ऊ आपन बैग में हाली-हाली रैपिड मलेरिया टेस्ट किट खोजत बाड़ी. बैग में सेलाइन बोतल, आयरन के गोली, सूइया (इंजेक्शन), बी.पी मशीन आउर बहुते सामान सभ भरल बा. एगो मेहरारू बिछौना पर तेज बोखार में सुस्त पड़ल बाड़ी. टेस्ट पॉजिटिव आइल बा. उनकरे घरवाला लोग उनकर दु दिन से खोजबीन करत रहे.
ऊ बैग के एक बेरा फेरु खंगाले लगली. अबकी बेर 500 एम.एल. डेक्सोट्रोज इंट्रावेनस (आई.वी) खोजात रहे. ऊ मेहरारू के बिछौना लगे गइली. फेरु बहुते होसियारी से एगो प्लास्टिक के रसड़ी छत पर लागल सरिया में बांध के, ओहि पर आई.वी बोतल टांग देली.
ज्योति प्रभा किस्पोट्टा. झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिला के गांव आउर लगे के इलाका में लोग के इलाज करे वाला एगो पैंतीस बरिस के मेहरारू. ज्योति उरांव समुदाय से आवेली. उनकरा लगे अइसे त डॉक्टरी के कवनो डिग्री नइखे, ऊ प्रशिक्षित नर्स भी नइखी. ना ही ऊ कवनो अस्पताल, चाहे स्वास्थ्य केंद्र से जुड़ल बाड़ी. बाकिर पश्चिमी सिंहभूम के आदिवासी बहुल गांव सभ में तबियत बिगड़ला पर सबले पहिले उनकरे बोलावल जाला. गांव के सरकारी स्वास्थ्य सेवा के बात कइल जाव, त एकर हाल एकदम खस्ता बा.
ज्योति एगो ‘आर.एम.पी’ हई. इलाका के सर्वे के हिसाब से भारत के गांव-देहात में 70 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवा इहे आर.एम.पी लोग मुहैया करावेला. इहंवा आर.एम.पी के मतलब ‘रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर’ ना, बलुक ‘रूरल मेडिकल प्रैक्टिशनर’ ह, मतलब हमनी जिनका मजाक-मजाक में ‘झोला छाप डॉक्टर’ पुकारिला. अकादमिक गलियारा एह अप्रशिक्षित चिकित्सक लोग के ‘नीम-हकीम’ कह के, तिरस्कार से देखेला. स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ल सरकारी नीति में भी अइसन चिकित्सक पर कवनो भरोसा ना कइल जाला.
भारत में आरएमपी लोग के नाम अक्सरहा कवनो मान्यता प्राप्त संस्था में रजिस्टर ना होखे. ओह लोग में से केहू होमियोपैथ, चाहे यूनानी डॉक्टर के रूप में पंजीकृत हो सकेला. बाकिर ऊ लोग एलोपैथी दवाई से इलाज करेला.
ज्योति लगे जरूर एलोपैथी दवाई से जुड़ल एगो आरएमपी के सर्टिफिकेट बा. उनकरा ई सर्टिफिकेट एगो प्राइवेट संस्थान ‘काउंसिल ऑफ अनइम्पलॉइड रूरल मेडिकल प्रैक्टिशनर्स’ से मिलल बा. सर्टिफिकेट में एह बात के दावा कइल गइल बा कि ई संस्थान बिहार सरकार द्वारा रजिस्टर्ड बा. ज्योति इहंवा 10,000 रुपइया देके छव महीना के कोर्स कइले बाड़ी. बाकिर एह संस्था के अब कवनो अता-पता नइखे.
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ज्योति आईवी बोतल खाली होखे के बाट जोहत बाड़ी. एकरा बाद ऊ मरीज के संबंधी के दवाई के बारे में समझावे लागत बाड़ी. खराब रस्ता चलते बाइक दूर ठाड़ रहे. हमनी के उनकरा बाइक तक पैदल पहुंचे में 20 मिनट लाग जात बा.
पश्चिमी सिंहभूम खनिज के मामले में त धनी बा, बाकिर इहंवा के बुनियादी ब्यवस्था के हाल पस्त बा. इहंवा के लोग के अस्पताल, पिए के साफ पानी, शैक्षणिक संस्था आउर रोजगार उपलबंध नइखे. ज्योति इहंई से आवेली. जंगल आउर पहाड़ से घेराइल एह इलाका के सरकार-माओवादी संघर्ष खातिर भी जानल जाला. इहंवा के सड़क के हालत त भगवान भरोसे बड़ले बा, मोबाइल चाहे इंटरनेट कनेक्टिविटी भी कम, चाहे ना के बराबर बा. लोग इहंवा से दोसर गांव पैदल जाए के मजबूर बा. इमरजेंसी भइला पर गांव के लोग साइकिल से केहू के भेज के ज्योति के बुलावेला.
ज्योति, बोरोतिका गांव में एगो पातर सड़क किनारे माटी से बनल घर में रहेली. ई सड़क पश्चिमी सिंहभूम के गोइलकेरा ब्लॉक तक जाएला. एह आदिवासी घर में बीच में एगो खोली आउर चारो तरफ से बरंडा (बरामदा) बा. बरंडा के एगो कोना के चौका बना देहल गइल बा. गांव में बिजली के घोर संकट बा. उनकर घर भी जादे करके अंधेरे में डूबल रहेला.
इहंवा गांव के आदिवासी घर सभ में जादे खिड़की ना होखे. लोग के दिनो में अक्सरहा छोट टार्च जला के काम चलावे के पड़ेला. चाहे घर के एक कोना में माटी के तेल वाला लालटेन बरत रहेला. ज्योति इहंवा आपन घरवाला संदीप धनवार, 38 बरिस, 71 बरिस के माई जुलियानी किस्पोट्टा आउर भाई के आठ बरिस के लरिका, जॉनसन किस्पोट्टा संगे रहेली.
एगो आदमी साइकिल से ज्योति के खोजत उहंवा पहुंचत बा. नया मरीज के मामला
बा. ऊ खाना बीचे में छोड़ के, बैग उठावत बाड़ी आउर संगे चल देत बाड़ी. आपन लइकी के
अइसे अचके जात देख उनकर माई जूलियानी सादरी भाषा में पुकारत बाड़ी, “भात खाए के तो
जाते.” ज्योति घर से निकलत जवाब देत बाड़ी, “एह घरिया उहंवा हमार जरूरत बा. खाना त
कहूं मिल जाई, बाकिर मरीज जादे जरूरी बा.” एह घर में अइसन अक्सरहा होखत रहेला.
ज्योति, हरता पंचायत के 16 गांव में घूम-घूम के काम करेली. बोरोतिका, हुटूतुआ, रंगामटी, मेरडेंडा, रोमा, कंडी आउर ओसांगी गांव एह में शामिल बा. सभे गांव 12 किमी के दायरा में पड़ेला. कवनो मरीज के देखे खातिर उनकरा तनी दूर पैदल भी चले के पड़ेला. केतना बेरा रुनघीकोचा आ रॉबकेरा जइसन दोसरो पंचायत के मेहरारू लोग फोन करके बुलावेला.
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ग्रेसी इक्का, 30 बरिस, बतावत बाड़ी कि ज्योति केतना संकट में उनकर मदद कइली, “साल 2009 के बात ह. हमरा पहिल लरिका होखे के रहे.” ग्रेसी हमनी से बोरोतिका के आपन घर में बतियावत रहस. “अधिया रात के जचगी भइल. ओह घरिया घर में बस हमार बूढ़ सास आउर ज्योति रहस. हमरा भयानक दस्त होखत रहे. बच्चा होखला के बाद से बहुते जादे कमजोरी हो गइल रहे. हम बेहोश हो गइनी. पूरा बखत ज्योतिए हमार ध्यान रखली.”
ग्रेसी इयाद करत बाड़ी, तवन घरिया गांव में ना त आवे-जाए के कवनो साधन रहे, ना रस्ता ठीक रहे. ज्योति, ग्रेसी के इलाज खातिर 100 किमी दूर चाईबासा ले जाए के कोशिश में लागल रहस. एह खातिर ऊ जरंति हेब्राम, सरकारी नर्स से लगातार संपर्क करे के कोशिश करत रहस. बाकिर उनकरा से संपर्क ना हो पावत रहे. नर्स के आवे तक ज्योति ग्रेसी के तबियत संभारे खातिर गांव के जड़ी-बूटी के सहारा लेली. लइका भइला के बाद पूरा ताकत आवे में ग्रेसी के मोटा-मोटी एक बरिस लाग गइल. ग्रेसी कहली, “ऊ ज्योतिए रहस, जे हमार लरिका के दूध पियावे खातिर गांव में स्तनपान करावे वाली दोसर मेहरारू लगे ले जात रहस. ऊ ना रहती, त आज हमार लइका जिंदा ना रहित.”
ग्रेसी के घरवाला, संतोष कच्छप, 38 बरिस, बतइलन कि गांव में पिछिला दु बरिस से एगो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बा. उहंवा नर्स हफ्ता में एक बेर आवेली. ई स्वास्थ्य केंद्र ज्योति के घर से तीन किमी दूर बा. बाकिर एह केंद्र में कवनो सुविधा नइखे. ऊ कहले, “नर्स गांव में ना रहेली. ऊ आवेली आउर बुखार वगैरह जइसन छोट-मोट बेमारी वाला मरीज देख के लउट जाली. नर्स के सभ रिपोर्ट भेजे के होखेला. गांव में इंटरनेट के सुविधा ना होखे से, ऊ गांव में ना रह सकस. ज्योति गांव में रहेली. एहि से ऊ इहंवा के लोग के जादे मदद कर पावेली.” गरभ वाला मेहरारू लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) ना जाए. ऊ लोग घरे पर ज्योति के सहारे जचगी करावेला.
आजो इहंवा कवनो गांव में पीएचसी ढंग से काम ना करे. गोइलकेरा ब्लॉक के अस्पताल बोरोतिका से 25 किमी दूर बा. एकरा अलावे, आनंदपुर ब्लॉक में हाले में एगो पीएचसी खुलल बा. इहो 18 किमी दूर बा. रस्ता में 12 किमी के पातर सड़क बोरोतिका से सेरेंगदा गांव होखत जाला आउर कोयल नदी किनारे खत्म हो जाला. गरमी में त लोग पानी हेल के नदी पार करेला आउर आनंदपुर पहुंच जाला. बाकिर बरखा के मौसम में, नदी उफान पर रहेली. रस्ता बंद हो जाला. अइसे में लोग के मजबूरी में 4 किमी लमहर रस्ता लेवे के पड़ेला. नदी से जदि आनंदपुर जाईं त रस्ता बहुते पथरीला आउर कीच (कीचड़) भरल मिली. 10 किमी लमहर एह रस्ता पर जगह-जगह सड़क उखड़ गइल बा. एगो आउरी आफत बा कि ई रस्ता जंगल से होके जाला.
गांव से चक्रधरपुर शहर जाए खातिर कबो बस चलत रहे. बाकिर एगो दुर्घटना भइला के बाद उहो बंद हो गइल. अब लोग साइकिल, बाइक चाहे पैदले जाला. बाकिर कवनो गरभ वाली मेहरारू खातिर ई रस्ता से गइल संभव नइखे. अइसन स्थिति में जचगी घरिया आनंदपुर पीएचसी ही एगो उपाय बचेला. इहंऊ खाली ‘नॉर्मल डिलीवरी’ हो सकेला. जदि मामला जटिल बा, चाहे ऑपरेशन के जरूरत बा, त मेहरारू लोग के आनंदपुर से 15 किमी दूर मनोहरपुर, चाहे सीमा पार करके 60 किमी दूर ओडिशा के राउरकेला ले जाए के पड़ेला.
