एक दिन बिहनिया अनु रुख के तरी प्लास्टिक के फटे सरकी मं बइठे दिखथे, ओकर चुंदी बगरे हवय अऊ चेहरा पिंयर पर गे हवय. लोगन मन ओकर ले दूरिहा ले गोठियावत हवंय. तरी मं मवेसी सुस्तावत हवंय अऊ चारा के ढेरी घाम मं सुखत हवय.
अनु कहिथे, “बरसात होय ला घलो मंय एक ठन छाता धरके रुख के तरी मं बइठ जाथों अऊ घर के भीतर नई जावंव. इहाँ तक ले के मोर परछाई घलो ककरो उपर परे नई चाही. हमन अपन भगवान ला रिसाय के खतरा नई ऊठाय सकन.”
ये रुख ह ओकर घर ले 100 मीटर दूरिहा खुल्ला जगा मं हवय. हरेक महिना महवारी बखत तीन दिन तक ले ये रुखेच ह ‘घर’ बन जाथे.
अनु (असल नांव नई) कहिथे, “मोर बेटी एक ठन थारी मं मोर सेती खाय के धरके चले जाथे.” ये बखत मं वो ह अलग बरतन बऊरथे. “अइसन नई ये के मंय इहाँ अपन खुसी सेती सुस्तावत रहिथों. मंय (घर मं) बूता करे ला चाहतों, फेर, अपन संस्कृति के मान रखे सेती इहाँ हवंव. मंय हमर खेत मं बूता करथों, जब उहाँ बनेच जियादा काम पर जाथे.” अनु के परिवार ह डेढ़ एकड़ के अपन जमीन मं रागी के खेती करथे.
फेर, ये बखत मं अनु अपन दम मं अकेल्लाच रहिथें, अइसने करेइय्या वो ह अकेल्ला नई ये. 17 अऊ 19 बछर के ओकर बेटी मन घलो इहीच करथें, (21 बछर के ओकर एक झिन अऊ बेटी हवय, जेकर बिहाव हो गे हवय). 25 परिवार के ये नानकन गांव मं काडूगोल्ला समाज के माइलोगन मन ला अइसने तरीका ले अलग रहे ला परथे.
जचकी के ठीक बाद घलो माइलोगन मन कतको किसिम के रोक ला झेलत रहिथें. अनु के रुख के तीर मं 6 ठन झोपड़ी हवंय, जऊन मं माइलोगन मन अपन जन्मे लइका के संग रहिथें. दीगर मऊका मं झोपड़ी खाली रहिथे. महवारी बखत माईलोगन मन ला रुख के तरी मं रहे ला होथे.
ये रुख अऊ झोपड़ी मन गांव के पाछू डहर बने हवंय, जऊन ह कर्नाटक के रामनगर ज़िला के चन्नापटना तालुका के एक ठन गाँव (जेकर अबादी साल 2011 के जनगणना के मुताबिक 1070 हवय) अरलालासंद्र के उत्तर मं हवय.
महवारी के बखत बहिर मं फेंकाय ये माइलोगन मन फारिग होय धन दीगर निजी जरूरत परे ले झाड़ी धन खाली झोपड़ी मं जाथें, परिवार के लोगन मन धन परोसी मन वो ला गिलास अऊ बाल्टी मं पानी दे देथें.
जन्मे लइका के संग महतारी ला कम से कम महिना भर सबले अलग ये झोपड़ी मं रहे ला परथे. पूजा (बदले नांव) एक घरेलू माईलोगन आंय, वो ह 19 बछर के उपर मं बिहाव के बाद बीकाम पास करे हवय. ये बछर फरवरी मं वो ह बेंगलुरु के निजी अस्पताल मं (ओकर गांव ले 23 कोस दूरिहा) लइका ला जनम देय रहिस. पूजा एक ठन झोपड़ी डहर आरो करत बताथें, “मोर आपरेसन (सी-सेक्शन) होय रहिस. मोर सास-ससुर अऊ घरवाला ह अस्पताल आय रहिस, फेर रिवाज के मुताबिक वो मन लइका ला महिना भर छुये नई सकंय. जब मंय अपन मायका (अरलालासंद्र गांव मं काडूगोल्ला समाज के बस्ती: वो अपन घरवाला के संग दूसर गांव मं रहिथें) आंय, त मंय पाख भर ले एक ठन झोपड़ी मं रहंय. ओकर बाद मंय ये झोपड़ी मं आ गेंय.” पूरा 30 दिन तक ले बहिर रहे के बाद, वो अपन लइका संग भीतर आय सकिन.
गोठियाय बखत ओकर लइका रोय ला धरथे. वो अपन लइका ला अपन दाई के लुगरा ले बने झूला मं सुता देथे. पूजा के दाई गंगम्मा (ओकर उमर 40 ले कुछु ऊपर हवय) कहिथें, “वो ह (पूजा) सिरिफ पाख भर ले अलग झोपड़ी मं रहिस. हमर गांव मं हमन बनेच नरम हो गे हवन. (काडूगोल्ला के) दूसर गांव मं जचकी के बाद महतारी ला अपन लइका के संग दू महिना ले जियादा झोपड़ी मं रहे ला परथे.” ओकर परिवार मेढ़ा पालथे, अऊ अपन एक एकड़ के खेत मं रागी अऊ आमा के खेती करथे.
पूजा अपन दाई के गोठ सुनत हवंय, ओकर लइका झूला मं सुत गे हवय. वो ह कहिथे, “मोला कऊनो दिक्कत नई होइस. मोर दाई ह मोला सबू समझाय सेती हवय. बस बहिर मं गरमी बनेच जियादा हवय.” वो अब 22 बछर के हवंय अऊ एमकॉम करे ला चाहत हवंय. ओकर घरवाला बेंगलुरु के एक ठन निजी कालेज मं नऊकरी करथें. पूजा कहिथे, “मोर घरवाला घलो चाहथे के मंय ये रिवाज ला मानंव. मंय इहाँ नई रहे ला चाहथों. फेर, मंय विरोध नई करेंव. हमन सब्बो ला ये सब करे ला परथेच.”
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ये रिवाज दूसर काडूगोल्ला बस्ती मन मं घलो हवय. ये सब्बो बस्ती मन ला इहाँ गोल्लाराडोड्डी धन गोलारहट्टी कहे जाथे. इतिहास के मुताबिक काडूगोल्ला मवेसी पोसेइय्या घुमंतू जात आय, जऊन ला कर्नाटक मं अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) मं रखे गे हवय (फेर ये समाज हा अपन ला अनुसूचित जनजाति के रूप मं रखे जाय के मांग करत रहिथे). कर्नाटक मं ये समाज के अबादी करीबन 300,000 (जइसने के रामनगर के पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के उपनिदेशक पी. बी. बासवराजू बताथें) ले 10 लाख (कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के एक पूर्व सदस्य के मुताबिक) के बीच हवय. बासवराजू के मुताबिक, ये समाज खासकरके राज के दक्खन अऊ मंझा के हिस्सा मं आय दस ज़िला मं रहिथे.
पूजा के झोपड़ी ले 25 कोस दूरिहा तुमकुर जिला के डी. होसहल्ली गाँव के काडूगोल्ला बस्ती मं, जयम्मा घलो मंझनिया अपन घर के आगू के सड़क के तीर रुख के तरी सुस्तावत हवंय. ये ओकर महवारी के पहिला दिन आय. ओकर ठीक पाछू एक ठन संकेला खुल्ला नाली बोहावत हवय, अऊ ओकर बगल मं स्टील के थारी अऊ गिलास भूईंय्या मं रखे हवय. वो ह हर महिना तीन दिन रुख के तरी मं सुतथें, इहाँ तक के बरसात मं घलो. वो ह ये बखत अपन घर के रसोई का बूता नई करे सकंय, फेर वो अभू घलो अपन मेढ़ा मन ला चराय तीर के खुल्ला इलाका मं ले जाथें.
वो ह कहिथें, “कऊन बहिर मं सोया ला चाहथे? फेर ये सब्बो ला करे ला परथे काबर भगवान (काडूगोल्ला समाज के लोगन मन कृष्ण भक्त आंय) इही चाहथे. कालि मोर करा पनपनी रहिस, पानी बरसत बेरा मंय ओकर तरी बइठे रहंय.”
जयम्मा अऊ ओकर घरवाला मेढ़ा पोसथें. ओकर दू झिन बेटा (दूनो के उमर 20 ले 30 बछर के मंझा हवय) बेंगलुरु मं कारखाना मं बूता करथें. वो ह कहिथें, “जब वो मन के बिहाव होही, त वो मन के घरवाली मन ला घलो वो बखत बहिर मं सुते ला परही, काबर हमन हमेसा अपन रिवाज ला मने हवन, जिनिस मन सिरिफ ये सेती नई बदलंय, के मोला पसंद नई ये. हर मोर घरवाला अऊ बस्ती के दूसर लोगन मं ये रिवाज ला खतम करे ला चाहीं, त मंय तऊन दिन (महवारी) मं अपन घर मं रहे ला सुरु कर दिहूँ.”
कुनिगल तालुका के डी. होसहल्ली गांव के काडूगोल्ला टोला के दीगर माइलोगन मन ला घलो अइसने करे ला परथे. 35 बछर के लीला एम. एन. (बदले नांव), जऊन ह गाँव के आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंय, बताथें, “मोर गाँव मं, महवारी आय ले माइलोगन मन पहिली तीन रात तक ले बहिर रहिथें अऊ चऊथा दिन बिहनिया लहूंटथें.” वो मन महवारी आय ले खुदेच घलो बहिर रहिथें. वो ह कहिथें, “ये ह आदत जइसने आय. लोगन मन भगवान के डर ले ये रिवाज ला बंद करे नई चाहंय. रात मं घर के मरद मन (भाई, ददा धन घरवाला) दुरिहा ले घर के भीतरी ले धन बहिर ले माइलोगन ऊपर नजर रखे रहिथें. चऊथा दिन घलो गर माई लोगन के महवारी नई रुकय, त वो घर के भीतरी मं अलग रहिथें. घरवाली अपन घरवाला के संग नई सुते. फेर, हमन घर मं काम करथन.”
फेर, हरेक महिना काडूगोल्ला बस्ती के माइलोगन मन ला घर के बहिर रहे के नियम बन गे हवय, फेर, महवारी बखत धन छेवारी ला सबले अलग रखे के ये रिवाज ला कानून मं रोक लगाय गे हवय. कर्नाटक अमानवीय कुप्रथा अऊ काला जादू उन्मूलन अऊ निवारण अधिनियम, 2017 ह अइसने 16 रिवाज ऊपर रोक लगाय हवय. ये मं, महवारी आय धन जचकी के बाद माईलोगन मन ला गाँव आय ले रोके धन अलग रखे, जबरन घर ले बहिर निकारे ले जुरे माई लोगन के विरोही रिवाज हवय. ये कानून के मुताबिक येला टोरे ले 1 ले 7 साल बछर के जेल अऊ जुरमाना हो सकत हवय.
फेर, ये कानून के लागू होय के बाद घलो काडूगोल्ला समाज के आशा अऊ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घलो ये रिवाज ला मानथें, जबकि वो मन के ऊपर समाज के सेहत देखभाल के जिम्मेवारी हवय. डी. शरदम्मा (बदले नांव) एक ठन आशा कार्यकर्ता आंय, अऊ वो ह हरेक महिना माहवारी बखत खुल्ला अकास तरी रहिथें.
