श्रीरंगम लगे कोल्लिडम नदिया तीरे सांझ उतर आइल रहे. आपन तिल के खेत से 10 मिनिट के पैदल दूरी पर नदिया किनारे बालू पर बइठ के वडिवेलन आपन जिनगी के कहानी सुनावे लगलन. ओह नदी के कहानी सुनावे लगलन, जवना में 1978 में उनकर जनम के 12 दिन बाद बाढ़ आ गइल रहे. ई कहानी बा ओह गांव के, जहंवा सभे लोग आपन खेत में तिल उगावत रहे. कहानी बा, तिल के कटाई के बाद पेड़ाई आउर ओकरा बाद ओह में से शहद जेका रंग के खुशबू वाला तेल निकले के. ‘पानी में केला के दू गो पत्ता पकड़ के’ तइरल सीखे के कहानी, कावेरी किनारे रहे वाला प्रिया संगे जुड़े वाला नेह के कहानी, बाऊजी के आपत्ति के बावजूद उनकरे से बियाह करे के कहानी. आउर आपन डेढ़ एकड़ के खेत पर धान, ऊंख, उड़द आउर तिल उगावे के कहानी...
पहिल तीन फसल भइल, त कुछ पइसा घर में आइल. वडिवेलन बतइलन, “धान उगावे से जे पइसा मिले, हमनी ओकरा ऊंख के खेती में लगा दीहीं. एकरा से जे पइसा आवे ऊ फेरु खेतिए में लगा देवल जाए.” तिल, तमिल में एल्लु , के खेती तेल खातिर कइल जाला. तिल के पहिले लकड़ी के बरतन में पेड़ल जाला. एकरा से निकले वाला नल्लेनई (तिल के तेल) के बड़ बरतन में जमा कइल जाला. प्रिया कहली, “तिल के तेल हमनी के घर में खाना पकावे आउर अचार बनावे के काम आवेला. हां, आउर ई रोज एकरा से गरारा भी करेलन.” वडिवेलन के हंसी आ गइल. ऊ कहले, “आउर तेल स्नान भी. हमरा बहुते नीमन लागेला!”
वडिवेलन के आउर भी बहुत कुछ पसंद बा. ऊ सभ सादा चीज बा. लरिकाई में आपन यार-दोसत संगे मछरी पकड़नाई, ओकरा पका के खनाई, पंचायत मुखिया के घर गांव के एकमात्र टीवी देखनाई. “पता ना, हमरा टीवी एतना नीमन काहे लागत रहे. ऊ ठीक से काम ना करे, त ओकरा से आवे वाला फालतू आवाज भी हम ध्यान से सुनत रहीं.”
जइस-जइसे दिन उतरत गइल, पुरनका दिनन के इयादो धुंधला पड़त गइल. वडिवेलन के कहनाम रहे, “खाली खेती करे से आजकल काम ना चले. हम कैब चलावे के भी काम करेनी. एकरा से काम चल जाला.” ऊ हमनी के आपन टोयोटा एटियोस कार में, श्रीरंगम तालुक के तिरुवलरसोलई स्थित आपन घर से नदी किनारे ले अइलन. ऊ कार आठ टका (प्रतिशत) ब्याज पर कवनो प्राइवेट लोन पर कीनले रहस. हर महीना उनकरा 25,000 के भारी किस्त देवे के होखेला. दुनो मरद-मेहरारू के बीच पइसा खातिर हरमेसा झगड़ा होत रहेला. कबो-कबो किस्त चुकावे खातिर पइसा ना होखे, त सोना के कवनो चीज बेचे के पड़ेला. वडिवेलन ठंडा सांस लेवत कहले, “देखीं, हमनी जइसन आदमी जदि घर बनावे खातिर बैंक से करजा लीही, त हमनी के 10 गो चप्पल घिसा जाई. ऊ लोग हमनी के एतना दउड़ावेला!”
आसमान कवनो पेंटिंग जेका लागत रहे: गुलाबी, बुल्लू आउर मटमैला रंग के पेंटिंग. दूर कहीं से एगो मोर के आवाज आइल. वडिवेलन कहले, “नदी में ऊदबिलाव सभ बा.” हमनी से तनिए दूर पर छोट बच्चा लोग के झुंड पानी में डुबकी लगावत रहे आउर ऊदबिलाव जेका फुरती में खेलत रहे. “हमनियो छोट में इहे खेल खेलत रहीं. इहंवा मन लगावे खातिर आउर कुछो नइखे!”
वेडिवेलन भी नदी के पूजा करेलन. “हर साल, आदि पेरुक्कु- तमिल महीना आडि के अट्ठारहवां दिन- हमनी सभे कोई कावेरी किनारे पूजा करे जाइला. उहंवा नरियर फोड़ल जाला, अगरबत्ती जरा के आउर फूल चढ़ा के प्रार्थना होखेला.” बदला में कावेरी आ कोल्लिडम (कोलेरून) नदी, तमिलनाडु के तिरुचिरपल्ली (जेकरा तिरुचि भी कहल जाला) में सभे के खेत सींचेली. नदी 2,000 बरिस से सबके मंगल करत आइल बाड़ी.
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“पकावल दाल, तिल के लड्डू, मास-भात,
फूल, खुशबू वाला ताजा पकावल भात
मेहरारू लोग हाथ में उठइले बा आउर मस्ती में नाचत बा
बूढ़ मेहरारू लोग आशीर्वाद देवेला, मंत्र जपेला
हमनी के राजा के एह महान धरती
भूख, रोग आउर नफरत से दूर रहे,
बरखा आउर धन-दौलत खूब बरसे”
चेन्तिल नाथन आपन ब्लॉग- पुरान तमिल कविता (कविता: इंदिरा विडवु, पंक्ति 68-75), में लिखत बाड़न- दोसरका सदी सीई में लिखल आउर तमिल महाकाव्य सिलप्पतिकारम से लेहल गइल ई प्रार्थना आउर अनुष्ठान, “आजो तमिलनाडु में उहे रूप में मनावल जाला.”
