एक समय की बात है. भगवा देश के जादुई साम्राज्य में, देव-राजा रणेंद्र राउडी बड़ी (निर्)ममता के साथ शासन करते थे. उन्होंने न ख़ुद खाया, न किसी को खाने दिया, इसलिए सबकी (अ)क्षमता बढ़ गई. क्यों? एक अक्षर ग़ायब नज़र आ रहा? ओह, अच्छा! वह तो पश्चिमी राज्यों के बौने सामंत गौती डानी को नीलाम कर दिया गया.

एक दिन महाराज के कुटिल पुजारी तड़ीपार गुरू ने एक बुरा सपना देखा कि गांहुल धीरा सिंहासन पर क़ब्ज़ा जमा रहा है. निश्चित रूप से यह एक भयानक बात थी, क्योंकि गांहुल धीरा एक ऐसी बुरी नस्ल से ताल्लुक़ रखता था जो लोकतंत्र और न जाने कैसी-कैसी बुरी प्रथाओं में विश्वास रखती थी. फिर क्या था, जल्दी-जल्दी जादूगरों की सभा इकट्ठी हुई, और उन्होंने एक जादुई समाधान ढूंढ निकाला! तय हुआ कि सांप्रदायिक साैहार्द और बंधन की प्रतीक गइया माता के शुद्ध गोबर से 108 फुट लंबी अगरबत्ती बनाई जाए.

और, इसके बाद गइया माता की अंतड़ियां तक पोंछ ली गईं, सभी आवश्यक सामग्रियां इकट्ठा की गईं. फिर बत्ती जलाई गई. लेकिन यह सुगंध! कितनी भीनी-मीठी किसान-घृणा में लिथड़ी जुमला-प्रिय गंध! ऐसा कहा जाता है कि फिर लोबान का धुआं धीरे-धीरे पूरे आकाश में छा गया, जहां भूख पसरी हुई थी. राजा रणेंद्र राउडी ने स्वयं गौती डानी और तड़ीपार गुरू के साथ नृत्य किया. और, शायद इस तरह अपशकुन टल गया; या शायद नहीं टला, किसे मालूम? हम तो सिर्फ़ इतना जानते हैं कि इसके बाद वह भगवा देश हमेशा ब(द)हाल रहा.

जोशुआ की आवाज़ में कविता का पाठ सुनें

महाराज की जय हो!

1)
काम से किसका तुक मिलता है, नाम से चलती गोली?
करता क़सीदा? पढ़ता मर्सिया? या है हंसी-ठिठोली?
गोबर का है तना,
ईवीएम पर है टिकना.
धूप एक सौ आठ फुट की, धू-धू कर है जलना.

2)
करोड़ों की वाह से, थोड़ों की आह से
ये तो जलेगी पैंतालिस दिन चाह से
भगवन निरुत्तर हैं,
श्रद्धा पवित्तर है
सर जिसका कटता है शम्बूक दलिद्दर है.

3)
बाबरी की गुंबद पर भगवा देश का झंडा
व्हाट्सऐप के साथ में चलता, गइया और बजरंगी डंडा,
लेकिन, ये बदबू कैसी है?
जन्नत की है या दोज़ख़ है?
चलो बताओ! ज़ोर-ज़ोर से देश के कान में चिल्लाओ!

4)
एक सौ आठ फुट का नारंगी फट्ठा
चुना था राजा, निकला चोट्टा.
घर में हमने मगर था पाला,
चलो दिखाओ, चित्र उठाओ!
एक सौ आठ फुट का बड़ा निराला.

5)
डगर-डगर पर नज़र उठाती हर किसान की भूख,
भगवा देश की नगरी में दंगे-फ़तवे की छूट,
अगर एक है एक है बत्ती —
ढहती है चुपचाप में बस्ती —
वामी और कांगी की समझ में, बुद्धि की शक्ति है कमती.


अनुवाद: देवेश

Poems and Text : Joshua Bodhinetra

جوشوا بودھی نیتر پیپلز آرکائیو آف رورل انڈیا (پاری) کے ہندوستانی زبانوں کے پروگرام، پاری بھاشا کے کانٹینٹ مینیجر ہیں۔ انہوں نے کولکاتا کی جادوپور یونیورسٹی سے تقابلی ادب میں ایم فل کیا ہے۔ وہ ایک کثیر لسانی شاعر، ترجمہ نگار، فن کے ناقد اور سماجی کارکن ہیں۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Joshua Bodhinetra
Editor : Pratishtha Pandya

پرتشٹھا پانڈیہ، پاری میں بطور سینئر ایڈیٹر کام کرتی ہیں، اور پاری کے تخلیقی تحریر والے شعبہ کی سربراہ ہیں۔ وہ پاری بھاشا ٹیم کی رکن ہیں اور گجراتی میں اسٹوریز کا ترجمہ اور ایڈیٹنگ کرتی ہیں۔ پرتشٹھا گجراتی اور انگریزی زبان کی شاعرہ بھی ہیں۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Pratishtha Pandya
Illustration : Atharva Vankundre

اتھرو وان کُندرے، ممبئی کے قصہ گو اور خاکہ نگار ہیں۔ وہ جولائی سے اگست ۲۰۲۳ تک پاری کے ساتھ انٹرن شپ کر چکے ہیں۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Atharva Vankundre
Translator : Devesh

دیویش ایک شاعر صحافی، فلم ساز اور ترجمہ نگار ہیں۔ وہ پیپلز آرکائیو آف رورل انڈیا کے لیے ہندی کے ٹرانسلیشنز ایڈیٹر کے طور پر کام کرتے ہیں۔

کے ذریعہ دیگر اسٹوریز Devesh