करीबन 40 बछर के शरदम्मा कहिथें, “गांव मं हरेक इही करथें. चित्रदुर्ग (परोसी जिला) मं, जिहां मंय पले-बढ़े हवंव, लोगन मन ये रिवाज ला माने बंद कर दे हवंय काबर के वो मन ला लागथे के माइलोगन मन के बहिर रहे सुरच्छित नई ये. इह सब्बो ला लागथे के गर हमन ये रिवाज ला नई मानबो त भगवान हमन ला सजा दिही. मं य घलो ये समाज ले हवंव, येकरे सेती मंय घलो येला मानथों. मंय अकेल्ला कुछु बदले नई सकंव. अऊ मोला बहिर रहे बखत कभू कऊनो दिक्कत नई होय हवय.”
ये रिवाज के चलन काडूगोल्ला समाज के सरकारी करमचारी के घर मन मं घलो हवय. डी. होसहल्ली पंचइत मं काम करेइय्या 43 बछर के मोहन एस. (बदले नांव) के परिवार मं घलो ये राइवल ला माने जाथे. ओकर भाई के घरवाली, जऊन ह एमए अऊ बीएड करे हवय, बीते बछर दिसंबर मं महतारी बनिन, त वोला घर के बहिर अपन लइका के संग झोपड़ी मं दू महिना तक ले रहे ला परिस. ये झोपड़ी खासकरके ओकरे सेती बनाय गे रहिस. मोहन कहिथें, “वो ह एक तय दिन के बाद हमर घर के भीतरी आइस.” ओकर 32 बछर के घरवाली भारती (बदले नांव) घलो ओकर हामी भरत कहिथे, मंय घलो महवारी बखत कुछु नई छुवंव. मंय नई चाहंव के सरकार ये बेवस्था मं कुछु बदलाव करे. वो ह हमर रहे सेती एक ठन खोली बनवा सकत हवय, जेकर ले हमन ला रुख के तरी सुते झन परे.
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बखत के संग अइसने घर बनाय के कोसिस करेगे हवय. 10 जुलाई 2009 मं छपे एक ठन मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक सरकार ह हरेक काडूगोल्ला बस्ती के बहिर एक इसने महिला भवन बनाय के आदेश देय रहिस, जिहां एके संग 10 झिन माइलोगन मन रहे सकंय.
ये आदेस के जारी होय के पहिली जयम्मा के डी. होसहल्ली गांव के पंचइत ह सीमेंट ले एक ठन खोली बनवाय रहिस. कुनिगल तालुका के पंचइत सदस्य जी. टी.कहिथें ये खोली ओकर बचपना बखत करीबन 50 बछर पहिली बनवाय गे रहिस. गांव के माइलोगन मन कुछेक बछर रुख के तरी सुते के जगा, तऊन खोली मं रहत रहिन. अब ये खंडहर जइसने खोली के चरों डहर बनकांदी अऊ झाड़ी होगे हवंय.
अइसनेच अरलालासंद्र गांव के काडूगोल्ला टोला मं घलो माटी दीवार वाले खोली येकरे सेती बनवाय गे रहिस, जऊन ह अब काम मं नई आवत हवय. अनु कहिथे, “चार ले पांच बछर पहिली जिला के कुछेक अफसर अऊ पंचइत के सदस्य मन हमर गांव आय रहिन. वो मन (महवारी बखत) बहिर मं रहत माईलोगन मन ला घर जाय ले कहिन. वो मन कहिन के बहिर रहे ह बने नई ये. हमर खोली छोड़े के बादेच वो मन लहूंटिन. वो मन के जाय के बाद सब्बो खोली मं आ गे रहेन. कुछेक महिना बाद फिर ले वो मन आगें अऊ हमन ला महवारी बखत घरेच मं रहे ला कहिन, अऊ खोली ला टोरे लगिन. पहिली हमन कम से कम पखाना ला बऊरे सकत रहेन.”
साल 2014 मं पूर्व महिला एवं बाल कल्याण मंत्री उमाश्री ह काडूगोल्ला समाज के ये रिवाज के ख़िलाफ़ बोले के कोसिस करे रहिस. नमूना बतौर विरोध दरज करावत वो ह डी. होसाहल्ली गाँव के कडू गोल्ला बस्ती मं महवारी बखत माईलोगन मन के रहे सेती बने खोली के कुछेक हिस्सा ला टोर दीन. कुनिगल तालुका के पंचायत सदस्य कृष्णप्पा जी.टी. कहिथें, "उमाश्री मैडम ह हमार माइलोगन मन ला माहवारी बखत घर मं रहे ला कहिन. जब वो ह हमर गांव आय रहिन, त कुछेक लोगन मन ओकर बात ले राजी रहिन; फेर कऊनो ये रिवाज ला माने बंद नई करिस. वो ह पुलिस के संग आय रहिन अऊ फेरका अऊ खोली के दीगर हिस्सा मन ला टोर दीन. वो ह हमर इलाका के विकास करे के वायदा करे रहिन, फेर इहाँ कुछु घलो नई होइस.”
अब धनलक्ष्मी के.एम. (वो ह काडूगोल्ला समाज के नई यें), जऊन ह ये बछर फरवरी मं डी. होसहल्ली पंचइत के अध्यक्ष बनाय गे हवंय, माईलोगन मन के सेती अलग खोली बनाय के सुखाव ऊपर बिचार करत हवंय. वो ह कहिथें, “मंय हइरान हवंव के माईलोगन मन के हालत अतके गिरे हवय के वो मन जचकी धन महवारी जइसने नाजुक बखत मं अपन घर के बहिर रहे ला मजबूर हवंय. कम से कम मंय ओकर मन बर अलग घर बनवाय चाहत हवंव. दुख के बात ये आय के पढ़े लिखे जवान नोनी मन घलो ये रिवाज ला मानत हवंय. मंय कइसने बदलाव लाय सकत हवंव, जब वो मं खुदेच बदलाव के विरोध करत हवंय?”
ज़िला पिछड़ा कल्याण विभाग के पी.बी.बासवराजू कहिथें, “अब खोली अऊ दीगर मुद्दा मन ऊपर बहस बंद होय ला चाही. गर अलग खोली माइलोगन मन के मदद करथें घलो, तभे घलो हमन चाहथन के वो मन ये रिवाज ला माने बंद कर देवंय. हमन काडूगोल्ला समाज के माईलोगन ले बात करके वो मन ला ये अंधविश्वासी रिवाज ला रोके सेती समझाथन. येकर पहिली हमन एकर खिलाफ जागरूकता अभियान चलाय चुके हवन.”
अरलालासंद्र गांव के तीर के बासिंदा सीआरपीएफ के रिटायर अफसर (इंस्पेक्टर जनरल) के. अर्केश के मानना हवय के महवारी बखत माईलोगन मन के अलग रहे सेती खोली बनवाय ह, ये समस्या के समाधान नो हे. वो ह कहिथें, “कृष्ण कुटीर (ये खोली मन ला इही नांव ले बलाय जाथे) ये रिवाज ला वैध बनावत रहिन. माईलोगन के छूथिया होय जइसने मान्यता ला पूरा तरीका ले ख़ारिज कर देय ला चाही, न कि येला बढ़ावा देय जाय.”
येकर आगू वो ह कहिथें, “ये तरीका के हठधर्मिता भारी अतियाचारी आंय. फेर, समाज के दुवाब अइसने हवय के माईलोगन मन एक होके येकर खिलाफ लड़ई नई करेंय. सती प्रथा ला सिरिफ समाजिक क्रांति ले बंद करे जाय सकिस. वो बखत बदलाव के चाह रहिस. चुनावी राजनीति के चलत हमर नेता मन ये बिसय मं कऊनो बात नई करंय. अइसने मं राजनेता मन, समाजिक कार्यकर्ता मन, अऊ समाज के लोगन मन ला मिलके कऊनो कोसिस करे के जरूरत हवय.”
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फेर जब तक ले अइसने नई होही, तब तक ले देवी-देंवता के डर अऊ समाज के कलंक के डर ये रिवाज ला आगू बढ़ावत रिही.
अरलालासंद्र गांव के काडूगोल्ला बस्ती के बासिंदा अनु कहिथें, "गर हमन ये रिवाज ला नई मानबो, त हमर संग कुछु बनेच खराब घट सकथे. बनेच बछर पहिली हमन सुने रहेन के तुमकुर मं एक झिन माईलोगन महवारी बखत बहिर रहे ले मना कर दे रहिस. जेकर सेती ओकर घर मं कऊन जाने कइसने आगि धर देय रहिस.”
डी. होसहल्ली पंचइत के संग काम करेइय्या मोहन एस. कहिथें, "भगवान चाहथें के हमन अइसने रहन. गर हमन ओकर आदेस के मुताबिक नई चलबो, त हमन ला ओकर बड़े भारी नतीजा भुगते ला परही. गर ये बेवस्था ले रोके जाथे, त बीमारी बगरही, हमर छेरी अऊ मेढ़ा मन मर जाहीं. हमन ला बनेच अकन दिक्कत के सामना करे ला परही, लोगन ला बनेच अकन नुकसान उठाय ला परही. ये बेवस्था ला खतम नई होय ला चाही. हमन नई चाहन के ये मं बदलाव होवय.”
रामनगर ज़िला के सथानूर गांव के काडूगोल्ला बस्ती के गिरिगम्मा कहिथें, "मांड्या ज़िला मं एक झिन माईलोगन ला महवारी बखत घर मं रहे सेती सांप ह काट लेय रहिस." इहां, सरकार डहर ले बनवाय एक ठन पक्का खोली, जेकर संग नहानी खोली घलो हवय, मं अभू घलो माईलोगन मन महवारी बखत रहिथें. गांव के माई सड़क ले लगे एक ठन सांकर गली सीधा ये खोली तक ले ले जाथे.
तीन बछर पहिली अपन पहिली महवारी ला सुरता करत गीता यादव कहिथे, “मंय रोवत अपन दाई ला कहेंव के वो मोला उहां झन भेजय, फरे वो ह मोर बात नई मानिस. अब, संग मं हमेसाच कऊनो आंटी (दीगर माइलोगन मन जउन ला महवारी होवत रहिथे) मन होथें, येकरे सेती अब मंय बढ़िया करके सुते सकथों. मंय महवारी बखत इस्कूल ले सीधा ये खोली मं आथों. कास इहाँ सुते बर पलंग होतिस अऊ हमन ला भूईंय्या मं सुते ला नई परतिस.” गीता अभी 16 बछर के हवय अऊ ग्यारवीं मं पढ़त हवय. वो ह कहिथे, “गर आगू बखत काम करे सेती बड़े सहर मन मं गेंय, त मंय अलग खोली मं रहूं अऊ कऊनो जिनिस ला नई छुवंव, मंय ये परम्परा ला मानहूं. येला हमर गांव मं बनेच महत्तम देय जाथे.”
सिरिफ 16 बछर के उमर मं गीता ह ये रिवाज ला आगू ले जाय के बात करथे, 65 बछर के गिरिगम्मा के कहना आय के ओकर समाज मं माईलोगन मन करा सिकायत करे के कऊनो कारन नई ये, जब वो मन ला तऊन दिन मं आराम करे के मऊका देय जाथे. वो ह कहिथे, “हमन खुदेच घाम अऊ बरसात मं घर के बहिर रहे हवन. कभू-कभू अइसने घलो होय हवय के मोला तूफान के बखत दूसर जात के लोगन मन के घर जा के आसरा लेय ला परिस, काबर मोला अपन जात के कऊनो मइनखे के घर जाय के मनाही नई रहिस. कभू-कभू हमन भूईंय्या मं परे बड़े पान मं खावत रहेन. अब माईलोगन मन करा अलग बरतन हवय. हमन कृष्ण भक्त हवन, आखिर इहाँ के माईलोगन मन ये रिवाज ला कइसने नई मानहीं?”
29 बछर के रत्नम्मा (बदले नांव) कहिथे, “हमन ये तीन-चार दिन मं सिरिफ कलेचुप बइठे रहिथन, खाथन अऊ सुत जाथन. नई त हमन ला रांधे, झाड़े बुहारे अऊ छेरी मन के देखभाल सेती सरा दिन भागे ला परथे. जब हमन महवारी बखत अलग खोली मं रहिथन, त हमन ला ये जम्मो बूता ले निजात मिले रहिथे. रत्नम्मा कनकपुरा तालुका (सथानूर गांव घलो इही तालुका मं आथे) के कब्बाल पंचइत मं आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता हवंय.
फेर, गिरिगम्मा अऊ रत्नम्मा अलग रहे के ये रिवाज ला फ़ायदा जइसने देखथें, फेर ये रिवाज के चलते बनेच अकन अलहन अऊ मऊत होय हवंय. दिसंबर 2014 मं छपे एक ठन रपट के मुताबिक, तुमकुर मं अपन दाई के संग झोपड़ी मं रहत नव जन्मे लइका ला भारी बरसात सेती सर्दी हो गे अऊ येकर ले वोकर परान चले गे. एक ठन दीगर रपट के मुताबिक, साल 2010 मं मांड्या के मद्दुर तालुका के काडूगोल्ला बस्ती मं सिरिफ दस दिन के लइका ला कुकुर धर के ले गे.
काडूगोल्ला गाँव के डी. होसहल्ली बस्ती के पल्लवी जी. ये जोखिम मन ला लेके कहिथे, “कतको बछर मं अइसने दू धन तीन घटना आगू देखे मं आथें. येकर ले मोला कऊनो दिक्कत नई ये. ये झोपड़ी बनेच आराम देवेय्या आय. मोला काबर डर लगही? महवारी बखत मंय हमेसा अंधियार ले बहिर रहिथों. ये मोर सेती कऊनो नवा बात नई ये.” 22 बछर के पल्लवी घरेलू माइलोगन आंय अऊ वो ह इही बछर फरवरी मं अपन पहिली लइका ला जनम दे हवय.
पल्लवी के घरवाला तुमकुर मं गैस फ़ैक्ट्री मं काम करथें. वो अपन लइका संग एक ठन झोपड़ी मं सुतथें, जऊन ह दूसर झोपड़ी ले कुछेक मीटर दुरिहा हवय, जऊन मं ओकर दाई धन ददा ओकर संग देय ला रहिथें. ओकर झोपड़ी के ठीक आगू मं एक ठन पंखा अऊ बलफ़ लगे हवय अऊ बहिर चूल्हा मं पानी तिपोय सेती गंजी रखाय हवय. पल्लवी अऊ ओकर लइका के कपड़ा झोपड़ी के ऊपर सुखाय सेती बगरे हवय. दू महिना अऊ तीन दिन के बाद महतारी अऊ लइका ला घर के भीतरी ले जाय जाही, जऊन ह ओकर झोपड़ी ले 100 मीटर दूरिहा मं हवय.
कुछेक काडूगोल्ला परिवार महतारी अऊ लइका के घर के भीतर जाय ले पहिली एक ठन मेढ़ा के बलि देथें. वइसे शुद्धिकरन ले जुरे पूजा-पाठ करे जाथे, झोपड़ी अऊ सब्बो कपड़ा, महतारी अऊ लइका ले जुरे सब्बो जिनिस के सफई करे जाथे. गांव के सियान मन दुरिहा ले वो मन ला बतावत रहिथें. ओकर बाद वो मन ला मंदिर मं नामकरन संस्कार सेती लेगे जाथे. उहाँ वो मन पूजा करथें अऊ खाना खाथें, फिर वो मन ला घर के भीतर लेगे जाथे.
