पच्चीस मीटर के ऊंचाई से हुमायूं शेख नीचे तकलन, आउर चिल्लइलन, “हटीं हटीं! ना त लाग जाई.”
जब ऊ निश्चिंत हो गइलें कि गाछ तरे केहू नइखे, त आपन कटारी निकललें आउर धड़ाधड़ चलावे लगलें. नीचे नरियर बरसे लागल. भद! भद! भद!
कुछे मिनट में नरियर तोड़े के काम तमाम हो गइल आउर ऊ नीचे आ गइलें. एह में सिरिफ चार मिनिट लागल. एतना जल्दी ऊपर चढ़े आउर उतरे के कमाल के पीछे नरियर तोड़े के कवनो पुरान तरीका नइखे. बलुक, ई त एगो मशीन के कमाल बा. इहे मशीन से हुमायूं फट से गाछ पर चढ़ जाएलें आउर झट से नरियर तोड़ के जमीन पर उतर जाएलें.
गाछ चढ़े के ई मशीन देखे में इंसान के गोड़ जइसन बा. एह में गोड़ धरे खातिर एगो पट्टा भी लगावल बा. मशीन में लमहर रसड़ी (शायद पातर तार) लगावल रहेला. सबले पहिले इहे रसड़ी के नीचे गाछ में खूब नीमन से बांधल जाला. फेरु हुमायूं आपन दुनो गोड़ में मशीन के खास तरीका से पहिनेलें आउर चढ़े के सुरु करेलें. ऊ जब गाछ चढ़ेलें, त लागेला सीढ़ी चढ़त बाड़ें
ऊ बतइलें, “हम दू दिन में चढ़े (मशीन से) के सीख गइनी.”
हुमायूं पश्चिम बंगाल के नदिया जिला के गोलचंदपुर गांव के बाशिंदा हवन. केरल में ऊ प्रवासी बाड़ें. हुमायूं के घर पर नरियर के खूब गाछ रहे, ऊ गाछ पर खूब चढ़त रहस. उहे आदत अबकी इहंवा काम आइल. उनकरा खातिर गाछ पर एकरा से चढ़े के सिखल आसान हो गइल.
ऊ बतइलें, “हम एकरा (मशीन के) 3,000 रुपइया में खरीद के लइनी ह. पहिले त इहंवा कुछ दिन हम आपन दोस्त लोग संगे गइनी. जल्दिए अकेले जाए लगनी.”
गाछ पर चढ़े से जे कमाई होखेला, ऊ तय नइखे. ऊ बतइलें, “कबो त एक दिन के 1,000 रुपइया मिल जाएला, कबो 500 आउर कबो त कुछुओ ना मिले.” हुमायूं एक घर में केतना गाछ बा, ओकर गिनती के हिसाब से मजूरी मांगेलें. ऊ कहलें, “जदि घर में खाली दुइए गो गाछ बा, त एगो गाछ के 50 रुपइया, जदि जादे बा, त एक गाछ के 25 रुपइया मांगिले. हमरा इहंवा के भाषा (मलयालम) ना आवे, बाकिर मोल-भाव कर लीहिले.”
“घरे (पश्चिम बंगाल में), गाछ पर चढ़े खातिर हमनी लगे अइसन कवनो यंत्र नइखे,” ऊ कहलें आउर इहो बतइलें कि केरल में अब एकरा खूब पसंद कइल जात बा.
हुमायूं जवन मशीन से गाछ पर चढ़ेलें, ऊ देखे में गोड़ जइसन लागेला जेकरा नीचे गोड़ रखे खातिर एगो पट्टी बनल रहेला. एकरा से लागल एगो लमहर रसड़ी के गाछ से बांधे के होखेला. ऊ जब एकरा से गाछ चढ़ेलें, लागेला सीढ़ी चढ़त बाड़ें
हुमायूं कोरोना महामारी आवे के ठीक पहिले (2020 में), पश्चिम बंगाल से केरल आइल रहस. उनकरा आजू इहंवा अइला तीन बरिस हो गइल बा. ऊ इयाद करत हवन, “पहिले पहिले, जब हम आइल रहीं, त खेत में दिहाड़ी मजूरी करत रहीं.”
ऊ केरल आ गइलें, काहे कि उनकरा हिसाब से, “कामकाज खातिर केरल नीमन बा.”
ऊ कहलें, “फेरु कोरोना आ गइल, आउर हमनी के वापस जाए के पड़ल.”
ऊ मार्च 2020 में आपन घर पश्चिम बंगाल लउट गइलें. ओह घरिया केरल सरकार जाए वाला लोग खातिर एगो फ्री ट्रेन के बंदोबस्त कइले रहे. ऊ उहे बरिस अक्टूबर में वापस चल गइलें. केरल जब वापस अइलें, त नरियर तोड़े के काम करे लगलें.
हुमायूं शेख रोज भोरे-भोरे 5.30 बजे उठेलें आउर सबसे पहिले खाना पकावे के काम करेलें. ऊ समझइलें, “हमरा भोर में खाए के आदत नइखे. एहि से हम मुट्ठी भर कुछो खाके काम पर चल जाइले. फेरु लउट के भरपेट खाना खाइले.” बाकिर घर लउटे के उनकर कवनो निश्चित बखत नइखे.
ऊ कहतारें, “कवनो दिन त हम ग्यारह बजे भोर में भी लउट आइले, आउर कवनो दिन सांझ के तीन, चाहे चार बज जाला.”
बरसात में, नरियर तोड़े के काम में कमाई ऊपर-नीचे होखत रहेला. बाकिर मशीन होखे के चलते हुमायूं के अइसन कवनो चिंता ना रहे.
“बरखा में गाछ पर चढ़े में हमरा कवनो परेसानी ना होखे, काहेकि हमरा लगे मशीन बा,” ऊ कहलें. बाकिर एह मौसम में नरियर तोड़े वाला के लोग जादे ना बोलावे. ऊ इहो बतइलें, “जादे करके, बरसात में हमरा कम्मे काम मिलेला.”
एहि से जब बरसात के मौसम आवेला ऊ परिवार लगे गोरखपुर गइल पसंद करेलें. उनकर पांच लोग के परिवार में घरवाली हलीमा बेगम, उनकर माई आउर तीन गो लरिकन- 17 बरिस के शनवर शेख, 11 बरिस के सादिक शेख, नौ बरिस के फरहान शेख, लोग बा. सभे लरिका लोग स्कूल में पढ़ेला.
“हम मौसम के हिसाब से आन-जान ना करीं. साल में सिरिफ दू महीना खातिर घरे (पश्चिम बंगाल) जाइले, बाकि के नौ महीना इहंई केरल में मजूरी करिले,” ऊ कहलें. बाकिर जे महीना में ऊ घर ना जा पावेलन, परिवार के इयाद आवेला.
हुमायूं कहतारें, “हम दिन भर में कमो ना, त तीन बेर घरे फोन करिले.” उनकरा घर के खाना के भी कमी खलेला. ऊ कहलें, “हम इहंवा बंगाल जइसन खाना ना पका पाइले. बाकिर कइसहूं काम चलत बा.”
“हमरा अबहिए से इंतजार बा, कब चार महीना (जून में) पूरा होई, आउर हम कब घर जाएम.”
अनुवाद: स्वर्ण कांता