एल्लु (तिल) पुरान आउर आम दुनो बा. आउर एगो अइसन फसल, जेकर बहुत तरह के- आउर दिलचस्प उपयोग बा. नल्लेनई , जइसन कि तिल के तेल के कहल जाला, दक्खिन भारत में खाना बनावे के पसंदीदा तेल बा. तिल के बिया यानी तिल के उपयोग कइएक तरह के बिदेशी आउर भारतीय मिठाई में कइल जाला. काला तिल, चाहे उज्जर तिल व्यंजन के स्वाद बढ़ा देवेला. एकरा अलावे तिल पूजा-अनुष्ठान के जरूरी हिस्सा बा, खासकरे पुरखा लोग के पूजा में.
तिल में तेल 50 प्रतिशत, प्रोटीन 25 आउर कार्बोहाइड्रेट 15 प्रतिशत होखेला. तिल आ रामतिल (नाइजर बीज) पर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एगो प्रोजेक्ट में पाइल गइल कि दुनो तिलहन ऊर्जा के भारी भंडार हवे. एह में विटामिन ई, ए, बी कॉम्पलेक्स आउर कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, तांबा, मैग्नीशियम जइसन खनिज भरपूर बा. एहि से, कवनो अचरज नइखे कि, तेल पेड़इला के बाद जे गुदा- एल्लु पुनाकु , बचेला ओकरा मवेशी सभ के चारा के रूप में इस्तेमाल कइल जाला.
तिल (सेसमम इंडिकम एल.) सबले पुरान स्वदेशी तिलहन बा. भारत में एकर खेती के लंबा इतिहास बा. आईसीएआर ओरी से प्रकाशित हैंडबुक ऑफ एग्रीकल्चर के हिसाब से, भारत दुनिया में तिल के सबले बड़ा उत्पादक बा. दुनिया भर के 24 प्रतिशत जमीन पर तिल उगावल जाला. इहो ध्यान देवे के बात बा कि दुनिया भर के कुल तिलहन क्षेत्र में भारत के हिस्सेदारी 12 से 15 प्रतिशत, उत्पादन में 7 से 8 प्रतिशत आउर वैश्विक खपत में 9 से 10 प्रतिशत बा.
ई कवनो नया जमाना के चीज नइखे. आपन बहुते अहम पुस्तक इंडियन फूड, ए हिस्टोरिकल कंपेनियन में के.टी. अचाया पुरान जमाना में एकर निर्यात के प्रमाण के बारे में जिकिर कइले बाड़न.
दक्खिन भारत के बंदरगाह से तिल के ब्यापार पहिल सदी से होखत रहे, एकर ऐतसाहिक प्रमाण उपलब्ध बा. यूनानी भाषी मिस्र के एगो अनजान नाव खेवइया के अनुभव पर आधारित किताब पेरीप्लस मारिस एरिथ्रेइए (सरकमनेविगेशन ऑफ दी एरिथ्रियन सी) में ओह घरिया के ब्यापार के वर्णन विस्तार से मिलेला. लिखल बा कि मौजूदा तमिलनाडु के पश्चिम भाग में कोंगुनाडु के तट से हाथी दांत आउर मलमल जइसन कीमती चीज सभ संगे तिल के तेल आउर सोना के धातु जइसन चीज सभ बाहिर भेजल जात रहे. दोसर चीज से तुलना कइला के बाद तिल के तेल के मोल आउर दाम समझल जा सकेला.
अचाया के हिसाब से ओह घरिया स्थानीय व्यापार भी होखत रहे, जे पूरा तरीका से समृद्ध रहे. मकुंडी मरुतनर के लिखल, मदुरईकांची किताब में मदुरई के वर्णन एगो ब्यापारिक केंद्र के रूप में कइल गइल बा: गोल मिरिच आ धान, ज्वार, बूट, मटर आउर तिल समेत सोलह तरह के खाद्यान्न से भरल बोरा के अनाज मंडी में ढेर लागल बा.’
तिल के तेल के सरकारी संरक्षण प्राप्त रहे. अचाया के किताब इंडियन फूड में पुर्तगाली ब्यापारी डोमिंगो पाएज के जिकिर मिलेला. पाएज के 1520 ईस्वी के आसपास विजयनगर साम्राज्य में बहुते दिन रहे के सौभाग्य मिलल रहे. राजा कृष्णदेवराय के बारे में पाएच लिखत बाड़न: “राजा एक पाइंट (डेढ़ पाव) के तीन-चौथाई मात्रा में तिल के तेल भोर में मुंह अऩ्हारे पियेलन, आउर समूचा देह में एकर मालिश करवावेलन. आपन कमर आउर चूतर के एगो छोट कपड़ा से ढांक के हाथ में भारी भारी वजन उठा के कसरत करेलन. देह में लागल तेल जबले पसीना संगे बह ना जाव, ऊ तलवारबाजी के अभ्यास करेलन.”
वडिवेलन के बाऊजी, पलनिवेल भी किताब में मौजूद एह जिकिर पर हामी भरतन. ऊ खेल-कूद प्रेमी रहस. “बाऊजी देह आउर सेहत के बहुते ख्याल रखत रहस. भारी पत्थर उठाके वर्जिश करस आउर नरियर के बगइचा में कुश्ती लड़े के सिखावस. उनकरा सिलंबम (संगम साहित्य में वर्णित तमिलनाडु के पुरान मार्शल आर्ट, युद्ध कला) भी बहुते अच्छा से आवत रहे.”
