श्रीरंगम के तीर अपन तिल के खेत ले 10 मिनट दूरिहा, कोल्लिडम नदिया के बालू के पार मं घन अंधियार मं, किसान वडिवेलन मोला अपन कहिनी सुनावत हवंय. 1978 मं ओकर जनम के 12 दिन बाद ये नदिया मं पुर आय रहिस. ओकर गांव मं जिहां हरेक मइनखे एलू (तिल) कमाथे, मंदरस के रंग के ये तेल सेती पेरे जाथे. वो ह कुछु कहिन बताथे, तइरे सीखे बर कइसने ‘पानी मं उफलत केरा के दू ठन रुख ला धरे, कइसने एक ठन बड़े अकन नदिया –कावेरी के पार मं रहेइय्या प्रिया ले मया होगे, अपन ददा के मना करे के बाद घलो ओकर ले बिहाव घलो करिस. अऊ अपन डेढ़ एकड़ के खेत मं धान, कुसियार, उरीद अऊ तिल के खेती कइसने करथे ...
पहिली के तीन फसल ले कुछु पइसा मिल जाथे. वडिवेलन बताथे, “धान ले होय आमदनी ले हमन कुसियार के खेती मं करथन अऊ हमन वो पइसा ला जोत-फांद मं लगा देथन.” तिल – जेन ला तमिल मं एल्लु कहिथें -तेल सेती लगाय जाथे. तिल ला लकरी के घानी मं पेरे जाथे, अऊ नल्लेनेई (तिल धन गिंगेली तेल) ला एक ठन बड़े बरतन मं रखे जाथे. प्रिया कहिथे, “हमन येला रांधे, अऊ अचार बनाय सेती बऊरथन. अऊ ये ह रोज के येकर संग पानी के गरारा करथे. वडिवेलन हांसत कहिथे, “अऊ तेल चुपर के नुहाय, मोला नीक लागथे!”
अइसने कतको जिनिस हवय जेन ह वडिवेलन ला भाथे अऊ ये सब्बो सधारन चीज आंय. लइका उमर मं नदी मं मछरी धरे, अपन संगवारी मन संग धरे मछरी ला भून के खाय; गांव के एकेच ठन टीवी, सरपंच के घर मं देखे. “काबर, पता नई मोला टीवी देखे अतक भावत रहिस, जब ये ह बने करके चलत नई रहय त ले मंय ओकर अवाज ला घलो सुनत रहंव!”
फेर बिहनिया के ललिहाय रंग जइसने सुरता के दिन ह उजियार कस जल्दी सिरो जाथे. वडिवेलन बताथे, “अब सिरिफ खेती के भरोसा मं गुजर-बसर नई होय सकय. हमर जिनगी गुजरत हवय काबर के मंय गाड़ी (कैब) घलो चलाथों.” वो ह हमन ला श्रीरंगम तालुका के तिरुवलरसोलई मं अपन घर ले नदिया पार तक अपन टोयोटा एटियोस गाड़ी मं ले के आय हवंय. वो ह आठ फीसदी बियाज मं महाजन ले करजा लेके कार बिसोय रहिस; महिना मं वो ला 25,000 रूपिया भरे ला परथे. ये जोड़ा के कहना आय के पइसा बर जूझे ला परथे. अक्सर बिपत के बखत मं अपन सोन गिरवी रखे ला परथे. “देखव, गर हमर जइसने लोगन मन घर बनाय बर बैंक ले करजा लेय ला जाथन, वो मन हमन ला अतक घूमाहीं के 10 जोड़ी चप्पल घीस जाही,” वाडिवेलन ह दुख जतावत कहिथे.
अकास अब पेंटिंग बरोबर आय; गुलाबी, नीला अऊ करिया. कहूँ ले एक ठन मजूर बोलत हवय. वडिवेलन कहिथे, “नदिया मं ऊदबिलाव हवंय.” हमर ले जियादा दूरिहा मं नई यें, लइक मन ऊदबिलाव जइसने फुर्ती ले खेलथें. “मंय घलो अइसने करे रहेंव, इहाँ अपन मन बहलाय के दीगर साधन नई रहिस!”
वडिवेलन नदिया मन के पूजा घलो करथें. “हमन हरेक बछर, आडि पेरुक्कु - तमिल महीना आडि के 18 वां दिन- हमन सब्बो कावेरी के पार मं जाथन. हमन नरियर फोरथन, कपूर जलाथन, फूल चढ़ाथन अऊ पूजा करथन.” वो ह मानथे के आशीष देवत जइसने के तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली (जेन ला त्रिची घलो कहे जाथे)जिला मं कावेरी अऊ कोल्लिडम (कोलेरून) नदिया मन करीबन दू हजार बछर ले ओकर मन के खेत ला पलोवत आवत हवंय.
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उसनाय दार, तिल के लाडू,गोस मिले भात,
फूल, अगरबत्ती अऊ तुरते रांधे भात के परसाद
माईलोगन मन एक दूसर के हाथ धरे, उछाह मं नाचथें
सियान सुग्घर माईलोगन मन आशीष देवत कहिथें
“हमर राजा के ये महान भूईंय्या मं
भूख, रोग-रई अऊ बैर सिरा जावय;
पानी गिरे अऊ धन के बरसात होय”
चेंतिल नाथन अपन ब्लॉग ओल्ड तमिल पोएट्री मं लिखथें, दूसर सदी ईस्वी मं लिखाय तमिल महाकाव्य सिलप्पथिकारम के ये पूजा-धामी, “करीबन आज घलो तमिलनाडु मं वइसनेच चलन मं हवय.” [कविता: इंदिरा विडवु, पांत 68-75]
एल्लु (तिल) जुन्ना अऊ आज, दूनों के आय. एक ठन अइसने फसल जेन ला कतको -अऊ मनभावन- किसिम ले बऊरे जाथे. नल्लेनई, जइसने के तिल के तेल ला कहे जाथे, दक्च्छन भारत मं सबके पंसद के रांधे के तेल आय, अऊ तिल ले कतको देसी अऊ बिदेसी मिठाई मं घलो बऊरे जाथे. नान उज्जर धन करिया तिल कतको मीठ पकवान ला सुग्घर सुवाद देथे. अऊ ये ह कतको पूजा पाठ के महत्तम जगा रखथे, खासकरके तऊन पूजा पाठ मं जेन मं अपन पुरखा मन ला सुरता करे जाथे धन वो मन के पूजा करे जाथे.
‘तिल मं 50 फीसदी तेल, 25 फीसदी प्रोटीन अऊ 15 फीसदी कार्बोहाइड्रेट होथे. तिल अऊ रमतिल ऊपर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक ठन परियोजना मं कहे गे हवय के, ये ह ताकत के खजाना आय अऊ विटामिन ई, ए, बी कॉम्प्लेक्स अऊ खनिज जइसने कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, तांबा, मैग्नीशियम, जिंक अऊ पोटैशियम ले भरपूर हवय. तेल निकारे के बाद – एल्लु पुनाकु - (खली) ला मवेसी ला खवाय जाथे.
तिल (सेसमम इंडिकम एल.) सबले जुन्ना देसी तिलहन फसल आय, जेकर भरत मं खेती के इतिहास सबले जुन्ना हवय. आईसीएआर के छपे द हैंडबुक ऑफ एग्रीकल्चर मं कहे गे हवय के भारत दुनिया मं तिल कमेइय्या सबले बड़े देश आय. ये दुनिया भर के 24 फीसदी जमीन मं ये फसल लगाय जाथे. ये मं ये घलो कहे गे हवय के भारत दुनिया मं तिलहन के 12 ले 15 फीसदी, उपज मं 7 ले 8 फीसदी अऊ दुनिया मं खपत के 9 ले 10 फीसदी हिस्सा आय.
वइसे, ये ह कऊनो नवा जमाना के फसल नो हे. के.टी.अचाया ह अपन सबले बड़े अनुसन्धान इंडियन फ़ूड, ए हिस्टोरिकल कंपेनियन मं लिखे हवय के येकर देश के बहिर भेजे जाय के बारे मं बनेच अकन सबूत हवय.
भारत के रक्सहूँ दिग के बंदरगाह ले तिल के कारोबार के इतिहास मं दरज ह कम से कम पहली सदी ईस्वी पहिली के आय. पेरीप्लस मारिस एरिथ्रेइए (सरकमनेविगेशन ऑफ़ दी एरिथ्रियन सी), जेन ला एक ठन अज्ञात ग्रीक भाखा बोलेइय्या मिस्र डोंगनहार ह अपन आंखी ले देखे बात ला लिखे हवय, वो बखत के बेपार के महत्तम बात ला बताथे. वो ह बताय हवय के बिदेस भेजेइय्या भारी मोल के जिनिस मन मं हाथीदांत अऊ मलमल समेत –तिल के तेल अऊ सोन, दूनों ये बखत के तमिलनाडु के बूड़ति हिस्सा कोंगुनाडु ले रहिस. ये जोड़ी ह तेल के मान के आरो देथे.
अचाया के कहना आय के इहाँ के कारोबार घलो भारी रहिस. मंकुडी मरुतनर के लिखे मथुराइकांची मं मदुरै शहर के एक ठन नजारा ह बजार के उछाल ला बताथे: ‘अनाज बेपारी मन के जगा मं मरीच अऊ धान, बाजरा, चना, मटर अऊ तिल जइसने सोला किसिम के अनाज के बोरी के ढेरी लगे हवय.’
तिल के तेल ला राजा के संरक्षण हासिल रहिस. अचाया के किताब इंडियन फूड मं एक ठन पुर्तगाली बेपारी डोमिंगो पाएज़ के जिकर हवय, जेन ह 1520 के लगालगी विजय नगर मं कतको बछर तक ले रहत रहिस. पेस ह राजा कृष्णदेवराय के बारे मं लिखे हवय:
“राजा ला भोर मं डेढ़ पाव (तिल) तेल पिये के आदत रहिस अऊ उहीच तेल ले देह के मालिश करवात रहिस; वो ह अपन कनिहा ला एक ठन नानकन कपड़ा ले ढांक के रखय अऊ अपन हाथ मं बड़े वजन धरय, अऊ ओकर बाद अपन तलवार ले तक तक ले कसरत करत रहय जब तक ले ओकर जम्मो तेल पछीना संग निकर न जाय.”
वडिवेलन के ददा पलनिवेल घलो ये बात ला मंजूर करथें. हरेक बरनना ले अइसने लागथे के वो ह एक ठन खिलाड़ी रहिस. “वो ह अपन देह के भारी जतन करे. वो ह पखना [वजन] उठावय, नरियर के बगीचा मं कुस्ती सीखय. वो ह सिलंबम [संगम साहित्य मं लिखे गे तमिलनाडु के प्राचीन मार्शल आर्ट] ला घलो बनेच बढ़िया ढंग ले जानत रहिस.”
ओकर परिवार ह तेल सेती सिरिफ अपन खेत के तिल अऊ कभू-कभू नरियर तेल बऊरत रहिस. दूनों ला बड़े-बड़े बरतन मं रखे जावत रहिस. “मोला बने करके सुरता हवय, मोर ददा रैले सइकिल चलावत रहिस अऊ वो मं उरीद के बोरी लाद के त्रिचि के गांधी मार्केट जावत रहिस. वो ह मिरचा, सरसों, मरीच अऊ अमली धर के लहूंटय. ये ह जिनिस के बदला मं जिनिस जइसने रहिस. अऊ बछर भर के खाय के सेती भरपूर जमा रहय!”
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वडिवेलन अऊ प्रिया के बिहाव 2005 मं होय रहिस. वो मन के बिहाव त्रिची के तीर वायलूर मुरुगन मंदिर मं होय रहिस. वडिवेलन कहिथे, मोर ददा नई आइस, वो ह हमर बिहाव ला मंजूरी नई दीस. “बात तब बिगड़ गे रहिस जब बिहाव मं आय मोर संगवारी मन मोर ददा करा जाके पूछिन के काय वो ह चलत हवय, वो ह बगिया गे!” वडिवेलन बोलत जोर ले हांस परथे.
हमन ये जोड़ा के घर के हॉल मं, देंवता मन के फोटू ले भरे एक ठन शेल्फ के बगल मं बइठे हवन. भिथि मं परिवार के फोटू टंगाय हवय – सेल्फी, फुरसतहा दिन के फोटू, चित्र अऊ टीवी, जेन ह प्रिया के बखत बिताय के साधन आय. जब हमन पहुंचेन लइका मन स्कूल गे रहिन. ओकर पोसे कुकुर हमन ला एक नजर देख के चले गीस. “ये जूली आय,” वडिवेलन बताथे. “ये ह भारी मयारू आय, मंय मया ले खिथों के ये टूरा आय,” वडिवेलन जोर ले हँस परथे. जूनी रिसा के लहूँट जाथे
प्रिया ह हमन ला खाय ला बलाथे. वो ह बड़ाई अऊ पायसम बनाय हवय. वो ह हमन ला केरा के पाना मं परोसथे. खाना गुरतुर अऊ गरिष्ठ हवय.
जागे रहे बर हमन काम धाम के बारे मं गोठियाय लगथन. तिल के खेती कइसने होथे? वडिवेलन कहिथे, “ये ह मन ला टोर देथे.” वो ह बताथे के खेतीच आय. “मिले कुछु जियादा नई. फेर येकर खेती के लागत बढ़त जावत हवय. दीगर खातू जइसने यूरिया घलो अतक महंगा हवय. हमन ला खेत के जोत-फांद करे, तिल बोये ला परथे. येकर बाद बरहा बनाय ला परही, जेकर ले बीच मं पानी बोहावत रहय. हमन बेर बूड़े के बादेच खेत ला पलोथन.”
प्रिया बताथे के पहिली पानी पलोय के बखत करीबन तीसर हफ्ता मं होथे. तब तक ले, पऊधा ह अतक ऊंच हो जाथे, वो ह अपन हाथ ला भूईंय्या ले नौ धन दस इंच ऊपर राखत बताथे. “फेर ये ह तेजी ले बढ़े लगथे. पांचवां हफ्ता मं निंदई-गुड़ई करके यूरिया डार के हर दस दिन मं पानी पलोय ला परथे. गर घाम बढ़िया हवय, त उपज घलो बढ़िया मिलही
जब वडिवेल बूता करे जाथे, प्रिया ह खेत के देखरेख करथे. कऊनो घलो बखत, ओकर डेढ़ एकड़ के खेत मं कम से कम दू ठन फसल होथे. वो ह घर के काम-बूता ला निपटाथे, लइका मन ला स्कूल भेजथे, अपन बर खाय के धरते अऊ अपन बनिहार मन करा सइकिल मं जाथे. “बिहनिया 10 बजे हमन ला सब्बो सेती चाहा बनाय ला परथे. मंझनिया खाय के बाद, ये चाहा अऊ पलकारम [कलेवा] आय. अक्सर हमन सुइयम [गुरतुर] अऊ उरुलई बोंडा [नुनछूर] मिलथे. वो ह कुछु न कुछु बूता करत रहिथे, ऊपर-तरी होवत रहिथे, समान लाथे अऊ ले जाथे, झुकथे, उठाथे, चौका -बरतन करथे... “थोकन जूस पी लेवव,” वो ह कहिथे, येकर पहिली के हमन ओकर खेत देखे ला निकर जावन.
