पूनम, रानी के चुंदी ला दू भाग करके वो मं तेल चुपरथे अऊ ओकर बाद कस के चोटी बनाथे. फरे येकर पहिली के वो ह चोटी मं रबर बैंड लगाय सकतिस, ओकर लइका अपन दीगर भाई-बहिनी मन संग खेले बहिर दऊड़त भाग जाथे. पूनम देवी रात सेती रांधत लइका मन के ये कारोबार का ले के कहिथे, “दोस्त सब के आबितै, ई सब सांझ होइते घर से भाग जाई चाहे खेला लेल (संगवारी मन के आय के आरो पावत, वो सब्बो संझा खेले सेती बहिर दऊड़त भाग जाथें).” रानी ओकर दूसर बेटी आय, ओकर उमर 8 बछर के हवय.

पूनम के तीन बेटी अऊ एक बेटा हवय, फेर ओकर चारों लइका मन ले सबले नान केच जनम प्रमाण पत्र ओकर तीर हवय. प्रमाणपत्र बाबत वो ह कहिथे, हमरा लाग में इत्ते पाई रहितै त बनवाइए लेतिए सबकै (गर हमर करा पइसा रतिस, त हमन बाकी तीनों के घलो बनवा लेय रतेन).”

ओकर कच्चा मकान के चरों डहर ह बांस ले रुंधाय हवय, जइसने के बिहार के गाँव-देहात के अब्बड़ घर मन मं देखे ला मिलथे. 30 बछर के ओकर घरवाला मनोज दिहाड़ी मजूर आय. वो ह बिहार के मधुबनी जिला के बेनीपट्टी ब्लॉक के एकतारा गाँव मं रहिथे. मनोज रोजी मजूरी करके महिना मं करीबन 6,000 रूपिया कमाथे.

पूनम (बदले नांव) बताथें, “मोर उमर अब 25 बछर ले कुछेक महिना उपराहा हो गे हवय. मोर आधार कार्ड मोर घरवाला करा हवय अऊ ये बखत वो ह घर मं नई यें. मोर बिहाव कऊन उमर मं होय रहिस, ये हा मोला बने करके सुरता नई ये.” गर ओकर उमर ये बखत 25 बछर हवय त ये होय के भारी सम्भावना हवय के बिहाव के बखत ओकर ओमर14 बछर के करीबन रहे होय.

पूनम के सब्बो लइका मन के जनम घर मं होय रहिस. मनोज के काकी, 57 बछर के शांति देवी कहिथें, "हरेक बेरा दाई (जचकी दाई) ह मदद करिस. हमन अस्पताल जाय के बारे मं तभेच सोचेन, जब हमन ला लगिस के हालत बिगड़त हवय.” वो ओकर (मनोज अऊ पूनम के) घर के तीर के उहिच मोहल्ला मं रहिथे अऊ पूनम ला अपन बहू मानथे.

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पूनम के तीन बेटी अऊ एक बेटा हवय, फेर ओकर चरों लइका मन ले सबले छोटे बेटा के जनम प्रमाण पत्र ओकर करा हवय

शांति देवी कहिथे, “हमन मन जइसने पूनम ला घलो जनम प्रमाण पत्र बनावाय के बारे मं कऊनो जानकारी नई रहिस. येला बनवाय बर जिला अस्पताल मं जाय अऊ तय पइसा पताय ला परथे. फेर मोला नई पता के कतक.”

जनम प्रमाण पत्र बर पइसा देय ला परथे?

पूनम कहिथे, “बिल्कुल, इहाँ वो मन फोकट मं जन्म प्रमाणपत्र नई देवंय. कहूँ अऊ देथें काय?” इहाँ ‘वो’ ले पूनम के मतलब आशा कार्यकर्ता अऊ अस्पताल के करमचारी ले हवय.शांति कहिथे, “पाई लेई छे, ओहि दुआरे नाई बनबाए छियाई (वो लोगन मन येकर बदला मं पइसा मांगथें, येकरे सेती हमन अपन बेटी मन के जनम प्रमाण पत्र नई बनावे सकेन).”

पूनम अऊ शांतिदेवी दूनेच नई फेर ये महल्ला के हरेक बासिंदा मैथेली बोलथे. देश मं ये भाखा के बोलेइय्या मन के अबादी 13 लाख ले जियादा हवय. ये आबादी के अधिकतर हिस्सा बिहार के मधुबनी, दरभंगा अऊ सहरसा जिला मं रहिथे. संग मं ये ह परोसी देश नेपाल मं घलो दूसर सबले जियादा बोलइय्या भाखा हवय.

फेर भारी दिलचस्प बात आय के  एकतारा गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पूनम के घर ले मुस्किल ले 100 मीटर दूरिहा मं हवय. इहाँ के लोगन मन बताथें के ये प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जियादातर बखत बन्देच रहिथे, सिवाय तऊन गिने-चुने दिन ला छोड़के, जब कंपाउंडर इहां आथे. पूनम के परोसिन राजलक्ष्मी महतो (जेकर उपर 50 बछर ले जियादा हवय) कंपाउंडर के अवई  ला बताथें, “वो ह आखिरी बेर इहाँ 3 दिन पहिली आय रहिस. वो ह हफ्ता मं दू बेर ये अस्पताल के ताला ला खोलते, फेर डॉक्टर के दरसन दुब्भर आय अऊ डॉक्टर इहाँ आय होय हों, अइसने हमन महिनों ले देखे नई हवन. दुलार चन्द्र के घरवाली इहाँ दाई हवंय, जऊन ला जचकी बखत मुस्किल हालत मं वोला बलाथन. वो ह तीर के टोला मं रहिथें. वो ह भारी भरोसा के काबिल आंय.

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पूनम के घर के तीर मं बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जऊन ह जियादतर बखत बंद रहिथे

रिसर्च रिव्यू इंटरनेशनल जर्नल मं 2019 मं छपे एक ठन रपट ह एक महत्तम बात डहर आरो करथे: नीति आयोग के मुताबिक़ भारत मं 6 लाख डॉक्टर, 20 लाख नर्स अऊ 2 लाख डेंटल सर्जन के भारी कमी हवय.  येकर बाद घलो के विश्व स्वास्थ्य संगठन डॉक्टर-मरीज के अनुपात ला 1:1000 यानि हजार मरीज मं 1 डॉक्टर रखे के अनुशंसा करथे, फेर ये घलो देहात भारत मं 1:11,082 अऊ बिहार अऊ उत्तरप्रदेश जइसने कुछेक राज मं ये अनुपात ह 1:28,391 अऊ 1:19,962 हवय.

रपट मं ये बात ला घलो दरज करे गे हवय के “भारत के 1.14 मिलियन मान्यता प्राप्त डॉक्टर मं ले 80 फीसदी डॉक्टर अइसने सहर मन मं काम करथें जिहां देश के सिरिफ 31 फीसदी अबादी रहिथें. अभाव के ये कहिनी कतको सुविधा ले जुरे मूल ढांचा, जइसने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल धन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अऊ दीगर अस्पताल मन के मामला मं खुल के आगू आथे. अइसने हालत मं पूनम के घर ले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के तीर होय ह उफनत नरूवा मं पियास ले मरे जइसने हवय.

हमन पूनम के घर के परछी मं ठाढ़े गोठियावत रहेन. बिहार मं परछी ला घर के सियान मन धन मरद मन अपन ठिकाना जइसने बऊरथें. कुछु बखत बाद परोस के कुछेक माईलोगन मं हमर गोठ-बात मं जुर जाथें. एक बेर त अइसने लगत रहिस के सायेद वो ह चाहथे के हमन भीतर के कऊनो खोली मं जाके गोठ-बात करन, फेर हमन परछी मेंच गोठियाय ला चले रहन देन.

राजलक्ष्मी बताथें, “जब मोर बेटी के जचकी होय ला रहिस; हमन हड़बड़ मं वो ला बेनीपट्टी अस्पताल ले के जाय ला परिस. पहिली घर मं इच जचकी के बात होय रहिस, फेर आखिरी बेरा मं हमन ला पता चलिस के दाई ह कहूँ बहिर चले गे हवय. येकरे सेती मंय अऊ मोर बेटा वोला ऑटोरिक्सा मं अस्पताल ले गेन. जचकी के तुरते बाद ऊहाँ ड्यूटी करेइय्या नर्स ह हमन ले 500 रूपिया मांगिस. मंय ओकर ले कहेंव के हमन ये बखत पइसा देय के हालत मं नई अन, जेकर सेती वो ह मन मं राख लीस अऊ जनम प्रमाण पत्र पे सेती हमन ला भारी जूझे ला परिस.”

स्वास्थ्य सुविधा ले जुरे सबले तरी के स्तर मं माइलोगन मन ला होय ये गम ह, इहाँ के माइलोगन मन के पीरा, अतियाचार अऊ ओकर दुविधा के कहिनी ला बताथे.

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पूनम के काकी शांति देवी कहिथें, ‘वो मन येकर बदला मं पइसा मांगथें, येकरे सेती हमन अपन नोनी मन के जनम प्रमाण पत्र नई पाय सकेन’

स्वास्थ्य सेवा के मूल ढांचा के अभाव मं, अइसने डॉक्टर मन के होय के जऊन मन स्वास्थ्य केंद्र मं पांव नई धरें धन अइसने निजी स्वास्थ्य सेवा के होय ले, जऊन ह या त पहुंच ले बहिर हवंय धन अपन नाकाबिल होय, अच्छम होय सेती भारी खतरनाक हालत मं हवंय, गरीब घर के माइलोगन मन ला जियादा करके आशा कार्यकर्ता के मदद ऊपर आसरित रहे ला परथे. गाँव के स्तर मं गर कऊनो कोविड के खिलाफ जी जान ले लगे रहिन, त वो हा आशा कार्यकर्ता मनेच मन रहिन.

अइसने बखत मं जब हरेक कऊनो अपन परान बचाय घर मं खुसरे रहिन, आशा कार्यकर्ता अपन परान ला खतरा मं डार के वो मन ला सौंपे जम्मो काम के संगे संग, घर-घर जा के टीकाकरन ले लेके दवई बांटे, जचकी ले पहिली अऊ बाद के देखभाल जइसने बूता सरलग करत रहिन.

येकरे सेती जब सहायक नर्स (एएनएम) के स्तर मं नान अकन भ्रष्टाचार आगू मं आथे, त आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, अऊ पूनम अऊ राजलक्ष्मी जइसने माईलोगन मन बेबस-लचार हो जाथें. भले कमती पइसा मांगे जावत हवय, फेर इहाँ के गरीब माई लोगन सेती वो ह वोमन के ताकत ले जियादा होथे.

तऊन कुछेक समेत जऊन मन अइसने हालत ले समझौता कर लेथें, जम्मो आशा कार्यकर्ता मन के ऊपर भारी दुवाब होथे. देश भर मं 10 लाख ले जियादा आशा कार्यकर्ता हवंय, जऊन मन गाँव के लोगन ला अऊ स्वास्थ्य सेवा ला जोरथें. वो अपन सेती खतरा ले भरे हालत मं किसिम-किसिम के काम करथें. देश के बनेच अकन इलाका मं बीते बछर अप्रैल के महिना ले वो मन के सेती हरेक दिन एक कोरी पांच घर के हालचाल जाने ला जरूरी कर देय गेय रहिस, जिहां वो मन ला हरेक घर महिना मं कम से कम चार बेर कोविड ले जुरे सर्वे करे जाय ला होवत रहिस. वो मन ला ये सब्बो कुछु सुरच्छा के भारी कमती इंतजाम के संग करे ला परत रहिस.

महामारी ले बनेच पहिली 2018 मं बिहार मं 93, 687 के संख्या वाले, भारत मं आशा कार्यकर्ता मन के दूसर सबले बड़े मंडली ह बढ़िया तनखा के मांग करत भारी पैमाना मं हड़ताल करे रहिन. केंद्र अऊ राज सरकार के तरफ ले कतको आस्वासन मिले के बाद वो मन हड़ताल ले लहूंटगे रहिन. फेर ओकर बाद कुछु नई होईस.

दरभंगा के आशा कार्यकर्त्ता, मीना देवी कहिथें, 'तुमन ले कुछु लुकाय नई ये के हमन ला काम के बदला मं कतक कम तनखा देय जाथे. गर हमन वो मन के (जेकर घर मं कऊनो लइका के जनम होथे) डहर ले राजी-ख़ुशी देय पइसा ला नई लेबो, त फेर तुमन बतावव, हमर गुजर बसर कइसने होही?’

ये बछर मार्च महिना मं आशा संयुक्त संघर्ष मोर्चा के अगुवई मं वो मन फिर हड़ताल मं चले गीन  ये बेर वो मन के नारा रहिस: “एक हजार मं दम नई, इक्कीस हजार महिना मानदेय ले कम नई.” वो मन आशा कार्यकर्ता ला सरकारी करमचारी के दर्जा देय के  मांग घलो करिन. ये बखत, बिहार मं आशा कार्यकर्ता के महिना भर के सबले जियादा अउसत कमई 3000 रूपिया हवय अऊ वो कमई घलो वो मन के डहर ले करे जम्मो काम मन के बदले मिले अस्थिर मानदेय ले होथे.

वो मन जब घलो हड़ताल मं जाथें, हरेक बेर सरकार वो मन ला भरोसा देवत जान परथे अऊ फेर अपन वायदा ले मुकर जाथे. अज घलो वो मन ला सरकारी नऊकरी जइसने तनखा, पेंशन धन दीगर रोजगार भत्ता जइसने कुछु नई मिलय. अइसने मं आशा कार्यकर्ता धन आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के गुजर बसर करे अऊ काम करे ह भारी मुस्किल हो जाथे.

दरभंगा के आशा कार्यकर्त्ता, मीना देवी कहिथें, "तुमन ले कुछु लुकाय नई ये के हमन ला काम के बदला मं कतक कम तनखा देय जाथे. गर हमन वो मन के (जेकर घर मं कऊनो लइका के जनम होथे) डहर ले राजी ख़ुशी देय पइसा ला नई लेबो, त फेर तुमन बतावव, हमर गुजर बसर कइसने होही? हमन कभू येकर बर ककरो ऊपर दुवाब नई बनावन अऊ न त कऊनो तय रकम नई मांगन. वो लोगन मन जऊन कुछु राजी-ख़ुशी दे देथें, हमर सेती ओतका बनेच हवय, फेर वो ह लइका के जनम बखत होय धन जनम प्रमाण पत्र बनवाय बखत.”

अऊ ये सब्बो वो मन के धन वो मन जइसने अऊ कुछेक लोगन के मामला मं सही हो सकथे, फेर देश भर मं लाखों आशा कार्यकर्ता हवंय, जऊन मन अइसने मामला मन ले दुरिहा रहिथें. फेर मधुबनी अऊ बिहार के कुछु अऊ हिस्सा के मामला मं भारी गरीब माईलोगन ऊपर गुजरे येकर ले ठीक उलट आय, जऊन मन ले भेंट होय ले जबरन पइसा वसूले के बात बहिर आथे.

मनोज के दाई-ददा, मनोज अऊ ओकर घरवाली के संगे संग ओकर तीन झिन लइका – 10 बछर के अंजली,  8 बछर के रानी अऊ 5 बछर के सोनाक्षी के संग रहत रहिन. फेर ओकर दाई-ददा अब ये दुनिया मं नई यें. वो मन के चऊथा लइका अऊ इकलौता बेटा (जऊन ह अब ढाई बछर के हवय) के जनम वो मन के गुजरे के बाद होय रहिस. पूनम कहिथे, “मोर सास ला कैंसर रहिस. फेर मोला पता नई के का के रहिस. वो ह करीबन 4-5 बछर पहिली गुजर गे. ओकर बाद, 3 बछर पहिली मोर ससुर के गुजरे के बाद ले बस हमन 6 झिन परानी हवन. वो मन ला हमेशा पोता के चाह रहिस, भगवान करे रतिस, वो हा मोर राज ला देखे सके रतिन.”

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मोर तीसर लइका के जनम के बाद जब आशा ह मोला पइसा मांगिस, मोला तब जाके पता चलिस के जनम प्रमाण पत्र नांव के घलो कऊनो चीज होथे

पूनम ह सिरिफ छठवीं तक ले पढ़े हवय अऊ ओकर घरवाला 10 वीं तक ले. पूनम बताथे, “देखव, सुरु सुरु मं त मोला जनम पतरी (जन्म प्रमाण पत्र) के बारे मं कुछु पताच नई रहिस. मोर तीसर लइका के जनम के बाद जब आशा ह मोला पइसा मांगिस, मोला तब जेक पता चलिस के जनम प्रमाण पत्र नांव के कऊनो चीज होथे. जिहां तक ले मोला सुरता हवय, वो ह मोर ले 300 रूपिया मांगे रहिस. मोला लगे रहिस के ये ह फीस आय. फेर मोर घरवाला ह मोला बताइस के हमन ला प्रमाण पत्र सेती कऊनो ला पइसा देय के जरूरत नई ये. अस्पताल ले ये ह मुफत मं पाय हमर हक आय.”

पूनम बताथे, “कहलकई अढ़ाई सौ रुपया दियाउ तौ हम जनम पत्री बनवा देब (वो ह कहिस के गर मंय वोला 250 रूपिया देहूं, त वो ह जनम प्रमाण पत्र बनवाके दे दिही.) हमन अपन बेटा सेती ये बनवा लेन काबर वो ह दाम ला 50 रूपिया कम कर देय रहिस. फेर हमन 750 रूपिया खरचा नई करे सकेन जऊन ला वो हा हमर बेटी मन के सेती जनम प्रमाण पत्र बनवाय के बदला मं मांगे रहिस.”

पूनम जन्म प्रमाणपत्र बनवाय के तरीका के बात करत कहिथे, “गर हमन खुदेच बनवाय के कोसिस करन, त हमन ला ओकर सेती बेनीपट्टी अस्पताल (ब्लॉक हेडक्वार्टर) जाय ला परही. उहाँ, हमन ला सफाई वाली ला कुछू पइसा देय ला परही. त दूनो तरीका ले पइसा खरचा होइच ला हवय, चाहे हमन इह आशा ला देवन धन बेनीपट्टी तक जावन. फेर हमन टार देन. आगू कभू ये प्रमाणपत्र के जरूरत परही, त तब के तब देख लेबो. मोर घरवाला भारी मिहनत के बाद ले मुस्किल ले रोजी मं 200 रूपिया कमा पाथें. हमन वो ला बनवाय मं एक बेर मं ओतका खरचा कइसने कर सकथन, जतक ओकर चार दिन के कमई होही?”

शांति ये मं अपन बात ला जोड़त कहिथे, “मोर त एक पईंत ‘आशा’ ले बहस घलो हो गे रहिस. मंय त ओला सफ्फा सफ्फा कहि देंव के गर हमन ला येकर बर पइसा देय ला परही, त हमन प्रमाण पत्र बनवावन घलो नईं.”

वो बखत तक पूनम के जियादातर परोसी मन गांव के तीर हफ्ता मं लगेइय्या हाट मं जाय सेती निकरे ला धरे रहिन के अंधेल होय ले पहिली उहाँ हबर सकें. हाट जाय के सवाल मं पूनम कहिथे, “ मंय सोनाक्षी के ददा (पूनम, मनोज ला अइसने कहिके बलाथे) ला अगोरत हवंव, हमन घलो जाके थोकन साग-भाजी धन मछरी बिसोय सकन. मंय तीन दिन ले सरलग दार-भात रांधत हवंव. सोनाक्षी ला रोहू (मछरी) के सुवाद भारी पसंद हवय.”

लहुंटत ये जरुर लागथे के उहाँ बेटी मन के जनम प्रमाण पत्र ले जियादा महत्तम अऊ तुरते जरूरी चीज मन ला करे ला हवय.

पारी अऊ काउंटरमीडिया ट्रस्ट के तरफ ले भारत के गाँव देहात के किशोरी अऊ जवान माइलोगन मन ला धियान रखके करे ये रिपोर्टिंग ह राष्ट्रव्यापी प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' डहर ले समर्थित पहल के हिस्सा आय जेकर ले आम मइनखे के बात अऊ ओकर अनुभव ले ये महत्तम फेर कोंटा मं राख देय गेय समाज का हालत के पता लग सकय.

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जिज्ञासा मिश्रा ठाकुर फैमिली फाउंडेशन ले स्वतंत्र पत्रकारिता अनुदान के माध्यम ले सार्वजनिक स्वास्थ्य अऊ नागरिक स्वतंत्रता ऊपर लिखथें.ठाकुर फैमिली फाउंडेशन ह ये  रिपोर्ताज के बिसय मं कऊनो संपादकीय नियंत्रण नई करे हवय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Jigyasa Mishra

ஜிக்யாசா மிஸ்ரா பொதுச் சுகாதாரம் மற்றும் சமூக விடுதலை பற்றி தாகூர் குடும்ப அறக்கட்டளையின் மானியம் கொண்டு சேகரிக்கும் பணியைச் செய்கிறார். இந்த கட்டுரையை பொறுத்தவரை எந்தவித கட்டுப்பாட்டையும் தாகூர் குடும்ப அறக்கட்டளை கொண்டிருக்கவில்லை.

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ஜிக்யாசா மிஸ்ரா பொதுச் சுகாதாரம் மற்றும் சமூக விடுதலை பற்றி தாகூர் குடும்ப அறக்கட்டளையின் மானியம் கொண்டு சேகரிக்கும் பணியைச் செய்கிறார். இந்த கட்டுரையை பொறுத்தவரை எந்தவித கட்டுப்பாட்டையும் தாகூர் குடும்ப அறக்கட்டளை கொண்டிருக்கவில்லை.

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பி. சாய்நாத், பாரியின் நிறுவனர் ஆவார். பல்லாண்டுகளாக கிராமப்புற செய்தியாளராக இருக்கும் அவர், ’Everybody Loves a Good Drought' மற்றும் 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom' ஆகிய புத்தகங்களை எழுதியிருக்கிறார்.

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Series Editor : Sharmila Joshi

ஷர்மிளா ஜோஷி, PARI-ன் முன்னாள் நிர்வாக ஆசிரியர் மற்றும் எழுத்தாளர். அவ்வப்போது கற்பிக்கும் பணியும் செய்கிறார்.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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