एक झिन मइनखे अपन सात बछर के बेटी के संग सलाना तीरथ, एक ठन तिहार आषाढ़ीवारी सेती पंढरपुर डहर रेंगत जावत हवय, जिहां राज भर ले हजारों लोगन मन वारकरी भगवान विट्ठल के मंदिर दरसन करथें. रद्दा मं वो मन लातूर के गाँव म्हैसगांव मं डेरा डारे के फइसला करथें. जइसने संझा होय ला लगथे, कीर्तन के अवाज बगरे ला लगथे. नानचिक नोनी खंजिरी (खंजरी) के हल्का-हल्का अवाज ला सुनके अपन ददा ले वोला कार्यक्रम मं ले जाय सेती कहे लगथे.
ओकर ददा के ले जाय के मन नइ ये. “इहां के लोगन मं हमर जइसने महार अऊ मांग ला नइ छुवंय,” वो ह समझे ला धरथे. “वो मन हमन ला कऊनो काम के नइ समझंय. वो मन हमन ला भीतरी जाय ला नइ देवंय.” फेर वो ह नइ मानत रहय. आखिर मं, ओकर ददा ह ये बात मं राजी होगे के वो मन दूरिहा मं खड़े होके देखही सुनहीं. घंटी के अवाज सुनके दूनों पंडाल मं हबरथें. मगन होके दूनों महाराज ला खंजरी बजावत अऊ कीर्तन करत देखथें. येला देख नोनी ह उतइल होय ला लगथे, वो ह मंच मं जाय ला चाहथे. अचानक, वो ह बगेर कोनो आरो के वो ह दऊड़ जाथे, अऊ वइसनेच करे ला लगथे.
वो ह मंच मं संत कलाकार ले कहिथे,“मंय एक ठन भरूड़ गाये ला चाहत हवं [ जुन्ना कविता के एक ठन रूप जेन हा समाजिक गियान सेती बनाय गीत मन मं व्यंग्य अऊ हास्य ला बताथे].” देखेइय्या मन अचमित हवंय, फेर महाराज वोला गाये ला देथें. अऊ कुछेक मिनट मं ये नोनी मंच मं आ जाथे, ताल सेती एक ठन लोहा के बरतन ला बजाथे, वो ह एक ठन गीत गाथे जेन ह उहिच महाराज के लिखे अऊ संगीतबद्ध करे गे रहिस.
माझा
रहाट
गं
साजनी
गावू
चौघी
जनी
माझ्या
रहाटाचा
कणा
मला
चौघी
जनी
सुना
चुंवा मं लगे रहट, मोर मयारू
आवव चरों मिलके, गाबो जी
रहट अऊ ओकर डोरी जइसने
मोर चरों बहुरिया वइसने
लइका के गाये ला सुनके संत कलाकार ह वोला अपन खंजिरी ये कहत भेंट मं दीस, तोर उपर मोर आशीष हमेसा बने रइही. तंय ये संसार मं अंजोर बगराबे.
वीडियो देखव मीरा उमाप ला पारंपरिक भारुड़ गावत, जऊन ह व्यंग्य अऊ रूपक मन के सेती जाने जाथे अऊ कतको बात ला रखथे
ये साल 1975 के बखत रहिस. संत कलाकार तुकाडोजी महाराज रहिन, जेन ह गाँव-देहात के इलाका मन मं जिनगी के बुराई अऊ खतरा, अऊ आगू जाय के रद्दा मं ग्राम गीता मं संकलित अपन छंद सेती जाने जाथे. ये नानचिक नोनी, अब 50 बछर बाद, अभू घलो अपन प्रदर्सन ले मंच मं आगि लगा देथे. नौवारी सूती लुगरा पहिरे, माथे मं बड़े अकन बिंदी लगाये, अपन डेरी हाथ मं दिमड़ी नांव के एक ठन नान कन थाप बाजा धरे, जब मीरा उमाप भीम गीत गाथे, त ओकर जउनि हाथ के ऊँगली मन ये बाजा मं लय अऊ ताकत धरे चले लगथे: ओकर हाथ मं कांच के चुरी मन वो बाजा के धार मं बंधे झंकारत घंटी के संग बखत के पता लगाथे जेन ला वो ह बजावत हवय. हरेक जिनिस जिये ला धरथे.
खातो
तुपात
पोळी
भीमा
तुझ्यामुळे
डोईवरची
गेली
मोळी
भीमा
तुझ्यामुळे
काल
माझी
माय
बाजारी
जाऊन
जरीची
घेती
चोळी
भीमा
तुझ्यामुळे
साखर
दुधात
टाकून
काजू
दुधात
खातो
भिकेची
गेली
झोळी
भीमा
तुझ्यामुळे
ओ भीम, सिरिफ तोरेच सेती, मंय खायं रोटी चुपरे घीव
ओ भीम, सिरिफ तोरेच सेती, मंय नइ उठावंव बोझा लकरी
कालि बजार गे रहिस मोर महतारी
ओ भीम, सिरिफ तोरेच सेती, बिसोइस ब्लाउज-जरी
मंय गोरस मं चीनी मिलायेंव, खायेंव ओकर संग काजू
ओ भीम, तोरेच सेती भीख मांगे ले मिलिस छुटकारा
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मीराबाई ला मालूम नइ ये के ओकर जनम कऊन दिन होय रहिस, फेर अपन जनम के बछर साल 1965 बताथें. ओकर जनम महाराष्ट्र के अंतरवाली गाँव के एक ठन गरीब मातंग परिवार मं होय रहिस. राज मं अनुसूचित जाति मं सूचीबद्ध मातंग मन ला इतिहास मं 'अछूत' माने जावत रहिस अऊ जात ला सबके तरी के जगा मं रखे गे हवय.
ओकर ददा वामनराव अऊ दाई रेशमाबाई बीड जिला मं एक गांव ले दूसर गांव जावत रहिन, सुग्घर भजन अऊ अभंग गावत रहिन अऊ भीख मंगत रहिन. 'गुरु घराना' ले जुरे परिवार के रूप मं समाज मं ओकर मन रहिस,जेन ह गियानी अऊ गुरु मन के भारी मन वाले मंडली रहिस. दलित समाज जऊन ह गायन के कला ला आगू चलावत जाथे.येकरे सेती भलेच मीराबाई कभू स्कूल नइ गीस, फेर वो ह अपन दाई-ददा ले मिले अभंग, भजन अऊ कीर्तन के अगर-उछर भंडार के संग बड़े होईस.
ये जोड़ा ला अपन आठ लइका –पांच नोनी अऊ तीन झिन बाबू – के पेट भरे अऊ ओकर पालन पोसन सेती दिक्कत होवत रहिस. जब ल इका मन ले सबले छोटे मीराबाई सात बछर के रहिस, वो बखत ले वो ह अपन दाई-ददा के संग गाये ला सुरु कर दे रहिस. वामनराव एकतारी बजावय अऊ ओकर छोटे भाई भाऊराव दिमड़ी बजावत रहिस. “मोर ददा अऊ कका दूनों एके संग भीख मांगत रहिन,” वो हमन ला अपन गायकी के कहिनी सुनावत कहिथें. एक बेर, बिहनिया मं मिले भीख ला बांटे ला लेके दूनों मं झगरा होगे. झगरा अतके बढ़गे के दूनों अलग होय के फइसला करिन.
वो दिन के बाद ओकर कका ह बुल्डाना चले गे अऊ ओकर ददा ह वोला अपन तीर बला लीस. वो ह ओकर पाछू अपन कोंवर अवाज मं गावय अऊ कतको भक्ति गीत सिखिस. वो ह कहिथे, “मोर ददा ला हमेसा बेस्वास रहिस के मंय एक दिन गायिका बनहूँ.”
बाद मं, मजूरी सेती मवेसी मन ला चरावत, वो ह दिमड़ी मं अपन हाथ आजमाय सुरु कर दीस. जब मंय नानचिक रहंय, धातु के बरतन मोर बाजा रहिस. पानी लावत, मोर हाथ कलशी (धातु के बरतन) मं थपथपाय लगिस. मोर ये आदत एक ठन शौक बन गे. मीराबाई कहिथे, “मंय जिनगी मं जऊन कुछु घलो सिखेंव, वो ह काम बूता करत सिखेंव, कोनो स्कूल मं नइं.”
परोस मं रोज के भजन गाये सेती छोटे-छोटे बइठका होवत रहय अऊ जल्देच मीराबाई वो मंडली मं जुर गे अऊ कतको भजन गाये लगिस.
राम
नाही
सीतेच्या
तोलाचा
राम
बाई
हलक्या
दिलाचा
राम नइ ये सीता के तौल
हिरदे राम के हल्का मोल
वो ह कहिथे, “मंय कभू स्कूल नइ गें, फेर 40 ठन अलग-अलग रामायण मोला कंठस्थ हवंय. श्रवण बाल के कहिनी, महाभारत के पांडव मन के कहिनी अऊ कबीर के सैकड़ों दोहा, सब्बो मोर दिमाग मं रचे हवंय.” ओकर मानना आय के रामायण ह एक ठन सोझ कहिनी नो हे, फेर लोगन मन के, वो मन के संस्कृति, वो मन के दुनिया ला देखे के नजरिया अऊ वो मन के देखे के आधार ले बनाय गे हवय. कतको समाज ह अपन उपर गुजरे ऐतिहासिक चुनौती अऊ ओकर नुकसान ह ये महकाव्य मं बदलाव लाये हे. किरदार उहिच आंय फेर कहिनी कतको बहुरंगी अऊ बहुआयामी हवंय.
मीराबाई येला ये समाज मं अपन स्थिति अऊ जगा के मुताबिक प्रस्तुत करथे. ये ऊंच जात के हिंदू मन के येला प्रस्तुत करे के तरीका अलग हवय. ओकर रमायन के मूल मं एक झिन दलित महतारी हवय. राम ह सीता ला जंगल मं अकेल्ला काबर छोड़ दीस? वो ह शम्बूक ला काबर मारिस? वो ह बलि के हत्या काबर करिस? जब वो ह अपन कहिनी मन मं अऊ महाकाव्य के मनभावन कहिनी मन ला तरक देके प्रस्तुत करथे त वो ह अपन देखेइय्या-सुनेइय्या मन के आगू कतको सवाल रखथे. वो ह कहिथे, “मंय ये कहिनी मन ला सुनाय बर हास्य ला घलो सामिल करथों.
संगीत के गहिर समझ, तकनीक अऊ प्रस्तुति के बढ़िया समझ के संग मीराबाई के संगीत अपनेच वर्ग मं हवय. विदर्भ अऊ मराठवाड़ा मं बड़े मनेइय्या असरवाले संत कवि अऊ सुधारक तुकड़ोजी महाराज के चले रद्दा अऊ शैली ला अपनावत, मीराबाई घलो कतको ऊंच जगा हासिल करे हवय.
तुकड़ोजी महाराज ह अपन कीर्तन करे बखत खंजिरी बजाइस. ओकर चेला सत्यपाल चिंचोलीकर सप्त-खंजिरी बजाथे, जेन मं सात खंजिरी अलग-अलग सुर अऊ अवाज निकारथे. सांगली के देवानंद माली अऊ सतारा के म्हालारी गजभरे घलो इहीच बाजा बजावत रहिस. फेर मीराबाई उमाप खंजिरी बजेइय्या एकेच माइलोगन आंय अऊ वो घलो भारी माहिर ढंग ले.
लातूर के शाहिर रत्नाकर कुलकर्णी, जऊन गाना मन ला लिखीस अऊ डफली (शाहिर मन के एक ठन फ्रेम ड्रम बाजा) बजाइस, वो ह वोला भारी माहिर ढंग ले खंजीरी बजावत अऊ ओकर सुरीली आवाज ला घलो सुनिस.वो ह वोला शाहीरी (समाजिक गियान के गीत) प्रस्तुत करे बर मदद अऊ आगू बढ़ाय के फइसला करिस. जब वो ह 20 बछर के रहिस, तब वो ह शाहीरी मं दखल दीस अऊ बीड मं सरकारी कार्यक्रम मं अपन प्रदर्सन करिस.
वो ह कहिथे, “मोला सब्बो धरम ग्रंथ कंठस्थ रहिस. कथा, सप्ताह, रामायन, महाभारत, सत्यवान अऊ सावित्री के कहिनी, महादेव अऊ पुरान के सब्बो गीत अऊ कहिनी मं मोर जीभ मं बसे रहिस. मंय वो मन ला सुनायेंव, वोला गायेंव अऊ राज के सब्बो कोना मं ओकर प्रदर्सन करेंव. फेर येकर ले मोला कभू संतोष नई मिलिस. न ये ह सुनेइय्या मन ला कऊनो नवा रद्दा दिखाइस.”
बुद्ध, फुले, शाहू, अम्बेडकर, तुकड़ोजी महाराज अऊ गाडगे बाबा वो मन रहिन, जेन मन बहुजन समाज के समाजिक चोट अऊ खराबी के बात करिन जेन ह मीराबाई के हिरदे ला भा गीस. मीराबाई सुरता करथे, “विजयकुमार गवई ह मोला पहिली भीम गीत सिखाइस अऊ वो ह वामनदादा कार्डक के पहिली गीत रहिस जेन ला मंय गाये रहेंव.”
पाणी वाढ गं माय, पाणी वाढ गं
लयी नाही मागत भर माझं इवलंसं गाडगं
पाणी वाढ गं माय, पाणी वाढ गं
मोला पानी दे, मोर मितान, मोला पानी दे दे
मांगत नइ यों जियादा, बस भर जावय नान कन गडगा (मटका)
मोला पानी दे दे, मोर मितान, मोला पानी दे दे
शाहिर मीराबाई कहिथे, “वो दिन ले मंय सब्बो पोथी पुरान [किताबी गियान] गाये ला छोड़ देंव अऊ भीम गीत गाये सुरु कर देंव.” साल 1991 ले, बाबासाहेब अंबेडकर के जन्म शताब्दी बछर ले, वो ह अपन आप ला भीम गीत गाये बर समर्पित कर दिस, अइसने गीत जेन ह बाबासाहेब के आभार जतावत ओकर संदेसा ला बगरावत रहिस. लोगन मन येला पसंद करिन अऊ भारी उछाह ले येकर जुवाब दीन.”
शाहिर फ़ारसी शब्द ‘शायर’ या ‘शाइर’ ले आय हवय. महाराष्ट्र के गाँव देहात के इलाका मन मं शाहिर मन पोवाड़ा नांव के राजा के महिमा करत गीत लिखे अऊ गाये हवंय. आत्माराम साल्वे ह अपन खंजिरी ले, दादू साल्वे ह अपन हारमोनियम ले अऊ कडूबाई खरात ह अपन एकतारी ले अपन गीत के जरिया ले दलित चेतना ला जगाय हवय. मीराबाई अपन दिमड़ी के संग महाराष्ट्र के कुछेक माई शाहिर मं सामिल हो गीस. वो बखत तक ले दिमड़ी ला लड़ई के बाजा माने जावत रहिस, जेन ला खास करके मरद मन बजावत रहिन. मीराबाई ह अपन दिमड़ी ले एक ठन अऊ परंपरा ला टोरिस.
वोला सुने अऊ बाजा बजावत देखे, चमड़ा के कतको बाजा ला अपन माहिर हाथ ले बजावत अलग-अलग सुर निकारत, कतको किसिम के गायन –कीर्तन, भजन अऊ पोवाड़ा सेती जरूरी अलग-अलग किसिम बनाय के अनुभव आय. ओकर गायन धीरे-धीरे जोर धरथे: अवाज, प्रदर्सन हमेसा माटी ले गहिर ले जुरे होथे, भारी साहस के संग गूँजत रहिथे. ये ओकर समर्पनेच आय जेन ह दिमड़ी अऊ खंजिरी कला ला अभू घलो आगू बढ़ावत अऊ फलत-फूलत रखत हवय.
मीराबाई तऊन कुछेक माई शाहिर मन ले एक रहे हवंय, जऊन ह महाराष्ट्र के कतको संत कवि मन के करेइय्या लोक रूप, भारुड़ के प्रदर्सन करत रहिस. भारुड़ दू किसिम के होथे- भजनी भारुड़ जेन ह धरम अऊ आध्यात्मिकता के आगू पाछू घूमथे, अऊ सोंगी भारुड़ जेन मं मरद मन माइलोगन के रूप धरे मंच मं प्रदर्सन करथें. अक्सर मरद लोगन मनेच मन ऐतिहासिक अऊ समाजिक बिसय के संग-संग भारुड़ ऊपर घलो पोवाडा के प्रदर्सन करथें. फेर मीराबाई ह ये विभाजन ला चुनौती दिस अऊ सब्बो कला रूप ला समान जोस अऊ ताकत के संग दिखाय सुरु कर दिस. असल मं, ओकर प्रस्तुति कुछेक दीगर मरद कलाकार के बनिस्बत जियादा लोकप्रिय रहे हवय.
दिमड़ी के संग प्रदर्शन, गीत, रंगमंच अऊ देखेइय्या मन बर संदेश मीराबाई सेती मनोरंजन ले कहूँ जियादा रहे हवय.
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ये देश मं कला ह भारी गहिर ले जुरे हवय अऊ ओकर बनेइय्या के जात के अधार ले वोला आंके जाथे. मइनखे संगीत अऊ दीगर कला समेत अपन जात के तौर-तरीका सिखथे. काय कऊनो गैर-दलित, गैर-बहुजन ये बाजा मन के नोटेशन बनाय सकही, वोल साधे सकही अऊ वोला बजाय सीखे सकही? अऊ, गर कऊनो बहिर के मइनखे दिमड़ी, संबल धन ज़ुम्बारुक मं हाथ अजमाय ला चाही, त कऊनो घलो लिखे संगीतशास्त्र नइ ये.
मुंबई यूनिवर्सिटी के संगीत विभाग के लइका मन खंजिरी अऊ दिमड़ी बजाय सिखत हवंय. जाने-माने कलाकार कृष्णा मुसले अऊ विजय चव्हाण ह ये थाप बाजा मन के सेती नोटेशन बनाए हवंय. फेर येकर अपन चुनौती मन हवय, ये ह यूनिवर्सिटी के लोक-कला अकादमी के निदेशक गणेश चंदनशिवे के कहना आय.
वो ह कहिथे, “दिमड़ी, संबल धन खंजिरी ला तऊ तरीका ले नइ सिखाय सकव जइसने दीगर शास्त्रीय बाजा मन ला सिखाय जाथे. वो ह बताथें, “कऊनो तबला ला सिरिफ उहिच किसिम ले सिखाय धन सीख सकथे जइसने हमन वो बाजा बर नोटेशन लिख सकथन. लोगन मन दिमड़ी धन इहां तक के संबल ला सिखाय बर समान संकेतन ला काम मं लाय के कोसिस करिन. फेर ये मं कऊनो घलो बाजा के अपन संगीतशास्त्र नइ ये. कऊनो घलो नोटेशन ला लिखे नइ ये धन येला शास्त्रीय बाजा के दर्जा देवेइय्या कऊनो ‘विज्ञान’ बनाय नइ ये.”
मीराबाई ला दिमड़ी अऊ खंजिरी मं महारत हासिल रहिस, बगैर कऊनो विज्ञान, संकेतन धन संगीत के नियम ला जाने. जब वो ह वोला बजाय ला सिखिस त वोला कभू पता नइ चलिस के ये ह धा हे धन ता. फेर ओकर गति, लय अऊ सुर मन मं पूर्णता कऊनो घलो शास्त्रीय बाजा बजेइय्या कलाकार ले मेल खा सकथे. बाजा ओकर आय. दिमड़ी बजाय मं मीराबाई के महारत के बराबरी लोक-कला अकादमी मं कऊनो घलो करे नइ सकय.
जइसने- जइसने बहुजन जात मन मध्यम वर्ग मं आवत हवंय, वो मन के अपन पारंपरिक कला अऊ अभिव्यक्ति के नुकसान होवत हवय. शिक्षा अऊ काम सेती शहर डहर जाय के कारन, वो अब अपन पारंपरिक बेवसाय अऊ ओकर ले जुरे कला रूप के प्रदर्सन नइ करंय. ये कला रूप मन के दस्तावेजीकरण करे. ओकर जनम अऊ अभियास के ऐतिहासिक अऊ भौगोलिक बात मन ला समझे के भारी जरूरत हवय. जेन ह हमर कतको सवाल के समाधान करे सेती हमर आगू मं हवय. जइसने, काय जातिगत लड़ई, दीगर लड़ाई के बात वो मन के बोल मं झलकथे? गर, हव, त वो कऊन रूप हवंय जेन मं येला बताय जाथे? अकादमिक नजरिया ले ये रूप मन ला देखे बखत यूनिवर्सिटी धन स्कूल अइसने कऊनो नजरिया नइ दिखावंय.
हरेक जात के एक ठन खास लोक कला होथे अऊ येकरे सेती भारी जियादा विविधता होथे. खजाना अऊ परंपरा मन के अध्ययन अऊ येला संकेले सेती समर्पित अनुसंधान केंद्र के असल जरूरत हवय. वइसे. ये कऊनो घलो गैर-ब्राह्मणवादी आंदोलन के एजेंडा मं नइ ये. फेर मीराबाई ये हालत ला बदले ला चाहत हवय. वो ह कहिथे, “मंय एक ठन संस्थान सुरु करे ला चाहत हवं जिहाँ नवा पीढ़ी खंजिरी, एकतारी अऊ ढोलकी सीख सकंय.”
राज सरकार डहर ले येकर बर कऊनो मदद नइ मिले हवय. काय वो ह सरकार ले कऊनो अपील करे हवय? वो ह जुवाब देथे, “काय मंय पढ़े लिखे जानथों? जब अऊ जिहां घलो मंय कऊनो कार्यक्रम मं जाथों अऊ गर उहाँ राज सरकार के कऊनो अफसर होथे, त मंय ओकर ले अपील करथों. वोला ये सपना ला पूरा करे मं मदद करे के बिनती करथों. फेर काय तुमन ला लागथे के सरकार ह गरीब लोगन के ये कला ला मान-महत्ता देथे?”
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वइसे, राज सरकार ह मीराबाई ला नेवता दीस. जब मीराबाई के शाहीरी अऊ गायन ह बड़े पैमाना मं देखेइय्या मन ला असरदार ढंग ले अपन डहर खींचे सुरु करिस, त महाराष्ट्र सरकार ह वोला राज के कतको जागरूकता कार्यक्रम अऊ अभियान मन मं मदद देय ला कहिस. जल्दीच, राज भर मं जावत वो ह सेहत, नशा मुक्ति, दहेज अऊ दारू उपर रोक के मुद्दा मन ला लोक संगीत के संग छोटे नाटक प्रस्तुत करत रहिस.
बाई दारुड्या भेटलाय नवरा
माझं नशीब फुटलंय गं
चोळी अंगात नाही माझ्या
लुगडं फाटलंय गं
मोर घरवाला आय दरूहा
मोर किस्मत हवय खराब
मोला पहिरे नइ मिलिस पोलका
मोर लुगरा होगे चिंदरा.
नशामुक्ति ऊपर ओकर जागरूकता कार्यक्रम ह वोला महाराष्ट्र सरकार ले व्यसनमुक्ति सेवा पुरस्कार दिलाइस. वोला ऑल इंडिया रेडियो अऊ दूरदर्शन ह प्रदर्मन सेती घलो नेवते रहिस.
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फेर जम्मो बढ़िया काम के बाद घलो मीराबाई सेती जिनगी ह कठिन रहे हवय. “मंय बेघर होगे रहेंव अऊ मोर मदद करेइय्या कऊनो नइ रहिस,” वो ह अपन नवा अलहन के कहिनी सुनाथे. “लॉकडाउन [2020] बखत शॉर्ट सर्किट सेती मोर घर मं आगि लग गे. हमन भारी हतास होगे रहेन के वो घर ला बेंचे के छोड़ कऊनो उपाय नइ रहिस. हमन सड़क मं आगे रहेन. कतको अंबेडकरवादी मन ये घर ला बनाय मं मोर मदद करिन,” वो ह टिन के भिथि अऊ छानी वाले अपन नवा घर के बात करत रहिस, जिहां हमन बइठे रहेन.
ये हाल तऊन कलाकार के आय जऊन ला अन्नाभाऊ साठे, बाल गंधर्व अऊ लक्ष्मीबाई कोल्हापुरकर जइसने कतको दिग्गज के नांव मं कतको नामी पुरस्कार ले सम्मानित करे गे हवय. महाराष्ट्र सरकार ह ओकर सांस्कृतिक योगदान सेती वोला राज्य पुरस्कार ले घलो सम्मानित करिस. ये पुरस्कार कभू ओकर घर के भिथि मं सजत रहिस.
मीराबाई रुंवासी आंखी ले कहिथे, “मंय तुमन ला बतावंव, वो सिरिफ आंखी ला सुहाथे. सिरिफ येकर ले ककरो पेट नइ भरय. कोरोना के बखत हमन भूखन मरत रहेन. हतासा के वो बखत मं, मोला रांधे सेती ये पुरस्कार ला जलावन लकरी बनाय ला परिस. भूख ये पुरस्कार मन ले कहूँ जियादा ताकतवर आय.”
पहिचान मिले धन नइ मिले, मीराबाई ह मानवता, मया अऊ करुणा के संदेसा बगराय बर महान सुधारक मन के रद्दा मं चलत, अपन कला ला अटूट भक्ति के संग आगू बढ़ावत हवंय. वो ह जात-धरम के झगरा अऊ एक दूसर ले अलग करेइय्या आगि ला बुथाय बर अपन कला अऊ अपन प्रदर्सन ला काम मं लावत हवंय. वो ह कहिथे, “ मंय अपन कला ला बेंचे नइ चाहंव. “सम्भाली तार ते कला आहे, नहीं तर बला हे [गर कऊनो येकर मान करथे, त ये कला आय. नइ त ये ह बला आय].”
मंय अपन कला के अपन चरित्र ला नइ गंवाय हों. बीते 40 बछर मं मंय ये देश के कोना-कोना मं जाय हवं. कबीर, तुकाराम, तुकड़ोजी महाराज अऊ फुले-अंबेडकर के संदेसा बगराय हवं. मंय वो मन के गीत गावत रहिथों अऊ वो मन के विरासत मोर प्रदर्सन के जरिया ले आगू बढ़त हवय.
“मंय अपन आखिरी सांस तक ले भीम गीत गावत रइहूँ. वो मोर जिनगी के आखिरी बखत होही अऊ येकर ले मोला भारी संतोस मिलथे.”
ये वीडियो पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के सहयोग ले इंडिया फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स के ओकर अभिलेखागार अऊ संग्रहालय कार्यक्रम के तहत चले एक ठन परियोजना 'प्रभावशाली शाहिर, मराठवाड़ा ले कथा' नांव के संग्रह के हिस्सा आय. येला गोएथे-इंस्टीट्यूट/मैक्स मुलर भवन, नई दिल्ली ले घलो सहयोग मिले हवय
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू