“ जदि पान सभ खराब ना भइल रहित, त कमो ना त दू लाख (सन् 2013 में) के कमाई कहूं ना गइल रहे , ” ढेउरी गांव के एगो 29 बरिस के किसान मेहराइल आवाज में कह रहल बाड़न. बिहार के नवादा जिला में जरा देवे वाला गरमी चलते करुणा देवी के जून 2023 में पान के खेत बरबाद हो गइल. उनकर बरेजा, जे कबो हरियर रहत रहे, जहंवा नामी मगही पान के चम-चम चमकत लत्तर लागल रहत रहे, स्वाहा हो गइल. उनकरा मजबूरी में दोसर किसान लोग के बरेजा में मजूरी करे जाए पड़ल.
नवादा दरजन भर अइसन जिला में से रहे, जहंवा केतना दिन ले झुलसत गरमी के प्रकोप झेले के पड़ल. “ लगता था कि आसमान से आग बरस रहा है और हमलोग जल जाएंगे. दोपहर को तो गांव एकदम सुनसान हो जाता था, जैसे कि कर्फ्यू लग गया हो. (लागत रहे असमान से आगी बरस रहल बा, आउर हमनी जर जाएम. दुपहरिया के त गांव में एतना सन्नाटा हो जाए, लागे कर्फ्यू लागल बा.) ” करुणा ओह घरिया पड़े वाला गरमी के बखान करत रहस. तब जिला के वारिसलीगंज मौसम केंद्र में अधिकतम तापमान 45.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज कइल गइल रहे. ओकरा बाद ‘ द हिंदू ’ दैनिक अखबार में छपल एगो रिपोर्ट से पता चलल कि बिहार आउर उत्तर प्रदेश में एह संकट में 100 से जादे लोग के जानो चल गइल.
झुलसा देवे वाला गरमी के बावजूद, करुणा देवी के कहनाम बा, “ हमनी बरेजा जाए के ना छोड़नी. ” माथा पर बहुते करजा होखे के चलते परिवार कवनो जोखिम ना लेवे के चाहत रहे. ऊ लोग छव कट्ठा (मोटा-मोटी एक एकड़ जमीन के दसवां हिस्सा) पर मगही (मगहिया) पान उगावे खातिर एक लाख रुपइया उधारी लेले रहे.
पान के पत्ता के बगइचा बिहार में बरेजा, चाहे बरेठा कहावेला. देखे में मड़ई जइसन बरेजा मगहिया पान के पातर आउर मोलायम पत्ता के गरमी में जड़त घाम आउर सरदी में रूखर हवा से बचावेला. बांस, पुआल, नरियर के डाढ़ आउर ताड़ के डमको (पत्ता), नरियर के जटा आउर अरहर के डंठल से पान के मड़ई जइसन ढांचा तइयार कइल जाला. एहि में पान के खेती होखेला. बरेजा में भीतरी माटी कोड़ के मेड़ (माटी के कतार) बनावल जाला. उहे मेड़ के उठल माटी के हिस्सा पर पान रोपल जाला. पान के डाढ़ (कटिंग / कलम) के एह तरीका से रोपे से ना त एकर जड़ में तनिको पानी जमा होखेला, आउर ना ही बाद में ई सड़ेला.
पान के नरम-नरम लत्तर जादे गरमी बरदास्त ना कर पावे.
पछिला बरिस पड़ल तेज गरमी के बखान करत करुणा देवी के घरवाला कहत बाड़न. “ हमनी दिन भर में बस दुइए-तीन बेरा पानी पटा पावत रहीं. काहेकि जादे पानी देवे में खरचो त जादे आवत रहे. बाकिर एतनो पर गरमी एतना जादे रहे कि पौधा सभ जरे के सुरु कर देलक. देखत-देखत बरेजा बरबाद हो गइल, ” 40 बरिस के सुनील चौरसिया कहले. उनकर पान के पूरा खेती चौपट हो गइल. हैरान-परेसान करुणा कहेली, “ अब मालूम ना करजा कइसे सधी. ”
मगध में मौसम के मिजाज बेर-बेर बदल रहल बा. एह इलाका के मुआयना करे वाला वैज्ञानिक लोग इहे मानेला. पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो. प्रधान पार्थ सारथी के कहनाम बा, “ पहिले जवन मौसम के पैटर्न एक जइसन रहे, अब ऊ बहुते ऊपर-नीचे हो गइल बा. अचके गरमी बढ़ जाला, आउर कबो-कबो एके-दू दिन के भीतरी भारी बरखा होखे लागेला. ”
साल 2020 में साइंस डायरेक्ट नाम के पत्रिका में एकरे से जुड़ल एगो रिसर्च पेपर छपल, नाम रहे ‘ भारत में दक्खिन बिहार के इलाका में मौसम परिवर्तन आउर भूजल में उतार-चढ़ाव ’ . एह रिसर्च पेपर के हिसाब से साल 1958 से साल 2019 के बीच औसत तापमान 0.5 डिग्री बढ़ गइल बा. एकरा हिसाब से 1990 के दसक में मानसूनो के मिजाज गड़बड़ाइल रहल.
“ मगही पान का खेती जुआ जैसा है (मगहिया पान के खेती जुआ जइसन बा),” ढेउरी गांव के एगो आउर किसान अजय प्रसाद चौरसिया कहले. ऊ कइएक अइसन मगहिया पान किसान के हाल बतावत रहस जे लोग के गुजारा अब मुस्किल से होखेला. “हमनी कस के मिहनत करिला, बाकिर पान बची कि ना, एकर कवनो गारंटी ना रहे.”
पान पारंपरिक रूप से चौरसिया लोग उगावेला. ऊ लोग के बिहार में बहुते पिछड़ल (ईबीसी) जात मानल जाला. बिहार सरकार के हाले में करावल गइल जाति जनगणना के हिसाब से राज्य में ओह लोग के आबादी छव लाख से जादे बा.
ढेउरी गांव नवादा के हिसुआ ब्लॉक में पड़ेला. एकर 1,549 के आबादी (2011 के जनगणना) के आधा से जादे लोग खेती करेला. एक के बाद एक, लगातार गरमी पड़े से एह इलाका में मगहिया पान पर कहर बरस रहल बा.
साल 2023 में पड़ल भीषण गरमी के पहिले साल 2022 में भारी बरखा भइल रहे. “ लगता था जैसे प्रलय आने वाली हो. अंधेरा छा जाता था और लगातार बर्षा होता था. हमलोग भीग-भीग कर खेत में रहते थे. बारिश में भीगने से तो हमको बुखार भी आ गया था. (अइसन लागत रहे कि प्रलय आ गइल बा. अन्हार हो जात रहे आउर लगातार बून्नी पड़त रहे. हमनी भीज-भीज के खेत में रहत रहीं. पानी में भीजे से हमरा बोखारो आ गइल रहे), ” रंजीत चौरसिया कहलन.
पचपन बरिस के बुजर्ग बतवले कि उनकरा ओकरा बाद बोखार आ गइल रहे, आउर बहुते नुकसान भी उठावे के पड़ल रहे. ऊ बतइले, “ हमार गांव के जादेतर किसान के ओह साल बहुते नुकसान झेले के पड़ल. हम पांच कट्ठा (मोटा-मोटी 0.062 एकड़) में पान लगवले रहीं. पानी जमला से पान के लत्तर सूख गइल. ” ओडिशा में आइल चक्रवात, असानी चलते तीन-चार दिन ले भारी बरखा होखत रह गइल.
“लू चले से माटी कड़ा हो जाला आउर पउधा के बढ़ती रुक जाला. आउर जब अचके पानी बरसे लागेला त पउधा सूख जाला,” रंजीत कहले. ऊ इहंवा मगही पान उत्पादक कल्याण समिति के अध्यक्ष हवन.
ऊ कहले, “ पउधा सभ नया रहे. ओह सभ के बुतरू जेका संभारे के पड़ेला. जे अइसन ना करे, ओकर लत्तर सूख जाला. ” साल 2023 में, रंजीत बतावत बाड़न कि उनकर पान लू के प्रकोप में भी बच गइल काहेकि ऊ एकरा पर दिन में कइएक बेरा पानी छिड़कत रहस. “ हमरा एकरा बेर-बेर पानी देवे के पड़े. कबो-कबो त दिन में दसो बेरा हो जात रहे. ”
उनकर संगतिया मगही किसान आउर पड़ोस में रहे वाला अजय के कहनाम बा कि उनकरा तेज गरमी चलते पांच बरिस में दू बेर नुकसान उठावे के पड़ल. साल 2019 में, ई 45 बरिस के इंसान चार कट्ठा (मोटा-मोटी एक एकड़ के दसमा हिस्सा) में पान उगवलन. बाकिर साल 2021 के अक्टूबर में आइल तेज सरदी, आउर गुलाब चक्रवात संगे आइल मूसलाधार बरखा चलते पान के सभे पत्ता बरबाद हो गइल. ऊ इयाद करत बाड़न, “ हमरा दुनो साल मिलाके कोई 2 लाख के नुकसान भइल. ”
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पान के लत्तर सभ जादे हिले के ना चाहीं. एकरा बचावे खातिर अजय चौरसिया ओकरा बांस, चाहे सरकंडा के पातर डाढ़ से बांधत बाड़न. दिल के आकार के चमकत पान के हरियर-हरियर पत्ता लत्तर में लागल बा. कुछे दिन में ई तुड़े लायक हो जाई.
हरल-भरल बगइचा के मौसम, बाहर के मौसम से नीमन बा. अजय के कहनाम बा कि गरमी जादे रहे त, सरदी जादे रहे त, चाहे पानी जादे बरसे त, ई सभ पान के खेती के दुस्मन बा. झुलसत गरमी में जदि तापमान 40 डिग्री से जादे हो जाला, त ओकरा पर हाथ से पानी छिड़के के जरूरत पड़ेला. एहि से ऊ पांच लीटर पानी के घइला कान्हा पर उठाके ओकरा से पानी पटावेलन. पानी गिरावेलन आउर अंजुरी से पानी के फइला के पटावत चलेलन. ऊ बतावत बाड़न, “ जदि मौसम बहुते गरम बा, त हमनी के अइसन कइएक बेरा करे के पड़ेला. बाकिर लत्तर सभ के पानी आउर सरदी से बचावे के आउरो कवनो तरीका नइखे. ”
“ अइसे त एह बिषय पर कवनो पड़ताल नइखे भइल कि जलवायु बदले से मौसम के उतार चढ़ाव केतना हद ले बढ़ गइल बा. बाकिर बदलत मौसम के पैटर्न से जलवायु परिवर्तन के असर के संकेत मिलेला, ” गया में साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ अर्थ, बायोलॉजिकल एंड एनवायरन्मेंट साइंस के डीन सारथी बतावत बाड़न.
अजय लगे आठ कट्ठा जमीन बा, बाकिर सभ एने-ओने छितराइल बा. एहि से ऊ तीन कट्ठा के प्लॉट 5,000 रुपइये सलाना पर किराया पर उठइलन. एकरा पर खेती में 75,000 रुपइया लगवलन. एह खातिर उनका 40,000 के उधारी स्वयं सहायता समूह से लेवे के पड़ल. एकरा अगिला आठ महीना में हर महीना 6,000 रुपइया के किस्त देके चुकावे के बा. हमनी से 2023 के सितंबर में बात करत ऊ कहले, “ अबले हम 12,000 रुपइया के सिरिफ दू गो किस्त जमा कइले बानी. ”
अजय के घरवाली, 40 बरिस के गंगा देवी उनकरा संगेन खेत में मदद करेली. एकरा अलावे ऊ दोसरो के खेत पर जाके मजूरी करेली. “ ई बहुते खटे वाला काम बा. बाकिर हमरा एक दिन के सिरिफ 200 रुपइया मिलेला. ” उनकर चार ठो बच्चा- नौ बरिस के लइकी, आउर 14,13 आउर 6 बरिस के लइका लोग बा. सभे ढेउरी के सरकारी स्कूल में पढ़ेला.
आग जइसन गरमी पड़े से खराब भइल पान के फसल चलते पान किसान लोग आपन खेत रहते दोसर के पान के खेत पर मजूरी करे के मजबूर बा. काहेकि ओह लोग के एगो इहे काम आवेला.
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मगही पान के ओकर नाम मगध से मिलल जहंवा ओकरा खास खेती होखेला. बिहार के मगध क्षेत्र में गया, औरंगाबाद, नवादा आउर नालंदा आवेला. रंजीत चौरसिया कहले, “ केहू ना जाने कब आउर कइसे मगही पान के कटिंग इहंवा पहुंचल. बाकिर इहंवा ई पीढ़ियन से उगावल जात बा. हमनी सुनले बानी पान के पहिल कटिंग मलेशिया से आइल रहे. ” रंजीत मगही पान खातिर भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) के आवेदन करे वाला में से एगो रहस.
मगही पान एगो लइका के अंजुरी के आकार- 8 से 15 सेमी लमहर आउर 6.6 से 12 सेमी चउड़ा होखेला. छुए में एकदम नरम आउर मह-मह महकत मगही पान में एक्को रेशा ना होखे, एहि से ऊ मुंह में धरते घुल जाला. एकर इहे गुण एकरा पान के दोसर पत्ता सभ से अलग करेला. एह में खासियत बा कि तुड़ला के बाद एकरा 3 से 4 महीना ले रखल जा सकेला.
रंजीत बतावत बाड़न, “ एकरा तनी गील सूती कपड़ा में लपेटके ठंडा जगह में रखे के होखेला. रोज देखे के पड़ेला कहीं कवनो पत्ता गलत त नइखे. जदि अइसन भइल, त ओह पत्ता के तुरंते हटावे के पड़ी, ना त एक से दोसर, दोसर से तेसर पत्ता सभ गलत चल जाई. ” ऊ हमनी के सोझे आपन पक्का घर के फर्श पर बइठ के पत्ता लपेटत बाड़न.
ऊ एक के ऊपर एक करके 200 पत्ता के रखत बाड़न. एकर डंठल के कैंची से काटत जात बाड़न. एकरा बाद ऊ सभे पत्ता के तागा से बांध के बांस के टोकरी में धर देत बाड़न.
पान के पौधा कटिंग (लत्तर में हर गांठ पर जड़ होखेला) से लगावल जाला. पान में कवनो फूल ना लागे, एह से एकर बिया ना होखे. “ जब केहू किसान के फसल बरबाद हो जाला, तो दोसर किसान उनकरा के फेरु से खेती करे खातिर अपना इहंवा से कटिंग देवेला. एह खातिर हमनी कबो एक-दोसरा से पइसा ना वसूलीं, ” रंजीत चौरसिया कहले.
बरेजा में पान लतरा गइल बा. एक कट्ठा (मोटा-मोटी 0.031 एकड़) पर बरेजा बनावे में 30,000 रुपइया के खरचा आवेला. जदि इहे खेती दू कट्ठा में कइल जाव, त 45,000 के खरचा आई. माटी के खूब गहिर कोड़ के मेड़ बनाके एकर रोपाई कइल जाला. मेड़ पर गाछ लगावे से जड़ में पानी ना लागे आउर पौधा ना सड़े.
एक बरिस ले रहे वाला मगहिया पान के एगो लत्तर में कमो ना त 50 गो पत्ता लागेला. उत्तर प्रदेस के बनारस में थोक मंडी, जे देस में पान के पत्ता के सबले बड़ मंडी बा, आउर हाट में पत्ता एक चाहे दू रुपइया में बिकाला.
मगही पान के साल 2017 में जीआई टैग से नवाजल गइल. मगध के 439 हेक्टेयर भौगोलिक इलाका में बिसेष रूप से उगावल जाए वाला पान खातिर जीआई मिलल रहे. तवन घरिया किसान लोग जीआई टैग मिलले से बहुते उत्साहित रहे आउर राहत महसूस करत रहे.
