रानी आपन खोली के ‘संगी’ लावण्या से कहेली, " अरे, ऊ खाली हमनी के “गेस्टहाउस’ के बारे में पूछे आइल बारी." हमनी के ओहिजा जाए के कारण जानी के दुनु जनी के तनी राहत भइल.

हमनी जनवरी के शुरू में पहिल बेर गेस्टहाउस के बारे में पूछताछ करे गइल रहनी. तब मदुरई जाली के टी कल्लूपट्टी बिलॉक के कूवलापुरम गांव में तनी घबराहट वाला माहौल बन गइल रहे. ओहिजा थोड़ा दूर बरांडा पर मरद लोग बइठल रहे. ऊ लोग तनी दूर बइठल दू गो मेहरारू के ओरी इशारा कई के फुसफुसाएल, “दुना जना ओतना उमिरगर ना रहली सन, दुनु के लइको रहे.”

ऊ मेहरारू लोग कहेली, "ऊ ओह तरफ बाड़ी, चलीं ओनही चलल जाव." कनिका देर में हमनी इहवां से आधा किलोमीटर दूर गांव के दूसरा छोर पर रहनी. ऊहां पहुंचला पर देखिनी कि ‘गेस्टहाउस’ एकदम सून पड़ल बा. उहंवा दू गो छोट-छोट खोली के बीच में नीम के गाछ रहे. ओकर डाढ़ से कइयक गो बोरा लटकत रहे. ई सब देखे में बड़ा अजीब आ अचरज करे वाला रहे.

माहवारी के समय गेस्टहाउस में मेहरारूए ‘मेहमान’ होखेली. अइसे त ऊ लोग कवनो तरह के नेवता, चाहे आपन इच्छा से इहंवा ना आवेली. बात ई ह कि मदुरई से करीब 50 किलोमीटर दूर 3000 के आबादी वाला ई गांव में रीति-रिवाज बहुत कड़ा बा. एहि से मासिक के समय ऊ लोग इहंवा आवे के मजबूर बाटे. गेस्टहाउस में मिले वाली दू गो मेहरारू- रानी आ लावण्या (ओकनी के असली नाम नइखे) के करीब पांच दिन ला एहिजा रहे के होखी. लइकी लोग के पहिल बेर माहवारी शुरू होखला के बाद इहंवा महीना भर रहे के पड़ेला. इहे हाल बचवा के जन्म देवे वाली मेहरारू के बा. उनकरा नएका बचवा संगे इहंवा कड़ा अनुशासन में रहे के पड़ेला.

“हमनी के खोली में आपन बोरा संगे राखेनी.” रानी बतावत बारी. बोरा में अलग-अलग बरतन रखल रहेला. माहवारी बेरा उहे बरतन में खाएके होला. इहंवा खाना ना बनेला. ई खाना पड़ोसी के घर से बनके आवेला, आ एही बरतन में मेहरारू लोग तक पहुंचावल जाला. हाथ से छुआ जाए के डर से खाना के बोरा में डाल के नीम के गाछी पर लटका देहल जाला. गेस्टहाउस में सब ‘विजिटर’ बदे बरतन के अलग-अलग सेट बा. फिर चाहे ऊ एक्के परिवार के काहे ना होखे. बाकिर एहिजा खाली दू गो खोली बा. एहसे इहंवा मिलके रहे पड़ेला.

Left: Sacks containing vessels for the menstruating women are hung from the branches of a neem tree that stands between the two isolated rooms in Koovalapuram village. Food for the women is left in these sacks to avoid physical contact. Right: The smaller of the two rooms that are shared by the ‘polluted’ women
PHOTO • Kavitha Muralidharan
Left: Sacks containing vessels for the menstruating women are hung from the branches of a neem tree that stands between the two isolated rooms in Koovalapuram village. Food for the women is left in these sacks to avoid physical contact. Right: The smaller of the two rooms that are shared by the ‘polluted’ women
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बावां: माहवारी के समय मेहरारू आ जनाना लोग जे बरतन में खाला, ओकरा बोरा में भरि के नीम के डाढ़ से लटका देहल जाला। नीम के गाछ कूवलापुरम गंउवा में गेस्टहाउस बदे इस्तेमाल होवे वाला दुनो खोली के बीच में बाटे। देह छुआ ना जाए एह से मेहरारू लोग बदे एहि बोरा में खाना छोड़ दिहल जाला। दायां: छोटका खोली जेमे ‘छूतहा’ मेहरारू लोग रहेला