उनकर परिवार घर में या त नरियर के तेल, चाहे आपन खेत में उगावल तिल के तेल काम में लावत रहे. दुनो तेल बड़हन बरतन में रखल रहत रहे. “हमरा ई बात बखूबी इयाद बा कि बाऊजी लगे राले साइकिल रहे. ऊ ओकरे पर उड़द के बोरी लाद के त्रिची, गांधी मैदान जास. आउर लउटे घरिया ओहि पर मरिचाई, सरसों, गोल मिरिच आउर इमली लेके आवस. ई तरीका के वस्तु विनिमय यानी चीज के बदला में चीज, प्रणाली कहल जाला. हमनी के चौका में सालो भर खाए के कमी ना होखत रहे.”
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वडिवेलन आउर प्रिया के बियाह 2005 में भइल. बियाह त्रिची लगे वयलूर मुरुगन मंदिर में भइल रहे. “बाऊजी बियाह में ना अइलन. ऊ एह सादी के खिलाफ रहस,” वडिवेलन बतइलन. “हद्द त तब भइल, जब गांव में मेहमान लोग के स्वागत करे खातिर जुटल हमार दोस्त के बाबूजी, हमार बाऊजी से पूछले कि ऊ चलिहन कि ना. एतना सुने के रहे कि बाऊजी एकदम आग बबूला हो गइलन!” वडिवेलन हंसत बतइलन.
हमनी वडिवेलन आउर प्रिया के घर के बैठकी में बइठल रहीं. ठीक बगल में एगो ताक पर देवी-देवता के मूरति आउर फोटो रहे. देवाल पर परिवार के सभे लोग के फोटो- सेल्फी, पोट्रेट, छुट्टी के फोटो लागल रहे. एक ओरी टीवी भी राखल रहे. प्रिया के फुरसत में मन बहलावे के इहे एगो साधन बा. हमनी घर पहुंचनी, तबले लरिका लोग स्कूल जा चुकल रहे. उनकर पालतू कुत्ता के एगो झलक देखाई पड़ल. वडिवेलन बतइलन, “ओकर नाम जूली हवे. बहुते प्यारा बा.” हम ओकर बड़ाई करत कहनी, “जूली बहुते प्यारी बाड़ी.” वडिवेलन ठहक्का लगा के हंसले, “ई मादा नइखे.” जूली मुंह बनाके लउट गइल.
प्रिया हमनी के खाना खाए खातिर बोलावे लगली. शानदार दावत के इंतजाम रहे. वडा संगे पायसम भी रहे. हमनी के केला के पत्ता पर खाना परोसल गइल. खाना बहुते स्वादिष्ट रहे. हमनी पेट भर के खइनी.
खइला के बाद देह भसियाए लागल. नींद ना आवे, एह डरे हमनी बतियावे लगनी. तिल के खेती करे के अनुभव कइसन रहल? “बहुते कठिन काम बा,” वडिवेलन कहले. उनका हिसाब से खेती के धंधा अइसने होखेला. “एह में नफा बहुत कम होखेला, जबकि लागत बढ़त जाला. दोसर खाद संगे यूरिया के भी भाव बढ़ल जात बा. एकरा अलावे हमनी के जुताई आउर बुआई भी करे के होखेला. एकरा खातिर क्यारी बनावल जाला. क्यारी में पउधा रोपे से, दू क्यारी के बीच में पानी बहुत रहेला. घाम उतरला के बादे पानी पटावे के होखेला.”
प्रिया बतइली कि पहिल बेर पानी तीन हफ्ता के आस-पास पटावल जाला. आपन हाथ के जमीन से नौ, चाहे दस इंची ऊपर रखत ऊ अंदाज देली कि तबले पउधा सभ एतना लमहर हो चुकल रहेला. “एकरा बाद ई बहुते जल्दी-जल्दी बढ़े लागेला. बीच-बीच में रउरा खर-पतवार भी साफ करे के पड़ेला. यूरिया डाले आउर हर दसमा रोज पानी पटावे के होखेला. घाम नीमन तरीका से मिली, त पैदावर नीमन होई.”
वडिवेलन के काम पर निकलला के बाद, प्रिया खेत के पहरा देवेली. उनकर डेढ़ एकड़ के खेत पर हर बखत कवनो दु गो फसल लागल रहेला. घर के काम निपटा के ऊ बच्चा सभ के स्कूल भेजेली आउर अपना खातिर टिफिन तइयार करके साइकिल से खेत पहुंचेली. उहंवा ऊ खेत में दोसर मजूर सभ संगे काम में हाथ बंटावेली. “मोटा-मोटी भोर के दस बजे हम सभे खातिर चाय मंगवावेनी. दिन में खाना भइला के कुछ घंटा बाद फेरु से चाय आउर पायसम (हल्का नस्ता) देवे के होखेला. जादे करके हम सूइयम (मीठ) आउर उरुलई बोंडा (नमकीन) के ब्यवस्था रखेनी.” ऊ एक के बाद एक, कवनो ना कवनो काम में लागल बाड़ी- कबो उठत बाड़ी, कबो बइठत बाड़ी, कुछ धरत बाड़ी, उठावत बाड़ी, झुकत बाड़ी, पकावत बाड़ी, सफाई करत बाड़ी... “रउआ तनी जूस लीहीं ना,” प्रिया, खेत से हमनी के निकले से पहिले आग्रह कइली.
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तिल चाहे एल्लु वयल के खेत देख के मन जुड़ा गइल. तिल के फूल बहुते कोमल आउर सुंदर लागेला, गहना जइसन. ई गुलाबी आउर उज्जर रंग के होखेला. एकरा देख के शिफॉन के लुगा आउर फ्रेंच मेनीक्योर के इयाद आवेला. दक्खिन भारतीय चौका (रसोई) के एगो जरूरी सामग्री, गाढ़ तेल जेका त ई कहूं से ना देखाई देवे.
तिल के पउधा तनी लमहर आउर पातर, पत्ता सभ गाढ़ हरियर रंग के रहेला. एकर एगो डाल में बादाम जेतना बड़ बहुते हरियर फली लागेला. देखे में इलायची जइसन रही. प्रिया हमनी के एगो फली खोल के देखावत बाड़ी. भीतरी मटमैला उज्जर रंग के तिल बा. कहल मुस्किल बा कि एक चम्मच तेल खातिर केतना फली के पेड़े के जरूरत होई. आउर एगो इडली पर लगावे खातिर काहे दू गो तिल के जरूरत पड़ेला, आउर इडली पोडी (सूख्खल चटनी) खातिर केतना जरूरत पड़ेला.
एकरा बारे में एकदम से अंदाज लगावल कठिन बा- अप्रिल के घाम कड़क हो गइल बा. हमनी लगे के बगइचा में तनी छांह देख के ठाड़ हो जात बानी. वडिवेलन बतावत बाड़न, “खेत में काम करे वाला मेहरारू लोग भी इहंई आके सुस्ताला.” एह में से जादे करके मेहरारू लोग पड़ोसी, गोपाल के उड़द के खेत में कमरतोड़ मिहनत करेला. इहंवा मजूर लोग माथ पर तउनी (तौलिया) के तनी भींजा के लपेट के रखेला. एकरा से दुपहरिया के जरा देवे वाला घाम से आराम मिलेला. ऊ लोग बिना रुकले लगातार काम करेला. खाली खाए आउर चाय पिए घरिया ही तनी देर खातिर सुस्ताए खातिर बइठेला.
एह में जादे करके उमिरगर मेहरारू लोग बा. ओह में से वी. मरियाई के उमिर सबले जादे, मोटा-मोटी सत्तर होई. ऊ खेत में खर-पतवार साफ ना कर रहत रहेली, चाहे बुआई-कटाई ना करेली, तब श्रीरंगम मंदिर में तुलसी के माला बेचेली. उनकर बोली बहुते मीठ बा. दोसरा ओरी, सुरुज देवता आग उलगलत बाड़न. बेदरदी जेका...
तिल के पउधा पर घाम के कवनो जादे असर ना पड़े. वडिवेलन के 65 बरिस के पड़ोसी एस. गोपाल के हिसाब से एकरा पर आउर कइएक दोसर चीज के भी असर ना पड़ेला. वडिवेलन आउर प्रिया लोग भी इहे मानले. तीनों किसान के बात में कीटनाशक आ स्प्रे के जिकिर ना के बराबर रहे, आउर ओह लोग के बात में पानी पटावे के कवनो चिंता भी शामिल ना रहे. तिल के खेती बहुते हद तक बाजरा जइसन होखेला- एकरा उगावल आसान बा. एह पर जादे ध्यान देवे के जरूरत ना पड़े. बाकिर बेमौसम बरसात तिल के फसल के सबले बड़ दुस्मन बा.
अइसने कुछ साल 2022 में भइल रहे. “पाना बरसे के ना चाहत रहे, बाकिर खूब झमाझम बरसल. जनवरी आउर फरवरी के महीना रहे. पउधा सभ बहुते छोट रहे, बढ़े खातिर जूझत रहे,” वडिवेलन बतइलन. कुछे दिन बाद कटनी सुरु होखे वाला रहे. बाकिर ऊ उपज के लेके जादे आस ना लगइले रहस. “पछिला बरिस 30 सेंट (एक तिहाई एकड़) पर खेती करके 150 किलो तिल उगल रहे. बाकिर एह बरिस त उपज 40 किलो के भी पार पहुंचे के उम्मीद ना रहे.”
दुनो मरद-मेहरारू के हिसाब से, एतना उपज से साल भर के तेल भी ना निकले वाला रहे. “एक बेरा में कोई 15 से 18 किलो तिल पेड़ाला. एह में से मोटा-मोटी सात, चाहे आठ लीटर तेल निकलेला. दु बेर पिसाई के बराबर तिल निकले, त हमनी सोचिले पैदावार ठीक-ठाक भइल,” प्रिया बतइली. वडिवेलन हमनी से अगिला दिन कवनो तेल मिल ले चले के वादा कइलन. बाकिर बीज? ऊ कइसे इकट्ठा कइल जाला?
गोपाल तनी उलार होके, हमनी के तिल इकट्ठा करे के प्रक्रिया देखावे खातिर बोलइलन. उनकर तिल के खेत तनिए दूर पर बनल एगो ईंट-भट्ठा के बगल में रहे. इहंवा दोसरा राज्य से आइल कइएक मजूर आउर उनकर परिवार सभ रहेला आउर काम करेला. इहंई लरिका सभ भी पोसाला. बकरी आउर मुरगी भी पलाला. सांझ के बेरा बा, भट्ठा शांत पड़ल बा. भट्ठा पर काम करे वाला मजूर हमनी के मदद खातिर संगे चले लागत बा.
सबले पहिले गोपाल ओह तिरपाल के हटावत बाड़न, जेकरा से तइयार तिल के पौधा झांपल (ढंकल) बा. एकरा एक ओरी कुछ दिन खातिर धर देहल जाला. अइसन करे से कुछ गरमी आउर नमी बढ़ेला आउर तिल के बिया फूटे में आसानी रहेला. सीनिअम्माल ढेर के कवनो जानकार जेका, उलट-पलट रहल बारी. फली सभ पक के तइयार बा. ओह में से फूट के तिल के बिया बाहिर आवत बा. ऊ तिल सभ के हाथ से एक जगह करके छोट-छोट ढेरी बना लेत बाड़ी.
प्रिया, गोपाल आउर उनकर पतोह डंठल सभ के इकट्ठा करके एगो बंडल बनावत बाड़न. अइसे, एकरा जलावन खातिर काम में ना लावल जाए. वडिवेलन बतइले, “हमरा इयाद आवत बा ई धान अउंटे (उबालल) के काम में लावल जात रहे. बाकिर अब हमनी ई काम चाउर के मिल में करा लेविला. तिल के डंठल सभ जरा देवल जाला.”
केतना पुरान नियम सभ अब खतम हो गइल, गोपाल लगातार बतावल जात बाड़न. खास करके उयिर वेल (पउधा से बाड़ा बनावे के रिवाज) खत्म होखे के उनकरा बिसेष दुख बा. “हमनी जवन घरिया बाड़ बनावत रहीं, लगे के मांद में सियार सभ रहत रहे. ओकर नजर ओह चिरई आउर जनावर सभ के शिकार करे में रहत रहे, जे हमनी के फसल खा, चाहे नष्ट कर देत रहे. अब सियार सभ कहंवा देखाई देवेला!” ऊ अफसोस जतावत कहले.
वडिवेलन भी हामी भरलन, “सही बात बा. पहिले केतना सियार सभ देखाई देत रहे. बियाह होखे के पहिले हम एक दिन नदी किनारे से एगो छोट बच्चा के उठा लेनी, हमरा लागल कोई झबड़ा कुकुर के पिल्ला बा. बाऊजी कहलन कुछ त गड़बड़ लाग रहल बा. ओह रात सियार सभ के एगो झुंड हमनी के घर लगे जोर-जोर से चिल्लाए लागल. हम ओह बच्चा के उहंई छोड़ अइनी, जहंवा से उठइले रहीं.”
हमनी जेतना देर बतकही करत रहीं, सीनिअम्माल ओतना देर में तिल के बिया सूप में भर लेली. ओह में अबही भूसा आउर सूखल पत्ता सभ मिलल बा. ऊ सूप के आपन माथा जेतना ऊंचाई पर ले गइली आउर बड़ा कलाकारी से सूप के हिला-हिला के ओह में से तिल धीरे-धीरे नीचे गिरावे लगली. एकरा ओसवनी कहल जाला. ई देखे में केतना मनभावन लागत रहे. बाकिर एह काम में बहुते मिहनत आउर हाथ के सफाई चाहीं. तिल पानी के बूंद जेका टप-टप गिरत रहे, जइसे कवनो धुन बाजत होखे.
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श्रीरंगम के एगो कोल्हू (तेल पेड़ावे वाला जगह) के दोकान पर रेडियो पर एगो पुरान तमिल गीत बाज रहल बा. श्रीरंगा मरचेक्कु (वुड प्रेस) नाम के एह कोल्हू के मालिक आर. राजू कैश रजिस्टर खोलके बइठल बाड़न. कोल्हू से तिल के तेल निकाले घरिया चर-मर, चर-मर के आवाज लगातार आ रहल बा. स्टील के एगो बड़ बरतन में सुनहरा पियर रंग के तेल टप-टप करके इकट्ठा हो रहल बा. पाछू आंगन में तिल धूप में पसारल बा.
“18 किलो तिल से तेल निकाले में कमो ना, त डेढ़ घंटा लाग जाला. एह में डेढ़ किलो ताड़ के गुड़ मिलावल जाला. पूरा काम भइला के बाद एह में से कुल 8 लीटर तेल निकलेला. स्टील के कोल्हू के तुलना में एह में तनी कम निकलेला,” राजू बतइलन. ऊ एक किलो तिल के पेड़ाई खातिर 30 रुपइया लेवेलन. आउर आपन कोल्हू के कोल्ड-प्रेस्ड तिल के तेल 420 रुपइया लीटर के हिसाब से बेचेलन. “हमनी के तिल के तेल के क्वालिटी एकदम टॉप होखेला. तिल सीधा किसान से, चाहे गांधी मार्केट से 130 रुपइया किलो के भाव से कीन के आवेला. सबले नीमन ताड़ के गुड़ 300 रुपइया किलो आवेला. एकरा मिलावे से तेल के स्वाद बढ़ जाला.”
कोल्हू दिन भर में, भोरे दस बजे से सांझ 5 बजे तक, चार बेर चलावल जाला. ताजा निकालल तेल के धूप में थिराए (साफ करे के तरीका) खातिर धर देहल जाला. तिल के सूखल खल्ली ( एल्लु पुनाकु ) में कुछ तैलीय अवशेष बचल रहेला, जे एह विधि से पूरा के पूरा निकल जाला. किसान लोग अंतिम में बेकार बचल खली के 35 रुपइया के भाव से आपन मवेशी के खियाए खातिर कीन के ले जाला.
राजू के कहनाम बा कि एक एकड़ जमीन पर तिल बोवे, उगावे, कटाई, गुड़ाई आउर बोरी में पैक करे खातिर उनकर 20,000 से जादे रुपइया खरचा हो जाला. अंतिम में, हाथ में 300 किलो तिल आवेला. हिसाब लगावल जाव, त तीन महीना के एह पूरा प्रक्रम में 15,000 से 17,000 के मुनाफा होखेला.
