एगो अलगे रूप धइले, महिंद्रा जीप- एमएच34एबी6880 गांव के भीड़-भड़क्का वाला चौराहा पर आके रुकत बा. चंद्रपुर के सीमा पर बसल ई छोट गांव 2920 मेगावाट के सुपर थर्मल पावर स्टेशन, कइएक छोट-बड़ कोयला वॉशिंग प्लांट, राख के ढेरी आउर झाड़-झंखाड़ वाला घना जंगल के बीच पड़ेला.
अक्टूबर, 2023. एगो एतवार के अलसाइल भोर बा. जीप के दुनो ओरी तरह-तरह के नारा आ फोटो वाला रंग-बिरंगा, मनमोहक पोस्टर लागल नजर आवत बा. जीप देखते मरद, मेहरारू आउर बच्चा सभ खींचल चलल आवत बा.
विट्ठल बड़खल जीप से उतरत बाड़न. संगे एगो ड्राइवर आउर हेल्पर भी बा. सत्तर बरिस के विट्ठल के दहिना हाथ में माइक्रोफोन बा आउर बावां में भुअर डायरी. झकाझक उज्जर धोती-कुरता आउर नेहरू टोपी पहिनले ऊ माइक पर बोले लागत बाड़न. जीप के सोझे वाला दरवाज पर लागल लाउडस्पीकर से उनकरा आवाज चारो ओरी गूंजे लागत बा.
मामा बतावे लागत बाड़न कि ऊ एह गांव काहे आइल बाड़न. उनकर आवाज 5,000 के आबादी वाला एह गांव के कोना-कोना में गूंज रहल बा. गांव के जादे करके लोग दिहाड़ी मजूरी करेला. आउर दोसर लोग लगे के छोट-बड़ कोयला कारखाना, चाहे लघु उद्योग में काम करेला. मामा के भाषण पांच मिनिट तक चलत बा. भाषण जइसहीं खत्म होखत बा, गांव के दु गो बुजुर्ग लोग मुस्कात उनकर स्वागत करत बा.
“अरे मामा, नमस्कार, या बसा (अरे मामा, प्रणाम! इहंवा आके बइठीं),” गांव के मेन चौराहा पर एगो छोट किराना के दोकान चलावे वाला 65 बरिस के किसान हेमराज महादेव दिवसे कहले.
बड़खल मामा हाथ जोड़त जवाब देले, “नमस्कार जी,”
गांव के लोगवन मामा के चारो ओरी से घेर लेले बा. ऊ धीरे-धीरे किराना दोकान ओरी बढ़े लागत बाड़न. उहंवा पहुंचके चौराहा ओरी मुंह करके एगो पिलास्टिक के कुरसी पर बइठ जात बाड़न. दोकान के मालिक पाछू में ठाड़ उनकर बात उत्सुकता से सुन रहल बाड़न.
एगो मुलायम सूती तउनी से आपन चेहरा के पसीना पोंछत, ‘मामा’, जइसन कि उनकरा लोग आदर से इहंवा पुकारेला, उहंवा जुटल लोग के बइठे आउर बात सुने के अपील करे लगलन. अगिला 20 मिनट एगो वर्कशॉप जेका गुजर गइल.
ऊ बतावे लगलन कि किसान लोग सरकार से मुआवजा के मांग कइसे कर सकेला. ऊ जंगली जनावर सभ के चलते बरबाद भइल आपन फसल, सांप काटे के बढ़ रहल मामला आउर बाघन के हमला में भइल मौत जइसन कुछ मामला के भी जिकिर कइलन. एह जटिल आउर समय लेवे वाला प्रक्रिया के मामा हलकान-परेसान किसानन के विस्तार से समझावे लगलन. एतने ना, ऊ किसान लोग के इहो बतइलन कि बरसात के मौसम में खेत में काम करे घरिया आसमान से गिरे वाला बिजुरी से कइसे बचल जा सकेला.
“हमनी के जंगली जनावर, बाघ, सांप, बिजुरी- सभ केतना हलकान कइले बा. हमनी के आवाज सरकार ले कइसे पहुंची?” बहुते साफ मराठी में बोल रहल बड़खल मामा के स्थिर आउर जोरदार आवाज उहंवा के लोग के बांध लेत बा. “जबले हमनी दरवाजा ना खटखटाएम, सरकार जागी कइसे?”
आपने उठावल सवाल के जबाब देवे खातिर ऊ चंद्रपुर के लगे के गांवे-गांवे घूम रहल बाड़न. किसान लोग के समझा रहल बाड़न कि जंगली जनावर सभ के हमला चलते बरबाद भइल फसल खातिर मुआवजा कइसे लेवल जाव.
मामा सभे किसान लोग के जानकारी देलन कि जल्दिए भद्रावती शहर में एगो किसान रैली होखे वाला बा. “रउआ सभे के उहंवा जुटे के बा,” ऊ सभे गांव वाला से अरज कइलन, आउर फेरु जीप पर सवार दोसरा गांव के यात्रा पर निकल गइलन.
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नयका पीढ़ी के लरिकन सभ उनकरा ‘गुरुजी’, मतलब मास्टर साहब कहेला. बाकी के लोग उऩका ‘मामा’ पुकारेला. अइसे संगी किसान लोग विट्ठल बड़खल के दुलार से ‘दुक्करवाला मामा’- रण-दुक्कर, मराठी में जेकर मतलब जंगली सुअर होखेला, बोलावेला. खेत में जंगली जनावर, खास करके जंगली सुअर के बढ़ रहल उत्पात के खिलाफ उनकर चल रहल अथक अभियान चलते उनकर ई नाम पड़ गइल. मामा के जिनगी के एकमात्र ध्येय इहे बा कि सरकार एह समस्या के स्वीकारे, हल करे आउर एकरा खातिर मुआवजा देवे.
मामा के पूरा जिनगी, ‘एकला चलो रे’ जइसन बा. किसान फसल के होखे वाला नुकसान खातिर मुआवजा कइसे हासिल करे, खेत पर मौका पर मुआयना से लेके फारम जमा करे तक के सभे कठिन प्रक्रिया कइसे पूरा करे आउर आवेदन कइसे करे, इहे सिखावल उनकर जिनगी के मकसद बा.
ई उनकर इलाका- ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व (टीएटीआर) लगे के पूरा चंद्रपुर जिला बा.
मुआवजा खातिर सरकार के ध्यान खींचे के दावा करे वाला लोग बहुते बा. बाकिर सच्चाई ई बा कि इहे अकेला आदमी के अथक प्रयास के नतीजा बा कि महाराष्ट्र सरकार सबले पहिले एह समस्या के स्वीकार कइलक. एकरा बाद साल 2003 में एगो प्रस्ताव पारित कइल गइल. प्रस्ताव में जंगली जनावर सभ के हमला, जेकरा के लोग ‘नया तरह के सूखा’ मानेला, चलते किसान लोग के हो रहल फसल के नुकसान खातिर नकद मुआवजा के हरियर झंडी मिलल. मामा के कहनाम बा कि ई सभ हमनी के किसानन के एह बारे में एकजुट करे आउर जगावे के आ पांच-छव साल ले कइएक प्रदर्शन आउर आंदोलन करे के नतीजा बा.
साल 1996 में भद्रावती के लगे कोयला आउर लौह अयस्क खदान के गिनती बढ़े लागल. कोल इंडिया लिमिटेड खातिर काम करे वाला कंपनी, वेस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड (डब्ल्यूसीएल) ओरी से सुरू कइल गइल खदान चलते बड़खल के खेती वाला समूचा जमीन बरबाद हो गइल. खदान चलते तेलवासा-धोरवासा, जुड़वां गांव जहंवा से बड़खल आवेलन, के पूरा जमीन खदान में चल गइल.
ओह घरिया ले, खेत पर जंगली जनावर सभ के उत्पात आपन चरम सीमा ले पहुंच गइल रहे. उनकर कहनाम बा कि पछिला दू-तीन दसक में जंगल कम होखे लागल बा, जिला में जगह-जगह नया खनन खोलल गइल बा, आउर थर्मल पावर प्लांट सभ के विस्तार भइल बा. एहि सभ चलते जंगली जनावर आउर इंसान के बीच संघर्ष बढ़ गइल बा.
आपन घरवाली मंदताई संगे, बड़खल साल 2002 के आस पास भद्रावती आ के बस गइलन. तबे से मामा आपन पूरा समय सामाजिक काम खातिर समर्पित कर देलन. नशा आउर भ्रष्टाचार, समाज के दुनो कलंक के खिलाफ भी ऊ योद्धा के रूप में सामने अइलन. उनकर दुनो लइका आउर एगो लइकी के बियाह हो गइल बा. ऊ लोग आपन बाऊजी से उलट शांत आ सरल जिनगी जियत बा.
मामा कृषि उपज प्रसंस्करण से जुड़ल छोट-मोट काम करेलन. ऊ घर चलावे खातिर मरिचाई आउर हरदी पाउडर, ऑर्गैनिक गुड़ आउर मसाला सभ बेचेलन.
मामा कइएक बरिस से चंद्रपुर आउर लगे के जिला में किसानन के संगठित कर रहल बाड़न. उनकर मांग बा कि सरकार के आपन बजट में शाकाहारी जनावर चलते होखे वाला फसलन के बरबादी आउर खतरनाक जनावर के हमला में मरे वाला किसान लोग के मुआवजा खातिर बढ़ोत्तरी करे के चाहीं. आउर ऊ हार माने वाला लोग में से नइखन.
साल 2003 में जब सरकार एह संदर्भ में पहिल प्रस्ताव पास कइले रहे, तब मुआवजा के रकम मात्र कुछे सौ रुपइया रहे. बाकिर अब ई 25,000 रुपइया हो गइल बा. यानी एक परिवार खातिर एक बरिस में अधिकतम 2 हेक्टेयर जमीन खातिर 25,000 रुपइया के मुआवजा मिल सकत बा. बड़खल मामा कहेलन, इहो रकम पर्याप्त नइखे, बाकिर सरकार के मुआवजा के रकम बढ़ावे से ई बात त तय बा कि सरकार समस्या के स्वीकार लेले बा. ऊ कहेलन, “समस्या ई बा कि राज्य भर में जादे किसान लोग सरकार से मुआवजा के दरख्वास्त ना करे.” फिलहाल उनकर मांग बा कि मुआवजा प्रति परिवार, प्रति हेक्टेयर सलाना 70,000 कइल जाव. काहे कि मामा के हिसाब से “पर्याप्त मुआवजा एतने होई.”
महाराष्ट्र में वन विभाग जंगली जनावर सभ के हमला में मवेशी आउर इंसान के मौत, आउर फसल बरबाद होखे पर मुआवजा के तौर पर सलाना 80 से 100 करोड़ खरचा करेला. ई बात तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक सुनील लिमये मार्च 2022 में पारी से भइल एगो बातचीत में जिकिर कइलन.
मामा कहले, “ई त बहुते कम रकम बा. अकेले भद्रावती (उनकर गाम) के फसल खातिर मोटा-मोटी सलाना 2 करोड़ के मुआवजा मिलेला. इहंवा के आउर किसान लोग मुआवजा खातिर अरजी देले बा, काहे कि इहंवा के किसान लोग दोसरा के मुकाबले होशियार आउर प्रशिक्षित बा.” ऊ इहो कहले, “बाकिर दोसरा कहीं के बात कइल जाव, त अबहियो एह मुद्दा पर केहू के ध्यान नइखे.”
“पच्चीस बरिस से हम ई काम करत बानी,” देहाती लहजा आउर मजाकिया अंदाज वाला मामा कहे लगलन, “जिनगी भर हम इहे काम करम.” ऊ भद्रावती में आपन घर पर हमनी से बतियावत रहस
आज पूरा महाराष्ट्र में बड़खल मामा के चरचा बा.