कूवलापुरम में रानी आ लावण्या जइसन हालात के मारल मेहरारू के लगे माहवारी बखत एह खोली में रहे के अलावा कवनो चारा नइखे. ऐकरा में से पहिला खोली दू दशक पहिले बनल रहे. बनावे बदे गांव के लोग से पइसा-कउड़ी जुटावल गएल. दूनो मेहरारू के उमिर खाली 23 साल बा आउरी दूनो बियाहल बारी. लवण्या के दू गो बचवा बा, बाकिर रानी के एगो. दूनो के मरद खेतिहर मजदूर हवे.

लावण्या कहली, “अबहीं त खाली हमनिए दूनो बानी, बाकिर कबो-कबो इहवां आठ-नौ गो मेहरारू हो जाली. एकदम भीड़-भाड़ हो जाला. अइसन कै बेर हो जाला, एह से गांव के बुजुर्ग एगो आउर कमरा बनावे के बादा कइलन. ओकरा बाद एगो युवा कल्याण संगठन के मदद से पइसा जुटावल गइल. आखिर में अक्टूबर 2019 में काम पूरा भएल.”

अभी इहंवा खाली इहे दूगो मेहरारू बारी. रानी आ लावण्या नयका बनल कमरा पर कब्जा कइले बारी, काहेकि ई कमरा बड़ा, हवादार आ रोशनदार बा. दूनो जानी पुरान सोच आ रीति-रिवाज के चलते अइसन उपेक्षित जगह पर रहे के मजबूर बारी. हमनी के इहंवा एक तरह के विरोधाभास देखे के मिलल. लावण्या एक ओरी त पुराना रीति-रिवाज के साया में जियत बारी, त दोसरा ओरी उनकरा पास स्कूली दिनन में सरकार के दिहल आधुनिक लैपटॉप बा. ऊ कहत बारी, “हमनी का एहिजा बइठ के आपन समय कइसे बिताईं जा? एहिसे हम आपन लैपटॉप पर गाना सुनत रहिला, फ़िलिम देखत रहिला. अब जब घरे लौटम त एकरा ले ले जाएब.”

‘गेस्टहाउस’ (अतिथिगृह), मुट्टूथुरई बदे तनिक सुघर भाषा में लिखल गइल शब्द ह. एकर मतलब, 'छूतहा' मेहरारू बदे जगह होला. रानी बतावतारी, “हमनी के आपन बचवा के सामने एकरा ‘गेस्टहाउस’ कहनी, ताकि समझ में ना आवे कि ई असल में का बदे बा. मुट्टूथुरई में होखल बहुत शरम के बात मानल जाला- खासकर के जब कवनो मंदिर के त्योहार होखेला, चाहे गंउआ में कवनो प्रोग्राम. ऐकरा अलावा हमनी के गांव के बहरी अउरी रिश्तेदार लोगन के ए रिवाज के बारे में कवनो अंदाज़ा नइखे. कूवलापुरम मदुरई ज़िला के पांच गांव में से एगो ह. इहंवा मेहरारू के माहवारी के समय परिवार आ समाज से अलग-थलग रहे के पड़ेला. एह रिवाज के पालन करे वाला अउरी गांव सभ में पुदुपट्टी, गोविंदनल्लूर, सप्तुर अलगापुरी आ चिन्नयापुरम बारें.

अइसन अलगाव के कारण माहवारी लांछन के रूप में देखे जाए लागी. जब जवान, अनबियाहल लइकी समय पर गेस्टहाउस में ना होखेली त पीठ पीछे गांव के लोग फुसफुसावे लागेला. भानु (असली नाम नइखे) 14 बरिस के बारी. ऊ नौवां में पढ़ेली. उनकर कहनाम बा, “एह लोग के तनिको अंदाजा नइखे कि हमर मासिक धर्म के चक्र कइसे चलेला. बाकिर जदी हम हर बार 30 दिन पर ‘मुट्टूथुरई’ ना जाईं, त इहे लोग कहेला कि हमरा के स्कूल ना भेजे के चाहीं.”

चित्रण: प्रियंका बोरार

नारीवादी लेखिका सलाई सेल्वाम पुद्दुचेरी के मूल बाशां बारी. ऊ मासिक धर्म से जुड़ल वर्जना के खिलाफ बेबाकी से बोलेली. उनकर कहनाम बा, “हमरा तनिको अचरज नइखे. ई संसार मेहरारू के लगातार नीचा देखावे के, ओकरा साथ दोयम दर्जा के बर्ताव करे के जतन करेला. संस्कृति के नाम पर अइसन वर्जना खाली ओकर मौलिक अधिकार के मारे के एगो अउरी बहाना ह.” आ जइसन कि नारीवादी ग्लोरिया स्टीनम आपन ‘इफ़ मेन कुड मेंस्ट्रुएट’ वाला निबंध में पूछले बारी कि अगर मरद के भी पीरियड्स होखत होखे त का हालात अलग ना होखी?

हमनी कूवलापुरम और सप्तुर अलगापुरी में जेतना मेहरारू सब से मिललीं, जादे लोग सेल्वम के बात से पूरा तरह सहमत रहे- कि ई संस्कृति शोषण पर झूठ के परदा डाल देले बिया. रानी अउरी लावण्या दुनो के 12वीं के बाद पढ़ाई बंद करे के पड़ल. दुनो के तुरंत बियाह कर देहल गइल. रानी कहेली, “बच्चा जने बेर हालात तनी मुश्किल लागत रहे, एही से हमरा ऑपरेशन करावे के पड़ल. ओकरा बाद हमर पीरियड्स आगे-पीछे आवे लागल. बाकिर मुट्टूथुरई जाए में तनिको देर होए तो लोग सब पूछे लागेला कि हम फेर से पेट से त नइखी. ऊ लोग हमार दुर्दशा तनिको नइखे समझत.”

रानी, लावण्या आ कूवलापुरम के अउरी मेहरारू लोग के कवनो अंदाजा नइखे कि ई प्रथा कब आ कइसे शुरू भइल. बाकिर लावण्या कहत बारी कि हमनी के माई, दादी आ परदादी के भी एही तरह से अलग रहे के पड़ल. एहिसे हमनी के हालत उनकरा लोग से एकदम अलग नइखे.

चेन्नई के चिकित्सक आ द्रविड़ विचारक डॉ. एझिलन नागानाथन ए प्रथा के जन्म के बारे में एगो अजीब लेकिन तार्किक बात बतावत बारन. ऊ कहले, “एकर शुरुआत तब भइल जब हमनी के शिकारी रहनी.”

“तमिल शब्द वीटक्कू तूरम (घर से दूर– मासिक धर्म के दौरान महिला के अलगाव के बारे में बतावे के बदे इस्तेमाल होखेवाला एगो विनम्र शब्द) मूल रूप से कटुक्कु थुराम (जंगल से दूर) से बनल ह. तब मेहरारू लोग सुरक्षित जगह पर आश्रय लेत रहे. काहे कि मानल जात रहे कि माहवारी के खून के महक से खींचा के जंगली जानवर ए लोग के शिकार क सकता. बाद में एह रिवाज के सहारा लेकर मेहरारू लोग के दबाए जाएल लागल.”

कूवलापुरम के लोकसाहित्य ओतना तर्कसंगत नइखे. इहंवा के रहे वाला लोग के कहनाम बा कि ई एगो किरिया ह, सिद्धर (गुरू जइसन) के सम्मान में लिहल गइल बा. ऊ प्रतिज्ञा के पालन कइल ए गांव अउरी आस पास के बाकी चार गांव बदे एक तरह से बहुत जरूरी हो गइल बा. कूवलापुरम के सिद्धर के समर्पित मंदिर तंगामुडी सामी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी 60 साल के एम मुत्तू के कहनाम बा, “सिद्धर हमनी के बीच रहत रहले अउरी आपन जिनगी जियत हले. ऊ एगो देवता रहले आउरी शक्तिशाली रहले. हमनी के मानना बा कि हमनी के गांव आ पुडुपड्डी, गोविंदनल्लूर, सप्तुर अलगापुरी आ चिन्हयापुरम सिद्धर के मेहरारू रहली. वचन तोड़े के कवनो कोशिश एह गांव बदे सर्वनाश साबित होखी.”

Left: C. Rasu, a resident of Koovalapuram, believes that the muttuthurai practice does not discriminate against women. Right: Rasu's 90-year-old sister Muthuroli says, 'Today's girls are better off, and still they complain. But we must follow the system'
PHOTO • Kavitha Muralidharan
Left: C. Rasu, a resident of Koovalapuram, believes that the muttuthurai practice does not discriminate against women. Right: Rasu's 90-year-old sister Muthuroli says, 'Today's girls are better off, and still they complain. But we must follow the system'
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बावां: कूवलापुरम के रहेवाला सी. रासु के मानना बा कि मुट्टूथुरई प्रथा से औरत संगे शोषण नइखे होत. दाहिना: रासु के 90 बरिस के बहिन मुत्तुरोली कहतारी, 'आज के लइकिन के हालत ठीक बा, तबो ऊ लोग शिकायत करेली. लेकिन हमनी के नियम के पालन करे के होई'

बाकिर 70 बरिस के सी रासु के कवनो तरह के भेदभाव से इनकार बा. ऊ जादे कूवलापुरम में ही रहेलन. उनकर कहनाम बा, “ई रिवाजनदेवी-  देवता के मान-सम्मान देवे बदे बा. मेहरारू लोग के मजबूत छत, पंखा अउरी बढ़िया खुला जगह जइसन आराम देहल गइल बा.”

ई सब सुविधा उनकर 90 साल के बहिन मुत्तुरोली के अपना समय में ना हासिल रहे. ऊ तनी कड़ाई से कहत बारी, “हमनी  के खपरा आ फूस वाला खोली में रहत रहीं जा. बिजली भी ना रहे. आज के लइकिन के हालत बढिया बा. बाकिर इनका अबहियों शिकायत बा. हमनी के एह व्यवस्था के पालन न करम त हमनी के धूल में मिल जाइब.”

गांव के जादे मेहरारू लोग एह बात के अपना लेले बारी. एक बेर का भइल कि एगो मेहरारू आपन माहवारी छिपावे के कोशिश करली. उनकरा सपना में बेर-बेर सांप देखाई देवे लागल. जवना के एह अर्थ निकालल गइल कि ऊ परंपरा के तोड़ देली अउरी ‘मुट्टूथुरई’ ना गइली, एहि से अइसन मुत्तुरोली पर देवी के कोप भइल.

एह सब बातचीत में जवन बात छूट गइल ऊ ई कि गेस्टहाउस में शौचालय नइखे. भानु बतावत बारी,ल“हमनी के शौच या नैपकिन बदिले बदे दूर खेत में जाए के पड़ेला.” गांव में स्कूल जाए वाली लइकी लोग अब सेनेटरी नैपकिन (जवन के इस्तेमाल कइला के बाद जमीन में गाड़ देहल जाला, चाहे जरा देहल जाला या गांव के बाहर फेंक देहल जाला) के इस्तेमाल करेली. जबकि उमिरगर मेहरारू अबहु कपड़ा लेवली, जेकरा के ऊ लोग धो के फेर से इस्तेमाल करेला.

‘मुट्टूथुरई’ में ओहिजा रहे वाली मेहरारू लोग खातिर पानी के खुला नल बा- जवना के गांव के दोसर लोग ना छूएला. रानी बतावत बारी, “हमनी आपन संगे लावल कपड़ा आउर कंबल बिना धोवले गांव में दोबारा कदम नइखी रख सकत.”

Left: The small, ramshackle muttuthurai in Saptur Alagapuri is located in an isolated spot. Rather than stay here, women prefer camping on the streets when they are menstruating. Right: The space beneath the stairs where Karpagam stays when she menstruates during her visits to the village
PHOTO • Kavitha Muralidharan
Left: The small, ramshackle muttuthurai in Saptur Alagapuri is located in an isolated spot. Rather than stay here, women prefer camping on the streets when they are menstruating. Right: The space beneath the stairs where Karpagam stays when she menstruates during her visits to the village
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बावां: सप्तुर अलगापुरी के ई छोट, पुरान मुट्टूथुरई बहुत अलग-थलग जगह पर बा. माहवारी के समय इहंवा रहे के बजाय औरत लोग गली में डेरा डाल के रहेके पसंद करेला. दाएं: सीढ़ी के नीचे के जगह जहंवा गंउवा के दौरा बखत करपागम पीरियड आवेली पर रहेली

पड़ोसी गांव सप्तुर अलगापुरी में मेहरारू लोग के मानना बा कि जदी ऊ लोग ए रिवाज के ना मानी त उनकर मासिक धर्म बंद हो जाई. सप्तुर अलगापुरी, सेदप्पाटी ब्लॉक के करीब 600 के आबादी वाला एगो गांव ह. मूल रूप से चेन्नई के रहे वाला 32 साल के कापार्गम (काल्पनिक नाम) के अलगाव के ई प्रथा से चिढ रहे. ऊ कहेली, “बाकिर हम समझ गइनी कि संस्कृति ह आउर हम एकर विरोध नइखी कर सकत. हम आ हमार पति, दुनु जाना अब तिरुपपुर में काम करेनी. इहां खाली छुट्टी के दिन आवेनी जा.” ऊ आपन घर के सीढ़ी के नीचे एगो छोट जगह के तरफ अंगुरी देखावेली. ई पहिले उनकर माहवारी के समय रहे के ‘जगह’ होखत रहे

सप्तुर अलगापुरी के ‘मुट्टूथुरई’ एगो छोट आउर बहुत पुरान ढांचा ह. मेहरारू लोग मासिक धर्म होखला पर आपन घर के बाहरी सड़क पर डेरा डालल पसंद करेली. लेकिन 41 साल के लता (काल्पनिक नाम) के कहनाम बा कि अइसन तबे तलक बा "जब तलक बरखा नइखे होखत." बरखा होला त ऊ मुट्टुथुराई में रहे जाएली.

बहुत दुख के बात बा कि कूवलापुरम आ सप्तुर अलगापुरी, दूनो के लगभग सभे घर में शौचालय बा. सात साल पहिले राज्य योजना के तहत ई सब शौचालय बनल रहे. गांव के युवा एकर इस्तेमाल करेलन जबकि मेहरारू आ बुजर्ग लोग खेत में जाए के पसंद करेला. लेकिन दूनो गांव में ‘मुट्टूथुरई’ में शौचालय नइखे.

माइक्रोबायोलॉजी से ग्रेजुएशन करे वाली 20 साल के शालिनी (काल्पनिक नाम) के कहनाम बा, “मुट्टूथुरई पहुंचे खातिर हमनी के घुमावदार आउर पूरा तरीका से सुनसान रास्ता अपनावे के पड़ेला. माहवारी में हमनी के मुख्य सड़क से नइखी जा सकत.” शालिनी मदुरई के आपन कॉलेज में मासिक धर्म के बारे में कबहूं बाकी लइकी लोग से चर्चा ना करेली. ऊ डेराली कि कहीं एह 'रहस्य से पर्दा' ना उठ जाए. ऊ कहेली, “लेकिन ई कवनो गर्व के बात नइखे.”

सप्तुर अल्गापुरी के ऑर्गैनिक खेती करे वाला 43 बरिस के टी. सेल्वाकानी गांव के लोग से ए प्रथा के बारे में बात करे के कोशिश कइले बारन. ऊ पूछतारन, “भले हमनी के स्मार्टफोन आउर लैपटॉप चलावे के शुरू क देले बानी, लेकिन आज 2020 में भी हमनी के मेहरारू के (माहवारी के दौरान) अलग-थलग कर देहल जाला.” हालांकि कबो-कबो तर्क के बात कइला से भी ओतना काम ना बनेला. लता जिद्द पर अड़ल बारी, “इहां जिलाधिकारी के भी एह नियम के पालन करे के पड़ी. इहां क्लीनिक आउर अस्पताल में काम करेवाली नर्स (आ पढ़ल-लिखल आउर नियोजित महिला) भी माहवारी के दौरान बहरी रहेली.” ऊ सेल्वकणी से कहेली, “तोहार मेहरारू के भी एकर पालन करे के चाहीं, ई आस्था के सवाल बा.”

चित्रण: प्रियंका बोरार

मेहरारू लोग के गेस्टहाउस में पांच दिन रहेला पड़ेला. ओइसे पहिल बेर माहवारी शुरू होला पर लइकी के इहंवा पूरा महीना रहे के होला. जइसे जचगी के बादो मेहरारू आपन नएका बचवा संगे इहंवा एक महीना रहेली

सालई सेल्वाम के कहनाम बा, “मदुराई आउर थेनी जिला के आस-पास अइसन आउर बहुत 'गेस्टहाउस' मिल सकता. ओही लोग के पास अलग-अलग नियम के पालन करे खातिर अलग-अलग मंदिर बा. हमनी के पूरा कोशिश कइले बानी जा कि लोग से बात कएल जाए. लेकिन ऊ लोग ना सुनेला. काहे कि ई विश्वास के बात बा. एकरा के राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही बदलल जा सकता. लेकिन अइसन कुछ करे के बजाय सत्ताधारी लोग इहां जब वोट मांगे आवेले, त ऊ लोग गेस्टहाउस के आधुनिक बनावे के, इहां आउर दोसर सब सुविधा देवे के वादा करेले.”

सेल्वम के लागत बा कि अइसन करे के बदले अगर सत्ता में बइठल लोग चाहे त दखल देके एह तरह के गेस्टहाउस बंद करवा सकेला. उनकरा मुताबिक, “ऊ लोग के कहनाम बा कि ई मुश्किल बा, काहे कि ई आस्था के मामला बा. बाकिर हमनी एह तरह के अछूत व्यवहार के जारी राखे कब ले दे सकिले?  बेशक, जदी सरकार कड़ा उपाय करी त एकर बढ़िया नतीजा भी होई– लेकिन एकरा के खतम करे के होई. विश्वास करीं, लोग जल्दिए सब कुछ भुला जाई.”

तमिलनाडु में मासिक धर्म आउर मासिक धर्म के वर्जना कवनो नया बात नइखे. पट्टुकोट्टई ब्लॉक के अनाइक्कडू गांव के चौदह साल के एस विजया नवंबर 2018 में एह वर्जना के चलते आपन जान गंवा दिहली. ओह समय गज चक्रवात के कारण तंजावुर जिला पर भारी आफत आइल रहे. पहिला बेर पीरियड होखे वाली लइकी के आपन घर के नजदीक एगो फूस के झोपड़ी में अकेले रहे के पड़ल रहे. (मेन हाउस में रहे वाला उनकर परिवार के बाकी लोग बच गइल रहे).

मशहूर डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता गीता इलंगोवन 2012 में माधवीदाई (मासिक धर्म), माहवारी से जुड़ल वर्जना प आधारित डॉक्यूमेंट्री बनवले रहस. उनकर कहनाम बा, "तमिलनाडु में अइसन वर्जना जादे जगह मौजूद बा, सिर्फ स्तर अलग बा." अलगाव के रूप कुछ शहरी इलाका सभ में थोड़ा विवेकपूर्ण हो सके ला, बाकी ई  प्रचलन में बा. हम एगो नौकरशाह के मेहरारू के कहत सुनले बानी कि ऊ ओह तीन दिन आपन बेटी के रसोईघर में ना घुसे दिहली, आ इहे ओकर ‘आराम’ के समय रहे. रउआ जवना शब्दन में मन करे, कह सकिलें बाकिर आखिर में ई भेदभाव ही बा.”

इलांगोवन इहो बतावत बारे कि मासिक धर्म सभ धर्म आउर सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि में आम बात बा, सिर्फ अलग-अलग तरीका से. ऊ कहली, “आपन डॉक्यूमेंट्री खातिर हम एगो अइसन महिला से बात कइनी, जवन कि अमेरिका के एगो शहर में ट्रांसफर होके गइल रहली. लेकिन ऊ माहवारी में आइसोलेशन में रहली. उनकर तर्क रहे कि ई उनकर निजी पसंद ह. जवन उच्च वर्ग के, उच्च जाति के महिला खातिर निजी पसंद बा, ऊ बेआवाज महिला खातिर सामाजिक दबाव बन जाला. ऊ लोग बहुत सख्त पुरुषप्रधान समाज में जवाबी कार्रवाई करे के कवनो हिम्मत ना देखा पावेली.”

Left: M. Muthu, the chief executive of the temple in Koovalapuram dedicated to a holy man revered in village folklore. Right: T Selvakani (far left) with his friends. They campaign against the 'iscriminatory 'guesthouse' practice but with little success
PHOTO • Kavitha Muralidharan
Left: M. Muthu, the chief executive of the temple in Koovalapuram dedicated to a holy man revered in village folklore. Right: T Selvakani (far left) with his friends. They campaign against the 'iscriminatory 'guesthouse' practice but with little success
PHOTO • Kavitha Muralidharan

बावां: एम मुत्तू, कूवलापुरम में गांव के लोकगीत/लोकसाहित्य में पूजनीय एगो पवित्र आदमी के समर्पित मंदिर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बाड़न, दहिना: टी सेल्वकणी (दूर बावां ओरी) आपन दोस्त लोगन संगे. ऊ भेदभाव करे वाली ‘गेस्टहाउस’ प्रथा के खिलाफ़ अभियान चलावत बाड़न, बाकिर एह में उनकरा ओतना सफलता नइखे मिलत

इलांगवन आगे कहेली, "हमनी के इहो याद रखे के चाहीं कि शुद्धता/शुद्धता के ई संस्कृति असल में 'उच्च' जाति के बनावल बा. फिर भी एकर असर पूरा समाज पर पड़ेला." कूवलापुरम के समुदाय बहुत हद तक दलित ह. फिल्मकार बतावत बारी, “डॉक्यूमेंट्री के टारगेट ऑडियंस पुरुष रहले, हम चाहतानी कि ऊ लोग ए मुद्दा के समझे. नीति बनावे वाला लोग में अधिकतर पुरुष बारे. जबले हमनी का एकरा बारे में बात ना करब जा, जबले घर में एह बारे में बतियावे शुरू ना करब जा, तबले हमरा कवनो उमेद नइखे लउकत."

संगही, चेन्नई के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शारदा शक्तिराजन के कहनाम बा, “बिना पानी के उचित सुविधा के महिला के अलग कइला से स्वास्थ्य खातिर बहुत खतरा हो सकता. गीला पैड के लंबा समय तक इस्तेमाल आउर साफ पानी के कमी के चलते पेशाब आउर प्रजनन नली में संक्रमण हो सकता. अइसन संक्रमण से औरत लोग के भविष्य में प्रजनन क्षमता बिगड़ सकेला आ पुराना बेमारी हो सकेला. जइसे कि कोख में हमेशा दर्द. साफ-सफाई के कमी (पुरनका कपड़ा के दोबारा इस्तेमाल) आ एकरे नतीजा में संक्रमण सर्वाइकल कैंसर के बिकास में एगो महत्वपूर्ण कारक ह.”

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित साल 2018 के एगो रिपोर्ट के मुताबिक, महिला के प्रभावित करेवाला गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर दूसर सबसे आम कैंसर बा, खासतौर पर तमिलनाडु के ग्रामीण इलाका में.

उहंई कूवलापुरम में, भानू के आउर प्राथमिकता बा. ऊ कहेले, “ए प्रथा के बदलल नइखे जा सकत, चाहे केहु केतनो जोर लगा लेवे. अगर रउआ सचमुच हमनी खातिर कुछ कर सकेनी त कृपया हमनी खातिर ‘मुट्टूथुरई’ में शौचालय के इंतजाम करवाईं. एहसे हमनी के जिनगी तनी आसान हो जाई."

पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.

रउआ ई लेख के छापल चाहत कइल चाहत बानी ? बिनती बा [email protected] पर मेल करीं आ एकर एगो कॉपी [email protected] पर भेज दीहीं.

अनुवाद : स्वर्ण कांता

Kavitha Muralidharan

ਕਵਿਥਾ ਮੁਰਲੀਧਰਨ ਚੇਨੱਈ ਅਧਾਰਤ ਸੁਤੰਤਰ ਪੱਤਰਕਾਰ ਅਤੇ ਤਰਜ਼ਾਮਕਾਰ ਹਨ। ਪਹਿਲਾਂ ਉਹ 'India Today' (Tamil) ਵਿੱਚ ਸੰਪਾਦਕ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 'The Hindu' (Tamil) ਵਿੱਚ ਰਿਪੋਰਟਿੰਗ ਸੈਕਸ਼ਨ ਦੀ ਹੈਡ ਸਨ। ਉਹ ਪਾਰੀ (PARI ) ਦੀ ਵਲੰਟੀਅਰ ਹਨ।

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Illustration : Priyanka Borar

ਪ੍ਰਿਯੰਗਾ ਬੋਰਾਰ ਨਵੇਂ ਮੀਡਿਆ ਦੀ ਇੱਕ ਕਲਾਕਾਰ ਹਨ ਜੋ ਅਰਥ ਅਤੇ ਪ੍ਰਗਟਾਵੇ ਦੇ ਨਵੇਂ ਰੂਪਾਂ ਦੀ ਖੋਜ ਕਰਨ ਲਈ ਤਕਨੀਕ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰ ਰਹੀ ਹਨ। ਉਹ ਸਿੱਖਣ ਅਤੇ ਖੇਡ ਲਈ ਤਜਰਬਿਆਂ ਨੂੰ ਡਿਜਾਇਨ ਕਰਦੀ ਹਨ, ਇੰਟਰੈਕਟਿਵ ਮੀਡਿਆ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਹੱਥ ਅਜਮਾਉਂਦੀ ਹਨ ਅਤੇ ਰਵਾਇਤੀ ਕਲਮ ਅਤੇ ਕਾਗਜ਼ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਵੀ ਸਹਿਜ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦੀ ਹਨ।

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Series Editor : Sharmila Joshi

ਸ਼ਰਮਿਲਾ ਜੋਸ਼ੀ ਪੀਪਲਸ ਆਰਕਾਈਵ ਆਫ਼ ਰੂਰਲ ਇੰਡੀਆ ਦੀ ਸਾਬਕਾ ਸੰਪਾਦਕ ਹਨ ਅਤੇ ਕਦੇ ਕਦਾਈਂ ਲੇਖਣੀ ਅਤੇ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਕਰਦੀ ਹਨ।

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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