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एल्लु वयल धन तिल के खेत ला देखे ह सुग्घर लागथे. तिल के फूल कोंवर अऊ बड़ सुग्घर होथे. गुलाबी अऊ उज्जर रंग के ये फूल ह शिफॉन साड़ी अऊ फ्रेंच मैनीक्योर के सुरता कराथें. ये ह कहूँ ले घलो तऊन गाढ़ा तेल जइसने नई लगय, जेन ह दक्च्छन भारत मं रंधनीखोली मं खाय के महत्तम जिनिस आय.
तिल के झाड़ लाम अऊ पातर बिट हरियर रंग के पाना वाले होथे. डारा मं कतको हरियर फर होथे. हरेक ह बादाम जतक बड़े, अऊ इलायची के अकार के होथे, प्रिया ह हमर बर एक ठन फर ला फोर के देखाइस. भीतरी, कतको नान-नान उज्जर तिल के दाना हवंय. ये सोचे बड़े मुस्किल आय के एक चम्मच तेल बर कतक तिल ला पेरे के जरूरत होवत होही. काबर, एक ठन इडली ला अक्सर कम से कम दू अऊ थोकन इडलीपोडी( सुक्खा चटनी) के संग बघारे जाथे.
वइसे सीधा सोचे कठिन आय – अप्रैल के भारी घाम हवय. हमन तीर मं थोकन छाँव खोजथन. वडिवेलन के कहना आय के इहींचे बनिहारिन मन सुस्ताथें घलो. कतको बनिहारिन मन ओकर परोसी गोपाल के उरीद के खेत मं भारी मिहनत करत हवंय. दिन के भारी घाम ले बचे सेती अपन फरिया ला पागा बना ले हवंय. वो मन बिन सुस्ताय बूता करथें, सिरिफ मंझनिया खाय अऊ चाहा पिये सेती थिर होथें.
ये सब्बो सियान माइलोगन मन आंय.सबले डोकरी सियान 70 बछर के वी. मरियायी आंय. जब वो ह निंदाई-गुड़ाई, रोपा धन लुये के काम नई करत रहय त वो ह तुलसी के माला धरके श्रीरंगम मंदिर मं बेंचथे. ओकर बोली गुरतुर हवय. सुरुज चमकत हवय. निरदयी कस...
तिल के झाड़ ला सुरुज ले कऊनो फरक नई परय. वडिवेलन के 65 बछर के परोसी एस.गोपाल मोला कहिथे, वोला अब्बड़ अकन बात ले कऊनो फरक नई परय. वडिवेलन अऊ प्रिया ये बात ले राजी हवंय. तीनों किसान दवई (कीटनाशक) अऊ छिंचे ले लेके मुस्किल ले बात करथें –येला सरसरी नजर ले बताय जाथे – अऊ न त वो मन पानी के बारे मं चिंता करथें.तिल सब्बो किसिम के बाजरा बरोबर आय – उगाय मं असान आय, कम देखरेख के जरूरत परथे. वो ला जेन नुकसान कर सकथे वो ह आय बेबखत के बरसात.
अऊ 2022 मं इहीच होईस. वडिवेलन कहिथें, “जब बरसात नई होय ला रहिस –जनवरी अऊ फरवरी मं जब झाड़ ह छोटे रहिस, तब पानी गिरिस जेकर ले येकर बाढ़ ह ठहर गे.” खेत ह लुये के बखत मं हवय, वोला बनेच कम उपज के आस हवय. “बीते बछर हमन जेन 30 सेंट (एक एकड़ के एक तिहाई) लगाय रहेन, ओकर ले हमन ला 150 किलो मिलिस. ये बखत, मोला संदेहा हवय के 40 किलो पार करे सकहि धन नई.”
जोड़ा के अंदाजा हवय के अतक ले मुस्किल ले बछर भर के तेल के जरूरत पूरा होही. हमन एक बेर मं तिल ला करीबन 15 ले 18 किलो पेरवाथन. येकर ले हमन सात धन आठ लीटर तेल मिलथे. हमन ला अपन काम चलाय सेती दू बेर पेराय के जरूरत होथे, प्रिया बताथे. वडिवेलन हमन ला अवेइय्या दिन एक ठन तेल मिल मं ले जाय के वादा करथें. फेर तिल के काय? वोला कइसने संकेले जाथे?
गोपाल हमन ला येला देखे ला बलाथें. ओकर तिल के खेत थोकन दूरिहा, एक ठन ईंटा भठ्ठा के बगल मं हवय, जिहां बहिर ले आय कतको परिवार रहिथें अऊ बूता करथें –ईंटा पाछू एक रूपिया कमाथें. इहींचे वो मन अपन लइका मन के पालन-पोसन करथें (जेन मन छेरी अऊ कुकरी पोसथें) संझा के भठ्ठा ह बंद रहिथे. एम. सीनियाम्मल नांव के एक झिन ईंट मजूर मदद सेती आगू आथे.