“बचपने से देखत आवत बानी कि इहंवा के मेहरारू लोग जब बेमार पड़ेला तब सबले जादे लाचार महसूस करेला,” ज्योति कहली. “मरद लोग तो कमाए खातिर शहर निकल जाला. शहर आउर अस्पताल गांव से बहुते दूर बा. अक्सरहा मेहरारू लोग के स्थिति तब आउर बिगड़ जाला जब ऊ लोग मरद के घरे लउटे के इंतजारि करेला. बहुते मेहरारू लोग खातिर त गांव में रहे वाला मरद भी कवनो काम के ना होखे. गांव में ऊ लोग अक्सरहा पी के टुन्न रहेला आउर गरभ वाली आपन मेहरारू संगे मारपीट भी करेला.”
ज्योति बतइली, “पहिले इंहवा एगो दाई-मां होखत रहली. जचगी घरिया उहे एगो सहारा रहस. बाकिर गांव के मेला में केहू डाहे, उनकर हत्या कर देलक. उनकरा बाद गांव में वइसन गुनी कवनो मेहरारू ना भइली.”
हर गांव में एगो आंगनवाड़ी सेविका आउर एगो सहिया होखेली. सेविका गांव के लरिकन सभ के रेकॉर्ड रखेली आउर गरभवाला मेहरारू आ दूध पियावे वाला लरकोरी आ लइका के तबियत के जांच करत रहेली. सहिया, गरभ वाला मेहरारू लोग के अस्पताल पहुंचावे में मदद करेली. बाकिर मरीज के सहिया के खाना, आवे-जाए के भाड़ा आ दोसर खरचा उठावे के पड़ेला. एहि से लोग अक्सरहा सहिया के बोलावे के बजाए ज्योति से संपर्क करेला. ज्योति दवाई के अलावा घरे आवे-जाए के पइसा ना लेवेली.
एह गांव में रहे वाला परिवार खातिर एतनो कइल पहाड़ बा. काहे कि इहंवा के परिवार कमाई खातिर बरसाती खेती आउर दिहाड़ी मजूरी पर निर्भर करेला. पश्चिम सिंहभूम के गांव-देहात के 80 प्रतिशत से जादे आबादी कमाई खातिर दिहाड़ी चाहे खेतिहर मजूरी (2011 जनगणना) के असरे बा. जादे घर के मरद लोग काम खातिर गुजरात, महाराष्ट्र आउर कर्नाटक पलायन कर गइल बाड़न.
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नीति आयोग के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट के हिसाब से, गरीबी बतावे वाला संकेतक के आधार पर देखल जाव त पश्चिमी सिंहभूम के 64 प्रतिशत आबादी ‘बहुआयामी गरीब’ (सेहत, शिक्षा आ जीवन स्तर से जुड़ल 12 मानक पर आधारित) के श्रेणी में आवेल. इहंवा दुइए गो रस्ता बा. आदमी या त जादे पइसा खरचा करके मुफ्त सरकारी सुविधा लेवे. चाहे ज्योति जेका कवनो आरएमपी से महंग दवाई खरीदे, आउर उनकर फीस बाद में किस्तन में चुकावे.
राज्य सरकार ओरी से अस्पताल पहुंचे में देरी के समस्या से निपटे खातिर जिला अस्पतालन में कॉल सेंटर्स, मुफ्त सरकारी स्वास्थ सुविधा ‘ममता वाहन आ सहिया’ खातिर एगो नेटवर्क त बनावल बा. बाकिर एहू में झोल बा. ज्योति गरभ वाली मेहरारू के अस्पताल पहुंचावे वाला गाड़ी के बारे में बतावे लगली, “लोग ममता वाहन बोलावे खातिर देहल गइल फोन नंबर पर कॉल कर सकेला. बाकिर ड्राइवर के जदि एह बात के अंदाजा लाग जाए कि गरभ वाला मेहरारू के बचे के गुंजाइश बहुते कम बा, त जादे बेरा ऊ आवही से मना कर देवेला. एकर कारण ई बा कि जदि मेहरारू के मौत गाड़िए में हो गइल, त ड्राइवर के स्थानीय लोग के प्रकोप झेले के पड़ेला.”
दोसरा ओरी ज्योति बाड़ी, जे घरे पर मेहरारू लोग के जचगी में मदद करेली. आपन काम खातिर ऊ 5,000 रुपइया लेवेली. एगो सेलाइन बोतल खातिर 700-800 रुपइया चार्ज करेली, जे बाजार में 30 रुपइया में बिकाला. मलेरिया के इलाज में जदि ड्रिप छोड़ देहल जाव, त कमो ना त 250 रुपइया के खरचा आवेला. निमोनिया के दवाई में 500-600 के खरचा बा. एकरा अलावे पीलिया चाहे टायफाइड के इलाज में 2,000 से 3,000 के खरचा बइठ जाला. एक महीना में ज्योति के हाथ में 20,000 रुपइया आ जाएला. बाकिर एह में से आधा पइसा त दवाइए खरीदे में चल जाला.
प्रातीची (इंडिया) ट्रस्ट ओरी से साल 2005 में जारी एगो रिपोर्ट के हिसाब से भारत के गांव-देहात में प्राइवेट डॉक्टर आउर दवाई कंपनी के बीच एक तरह के सांठ-गांठ देखल गइल, जे चिंता के विषय बा. रिपोर्ट में कहल गइल, “जब पीएचसी आउर सरकारी स्वास्थ्य केंद्र चाहे अस्पताल में दवाई के भारी कमी हो जाला, त दवाई के विशाल निजी बाजार, डॉक्टर लोग से गलत तरीका के उपयोग आउर प्रचार करावेला. एगो नियामक तंत्र के अभाव में आम आदमी के पाकिट से बेइमानी से पइसा निकाल लेहल जाला.”
साल 2020 में झारखंड के मुख्यमंत्री 2011 के जनगणना के आधार पर राज्य के स्वास्थ्य के समीक्षा कइलन. रिपोर्ट के हिसाब से राज्य के स्वास्थ्य प्रणाली में ओकर पहुंच आउर वितरण के मामला में बहुते कमी पावल गइल. ‘भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक’ के तुलना में इहंवा 3,130 स्वास्थ्य उपकेंद्र, 769 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आउर 87 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के कमी रहे. राज्य में एक लाख लोग पर सिरिफ 6 गो डॉक्टर, 27 बेड, 1 लैब टेक्नीशियन आउर मोटा-मोटी 3 गो नर्स बा. इहे ना, स्पेशलिस्ट डॉक्टर के 85 फीसदी पद खाली पड़ल बा.
लागत बा एक दशक से हालात जस के तस बनल बा. झारखंड आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 में साफ दर्ज बा कि पीएचसी में 65 प्रतिशत, उपकेंद्र में 35 आउर सीएचसी में 22 प्रतिशत के कमी आइल ह. रिपोर्ट के हिसाब से स्पेशलिस्ट डॉक्टर के कमी बहुते चिंता के विषय बा. सीएचसी में दाई, स्त्री रोग आउर बाल रोग बिशेषज्ञ के संख्या में 80 से 90 प्रतिशत कमी पाइल गइल.
इहंवा तक कि आजो राज्य के एक चौथाई मेहरारू लगे अस्पताल जाके लरिका पैदा करे के सुविधा नइखे. संगही, 5,258 डॉक्टर लोग के कमी बा. झारखंड के 3.78 करोड़ के आबादी पर सरकारी अस्पताल आउर केंद्र में सिरिफ 2,306 गो डॉक्टर लोग बा.
स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एतना कमी के चलते इहंवा आरएमपी के भूमिका बहुते जरूरी हो जाला. ज्योति घरे जाके जचगी करावेली आउर जचगी के बाद के पूरा देख-रेख भी करेली. ऊ गरभवाली मेहरारू के आयरन आउर विटामिन के पूरा खुराक भी पहुंचावेली. इंफेक्शन आउर छोट-मोट चोट लगला पर देखेली आउर फौरन इलाज में मदद करेली. मामला उलझल होखेला, त मरीज के सरकारी अस्पताल ले जाए के सलाह देवेली. इहे ना, उनका खातिर गाड़ी के इंतजाम भी करेली, चाहे कवनो सरकारी नर्स से संपर्क करवावेली.
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झारखंड रूरल मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के सदस्य वीरेंद्र सिंह के अनुमान के हिसाब से खाली पश्चिम सिंहभूम में 10,000 आरएमपी लोग प्रैक्टिस में बा. एह में से मेहरारू लोग के गिनती 700 बा. ऊ बतइले, “आनंदपुर सहित जेतना नयका पीएचसी बा, ओह में डॉक्टर नइखे. सभे जगह नर्स से काम चलावल जात बा. ज्योति जइसन आरएमपी लोग बा जे आपन गांव के संभारत बा. बाकिर ओह लोग के सरकार से कवनो मदद नइखे मिलत. बाकिर ऊ लोग इलाका के लोग के समझेला काहे कि ओह लोग संगे रहेला. ऊ लोग जनता से, जमीन से जुड़ल लोग बा. रउआ उनकर काम के अनदेखी ना कर सकीं.”
हरता गांव के रहे वाली 30 बरिस के सुसरी टोप्पो बतइली कि जब 2013 में उनका पहिल लरिका होखे वाला रहे, पेट में बच्चा अचानक हिले-डुले के बंद कर देलक. “पेट में बहुते तेज दरद होखेला, खूनो आवे लागल. हम तुरते ज्योति के फोन लगइनी. दु दिन ले ऊ हमरा 6 गो सेलाइन के बोतल चढ़इली. एक दिन में तीन गो. आखिर में नॉर्मल डिलीवरी भइल.” बच्चा 3.5 किलो के रहे आउर पूरा सेहतमंद रहे. ज्योति के 5,500 रुपइया देवे के रहे, बाकिर परिवार लगे ओह घरिया 3,000 रहे. सुसरी बतइली कि ज्योति बाकि पइसा बाद में लेवे के तइयार हो गइली.
एलिस्बा टोप्पो, 30 बरिस, भी हरते गांव में रहेली. ऊ तीन बरिस पहिले के आपन कहानी बतावे लगली. “हमार पेट में जुड़वा बच्चा रहे. मरद रोज के तरहा पी के धुत्त पड़ल रहस. हम अस्पताल जाए के ना चाहत रहीं. काहेकि हमरा सड़क के हालत पता रहे.” ऊ बतइली कि घर से कोई चार किमी दूर, मेन रोड तक पहुंचे खातिर भी खेत आउर नाला पार करे के पड़ेला.
एलिस्बा जब रात में खेत में शौच खातिर गइली, ओहि घरिया उनकरा दरद उठ गइल. आधा घंटा बाद जब ऊ लउटली, त सास उनकर मालिश कइली. बाकिर दरद जस के तस बनल रहल. उ कहली, “फेरु हमनी ज्योति के बुलइनी. ऊ अइली, दवाई देली. उनकरे हाथ के महातम बा कि हमरा जुड़वा लरिका भइल, उहो घर पर नॉर्मल डिलीवरी से. ऊ हमनी जइसन मेहरारू के मदद करे खातिर आधो रात में दउड़ के चल आवेली.”
आरएमपी के बारे में कहल जाला कि ऊ लोग अंधाधुंध तरीका से आई.वी सॉल्यूशन इस्तेमाल करेला. प्रतीची के रिपोर्ट में भी इहे पाइल गइल. झारखंड आउर बिहार में आरएमपी लोग मोटा-मोटी हर तरह के बेमारी में आई.वी सॉल्यूशन (सेलाइन) लगावेला. जबकि ई ना सिरिफ गैरजरूरी बा, बाकिर एह में खरचा भी बहुते आवेला. केतना मामला में त एकरा से उलटा असर देखल गइल. रिपोर्ट में आगू कहल गइल, “जे प्रैक्टिशनर्स सभ से बातचीत कइल गइल, सभे ई बात जोर देके कहलक कि सेलाइन के बिना कवनो इलाज संभव नइखे. काहेकि एकरा से शरीर में खून बढ़ेला, पोषण देवेला आउर तेजी से आराम पहुंचावेला.”
ई बहुते खतरा वाला काम बा. बाकिर ज्योति के भाग नीमन बा. उनकर दावा बा कि पिछिला 15 बरिस में उनकरा से कवनो तरह के चूक ना भइल ह. ऊ कहली, “हमरा जब भी कवनो मरीज के संभारे में दिक्कत महसूस होखेला, हम मरीज के मनोहरपुर ब्लॉक अस्पताल भेज देवेनी. चाहे हम ममता वाहन के बोलावे, सरकारी नर्स से संपर्क करे में मदद कर देवेनी.”
ज्योति आपन मजबूत संकल्प चलते सभे कुछ सीख सकली, ना त उनकर परिवार के हालात ठीक ना रहे. जब ऊ सेरगेंदा के एगो सरकारी स्कूल में छठमा में पढ़त रहली, उहे घरिया उनकर बाबूजी चल बसले. ज्योति के पढ़ाई बीचे में अटक गइल. ज्योति के इयाद बा, “शहर से लउट रहल एगो मेहरारू हमरा काम दियावे के बहाने पटना ले गइली. उहंवा एगो डॉक्टर के घरे छोड़ देहली. ऊ लोग हमरा से झाड़ू-पोछा करवावत रहे. एक दिन हम भागके गांव आ गइनी.”
बाद में ऊ आपन पढ़ाई फेरु से सुरु कइली. चारबंदिया गांव के एगो कॉन्वेंट स्कूल में उनकर नाम लिखा गइल. उ बतइली, “उहंवा एक दिन नन के दवाखाना में काम करत देखनी. पहिल बेर नर्सिंग के काम करे के सुख आउर संतुष्टि समझ में आइल. हम ओकरा बाद आउर पढ़ाई ना कर सकनी. हमार भाई केहू तरहे 10,000 रुपइया जोड़ले रहस. ओकरे से एलोपैथी दवाई में मेडिकल प्रैक्टिशनर के कोर्स कइनी.”
एकरा बाद ज्योति के कदम रुकल ना. ऊ किरीबुरु, चाईबासा आउर गुमला के अलग अलग प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टर लोग संगे दु से तीन महीना बतौर सहायक रहली. एकरा बाद उनकरा ‘झारखंड रूरल मेडिकल प्रेक्टिशनर्स एसोसिएशन’ से सर्टिफिकेट मिलल. बाद में ऊ आपन खुद के प्रेक्टिस सुरु करे खातिर गांव लउट लइली.
हरता पंचायत में काम करे वाला सरकारी नर्स, जरंती हेम्ब्रम कहेली, “जदि रउआ बाहरी हईं, त इहंवा काम कइल बहुते मुस्किल होई. ज्योति प्रभा त गांवे में प्रैक्टिस करेली, एहि से लोग के मदद मिल पावेला.”
“सरकारी नर्स गांव में महीना में एक बेर आवेली. बाकिर इहंवा के लोग उनकरा लगे ना जाला, काहेकि ऊ लोग के उनकरा पर भरोसा नइखे. गांव के लोग जादे पढ़ल लिखल नइखे. ऊ लोग खातिर दवाई से जादे भरोसा आउर ब्यवहार जरूरी बा.”
पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट 'पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.
रउआ ई लेख के छापल चाहत कइल चाहत बानी? बिनती बा [email protected] पर मेल करीं आ एकर एगो कॉपी [email protected] पर भेज दीहीं.
अनुवाद: स्वर्ण कांता