बाकिर, जइसे जइसे साल बीतत गइल, किसान लोग कहे लागल कि एकरा से कवनो फायदा ना भइल. रंजीत चौरसिया बतवलन, “ हमनी उम्मीद लगलवले रहीं कि अब सरकार मगही पान के प्रचार करी. एकरा से पान के मांग बढ़ी आउर हमनी के एकर नीमन भाव मिली. बाकिर अइसन कुछुओ ना भाइल. ” ऊ कहलन, “ दुख तो ये है कि जीआई टैग मिलने के बावजूद सरकार कुछ नहीं कर रही है पान किसानों के लिए. इसको तो एग्रीकल्चर भी नहीं मानती है सरकार (दुख तो एह बात के बा कि जीआई टैग मिलला के बादो सरकार पान किसान खातिर कुछुओ नइखे करत. एकरा त सरकार खेतियो ना माने.) ”
“बिहार सरकार पान के बागवानी के श्रेणी में रखले बा. एहि से किसान लोग के फसल बीमा जइसन कृषि योजना के लाभ नइखे मिलत. बस एके गो फायदा बा, कि जब हमनी के फसल के खराब मौसम चलते नुकसान हो जाला, त हमनी के मुआवजा मिलेला. बाकिर मुआवजा में मिले वाला रकम मजाके बा. ” रंजीत चौरसिया बतइले कि एक हेक्टेयर (कोई 72 कट्ठा) खेती के नुकसान पर 10,000 रुपइया मुआवजा मिलेला. “ जदि रउआ हिसाब लगाएम त एक एकड़ खातिर किसान के सिरिफ 126 रुपइया मिली. ” ऊ इहो बतइलन कि ओह लोग के एह खातिर कइएक बेरा जिला कृषि कार्यालय के चक्कर काटे के पड़ेला. एहि से अक्सरहा ऊ लोग मुआवजा लेवे में दिलचस्पी ना देखावे.
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साल 2023 में गरमी के प्रकोप चलते फसल के नुकसान भइला के बाद, सुनील आउर उनकर घरवाली के अब दोसर किसान लोग के बरेजा में काम करे के पड़त बा. “ घर चलाने के लिए मजदूरी करना पड़ता है. पान के खेत में काम करना आसान है क्योंकि हम सुरु से ये कर रहे हैं इसलिए पान के खत में ही मजदूरी करते हैं (घर चलावे खातिर मजूरी करे के पड़ेला. पान के खेत पर काम कइल आसान बा. काहे कि हमनी के इहे काम करे के आदत रहल. एहि से हमनी पाने के खेत में मजूरी करिला.) ”
बरेजा में 8 से 10 घंटा काम कइला के बाद सुनील के 300 आउर उनकर घरवाली करुणा देवी के 200 रुपइया के दिहाड़ी भेंटाला. इहे कमाई से ओह लोग के 3 बरिस के एगो लइकी आउर एक, पांच आउर सात बरिस के चार गो लइका, छव लोग के परिवार चलेला.
साल 2020 में कोविड-19 में लॉकडाउन लागे के चलते भी नुकसान उठावे के पड़ल रहे. “ लॉकडाउन में बजार से लेके, गाड़ी तक सभ कुछ ठप्प रहे. घरे 500 ढोली (पान के 200 पत्ता के एगो बंडल) रखल रहे. हम एकरा बेच ना पइनी. सभे पान सड़ गइल, ” ऊ इयाद कइलन.
कुंती देवी कहली,
“
हम
अक्सरहा उनका पान के खेती के काम छोड़े के कहिले.
”
बाकिर
सुनील उनकर चिंता ई कहत खारिज कर देवेलन,
“
ई हमनी
के पुरखा लोग के बिरासत बा. एकरा कइसे छोड़ सकिले. आउर जदि छोड़ियो देहम, त करम का
?”
स्टोरी बिहार में हाशिया पर रहे वाला लोग के संघर्ष में सहयोग करे वाला एगो ट्रेड यूनियनवादी के इयाद में फेलोशिप के मदद से कइल गइल बा.
अनुवादक: स्वर्ण कांता