सबले पहिली, गोपाल लुवाय तिल के झाड़ ला तोपे के तिरपाल ला हेरथें. गरमी अऊ सुखाय ला बढ़ाय बर अऊ बीजा चटके सेती ये मन ला एके संग कूढो के रखे जाथे. सीनिअम्माल भारी माहिर ढंग ले तिल काड़ी मन ला एक ठन तुतारी ले फटकथे. फर पाक के तियार हवंय, चटक जाथे अऊ तिल बहिर निकर के गिर जाथे. वो ह वोला अपन हाथ ले संकेलथे अऊ छोटे-छोटे गादा करथे. वो ह येला तक तक ले फटकत रहिथे जब तक ले जम्मो डारा ले तिल झर न जावय.
प्रिया, गोपाल अऊ ओकर बहुरिया डारा मन ला संकेल के बिंडल बांधथें. वो मन अब येला बारे मं नई लावंय. “मोला सुरता हवय के येला धान उसने सेती बऊरे जावत रहिस.फेर अब हमन मिल ले चऊर निकरवाथन. तिल के काड़ी ला बस बार दे जाथे,” वडिवेलन बताथे.
गोपाल बतावत जाथे, कतको जुन्ना चलन नंदा गे हवय. वो ह ये बात ले खास करके हलाकान हवय के उयिर वेली (काड़ी ले बाड़ा बनाय) के सोच ह खतम होगे हवय. “जब हमन बाड़ा बनावत रहेन, त कोलिहा मन बाड़ा के तीर मं बिल बनाके रहत रहंय. अऊ वो मन तऊन चिरई-चिरगुन अऊ जानवर उपर नजर राखत रहिन जेन मन हमर फसल खा जावत रहिन. अब तुमन ला कोलिहा नई दिखंय!” वो ह दुखी होवत कहिथे.
“हव, सच बात आय,” वडिवेलन कहिथे. “हर जगा कोलिहा रहिन. बिहाव के पहिली, मंय नदिया पार ले एक ठन पिल्ला उठा ले आय रहंय, ये सोच के ये कऊनो झबरा कुकुर आय. मोर ददा ह तुरते कहिस के ये ह थोकन अजीब लागत हवय. वो रतिहा कोलिहा मन के एक ठन गोहड़ी हमर घर के पाछू नरियावत रहय. मंय लहूंट के वो पिल्ला ला उही जगा मं छोड़ देंय जेन जगा मं मोला वो ह मिले रहिस!”
जब हमन गोठियावत रहिथन, सीनिअम्माल तिल – सुक्खा ढेंठा - पाना मिंझरे- ला एक ठन सूपा मं धर लेथे. अपन मुड़ उपर तक ले जाके, येला धीरे-धीरे हलाय लगथे. ये बूता ह मिहनत के संग सुग्घर हवय, अऊ माहिर हाथ मं तिल ह बरसात जइसने, संगीत करत गिरे ला धरथे.
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श्रीरंगम मं श्री रंगा मरचेक्कू (लकरी के घानी) मं रेडियो मं जुन्ना तमिल गाना बजत हवय. मालिक आर. राजू खाता-बही के पाछू बइठे हवंय. घानी तिल पेरे बखत चरमरात हवय. स्टील के बड़े बर्तन मं सोन-पिंयर तेल भरावत जावत हवय. जियादा तिल पाछू मं सूखत हवंय.
“18 किलो तिल पेरे मं डेढ़ घंटा लाग जाथे. हमन ये मं 1.5 किलो ताड़ के गुड़ मिलाथन. करीबन 8 लीटर तेल निकरथे.लोहा मिल ले निकरेइय्या ले थोकन कम,” राजू बताथे. वो ह ग्राहेक मन ले किलो पाछू पेरई 30 रूपिया लेथे. अऊ घानी के कोल्ड प्रेस्ड तिल के तेल 420 रुपये लीटर बेचथे. “हमन तेल के सुवाद बढ़ाय बर सिरिफ बने किसिम के बऊरथन –जेन ला सीधा किसान ले धन गांधी बजार ले 130 रूपिया किलो मं बिसोय जाथे- अऊ बने किसम के ताल गुड़ 300 रूपिया किलो मं बिसोय जाथे.”
घानी बिहनिया 10 बजे ले संझा 5 बजे तक ले चार बेर चलथे. ताजा पेरे तेल ला फटिक होय तक ले घाम मं रखे जाथे. खली [एल्लु पुनाकु] मं कुछु तेल बांचे रइथे, येला किसान मन अपन मवेसी ला खवाय बर 35 रूपिया किलो मं बिसोथें.
राजू के कहना आय के ओकर एक एकड़ तिल के खेती, लुवई, निमारे अऊ भरे मं 20,000 रूपिया ले जियादा खरचा बइठथे. अक्सर उपज 300 किलो तिल ले उपराहा होथे. वो ये तीन महिना के फसल सेती एकड़ पाछू 15,000 ले 17,000 रूपिया के नफा के अंदाजा लगाथे.
अऊ इहीच समस्या आय, वडिवेलन कहिथे. “तुमन जानथो के हमर मिहनत ले फायदा कऊन ला होथे? बेपारी ला. जब फसल हाथ मं आथे, त वो मन हमन ला देय रकम ले डबल कमाथें, ओकर आरोप आय. “वो मन के दाम बढ़ाय काबर आय? वो ह अपन मुड़ी हलावत हवय. “येकरे सेती हमन तिल नई बेंचन. हमन येला अपन घर के सेती, अपन खाय के सेती कमाथन. भरपूर...”
त्रिचि के भीड़-भड़क्का वाले गांधी मार्केट मं, तिल के दुकान मन खरीदी-बिक्री ले लेके कतको बूता ले भरे हवंय. किसान बहिर मं उरीद,मूंग अऊ तिल के बोरी ऊपर बइठे हवंय. बेपारी मन अपन ददा-बबा के जमाना के गुफा जइसने दुकान के भीतरी मं बइठे हवंय. 45 बछर के पी. सरवनन के कहना आय के जेन दिन हमन आयेन इहाँ उरीद के आवक जियादा रहिस. मरद अऊ माई मजूर मन दार निमारे, तौले अऊ भरत रहिन. वो ह बताथें, “इहाँ तिल के फसल अभी सुरु होय हवय. जल्दी बोरी आय ला सुरु हो जाही.”
फेर कतको होय ले घलो, 55 बछर के एस.चंद्रशेखरन के अंदाजा हवय के उपज ह ओकर ददा के बखत मं होय फसल के सिरिफ एक चौथाई होही. जून मं गांधी मार्केट मं हरेक दिन करीबन 2,000 एल्लु मूटई [तिल के बोरी] आवत रहिस. बीते कुछु बछर मं घटके ये ह 500 होगे हवय.किसान येकर खेती छोड़त हवंय. ये [फसल] मिहनत वाले आय. दाम बढ़त नई ये- ये ह 100 ले 130 रुपिया किलो के बीच मं हवय. येकरे सेती वो मं उरीद लगावत हवंय, जेन ला मसीन ले लुये जाय सकथे अऊ उहिच दिन बोरी मं रखे घलो जा सकथे.”
फेर मोर कहना आय के तेल के दाम भारी हवय अऊ बढ़त जावत हवय. किसान मन ला सबले बढ़िया दाम काबर नई मिलय? चन्द्रशेखरन जुवाब देथें, “ये ह बजार के भरोसा मं हवय, आवक अऊ खपत उपर, दीगर राज मं उपज उपर, बड़े तेल मिल मालिक मन के जमा करके रखे गे सेती.”
हर जगा, हर फसल अऊ जिनिस के इहीच बात आय. बजार कुछेक लोगन मन बर मितान आय, अऊ कुछेक लोगन मन के बैरी. ये बिलकुल साफ हवय के ये ह काकर तरफदारी करथे...
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खाय के तेल के उदिम मं आयत अऊ खपाय के लंबा अऊ जटिल इतिहास आय : जेन ह फसल अऊ सांस्कृतिक चलन मन ले जुरे रइथे. जइसने के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली मं समाजशास्त्र और नीति अध्ययन के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ऋचा कुमार एक ठन शोध मं बताथें: “साल 1976 मं, भारत अपन खाय के तेल के जरूरत के करीबन 30 फीसदी बहिर ले मंगावत रहिस. फ्रॉम सेल्फ-रिलायंस टू डीपनिंग डिस्ट्रेस , नांव वाले ये शोध मं कहे गे हवय; सरकार तऊन डेयरी सहकारी समिति मन के सफलता के नकल करे ला चाहत रहिस जेन मं दूध उत्पादन ला बढ़ावा मिले रहिस.”
फेर कुमार बताथें, पीली क्रांति के बाद घलो, भारत मं 1990 के दसक के बीच मं खाय के तेल मं कमी बढ़त देखे गीस, येकर कारन खेती मं तिलहन-अनाज-दार के मिश्रित फसल ला छोड़ के गहूँ, धान अऊ कुसियार जइसने फसल के जगा ले ले रहिस. सरकार डहर ले वो मन ला खास मदद अऊ खरीद के गारंटी दे गीस. येकर छोड़, 1994 मं खाय के तेल के आयात के उदारीकरण ह घरेलू बजार मं इंडोनेशिया ले सस्ता पाम तेल अऊ अर्जेंटीना ले सोयाबीन तेल बनेच अकन लाय के रद्दा खोल दीस.
कुमार लिखथें, “पाम तेल अऊ सोयाबीन तेल खाय के दीगर तेल के सस्ता उपाय बन गे, खास करके वनस्पति (रिफाइंड, हाइड्रोजिनेटेड वेजिटेबल शोर्टेनिंग) तेल बनाय मं, जेन ह भारी महंगा घिव के जगा बऊरे लोकप्रिय हवय. संग मं, वो मन कतको पारंपरिक अऊ क्षेत्रीय लोगन मन ला दूसर खेती करे डहर ले गीस. जम्मो भारत मं खेती मं तिलहन अऊ तेल, जेन मं सरसों, तिल, अलसी, नरियर अऊ मूंगफली शमिल हवय, किसान मन ला ये फसल फायदा के नई लगय.”
हालत ये होगे के भारत ह पेट्रोलियम अऊ सोना के बाद खाय के तेल ह अब सबले जियादा मंगाय के जिनिस बन गे हवय. भारत मं खाय के तेल मं आत्मनिर्भरता ऊपर जोर नांव ले जून 2023 मं छपे एक ठन शोध मं कहे गे हवय के कृषि आयात बिल मं ओकर हिस्सेदारी 40 फीसदी अऊ जम्मो आयात बिल मं 3 फीसदी हवय. गौर करे के बात ये आय के करीबन 60 फीसदी घरेलू खपत के मांग ह आयात ले पूरा होथे.
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वडिवेलन के घर के साठ फीसदी खरचा ओकर टेक्सी ले चलथे. कावेरी जइसने जेन ह ओकर गांव के ठीक पहिली दू भाग मं बंट जाथे. वडिवेलन के बखत -अऊ जिनगी- खेती अऊ ड्राइवरी मं बंटे हवय. वो ह कहिथे के पहिली ह कठिन आय. “ये ह बिन अचिंता के अऊ भारी लगन के काम आय.
काबर के वोला दिन मं बूता करे ला होथे अऊ लंबा बखत तक ले गाड़ी चलाथे, ओकर घरवाली ह खेत मं बूता करथे. घर के काम बूता के छोड़ ये सब्बो अधिकतर ओकरेच आय. वडिवेलन अक्सर मदद करथे. कभू-कभू रतिहा मं खेत मं पानी पलोय, अऊ लुवई मसीन लाय सेती बेंच दिन तक ले भटके, जब सब्बो के खेत के फसल पाक जाथे, त ओकर मांग बनेच होथे. वो ह खेत मं बनेच मिहनत करत रहिस. “फेर ये बखत मं, गर मंय रांपा ले बूता कर देथों त मोला दिक्कत हो जाथे अऊ ओकर बाद मंय कार नई चलाय सकों!”
येकरे सेती, ये जोड़ा ह बनिहार करथें. निंदई–गुड़ाई, रोपा अऊ तिल ला फटके सेती, वो मं अधिकतर सियान बनिहारिन मन ले बूता कराथें.
उरीद के खेती घलो ओतकेच कठिन आय. “फसल के ठीक पहिली अऊ बाद मं बरसात होईस, येला सूखाय के काम ह मोला भारी हलाकान करिस.” वो ह अपन उपर गुजरे ला बताथे. येकर सेती मंय अपन इडली अऊ दोसाई मं उलुंडु (उरीद) के अऊ घलो जियादा मान करथों.
“मंय बीस बछर के उमर मं लॉरी चलावत रहंय. ये मं 14 ठन चक्का रहिस. हमन दू झिन ड्राइवर रहेन अऊ पारी-पारी ले सरा देश घूमेन. उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कश्मीर, राजस्थान, गुजरात...” वो ह मोला बताथे के वो ह काय खाय-पियत रहिस.ऊंटनी के दूध के चाहा,रोटी अऊ दार, अंडा भुजी, नदिया तीर धन कभू-कभू वो मन नुहावत घलो नई रहिन, जइसने के जब श्रीनगर मं भारी जाड़ रहिस, गाड़ी चलाय बखत जागे सेती वो मन इलैयाराजा के गाना अऊ कुतु पाटु सुनंय.” वो ह मेल मिलाप,गपशप अऊ भूत ला लेके कतको कहिनी मंजा ले बताथे. “एक रतिहा मंय फारिग होय ला ट्रक ले उतरेंव. मुड़ ले कंबल ओढ़े रहेंव. दूसर बिहनिया, दीगर लोगन मन कहिन के वो मन हुड वाले भूत देखे हवंय!” वो ह हँसे ला लागथे.
वो ह देश भर मं गाड़ी चलाय ला छोड़ दीस काबर के येकर ले वोला हफ्तों घर ले दूरिहा रहे ला परत रहिस. अपन बिहाव के बाद, इहाँ तीर-तखार मं गाड़ी चलाइस अऊ खेती करिस. वडिवेलन अऊ प्रिया के दू झिन लइका हवंय –बेटी ह 10 वीं मं पढ़त हे अऊ बेटा सातवीं मं. वो ह सोचत कहिथे, हमन वो मन ला सब्बो कुछु देय के कोशिश करथन, फेर मंय लड़कपन मं ओकर मं ले जियादा मजा करत रहंय.
ओकर बचपना ह असान नई रहिस. तुमन ला बतावंव के असल मं वो बखत कऊनो हमन ला नई बढ़ाइन,” वो ह किंदरके मोर डहर देख के मुचमुचाथे. “हमन अपन के बढ़े हवन.” जब वो ह नवमीं मं पढ़त रहिस तब वोला पहिली जोड़ी चप्पल मिले रहिस. तब तक ले वो जुच्छा गोड़ हरियर कांदी लेगे आवत-जावत रहय. जेन ला ओकर दादी 50 पइसा बंडल मं बेचय. “कुछु लोगन मन येकर घलो मोल भाव करंय!” वो ह लंबा साँस लेवत कहिथे. वो ह स्कूल ले मिले पेंट-कमीज पहिर के सइकिल मं घूमत रहय. ये ह तीन महिना तक चलय. मोर दाई-ददा हमर बर बछर भर मं सिरिफ एक बेर नवा कपड़ा लावत रहिन.”
वडिवेलन ह कठिन बखत मं साहस करिस. वो ह खिलाड़ी रहिस अऊ दऊड़त रहिस, ईनाम जीतत रहिस. वो ह कबड्डी खेलत रहिस, नदिया मं तइरत रहिस, संगवारी मन के संग घूमत रहय अऊ घर मं हरेक रतिहा अपन अप्पाई (दादी) ले कहिनी सुनत रहय. “मंय आधा रद्दा मं सो जावत रहंय अऊ अवेइय्या रतिहा उहिंचे ले सुरु होवत रहिस. वो राजा-रानी मन के अऊ देंवता मन के बनेच अकन कहिनी जानत रहिस...”
फेर किशोर वडिवेलन के जिला स्तर मं खेले के ताकत नई रहिस काबर के ओकर परिवार समान अऊ खाय पिये के खरचा उठाय के ताकत नई राखत रहिस. घर मं खाय मं दलिया, भात अऊ झोर अऊ कभू-कभार गोस मिलत रहिस. स्कूल मं वोला मंझनिया खाय मं उपमा मिलत रहिस. अऊ संझा मं वोला ‘कलेवा’ मं बोरे खाय, पसिया पिये ह सुरता हवय. वो ह जानबूझके ये शब्द ला कहिथे. अऊ वो ह अब अपन लइका मन बर पेकेट वाले समान बिसोथे.
वो ह वो मन ला अपन बचपना के दिक्कत ले घलो बचाथे. दूसर बेर जब मंय ओकर मन के शहर मं गेंय, त कोल्लिडम के पार मं ओकर घरवाली अऊ बालू कोड़त रहंय. छे इंच गहिर, पानी निकरथे. प्रिया कहिथे, “ये नदिया के पानी शुद्ध हवय.” वो ह बालू के एक ठन टीला बनाथे, अऊ हेयरपिन ला तोप देथे, ओकर बेटी वोला खोजत हवय. वडिवेलन अऊ ओकर बेटा कम पानी के जगा मं नहावत हवंय, जिहां तक ले मोर नजर जाथे, तीर तखार मं सिरिफ हमन मन हवन. बालू मं घर लहूंटत गाय के खुर के चिन्हा परे हवंय. नदिया के घास सरसर करथे. ये वइसने सुग्घर हवय जइसने बड़े खुल्लाच जगा मं हो सकथे. वडिवेलन घर लहूंटत कहिथे, “तुमन ला शहर मं अइसने नजारा नई मिले सके, मिलही काय?”
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अवेइय्या बेर जब मंय नदिया ले मिलेंव त अइसने लगिस जइसने मंय शहर में हवं. मारामारी हवय. ये अगस्त 2023 के बखत आय, वडिवेलन शहर के मोर पहिली बेर जाय के बछर भर बाद के बखत. मंय इहाँ आडि पेरुक्कू सेती आय हवंव, जेन ह कावेरी के पार मं मनाय जाथे, जिहां नदिया के पार मं इतिहास, संस्कृति अऊ पूजा के मेल होथे.
श्रीरंगम के एक ठन सुन्ना गली मं कार रखत वडिवेलन ह चेताथे, “इहाँ भारी भीड़ होवेइय्या हे.” हमन अम्मा मंडपम डहर चले जाथन, जेन ह कावेरी के एक ठन घाट आय जिहां तिरथ करेइय्या मन जुरथें. ये बखत बिहनिया के 8;30 बजे हे अऊ ये ह गंजाय भरे पर हवय. पचेरी मं जगा नई ये, वो ह लोगन अऊ कर के पाना ले भरे हवंय, वदिया के परसाद के संग – नरियर, अगरबत्ती ले छेदा वाले केरा, नान हल्दी गनेश, फूल, फर अऊ कपूर. उछाह तिहार जइसने, बिहाव जइसने, सब्बो कुछु भारी बढ़े हवय.
नवा बियाहे जोड़ा अऊ ओकर घर के लोगन मन पुजारी तीर संकलाथें, जऊन ह वो मन ला सों के जेवर थेथली [मंगलसूत्र] ला एक ठन नवा धागा मं पिरोय मं मदद करथे. ओकर बाद जोड़ा ह पूजा करथें, अऊ अपन संभाल के रखे बिहाव के माला ला विसर्जित कर देथें. माइलोगन मन एक-दूसर के घेंच मं हल्दी रंगाय धागा ला बांधथें. नाता-रिश्ता, मित-मितान के लोगन मन ला कुमकुम लगाथें अऊ मिठाई बाँटथें. त्रिचि के नामी भगवान गणेश मंदिर, उचि पिल्लईयार कोइल, कावेरी के पार बिहनिया के सुरुज मं चमकत हवय.
अऊ नदिया कलेचुप बोहावत रइथे, पूजा अऊ मनौती ला लेके, खेत अऊ सपना मन ला पलोवत, जइसने के वो ह हजार बछर ले करत चलत आवत हवय...
सेल्फ़-रिलायंस टू डीपनिंग डिस्ट्रेस: दी एम्बिवलेंस ऑफ़ येलो रिवोल्यूशन इन इंडिया, शोध ला साझा करे सेती डॉ. ऋचा कुमार के गाड़ा-गाड़ा आभार
ये शोध अध्ययन ला अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अपन रिसर्च फंडिंग प्रोग्राम 2020 के तहत अनुदान मिले हवय.
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू