"जइसहीं राजधानी जी-20 शिखर सम्मेलन में दुनिया भर से आवे वाला नेता लोग के स्वागत खातिर जगमगाए लागल, दिल्ली में हाशिया पर रहे वाला लोग के दुनिया अन्हार हो गइल. पहिले विस्थापित किसान, आउर अब यमुना बाढ़ शरणार्थी लोग के त पहिलहीं इलाका से दूर रहे के कहल गइल रहे. अब ओह लोग के गीता कॉलोन फ्लाईओवर के नीचे के झुग्गी से हटा के नदी किनारे के जंगली इलाका में भेज देहल गइल बा. ऊ लोग के प्रशासन अगिला तीन दिन ले उहंई लुकाए के सख्त आदेश देले बा.
हीरालाल पारी से बतइले, "हमनी में से कुछ लोग के पुलिस जबरिया हटा देले बा. चेतावल गइल कि 15 मिनट में इहंवा से फुट ल, ना त पुलिस आउर ताकत से हटावल जाई."
जंगली इलाका में ऊंच-ऊंच घास में सांप, बिच्छू जइसन बहुते खतरनाक जीव-जंतु सभ लुकाइल बा. एक समय के संपन्न किसान इशारा से कहले, "हमार परिवार के बिना बिजला आउर पानी के रहे के पड़त बा. कहूं केहू के सांप चाहे बिच्छू काट लेलक, त इहंवा इलाजो के कवनो सुविधा नइखे."
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हीरालाल रसोई गैस के सिलिंडर लावे घर के भीतरी भगलन. दिल्ली के राजघाट लगे बेला एस्टेट में जब उनकर घर में करियर-करियर पानी घुसे लागल त ऊ कवनो जोखिम उठावे के ना चहलन.
ऊ 12 जुलाई, 2023 के रात रहे. बहुते दिन से मूसलाधार बरखा पड़े से यमुना नदी में उफान आ गइल रहे. दिल्ली में नदी किनारे रहे वाला हीरालाल जइसन लोग के सोचे के भी बखत ना मिलल.
मयूर विहार के यमुना पुश्ता इलाका के रहे वाली 60 बरिस के चमेली (जे गीता के नाम से जानल जाली) बाढ़ के पानी घर में घुसत देखली, त जल्दी से पड़ोसी के एक महीना के छोट लइकी रिंकी के गोदी में उठा के भगली. एह बीच लोग डरल बकरी आउर घबराइल कुकुर के कान्हा पर उठवले उहंवा से निकलत रहे. ओह में से केतना त रस्ते में बह गइल. एह से पहिले कि ऊ लोग घर के बरतन आउर कपड़ा बटोर के निकले, पानी सभ कुछ लील गइल.
“भोरे ले पूरा इलाका पानी में डूब गइल. उहंवा से निकले खातिर प्रशासन ओरी से नाव के भी इंतजाम ना रहे.” बेला एस्टेट में हीरालाल के पड़ोस में रहे वाली 55 बरिस के शांति देवी बतइली, लोग फ्लाईओवर ओरी, सूखल जमीन ओरी भागल. “गंदा पानी में सांप चाहे दोसर जनावर हो सकत बा, जे अन्हार में देखाई ना देवे. एहि से हमनी के सबले पहिले आपन बच्चा लोग के जान बचावे के चिंता रहे.”
शांति देवी पानी में बच्चा लोग के स्कूल के किताब आउर घर के राशन बहत असहाय देखत रह गइली. “हमनी के 25 किलो गेहूं आउर कपड़ा-लत्ता सभ दहा (बह) गइल…”
कुछ हफ्ता बाद, गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे बनावल झोंपड़ी (अस्थायी आवास) में रहे वाला विस्थापित लोग से पारी बात कइलक. “प्रशासन ने समय से पहले जगह खाली करने की चेतावनी नहीं दी थी. कपड़े पहले से बांध के रखे थे, गोद में उठा-उठा के बकरियां निकालीं… हमने नाव भी मांगी जानवरों को बचाने के लिए. पर कुछ नहीं मिला (प्रशासन बखत से पहिले उहंवा से निकले के कवनो चेतावनी ना देलक. कपड़ा-लत्ता सभ पहिले से बांध के रखल रहे. बकरियन के गोदी में उठा-उठे के निकाले के पड़ल… हमनी जनावर सभ के बचावे खातिर नाव भी मांगले रहीं, बाकिर कुछुओ मदद ना मिलल),” अगस्त के सुरु में हीरालाल हमनी से बतवे रहस.
हीरालाल आउर शांति देवी के परिवार के गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे रहत अब कोई दू महीना हो जाई. फ्लाईओवर के नीचे रात में एगो बल्ब जरावे खातिर ऊ लोग स्ट्रीटलाइट से बिजली लेवे के मजबूर बा. हीरालाल दिन में दू बेरा 4 से 5 किमी दूर दरियागंज में कवनो सरकारी नल से पिए के पानी लावेलन. उनका 20 लीटर पानी के बोतल साइकिल पर ढो के लावे के पड़ेला.
जिनगी फेरु से सुरु करे खातिर ओह लोग के सरकार ओरी से कवनो मुआवजा ना मिलल हवे. यमुना के किनारे कबो गर्व से खेती करे वाला किसान, हीरालाल अब इमारत, सड़क बनावे के काम करेलन. उनकर पड़ोसी, शांति देवी के घरवाला, 58 बरिस के रमेश निषाद पहिले किसान रहस. अब ऊ भीड़-भाड़ वाला रोड पर कचउड़ी बेचे के लमहर कतार में ठाड़ काम करेलन.
बाकिर कमाई के इहो जरिया, जे उनकरा केतना मुस्किल से मिलल रहे, जी20 शिखर सम्मेलन के मेजबानी में लागल सरकार आउर दिल्ली चलते घोर संकट में आ गइल बा. खोमचा वाला, ठेला वाला के अगिला दू महीना ले ओह जगह खाली करे के फरमान मिलल बा. “इहंवा देखाई मत दीह,” अधिकारी लोग इहे कहेला. “हमनी खाएम कहंवा से?” शांति पूछतारी. “दुनिया के देखावे खातिर रउआ आपन लोग के रोजी-रोटी आउर घर छीन रहल रहल बानी.”
दिल्ली सरकार 16 जुलाई के, बाढ़ से प्रभावित परिवार के 10,000 रुपइया के देवे के ऐलान कइले रहे. एतना छोट रकम सुनके, हारीलाल तनी देर खातिर सन्न रह गइले. “ई कइसन मुआवजा बा? ई पइसा कवना आधार पर तय कइल गइल बा? का हमनी के जिनगी के कीमत दसे हजार रुपइया बा? हमनी के त एगो बकरिए के दाम 8,000-10,000 रुपइया होखी. आउर झोंपड़ी बनावे खातिर त 20,000 से 25,000 रुपइया खरचा होखेला.”
इहंवा रहे वाला जे लोग बाढ़ में आपन खेत से हाथ धो बइठल, अब मजदूरी (दिहाड़ी मजूरी) कर रहल बा. केहू रिक्शा खींच रहल बा, त केहू घरेलू सहायक के काम खोज रहल बा. ऊ लोग के सवाल बा, “केकरा केतना नुकसान भइल, जाने खातिर जांच-पड़ताल कइल गइल रहे?”
छव हफ्ता बाद पानी त उतर गइल बाकिर अबले मुआवजा केहू के ना मिलल. इहंवा रहे वाला लोग के शिकायत बा कि मुआवजा खातिर जरूरत से जादे कागजी कार्रवाई कइल जाला आउर एकर प्रक्रिया भी जटिल बा. “पहिले त ऊ लोग आधार कार्ड, बैंक के कागज, फोटो मांगी, फेरु राशन कार्ड लावे के कही…,” कमल लाल कहले. उनकरा इहो नइखे पता कि एह मानव निर्मित आपदा के शिकार 150 परिवार के मुआवजा मिली भी कि ना, जेकरा टालल जा सकत रहे.
सरकारी योजना सभ चलते जे 700 परिवार के खेती के जमीन ले लेहल गइल, ऊ लोग राहत खातिर जे भी प्रयास कइलक, कवनो मंजिल तक ना पहुंचल. ओह लोग के बेदखल कर देवे के मंशा रखे वाला अधिकारी लोग संगे ओह लोग के खींचतान चलिए रहल बा. विकास होखे, विस्थापन होखे, आपदा चाहे कुछुओ आउर, एकरा से प्रभावित किसाने लोग होखेला. कमल बेला एस्टेट मजदूर बस्ती समिति समूह में बाड़न, जे राहत खातिर अपील कर रहल बा. पसीना पोछत, 37 बरिस के कमल कहले, बाकिर, “बाढ़ आवे से हमनी के विरोध प्रदर्शन रुक गइल.”
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दिल्ली 45 बरिस बाद फेरु से डूबल बा. साल 1978 में यमुना के पानी आपन आधिकारिक सुरक्षा स्तर से 1.8 मीटर जादे, यानी 207.5 मीटर हो गइल रहे. आउर अबकी एह जुलाई में अभी तक के सबले ऊंच स्तर, 208.5 मीटर के सीमा पार कर गइल. हरियाणा आउर उत्तर प्रदेश के बैराज समय पर ना खोलल गइल, एहि से पानी बढ़त चल गइल आउर दिल्ली में नदी में उफान आ गइल. नतीजा, लोग के जान, घर आउर रोजी-रोटी दांव पर लाग गइल. फसल आउर दोसर जल निकाय के भी बहुते नुकसान झेले के पड़ल.
साल 1978 में जे बाढ़ आइल रहे, अनुमान बा कि ओह में दिल्ली सरकार के सिंचाई आ बाढ़ नियंत्रण विभाग के हिसाब से, ‘10 करोड़ रुपइया के नुकसान, 18 मौत आउर हजारों लोग बेघर हो गइल रहे, ’
एगो जनहित याचिका में दावा कइल गइल कि एह बरिस जुलाई में कइएक दिन बरखा होखे से आइल बाढ़ से 25,000 लोग सीधा चाहे अप्रत्यक्ष तरीका से प्रभावित भइल. यमुना नदी परियोजना : नई दिल्ली शहरी पारिस्थितिकी के हिसाब से, बाढ़ वाला इलाका में लगातार अतिक्रमण के गंभीर नतीजा हो सकेला,“... बाढ़ क्षेत्र के निचला इलाका में बनल इमारत, घर सभ खत्म हो जाई आउर पूर्वी दिल्ली पानी में डूब जाई.”
यमुना किनारे लगभग 24,000 एकड़ के क्षेत्र में खेती कइल जाला. इहंवा किसान लोग एक सदी से भी जादे समय से खेती करत आइल बा. बाकिर डूब क्षेत्र में मंदिर, मेट्रो स्टेशन, राष्ट्रमंडल खेल गांव (सीडब्ल्यूजी) बने से बाढ़ के पानी खातिर जमीन बहुते कम पड़त चल गइल बा. पढ़ीं: बड़ शहर, छोट किसान, आउर मरत नदी
“हमनी चाहे कुछो करीं, कुदरत आपन रस्ता खोज लेवेला. पहिले बरसात आउर बाढ़ में पानी फइल जात रहे. आउर अब जगह (बाढ़ के मैदान) में कमी होखे से पानी के स्तर ऊंच हो जात बा. एकरे चलते हमनी बरबाद हो गइनी,” बेला एस्टेट के कमल कहले. बेला एस्टेट के लोग 2023 के बाढ़ के कीमत चुका रहल बा. “साफ करनी थी यमुना, लेकिन हमें ही साफ कर दिया (ऊ लोग के यमुना नदी के सफाई करे के रहे बाकिर एकरा बदले हमनिए के साफ कर देहल गइल)!”
“यमुना के किनारे विकास नहीं करना चाहिए. ये डूब क्षेत्र घोषित है. सीडब्ल्यूजी, अक्षरधाम, मेट्रो- ये सब प्रकृति के साथ खिलवाड़ है. प्रकृति को जितनी जगह चाहिए, वो तो लेगी. पहले पानी फैल के जाता था, आउर अब क्योंकि जगह कम हे, तो उठ के जा रहा है, जिसकी वजह से नुकसान हमें हुआ है (यमुना किनारे बिकास ना होखे के चाहीं. एकरा डूब क्षेत्र घोषित कइल गइल बा. सीडब्ल्यूजी, अक्षरधाम, मेट्रो ई सभ कुदरत संगे खिलवाड़ बा. कुदरत के जेतना जगह चाहीं, ऊ त लेबे करी. पहिले पानी फइल के जात रहे, आउर अब चूंकि जगह कम हो गइल बा, त उठ के जा रहल बा. एकर वजह से नुकसान हमनी के भइल ह).” कमल कहले.
“दिल्ली को किसने डुबाया (दिल्ली के के डुबइलक)? दिल्ली सरकार के सिंचाई आ बाढ़ नियंत्रण विभाग के हर बरिस 15-25 जून के बीच कवनो परिस्थिति के सामना करे खातिर तइयार रहे के होखेला. ऊ लोग अबकी समय पर बैरक गेट खोलले रहित त पानी एह तरीका से ना बढ़ल रहित. पानी न्याय मांगने सुप्रीम कोर्ट गया (पानी न्याय मांगे उच्च न्यायालय पहुंचल),” राजेंदर सिंह कहले. ऊ मजाक ना करत रहस.
अलवर के पर्यावरणविद बतइलन कि, “ई कवनो कुदरती आपदा ना रहे. अनियमित बरसात पहिले भी भइल बा.” ऊ ई बात 24 जुलाई 2023 के आयोजित एगो सार्वजनिक चर्चा, ‘दिल्ली के बाढ़: अतिक्रमण कि अधिकार?’ में बोलत रहस. एकर आयोजन दिल्ली में यमुना संसद कइले रहे. यमुना संसद, यमुना के प्रदूषण से बचावे के एगो पहल बा.
चरचा के दौरान डॉ. अश्वनी के. गोसाईं कहले, “एह बरिस यमुना संगे जे भइल, ओह खातिर जिम्मेदार लोग के कड़ा से कड़ा सजा देवे के चाहीं.” उहां के साल 2018 के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति के खास सदस्य रहनी.
“पानी में वेग भी होखेला. बिना तटबंध के पानी कहंवा जाई?” गोसाईं पूछले. उहां के बैराज के बजाय जलाशय बनावे के वकालत करेनी. भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग के एगो सेवामुक्त प्रोफेसर के हिसाब से 1,500 अनाधिकृत कॉलोनी के संगे-संगे सड़क पर पानी के निकास खातिर बनल नाला नदारद होखे के चलते पानी अंदर आ जाएला आउर “इहे तबाही के कारण बनेला.”
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बेला स्टेट के किसान लोग के जिनगी पहिलहीं से जलवायु में बदलाव आवे से अधर में लटकल बा. एह चलते ओह लोग के खेती-बारी चौपट हो रहल बा, पुनर्वास के सुविधा नइखे आउर ओह लोग पर बेदखल होखे के आशंका भी मंडरात रहेला. पढ़ीं: ‘राजधानी में किसान लोग संगे अइसन सलूक होखेला’ . हाल में आइल बाढ़ एगो आउर आफत बा.
आपन मेहरारू आउर 17 आ 15 बरिस के दु गो लरिकन संगे झोंपड़ी में रहे वाला हीरालाल बतावत बाड़न, “चार से पांच लोग के परिवार खातिर जदि 10 x 10 के झुग्गी बनावल जाव त 20,000 से 25,000 रुपइया के खरचा बइठी. पानी से बचावे वाला पिलास्टिक के चद्दरे खाली 2,000 के आवेला. घर बनावे खातिर जदि मजदूर बोलावल जाव, त हमनी के रोज के 500-700 रुपइया देवे के पड़ी. जदि ई काम खुद करीं त दिहाड़ी के नुकसान होखी.” एगो बांस के खंभा के दाम भी 300 रुपइया पड़ेला. उनकरा हिसाब से एगो घर बनावे में अइसन 20 गो बांस लागेला. विस्थापित परिवार के इहो ठीक से नइखे पता कि ओह लोग के नुकसान के भरपाई के करी.
अब ऊ लोग के नया सिरा से पशुधन जोड़े में पइसा खरचा होई. ओह में से बहुते जनावर बाढ़ में बह गइल. ऊ बतइले, “एगो भइंस के दाम 70,000 से जादे पड़ेला. खूब नीमन से खियावे-पियावे के पड़ेला तब जाके ऊ दूध देवेला. बकरी के दूध से घर में रोज चाय बनेला आउर बच्चा लोग के पियावल जाला. एकरो खरीदे में 8,000 से 10,000 रुपइया लाग जाला.”
उनकर पड़ोसन, शांति देवी पारी से बात कइली. ऊ बतइली कि उनकर घरवाला यमुना के किनारे एगो किसान आउर खेतमालिक के पहचान के जे लड़ाई लड़त, हार गइलन. अब ऊ साइकिल पर कचौड़ी बेचेलन. बाकिर एकरा से उनकरा मुस्किल से रोज के 200-300 रुपइया के कमाई होखेला. “पुलिस हर साइकिल वाला से महीना के 1,500 रुपइया वसूल करेला. अब चाहे रउआ उहंवा तीन दिन खातिर ठाड़ रहीं, चाहे 30 दिन खातिर,” ऊ कहली.
बाढ़ के पानी त कम हो गइल, बाकिर दोसर खतरा मंडराए लागल बा. मलेरिया, डेंगू, हैजा, टाइफाइड जइसन प्रदूषित पानी से होखे वाला बेमारी तेजी से फइल रहल बा. राहत शिविर बनला के बाद से आई फ्लू के रोज के 100 ठो मामला देखे में आवत बा. हालांकि ओकरा बाद से शिविर हटा देहल गइल. हमनी जब हीरालाल से भेंट कइनी, उनकर आंख लाल होखत रहे. ऊ कइसनो करके धूप के एक जोड़ी महंग चश्मा के इंतजाम कर लेले रहस. “एकर दाम 50 रुपइया बा, बाकिर जादे मांग चलते 200 रुपइया के बिकात बा.”
मुआवजा के बाट जोहत परिवार के ओरी से बोलत ऊ तनी व्यंग्य से मुस्कइले आउर कहले, “कहानी नया नइखे. दोसर के मुसीबत के दुनिया हरमेसा फायदा उठावेला.”
कहानी 9 सितंबर, 2023 के अपडेट भइल बा.
अनुवाद: स्वर्ण कांता