असल समस्या इहे बा, वडिवेलन कहले. “रउआ जानते बानी, हमनी के मिहनत के फायदा के उठावेला? ब्यापारी. जब उपज एक हाथ से दोसर हाथ में जाला, ऊ लोग दुगुना दाम वसूलेला,” ऊ कहले. आपन मुंडी हिलावत बोले लगले, “इहे कारण बा कि हम तिल ना बेचिले. हमनी एकरा अपना घर खातिर, अपना खाए खातिर उगावेनी. एतने बहुत बा...”
तिरुचि के गांझी बजार में तिल के दोकान सभ पर खूब चहल-पहल बा. बाहिर उड़द, मूंग आउर तिल से भरल बोरी लेके किसान लोग बइठल बा. भीतर से ठसमठस दोकान में ब्यापारी लोग बइठल बा, जवन सायद ओह लोग के पुरखा के होई. पी. सरवनन, 45 बरिस, कहले, जब से हमनी आइल बानी इहंवा उड़द जादे आवत देखतानी. मरद आउर मेरहारू मजूर सभ दाल के चाले, तउले आउर पैक करे में लागल बा. ऊ बतइले, “इहंवा तिल के मउसम सुरुए भइल बा. बस तिल के बोरी सभ आवते होई.”
बाकिर 55 बरिस के एस. चंद्रशेखरन के अनुमान बा कि फसल के मउसम जोर पर रहला के बावजूद उनकर बाउजी के समय के तुलना में अब एके चौथाई तिल पैदा होखेला. “जून में कबो 2,000 एल्लु मुटई (तिल के बोरा) गांधी बाजार में रोज उतरत रहे. बाकिर पछिला कुछ बरिस में एकर गिनती मुस्किल से 500 रह गइल बा. किसान अब एकरा उगावल बंद कर देले बा. एकर खेती अब बहुते मिहनत के काम हो गइल बा. आउर दाम ओकरा हिसाब से नइखे बढ़त. ई अबहियो 100 से 130 रुपइया किलो के बीच में अटकल बा. एहि से किसान लोग अब उड़द के खेती करे लागल बा. उड़द के मशीन से काटके ओहि दिन बोरी में भर के रखल जा सकेला.”
हम उऩका टोकनी आउर पूछनी कि तेल के भाव त जादे बा, आउर ई रोज-रोज बढ़िए रहल बा. फेरु किसान लोग के ठीक से दाम काहे नइखे मिलत? चंद्रशेखरन के जवाब रहे, “ई सभ बजार पर निर्भर बा. मांग आउर पूर्ति आउर दोसर राज्य के उत्पादन पर निर्भर बा. बड़का मिल के मालिक जवन माल दबा के रखले रहेला, ओकरा पर भी निर्भर बा.”
सभे जगह के इहे कहानी बा, चाहे कवनो तरह के फसल, चाहे सामान होखे. बजार केहू पर मेहरबान, त केहू पर आफत जेका बरसेला. केहू से छुपल नइखे कि ई केकर तरफदारी करेला...
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भारत में खाए वाला तेल बाहिर से मंगावे, आउर फसल आ संस्कृति के विस्थापन के एगो लमहर आउर जटिल इतिहास रहल बा. इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली में समाजविज्ञान आउर नीति अध्ययन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ऋचा कुमार एगो शोध कइली. उनकर शोध पत्र में जिकिर बा: ”साल 1976 तक ले भारत जरूरत के हिसाब से 30 प्रतिशत खाए वाला तेल के आयात करत रहे.” फ्रॉम सेल्फ रिलायंस टू डीपनिंग डिस्ट्रेस नाम के एह शोध में लिखल बा, “सरकार दूध उत्पादन में इजाफा करे वाला डेयरी को-ऑपरेटिव के सफलता के फेरु से दोहरावे के चाहत रहे.”
बाकिर कुमार कहली, “पियर क्रांति के बावजूद 1990 के दशक से भारत में खाए वाला तेल के संकट बढ़ले जात बा. एकर खास कारण ई बा कि जादे करके किसान लोग तिलहन-अनाज-दाल के मिश्रित खेती कइला के जगहा गेहूं, धान आउर ऊंख के एकल खेती के विकल्प चुनले बा. एह फसल सभ के सरकार ओरी से बिसेष प्रोत्साहन आउर विक्रय से जुड़ल सुरक्षा मिलल बा. एकरा अलावे 1994 में खाद्य तेल के आयात के उदारीकरण भइला के बाद से इंडोनेशिया आउर अर्जेंटीना से क्रम से सस्ता पाम (ताड़) आ सोयाबीन के तेल के आयात आसान हो गइल बा. भारत के घरेलू बजार एह तेल सभ से भर गइल बा.”
“पाम आउर सोयाबीन के तेल, दोसर खाए वाला तेल के मुकाबले सस्ता बा. खास करके वनस्पति (रिफाइंड, हाइड्रोजिनेटेड वेजिटेबल शॉर्टनिंग) तेल बनावे में एकरा बहुत इस्तेमाल होखे लागल बा. ई महंग घी के विकल्प बा. एहि से पारंपरिक आउर क्षेत्रीय तिलहन आउर तेल, खेत आउर खाए के थरिया से विस्थापित होखत चल गइल. सरसों, तिल, अलसी, नरियल आउर मूंगफली के खेती, किसान लोग खातिर अब फायदा वाला काम ना रह गइल,” कुमार लिखतारी.
स्थिति के खराब होखे के एगो आउर कारण बा. खाए वाला तेल अब भारत में पेट्रोलियम आ सोना के बाद सबसे जादे आयात होखत बा. साल 2023 में भारत में खाद्य तेल के स्थिति पर छपल ‘पुशिंग फॉर सेल्फ-सफिसिएंसी इन एडिबल ऑयल्स इन इंडिया’ नाम के एगो शोध के हिसाब से, अबही भारत में कुल आयात के 3 प्रतिशत आउर कृषि आयात के 40 प्रतिशत हिस्सा खाए वाला तेल के बा. एह शोध में इहो कहल गइल बा कि घरेलू उपभोक्ता मांग के लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा आयात कइल जाला.
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वडिवेलन के टैक्सी चलावे से घर के 60 प्रतिशत खरचा निकल जाला. जइसे कावेरी उनकर गांव तक पहुंचे के ठीक पहिले दू धारा में बंट जाली, ठीक वइसहीं वडिवेलन के जिनगी आउर समय भी उनकर खेती आउर टैक्सी चलावे के बीच दु भाग में बंटल बा. उनकरा खातिर खेती-किसानी के काम जादे कठिन बा. ऊ कहले, “ई अनिश्चितता से भरल काम बा. एह में बहुते मिहनत भी करे के पड़ेला.”
उनकरा दिन में काम करे के होखला, आउर जादे देर ले गाड़ी चलावे के पड़ेला. एहि से उनकर मेहरारू खेती के काम में उनकर कमी पूरा करे के कोसिस करेली. संगे-संगे प्रिया के घर आउर बच्चा भी संभाले के होखेला. इहंवा उनकर मदद करे खातिर केहू ना होखे. वडिवेलन उनकर सहयोग करे के कोसिस जरूर करेलन. केतना बेरा ऊ रात में पानी पटावेलन. केतना-केतना दिन ले ऊ कटाई मशीन के बेवस्था करे में दउड़त-भागत भी रहेलन. कटाई घरिया मसीन के भारी मांग रहेला. सभे किसान के आपन तइयार फसल काटे के रहेला. एह तरह से दंपत्ति के खेत में कड़ा मिहनत करे के पड़ेला. “फावड़ा चलावे से हमार पीठ में दरद होखे लागेला. अइसन स्थिति में हम टैक्सी भी ना चला पावेनी.”
अइसन में दुनो मरद-मेहरारू के दिहाड़ी मजूरी के असरा रहेला. खर-पतवार साफ कइल, बुआई, आउर तिल के भूसी निकाले खातिर लोग आमतौर पर उमिरगर मेहरारू लोग के मजूरी पर रखेला.
उड़द उगावल भी ओतना आसान नइखे. “कटनी से ठीक पहिले आउर बाद में मूसलाधार बरखा हो गइल रहे. बहुत मुस्किल घड़ी रहे. फसल के सूखल रखल जरूरी रहे.” ऊ आपन विपदा के अइसे बतावेलन जइसे कवनो महामानव होखस. उनकर कहानी सुनला के बाद अब हम आपन इडली-डोसा में पड़ल उड़द के दाल (उलुंदु) के जादे इज्जत से देखे लागल बानी.
“इहे कोई बीस बरिस के होखम, हम लॉरी चलावे के काम करत रहीं. ओकरा में 14 गो चक्का रहे. हमनी दू गो ड्राइवर रहीं. अदल-बदल के गाड़ी चलाईं. देस के कोना-कोना- दिल्ली, यूपी, कश्मीर, राजस्थान, गुजरात... में घूमीं.” ऊ बतइलन कि ऊ उंट के दूध के चाह पियत रहस, रोटी, दाल, अंडा के भुरजी जइसन चीज खात रहस... आउर कवनो नदी में स्नान करत रहस. नींद ना आवे एह खातिर लॉरी चलावे घरिया ऊ इलैयाराजा के गाना आउर कुतु पाटु सुनस. उनकरा लगे भूत-प्रेत के सैंकड़न किस्सा रहे. “एक दिन रात में हम पेसाब करे खातिर ट्रक से उतरनी. हम माथ पर से एगो कंबल ओढले रहीं. अगिला दिन भोर में एगो दोसर लरिका हमरा बतइलक कि ऊ मुंह ढंके वाला भूत के देखले रहे,” अइसन कहत ऊ ठठा के हंसे लगले.
दूर-दूर यात्रा करे के चलते ऊ हफ्तन आपन घर से दूर रहस. बियाह के बाद ऊ स्थानीय तौर पर ई काम करे लगलन. संगे-संगे खेतियो करस. वडिवेलन आउर प्रिया के दू गो लरिका बा. दसमा में पढ़े वाली लइकी आउर सतमा में पढ़े वाला लइका. “हमनी के कोसिस रहेला कि लरिका लोग के हर जरूरत पूरा होखे. बाकिर ओह लोग के बचपन हमनी के तुलना में, जादे खुसहाल बा,” ऊ कवनो दार्शनिक अंदाज में कहली.
लरिकाई में ऊ बहुते कठिन समय देखलन. “कहल जा सकेला कि हमनी के देखे वाला केहू ना रहे,” ऊ मुस्कात कहले. “हमनी बस अपने से पला-पोसा गइनी.” उनकरा पहिल जोड़ी चप्पल तब नसीब भइल, जब नवमा में पढ़त रहस. ओकरा पहिले ऊ बिना चप्पले के लगे के इलाका सभ में हरियर घास लेवे जात-आवस. दादी उहे घास के चारा वाला बंडल बना के 50 पइसा में बेचस. “केहू-केहू त उहो खरीदे में मोल-मोलाई करे लागे,” ऊ हैरानी से बतइलन. स्कूल से भेंटाइल एगो गंजी आउर निकर में साइकल पर बइठ के दूर-दूर हो आवस. “ऊ कपड़ा मुस्किल से तीन महीना चले. हमार माई-बाऊजी हमनी के साल भर में बस एक जोड़ी नया कपड़ा कीन पावत रहस.”
वडिवेलन आपन बाधा वाला समय, छलांग मार के पार कइले बाड़न. ऊ एथलीट रहस. मुकाबला सभ में दउड़स, छलांग लगावस आउर जीत के आवस. कबड़्डी खेल, नदी में तइरस, यार दोस्त संगे मस्ती करस. आपन अप्पाई (दादी) से रोज कहानी सुन के सुतस. “हम कहानी पूरा होखे के पहिलहीं सुत जाईं. दादी के अगिला बेर रात के फेरु उहंई से कहानी सुरु करे के पड़े. ऊ तरह-तरह के कहानी जानत रहस. राजा-रानी के, देवी-देवता के...”
बाकिर जवान वडिवेलन जिला स्तर के मुकाबला में जीत ना पइलन. मुकाबला खातिर जवन तरह के खान-पान चाहत रहे, उनका ना मिलल. खेले खातिर जरूरी सामान भी उनकर परिवार कीन ना सकल. घरे खाए खातिर दलिया, भात आउर झोर मिलत रहे. मीट कबो-कबो नसीब होखे. स्कूल में दुपहरिया में उपमा मिले. इयाद बा, सांझ के ‘स्नैक्स’ में नून वाला मांड (चाउर के पानी) पिए के मिले. ऊ ई शब्द जानबूझ के बोलेलन. अब ऊ आपन लरिका लोग खातिर पैकेट वाला स्नैक्स कीन देवेलन.
लरिकाईं में ऊ जइसन कठिन समय गुजरलन, आपन लरिका लोग के ओह से बचा के रखलन. हम जब दोसर बेरा भेंट करे उनकरा घरे गइनी, उनकर मेहरारू आउर लइकी कोल्लिडम नदी तीरे बालू खोदत रहस. छव इंच खोदला के बाद पानी आवे लागेला. “एह नदी के पानी एकदम ताजा आउर शुद्ध बा,” प्रिया बतइली. ऊ एगो टीला बना के आपन केस के पिन छिपा देली आउर बेटी ओह पिन के खोजे लगली. नदी जादे गहिर नइखे. वडिवेलन आउर उनकर लइका ओह में नहाए लागल. उहंवा दूर-दूर ले हमनी के अलावा केहू ना रहे. किनारे, बालू पर घर लउटे वाला गाय सभ के खुर के निसान रहे. नदी के घास के खरखराए के आवाज आवत रहे. एह विशाल तट के सुंदरता निराला बा. घर लउट रहल वडिवेलन कहले, “रउआ ई सभ नजारा शहर में देखे के ना मिली, मिली का?”
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अगिला बेर जब हमार भेंट नदी से भइल, त लागल हम कवनो शहर में बानी. हम त फिदा हो गइनी. अगस्त 2023 के बात रहे. वडिवेलन के शहर हम कोई साल भर बाद, दोसर बेर आइल रहीं. इहंवा हम आडि पेरुक्कू खातिर अइनी है. आडि पेरुक्कू, कावेरी नदी के किनारे मनावल जाला. एह परब में इतिहास, संस्कृति आउर परंपरा के अद्भुत संगम देखे के मिलेला.
“जल्दिए इहंवा भीड़ हो जाई,” वडिवेलन श्रीरंगम के एगो खाली सड़क पर आपन कार ठाड़ करत, हमनी के चेतइलन. हमनी कावेरी के घाट, अम्मा मंडपम ओरी बढ़े लगनी. घाट पर श्रद्धालु लोग जुटल बा. भोर के सिरिफ 8.30 बाजल बा. बाकिर बड़ संख्या में लोग जुटल बा. घाट के सीढ़ी सभ खाली नइखे. जेने देख, लोगे लोग बा, केला के पत्ता बा. पत्ता पर नदी के चढ़ावे खातिर परसादी के रूप में नरियर, अगरबत्ती लागल केला, गणेश के हरदी से बनल छोट मूरति, फल आउर कपूर रखल बा. पूरा माहौल उत्सव जेका लागत बा, जइसे कि केकरो बियाह होखे. सभ कुछ बहुते भव्य लागत रहे.
नयका बियाहल दुल्हा-दुल्हिन आउर उनकर परिवार वाला लोग पुजारी लगे ठाड़ बा. पुजारी ओह लोग से थरिया में रखल सोना के जेवर ताली (मंगलसूत्र) के एगो नया धागा में पिरोए आउर बांधे में सहयोग करत बाड़न. एकरा बाद पति-पत्नी लोग प्रार्थना करत बा आउर संभाल के रखल गइल बियाह के माला के नदी के समर्पित कर देत बा. मेहरारू लोग एक-दोसरा के गला में हरदी में रंगल तागा बांधत बाड़ी. गोतिया-देयाद, दोस्त सभ में कुमकुम आउर मिष्ठान्न बांटल जा रहल बा. त्रिची के प्रसिद्ध भगवान गणेश के मंदिर, उचि पिल्लईयार कोइल कावेरी तट पर भोरका घाम में दमक रहल बा.
आउर नदी अपना में सभे के प्रार्थना, शुभेच्छा समेटले, सभे के खेत आउर सपना के सींचत, चुपचाप शांति से बहत जात बाड़ी, जइसन ऊ हजार साल से बहत आइल बाड़ी.
सेल्फ-रिलायंस टू डीपनिंग डिस्ट्रेस: दी एंबिवलेंस ऑफ येलो रेवोल्यूशन इन इंडिया से शोधपत्र के साझा करे खातिर डॉ. ऋचा के बहुते आभार.
शोध अध्ययन के, बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत अनुदान हासिल भइल बा.
अनुवादक: स्वर्ण कांता