महाराष्ट्र सरकार मुआवजा के रकम बढ़ा देले बा. मतलब समस्या के स्वीकार कर लेहल गइल बा, बड़खल मामा के कहनाम बा. बाकिर राज्य के जादे किसान लोग अबहियो मुआवजा मांगे खातिर आगू नइखे आ रहल. मामा के मांग बा कि मुआवजा के रकम आउर बढ़ावल जाव
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फरवरी 2023 के एगो ठंडा दिन. हवा तेज रहे. टीएटीआर के पस्चिम, भद्रावती तहसील में लगे के गांव में चल रहल दौरा के बीच पारी के उनका से भेंट भइल. जादे करके किसान लोग रबी के फसल काटे में लागल रहे.
उनकरा संगे चार, चाहे पांच गांव के दौरा में समझ में आइल कि अलग-अलग जाति आउर छोट-बड़ जमीन वाला किसान लोग के बीच मायूसी बा. सभे किसान के एके गो सिर दरद बा- जंगली जनावर के हमला.
“हई देखीं,” आपन खेत में हरियर बूंट के फसल के बीच ठाड़ एगो किसान कहलन, “हमनी खातिर अब का बचल बा?” पछिला रात एह खेत में जंगली सुअर सभ पूरा फसल खा गइल. आज रात ऊ लोग फेरु से आई आउर खेत में जेतना कुछ बचल बा, उहो चट कर जाई. ऊ चिंतित होखे पूछे लगलन, “हम का करीं, मामा?”
बड़खल के जइसहीं खेत में भइल नुकसान के थाह लागल, उनकरा पहिले त बिस्वासे ना भइल. फेरु आपन मुंडी हिलइलन आउर जवाब देलन, “रुकीं, एगो आदमी के कैमरा संगे भेजत बानी. ऊ फोटो आउर वीडियो लिहन. रउआ से एगो आवेदन पत्र भरवा के ओकरा पर साइन करवइहन. एकरा बाद हमनी इहंवा के रेंज वन अधिकारी लगे मुआवजा के दावा खातिर एकरा भेजम.”
एह काम खातिर मामा जेकरा भेजेलन, ऊ गौराला गांव के भूमिहीन मेहरारू, 35 बरिस के मंजुला बड़खल बाड़ी. उनकर कपड़ा के एगो छोट बिजनेस बा. एकरा अलावे ऊ किसान लोग के एह तरह के मदद करेली.
पूरा साल, आउर सरदियो में ऊ कोई 150 गांव में आपन स्कूटी से घूम-घूम के किसान लोग के मदद करेली. उनकर काम कागजात जुटावे, आवेदन करे आउर मुआवजा के मांग करे के होखेला. एह तरहा से ऊ किसान लोग के, मुआवजा खातिर जरूरी कागजी कार्रवाई करे आउर मुआवजा के दावा करे में मदद करेली.
मंजुला दीदी पारी के बतइली, “हम खेत के फोटो लीहिला, ओह लोग के फारम भरिला, जरूरी भइला पर हलफनामा तइयार करिला. एकरा अलावे जमीन जदि घर में केहू आउर के नाम बा, त ओह सदस्य के सहमति भी लेवे के होखेला.”
एक बरिस में अइसन केतना किसान लोग से भेंट करे जाएनी?
ऊ कहली, “जदि रउआ एगो गांव से मोटा-मोटी 10 गो किसान भी ले लीहीं, त 1,500 किसान से भेंट करिला.” ऊ आपन काम खातिर एक किसान से 300 रुपइया लेवेली. एह में आवे-जाए के खरचा, फोटोकॉपी आउर दोसर छोट-मोट खरचा खातिर 200 रुपइया होखेला. बाकिर 100 रुपइया ऊ आपन मिहनत खातिर लेवेली. ऊ ई कहे के ना भूलइली कि किसान लोग एतना पइसा खुसी-खुसी देवेला.
एह बीच, मामा के सलाह जारी बा. मामा उनका से पंचनामा करे, चाहे मौका पर निरीक्षण करे (स्पॉट इंस्पेक्शन) वाला अधिकारी लोग के टीम के इंतजारी करे के कहत बाड़न. किसान के दावा के जांच करे खातिर ई सभ जरूरी होखेला. तलाथी, वन रक्षक (फॉरेस्ट गार्ड) आउर एगो कृषि सहायक आई आउर खेत के मुआयना करी, ऊ कहले. तनी समझावत बोललन, “तलाथी आई आउर जमीन मापी. ओकर सहायक खाइल, चाहे चौपट भइल फसल के बारे में नोट करी, आउर फेरु ऊ लोग फसल चट करे वाला जनावर के बारे में पूछी.” इहे नियम बा, ऊ कहलन.
“तोहरा तोहार हक जरूर मिली. तोहरा जरूर मिली. ना मिली, त हमनी के एह खातिर लड़म,” बड़खल पूरा जोश में उनकरा के आश्वासन देलन. उनकरा अइसन कहे से उहंवा जुटल किसान लोग के नैतिक ताकत आउर जरूरी सांत्वना भी मिलल.
एगो किसान तनी चिंतित स्वर में पूछलन, “जदि अधिकारी लोग के टीम मौका पर मुआयना करे ना पहुंचल, त का होई?”
“मुआवजा के दावा 48 घंटा के भीतरी कइल जाला. एकरा बाद शिकायत दर्ज कइल आउर सात दिन के भीतरी तोहार खेत में मुआयना करे वाला टीम के आवल जरूरी बा. ओह लोग के मुआयना के दस दिन के भीतर रिपोर्ट भी दर्ज होखे के चाहीं. किसान के एकर 30 दिन के भीतर मुआवजा जरूर मिल जाए के चाहीं,” बड़खल शांति से, तनी बुलंद आवाज में समझइलन.
ऊ इहो कहलन, “जदि ऊ लोग तोहरा आवेदन के 30 दिन के भीतर नइखे पहुंचत, त नियम कहेला कि मौका पर हमनी जे निरीक्षण करम, आउर फोटो लेहम- ओकरा विभाग के सबूत के तौर पर माने के पड़ी.”
“मामा, मयि भिस्त तुमच्यवर हाय (मामा, हमार भाग अब राउरे हाथ में बा),” किसान हाथ जोड़ के बिनती कइलन. मामा उऩकर कान्हा थपथपा के सांत्वना देलन, “चिंता मत कर.”
ऊ कहलन कि पहिले त उनकर टीम ई काम एक बेरा कर दीही, एकरा बाद उनकरा (किसान के) ई अपने से करे के सीखे के पड़ी.
मामा खाली खेत पर जाके मुआयने ना करस, बलुक गांव के आपन दौरा के बीच में समय-समय पर ऊ कार्यशाला के आयोजन भी करेलन. ऊ गांव के लोग के बीच मुआवजा खातिर दावा दायर करे के तरीका के नमूना भी बांटेलन.
अक्टूबर 2023 में आपन एगो अभियान के दौरान ऊ तडाली में गांव में जुटल लोग से कहलन, “हमार कागज धियान से पढ़ लोगन.”
“कवनो संदेह होखे, त अभिए पूछ ल, हम सभ समझा देहम.” फारम आसान मराठी भाषा में लिखल बा. एह में व्यक्तिगत जानकारी, जमीन के माप, फसल के पैटर्न जइसन बात दर्ज करे खातिर कॉलम बनल बा.
“एह फारम संगे, तू लोग के आपन 7/12 (सात-बारा जमीन के रेकॉर्ड), आधार कार्ड, बैंक डिटेल आउर फोटो, जवना में जंगली जनावर से खेत में भइल नुकसान साफ-साफ देखाई देवत होखे, लागी,” बड़खल कहले. ऊ जोर देवत कहे लगले, “शिकायत आउर दावा के फारम में कवनो गलती ना होखे के चाहीं. आउर जदि सीजन में अइसन कइएक बेर करे के जरूरत पड़े, त करे के होई.” ऊ तनी चुटकी लेलन, “बिना कष्ट कुछुओ ना मिले.”
कानून के हिसाब से मुआवजा के पइसा 30 दिन के भीतरी मिल जाए के चाहीं. बाकिर अनुभव के हिसाब से सरकार से पइसा मिले में एक बरिस लाग जाला. ऊ कहले, “पहिले बन बिभाग के अधिकारी लोग ई काम करे खातिर घूस मांगत रहे. अब हमनी पइसा सीधा हमनी के खाता में ट्रांसफर करे पर जोर दिहिला.”
चूंकि खेत पर जंगली जनावर के हमला रोके के फिलहाल कवनो रस्ता नइखे. एहि से किसान के ओह लोग के नुकसान के भरपाई कइल ही एकमात्र रस्ता बचल बा. नियम के हिसाब से खेती-किसानी, फसल के नुकसान के आकलन, मुआवजा के दावा दायर करे के प्रक्रिया एतना जटिल बा कि जादे करके लोग एह में फंसे के ना चाहे.
बाकिर बड़खल के कहनाम बा, “जदि हमनी के ई करे के बा, त करे के बा.” आउर ऊ मानेलन कि एह खातिर सबले नीमन तरीका अज्ञानता के दूर कइल बा, लोग के ज्ञान आउर नियम-कायदा के जानकारी देवल बा.
मामा के फोन बजल कबो बंद ना होखे. विदर्भ के कोना-कोना से लोग मदद खातिर उनकरा के फोन करत रहेला. ऊ बतइलन कि कबो त उनकरा महाराष्ट्र के दोसर हिस्सा से भी, आउर कबो त दोसर राज्य से भी मदद खातिर फोन आवेला.
खेत में भइल नुकसान के सही-सही आकलन करे में समस्या लाजिमी बा. काहेकि कबो-कबो मुआयना से भी सही तस्वीर सामने ना आवे. जइसे कि, “जदि जंगली जनावर सभ कपास के बिया, चाहे सोयाबीन के फली खा गइल आउर पौधा के कुछो ना कइलक, त रउआ नुकसान के कइसे मापम?” बन बिभाग के अधिकारी लोग मुआयना खातिर आवेला, हरियर-हरियर पौधा के ठीक-ठाक आउर ठाड़ देख के लउटेला. आउर ऑफिस में रिपोर्ट करेला कि कवनो नुकसान नइखे भइल. जबकि असलियत ई बा कि किसान के समूचा फसल के भारी नुकसान भइल रहेला.
बड़खल के मांग बा, “मुआवजा के नियम-कायदा में संशोधन करे के जरूरत बा, उहो किसान के हित में.”
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पछिला दू बरिस में ई रिपोर्टर बड़खल मामा संगे ताडोबा-अंधारी परियोजना के लगे के जंगलन में स्थित कइएक दूरदराज के गांव सभ में गइल बाड़न.
बड़खल के रोज के दिन आमतौर पर भोर के सात बजे सुरु होखेला आउर संझा के सात बजे समाप्त होखेला. ऊ दिन भर दान करे वाला उदार लोग, किसान आर आपन शुभचिंतक लोग के बीच काम करत रहेलन. एक दिन में ऊ पांच से दस गो गांव के दौरा कर लेवेलन.
बड़खल मामा हर बरिस मराठी के 5,000 बिसेष कैलेंडर छपवावेलन. कैलेंडर के पाछू वाला पन्ना पर सरकार के प्रस्ताव, योजना, फसल मुआवजा प्रक्रिया आउर वइसन सभ चीज के जानकारी देवल रहेला जेकरा किसान लोग आसानी से देख सके. ई सभ दान में मिलल धन से कइल जाला. किसान-स्वयंसेवक लोग के उनकर टीम सूचना के प्रसार आउर विचार के लेन-देन खातिर सोशल मीडिया के इस्तेमाल करेला.
कोई एक दसक पहिले, ऊ चंद्रपुर जिला आउर ओकरा लगे आंदोलन चलावे खातिर ‘शेतकारी संरक्षण समिति’ (किसान के सुरक्षा खातिर समिति) के स्थापना कइलन. अब एह में किसानन के बीच लगभग 100 गो स्वयंसेवक बा, जे लोग उनकर मदद करेला.
दावा प्रपत्र आउर दोसर सहायक दस्तावेज के नमूना जिला के कृषि केंद्र पर रखल जाला. हर किसान कृषि केंद्र में आवेला आउर कृषि केंद्र के काम किसान के भरोसे होखेला. एहि से अभियान में जानकारी फइलावे खातिर एह केंद्रन के मदद लेवल जाला आउर ऊ लोग एह काम के पूरा मन से करेला.
बड़खल के दिन भर परेसानी, संकट में फंसल किसान सभ के फोन आवत रहेला. कबो-कबो ई मदद वाला गुहार होखेला आउर कबो-कबो गुस्सा झाड़े खातिर होखेला. बाकिर अक्सरहा सलाह लेवे खातिर फोन आवेला.
“देखीं, इहंवा किसान लोग बा, वन्य जीव बा. किसान लोग के नेता लोग भी. बन्य जीव प्रेमी लोग भी बा. आउर उहंवा सरकार बइठेला. बन, खेती आउर राजस्व अधिकारी लोग आवेला, स्थिति से निपटेला आउर असल समस्या स्थगित हो जाला.” आउर बड़खल मामा के टिप्पणी, “समाधान केहू लगे नइखे.”
उनकर कहनाम बा कि सबले नीमन काम त मुआवजा प्राप्त कल ही बा, काहेकि हमनी लगे अब इहे एगो हल बा.
आउर एह तरह से मामा आपन गाड़ी, बस, चाहे केहू संगे बाइक पर गांव जाए, किसान लोग से मिले आउर संघर्ष खातिर ओह लोग के गोलबंद करे के कोसिस करत रहेलन.
ऊ कहले, “जइसहीं सभ कुछ व्यवस्थित हो जाला, हम गांव निकले के प्लान कर लीहिला.”
अभियान जुलाई से अक्टूबर 2023 तक चलल. आपन दौरा के दौरान ऊ अकेले चंद्रपुर जिला में कोई 1,000 गांव पहुंचलन.
ऊ कहले, “जदि हर गांव से पांचो गो किसान लोग मुआवजा के आवेदन भर देवे, त हम कह सकिला कि हमार अभियान आपन मकसद तक पहुंच गइल.”
किसान लोग के उनकर आपन हित खातिर एकजुट कइल मुस्किल बा, बड़खल कहले. एह लोग के स्वभाव रोए के बा, लड़े के नइखे. ऊ कहलन, रोवल आसान बा, सरकार के कोसल आसान बा. बाकिर आम हित खातिर आपन आपन मनमुटाव के एक ओरी रख के न्याय खातिर, अधिकार खातिर लड़ल मुस्किल बा.
कुछ संरक्षणवादी, पशु प्रेमी, जानकार आउर बाघ प्रेमी के एगो टोली टीएटीआर आउर ओकरा लगे के इलाका में बन्यजीव के हित खातिर लागल बा. बाकिर बड़खल के अफसोस एह बात के बा कि ओह लोग के एह बात के परवाह नइखे कि इहंवा रहे वाला लोग के समस्या केतना बढ़ रहल बा.
उनकर अभियान ही अकेला रस्ता बा. दू दसक में उनकरा चलते किसान लोग आवाज उठावे लागल बा, ओह लोग के आवाज सुनल जा रहल बा.
बड़खल जोर देके कहेलन, “बन्यजीव के संरक्षण प्रदान करे वाला लोग के हमनी के विचार सायद पसंद ना आई. बाकिर ई समझल जरूरी बा कि स्थानीय लोग खातिर ई जिनगी आउर मौत के सवाल बा.”
एह सवाल के सामना ऊ लोग आपन खेत पर करत बा, हर साल करत बा, रोज-रोज करत बा.
अनुवाद: स्वर्ण कांता