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फेर ये रिवाज के विरोध के कहिनी घलो हवय.
अरलालासंद्र गांव के काडूगोल्ला बस्ती के बासिंदा 45 बछर के डी.जयालक्ष्मा महवारी बखत अपन घरेच मं रहिथें, ओकर समाज के दूसर लोगन मन घेरी-बेरी वो मन के ऊपर ये रिवाज ला माने बर दुवाब डारथें. वो ह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंय. वो ह अपन चरों लइका के जनम के बाद अस्पताल ले सीधा घर आ गे रहिन, जेकर सेती परोसी काडूगोल्ला परिवार ओकर ला नराज हो गे.
जयालक्ष्मा कहिथें, “जब मोर बिहाव होय रहिस, ये गांव के सब्बो माईलोगन महवारी बखत नानकन झोपड़ी मं रहत रहिन धन कभू-कभू रुख के तरी रहत रहिन. मोर घरवाला ह ये रिवाज के विरोध करिस. मंय अपन मायका मं घलो ये रिवाज ला माने पसंद नई करत रहंय. येकरे सेती, मंय ये ला मने ला छोड़ देंय. फेर, हमन ला अभू तक ले येकरे सेती गांव वाले मन के ताना सुने ला परथे.” जयालक्ष्मा ह दसवीं तक ले पढ़े हवय. ओकर तीन झिन बेटी (जऊन मन के उमर 19 ले 23 बछर हवय) घलो महवारी बखत घर ले बहिर नई जावंय.
जयालक्ष्मा के घरवाला 60 बछर के कुल्ला करियप्पा रिटायर लेक्चरर आंय, वो ह एमए अऊ बीएड करे हवय. वो हं कहिथें, “ये (गांववाले) लोगन मन हमन ला ताना मारेंव, हलकान करेंव. जभे हमन ऊपर कऊनो दिक्कत आय, वो मन येकर कारन हमर रिवाज नई माने ले जोड़ें. हमन ला कहेंव के हमर संग भरी खराब हो सकथे. कभू-कभू वो मन हमन ले बचत रहिन. बीते कुछु बछर ले कानून के डर ले लोगन मन अब हमन ले अइसने बेवहार नई करंय. जब गांववाला मन मोर ले सवाल करत रिवाज ला माने ला कहेंव, त मंय ये कहंय के गुरूजी होय के नाते मंय अइसने नई कर सकंव. हमर नोनी मन ला ये कहिके बरगलाय जावत हवय के वो मन ला येकर कीमत चुकाय ला परही.”
अरलालासंद्र के बासिंदा 30 बछर के अमृता (बदले नांव) जऊन ह दू लइका के महतारी हवंय, जयालक्ष्मा जइसने ये रिवाज ला माने नई चाहत हवंय, फेर वो ह अइसने करे के काबिल नई यें. वो ह कहिथें, “ऊपर के कुछु लोगन (अफसर धन नेता) मन ला हमर गांव के सियान मन ला समझाय ला परही. जब तक अइसने नई होही, मोर पांच बछर के बेटी ला घलो (बड़े होय) इही करे ला परही. मोला ओकर ले ये करे ला कहे ला परही. मंय अकेल्ला ये रिवाज ला बंद नई करवा सकंव.”
पारी अऊ काउंटरमीडिया ट्रस्ट के तरफ ले भारत के गाँव देहात के किशोरी अऊ जवान माइलोगन मन ला धियान रखके करे ये रिपोर्टिंग ह राष्ट्रव्यापी प्रोजेक्ट 'पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया' डहर ले समर्थित पहल के हिस्सा आय जेकर ले आम मइनखे के बात अऊ ओकर अनुभव ले ये महत्तम फेर कोंटा मं राख देय गेय समाज का हालत के पता लग सकय.
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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू