पन्ना जिला मं भादों (अगस्त) ले झड़ी धरे हवय अऊ कैथाबारो बांध लबालब भर गे हवय. ये ह तीर के पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) के डोंगरी मन ले बोहाय पानी आय.
सुरेन आदिवासी टंगिया धरके बांध करा हबरथे. वो ह बोहावत पानी ला चेत धरे देखथे, के कहूँ कोनो नवा पथरा पानी ला रोकत तो नइ ये. वो ह टंगिया ले कुछेक पथरा मन ला येती वोती खसकाथे जेकर ले पानी बने करके बोहावय.
वो ह पारी ला बताथे, “मंय ये देखे बर आय हवं के पानी बने करके बोहावत हवय धन नइ.” बिलपुरा गांव के ये छोटे अकन किसान मुड़ी हलावत कहिथे, “हव, पानी बोहावत हवय.” अब वोला ये बात के भरोसा होगे हबय के कुछेक दूरिहा खाल्हे डहर लगे ओकर धान अब नइ सुखावय.
ओकर नजर नान कन बाँध मं हवय अऊ वो ह कहिथे, “ये एक ठन बड़े बरदान आय. धान होही, गहूँ घलो. येकर पहिली मंय अपन एक एकड़ खेत ला पलोय नइ सकत रहंय अऊ खेती करे नइ सकत रहेंव.
ये एक ठन अइसने बरदान आय जऊन ला बिलपुरा के लोगन मन बांध बनाके खुदेच ला दे हवंय.
करीबन हजार लोगन के आबादी वाले बिलपुरा गाँव मं आधिकतर गोंड आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) किसान हवंय, हरेक तीर मवेसी हवंय. साल 2011 के जनगणना के मुताबिक गाँव मं सिरिफ एक ठन बोरिंग अऊ एक ठन चुंवा हवय. सरकार ह तरिया बनाय हवय, जेन मं पचरी भर बने हवय, फेर इहाँ के लोगन मन के कहना आय के पानी के कोनो धार नइ ये अऊ,“पानी रुकता नहीं है (पानी भरय नइ).”
गाँव के लोगन मन के करीबन 80 एकड़ जमीन हवय जेन ह बाँध अऊ वो मन के गाँव के बीच मं हवय. महाराज सिंह कहिथे, “पहिली एक ठन नान कन नरुआ रहिस, जेकर ले कुछु एकड़ मं अपासी होवत रहिस. बांध बन जाय के बादेच हमन सब्बो अपन खेत मं कमाय सकत हवन.”
महाराज ह बाँध मं ये देखे ला घलो गे रहिस के पांच एकड़ खेत, जेन मं वो ह गहूँ,चना, धान अऊ जोंधरा लगाय हवय, वो ह बने करके होय सकय. बढ़िया सीजन मं वो ह कुछु फसल बेच घलो लेथे.
वो ह खेत डहर आरो करत कहिथे, “ये पानी मोर खेत मं जाथे. पहिली इहाँ खेती नइ होवत रहिस. मंय सड़क-इमारत बनाय के काम वाले जगा मं रोजी-मजूरी करे दिल्ली अऊ मुंबई चले जावत रहंय.” वो ह प्लास्टिक अऊ ओकर बाद धागा बनेइय्या कंपनी मं घलो काम करिस.
साल 2016 मं बांध के फिर ले बने के बाद वोला उहाँ जाय के जरूरत नइ परिस – खेती ले होवेइय्या आमदनी ले ओकर अऊ घर-परिवार के गुजारा चलत हवय. बांध के पानी अब बछर भर रहिथे अऊ मवेसी मन के निस्तारी के घलो काम आथे.
बाँध ला फिर ले बनाय के फइसला गैर-सरकारी संगठन, पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट (पीएसआई) के बलाय बइठका के बाद लेय गे रहिस. पीएसआई के क्लस्टर कोआर्डिनेटर शरद यादव कहिथे, “इहाँ के लोगन मन ले बात करे के बाद हमन ला पता चलिस के वो मन करा जमीन हवय, फेर बखत मं पानी नइ होय सेती वो मन कमाय नइ सकत हवंय.”
सरकार ह कैथा (बेल/ वुड एप्पल) रुख मन के बगीचा तीर एक ठन तरिया मं बांध बनाय रहिस. येला एक पईंत नइ, फेर 10 बछर मं तीन पईंत बनाय गे रहिस. बीते बछर जब बरसात के बखत ये ह फूट गे रहिस, त सरकार के अफसर मन फइसला करिन के अब बनेच होगे अऊ बांध के घेर ला कम कर देय गीस.
छोटे बांध के पानी पूरत नइ रहिस: “पानी मुस्किल ले खेत मन तक ले हबरत रहिस, अऊ ये ह घाम के पहिलीच सूख जावत रहिस, येकरे सेती हमर बर अपासी के काम नई आवत रहिस, महाराज कहिथे. सिरिफ 15 एकड़ जमीन मं अपासी होवत रहिस अऊ ओकर बाद घलो सिरिफ एकफसली रहिस.”
साल 2016 मं गाँव के लोगन मन ये काम ला अपन हाथ ले करे के फइसला करिन अऊ येला फिर ले बनाय बर श्रमदान करिन. “हमन माटी कोड़ेन, दोहारेन, पथरा फोरेन अऊ वोला बिछायेन, महिना भर मं हमन बांध के काम पूरा कर लेन. सब्बो लोगन मन गाँव के रहिन, अधिकतर आदिवासी अऊ कुछु अन्य पिछड़ा वर्ग ले रहिन,” महाराज कहिथे, वो ह घलो बांध मं श्रमदान करे रहिस.
नवा बांध के घेर बड़े हवय अऊ ये मं एक ठन नइ दू ठन बांध हवय, जेकर ले पानी समान ढंग ले निकरे सके अऊ फिर ले झन फूट जाय. भरोसा होय के बाद के बांध ला कोनो किसम के खतरा नइ ये, महाराज अऊ सुरेन अपन घर डहर निकर परथें, ठऊका, उहिच बखत रदरदा के एक अछरा पानी गिर गे.
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू