिले जब घर बनत रहे, त एह छोट-छोट सुविधा सब ऊ अपने डिजाइन कइले रहस. ई सब बात ऊ तनी मुस्कात, सकुचात हमनी के बतइली. घर में घुसे वाला दरवाजा पर नक्काशी से मदर मैरी के फोटो बनावे के आइडियो उनके रहे. लकड़ी पर कइल गइल एतना सुंदर नक्काशी में मदर मैरी फूल के ऊपर ठाड़ देखाई देत बाड़ी. कमरा के भीतरी देवाल पिस्ता वाला हरियर रंग के बा. ओकरा फूल सब से सजावल गइल बा. परिवार के फोटो आ ईसा मसीह आ मैरी के पोट्रेट भी देवाल सब पर सजावल बा.
घर के सजावे-संवार के साथे-साथे एकरा में पर्याप्त भंडारण के भी ब्यवस्था कइल गइल बा, ताकि फसल के नीमन भाव मिले तक ओकरा जोगा के रखल जा सके. एह तरह के ब्यवस्था जादेतर सफल रहेला. धान के सरकारी खरीद मूल्य 19.40 रुपइया रहे.
दोसरा ओरी, लोकल कमीशन एजेंट सिरिफ 13 रुपइया भाव लगावत रहे. ऊ पूछेली, “हम सरकार के दू क्विंटल (200 किलो) धान बेचनी. ऊ मरिचाइयो काहे नइखे कीनत?”
उनकर कहनाम बा कि मरिचाई के खेती करे वाला किसान लोग चाहेला कि उनकर उगावल मरिचाई के दाम स्थिर आउर नीमन होखो. “धान के उलट मरिचाई के जादे आ जमल पानी के जरूरत ना होखे. एह बरिस बरसात तब भइल जब ओकर जरूरत ना रहे. बिया फूट चुकल रहे, ओह में नन्हा-नन्हा कोंपल भी निकल गइल रहे. फूल आवे से पहिले जदि तनी-मनी पानी बरस गइल रहित, त जरूर लाभ मिलित. बाकिर तब पानी एकदमे ना भइल.” ऊ बतियावे के क्रम में “बदलत मौसम” के जिकिर ना कइली, बलुक ऊपर-नीचे हो रहल बरसात के बारे में संकेत में बतइली- जइसे बहुते जादे, बहुते जल्दी, गलत मौसम में, गलत समय पर आदि-आदि. खैर मौसम के प्रकोप चलते उम्मीद के पंचमा हिस्सा ही फसल भइल. “मरिचाई त पूरा तरह बरबाद होखे के डर रहे.” आउर उहो तब जबकि उहां 300 रुपइया प्रति किलो के दामिल आउर उन्नत किसिम के बिया ‘रामनाद मुंडु’ के इस्तेमाल कइल गइल रहे.
उनका उहो जमाना खूब इयाद बा जब मरिचाई के एगो ढेरी एक चाहे दू रुपइया, आ बैंगन 25 पैसे किलो बिकात रहे. “तीस बरिस पहिले कपास तीन, चाहे चारे रुपइया काहे बिकात रहे? आ अब? उनकर दिहाड़ी मजूरी बढ़के 250 रुपइया हो गइल बा. बाकिर, कपास आजो 80 रुपइये किलो ही बिकाला.” दोसरा तरह से कहल जाव, त मजूरी 50 गुना बढ़ गइल, जबकि दाम बस 20 गुना बढ़ल. अइसन में किसान का करी? साफ बात बा कि चुपचाप आपन काम करे के अलावे ओकरा लगे आउर कवनो चारा नइखे.
अदैकलसेलवी हर हाल में आपन काम निपटा लेवेली. उनकर आत्मबिस्वास उनकर बोलचाल में साफ झलकेला. “मरिचाई के खेत एन्ने बा,” ऊ आपन दहिना ओरी देखावत कहली, “आउर हम कुछ खेती एने, आ कुछ ओनहू करिला.” उनकर हाथ हवा में घूमेला जइसे कवनो नक्सा बनावत होखस. अदैकलसेलवी मुस्कियावत बतावेली, “काहेकि हमरा लगे बाइक बा, एहि से हम दुपहरिया के खाना खाए जा सकिला. बोरा लावे, ढोवे खातिर हमरा केहू के मुंह ना ताके पड़े. हम एकरा आपन बाइक के कैरियर पर लाद के घरे ले जा सकिला.” उनकर इलाका के तमिल जबान में ओग खास मिठास झलकत बा, आउर ई तनी जानल-पहचानलो लागत बा.
“सन् 2005 में बाइक कीने के पहिले हम गांव में केकरो से बाइक मांग के काम चलावत रहीं.” टीवीटीएस मोपेड में पइसा लगावल उनका हिसाब से बहुते काम के साबित भइल. ऊ गांव के दोसर जवान लइकी लोग के भी बाइक चलावे खातिर प्रोत्साहित करेली. “केतना लइकी लोग त चलावहूं लागल,” ऊ मुस्कात बाड़ी आउर खेत जाए खातिर बाइक ओर बढ़ जात बाड़ी. हमनियो आपन गाड़ी में सवार उनका पाछू निकल पड़त बानी. हमनी रस्ता में रामनाथपुरम के खेत में बिछल चटख लाल रंग के चद्दर जेका रउदा में पसरल लाल तीत मरिचाई सूखत देखाई देत बा. इहे मरिचाई सब के स्वाद आउर गमक देस-बिदेस के थरिया के स्वाद बढ़ावे वाला बा. लोग कही, थरिया में एगो गुंडू मिलाजगई (ताजा मरिचाई) देवे के कृपा करीं...
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“हम तोहर हरियरी देखनी, पाकके लाल होत देखनी
तोरा देखे से मन मोहा जाला,
थरिया में स्वाद उतर आवेला...”
संत-कवि पुरंदरदास के गीत के लाइन
एतना सरल आउर मजेदार लाइन के कइएक तरह से व्याख्या कइल जा सकेला. बाकिर के.टी. अच्चया के किताब इंडियन फूड, ए हिस्टोरिकल कम्पैनियन के मानीं त साहित्य में मरिचाई के पहिले जिकिर इहंई मिलेला. आज मरिचाई कवनो भारतीय थाली के अटूट हिस्सा बन चुकल बा. एतना कि “बिस्वास ना होखे कि ई हरमेसा से हमनी संगे ना रहे.” जे भी होखे, ई गीत मरिचाई के जनम के एगो निस्चित काल तक पहुंचावेला. गीत “दक्खिन भारत के महान संतकवि पुरंदरदास (1480-1564) रचले रहस.”
जइसन कि एह गीत में बतावल गइल बा:
“गरीबन के रक्षा करे वाला, खाना के स्वाद बढ़ावे वाला, खाए में एतना तीत कि देव पांडुरंग विट्ठल आजो एकरा कच्चा ना खा सकस.”
वनस्पतिशास्त्र के बोली में कैप्सिकम एनम नाम से पुकारल जाए वाला मरिचाई के “भारत लावे के श्रेय पुर्तगाली लोग के बा. ऊ लोग दक्खिन अमेरिका के जीतला के बाद उहंवा से एकरा लेके भारत के तट पर पहुंचल रहे,” ई बात सुनीता गोगटे आ सुनील जलिहल आपन किताब “रोमांसिंग द चिली” में कहले बाड़ी.
एक बेरा भारत अइला के बाद ई त करियर मरिचाइयो के पाछू छोड़ देलक. पहिले खाना तीत आउर चटपटा बनावे खातिर खाली करिए मरिचाई काम में लावल जात रहे. मरिचाई के एगो अच्छा बात ई बा कि एकरा पूरा देस में कहूं उगावल जा सकेला, आउर ‘गोल मिरिच के तुलना में एकरा कइएक तरह से उपयोग कइल जा सकेला,’ अच्चया बतइलन. संभवत: इहे कारण बा कि भारत के भाषा सब में मिरिच के नाम भी गोले मिरिच से मिलत-जुलत रहखल गइल. जइसे कि, तमिल में गोल मिरिच के मिलागु, त मिरिच के मिलागई कहल जाला. एह तरीका से देखल जाव, त दू ‘स्वर’ दू महादेस आ कइएक सदियन के बीच दूरी पाटे खातिर पुल के काम कइलक.
जल्दिए मरिचाई हमनी के स्वाद के हिस्सा बन गइल. आउर आज त भारत सूखल लाल मरिचाई उगावे वाला बड़-बड़ देस में गिनल जाला. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हमनी के देस एकरा उगावे में सबले आगू बा. सन् 2020 में भारत में लाल मरिचाई के कुल 10.7 लाख टन उत्पादन भइल रहे. क्रम से दोसर आ तेसर स्थान पर रहल थाईलैंड आ चीन के तुलना में भारत मोटा-मोटी पांच गुना जादे मरिचाई उगवले रहे. सन् 2021 में 8,36,000 टन खेती संगे आंध्रप्रदेस देस के मरिचाई उगावे वाला सबले बड़ राज्य बा. ओकर बनिस्पत तमिलनाडु में ओह बरिस मात्र 25,648 टन मरिचाई के उत्पादन भइल. राज्य में , रामनाथपुरम जिला के जगह सबले आगू बा. तमिलनाडु के प्रति चार हेक्टेयर जमीन में एक हेक्टेयर मरिचाई के उत्पादन (54,231 में 15,939 टन) इहे जिला में होखेला.
रामनाथपुरम के मरिचाई आउर मरिचाई किसान लोग के बारे में हम सबले पहिले पत्रकार पी. साईनाथ के नामी किताब: एवरीबडी लव्स ए गुड ड्रॉट के “दी टाइरनी ऑफ द तारागर” नाम के अध्याय में पढ़नी. अध्याय एह तरहा सुरु होखेला: “तारागर (दलाल चाहे कमीशन एजेंट) एगो छोट किसान के लावल बोरा में हाथ डालके कोई एक किलो मरिचाई निकालत बा. फेरु ओकरा एक ओरी उछाल के कहत बा- ई सामी विट्ठल (देवता) के हिस्सा बा.”
एकरा बाद साईनाथ हमनी के अकबकाएल रामास्वामी से भेंट करवइलन, “ई छोट किसान एक तिहाई एकड़ में मरिचाई उगाके आपन गुजारा करेलन.” ऊ चाहियो के आपन उगावल मरिचाई केहू दोसरा के ना बेच सकस, काहेकि “दलाल पहिलहीं पूरा फसल कीन लेले रहे.” सन् 1990 के दसक के सुरुआत भइल त साईनाथ आपन किताब लिखे खातिर देस के सबले दस गरीब जिला के दौरा कइलन, किसान लोग पर दारागर के दादागिरी कुछ अइसने रहे.
आउर, सन् 2022 में हम आपन सीरिज ‘लेट देम ईट राइस’ के सिलसिला में दोबारा रामनाथपुरम गइनी, त एह किसानन के स्थिति के थाह लेवे के एगो आउर मौका भेंटाइल.
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“माईल, मुयल माडू, मान (तमिल में- मोर, खरहा, गाई
आ हरिन) चलते मरिचाई कम पैदा होखेला. एकरा अलावे केतना बेरा जरूरत से जादे पानी
बरसेला, आ केतना बेरा उम्मीद से बहुते कम.”
वी. गोविंदराजन,
मुम्मुदिस्थान, रामनाथपुरम के एगो मरिचाई-किसान
रामनाथपुरम शहर के एगो मरिचाई ब्यापारी के दोकान के भीतरी मरद आ मेहरारू लोग बोली लागे के इंतिजारी ताकत बा. ई सभे लोग किसान बा आउर बहुते भीतरी इलाका से बस, टेंपू आउर बोरा से लदल बइलगाड़ी पर कड़कड़ात घाम में आइल बा. केहू गमछा से आपन पसीना पोछ रहल बा, त केहू अंचरा से. प्रचंड गरमी बा, बाकिर ऊ लोग के छांह खातिर एगो कोना खोज लेत बा. ओह लोग के खेत में त एतनो छांह ना मिले. रउआ जान लीहीं कि मरिचाई छांह में ना उगे, ओकरा कड़कड़ात घाम चाहीं.
वी. रामनाथपुरम, 69 बरिस, अपना संगे लाल मरिचाई के 20-20 किलो के तीन ठो बोरा लेके आइल बाड़न. “अबकी फसल नीमन ना भइल.” ऊ मगसूल के पैदावर के जिकिर करत बाड़न. “बाकिर दोसर खरचा सब में कवनो कमी ना होखे.” ऊ बतावत बाड़न कि मल्लीगई (चमेली) आ मिलागई जइसन दोसर नरम फसल के बनिस्पत मगसूल मरिचाई कुदरती रूप से एगो मजबूत फसल बा. एकरा कीटनाशक से नहलावे के कवनो जरूरत ना पड़े.
एकरा बाद, गोविंदराजन प्रक्रिया के बारे में बतावे लगलन. ऊ हमरा हल चलावे के तरीका बारे में बतावत बाड़न. गरमियन में खेत के सात (जेकरा सबले गहिर मानल जाला), चाहे कम से कम पांच बेरा हल से जोते के होखेला. जोतला के बाद माटी में खाद डाले के होखेला. एकरा खातिर सप्ताह भर रोज रात के 100 बकरी सब के खेत में छोड़ देवल जाला. अइसन करे से ओह लोग के खाद से खेत के उर्वरा शक्ति बढ़ जाला. एकरा खातिर गोविंदराजन के एक रात के 200 रुपइया देवे पड़ेला. बिया कीनल बहुते महंग बा. एकरा अलावे पूरा फसल के दौरान खेत के खर-पतवार को 4 से 5 बेरा साफ करे के होखेला. ऊ हंसत कहे लगलन, “हमार लइका लगे एगो ट्रैक्टर बा, एहि से खेत जोते में हमरा कवनो खरचा ना आवे. दोसर लोग के इहे काम खातिर 900 से 1,500 रुपइया के बीच भाड़ा चुकावे के पड़ेला. भाड़ा काम के हिसाब से वसूलल जाला.”
हमनी बतियावे लागिला, त दोसरो किसान लोग जुट जात बा. केहू धोती, त केहू लुंगी कसले बा. कान्हा पर गमछा बा. केहू पगड़ी बान्हले बा. महेरारू लोग रंग-बिरंग के फूल वाला नाइलॉन वाला लुगा पहिरले बा. जूड़ा में नारंगी रंग के कनकाम्बरम खोंसल बा. ऊ लोग से मल्लिगाई (चमेली) महक आवत बा. गोविंदराजन हमरा खातिर चाय कीन के लावत बाड़न. सूरज के तेज किरिण छत के रोशनदार आ फूटल खपरैल से आके भुइंया आ लाल मरिचाई के ढेर पर पड़ रहल बा. सूरुज के किरिण में मरिचाई बड़-बड़ लाल मूंगा नियर चमकत बा.
रामनाथपुरम ब्लॉक के कोनेरी टोला के 35 बरिस के किसान ए. वासुकियो आपन अनुभव बतावे लगलन. उहंवा मौजूद दोसर मेहरारू लोग जेका उनकरो दिन मरद लोग से पहिले सुरु होखेला. कोई 7 बजे ले ऊ घर के काम-धंधा से फारिग होके ऊ बजार निकल जाली. उनका बच्चा लोग खातिर स्कूल में देवेला टिफिन पैक करे आउर खाना बनावे पड़ेला. उनका लउटत-लउटत 12 घंटा लाग जाला. लउटला के बाद उनका बाकी के काम पूरा करे के होखेला.
एह बरिस के सभे पैदावर बरबाद हो चुकल बा, ऊ कहली. “पता ना का गड़बड़ भइल, मरिचाई तनिको ना बढ़ल. अम्बुट्टुम कोट्टीडुचु (पूरा पैदावार गिर गइल).” उनका मात्र 40 किलो मरिचाई भइल जे फसल के आधा रहे. बाकी के 40 किलो के उम्मीद ऊ सीजन बीतला के बाद लगवले बाड़ी. कमाई बढ़ो एह खातिर मनरेगा से उनका बहुते उम्मीद बा.
पी. पूमायिल, 59 बरिस, खातिर आज के दिन के सबले खास बात रहल कि उनका 20 किमी दूर आपन छोट गांव मुम्मुड़ीसातान से इहंवा ले आवे में एको पइसा ना लागल. ओह दिन बस पर चढ़ली त उनका से केहू भाड़ा ना मंगलक. सन् 2021 में मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के अगुआई में सत्ता में अइला के तत्काल बाद डीएमके के सरकार शहर के बस में आवे-जावे वाला मेहरारू लोग खातिर यात्रा मुफ्त करे के ऐलान कइले रहे.
पूमायिल हमरा आपन टिकट देखइली, जेकरा पर मेहरारू (मंगलिर) आ नि:शुल्क लिखल बा. उनकर 40 रुपइया के बचत हो गइल. हमनी उहे बचत के बारे में बतियावत रहीं. लगे ठाड़ दू गो मरद लोग मजाक कहे लागल कि ओह लोग के भी मुफ्त में यात्रा करे मिलित, केतना मजा आइत! ओह लोग के बात सुनके सभे कोई हंसे लागल, खास करके मेहरारू लोग बहुते प्रसन्न लउकत रहे.
बाकिर धीरे-धीरे ओह लोग के हंसी मेहराए लागल, जब गोविंदराजन ओह लोग के एक-एक करके कम उपज के कारण गिनावे लगलन. माईल, मुयाल, माडू, मान- ऊ तमिल में गिनावे लगलन- मोर, खरहा, गाई आ हरिन. “आउर एकरा बाद जरूरत से जादे, चाहे जरूरत से बहुते कम बरका”. जब फूल निकले आउर फल के बड़ होखे के समय अच्छा बरका मददगार साबित हो सकत रहे, उहे घरिया पानी ना भइल. ऊ हाथ से ऊंचाई देखावत बतइलन. “पुरान दिनन में मरिचाई के खेती केतना जादे होखत रहे. एतना कि मरिचाई के ढेर लाग जात रहे, पहाड़ बन जात रहे. केहू एह ढेर पर ठाड़ हो सकत रहे, एतना.”
अब मरिचाई के ई ढेर छोट पड़ल जा रहल बा. एकर प्रजातियो सब एक जइसन ना रहल. कुछ प्रजाति गाढ़ लाल होखत रहे, आ कुछ बहुते चमके वाला. बाकिर सब के सब बहुते तीत (तीखा) होखत रहे. एह बीच केहू ना केहू के छींके, चाहे खांसे के आवाज आवते रहल. कोरोना वायरस अबहियो पूरा दुनिया खातिर खतरा बनल बा. बाकिर इहंवा दोकान में एह छींक के असली मुजरिम मरिचाई बा.
मोटा-मोटी एहि घरिया नीलामी करे वाला एस.जोसेफ सेंगोल उहंवा आवेलन. सभे के करेजा धड़-धड़ करे लागेला. ऊ लोग अचके गंभीर मुद्रा में आ जाला आ ध्यान से सब कार्रवाई देखे लागेला. मरिचाई के लागल ढेर के चारों ओरी लोग जुटे लागल बा. जोसेफ संगे जे दोसर लोग आइल बा, ऊ लोग मरिचाई पर ठाड़ होके एकरा जांचत बा. एकरा बाद ऊ आपन दहिना हाथ पर एगो गमछा रख लेवेलन. एगो आउर आदमी आवेला आ भीतरी से जोसेफ के अंगुरी धर लेवेला. गुप्त नीलामी इहे तरीका से कइल जाला. नीलामी में हिस्सा लेवे वाला सभे मरदे रहेला.
नीलामी में एह तरह के गुप्त भाषा कवनो बाहरी आदमी के समझ से परे के चीज बा. हाथ छूए, अंगुरी पकड़े, चाहे एक हाथ के दोसर हाथ से थपथपावे के तरीका से संवाद करे आउर संख्या के आदान-प्रदान करे के काम बदस्तूर जारी बा. मरिचाई के हरेक ढेर के दाम एहि तरीका से तय होखेला. ऊ लोग जब केहू के नीलामी रद्द करे के चाहेला, त हथेली के बीच में सोन्ना (जीरो) लिखेला. नीलामी करे वाला एह काम खातिर तीन रुपइए बोरी के हिसाब से मेहनताना लेवेला. इहे ना, नीलामी के पूरा काम अच्छा से संपन्न करे खातिर ब्यापारी के किसान लोग ओरी से कुल बिक्री के 8 प्रतिशत कमीशन में मिलेला.
एगो कीननिहार (खरीददार) के सौदा तय हो जाला, त दोसर के बारी आवेला. फेरु से उह तरहा गमछा के भीतर अंगुरी पकड़े के काम सुरु हो जाला. एहि तरहा उहंवा कीने आवे वाला हर आदमी के बारी आवेला. ओह दिनवा लाल मरिचाई के दाम ओकर आकार आ रंग के हिसाब से 310 रुपइया से लेके 389 रुपइया किलो तय भइल. रंग आउर आकारे से मरिचाई के गुणवत्ता तय होखेला.
बाकिर किसान लोग दुखी लागत बा. खेत में मरिचाई कम होखे चलते नीमन दाम मिलला के बावजूद ओह लोग के कवनो लाभ ना भइल. उलटा घाटे भइल. गोविंदराज कहतारे, “हमनी से कहल जाला कि जदि नीमन कमाई करे के बा, त मरिचाई के मोल बढ़ावे (वैल्यू एडिशन) पर ध्यान देवे के पड़ी. बाकिर रउए बताईं, हमनी लगे समय कहंवा बा. मरिचाई पीसीं, ओकरा पैक करीं, बेचीं कि खेती पर ध्यान दीहीं?”
बाकिर जइसहीं मरिचाई के नीलामी के बेरा आइल, उनकर गोस्स बेचैनी में बदल गइल. ऊ हमरा से बिनती कइलन, “रउओ आईं, रउआ जादे अच्छा से देख सकत बानी. ई वइसहीं बा जइसे केहू रिजल्ट के इंतजारी ताकत होखे.” ऊ गमछा से आपन मुंह पोछत कहलन. उनकर हाव-भाव से चिंता साफ झलकत रहे. ऊ ध्यान से हाथ के सांकेतिक भाषा के देखत रहस. जब भाव बोलल गइल त ऊ मुस्कुरात कहलन, “हमार मरिचाई के 335 रुपइया प्रति किलो दाम लगावल गइल बा.” उनकर लरिका के मरिचाई देखे में बड़ा बा. त उनका 30 रुपइया जादे के भाव मिलल. वासुकी के उनकर मरिचाई के दाम 359 रुपइया मिलल. किसान लोग अब चैन महसूस करत बा. बाकिर अबही उनकर काम पूरा नइखे भइल. उनका आपन मरिचाई के तउलवावे के भी बा, पइसा लेवे के बा, तनी-मनी कुछुओ खाए के बा, छोट-मोट खरीददारी करे बा आउर तब जाके घरे लउटे वाला बस पकड़े के बा...
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पहिले हमनी सिनमा देखे जात रहीं. बाकिर थियेटर में हम जे आखिर फिलिम देखनी, ओकरो कोई 18 बरिस हो गइल. फिलिम के नाम रहे ‘तुलाता मनमम तुल्लुम’ (इहंवा तकले कि हमरो मन खुस ना होई!)
एस.
अंबिका, रामनाथपुरम में मेलयकुड़ी के मरिचाई किसान
एस. अंबिका हमनी के बतावतारी, “शॉर्टकट से जाएम त हमार खेत पहुंचे में पैदल आधे घंटा लागी. बाकिर रोड से गइला पर जादे समय लागेला.” साढ़े तीन किमी के घुमावदार आउर मोड़ वाला रस्ता से होखत हमनी परमकुड़ी ब्लॉक के मेलयकुड़ी गांव में उनकर मरिचाई के खेत पर पहुंचनी. मरिचाई के नवका गाछ दूरे से लहलहात लउकत रहे. पात सब हरियर आ चमकत रहे. कवनो डाली पर पाकल, कवनो पर खिच्चा, त कवनो पर जुआएल (जादे पाकल) मरिचाई लागल रहे. कवनो लहकत लाल, कवनो हरदी जेका पियर आ कवने सुंदर अरक्कु (खुनहवा/मैरून) रंग के रेसम के साड़ी जेका बा. एने-ओने बसंती (नारंगी) रंग के तितली सभ उड़ रहल बाड़ी. लागत बा जइसे अधपकल मरिचाई के पांख लाग गइल होखे.
बाकिर जल्दिए ई जादू टूटे लागल. दसे मिनट में खेत के ई मनोहर छवि भंग हो गइल. भोरे के अबही दसो ना बाजल रहे, घाम जरत रहे. माटी सूख गइल रहे आउर आंख पसीना से चिपचिपाए लागल रहे. हमनी ध्यान देनी कि जिला में हर जगहा जमीन गरमी से फाट गइल बा. अइसन लागत रहे कि रामनाथपुरम के धरती बड़ा बेकल होके बरखा के इंतिजारी कर रहल बा. अंबिका के मरिचाई के खेत के इहे हाल रहे. पूरा के पूरा जमीन फाट गइल रहे. बाकिर अंबिका ना मानस कि माटी के सूखे से जमीन फाट गइल बा. ऊ आपन गोड़ के अंगुरी से खेत के माटी खोदत पूछेली, “देखीं त, का एह में नमी बा?” उनकर दोसर अंगूठा में चांदी के मेट्टी (बिछिया) बा.
अंबिका के परिवार पीढ़ियन से कमाई खातिर खेतिए के आसरे बा. ऊ 38 बरिस के बाड़ी. उनका संगे उनकर 33 साल के देवरानियो बाड़ी. दूनो लोग लगे एक-एक एकड़ के खेत बा. मरिचाई के अलावे ऊ लोग अगती भी उगावेला. ई एक तरह के पालक होखेला, जे बकरियन सभ खातिर एगो पौष्टिक चारा बा. कइएक बेरा ऊ लोग भिंडी आ बैंगनो रोपेला. एकरा से ओह लोग के काम के बोझा आउर बढ़ जाला. बाकिर का एतना से ओह लोग के आमदनी बढ़ेला?
दुनो जेठानी-देवरानी लोग भोरे 8 बजे खेत पहुंच जाला. फसल के रखवारी खातिर ऊ लोग सांझ के 5 बजे ले खेत पर रुकेला. “ना त बकरी सब पौधा चर जाई!” रोज भोरे ऊ लोग मुंह अन्हारे 4 बजे जाग जाला. घर साफ करे, पानी भरे, खाना पकावे, लरिकन के जगावे, बरतन धोवे, खाना पैक ररे, मवेसी आ मुरगी के चारा खियावे, खेत जाए, उहंवा खटे, कबो-कबो जनावर सब के पानी पियावे खातिर दुपहरिया में घरे लउटे, फेरु मरिचाई के खेत पर दोबारा जेए, फसल के रखवाली करे, आ फेरु शॉर्ट-कट से आधा घंटा पैदले आपन घरे लउटे के काम ओह लोग के रोज के दिनचर्या बा. रस्ता में रोज एगो कुतिया आपन पिल्ला सब संगे अक्सरहा ओह लोग के बाट जोहत मिल जाला. कम से कम एह माई के त अपना बच्चा सब खातिर समय बा...
अंबिका के लइका उनका फोन करत बाड़न. “एन्नडा,” तेसर बेर जब घंटी बजल, त अंबिका चिड़चिड़के ऊंच आवाज में कहली, “तोहरा का चाहीं?” फेरु उनकर बात सुनत उनका तनी फटकार लगा देली. हमनी के बतइल कि उनकर लरिका घर पर नाना प्रकार के फरमाइश करत रहेला. “हमनी कुछुओ पका लीहीं, ओकरा त खाली अंडा आ आलुए चाहीं. ओकरा खातिर फेरु से कुछ पकावे पड़ेला. एतवार के दिन बच्चा लोग खातिर जवना तरह के मीट कहेला, पका दीहिला.”
बतियावत-बतियावत अंबिका आ रानी मरिचाई तुड़त जात रहस. लगे के खेतन में काम कर रहल मेहरारुओ लोग इहे करत रहे. ऊ लोग फुरती से डाल उठावे आउर बहुते आराम से ओकरा में लागल मरिचाई तुड़ लेवे. जब मुट्ठी भर जाए, त एगो रंग-बिरंग खाली बालटी में जमा कर देवे. अंबिका बतावेली कि एकरा से पहिले एह काम खातिर ताड़ के पत्ता के टोकरी काम में लावल जात रहे. बाकिर अब ओकरा जगह पिलास्टिक के मजबूत बालटी आ गइल बा. एकरा से कई सीजन ले मरिचाई तुड़े में आराम रहेला.
ओन्ने अंबिका के घर के छत पर उनकर उगावल मरिचाई कड़ा घाम में सूख रहल बा. ऊ एगो-एगो मरिचाई के बहुते एहतियात से सुखावे खातिर फइलावत जात बाड़ी. तनी-तनी देर पर सभे के अलट-पलट देवेली, जे से सब एक तरीका से सूख जाव. फेरु दू-चार ठो मरिचाई उठावेली आउर आपन तरहथी (हथेली) पर जोर-जोर से हिला के देखेली. जदि मरिचाई सूखल बा, त ई ‘गड़-गड़’ के आवाज करी. अइसन स्थिति में मरिचाई के इकट्ठा करके तउल के बोरा सब में भर लेवल जाला. गांव के दलाल, चाहे जादे नीमन दाम खातिर परमकुड़ी आ रामनाथपुरम के हाट-बजार में बेचे खातिर ले जाएल जाला.
नीचे चौका से अंबिका हमरा आवाज लगइली, “रउआ खातिर ‘कलर’ (बोतल वाला ठंडा पेय) लाईं?”
ऊ हमरा के लगे के खेत में बकरी सब के बाड़ा देखावे ले गइली. किसान के चौकीदारी करे वाला जवन कुकुर सब रसड़ी से बीनल खटिया के नीचे सुतत रहे, हमनी के देख के जाग गइल आ भौंके लागल. “हमार घरवाला जबो कवनो आयोजन में जालन त हमार कुकुर लोग हमरो रखवाली करेला. हमार मरद खेती-किसानी करेलन. वइसे ऊ काम मिले, त कवनो काम कर सकेलन.”
बियाह के नयका-नयका दिन इयाद क के ऊ तनी लजाए लगली. “पहिले हमनी सिनेमा देखे जात रहीं. बाकिर अबही हमरा हॉल में कवनो फिलिम देखल 18 बरिस हो गइल. अंतिम जवन फिलिम देखले रहीं ओकर नाम रहे, ‘तुलाता मनमम तुल्लुम’ (हमार दिलो खुस ना होई!).” फिलिम के नाम सुनके हमनियो के चेहरा पर अचके मुस्की आ गइल.
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“छोट किसान लोग आपन उगावल मरिचाई बेचे के चक्कर में 18
प्रतिशत कमाई गंवा देवेला”
के. गंधिरासु, निदेशक,
मुंडु चिली ग्रोवर्स एसोसिएसन, रामनाथपुरम
गंधिरासु कहेलन, “वइसन किसान के बारे में सोचीं जे मात्र पांच से दसे बोरी मरिचाई उगावेला. पहिले त माल के गांव से मंडी ले जाए खातिर टेम्पो, चाहे दोसर गाड़ी के भाड़ा लागेला. ओकरा बाद दाम तय करे खातिर जवन ब्योपारी लोग आवेला ऊ लोग 8 प्रतिशत के आपन कमीशन वसूलेला. तेसर, वजन करे में गड़बड़ी हो सकत बा, आउर एह गड़बड़ी के फायदा अक्सरहा ब्यापारिए लोग के मिलेला. जदि ऊ एक बोरी में आधो किलो के हेर-फेर कर देलक, त किसान खातिर त ई सौदा बहुते घाटा वाला साबित हो जाई. बहुते किसान लोग के एह तरह के शिकायत बा.”
एतना के बादो, ई सब करे में एगो किसान के एक दिन बरबाद हो जाला. ओह दिन ऊ खेत ना जा सके. ब्यापारी लगे नकद पइसा रहल तब त तुरंते पेमेंट हो जाला. ना त किसान से दोबारा आवे के कहल जाला. आउर आखिर में, किसान बजार जे घरिया अक्सरहा अपना संगे खाना ना ले जाला. अइसन में ओकरा भूख लगला पर होटल में खाए पड़ेला. इहो खरचा जोड़ देवल जाव, त पता चलेला कि किसान के कुल कमाई में से 18 प्रतिशत के कटौती हो गइल.
गंधिरासु किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) चलावेलन. सन् 2015 से रामनाद मुंडु चिली प्रोडक्शन कंपनी लिमिटेड किसान के आमदनी बढ़ावे खातिर काम कर रहल बा. गंधिरासु एह कंपनी के अध्यक्ष आ निदेशक बाड़न. उनका से हमार मुलाकात मुदुकुलतुर शहर के उनकर कार्यालय में भइल. “आमदनी कइसे बढ़ी? पहिले त रउआ फसल उगावे के लागत में कटौती कर दीं. एकरा बाद, रउआ पैदावार बढ़ावे के जरूरत पड़ी. आ तेसर, मंडी तक आपन पहुंच सुलभ बनाई. फिलहाल हमनी आपन पूरा ध्यान बजार पर लगा रहल बानी.” रामनाथपुरम जिला में उनका सबसे जरूरी ‘पलायन के समस्या’ पर ध्यान देवल लागल.
सरकारी आंकड़ा उनकर बात के सही ठहरावेला. तमिलनाडु ग्रामीण बदलाव परियोजना के ( डायग्नोस्टिक ) रिपोर्ट में कहल गइल बा कि रामनाथपुरम जिला से हर साल 3,000 से 5,000 किसान लोग पलायन करेला. रिपोर्ट में इहो कहल गइल बा कि बिचौलिया के दबदबा, पानी के कमी, सूखा आ कोल्ड स्टोरेज के कमी खेती में बाधा बा.
पानी खेल बदले वाला बा, गंधिरासु कहत बाड़न. ऊ तनी देर रुक के फेरु से कहलन, “रउआ कावेरी डेल्टा क्षेत्र के मैदानी इलाकन, चाहे पस्चिमी तमिलनाडु में चल जाईं, त का देखम? बिजली के खंभा. काहेकि जगह-जगह बोरवेल बा.” रामनाथपुरम में एकर गिनती कम बा, ऊ बतइलन. बरखा पर निर्भर सिंचाई के सीमा बा, जे मौसम के मिजाज पर निर्भर करेला.
एक बेरा फेरु, सरकारी आंकड़ा उनकर बात के सही ठहरावत बा. जिला सांख्यिकी पुस्तिका के हिसाब से, सन् 2018-2019 में रामनाथपुरम बिजली वितरण सर्किल में मार् 9,248 पंपसेट रहे. ई पूरा राज्य के 18 लाख पंपसेट के तुलना में बहुते कम बा.
रामनाथपुरम के समस्या कवनो नया नइखे. सन् 1996 में छपल “एवरीबडी लव्स ए गुड ड्रॉट” किताब में पत्रकार पी. साईनाथ नामी लेखक (स्व.) मेलनमई पोन्नुस्वामी से बात कइलन. ऊ कहलन, “आम सोच के उलट, एह जिला में खेती के नीमन संभावना बा. बाकिर एकरा खातिर जरूरी प्रयास के करेला?” ऊ आगू रहले, “रामनाथपुरम में 80 प्रतिशत से जादे जोत के जमीन के टुकड़ा दू एकड़ से कम बा. आउर ई आर्थिक पिछड़ापन के एगो बड़ कारण बा. बाकिर एह सब के पाछू बड़ समस्या सिंचाई के कमी बा.”
पोन्नुस्वामी खेती के लेकर आपन संभावना पर बिलकुल सही रहलें. सन् 2018-19 में रामनाथपुरम जिला में 4,426.64 मैट्रिक टन मरिचाई के कारोबार भइल, जेकर कीमत मोटा-मोटी 33.6 करोड़ रुपइया रहे. एकरा बनिस्पत धान के उपज से कुल 15.8 करोड़ के ब्योपार भइल, जबकि धान के खेत के सिंचाई के जादे नीमन सुविधा मिलल.
गंधिरासु अपने किसान के बेटा हवन आउर मास्टर डिग्री करत समय ले अपनो खेती के काम में रुचि लेवत रहल बाड़न. ऊ मरिचाई के संभावना समझत बाड़न. ऊ जल्दी से मरिचाई के खेती पर बात करे के सुरु कर देलन. आमतौर पर एगो छोट किसान कोई एक एकड़ जमीन में फसल लगालवेला. फसल तइयार भइला पर ऊ कुछ मजूर के रख के पौधा से मरिचाई तुड़वावेला. बाकी के काम किसान आउर ओकर परिवार के लोग अपने कर लेवेला. “एक एकड़ में मुंडु मरिचाई लगावे में कोई 25 हजार से 28 हजार के खरचा होखेला. मरिचाई तुड़े में अलग से 20 हजार रुपइया खरचा लाग जाला. ई 10 से 15 मजूर के खरचा बा, जे चार बेरा मरिचाई के तुड़े खातिर भाड़ा पर बोलावल जाला.” एगो मजूर एक दिन में एक बोरा मरिचाई तुड़ लेवेला. गंधिरासु कहेलन कि जब पौधा घना होखेला, त ई काम तनी मुस्किल होला.
मरिचाई के खेती छव महीना के खेती बा. एकर बिया अक्टूबर में छींटाला. एकरे से दो बोगम (उपज) होखेला. पहिल बेर ई ताई (तमिल महीना, जे जनवरी में सुरु होखेल) में फलेला. दोसर उपज चितिरई (मध्य अप्रिल) में होखेला.
बजार में जादे मांग आउर कम आपूर्ति चलते समूचा साल एकर भाव बढ़ल रहेला. रामनाथपुरम आ परमकुड़ी के किसान मार्च के सुरु में मिचाई के मिले वाला दाम से उत्साहित रहस. पहिल खेप में मरिचाई 450 रुपइए किलो के भाव से बिका गइल. अनुमान रहे कि भाव 500 रुपइया किलो ले चढ़ी.
गंधिरासु एह गिनती के ‘सुनामी’ कहेलन. उनकर मानना बा कि जदि मुंडु मरिचाई के लाभमुक्त दाम 120 रुपइया किलो बा, त एक एकड़ में 1,000 किलो मरिचाई के खेती कइल जाव, तबो किसान के 50,000 रुपइया के फायदा होई. “दु बरिस पहिले ले खाली 90 चाहे 100 रुपइया किलो के भाव रहे. आज मरिचाई के भाव पहिले के हिसाब से बहुते बेहतर बा. एकरा बादो हमनी अइसन ना मान के चल सकीं कि ई 350 रुपइया किलो के भाव से बिकाई. ई एगो भ्रम बा.”
ऊ कहेलन कि मुंडु मरिचाई एह जिला के लोकप्रिय फसल बा. ऊ इहो कहत बाड़न कि ई एगो अलग किसिम के मरिचाई बा. ई कुछ हद ले टमाटर जइसन लउकेला. “रामनाद मुंडु के चेन्नई में सांभर चिलियो बोलल जाला, काहेकि ई तनी गूदावाला होखेला. एकरा डाले से पुली कोडम्बू (इमली के खट्टा रस्सा) गाढ़ा हो जाला, जे बहुते स्वादिष्ट लागेला.”
भारते में ना, बलुक बिदेसो में मुंडुक के खासा बड़ बाजार बा. ऑनलाइन सर्च से ई बात साफ होकेला. मई के बीच में अमेजन पर मुंडु के भाव 799 रुपइए किलो रहे. एह दाम में 20 प्रतिशत छूट भी शामिल रहे.
गंधिरासु मानेलन कि “खरीद-बिक्री एगो बड़ समस्या बा. हमनी के नइखे पता कि एकर अंतरराष्ट्रीय बाजार खातिर पैरवी (लॉबी) कइसे करीं.” ओहपर से एफपीओ, यानी किसान उत्पादक संगठन के 1,000 से जादे सदस्य लोग में से सभे आपन उपज संगठन के ना बेचे. “हमनी लगे एतना साधन नइखे कि सबके पैदावर कीन सकीं, आ न ओतना भंडारण करे के सुविधा बा.”
नीमन दाम के उम्मीद में एफपीओ फसल के जादे दिन ले ना रख सके. मरिचाई महीना भर रखला पर करियर पड़ जाला, आ एकर पाउडर में पिल्लू लाग जाला. सरकारी कोल्ड स्टोरेज रामनाथपुरम से कोई 15 किमी पर बा. हमनी जब उहंवा के स्थिति के जायजा लेवे पहुंचनी, त पछिला बरिस के उगावल मरिचाई के बोरा देखनी. अइसे प्रशासन ब्यापारी आउर किसान के एक जगह लावे के कोशिश करत बा. बाकिर किसान हिचकिचा रहल बा. आ पान उपज ओहिजा ले जाए आ लावे के झंझप पर संशय में बा. एकरा में जादे आवे वाला खरचा उठावे में ऊ बहुते सक्षम नइखे.
एफपीओ आपन ओरी से किसानन के पारंपरिक तरीका से कीट नियंत्रण के सलाह दे रहल बा. “एह इलाका में मरिचाई के खेत के चारो ओरी आमनक्कु (अरंडी) लगावल जाला. ई कीट के मरिचाई पर हमला करे से रोक लेवेला. अरंडी बड़ पौधा बा, जे छोट चिरई सभ के भी अपना ओरी खींचेला. चिरई सब भी कीट के चट कर जाला. ई एक तरीका से उयिरवेल्ली, मतलब जिंदा बाड़ा के जइसन काम करेला.”
ऊ इयाद करत बाड़न कि उनकर माई खेत के किनारे-किनारे आमनक्कु आ अगती (अगस्त के गाछ के नाम से जानल जाए वाला पालक के एगो परिचित किसिम) लगावत रहस. “जब माई मरिचाई देखे जास, त हमार बकरियो सब उनका पाछू धउड़ल चल जात रहे. माई बकरी सब के एक किनारे बान्ह देस आ ओकरा अगति आ आमनक के पत्ता खियावस. एतने भर से बकरी सब के संतोष हो जात रहे. जइसे मिलागई हमनी खातिर मुख्य फसल रहल, वइसही अगतियो हमनी खातिर अलगे महत्व रखत रहे. बाऊजी मरिचाई के फसल से पइसा कमास, त माई अरंडी के फसल के पइसा अपना लगे रखस.”
अतीत से सबक लेला के अलावे, गंधिरासु के नजर भविष्यो पर बा. ऊ विज्ञान के जरूरत भी समझेलन. ऊ कहेलन, “रामनाथपुरम में, खास तौर से मुदुकुलतुर में मरिचाई रिसर्च सेंटर के जरूरत बा. धान, केला, इलाइची, हरदी आदि सभ फसल के रिसर्च सेंटर बा. स्कूल-कॉलेज होख त बच्चा पढ़े जाई. सेंटर होख त समस्या के हल खोजल जाई. तब मरिचाई नया स्तर पर पहुंची.”
फिलहाल एफपीओ मुंडु प्रजाति के मरिचाई खातिर एगो जीआई (भौगोलिक संकेत) टैग हासिल करे पर काम कर रहल बा. “मरिचाई के एह खासियत दुनिया के बतावल जरूरी बा. सायद एकरा पर एगो किताब लिखे के जरूरत बा.”
खेती के हर समस्या के बहुप्रचारित हल, वैल्यू एडिशन (मूल्य बढोतरी) मरिचाई के मामला में काम ना करी. गंधिरासु के अइसन मानना बा. “देखीं, सभे किसान लगे 50-60 बोरा मरिचाई होखेला. एतना मरिचाई संगे ऊ अकेला का कर सकत बा? एफपीओ मिलके भी मसाला कंपनी से मुकाबला ना कर सके, आ ना ऊ लोग से सस्ता मरिचाई पाउडर बेच सकत बा. ऊपर से, ओह कंपनी सब के मार्केटिंग बजट करोड़ों में बा.”
बाकिर गंधिरासु आगाह करेलन कि आवे वाला दिन में असली समस्या जलवायु परिवर्तन होखी.
ऊ पूछेलन, “हमनी एकरा से निपटे खातिर का कर रहल बानी. तीन दिन पहिले तूफान के खतरा मंडरात रहे. मार्च में अइसन कबो ना सुनल गइल रहे! जदि पानी जादे हो जाई, त मरिचाई के पौधा मर जाई. किसान के नया तरीका खोजे के पड़ी.”
*****
“मेहरारू लोग ओतने पइंचा (करजा) लेवेला, जेतना जरूरत होखेला. पढ़ाई-लिखाई,
बियाह, लरिका के जनम जइसन मौका पर हम करजा खातिर कबो मना ना करीं. खेती ओकरा बाद
आवेला.”
जे. अदैकलसेलवी, मरिचाई
किसान आ एसएचजी के मुखिया पी. मुतुविजापुरम, रामनाथपुरम
ऊ हमनी के पड़ोसी के खेत पर काम पर लगवले बाड़ी. “रउआ डर लागत बा कि रउआ से पौधा उखड़ जाई, ना?” अदैकलसेलवी हंसे लगली. उनकर पड़ोसी बतइले रहस कि उनका मजूर लोग कम पड़त बा, आ उनका केहू सहायता करे वाला चाहीं. बाकिर जल्दिए ऊ पछतइलन आउर हमरा खीझत धन्यबाद कहलन. ओही बीच अदैकलसेलवी एगो बालटी लेके आइस बाड़ी आ मरिचाई तुड़े खातिर तेसर पौधा में हाथ लगा चुकल बाड़ी. हम अबही आपन पहिले पौधा लगे थाक के बइठ गइल बानी आउर एगो मोट मरिचाई तुड़े के कोसिस करत बानी. बाकिर जवन डंठल पर ऊ लागल बा, ऊ मोट आ सख्त बा. घर में रखल अंजलपेट्टी (मसाला के बक्सा) जेका बरियार त नइखे. हम डेरात रहीं कि कहीं मरिचाई तुड़े में हमरा से पौधा के डंठले ना टूट जाव.
लगे के खेत में मरिचाई तुड़े में लागल मेहरारू लोग इकट्ठा होके तमासा देखे लागल बा. पड़ोस के खेत के मालिक मुंडी हिलावत बा. अदैकलसेलवी हमरा जोस दिलावे के कोसिस करत बाड़ी. उनकर बालटी मरिचाई से भरल जा रहल बा, आउर हमार मुट्ठी में मुस्किल से आठ-दस गो लाल मरिचाई बा. पड़ोस के किसान कहत बा, “तू अदैकलसेलवी के अपना संगे चेन्नई ले जा. ऊ ई खेत संभार सकेली, आउर संगे-संगे एगो दफ्तरो संभार सकेली.” बाकिर ऊ हमरा के कवनो काम ना देलन. साफ रहे कि हम पूरा तरीका से फेल हो गइल रहीं.
अदैकलसेलवी अपना घरहीं में एफपीओ के खोलल एगो ऑफिस चलावेली. इहंवा एगो कंप्यूटर आ जेरोक्स मसीन लागल बा. उनकर काम कागजात सब के फोटो कॉपी करल आउर लोग के जमीन के पट्टा (जमीन के कागज) से जुड़ल जानकारी उपलब्ध करावल बा. “एकरा बाद हमरा लगे आउरो कवनो काम करे के समय ना होखे. हमरा बकरी आ मुरगियो के त देखे के रहेला.”
एकरा अलावे ऊ एगो मगलिर मंड्रम, चाहे मेहरारू लोग खातिर एगो स्वयं सहायता समूह भी चलावेली. गांव के साठ औरत लोग एह समूह में बा. ई समूह पांच छोट-छोट समूह में बंटल बा. हर छोट समूह के दू ठो तलैवी (मुखिया) होखेला. अदैकलसेलवी ऊ दस तलैवी (मुखिया) में से एगो बाड़ी. दोसर काम सब सहित मुखिया पइसा जमा करे आउर ओह पइसा के बांटे के काम करेला. “लोग बाहिर से ऊंच ब्याज दर- रेंदु वट्टी, अंजू वट्टी (24 से 60 प्रतिशत सलाना के दर) पर करजा लेवेला. हमनी के मगलिर मंड्रम, ओरु वट्टी- 1,000 रुपइ प्रति एक लाख पर करजा देवेला.” ई कोई 12 प्रतिशत सलाना पड़ेला. “बाकिर हमनी इकट्ठा कइल पइसा कवनो एके आदमी के करजा के रूप में ना दीहीं. इहंवा त हर आदमी एगो छोट किसान बा. सभे के आपन-आपन संकट से निकले खातिर पइसा के जरूत पड़ेला. सांच कहनी नू?”
मेहरारू लोग ओतने करजा लेवेला, जेतना जरूरत होखेला. ऊ बतावत बाड़ी कि ओह लोग के खास करके तीन चीज खातिर पइसा के जरूरत रहेला. “पढ़ाई-लिखाई, बियाह आ जचगी (लरिका पैदा करे घरिया). एह काम खातिर हमनी कबो मना ना करीं. इहंवा ले कि खेती ओकरा बादे जरूरी बा.”
अदैकलसेलवी करजा चुकता करे के तरीका में भी एगो बड़ बदलाव लइले बाड़ी. “पहिले हर महीना तय रकम चुकावे पड़त रहे. हम कहनी, हमनी सब किसान बानी. कवनो महीना पइसा रहेला, कवनो महीना पइसा ना रहे. फसल बेचला के बाद जरूर कुछ रकम हाथ में आजाला. एहि से जब लोग के पास पइसा होखे, तब चुकावे के सुविधा मिले के चाहीं. करजा लेवे-चुकावे के बर्तमान ब्यवस्था से सबके राहत मिले के चाहीं. हा कि ना?” ई बैंकिंग के अइसन तरीका बा जे सबके जरूरत आ हालात के समझेला.
मगलिर मंड्रम, जे गांव में उनकर बियाह से पहिले, 30 बरिस से मौजूद बा, गांव खातिर कइएक कार्यक्रम चलावेला. मार्च में हमनी के दौरा के बाद वाला शनिचर-एतवार के दिन ऊ लोग महिला दिवस मनावे के योजना बनवले रहे. ऊ तनी मुस्कियात बतावे लगली, कि चर्च में ‘संडे मास’ के बाद केक बांटे के कार्यक्रम तय भइल ह. ऊ लोग बरखा खातिर प्रार्थना के आयोजनो करेला, पोंगल उत्सव मनावेला आ जरूरतमंद के सेवा करेला.
ऊ बेबाक बाड़ी, खुल के बोलेली. एहि से अदैकलसेलवी गांव के मरद लोगन के नसीहत देवेली, खास करके जदि ऊ लोग पिएला, चाहे आपन मेहरारू के तंग करेला तब. बाइक चलावल जाने आउर दसकन से आपन खेत के देखभाल करे चलते ऊ दोसर मेहरारू लोग खातिर ताकत बनल बाड़ी. ऊ कहेली, “आजकल के जवान मेहरारू लोग बहुते अक्लमंद बा. ऊ लोग बाइक चलावेला, आ पढ़ल-लिखल बा. बाकिर...” एतना कहके ऊ ठिठक जाली आउर तनी गोस्सा में पूछेली, “ओह लोग खातिर काम कहंवा बा?”
अब त उनकर घरवाला लउट आइल बाड़न, एह से खेती में उनका मदद मिल जाला. बचल समय में उनका दोसरो काम करे के होखेला. जइसे, आजकल ऊ कपासो के खेती पर तनी ध्यान देवे लागल बाड़ी. “पछिला दस बरिस से हम कपास के बिया जोगा के रख रहल बानी. ई बिया सब 100 रुपइए किलो के भाव से बिका जाला. बहुते लोग हमरे से ई बिया कीनेला, काहेकि हमार बिया बहुत नीमन से अंकुरित होला. पछिला बरिस लागत बा हम कोई 150 किलो बिया बेचले होखम.” ऊ एगो पिलास्टिक के झोरा खोलत बाड़ी. जइसे जादू देखावे वाला टोपी से खरगोस निकालेला, वइसही ऊ झोरा से तीन गो आउर छोट-छोट झोरा निकालत बाड़ी. ओह में रखल बिया के अलग-अलग किसिम देखावत बाड़ी. आपन व्यस्तता आउर जरूरी काम के बीच ऊ ई एगो आउरो काम करेली, बिना हो-हल्ला कइले- बिया जोगावे के काम.
मई के आखिर ले उनकर मरिचाई के फसल तइयार हो चुकल रहेला, आउर हमनी फोन पर अक्सरहा सीजन के बारे में बात करत रहिला. ऊ हमरा से कहेली, “अबकी मरिचाई के भाव घट के 120 रुपइया किलो हो गइल. भाव धीरे-धीरे गिरत चल गइल.” अबकी उनका एक एकड़ से सिरिफ 200 किलो मरिचाइए मिल सकल. ब्रिकी पर 8 प्रतिशत के कमीशनो देले बाड़ी. संगे-संगे हर 20 किलो पर 1 किलो मरिचाई कम हो गइल, काहेकि ब्यापारी 200 ग्राम के बोरी पर 800 ग्राम एक्स्ट्रा काट लेत रहे. एह लाल ऊ बस नुकसान से बच गइली. काहेकि भाव जादे खराब ना रहे. बाकिर बरखा चलते पौधा खराब हो गइल, आ फसल भी कम भइल.
तइयो, फसल भले कम होखे, किसान के मिहनत त पूरा लागेला. खराब से खराब मरिचाई के फसल के भी तुड़े, सुखावे आ बोरी में भर के बेचे के जरूरत होखेला. एतना होखेला तब जाके अदैकलसेलवी आ उनका संगे के किसान आ खेतिहर मजूर के कमर तुड़ खटनाई चलते हमनी के सांभर के हर चम्मच में स्वाद आवेला.
रिपोर्टर, रामनाद मुंडु चिली प्रोडक्शन कंपनी के के. शिवकुमार आ बी. सुगन्या के सहजोग खातिर दुनो प्राणी के हार्दिक आभार व्यक्त करत बानी.
शोध बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी बिस्वविद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत अनुदान के मदद से पूरा भइल बा.
कवर: एम. पलानी कुमार
अनुवाद : स्वर्ण कांता