कोरोना के बीच बड़े-बड़े महानगरों से अपने घरों की ओर प्रस्थान करने वाले प्रवासी मज़दूरों की तस्वीरें मीडिया में छाई हुई हैं. लेकिन, छोटे क़स्बों और दूरदराज़ के देहातों के संवाददाता भी घर लौट रहे मज़दूरों की कठिनाइयों को उजागर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. बिलासपुर के एक वरिष्ठ फ़ोटो जर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय भी उन लोगों में से एक हैं. वह प्रवासी मज़दूरों को कवर कर रहे हैं, जो पैदल ही काफ़ी लंबी दूरी तय करते हुए अपने घरों की ओर लौट रहे हैं. इस रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई उनकी तस्वीरों में, छत्तीसगढ़ के रायपुर से झारखंड के गढ़वा ज़िले के विभिन्न गांवों में लौट रहे लगभग 50 कामगारों का एक समूह दिखता है.

रायपुर और गढ़वा के बीच की दूरी 538 किलोमीटर है.

वह बताते हैं, “वे पैदल चल रहे थे. पिछले 2-3 दिनों में वे 130 किलोमीटर (रायपुर और बिलासपुर के बीच की दूरी) पहले ही चल चुके थे. उनका कहना था कि अगले 2-3 दिनों में वे अपने गंतव्य तक पहुंच जाएंगे.” (सत्यप्रकाश की एक फ़ेसबुक पोस्ट ने इन मज़दूरों के संकट की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. फिर इस मसले पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ज़िला प्रशासन से संपर्क करके, उन मज़दूरों के लिए अंबिकापुर से आगे की यात्रा के लिए परिवहन की व्यवस्था करने के लिए कहा. ये मज़दूर घर जाने के लिए दृढ़ संकल्पित थे, भले उन्हें पैदल ही पूरी यात्रा करनी पड़े).

घर लौटने वाले मज़दूरों में से एक, रफ़ीक़ मियां ने उनसे कहा: “ग़रीबी इस देश में एक अभिशाप है, सर.”

कवर फोटो: सत्यप्रकाश पांडेय, बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार और वन्यजीव फ़ोटोग्राफ़र हैं.

PHOTO • Satyaprakash Pandey

‘उन्होंने 2-3 दिनों में 130 किलोमीटर (रायपुर और बिलासपुर के बीच की दूरी) पहले ही चल चुके थे’


अनुवाद: मोहम्मद क़मर तबरेज़

Purusottam Thakur

ਪੁਰਸ਼ੋਤਮ ਠਾਕੁਰ 2015 ਤੋਂ ਪਾਰੀ ਫੈਲੋ ਹਨ। ਉਹ ਪੱਤਰਕਾਰ ਤੇ ਡਾਕਿਊਮੈਂਟਰੀ ਮੇਕਰ ਹਨ। ਮੌਜੂਦਾ ਸਮੇਂ, ਉਹ ਅਜ਼ੀਮ ਪ੍ਰੇਮਜੀ ਫਾਊਂਡੇਸ਼ਨ ਨਾਲ਼ ਜੁੜ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਬਦਲਾਅ ਦੇ ਮੁੱਦਿਆਂ 'ਤੇ ਕਹਾਣੀਆਂ ਲਿਖ ਰਹੇ ਹਨ।

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Translator : Qamar Siddique

ਕਮਾਰ ਸਦੀਕੀ, ਪੀਪਲਜ਼ ਆਰਕਾਈਵ ਆਫ਼ ਰੂਰਲ ਇੰਡੀਆ ਵਿਖੇ ਉਰਦੂ ਅਨੁਵਾਦ ਦੇ ਸੰਪਾਦਕ ਹਨ। ਉਹ ਦਿੱਲੀ ਸਥਿਤ ਪੱਤਰਕਾਰ ਹਨ।

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